hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
पिछले कुछ हफ़्तों से जब पहली बार से मैंने विजय को मेरी गाँड़ मारने की इजाजत दी थी, तब से मेरे जीवन का सबसे अच्छा समय शुरू हुआ था। हम दोनों माँ बेटे का सैक्स गजब का होता था, जिसमें एक तीव्रता, उत्साह होने के साथ साथ अन्तरंगता थी। विजय के पापा की डैथ के बाद चुदाई का सुख मैं भूल ही गयी थी। किसी गर्म खून के जवान मर्द के नीचे आने का मजा ही कुछ और था। और यदि वो जवान मर्द इतना प्यार करने वाला, और ध्यान रखने वाला हो तो फ़िर तो सोने पे सुहागा था।
अपने सगे बेटे से चुदने में जो मजा आने वाला था, मैं उसी के बारे में सोच रही थी। विजय जिस तरह मेरी चूत को चाटकर, चूत के दाने को सहला कर, मेरे मम्मों को दबाकर, निप्प्ल मसलकर, मेरी गाँड़ में अपना मूसल जैसा लण्ड पेलकर उसको अपने वीर्य के पानी से भर देता, ये सब मुझे बहुत आनंद देता।
हम दोनों माँ बेटे एक दूसरे के पहले की तुलना में बेहद करीब आ चुके थे, हम दोनों को एक दूसरे का साथ पसंद आता। एक दूसरे के साथ चिपक कर बैठना, जब चाहे एक दूसरे को बाँहों में भर लेना और एक दूसरे को कनखियों से निहारना आम बन चुका था।
मैं मन ही मन उन सभी सवालों को नकार देती जो बीच बीच में मेरे जेहन में आते, जैसे विजय की शादी के बाद हमारे इस नाजायज रिश्ते का क्या होगा? मैं किसी तरह अपने मन में उठते नकारात्मक सवालों को नजरअंदाज करने का प्रयास करती। लेकिन हमारे शारीरिक सम्बंधो के इस मुकाम पर पहुँचने के बाद इस तरह के सवाल या कहें तो मेरे मन में बसे डर का सामना कर पाना मुश्किल हो रहा था।
मुझे किसी तरह की कोई जलन की भावना नहीं थी, कि विजय की पत्नि मेरा स्थान ले लेगी। मैं विजय को बेहद प्यार करती थी लेकिन मेरी मंशा ये कतई नहीं थी कि विजय की सारी जिंदगी में सिर्फ़ अकेली मैं ही एक अकेली औरत रहूँ। देर सबेर विजय की शादी होना निश्चित थी, और मैं चाहती थी कि विजय अपनी पत्नि और होने वाले बच्चों के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत करे। मैं विजय से सच्चा प्यार करने लगी थी, और हमेशा करते रहने वाली थी। लेकिन क्या विजय शादी के बाद मुझे इतना ही प्यार करेगा?
ये ही सवाल मुझे बार बार परेशान कर रहा था। मैं विजय के साथ स्थापित सम्बधों को खत्म होते नहीं देखना चाहती थी। ये नाजुक रिश्ता मेरे लिये बेशकीमती हो चला था। कहीं मुझे लगता कि मुझे डरने की आवश्यकता नहीं है। मैं जब भी विजय की आँखों में देखती तो शारीरिक आकर्षण के साथ साथ मुझे उसकी आँखों में मेरे प्रति निश्चल प्यार दिखायी देता। जो कुछ शारीरिक सम्बंध हम दोनों बना चुके थे, या फ़िर बनाने वाले थे उन सब यादों को भुला पाना असम्भव था। मुझे तो पता था कि मैं इन यादों को सारे जीवन सहेज कर रखने वाली थी।
मुझे इस बात का एहसास था कि विजय के प्रति तीव्र आकर्षण ही मुझे सता रहा था। मेरा अपने बेटे विजय के प्रति प्यार ही मेरे डर की वजह बन रहा था।
अपना सिर झटकते हुए मैंने इस तरह के विचारों को दिमाग से बाहर निकालने का प्रयास किया। और मन ही मन मैंने अपने आप को ऐसी बेवकूफ़ी भरी बातें सोचने के लिये कोसा, ऐसी बेतुकी बातें सोचना व्यर्थ था। मैं किसी भी हालत में उस दिन को बर्बाद होने नहीं देना चाहती थी। ये मेरा नहीं मेरे बेटे विजय की खुशी का सवाल था।
मैंने अपने आप को आदमकद शीशे में देखत हुए अपने आप से बुदबुदाई, ''एकदम छिनाल लग रही हूँ ना।’’
''छिनाल नहीं मम्मी, आप तो मेरी जान हो, दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत।''
