desiaks
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छाया। भाग -13
विवाह की तैयारी
(मैं मानस)
हम लोगों ने तय किया की विवाह बेंगलुरु से ही किया जाए. सीमा के घर वाले चंडीगढ़ में थे पर वह बेंगलुरु आने के लिए तैयार हो गये थे. हम लोगों ने एक शादी का बड़ा हॉल बुक कर लिया था जिसमें वर वधू पक्ष के रहने के लिए अलग-अलग अवस्थाएं थी. मैरिज हाल खूबसूरत और अच्छी लोकेशन पर था तथा सर्व सुविधा सम्पन्न था.
मैंने गांव से सभी परिचित लोगों को निमंत्रित किया जो कमजोर लोग थे उनको फ्लाइट की टिकट तक भेज दी. निमंत्रण से बहुत खुश थे. सही समय पर गांव से सभी परिचित लोग आ चुके थे. गांव वालों की उपस्थिति ही विवाह कार्यक्रम में एक अलग किस्म का आनंद जोड़ देती है. उन्हें इन बड़ी शादियों की प्रतीक्षा होती है. शहर में रहने वाले लोग तो सिर्फ कुछ घंटों के लिए विवाह कार्यक्रम का आनंद लेते हैं और रात्रिभोज के बाद अपने अपने रास्ते चले जाते हैं पर गांव से आए लोग पूरे कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए रखते हैं और विवाह को रंगीन बनाए रखते हैं.
सीमा की ओर से मंजुला चाची ने कमान संभाल रही थी. थी और हमारी तरफ से माया आंटी ने. छाया इस क्कार्यक्रम की मुख्य निर्देशिका थी. सब उसकी राय से कार्यक्रम को आगे बढ़ाते. शर्मा जी भी अपनी विदेश यात्रा से आकर इस विशेष कार्यक्रम के शामिल थे. गांव वालों से उनका परिचय मेरे सीनियर अधिकारी के रूप में कराया गया था. वह इस कार्यक्रम में मेरे पिता की भूमिका में दिखाई पड़ रहे थे. वह पूरे जोर-शोर से इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे.
गांव की शादियों में महिलाओं के झुण्ड का बड़ा योगदान होता है वह सब तरह तरह की रस्में करतीं हैं और इन रस्मो का भी एक अपना आनंद होता है. हमारा विवाह अंततः सभी की सहमति से हो रहा था. मुझे सिर्फ छाया की चिंता थी पर वह अब परिपक्व हो चुकी थी। उसका दुःख कभी उसके चेहरे पर नहीं आता. रस्मों के दौरान वह मेरे पास आती तो मुझे कभी कभी उसके चेहरे के पीछे उसके आंसू दिखाई दे जाते.
लड़कियां कितनी भी परिपक्व हो जाए अपनी भावनाएं नहीं छुपा पाती. आखिर मेरी प्यारी छाया भी एक लड़की ही थी।
इस विवाह में एकमात्र दुख मुझे छाया को लेकर ही था. पर धीरे-धीरे कार्यक्रम आगे बढ़ रहे थे. भविष्य में क्या होने वाला था मैं नहीं जानता पर मैं कहीं न कहीं इस बात को लेकर थोड़ा दुखी अवश्य था. महिलाओं का झुंड जब भी आता अलग-अलग प्रकार की रस्में करता इतनी सारी महिलाओं को एक साथ देख कर मन में अजीब अनुभूति होती अपने इस शादी में मैं मुख्य अतिथि जैसा महसूस कर रहा था. गांव के सभी लोग मुझे इज्जत और सम्मान की निगाहों से देख रहे थे मेरी प्रतिष्ठा शिखर पर थी. छाया को सजा धजा और खुश देख कर सब उसकी खुशी में मेरी उपलब्धता देखते. छाया अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी उसकी नौकरी के बारे में जानकर सब गांव वाले मुझे ही बधाई देते. पिछले कुछ दिनों में छाया ने अपना दुख को छुपाने के लिए अपनी कामुकता को और जीवंत कर दिया था. वह मुझे हर मौके पर खुश करने के लिए कुछ नया करती और मैं उसे अपनी पत्नी न बना पाने की लिए थोड़ा दुखी हो जाता.
