XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता - Page 5 - SexBaba
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XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता

भाग- 22

सोमिल के वचन की लाज
( मैं सीमा)

छाया और मानस को एक साथ छोड़कर मैं वापस अपने कमरे की तरफ चल पड़ी आज मानस और छाया के संभावित मिलन को सोच कर मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोमिल के कमरे का दरवाजा खोल कर जैसे ही मैं अंदर दाखिल हुई मेरे सिर पर किसी ने जोरदार प्रहार किया मैं धड़ाम से गिर गई।

अगले दिन सोमवार

समय सुबह के 8:00 बजे

(मैं छाया)

"मानस भैया उठिए 8:00 बज गए, हमें 7:00 बजे ही विवाह भवन वापस जाना था."

सीमा भाभी भी उठाने नहीं आयीं। उन्होंने मुझसे 7:00 बजे चलने के लिए कहा था।"

मानस भैया ने मुझे फिर अपनी बाहों में खींच लिया। अभी तक हम दोनों वैसे ही नग्न थे। मेरी खुद की भी इच्छा उनकी बाहों में आकर एक बार और संभोग सुख लेने की थी पर काफी विलंब हो चुका था। मैं उन्हें चूमती हुई बिस्तर से हट गई। उन्होंने कहा

"जाकर देखो सीमा कहां रह गई। लगता है सोमिल का वचन निभाते निभाते वह भी मगन हो गयी" ऐसा कहकर मानस भैया हंसने लगे.

मैंने अपनी नाइटी पहनी और बगल वाले कमरे में गई. कमरे का दृश्य देखकर मेरी चीख निकल गई मैंने दरवाजा वैसे ही बंद कर दिया। और भागकर अपने कमरे में आयी.

"मानस भैया,,,, मानस भैया" सीमा भाभी बेहोश पड़ी है जल्दी आइए.. मानस भैया ने अपना पजामा और कुर्ता पहनना और भागकर बगल वाले कमरे में आए। मैं भी उनके पीछे-पीछे डरी हुई कमरे में प्रवेश की। बिस्तर के एक तरफ सीमा भाभी नीचे जमीन पर बेसुध पड़ी हुयीं थी। मानस भैया ने उनकी पल्स देखी वह चल रही थी। उन्होंने मुझसे कहा..

"थोड़ा पानी देना" मैं भागकर बिस्तर की दूसरी तरफ पानी लेने गई. वहां जमीन पर पड़े एक और व्यक्ति को देखकर मैं एक बार फिर चिल्लाई . मानस भैया सीमा दीदी को छोड़ मेरे पास आये। वह आदमी जमीन पर पेट के बल पड़ा हुआ था। उसके चारों तरफ खून फैला हुआ था उसके पीठ में गोली लगी थी। यह दृश्य देखकर हम दोनों के होश उड़ गए। मैं डर से रोने लगी। मानस भैया ने टेबल पर पड़ी पानी की बोतल उठाई और पानी की कुछ बूंदे सीमा के चेहरे पर डाली। सीमा की आंखें कुछ पल के लिए खुलीं। मानस भैया ने सीमा के चेहरे पर एक बार फिर पानी छींटा सीमा ने आंखे खोली वह होश में आ रही थी।

मानस भैया ने मुझे चुप रहने का इशारा किया। सीमा अब होश में आ चुकी थी। मानस भैया ने उसे भी चुप रहने के लिए कहा और उसे उठाकर किसी तरह अपने कमरे में ले आये।

हम तीनों की हालत खराब थी। सोमिल के कमरे में खून हुआ था। पर सोमिल कमरे से गायब था। सीमा भाभी भी कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थीं।

(मैं मानस)

सीमा को इस हालत में देखकर मेरे होश फाख्ता हो गए थे मेरी प्यारी सीमा किस हाल में आ चुकी थी जब उसने आंखें खोली तो मुझे राहत महसूस हुई मैंने भगवान को एक बार फिर शुक्रिया अदा किया हम तीनों आगे आने वाली घटनाओं के बारे में सोच रहे थे। खून हुआ था और यह एक असामान्य घटना थी। मैंने पुलिस को इत्तिला करने की सोची पर पुलिस का नाम सुनते ही छाया और सीमा डर गयीं। सीमा अभी भी नववधू वाले लिबास में थी।

छाया ने कहा कुछ देर रुक जाइए पहले हम स्वयं को इस बात के लिए तैयार कर ले। मैंने अपना फोन उठाया उसमें कई सारे मिस कॉल थे। विवाह भवन से माया आंटी, शर्मा अंकल, मनोहर चाचा जाने कितने ही लोगों के फोन उस में आए हुए थे। हमें सुबह 7:00 बजे विवाह मंडप पहुंच जाना था और इस समय 8:30 बज रहे थे हमें देर हो चुकी थी। वह सब निश्चय ही हमारी चिंता कर रहे होंगे।

छाया ने कहा

" हम पुलिस से क्या बताएंगे? सीमा दीदी सोमिल के कमरे में क्यों थी?

