hotaks444
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उसने तीन ही बजे चार नयी सीट अरक्षित करा ली। उसको उनके साथ वाली सीट ही चाहिए थी।
उधर आशीष के जाते ही कविता दूसरे कमरे में गयी।
"बापू! कुछ मिला?"
"कहाँ कविता।! मैंने तो हर जगह देख लिया।"
"कहीं उसके पर्स में न हों "
रानी भी आ गयी!
"तू पागल है क्या? भला पर्स में इतने रुपैये होते है।" बूढ़े ने कहा
"तो फिर चलें। कविता ने कहा। "वो तो बहार गया है "
बूढ़ा- क्या जल्दी है। आरक्षण वाला सफ़र करके भी देख लेंगें शायद वहां कुछ
बात बन जाये। उसने कुछ किया तो नहीं!
कविता- किया नहीं? ये देखो क्या बना दिया। मेरी चूत और गांड का।
कविता ने अपनी सलवार खोल कर दिखा दी। "चल रानी। तू भी दिखा दे!"
रानी ने कुछ नहीं दिखाया। वो चुपचाप सुनती रही।
कविता- ओहो! वहां तो बड़ी खुश होकर चुद रही थी। तुझे भी बडे लंडों का शौक है!
तीनों इक्कठे ही बैठे थे। जब आशीष आरक्षण कराकर अन्दर आया। आशीष को देखते
ही कविता ने अपना पल्लू ठीक किया।
आशीष- ट्रेन 9:00 बजे की है। कुछ देर सो लो फिर खाना खाकर चलते हैं!
और आशीष के इशारा करते ही, वो तीनो वहां से उठ कर जाने लगे। तो आशीष ने
सबसे पीछे जा रही रानी का हाथ पकड़ कर खीच लिया।
रानी- मुझे जाने दो!
आशीष (दरवाजा बंद करते हुए)- "क्यूँ जाने दू मेरी रानी?"
रानी- तुम फिर से मेरी चूत मरोगे!
आशीष- तो तुम्हारा दिल नहीं करता?
रानी- नहीं, चूत में दर्द हो रहा है। बहुत ज्यादा। मुझे जाने दो न।
आशीष ने उसको छोड़ दिया। जाते हुए देखकर वो उसको बोला-- "तुम इन कपड़ों में
बहुत सुन्दर लग रही हो।"
रानी हंसने लगी। और दरवाजा खोलकर चली गयी!
दूसरे कमरे में जाते ही बूढ़े ने रानी को डाँटा- "तुमने उस लौंडे को कुछ
बताया तो नहीं?"
रानी डर गयी पर बोली- "नहीं मैंने तो कुछ नहीं बताया।"
कविता- रानी, राजकुमार को तो तुमने हाथ भी नहीं लगाने दिया था। इससे कैसे
करवा लिया?
रानी कुछ न बोली। वो कविता की बराबर में जाकर लेट गयी।
बूढ़े ने पूछा- "रानी! तुमने उसके पास पैसे-वैसे देखे हैं।
रानी- हाँ! पैसे तो बहुत हैं। वो एक कमरे में गया था और वहां से पैसे
लाया था बहुत सारे!
बूढ़ा- कमरे से? कौन से कमरे से?
रानी- उधर। मार्केट से
बूढ़ा- साला ATM में पैसे हैं इसके। ऐसा करो कविता! तुम इसको अपने जाल में
फांस कर अपने गाँव में ले चलो। वहां इससे ATM भी छीन लेंगे और उसका वो
कोड। भी पूछ लेंगे जिसके भरने के बाद पैसे निकलते हैं।
कविता का उससे फिर से अपनी गांड चुदवाने का दिल कर रहा था। बड़ा मजा आया
था उसको। पैसों में तो उसको बूढ़े ही ज्यादा लेकर जाते थे- "मैं अभी
जाऊं।। फंसने!"
बूढ़ा- ज्यादा जल्दी मत किया करो। अगर उसका मन तुमसे भर गया तो। फिर नहीं चलेगा वो!
कविता- तो फिर ये है न। बड़ी मस्त होकर फढ़वा रही थी उससे!