अनूठा उपहार
(मैं छाया)
मानस भैया के तिलक का कार्यक्रम संपन्न हो चुका था. विवाह तींन दिन बाद होने वाला था. जिस विवाह की कल्पना में हम दोनों ने पिछले 3-4 वर्ष निकाले थे वो दिन आ चुका था. पर नियत की विडंबना थी मेरी जगह वहां सीमा दीदी को बैठना था. मानस और मैं एक दूसरे से अभी भी बहुत प्यार करते थे पर जो होना था वह हो रहा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मानस को क्या उपहार दूं पर मैं उसे यादगार बनाना चाहती थी. अंततः दृढ़ निश्चय करने के बाद मैंने मानस से कुछ घंटे एकांत में बिताने का समय मांगा. वह बोले
“ इस शादी के बीच में यह कैसे संभव होगा “
“ मैंने कहा यह आप देखिए.”
"तुम खुद भी कैसे फ्री हो पाओगी सब तैयारी तुम्हारे ही मार्गदर्शन में हो रही है”
"मैं ब्यूटी पार्लर के नाम पर समय निकाल लूंगी”
मेरी बातों में जिद थी वो मान गये. मेरी बात टालना उनके लिए असंभव था. वो मुझे बहुत प्यार करते थे.
हमने विवाह मंडप के अलावा कुछ होटलों में भी कमरे से ले रखे थे. एक होटल के कमरे के गेस्ट को आने में समय था. मानस ने दो दिन बाद दोपहर में ३.०० बजे का समय निर्धारित किया. मेरे पास २ दिन का वक्त था. मैंने अपनी पूरी तैयारी कर ली और हम तय वक्त पर होटल के लिए निकल चुके थे. मानस बार-बार मुझे प्रश्नवाचक निगाहों से देख रहे थे वह समझ नहीं पा रहे थे कि मैं उनके साथ क्या करने वाली हूँ. आपसी प्यास तो हम समारोह के बीच भी बुझा ही लेते थे. कार की सीट पर पीछे बैठे बैठे हैं वह मेरे हाथों को सहला रहे थे. मेरे चेहरे पर भी घबराहट भी और मन में भी. एक कुछ ही देर में हम होटल के कमरे में थे.
[मैं मानस]
कमरे में पहुंचते ही छाया ने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मेरे राजकुमार को अपने हाथों सहलाते हुए कहा
“इस राजकुमार को मैंने बहुत प्यार किया है और कल से यह किसी और का हो जाएगा” मैं इसे एक अनूठा उपहार देना चाहती हूँ. आपको मुझे इसमें सहयोग करना होगा.”
मैं अभी भी उसकी मंशा समझ नहीं पा रहा था पर उसके हाथों में आते ही राजकुमार स्वयं उठ खड़ा होता था इसमें मेरा कंट्रोल बिल्कुल भी नहीं होता था.
जैसे छोटे बच्चे अपनी माँ को देखते ही उसके गोद में आने के लिए अपना हाँथ आगे बढ़ा देते हैं वैसे ही मेरा राजकुमार तन कर छाया के हाँथ में आ जाता था.