प्रश्न जटिल था और उत्तर बना पाना इतना आसान नहीं था. तभी छाया की दृष्टि हमारे बेड पर पड़ी. हमारे प्रेम रस और छाया के प्रथम संभोग से हुए रक्तश्राव से बिस्तर पर एक अद्भुत कलाकृति बन गई थी। राजकुमारी(कुवारी योनि) का रक्त स्पष्ट रूप से बिस्तर पर दिखाई पड़ रहा था. छाया ने रूम सर्विस को फोन कर दो बेडशीट लाने ने के लिए बोला। कुछ ही देर में हमारे बेड पर नई बेडशीट थी। परंतु बिस्तर पर हुए रक्तस्राव और प्रेम रस के मिश्रण ने गद्दे पर भी अपने अंश छोड़ दिए थे।

हमने अपने उत्तर तैयार कर लिए।

मैंने आखिरकार पुलिस को फोन कर दिया।
 
भाग 23
(मैं मानस)

एक तो सोमिल का इस तरह से गायब हो जाना हमारे लिए चिंता का विषय था ऊपर से उसके कमरे में हुआ खून। इतना तो तय था कि हम तीनों में से कोई भी गुनाहगार नहीं था। पर जिस सामाजिक गुनाह ( मैंने और छाया ने सुहागरात मनाकर) को हमने किया था हमारे लिए वह भी चिंता का विषय था।

छाया में अपना दिमाग चलाया और सीमा के सर पर हाथ फिराया यह देखने के लिए कि कहीं चोट की वजह से रक्तश्राव तो नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में सीमा का रक्त सोमिल के कमरे से बरामद होता।

भगवान ने हमें बचा लिया था सीमा के सर पर चोट तो थी पर रक्तस्राव नहीं हुआ था। सीमा अभी भी सदमे में थी। छाया ने अपने नववधू वाले वस्त्र पुनः पहन लिए थे और सीमा को नाइटी पहना दी थी।

कुछ ही देर में विवाह मंडप से सोमिल का भाई संजय, मनोहर चाचा, माया आंटी ( छाया की माँ), शर्मा जी ( माया आंटी के करीबी मित्र) और मेरे कुछ दोस्त होटल आ चुके थे। होटल प्रशासन को भी इस मर्डर की सूचना प्राप्त हो चुकी थी और उन्होंने भी अपने हिसाब से पुलिस प्रशासन को सूचित कर दिया था।

सांय…. सांय….. सांय….. पुलिस की गाड़ियों के सायरन होटल के आसपास गूंजने लगे। कई सारी गाड़ियां होटल के पोर्च में आ चुकी थी। कुछ ही देर में पुलिस अधिकारी मिस्टर डिसूजा सोमिल के कमरे में थे। 40 वर्ष की उम्र फ्रेंच कट दाढ़ी, रंग सांवला और चेहरे पर पुलिसिया रोआब।।

उन्होंने कमरे का बारीकी से मुआयना किया। मैं उनके पीछे ही था।

(मैं डिसूजा)

कमरे में अंदर घुसते ही मुझे कमरे में फैली भीनी भीनी खुसबू महसूस हुयी। बिस्तर की सजावट सुहागरात की तरह की हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर किसी की सुहागरात थी। पर चादर पर सलवटें नही थी ऐसा लगता था जैसे इस बिस्तर का उपयोग नहीं हो पाया था।बिस्तर के दूसरी तरफ पड़ी हुई लाश 33-34 वर्ष के आदमी की थी. जिसे पीछे से गोली मारी गई थी.

लॉबी में आने के बाद मैंने पूछा

"पुलिस स्टेशन किसने फोन किया था?"

26- 27 वर्ष के एक युवक जो बेहद खूबसूरत और आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था सामने आया और बोला सर मैंने ही फोन किया था.

"आप इस कमरे में क्या कर रहे थे?"

सर मेरी पत्नी मेरी बहन छाया को उठाने के लिए कमरे में दाखिल हुई तभी उसने उसे जमीन पर गिरा हुआ पाया। उसने आकर मुझे बताया। मैं कमरे में गया……..."

