hotaks444
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अगली सुबह जब बेला सेठ चन्डीमल के घर पहुँचती है, तो सेठ के घर के बाहर तांगा खड़ा देख कुछ सोच में पड़ जाती है।
‘आज इतनी सुबह-सुबह कौन आ गया सेठ जी के घर…?’ ये बोलते हुए बेला सेठ के घर के अन्दर दाखिल होती है।
जैसे ही वो घर के आँगन में पहुँचती है, तो रजनी अपने बैगों के साथ तैयार खड़ी हुई दिखती है।
बेला- आप कहीं जा रही है मालकिन?
रजनी- हाँ.. वो मैं मायके जा रही हूँ।
बेला- अचानक से कैसे और अकेली जा रही हैं क्या?
रजनी (अपने होंठों पर घमंड से मुस्कान लाते हुए)- नहीं तो.. सोनू भी साथ जा रहा है।
बेला ने एकदम से चौंकते हुए पूछा- क्या.. सोनू?
रजनी- हाँ.. वो 7-8 दिन के लिए जा रही हूँ ना… तो सामान थोड़ा ज्यादा है। इसलिए सोनू साथ में जा रही हूँ।
बेला अपने मन में सोचती है कि साली छिनाल की चूत में ज़रूर खुजली हो रही होगी।
‘अच्छा वैसे सोनू भी 8 दिन रहेगा?’
रजनी- हाँ क्यों… तुम्हें कोई परेशानी है?
रजनी बेला को आँखें दिखाते हुए बोली।
बेला घबराते हुए बोली- नहीं मालकिन.. आप ऐसा क्यों सोच रही हैं?
बेला बिना कुछ बोले रसोई में चली गई।
उसके बाद सोनू ने अपना और रजनी का सारा सामान उठा कर तांगे में रख और खुद तांगे में आगे की तरफ बैठ गया और रजनी तांगे के पीछे की तरफ बैठ गई।
रजनी के मायके का गाँव उनके गाँव से कोई 3 घंटे के दूरी पर था.. उस जमाने में बस या और कोई साधन नहीं हुआ करता था क्योंकि एक गाँव से दूसरे गाँव तक लोग तांगे में ही सफ़र किया करते थे और जो लोग ग़रीब थे, वो तो इतना लंबा सफ़र भी पैदल चल कर ही करते थे।
दोपहर हो चुकी थी, तांगे वाला भी चन्डीमल के गाँव से ही था।
इसलिए रजनी और सोनू के बीच में पूरे रास्ते कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी।
जब वो रजनी के मायके पहुँचे तो उनका स्वागत रजनी की माँ, भाई और भाभी ने किया।
तीनों रजनी को देख कर बहुत खुश थे, वो सोनू और रजनी को घर के अन्दर ले आए और रजनी को उसकी माँ ने अपने साथ पलंग पर बैठा लिया और अपनी बहू रेशमा को सोनू और रजनी के लिए चाय नास्ता लाने के लिए कहा। रमेश रजनी का भाई भी उनके साथ बैठ गया।
जया (रजनी की माँ)- और बेटी कैसी हो? आख़िर तुम्हें अपनी माँ की याद आ ही गई।
रमेश- हाँ दीदी.. आज आप बहुत समय बाद आई हो, आप तो जैसे हमें भूल ही गईं।
रजनी (मुस्कुराते हुए)- नहीं माँ.. ऐसी कोई बात नहीं है.. वो दरअसल इनको (चन्डीमल) काम से फ़ुर्सत नहीं मिलती और आप तो जानती ही हो, वो मुझे अकेले कहीं नहीं भेजते।
जया- अच्छा ठीक है ये छोरा कौन है?
रजनी- ये.. इसे सेठ जी ने घर के काम-काज के लिए रखा है। अच्छा रमेश तुम दोनों शादी के लिए कब निकल रहे हो?
रमेश- जी दीदी बस आपका इंतजार था.. बस अभी ही निकलने वाले हैं। इसलिए तांगे वाले को रोक लिया..