मैंने उसे अपने आगोश में ले लिया मैंने कहा
“ ठीक है जो तुम्हें लगता है वह करो” उस दिन उसने एक सुंदर सा सलवार सूट पहना हुआ था. उसने दुपट्टे से मेरी आंखों पर पट्टी बांध दी और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया. मेरे कपड़े उसने पहले ही खोल दिए थे मैं बिस्तर पर नग्न लेटा हुआ था. मेरा राजकुमार पूरी तरह अपना छाया के हाथो अपना स्खलन कराने के लिए तैयार था. मेरी आंखों पर पट्टी बंधी होने की वजह से मैं छाया को नहीं देख पा रहा था. छाया अब मेरे ऊपर आ चुकी थी और मुझे उसके स्तनों का एहसास हो रहा था. मेरे हाथ उसके स्तनों को सहला रहे थे. उसके होंठ मेरे होंठों पर थे. राजकुमार राजकुमारी के होंठो में अपना स्थान तलाश रहा था. कुछ ही देर में छाया धीरे-धीरे मेरे छाती को चुमती हुई नीचे की तरफ बढ़ी. अब राजकुमार उसके मुख में अठखेलियां कर रहा था. उसने अबकी बार अपने मुख से एक कृत्रिम योनि का निर्माण किया और राजकुमार को वह सुख देने लगी. राजकुमार को यह क्रिया बहुत पसंद थी और वह उछल रहा था अचानक मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे छाया उसके ऊपर कोई चीज लपेट रही थी. राजकुमार उस अनजाने आवरण के अंदर आ गया था. एक बार के लिए मैं डर गया की कही छाया ने बदला लेने के लिए कुछ और तो नहीं सोचा है?
पर वह मेरी प्यारी छाया थी. बदला ? यह असंभव था. हम दोनों एक दुसरे के लिए जान भी दे सकते थे.
मेरी आंखें बंद थी और कौतुहल चरम पर. राजकुमार का तनाव कुछ कम जरूर हुआ पर वह वापस सामान्य रूप से तन गया था. छाया अपने हाथों से राजकुमार को सहला रही थी कुछ ही देर में मुझे अपनी कमर पर छाया के बैठने का एहसास हुआ. उसके दोनों पैर मेरी जांघों के दोनों ओर थे. उसकी राजकुमारी राजकुमार के संपर्क में थी. पर उस लिपटी हुए चीज की वजह से दोनों में सीधा संपर्क नहीं हो पा रहा था. मैं अपने हाथ उस चीज को हटाने के लिए बढाया पर उसे छाया ने रोक लिया छाया. वह एक बार फिर मेरे होठों तक आई और मुझे प्यार से चूम लिया.
कुछ ही देर में मुझे अपने राजकुमार के मुख पर किसी पतले और सकरे रास्ते का अनुभव हुआ. छाया का वजन मेरे राजकुमार पर बढ़ता जा रहा था. राजकुमार अब दर्द में था पर वह उस पतले रास्ते में प्रवेश कर रहा था. जैसे जैसे छाया की कमर धीरे-धीरे नीचे आ रही थी राजकुमार उस अनजानी सकरी और तंग गुफा में जा रहा था. छाया हांफ रही थी. मैं समझ नहीं पा रहा था की छाया यह क्या कर रही हैं. मैं तो अद्भुत आनद में था. राजकुमार ने यह अनुभव पहली बार प्राप्त किया था. मुझे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अपना कौमार्य आज ही परित्याग कर रही हो. यह मेरे लिए पीड़ादायक चीज होती मैंने उसे वचन दिया था कि उसका कौमार्य भंग नहीं होने दूंगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह भावावेश में आकर ऐसा कर रही हो. मैं इतना सोच ही रहा था की तभी छाया के नितंबों का एहसास मुझे अपनी जाँघों पर हुआ. राजकुमार अनजानी गुफा में पूरी तरह प्रवेश कर चुका था. छाया की कोई और गतिविधि मुझे महसूस नही ही रही थी।