(मानस में सारी घटना उसी क्रम में बता दी जिस तरह हकीकत में वह घटित हुई थी. उसने बड़ी चतुराई से छाया और सीमा के स्थान बदल दिए थे)

"अपनी पत्नी को बुलाइए"

एक बेहद खूबसूरत युवती नाइटी पहने मेरे सामने उपस्थित हुई. उसकी खूबसूरती दर्शनीय थी. मेरी कामुक निगाहें एक पल के लिए उस पर ठहर गयीं। ऐसा लगता था जैसे उसने ब्रा तक नहीं पहनी थी। उसके चेहरे पर डर था।

"क्या नाम है आपका"

"ज़ी सीमा"

"क्या देखा आपने"

(सीमा ने भी अपनी बातें वैसे ही बता दी जैसे छाया ने देखा था)

"आपकी ननद कहां है"

नववधू के लिबास में लिपटी हुई एक अत्यंत सुंदर युवती मेरे सामने आई. मैं आज एक साथ दो अप्सराओं को देखकर को मन ही मन अपनी किस्मत को कोस रहा था की हमारे भाग्य में यह क्यों नहीं आती।

मैंने पूछा

"क्या नाम है आपका?"

"जी छाया" उसकी गर्दन झुकी हुई थी वह डरी हुई थी. आपको जो भी पता हो खुल कर बताइए..

" जी सीमा भाभी और मानस भैया को कमरे में छोड़कर जैसे ही मैं अपने कमरे में घुसी मुझे किसी ने पीछे से पकड़ लिया और मेरे नाक पर रुमाल रख दिया उसकी अजीब सी गंध से मैं बेहोश हो गई। और जब सुबह मेरी नींद खुली तब मैं मानस भैया की गोद में थी। होश में आने के बाद मैं मानस भैया के कमरे में आ गई। सीमा भाभी ने मुझे सोमिल के गायब होने और कमरे में हुए खून की जानकारी दी"

वह एक सुर में सारी बात कह गई।

"आपने किसी का चेहरा देखा था?"

"जी नहीं. मुझे कमरे में किसी और व्यक्ति के होने का एहसास जरूर हुआ था पर मैं उसका चेहरा नहीं देख पायी।

"क्या उस समय सोमिल कमरे में थे?"

"जहां तक मेरी नजर पड़ी थी वहां तक सोमिल मुझे नहीं दिखाई दिए थे"

होटल की लॉबी में अब तक बहुत भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी.

आप तीनों बेंगलुरु शहर छोड़कर नहीं जाएंगे अपना पता और बयान हवलदार सत्यनारायण को दर्ज करा दीजिए.

जिस रूम में खून हुआ था उसको मैंने सील करने के आदेश दिए. मेरे साथ आई टीम कमरे में मौजूद सबूतों की तलाश में लग गई. उस सुंदर युवक ने मुझसे पूछा सर क्या हम अपने घर जा सकते हैं. मैंने उन दोनों युवतियों का चेहरा ध्यान में रखते हुए उन तीनों को जाने की इजाजत दे दी.

उनके जाने से जाने के बाद मैंने मानस और सीमा के कमरे की भी तलाशी ली। उसमें मिले साक्ष्यों को भी हमारी टीम ने संजोकर रख लिया।

यह खून और उनके साथी सोमिल का गायब होना किसी साजिश की तरफ इशारा कर रहा था। केस पेचीदा था पर मुझे खुद पर पूरा भरोसा था। मैंने हर पहलू पर सोचना शुरू कर दिया…..


(मैं मानस)

हम तीनों वापस विवाह भवन के लिए निकल चुके थे छाया और सीमा दोनों ने अब अपने वही वस्त्र पहन लिए थे जिन्हें पहन कर वो यहां आयीं थीं। ब्रीफ़केस में रखे वस्त्र भी उसी प्रकार के थे। सिर्फ छाया ने वह चादर भी रख ली थी जिस पर उसकी राजकुमारी( योनि) के रक्त और हमारे प्रथम मिलन (संभोग) के प्रेमरस से एक खूबसूरत कलाकृति बन गई थी। छाया ने यह कार्य बड़ी समझदारी से किया था।

सोमिल का फोन अब बंद हो चुका था। हमारी चिंता बढ़ रही थी।

मुझे इस बात का डर था की होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों में हमारी गतिविधियां जरूर रिकॉर्ड हुई होंगी जो हमारी पुलिस को बताई गई बातों से मेल नहीं खाती थी। हम तीनों ही डरे हुए थे आपसी संबंधों को खुलकर न बता पाने की वजह से हमने पुलिस से यह झूठ बोला था।