विजय रूम में आ गया था, और मुझे इस तरह नंगा देखकर मुस्कुरा रहा था। विजय का गठीला बदन बेहद आकर्षक लग रहा था, उसने अपनी शर्ट की स्लीव कोन्ही तक ऊपर चढा रखी थी। उसका इस तरह मुझे दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत बोलना मुझे रोमांचित कर गया, और मेरे दिमाग में आ रहे सारे शको-शुभा दूर हो गये। जैसे ही हम दोनों की नजर आपस में टकरायीं, मेरे बदन में खुशी की एक लहर सी दौड़ गयी। नंगे बदन इठला कर चलते हुए मैंने अपने आप को विजय की मजबूत बाँहों में समर्पित कर दिया।
***
''आ गया विजय बेटा?" मैंने विजय के गले में अपनी बाँहें डालते हुए कहा, विजय ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और वो मेरी नंगी पींठ और मेरी गाँड़ की मोटी मोटी गोलाईयों पर हाथ फ़िराने लगा।
''हाँ बस अभी आया,'' विजय अपनी पैण्ट में लण्ड के बने तम्बू को मेरी चूत के अग्रभाग पर दबाते हुए बोला। उसकी उँगलियां मेरे गदराये नंगे बदन को मेहसूस कर रही थीं। ''अब और इन्तजार नहीं होता मम्मी।''
''आह्ह, मेरा बेटा!" मैं घुटी हुई आवाज में बोली, विजय की आँखों में वासना के लाल डोरे तैरते हुए देख मुझे बेहद अच्छा लग रहा था। अपने आप को विजय को समर्पित करते हुए, मैंने उसे किस करने के लिये अपनी ओर खींच लिया।
हम दोनों एक दूसरे को इस तरह बेतहाशा चूमने लगे मानो कितने समय बाद मिले हों। चूमना बंद करते हुए जब मैंने विजय की चौड़ी छाती को नंगा करने के लिये उसकी शर्ट के बटन खोलने शुरू किये तो मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा और मेरी साँसें उखड़ने लगी।
जब विजय अपनी बैल्ट को खोल रहा था, तो मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठकर उसकी पैण्ट के हुक को खोलकर उसकी चैन खोलने लगी। मैंने अपना गाल उसके अन्डरवियर में लण्ड के बने तम्बू पर फ़िराते हुए कहा, ''अपनी मम्मी को उतारने दो बेटा।''
मैंने एक झटके में उसकी पैण्ट और अन्डरवियर को नीचे खींच दिया जिससे उसका फ़नफ़नाता हुए लण्ड बाहर निकल आया, और फ़ुंकार मारने लगा। जैसे ही मैंने उसके लण्ड के सुपाड़े पर अपना गाल छूआ, उसके लण्ड से निकल रहे चिकने लिसलिसे पानी से मेरा गाल गीला हो गया।
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और एक संतुष्टीभरी गहरी साँस लेकर मैं विजय के लण्ड को स्वादिष्ट लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। जब मैं अपने मुलायम होंठों को अपने बेटे विजय के तने हुए लण्ड, जिसकी नसें फ़ूल रही थीं, उस पर दबाकर हल्के हल्के कामुक अंदाज में चूम रही थी तो मेरी चूत की प्यास किसी रण्डी की तरह बलवती होने लगी थी, और मेरी चूत की फ़ांकें, चूत के रस से पनियाने लगी थी। विजय के मोटे लण्ड को अपने होंठों के बीच लेकर मुझे बहुत मजा आ रहा था। सब कुछ भूल कर मैं अपने बेटे के लण्ड से निकल रहे चिकने पानी की बूँदों को अपनी जीभ से चाट रही थी, और उसके आकर्षक लण्ड की पूरी लम्बाई पर अपनी जीभ फ़िराते हुए पर्र पर्र की आवाजों में डूबी जा रही थी।