राजकुमार उस गहरी गुफा में जाने के बाद पूरी तरह तन चुका था. अचानक छाया मेरी तरफ झुकी और मेरे होठों को अपने होंठों के बीच ले लिया और मेरी आंखों पर पड़ी हुई पट्टी स्वयं ही हटा दी. मैंने आंखें खोली और अपनी उसकी आंखों में आंसू थे. आंसू की एक बूंद मेरे गाल पर भी गिरी. मैंने अपने हाथों से उसके आंसू पोछे और उसके गाल अपने गाल से सटा लिए . मैं उससे यह भी नहीं पूछ पा रहा था उसने मेरे राजकुमार के साथ क्या किया. कुछ ही देर में वह सामान्य हो गई और वापस मेरे होठों को चूमने लगी. अब वह अपनी कमर को आगे पीछे कर रही थी. मेरा राजकुमार उस अनजानी और गहरी गुफा मैं आगे पीछे हो रहा था. वह तो इन्हीं गुफाओं की प्रतीक्षा में पिचले २५ वर्षों से था. उसे पतले और तंग रास्ते हमेशा से पसंद थे. उसकी उछल कूद बढ़ रही थी. मैं इस अद्भुत आनंद के लिए छाया का ऋणी हो रहा था. मुझे बार-बार चूमती जा रही थी. उसने कमर हिलाने की गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में मेरे राजकुमार ने गहरी गुफा की चाल से अपनी गति मिला ली. अब मेरी कमर भी उसी गति में हिलने लगी. छाया मुझे चूमती जा रही. कुछ ही देर में राजकुमार स्खलित होने के लिए तैयार था मैं अपने राजकुमार को उस गुफा से बाहर निकालना चाहता था और हमेशा की तरह अपनी प्यारी छाया को भिगोना चाहता था पर मैंने राजकुमारी के कंपन अभी तक महसूस नहीं किये थे. राजकुमार राजकुमारी को छोड एक अलग ही दुनिया में आनंद ले रहा था. एक बार के लिए मुझे लगा जैसे छाया ने कोई कृत्रिम योनी लायी थी. पर छाया मुझसे सटी हुए थी मैं नीचे नहीं देख पा रहा था. राजकुमार का लावा फूटने वाला था मैं उसे बाहर निकालना चाह रहा था पर बिना छाया के सहयोग के बाद संभव नहीं था. वह अपनी गति को विराम नहीं दे रही थी अंततः राजकुमार ने अपना वीर्य उसी गहरी गुफा में छोड़ दिया. इसका आनंद भी अद्भुत था. वीर्य प्रवाह के दौरान थे मैं अपनी कमर को बड़ी तेजी से हिला रहा था. राजकुमार भी गहरे तक उतर जाना चाह रहा था.
वीर्य स्खलन समाप्त होते ही मैं सुस्त हो गया. छाया मुझे अभी भी चूम रही थी. कुछ देर बाद छाया उठ रही थी. मेरा राजकुमार उसकी इस अनजानी गुफा से बाहर आ रहा था. मुझे उसकी राजकुमारी मुझे स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. और मेरा राजकुमार अभी भी अनजानी गुफा के अंदर था.
मुझे समझते देर न लगी कि आज छाया ने मेरे वचन की लाज रखते हुए मेरे राजकुमार को उपहार में अपनी प्रिय दासी को समर्पित किया था. छाया की दासी से राजकुमार अब बाहर आ रहा था वह पूर्णता स्वच्छ और साफ दिखाई दे रहा था. छाया ने अपने हाथों से उस रबड़ नुमा चीज को बाहर निकाला. मेरा सारा वीर्य उस रबड़ नुमा थैली में एकत्रित हो गया था. छाया उसे लेकर बाथरूम की तरफ चल पड़ी. वापस आने के बाद उसने मुझे फिर से चुमाँ और राजकुमार को अपने हाथों से सलाया राजकुमार बहुत खुश था. उसने उछल कर अपने अंदाज में छाया को धन्यवाद दिया.
मैंने छाया की राजकुमारी को सहलाने की कोशिश की उसने रोक दिया और कहा
“चलिए देर हो रही है कुछ ही देर में हम दोनों वापस टैक्सी में थे” मैंने छाया का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा
“ छाया तुम अनूठी हो और तुम्हारा उपहार भी अनूठा था” मेरी बातें सुनकर वह बहुत खुश हो गई थी उसने मेरा हाथ चूम लिया और कहां
“मानस भैया मुझे भूख लगी है. मैंने दो दिन से अन्न नहीं खाया है.”
मैं समझ गया और फिर से उसे चूम लिया. मैंने उसकी पसंद का पिज्जा लिया वो उसे खाते हुए बोली
“मैं आपकी और अपने राजकुमार की खुशी के लिए किसी हद तक जा सकती हूँ” मैं मुस्कुरा रहा था पर मेरी आँखों में आसू थे. कुछ ही देर में हमारी गाड़ी विवाह मंडप के पोर्च में थी.
