desiaks
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“नहीं। ऐसी उम्मीद तो मुझे तुमसे नहीं है। लेकिन कौशल, तुम्हारे लिए अब भारी सावधानी बरतने की जरूरत है। यूं किसी की तवज्जो तुम्हारी तरफ जाना तुम्हारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है।”
“तो मैं क्या करूं?”
“मेरे खयाल से तुम फौरन से पेश्तर अपना कूचा मीर आशिक वाला ठीया छोड़ दो। तुम यह इलाका छोड़ दो और रहने के लिए यहां से कहीं दूर चले जाओ। आज ही रात कोई नई जगह तलाश कर लेना तुम्हारे लिए मुश्किल होगा, इसलिए बेशक मेरे घर चले आओ। कल यहां से दूर कहीं, जमना पार के इलाके में या तिलक नगर वाली साइड में या किसी और दूर दराज जगह में कोई नया ठिकाना तलाश कर लेना। अपना नाम भी कोई नया रख लो तो और भी अच्छा होगा। तब दारा के आदमी तुम्हें सहूलियत से तलाश नहीं कर सकेंगे। कहने का मतलब यह है कि अपने मौजूदा ठिकाने को तो तुम जितनी जल्दी नमस्ते करोगे, उतना ही अच्छा होगा।”
“ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा।”
मन-ही-मन वह उस इलाके को क्या, उस शहर को ही छोड़ देने की सोच रहा था। पहला मौका हाथ आते ही वह दिल्ली से इतनी दूर निकल जाएगा कि दारा हरगिज भी उसे तलाश नहीं कर पाएगा। फेथ डायमंड में अपना हिस्सा उसे पीछे छोड़ना पड़ेगा लेकिन मामला ठण्डा पड़ जाने के बाद वह एकाध दिन के लिए चुपचाप दिल्ली लौट सकता था और अपना हिस्सा हासिल करके चुपचाप वापिस खिसक सकता था।
“अभी सीधे घर ही चले जाओ।”—रंगीला ने राय दी।
कौशल ने सहमति में सिर हिलाया।
“हम हवामहल में होंगे। जब निपट जाओ तो वहां आ जाना।”
“ठीक है।”—कौशल बोला।
सुभाष पार्क के सामने से वह एक रिक्शा पर सवार हो गया। उसने अपने साथियों से विदा ली और रिक्शा पर चावड़ी बाजार की तरफ रवाना हो गया।
रंगीला और राजन बदस्तूर पैदल चलते रहे।
पीछे कोई पन्द्रह मिनट बाद जुम्मन को होश आया। वह कांपता कराहता उठा। बड़ी मुश्किल से वह अपनी टांगों को अपने शरीर का वजन सम्भालने के काबिल बना पाया। सबसे पहले उसने अपने चारों तरफ निगाह डालकर इस बात की तसल्ली की कि उसकी वह गत बनाने वाले उसके दुश्मन वहां से जा चुके थे फिर वह लड़खड़ाती चाल से चलता हुआ पैट्रोल पम्प की तरफ बढ़ा।
उसने फौरन कहीं फोन करना था।
जो कुछ हुआ था, उसकी खबर फौरन कहीं कर पाने में असफल रहने की सूरत में उसकी अभी और—पहले से ज्यादा—धुनाई हो सकती थी।
मंगलवार : रात
कौशल अपने एक कमरे के घर में पहुंचा। उसका कमरा निचली मंजिल पर था और उसका दरवाजा बाहर गली में खुलता था। नीचे वैसे ही तीन कमरों में तीन किरायेदार और थे, ऊपर सारे में मकान मालिक रहता था।
वहां पहुंचते ही उसने अपना सारा सामान एक सूटकेस में पैक करना आरम्भ कर दिया।
तभी एक आदमी बाहर गली में पहुंचा। दाएं-बाएं झांके बिना वह सीधा ऊपर की सीढ़ियां चढ़ गया। उसने गली में खेलते बच्चों से पहले ही पूछताछ कर ली थी कि मकान मालिक ऊपर पहली मंजिल पर रहता था।
