desiaks
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“तुम्हें, पुलिस के सामने यूं पेश होना पड़ रहा है, इससे तुम्हें कोई हैरानी हुई नहीं लग रही!”
“हैरानी की क्या बात है, साहब? सच पूछिए तो मुझे तो पूरी उम्मीद थी कि देर सवेर मेरे नाम पुलिस का बुलावा जरूर आना था।”
“अच्छा! वह किसलिए?”
“कर्जन रोड पर जो लड़की मरी है, वो मेरी वाकिफकार जो थी! मेरी पायल से यारी दोस्ती की बहुत लोगों को जानकारी है, साहब।”
“आई सी! तो तुम्हारी मरने काली से यारी दोस्ती थी?”
“वैसी यारी दोस्ती नहीं थी, साहब, जैसी आप सोच रहे हैं। सीधी-सादी यारी दोस्ती थी मेरी उससे। हाल ही में मेरी इत्तफाकिया उससे मुलाकात हो गई थी। बेचारी रुपए पैसे से परेशान थी। मैंने कुछ रुपया उधार दिया था उसे।”
“तुम्हारा कभी उससे लड़ाई झगड़ा हुआ था?”
“नहीं।”
“कितने पैसे उधार दिए थे तुमने उसे?”
“पांच सौ रुपए।”
“उम्मीद थी कि वापस मिल जाएंगे?”
“पहले थी इसलिए दिए थे। लेकिन बीच में नहीं रही थी।”
“क्यों?”
“वह मुझसे कन्नी कतराने लगी थी।”
“फिर?”
“फिर उसकी मकान मालकिन से मुझे पता लगा कि वह अब बड़े ठाठ-बाट के साथ कर्जन रोड के बढ़िया फ्लैट में रहने लगी थी। मैंने सोचा जब उसके इतने ठाठ-बाट हो गए थे तो अब तो वह मुझे मेरे पैसे भी वापिस कर सकती थी। कल सुबह मैं उसके फ्लैट में उससे मिलने गया था। साहब, फ्लैट की चकाचौंध ही इस बात की चुगली कर रही थी कि वह किसी रईस आदमी की छत्रछाया में पहुंच गई थी। वह मुझे वहां आया देखकर बहुत खफा हुई थी। तब मेरी उससे थोड़ी-सी तकरार भी हुई थी लेकिन उसे झगड़ा-फसाद नहीं कहा जा सकता।”
“तकरार क्यों हुई थी?”
“एक तो इसलिए कि मैं उसके पीछे वहां आया क्यों? दूसरे वह मेरे रुपये मुझे लौटने को तैयार नहीं थी।”
“क्यों?”
“वजह तो उसने बताई नहीं! बस, कहने लगी कोई पैसा-वैसा नहीं है। भाग जाओ। मुझे बहुत तौहीन लगी, साहब। इसलिए एकाध सख्त बात मैंने भी कह दी।”
“फिर?”
“फिर क्या, साहब। उस औरत जात से जबरन तो मैं अपनी रकम वसूल कर नहीं सकता था! फिर मैं उसे यह जताकर कि मैं खूब समझता था कि वह किसी पैसे वाले आदमी की रखैल बन गई थी, मैं ठण्डे-ठण्डे वहां से लौट आया।”
“दोबारा तुम वहां कभी नहीं गए?”
“नहीं, साहब।”
“कल रात दो बजे के करीब तुम उसके फ्लैट पर नहीं गए थे?”
“नहीं, साहब। मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूं कि कल रात मैं कमला नाम की एक लड़की के साथ था।”
“लेकिन इस बात को तुम साबित नहीं कर सकते। पायल का कत्ल कल रात दो बजे के करीब हुआ था। अगर तुम यह साबित कर सको कि कल रात दो बजे के आस-पास तुम कर्जन रोड से बहुत दूर फतहपुरी के इलाके में थे तो तुम अभी उठकर यहां से जा सकते हो।”
“लेकिन साहब यह तो आपकी मेरे साथ ज्यादती है कि क्योंकि मैं साबित नहीं कर सकता कि कल रात मैं कमला के साथ था इसलिए मैं कातिल हूं!”
“यही इकलौती वजह नहीं है। और भी वजह है।”
“और क्या वजह है?”
“तुम दारा को जानते हो?”
“कौन दारा। वह पुरानी दिल्ली का मशहूर दादा?”
“वही।”
“उसे कौन नहीं जानता?”
“दारा कहता है कि पायल का कत्ल तुमने किया है।”
“क्या!”—कौशल चिल्लाया।
“धीरे बोलो। चिल्लाओ नहीं।”
“लेकिन, साहब, वो ऐसा क्यों कहता है? ऐसी उसकी क्या दुश्मनी है मेरे साथ?”
“तुम बताओ।”
“मुझे नहीं मालूम लेकिन जो कुछ वह कहता है, झूठ कहता है।”
“हूं।”
“उसका भी पायल के कत्ल से कोई रिश्ता है, साहब?”
“पायल के कत्ल से हो सकता है। पायल से शर्तिया है।”
“अच्छा!”