विवाह की तैयारी
(मैं मानस)
हम लोगों ने तय किया की विवाह बेंगलुरु से ही किया जाए. सीमा के घर वाले चंडीगढ़ में थे पर वह बेंगलुरु आने के लिए तैयार हो गये थे. हम लोगों ने एक शादी का बड़ा हॉल बुक कर लिया था जिसमें वर वधू पक्ष के रहने के लिए अलग-अलग अवस्थाएं थी. मैरिज हाल खूबसूरत और अच्छी लोकेशन पर था तथा सर्व सुविधा सम्पन्न था.
मैंने गांव से सभी परिचित लोगों को निमंत्रित किया जो कमजोर लोग थे उनको फ्लाइट की टिकट तक भेज दी. निमंत्रण से बहुत खुश थे. सही समय पर गांव से सभी परिचित लोग आ चुके थे. गांव वालों की उपस्थिति ही विवाह कार्यक्रम में एक अलग किस्म का आनंद जोड़ देती है. उन्हें इन बड़ी शादियों की प्रतीक्षा होती है. शहर में रहने वाले लोग तो सिर्फ कुछ घंटों के लिए विवाह कार्यक्रम का आनंद लेते हैं और रात्रिभोज के बाद अपने अपने रास्ते चले जाते हैं पर गांव से आए लोग पूरे कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए रखते हैं और विवाह को रंगीन बनाए रखते हैं.
सीमा की ओर से मंजुला चाची ने कमान संभाल रही थी. थी और हमारी तरफ से माया आंटी ने. छाया इस क्कार्यक्रम की मुख्य निर्देशिका थी. सब उसकी राय से कार्यक्रम को आगे बढ़ाते. शर्मा जी भी अपनी विदेश यात्रा से आकर इस विशेष कार्यक्रम के शामिल थे. गांव वालों से उनका परिचय मेरे सीनियर अधिकारी के रूप में कराया गया था. वह इस कार्यक्रम में मेरे पिता की भूमिका में दिखाई पड़ रहे थे. वह पूरे जोर-शोर से इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे.
गांव की शादियों में महिलाओं के झुण्ड का बड़ा योगदान होता है वह सब तरह तरह की रस्में करतीं हैं और इन रस्मो का भी एक अपना आनंद होता है. हमारा विवाह अंततः सभी की सहमति से हो रहा था. मुझे सिर्फ छाया की चिंता थी पर वह अब परिपक्व हो चुकी थी। उसका दुःख कभी उसके चेहरे पर नहीं आता. रस्मों के दौरान वह मेरे पास आती तो मुझे कभी कभी उसके चेहरे के पीछे उसके आंसू दिखाई दे जाते.
लड़कियां कितनी भी परिपक्व हो जाए अपनी भावनाएं नहीं छुपा पाती. आखिर मेरी प्यारी छाया भी एक लड़की ही थी।
इस विवाह में एकमात्र दुख मुझे छाया को लेकर ही था. पर धीरे-धीरे कार्यक्रम आगे बढ़ रहे थे. भविष्य में क्या होने वाला था मैं नहीं जानता पर मैं कहीं न कहीं इस बात को लेकर थोड़ा दुखी अवश्य था. महिलाओं का झुंड जब भी आता अलग-अलग प्रकार की रस्में करता इतनी सारी महिलाओं को एक साथ देख कर मन में अजीब अनुभूति होती अपने इस शादी में मैं मुख्य अतिथि जैसा महसूस कर रहा था. गांव के सभी लोग मुझे इज्जत और सम्मान की निगाहों से देख रहे थे मेरी प्रतिष्ठा शिखर पर थी. छाया को सजा धजा और खुश देख कर सब उसकी खुशी में मेरी उपलब्धता देखते. छाया अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी उसकी नौकरी के बारे में जानकर सब गांव वाले मुझे ही बधाई देते. पिछले कुछ दिनों में छाया ने अपना दुख को छुपाने के लिए अपनी कामुकता को और जीवंत कर दिया था. वह मुझे हर मौके पर खुश करने के लिए कुछ नया करती और मैं उसे अपनी पत्नी न बना पाने की लिए थोड़ा दुखी हो जाता.