जैसे ही विजय के लण्ड को उसकी मम्मी ने जड़ से पकड़ कर, चूमते चाटते हुए धीमे धीमे मुठियाना शुरू किया तो विजय के मुँह से कामक्रीड़ा के आनंद से भरी आह ऊह की आवाज निकलने लगी। हमेशा की तरह विजय को अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसाकर चुसवाने में बेहद मजा आ रहा था। लेकिन उस दिन मैं उसके लण्ड को सॉफ़्ट और सैक्सी अंदाज में, उसके लण्ड को थूक से गीला करके, जीभ से नीचे से ऊपर तक चाटते हुए चूस रही थी। मैंने बस उसके लण्ड का सुपाड़ा ही मुँह के अंदर लिया था, लेकिन उतना ही बहुत था। अपनी माँ से अपने लण्ड को चुसवाते हुए विजय अपने हाथों की उँगलियों से मेरे बालों में कंघी करने लगा, और मेरे बालों को मेरे कान के पीछे कर दिया, जिससे वो अपनी मम्मी का खूबसूरत चेहरा देखते हुए, अपने लण्ड को अपनी मम्मी के मुँह में घुसा कर होंठों के बीच अंदर बाहर होता देखने का आनंद ले सके।
कुछ देर बाद मैं इस कदर चुदासी हो चुकी थी कि मुझसे और ज्यादा बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। मेरे चूसते रहने के कारण विजय के लण्ड से चिकने पानी की बूँदें रह रह कर बाहर आ जातीं, और मैं हर बूँद का चाट लेती, लेकिन उन चिकने पानी की बूँदों को देखकर मेरी चूत विजय के लण्ड के वीर्य के पानी के लिये तरस उठती। विजय के लण्ड से निकले वीर्य को पीने की चाह के आगे मैं हार गयी, और फ़िर मैने विजय के लण्ड के बैंगनी रंग के लण्ड के सुपाड़े को अपने होंठों के बीच लेकर उसके थूक से सने पूरे लोहे जैसे सख्त लण्ड को अपने मुँह के अंदर ले लिया।
जैसे ही विजय के लण्ड का सुपाड़ा मेरे गले से जाकर टकराया, उसने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसकी आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गयीं। उसका लण्ड जो मैंने जड़ से पकड़ रखा था, उसको छोड़ दिया, और उसके लण्ड को मेरे गले में अंदर तक घुस जाने के लिये आजाद कर दिया, अब मेरे होंठ उसके लण्ड की जड़ पर टकरा रहे थे। विजय का लण्ड पूरा अपने मुँह में लेकर, मैं अपने एक हाथ को अपनी चूत के फ़ूले हुए दाने पर ले जाकर उसको घिसने लगी, और दूसरे हाथ को विजय की गाँड़ पर रखकर उसको अपनी तरफ़ खींचने लगी। कुछ सैकण्ड ऐसे ही विजय के लण्ड को पूरा अपने मुँह में रखकर, उसको फ़िर से अपने मुँह में अंदर बाहर करके फ़िर से उसको मुँह से चोदने लगी।
अपने सगे बेटे से चुदने में जो मजा आने वाला था, मैं उसी के बारे में सोच रही थी। विजय जिस तरह मेरी चूत को चाटकर, चूत के दाने को सहला कर, मेरे मम्मों को दबाकर, निप्प्ल मसलकर, मेरी गाँड़ में अपना मूसल जैसा लण्ड पेलकर उसको अपने वीर्य के पानी से भर देता, ये सब मुझे बहुत आनंद देता।
हम दोनों माँ बेटे एक दूसरे के पहले की तुलना में बेहद करीब आ चुके थे, हम दोनों को एक दूसरे का साथ पसंद आता। एक दूसरे के साथ चिपक कर बैठना, जब चाहे एक दूसरे को बाँहों में भर लेना और एक दूसरे को कनखियों से निहारना आम बन चुका था।
मैं मन ही मन उन सभी सवालों को नकार देती जो बीच बीच में मेरे जेहन में आते, जैसे विजय की शादी के बाद हमारे इस नाजायज रिश्ते का क्या होगा? मैं किसी तरह अपने मन में उठते नकारात्मक सवालों को नजरअंदाज करने का प्रयास करती। लेकिन हमारे शारीरिक सम्बंधो के इस मुकाम पर पहुँचने के बाद इस तरह के सवाल या कहें तो मेरे मन में बसे डर का सामना कर पाना मुश्किल हो रहा था।
मुझे किसी तरह की कोई जलन की भावना नहीं थी, कि विजय की पत्नि मेरा स्थान ले लेगी। मैं विजय को बेहद प्यार करती थी लेकिन मेरी मंशा ये कतई नहीं थी कि विजय की सारी जिंदगी में सिर्फ़ अकेली मैं ही एक अकेली औरत रहूँ। देर सबेर विजय की शादी होना निश्चित थी, और मैं चाहती थी कि विजय अपनी पत्नि और होने वाले बच्चों के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत करे। मैं विजय से सच्चा प्यार करने लगी थी, और हमेशा करते रहने वाली थी। लेकिन क्या विजय शादी के बाद मुझे इतना ही प्यार करेगा?