उस आदमी की सूरत पर एक निगाह पड़ते ही मकान मालिक का चेहरा पीला पड़ गया। वह उस आदमी को जानता था। वह दारा का आदमी था। दारा के आदमी का किसी गृहस्थ आदमी के घर आना किसी अच्छी बात का द्योतक नहीं होता था। उस आदमी ने जब उससे उसके किरायेदार कौशलसिंह डबराल के बारे में सवाल पूछने शुरू किए तो उसने यूं जल्दी-जल्दी जवाब देने आरम्भ किए जैसे उसने किसी इम्तहान में पास होना था।
उसके जवाबों से सन्तुष्ट होकर जब वह आदमी वहां से विदा हो गया तभी मकान मालिक की जान में जान आई।
कोई दस मिनट बाद कौशल उसके पास पहुंचा।
“मैं कहीं जा रहा हूं।”—उसने मकान मालिक को चाबी सौंपते हुए कहा—“यह नीचे की चाबी है। इसे आप काशीनाथ को दे देना। काशीनाथ को कह देना कि मैं दो-तीन महीने बाद लौटूंगा।”
मकान मालिक ने सहमति में सिर हिला दिया। उसका कौशल को यह बताने का हौसला नहीं हुआ कि उस इलाके के सबसे बड़े बदमाश का कोई आदमी उसके बारे में पूछताछ करने आया था।
कौशल अपना सूटकेस सम्भाले वहां से विदा हो गया।
नीचे के ताले की दूसरी चाबी काशीनाथ के पास भी थी लेकिन अब जब कि वह वहां लौटने का कोई इरादा ही नहीं रखता था तो उसने अपनी वाली चाबी अपने पास रखना मुनासिब नहीं समझा था।
बाहर गली में नीमअन्धेरा था। मकान से कुछ ही कदम आगे गली एक डयोढ़ी में से गुजरती थी, जिसकी मेहराब के नीचे के छोटे से टुकड़े में दूर जलती स्ट्रीट लाइट की रोशनी बड़ी ही मुश्किल से पहुंच रही थी।
कौशल मेहराब के नीचे कदम रखते ही ठिठक गया।
सामने दायें बायें की दीवारों से टेक लगाये दो आदमी खड़े थे और उन दोनों की निगाहें उसी पर टिकी थीं।
कौशल सकपकाया, उसने गरदन घुमाकर अपने पीछे देखा।
वैसे ही दो आदमी उसे अपने पीछे भी दिखाई दिये।
उसके कानों में खतरे की घंटियां बजने लगीं।
उसके पीछे मौजूद आदमी अभी उससे दूर थे। उसने घूमकर वापिस मकान में घुस जाना चाहा लेकिन तभी मेहराब के नीचे मौजूद दोनों आदमी उस पर झपट पड़े। एक आदमी ने उसे पीछे से पकड़कर वापिस मेहराब के नीछे घसीट लिया और दूसरे ने एक मजबूत डन्डे का भारी प्रहार उसके सिर पर किया।
कौशल की आंखों के सामने लाल-पीले सितारे नाच गये।
सूटकेस पर से उसकी पकड़ छूट गई। सूटकेस धम्म से नीचे गली में गिरा। उसका एक हाथ अपनी पतलून की एक जेब से सरक गया, जिसमें कि वह एक पीतल का मुक्का रखता था।
तभी डन्डे का एक और प्रहार उसकी कनपटी पर पड़ा।
तब तक उसके पीछे वाले दोनों आदमी भी उसके सिर पर पहुंच चुके थे।
चारों ने उसे घेर लिया।
एक और प्रहार उसकी खोपड़ी पर पड़ा। इस बार वह अपने पैरों पर खड़ा न रह पाया। उसके घुटने मुड़ गये और वह जमीन चाट गया।
तुरन्त कोई उसके ऊपर चढ़ बैठा।
फिर कई हाथ उसके सारे शरीर पर फिरने लगे।
एक हाथ ने उसकी जेब में मौजूद नोटों का पुलन्दा निकाल लिया। एक और हाथ ने उसकी बनियान की जेब में रखी शनील की थैली अपने अधिकार में कर ली। एक तीसरा हाथ हीरे की उस अंगूठी पर पड़ा, जिसे कौशल पायल को देना चाहता था। फिर एक चौथा हाथ उसके जमीन पर पड़े सूटकेस पर भी पड़ा।
अगले ही क्षण चारों यह जा वह जा।
“तो मैं क्या करूं?”