अनूठा उपहार
(मैं छाया)
मानस भैया के तिलक का कार्यक्रम संपन्न हो चुका था. विवाह तींन दिन बाद होने वाला था. जिस विवाह की कल्पना में हम दोनों ने पिछले 3-4 वर्ष निकाले थे वो दिन आ चुका था. पर नियत की विडंबना थी मेरी जगह वहां सीमा दीदी को बैठना था. मानस और मैं एक दूसरे से अभी भी बहुत प्यार करते थे पर जो होना था वह हो रहा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मानस को क्या उपहार दूं पर मैं उसे यादगार बनाना चाहती थी. अंततः दृढ़ निश्चय करने के बाद मैंने मानस से कुछ घंटे एकांत में बिताने का समय मांगा. वह बोले
“ इस शादी के बीच में यह कैसे संभव होगा “
“ मैंने कहा यह आप देखिए.”
"तुम खुद भी कैसे फ्री हो पाओगी सब तैयारी तुम्हारे ही मार्गदर्शन में हो रही है”
"मैं ब्यूटी पार्लर के नाम पर समय निकाल लूंगी”
मेरी बातों में जिद थी वो मान गये. मेरी बात टालना उनके लिए असंभव था. वो मुझे बहुत प्यार करते थे.
हमने विवाह मंडप के अलावा कुछ होटलों में भी कमरे से ले रखे थे. एक होटल के कमरे के गेस्ट को आने में समय था. मानस ने दो दिन बाद दोपहर में ३.०० बजे का समय निर्धारित किया. मेरे पास २ दिन का वक्त था. मैंने अपनी पूरी तैयारी कर ली और हम तय वक्त पर होटल के लिए निकल चुके थे. मानस बार-बार मुझे प्रश्नवाचक निगाहों से देख रहे थे वह समझ नहीं पा रहे थे कि मैं उनके साथ क्या करने वाली हूँ. आपसी प्यास तो हम समारोह के बीच भी बुझा ही लेते थे. कार की सीट पर पीछे बैठे बैठे हैं वह मेरे हाथों को सहला रहे थे. मेरे चेहरे पर भी घबराहट भी और मन में भी. एक कुछ ही देर में हम होटल के कमरे में थे.
[मैं मानस]
कमरे में पहुंचते ही छाया ने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मेरे राजकुमार को अपने हाथों सहलाते हुए कहा
“इस राजकुमार को मैंने बहुत प्यार किया है और कल से यह किसी और का हो जाएगा” मैं इसे एक अनूठा उपहार देना चाहती हूँ. आपको मुझे इसमें सहयोग करना होगा.”
मैं अभी भी उसकी मंशा समझ नहीं पा रहा था पर उसके हाथों में आते ही राजकुमार स्वयं उठ खड़ा होता था इसमें मेरा कंट्रोल बिल्कुल भी नहीं होता था.
जैसे छोटे बच्चे अपनी माँ को देखते ही उसके गोद में आने के लिए अपना हाँथ आगे बढ़ा देते हैं वैसे ही मेरा राजकुमार तन कर छाया के हाँथ में आ जाता था.