“हां। दारा ही वो आदमी है जिसकी पायल रखैल थी।”
“ओह।”
“हैरानी की क्या बात है, साहब? सच पूछिए तो मुझे तो पूरी उम्मीद थी कि देर सवेर मेरे नाम पुलिस का बुलावा जरूर आना था।”
“अच्छा! वह किसलिए?”
“कर्जन रोड पर जो लड़की मरी है, वो मेरी वाकिफकार जो थी! मेरी पायल से यारी दोस्ती की बहुत लोगों को जानकारी है, साहब।”
“आई सी! तो तुम्हारी मरने काली से यारी दोस्ती थी?”
“वैसी यारी दोस्ती नहीं थी, साहब, जैसी आप सोच रहे हैं। सीधी-सादी यारी दोस्ती थी मेरी उससे। हाल ही में मेरी इत्तफाकिया उससे मुलाकात हो गई थी। बेचारी रुपए पैसे से परेशान थी। मैंने कुछ रुपया उधार दिया था उसे।”
“तुम्हारा कभी उससे लड़ाई झगड़ा हुआ था?”
“नहीं।”
“कितने पैसे उधार दिए थे तुमने उसे?”
“पांच सौ रुपए।”
“उम्मीद थी कि वापस मिल जाएंगे?”
“पहले थी इसलिए दिए थे। लेकिन बीच में नहीं रही थी।”
“क्यों?”
“वह मुझसे कन्नी कतराने लगी थी।”
“फिर?”
“फिर उसकी मकान मालकिन से मुझे पता लगा कि वह अब बड़े ठाठ-बाट के साथ कर्जन रोड के बढ़िया फ्लैट में रहने लगी थी। मैंने सोचा जब उसके इतने ठाठ-बाट हो गए थे तो अब तो वह मुझे मेरे पैसे भी वापिस कर सकती थी। कल सुबह मैं उसके फ्लैट में उससे मिलने गया था। साहब, फ्लैट की चकाचौंध ही इस बात की चुगली कर रही थी कि वह किसी रईस आदमी की छत्रछाया में पहुंच गई थी। वह मुझे वहां आया देखकर बहुत खफा हुई थी। तब मेरी उससे थोड़ी-सी तकरार भी हुई थी लेकिन उसे झगड़ा-फसाद नहीं कहा जा सकता।”
“तकरार क्यों हुई थी?”
“एक तो इसलिए कि मैं उसके पीछे वहां आया क्यों? दूसरे वह मेरे रुपये मुझे लौटने को तैयार नहीं थी।”
“क्यों?”
“वजह तो उसने बताई नहीं! बस, कहने लगी कोई पैसा-वैसा नहीं है। भाग जाओ। मुझे बहुत तौहीन लगी, साहब। इसलिए एकाध सख्त बात मैंने भी कह दी।”
“फिर?”
“फिर क्या, साहब। उस औरत जात से जबरन तो मैं अपनी रकम वसूल कर नहीं सकता था! फिर मैं उसे यह जताकर कि मैं खूब समझता था कि वह किसी पैसे वाले आदमी की रखैल बन गई थी, मैं ठण्डे-ठण्डे वहां से लौट आया।”
“दोबारा तुम वहां कभी नहीं गए?”
“नहीं, साहब।”
“कल रात दो बजे के करीब तुम उसके फ्लैट पर नहीं गए थे?”
“नहीं, साहब। मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूं कि कल रात मैं कमला नाम की एक लड़की के साथ था।”
“लेकिन इस बात को तुम साबित नहीं कर सकते। पायल का कत्ल कल रात दो बजे के करीब हुआ था। अगर तुम यह साबित कर सको कि कल रात दो बजे के आस-पास तुम कर्जन रोड से बहुत दूर फतहपुरी के इलाके में थे तो तुम अभी उठकर यहां से जा सकते हो।”
“लेकिन साहब यह तो आपकी मेरे साथ ज्यादती है कि क्योंकि मैं साबित नहीं कर सकता कि कल रात मैं कमला के साथ था इसलिए मैं कातिल हूं!”
“यही इकलौती वजह नहीं है। और भी वजह है।”
“और क्या वजह है?”
“तुम दारा को जानते हो?”
“कौन दारा। वह पुरानी दिल्ली का मशहूर दादा?”
“वही।”
“उसे कौन नहीं जानता?”
“दारा कहता है कि पायल का कत्ल तुमने किया है।”
“क्या!”—कौशल चिल्लाया।
“धीरे बोलो। चिल्लाओ नहीं।”
“लेकिन, साहब, वो ऐसा क्यों कहता है? ऐसी उसकी क्या दुश्मनी है मेरे साथ?”
“तुम बताओ।”
“मुझे नहीं मालूम लेकिन जो कुछ वह कहता है, झूठ कहता है।”
“हूं।”
“उसका भी पायल के कत्ल से कोई रिश्ता है, साहब?”
“पायल के कत्ल से हो सकता है। पायल से शर्तिया है।”
“अच्छा!”
“हां। दारा ही वो आदमी है जिसकी पायल रखैल थी।”
“ओह।”