ये ही सवाल मुझे बार बार परेशान कर रहा था। मैं विजय के साथ स्थापित सम्बधों को खत्म होते नहीं देखना चाहती थी। ये नाजुक रिश्ता मेरे लिये बेशकीमती हो चला था। कहीं मुझे लगता कि मुझे डरने की आवश्यकता नहीं है। मैं जब भी विजय की आँखों में देखती तो शारीरिक आकर्षण के साथ साथ मुझे उसकी आँखों में मेरे प्रति निश्चल प्यार दिखायी देता। जो कुछ शारीरिक सम्बंध हम दोनों बना चुके थे, या फ़िर बनाने वाले थे उन सब यादों को भुला पाना असम्भव था। मुझे तो पता था कि मैं इन यादों को सारे जीवन सहेज कर रखने वाली थी।
मुझे इस बात का एहसास था कि विजय के प्रति तीव्र आकर्षण ही मुझे सता रहा था। मेरा अपने बेटे विजय के प्रति प्यार ही मेरे डर की वजह बन रहा था।
अपना सिर झटकते हुए मैंने इस तरह के विचारों को दिमाग से बाहर निकालने का प्रयास किया। और मन ही मन मैंने अपने आप को ऐसी बेवकूफ़ी भरी बातें सोचने के लिये कोसा, ऐसी बेतुकी बातें सोचना व्यर्थ था। मैं किसी भी हालत में उस दिन को बर्बाद होने नहीं देना चाहती थी। ये मेरा नहीं मेरे बेटे विजय की खुशी का सवाल था।
मैंने अपने आप को आदमकद शीशे में देखत हुए अपने आप से बुदबुदाई, ''एकदम छिनाल लग रही हूँ ना।’’
''छिनाल नहीं मम्मी, आप तो मेरी जान हो, दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत।''
विजय रूम में आ गया था, और मुझे इस तरह नंगा देखकर मुस्कुरा रहा था। विजय का गठीला बदन बेहद आकर्षक लग रहा था, उसने अपनी शर्ट की स्लीव कोन्ही तक ऊपर चढा रखी थी। उसका इस तरह मुझे दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत बोलना मुझे रोमांचित कर गया, और मेरे दिमाग में आ रहे सारे शको-शुभा दूर हो गये। जैसे ही हम दोनों की नजर आपस में टकरायीं, मेरे बदन में खुशी की एक लहर सी दौड़ गयी। नंगे बदन इठला कर चलते हुए मैंने अपने आप को विजय की मजबूत बाँहों में समर्पित कर दिया।
***
''आ गया विजय बेटा?" मैंने विजय के गले में अपनी बाँहें डालते हुए कहा, विजय ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और वो मेरी नंगी पींठ और मेरी गाँड़ की मोटी मोटी गोलाईयों पर हाथ फ़िराने लगा।
''हाँ बस अभी आया,'' विजय अपनी पैण्ट में लण्ड के बने तम्बू को मेरी चूत के अग्रभाग पर दबाते हुए बोला। उसकी उँगलियां मेरे गदराये नंगे बदन को मेहसूस कर रही थीं। ''अब और इन्तजार नहीं होता मम्मी।''
''आह्ह, मेरा बेटा!" मैं घुटी हुई आवाज में बोली, विजय की आँखों में वासना के लाल डोरे तैरते हुए देख मुझे बेहद अच्छा लग रहा था। अपने आप को विजय को समर्पित करते हुए, मैंने उसे किस करने के लिये अपनी ओर खींच लिया।
हम दोनों एक दूसरे को इस तरह बेतहाशा चूमने लगे मानो कितने समय बाद मिले हों। चूमना बंद करते हुए जब मैंने विजय की चौड़ी छाती को नंगा करने के लिये उसकी शर्ट के बटन खोलने शुरू किये तो मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा और मेरी साँसें उखड़ने लगी।
जब विजय अपनी बैल्ट को खोल रहा था, तो मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठकर उसकी पैण्ट के हुक को खोलकर उसकी चैन खोलने लगी। मैंने अपना गाल उसके अन्डरवियर में लण्ड के बने तम्बू पर फ़िराते हुए कहा, ''अपनी मम्मी को उतारने दो बेटा।''