रानी- नहीं मैं नहीं करुँगी। मेरी तो दुःख रही है अभी तक।
बूढ़ा- तो अभी सो जाओ। रेलगाड़ी में ही करना। अब काम। उसके साथ ही बैठ
जाना। और तीनो लेट गए।
उधर आशीष के जाते ही कविता दूसरे कमरे में गयी।
"बापू! कुछ मिला?"
"कहाँ कविता।! मैंने तो हर जगह देख लिया।"
"कहीं उसके पर्स में न हों "
रानी भी आ गयी!
"तू पागल है क्या? भला पर्स में इतने रुपैये होते है।" बूढ़े ने कहा
"तो फिर चलें। कविता ने कहा। "वो तो बहार गया है "
बूढ़ा- क्या जल्दी है। आरक्षण वाला सफ़र करके भी देख लेंगें शायद वहां कुछ
बात बन जाये। उसने कुछ किया तो नहीं!
कविता- किया नहीं? ये देखो क्या बना दिया। मेरी चूत और गांड का।
कविता ने अपनी सलवार खोल कर दिखा दी। "चल रानी। तू भी दिखा दे!"
रानी ने कुछ नहीं दिखाया। वो चुपचाप सुनती रही।
कविता- ओहो! वहां तो बड़ी खुश होकर चुद रही थी। तुझे भी बडे लंडों का शौक है!
तीनों इक्कठे ही बैठे थे। जब आशीष आरक्षण कराकर अन्दर आया। आशीष को देखते
ही कविता ने अपना पल्लू ठीक किया।
आशीष- ट्रेन 9:00 बजे की है। कुछ देर सो लो फिर खाना खाकर चलते हैं!
और आशीष के इशारा करते ही, वो तीनो वहां से उठ कर जाने लगे। तो आशीष ने
सबसे पीछे जा रही रानी का हाथ पकड़ कर खीच लिया।
रानी- मुझे जाने दो!
आशीष (दरवाजा बंद करते हुए)- "क्यूँ जाने दू मेरी रानी?"
रानी- तुम फिर से मेरी चूत मरोगे!
आशीष- तो तुम्हारा दिल नहीं करता?
रानी- नहीं, चूत में दर्द हो रहा है। बहुत ज्यादा। मुझे जाने दो न।
आशीष ने उसको छोड़ दिया। जाते हुए देखकर वो उसको बोला-- "तुम इन कपड़ों में
बहुत सुन्दर लग रही हो।"
रानी हंसने लगी। और दरवाजा खोलकर चली गयी!
दूसरे कमरे में जाते ही बूढ़े ने रानी को डाँटा- "तुमने उस लौंडे को कुछ
बताया तो नहीं?"
रानी डर गयी पर बोली- "नहीं मैंने तो कुछ नहीं बताया।"
कविता- रानी, राजकुमार को तो तुमने हाथ भी नहीं लगाने दिया था। इससे कैसे
करवा लिया?
रानी कुछ न बोली। वो कविता की बराबर में जाकर लेट गयी।
बूढ़े ने पूछा- "रानी! तुमने उसके पास पैसे-वैसे देखे हैं।
रानी- हाँ! पैसे तो बहुत हैं। वो एक कमरे में गया था और वहां से पैसे
लाया था बहुत सारे!
बूढ़ा- कमरे से? कौन से कमरे से?
रानी- उधर। मार्केट से
बूढ़ा- साला ATM में पैसे हैं इसके। ऐसा करो कविता! तुम इसको अपने जाल में
फांस कर अपने गाँव में ले चलो। वहां इससे ATM भी छीन लेंगे और उसका वो
कोड। भी पूछ लेंगे जिसके भरने के बाद पैसे निकलते हैं।
कविता का उससे फिर से अपनी गांड चुदवाने का दिल कर रहा था। बड़ा मजा आया
था उसको। पैसों में तो उसको बूढ़े ही ज्यादा लेकर जाते थे- "मैं अभी
जाऊं।। फंसने!"
बूढ़ा- ज्यादा जल्दी मत किया करो। अगर उसका मन तुमसे भर गया तो। फिर नहीं चलेगा वो!
कविता- तो फिर ये है न। बड़ी मस्त होकर फढ़वा रही थी उससे!
रानी- नहीं मैं नहीं करुँगी। मेरी तो दुःख रही है अभी तक।
बूढ़ा- तो अभी सो जाओ। रेलगाड़ी में ही करना। अब काम। उसके साथ ही बैठ
जाना। और तीनो लेट गए।