मैंने उसे अपने आगोश में ले लिया मैंने कहा
“ ठीक है जो तुम्हें लगता है वह करो” उस दिन उसने एक सुंदर सा सलवार सूट पहना हुआ था. उसने दुपट्टे से मेरी आंखों पर पट्टी बांध दी और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया. मेरे कपड़े उसने पहले ही खोल दिए थे मैं बिस्तर पर नग्न लेटा हुआ था. मेरा राजकुमार पूरी तरह अपना छाया के हाथो अपना स्खलन कराने के लिए तैयार था. मेरी आंखों पर पट्टी बंधी होने की वजह से मैं छाया को नहीं देख पा रहा था. छाया अब मेरे ऊपर आ चुकी थी और मुझे उसके स्तनों का एहसास हो रहा था. मेरे हाथ उसके स्तनों को सहला रहे थे. उसके होंठ मेरे होंठों पर थे. राजकुमार राजकुमारी के होंठो में अपना स्थान तलाश रहा था. कुछ ही देर में छाया धीरे-धीरे मेरे छाती को चुमती हुई नीचे की तरफ बढ़ी. अब राजकुमार उसके मुख में अठखेलियां कर रहा था. उसने अबकी बार अपने मुख से एक कृत्रिम योनि का निर्माण किया और राजकुमार को वह सुख देने लगी. राजकुमार को यह क्रिया बहुत पसंद थी और वह उछल रहा था अचानक मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे छाया उसके ऊपर कोई चीज लपेट रही थी. राजकुमार उस अनजाने आवरण के अंदर आ गया था. एक बार के लिए मैं डर गया की कही छाया ने बदला लेने के लिए कुछ और तो नहीं सोचा है?
पर वह मेरी प्यारी छाया थी. बदला ? यह असंभव था. हम दोनों एक दुसरे के लिए जान भी दे सकते थे.
मेरी आंखें बंद थी और कौतुहल चरम पर. राजकुमार का तनाव कुछ कम जरूर हुआ पर वह वापस सामान्य रूप से तन गया था. छाया अपने हाथों से राजकुमार को सहला रही थी कुछ ही देर में मुझे अपनी कमर पर छाया के बैठने का एहसास हुआ. उसके दोनों पैर मेरी जांघों के दोनों ओर थे. उसकी राजकुमारी राजकुमार के संपर्क में थी. पर उस लिपटी हुए चीज की वजह से दोनों में सीधा संपर्क नहीं हो पा रहा था. मैं अपने हाथ उस चीज को हटाने के लिए बढाया पर उसे छाया ने रोक लिया छाया. वह एक बार फिर मेरे होठों तक आई और मुझे प्यार से चूम लिया.
कुछ ही देर में मुझे अपने राजकुमार के मुख पर किसी पतले और सकरे रास्ते का अनुभव हुआ. छाया का वजन मेरे राजकुमार पर बढ़ता जा रहा था. राजकुमार अब दर्द में था पर वह उस पतले रास्ते में प्रवेश कर रहा था. जैसे जैसे छाया की कमर धीरे-धीरे नीचे आ रही थी राजकुमार उस अनजानी सकरी और तंग गुफा में जा रहा था. छाया हांफ रही थी. मैं समझ नहीं पा रहा था की छाया यह क्या कर रही हैं. मैं तो अद्भुत आनद में था. राजकुमार ने यह अनुभव पहली बार प्राप्त किया था. मुझे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अपना कौमार्य आज ही परित्याग कर रही हो. यह मेरे लिए पीड़ादायक चीज होती मैंने उसे वचन दिया था कि उसका कौमार्य भंग नहीं होने दूंगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह भावावेश में आकर ऐसा कर रही हो. मैं इतना सोच ही रहा था की तभी छाया के नितंबों का एहसास मुझे अपनी जाँघों पर हुआ. राजकुमार अनजानी गुफा में पूरी तरह प्रवेश कर चुका था. छाया की कोई और गतिविधि मुझे महसूस नही ही रही थी।