“मेरे खयाल से तुम फौरन से पेश्तर अपना कूचा मीर आशिक वाला ठीया छोड़ दो। तुम यह इलाका छोड़ दो और रहने के लिए यहां से कहीं दूर चले जाओ। आज ही रात कोई नई जगह तलाश कर लेना तुम्हारे लिए मुश्किल होगा, इसलिए बेशक मेरे घर चले आओ। कल यहां से दूर कहीं, जमना पार के इलाके में या तिलक नगर वाली साइड में या किसी और दूर दराज जगह में कोई नया ठिकाना तलाश कर लेना। अपना नाम भी कोई नया रख लो तो और भी अच्छा होगा। तब दारा के आदमी तुम्हें सहूलियत से तलाश नहीं कर सकेंगे। कहने का मतलब यह है कि अपने मौजूदा ठिकाने को तो तुम जितनी जल्दी नमस्ते करोगे, उतना ही अच्छा होगा।”
“ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा।”
मन-ही-मन वह उस इलाके को क्या, उस शहर को ही छोड़ देने की सोच रहा था। पहला मौका हाथ आते ही वह दिल्ली से इतनी दूर निकल जाएगा कि दारा हरगिज भी उसे तलाश नहीं कर पाएगा। फेथ डायमंड में अपना हिस्सा उसे पीछे छोड़ना पड़ेगा लेकिन मामला ठण्डा पड़ जाने के बाद वह एकाध दिन के लिए चुपचाप दिल्ली लौट सकता था और अपना हिस्सा हासिल करके चुपचाप वापिस खिसक सकता था।
“अभी सीधे घर ही चले जाओ।”—रंगीला ने राय दी।
कौशल ने सहमति में सिर हिलाया।
“हम हवामहल में होंगे। जब निपट जाओ तो वहां आ जाना।”
“ठीक है।”—कौशल बोला।
सुभाष पार्क के सामने से वह एक रिक्शा पर सवार हो गया। उसने अपने साथियों से विदा ली और रिक्शा पर चावड़ी बाजार की तरफ रवाना हो गया।
रंगीला और राजन बदस्तूर पैदल चलते रहे।
पीछे कोई पन्द्रह मिनट बाद जुम्मन को होश आया। वह कांपता कराहता उठा। बड़ी मुश्किल से वह अपनी टांगों को अपने शरीर का वजन सम्भालने के काबिल बना पाया। सबसे पहले उसने अपने चारों तरफ निगाह डालकर इस बात की तसल्ली की कि उसकी वह गत बनाने वाले उसके दुश्मन वहां से जा चुके थे फिर वह लड़खड़ाती चाल से चलता हुआ पैट्रोल पम्प की तरफ बढ़ा।
उसने फौरन कहीं फोन करना था।
जो कुछ हुआ था, उसकी खबर फौरन कहीं कर पाने में असफल रहने की सूरत में उसकी अभी और—पहले से ज्यादा—धुनाई हो सकती थी।
मंगलवार : रात
कौशल अपने एक कमरे के घर में पहुंचा। उसका कमरा निचली मंजिल पर था और उसका दरवाजा बाहर गली में खुलता था। नीचे वैसे ही तीन कमरों में तीन किरायेदार और थे, ऊपर सारे में मकान मालिक रहता था।
वहां पहुंचते ही उसने अपना सारा सामान एक सूटकेस में पैक करना आरम्भ कर दिया।
तभी एक आदमी बाहर गली में पहुंचा। दाएं-बाएं झांके बिना वह सीधा ऊपर की सीढ़ियां चढ़ गया। उसने गली में खेलते बच्चों से पहले ही पूछताछ कर ली थी कि मकान मालिक ऊपर पहली मंजिल पर रहता था।
उस आदमी की सूरत पर एक निगाह पड़ते ही मकान मालिक का चेहरा पीला पड़ गया। वह उस आदमी को जानता था। वह दारा का आदमी था। दारा के आदमी का किसी गृहस्थ आदमी के घर आना किसी अच्छी बात का द्योतक नहीं होता था। उस आदमी ने जब उससे उसके किरायेदार कौशलसिंह डबराल के बारे में सवाल पूछने शुरू किए तो उसने यूं जल्दी-जल्दी जवाब देने आरम्भ किए जैसे उसने किसी इम्तहान में पास होना था।