दरअसल रमेश के साले की शादी थी और वो और उसकी पत्नी 7 दिनों के लिए जा रहे थे, इसलिए उन्होंने रजनी को यहाँ पर बुलवाया था, क्योंकि उनके पीछे उनकी माँ अपने पति के साथ अकेली रह जाती।
‘आज इतनी सुबह-सुबह कौन आ गया सेठ जी के घर…?’ ये बोलते हुए बेला सेठ के घर के अन्दर दाखिल होती है।
जैसे ही वो घर के आँगन में पहुँचती है, तो रजनी अपने बैगों के साथ तैयार खड़ी हुई दिखती है।
बेला- आप कहीं जा रही है मालकिन?
रजनी- हाँ.. वो मैं मायके जा रही हूँ।
बेला- अचानक से कैसे और अकेली जा रही हैं क्या?
रजनी (अपने होंठों पर घमंड से मुस्कान लाते हुए)- नहीं तो.. सोनू भी साथ जा रहा है।
बेला ने एकदम से चौंकते हुए पूछा- क्या.. सोनू?
रजनी- हाँ.. वो 7-8 दिन के लिए जा रही हूँ ना… तो सामान थोड़ा ज्यादा है। इसलिए सोनू साथ में जा रही हूँ।
बेला अपने मन में सोचती है कि साली छिनाल की चूत में ज़रूर खुजली हो रही होगी।
‘अच्छा वैसे सोनू भी 8 दिन रहेगा?’
रजनी- हाँ क्यों… तुम्हें कोई परेशानी है?
रजनी बेला को आँखें दिखाते हुए बोली।
बेला घबराते हुए बोली- नहीं मालकिन.. आप ऐसा क्यों सोच रही हैं?
बेला बिना कुछ बोले रसोई में चली गई।
उसके बाद सोनू ने अपना और रजनी का सारा सामान उठा कर तांगे में रख और खुद तांगे में आगे की तरफ बैठ गया और रजनी तांगे के पीछे की तरफ बैठ गई।
रजनी के मायके का गाँव उनके गाँव से कोई 3 घंटे के दूरी पर था.. उस जमाने में बस या और कोई साधन नहीं हुआ करता था क्योंकि एक गाँव से दूसरे गाँव तक लोग तांगे में ही सफ़र किया करते थे और जो लोग ग़रीब थे, वो तो इतना लंबा सफ़र भी पैदल चल कर ही करते थे।
दोपहर हो चुकी थी, तांगे वाला भी चन्डीमल के गाँव से ही था।
इसलिए रजनी और सोनू के बीच में पूरे रास्ते कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी।
जब वो रजनी के मायके पहुँचे तो उनका स्वागत रजनी की माँ, भाई और भाभी ने किया।
तीनों रजनी को देख कर बहुत खुश थे, वो सोनू और रजनी को घर के अन्दर ले आए और रजनी को उसकी माँ ने अपने साथ पलंग पर बैठा लिया और अपनी बहू रेशमा को सोनू और रजनी के लिए चाय नास्ता लाने के लिए कहा। रमेश रजनी का भाई भी उनके साथ बैठ गया।
जया (रजनी की माँ)- और बेटी कैसी हो? आख़िर तुम्हें अपनी माँ की याद आ ही गई।
रमेश- हाँ दीदी.. आज आप बहुत समय बाद आई हो, आप तो जैसे हमें भूल ही गईं।
रजनी (मुस्कुराते हुए)- नहीं माँ.. ऐसी कोई बात नहीं है.. वो दरअसल इनको (चन्डीमल) काम से फ़ुर्सत नहीं मिलती और आप तो जानती ही हो, वो मुझे अकेले कहीं नहीं भेजते।
जया- अच्छा ठीक है ये छोरा कौन है?
रजनी- ये.. इसे सेठ जी ने घर के काम-काज के लिए रखा है। अच्छा रमेश तुम दोनों शादी के लिए कब निकल रहे हो?
रमेश- जी दीदी बस आपका इंतजार था.. बस अभी ही निकलने वाले हैं। इसलिए तांगे वाले को रोक लिया..
दरअसल रमेश के साले की शादी थी और वो और उसकी पत्नी 7 दिनों के लिए जा रहे थे, इसलिए उन्होंने रजनी को यहाँ पर बुलवाया था, क्योंकि उनके पीछे उनकी माँ अपने पति के साथ अकेली रह जाती।