राजकुमार उस गहरी गुफा में जाने के बाद पूरी तरह तन चुका था. अचानक छाया मेरी तरफ झुकी और मेरे होठों को अपने होंठों के बीच ले लिया और मेरी आंखों पर पड़ी हुई पट्टी स्वयं ही हटा दी. मैंने आंखें खोली और अपनी उसकी आंखों में आंसू थे. आंसू की एक बूंद मेरे गाल पर भी गिरी. मैंने अपने हाथों से उसके आंसू पोछे और उसके गाल अपने गाल से सटा लिए . मैं उससे यह भी नहीं पूछ पा रहा था उसने मेरे राजकुमार के साथ क्या किया. कुछ ही देर में वह सामान्य हो गई और वापस मेरे होठों को चूमने लगी. अब वह अपनी कमर को आगे पीछे कर रही थी. मेरा राजकुमार उस अनजानी और गहरी गुफा मैं आगे पीछे हो रहा था. वह तो इन्हीं गुफाओं की प्रतीक्षा में पिचले २५ वर्षों से था. उसे पतले और तंग रास्ते हमेशा से पसंद थे. उसकी उछल कूद बढ़ रही थी. मैं इस अद्भुत आनंद के लिए छाया का ऋणी हो रहा था. मुझे बार-बार चूमती जा रही थी. उसने कमर हिलाने की गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में मेरे राजकुमार ने गहरी गुफा की चाल से अपनी गति मिला ली. अब मेरी कमर भी उसी गति में हिलने लगी. छाया मुझे चूमती जा रही. कुछ ही देर में राजकुमार स्खलित होने के लिए तैयार था मैं अपने राजकुमार को उस गुफा से बाहर निकालना चाहता था और हमेशा की तरह अपनी प्यारी छाया को भिगोना चाहता था पर मैंने राजकुमारी के कंपन अभी तक महसूस नहीं किये थे. राजकुमार राजकुमारी को छोड एक अलग ही दुनिया में आनंद ले रहा था. एक बार के लिए मुझे लगा जैसे छाया ने कोई कृत्रिम योनी लायी थी. पर छाया मुझसे सटी हुए थी मैं नीचे नहीं देख पा रहा था. राजकुमार का लावा फूटने वाला था मैं उसे बाहर निकालना चाह रहा था पर बिना छाया के सहयोग के बाद संभव नहीं था. वह अपनी गति को विराम नहीं दे रही थी अंततः राजकुमार ने अपना वीर्य उसी गहरी गुफा में छोड़ दिया. इसका आनंद भी अद्भुत था. वीर्य प्रवाह के दौरान थे मैं अपनी कमर को बड़ी तेजी से हिला रहा था. राजकुमार भी गहरे तक उतर जाना चाह रहा था.
वीर्य स्खलन समाप्त होते ही मैं सुस्त हो गया. छाया मुझे अभी भी चूम रही थी. कुछ देर बाद छाया उठ रही थी. मेरा राजकुमार उसकी इस अनजानी गुफा से बाहर आ रहा था. मुझे उसकी राजकुमारी मुझे स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. और मेरा राजकुमार अभी भी अनजानी गुफा के अंदर था.
मुझे समझते देर न लगी कि आज छाया ने मेरे वचन की लाज रखते हुए मेरे राजकुमार को उपहार में अपनी प्रिय दासी को समर्पित किया था. छाया की दासी से राजकुमार अब बाहर आ रहा था वह पूर्णता स्वच्छ और साफ दिखाई दे रहा था. छाया ने अपने हाथों से उस रबड़ नुमा चीज को बाहर निकाला. मेरा सारा वीर्य उस रबड़ नुमा थैली में एकत्रित हो गया था. छाया उसे लेकर बाथरूम की तरफ चल पड़ी. वापस आने के बाद उसने मुझे फिर से चुमाँ और राजकुमार को अपने हाथों से सलाया राजकुमार बहुत खुश था. उसने उछल कर अपने अंदाज में छाया को धन्यवाद दिया.
मैंने छाया की राजकुमारी को सहलाने की कोशिश की उसने रोक दिया और कहा
“चलिए देर हो रही है कुछ ही देर में हम दोनों वापस टैक्सी में थे” मैंने छाया का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा
“ छाया तुम अनूठी हो और तुम्हारा उपहार भी अनूठा था” मेरी बातें सुनकर वह बहुत खुश हो गई थी उसने मेरा हाथ चूम लिया और कहां
“मानस भैया मुझे भूख लगी है. मैंने दो दिन से अन्न नहीं खाया है.”
मैं समझ गया और फिर से उसे चूम लिया. मैंने उसकी पसंद का पिज्जा लिया वो उसे खाते हुए बोली
“मैं आपकी और अपने राजकुमार की खुशी के लिए किसी हद तक जा सकती हूँ” मैं मुस्कुरा रहा था पर मेरी आँखों में आसू थे. कुछ ही देर में हमारी गाड़ी विवाह मंडप के पोर्च में थी.