उसके जवाबों से सन्तुष्ट होकर जब वह आदमी वहां से विदा हो गया तभी मकान मालिक की जान में जान आई।
कोई दस मिनट बाद कौशल उसके पास पहुंचा।
“मैं कहीं जा रहा हूं।”—उसने मकान मालिक को चाबी सौंपते हुए कहा—“यह नीचे की चाबी है। इसे आप काशीनाथ को दे देना। काशीनाथ को कह देना कि मैं दो-तीन महीने बाद लौटूंगा।”
मकान मालिक ने सहमति में सिर हिला दिया। उसका कौशल को यह बताने का हौसला नहीं हुआ कि उस इलाके के सबसे बड़े बदमाश का कोई आदमी उसके बारे में पूछताछ करने आया था।
कौशल अपना सूटकेस सम्भाले वहां से विदा हो गया।
नीचे के ताले की दूसरी चाबी काशीनाथ के पास भी थी लेकिन अब जब कि वह वहां लौटने का कोई इरादा ही नहीं रखता था तो उसने अपनी वाली चाबी अपने पास रखना मुनासिब नहीं समझा था।
बाहर गली में नीमअन्धेरा था। मकान से कुछ ही कदम आगे गली एक डयोढ़ी में से गुजरती थी, जिसकी मेहराब के नीचे के छोटे से टुकड़े में दूर जलती स्ट्रीट लाइट की रोशनी बड़ी ही मुश्किल से पहुंच रही थी।
कौशल मेहराब के नीचे कदम रखते ही ठिठक गया।
सामने दायें बायें की दीवारों से टेक लगाये दो आदमी खड़े थे और उन दोनों की निगाहें उसी पर टिकी थीं।
कौशल सकपकाया, उसने गरदन घुमाकर अपने पीछे देखा।
वैसे ही दो आदमी उसे अपने पीछे भी दिखाई दिये।
उसके कानों में खतरे की घंटियां बजने लगीं।
उसके पीछे मौजूद आदमी अभी उससे दूर थे। उसने घूमकर वापिस मकान में घुस जाना चाहा लेकिन तभी मेहराब के नीचे मौजूद दोनों आदमी उस पर झपट पड़े। एक आदमी ने उसे पीछे से पकड़कर वापिस मेहराब के नीछे घसीट लिया और दूसरे ने एक मजबूत डन्डे का भारी प्रहार उसके सिर पर किया।
कौशल की आंखों के सामने लाल-पीले सितारे नाच गये।
सूटकेस पर से उसकी पकड़ छूट गई। सूटकेस धम्म से नीचे गली में गिरा। उसका एक हाथ अपनी पतलून की एक जेब से सरक गया, जिसमें कि वह एक पीतल का मुक्का रखता था।
तभी डन्डे का एक और प्रहार उसकी कनपटी पर पड़ा।
तब तक उसके पीछे वाले दोनों आदमी भी उसके सिर पर पहुंच चुके थे।
चारों ने उसे घेर लिया।
एक और प्रहार उसकी खोपड़ी पर पड़ा। इस बार वह अपने पैरों पर खड़ा न रह पाया। उसके घुटने मुड़ गये और वह जमीन चाट गया।
तुरन्त कोई उसके ऊपर चढ़ बैठा।
फिर कई हाथ उसके सारे शरीर पर फिरने लगे।
एक हाथ ने उसकी जेब में मौजूद नोटों का पुलन्दा निकाल लिया। एक और हाथ ने उसकी बनियान की जेब में रखी शनील की थैली अपने अधिकार में कर ली। एक तीसरा हाथ हीरे की उस अंगूठी पर पड़ा, जिसे कौशल पायल को देना चाहता था। फिर एक चौथा हाथ उसके जमीन पर पड़े सूटकेस पर भी पड़ा।
अगले ही क्षण चारों यह जा वह जा।