मैंने एक झटके में उसकी पैण्ट और अन्डरवियर को नीचे खींच दिया जिससे उसका फ़नफ़नाता हुए लण्ड बाहर निकल आया, और फ़ुंकार मारने लगा। जैसे ही मैंने उसके लण्ड के सुपाड़े पर अपना गाल छूआ, उसके लण्ड से निकल रहे चिकने लिसलिसे पानी से मेरा गाल गीला हो गया।
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और एक संतुष्टीभरी गहरी साँस लेकर मैं विजय के लण्ड को स्वादिष्ट लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। जब मैं अपने मुलायम होंठों को अपने बेटे विजय के तने हुए लण्ड, जिसकी नसें फ़ूल रही थीं, उस पर दबाकर हल्के हल्के कामुक अंदाज में चूम रही थी तो मेरी चूत की प्यास किसी रण्डी की तरह बलवती होने लगी थी, और मेरी चूत की फ़ांकें, चूत के रस से पनियाने लगी थी। विजय के मोटे लण्ड को अपने होंठों के बीच लेकर मुझे बहुत मजा आ रहा था। सब कुछ भूल कर मैं अपने बेटे के लण्ड से निकल रहे चिकने पानी की बूँदों को अपनी जीभ से चाट रही थी, और उसके आकर्षक लण्ड की पूरी लम्बाई पर अपनी जीभ फ़िराते हुए पर्र पर्र की आवाजों में डूबी जा रही थी।
जैसे ही विजय के लण्ड को उसकी मम्मी ने जड़ से पकड़ कर, चूमते चाटते हुए धीमे धीमे मुठियाना शुरू किया तो विजय के मुँह से कामक्रीड़ा के आनंद से भरी आह ऊह की आवाज निकलने लगी। हमेशा की तरह विजय को अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसाकर चुसवाने में बेहद मजा आ रहा था। लेकिन उस दिन मैं उसके लण्ड को सॉफ़्ट और सैक्सी अंदाज में, उसके लण्ड को थूक से गीला करके, जीभ से नीचे से ऊपर तक चाटते हुए चूस रही थी। मैंने बस उसके लण्ड का सुपाड़ा ही मुँह के अंदर लिया था, लेकिन उतना ही बहुत था। अपनी माँ से अपने लण्ड को चुसवाते हुए विजय अपने हाथों की उँगलियों से मेरे बालों में कंघी करने लगा, और मेरे बालों को मेरे कान के पीछे कर दिया, जिससे वो अपनी मम्मी का खूबसूरत चेहरा देखते हुए, अपने लण्ड को अपनी मम्मी के मुँह में घुसा कर होंठों के बीच अंदर बाहर होता देखने का आनंद ले सके।
कुछ देर बाद मैं इस कदर चुदासी हो चुकी थी कि मुझसे और ज्यादा बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। मेरे चूसते रहने के कारण विजय के लण्ड से चिकने पानी की बूँदें रह रह कर बाहर आ जातीं, और मैं हर बूँद का चाट लेती, लेकिन उन चिकने पानी की बूँदों को देखकर मेरी चूत विजय के लण्ड के वीर्य के पानी के लिये तरस उठती। विजय के लण्ड से निकले वीर्य को पीने की चाह के आगे मैं हार गयी, और फ़िर मैने विजय के लण्ड के बैंगनी रंग के लण्ड के सुपाड़े को अपने होंठों के बीच लेकर उसके थूक से सने पूरे लोहे जैसे सख्त लण्ड को अपने मुँह के अंदर ले लिया।
जैसे ही विजय के लण्ड का सुपाड़ा मेरे गले से जाकर टकराया, उसने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसकी आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गयीं। उसका लण्ड जो मैंने जड़ से पकड़ रखा था, उसको छोड़ दिया, और उसके लण्ड को मेरे गले में अंदर तक घुस जाने के लिये आजाद कर दिया, अब मेरे होंठ उसके लण्ड की जड़ पर टकरा रहे थे। विजय का लण्ड पूरा अपने मुँह में लेकर, मैं अपने एक हाथ को अपनी चूत के फ़ूले हुए दाने पर ले जाकर उसको घिसने लगी, और दूसरे हाथ को विजय की गाँड़ पर रखकर उसको अपनी तरफ़ खींचने लगी। कुछ सैकण्ड ऐसे ही विजय के लण्ड को पूरा अपने मुँह में रखकर, उसको फ़िर से अपने मुँह में अंदर बाहर करके फ़िर से उसको मुँह से चोदने लगी।