अचानक सुनील का भाई संजय हाथ में अखबार के लिए हुए दौड़ता हुआ मेरे पास आया और बोला मानस भैया मानस भैया यह देखिए। अखबार पर नजर पड़ते ही मेरे होश फाख्ता हो गए सोमिल जिस कंपनी में काम करता था उसमें 50 करोड़ का गबन हुआ था। मैंने इस खबर को सोमिल के गायब होने से जोड़ा और तुरंत ही मिस्टर डिसूजा को फोन लगाया।

"सर मैं मानस आपको एक सूचना देनी है"

"क्या है बोलिए" उसने मुझे याद कर कुछ देर में जबाब दिया।

"सर सोमिल की कंपनी में 50 करोड़ का गबन हुआ है. आप हिंदुस्तान टाइम्स की खबर पेज नंबर 13 पर देख सकते हैं. यह बात मैंने आपको बताना जरूरी समझा इसलिए फोन किया"

" ठीक है मैं देखता हूं. क्या आपके पास उस कंपनी के मालिक का नंबर है"

"जी सर मैं पता करके भेजता हूं"

"ठीक है" वो शायद अभी अभी होटल में ही थे आसपास कई सारे पुलिस वालों की आवाज आ रही थी और वह सबूतों की बात कर रहे थे।
छाया और सीमा घबरायी हुयी मेरे पास बैठीं थीं।
 
भाग- 24
सोमिल की कंपनी पाटीदार फाइनेंस के मालिक रमेश पाटीदार एक 55- 56 वर्ष के प्रभावशाली आदमी थे. उनकी कंपनी में लगभग 200 लोग कार्यरत थे सोमिल और छाया भी उसी कंपनी के सॉफ्टवेयर विभाग में काम करते थे। फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन को नियंत्रित करना तथा उनकी गोपनीयता बनाए रखना सोमिल के कार्य का एक हिस्सा था। इस गबन के आरोप में सोमिल का नाम पेपर वालों ने भी उछाला था। सोमिल के फरार होने से यह बात और भी पुख्ता तरह से प्रमाणित हो रही थी।

कमरे में हुआ खून किसी और बात की तरफ भी इशारा करता था। मैं, छाया और सीमा को लेकर ही परेशान था वह दोनों नवयौवनाएँ जो अभी हाल में ही विवाहिता हुई थी और अपने जीवन का आनंद लेना शुरू कर रही थी उन्हें इस तनाव भरे छोड़ो से गुजर ना पढ़ रहा था उनके चेहरे की लालिमा गायब थी वह दोनों ही तनाव में थी।

इस केस को समझ पाना मेरे बस से बाहर था। मैंने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया। मैंने विवाह में आए लोगों को यथोचित अदर देकर अपने अपने घर जाने के लिए कहा। विवाह मंडप खाली करना भी अनिवार्य था। सूरज ढलते ढलते सभी लोग अपने अपने घर चले गए।

हम सब भी अपने घर आ चुके थे सोमिल के माता पिता भी मेरे घर पर आ गए थे। हम सब अपने ड्राइंग रूम में बैठे हुए आगे होने वाली घटनाओं के बारे में सोच रहे थे।

छाया और सीमा भी फ्रेश होकर हॉल में आ चुकीं थीं । उसने अपनी कंपनी के मालिक रमेश पाटीदार को फोन किया।

"सर मैं छाया"

" सोमिल की जूनियर।"

"मैंने पेपर में खबर पढ़ी पर सोमिल ऐसा नहीं कर सकता मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ।"

मैंने छाया को फोन का स्पीकर चालू करने के लिए कहा

"मैं भी पहले यही समझता था मैंने सोमिल पर जरूरत से ज्यादा विश्वास किया और उसका यह नतीजा आज मुझे देखना पड़ रहा है। मैं उसे छोडूंगा नहीं देखता हूं वह कहां तक भाग कर जाएगा"

स्पीकर फोन पर आ रही इस आवाज ने हम सभी को रमेश पाटीदार के विचारों से अवगत करा दिया था हमें उनसे किसी भी सहयोग की उम्मीद नहीं थी।

शर्मा जी भी अपनी जान पहचान के पुलिस अधिकारियों से बात कर सोमिल का जल्द से जल्द पता लगाने का प्रयास कर रहे थे।

छाया और मैंने पिछली रात जो संभोग सुख लिया था उसने छाया को थका दिया था। वह सोफे पर बैठे बैठे ही सो गई थी निद्रा में जाने के पश्चात उसके चेहरे का लावण्या उसकी खूबसूरती को एक बार फिर बड़ा गया था यदि सोमिल के गायब होने का तनाव मेरे मन पर ना होता तो मैं छाया को अपनी गोद में उठाकर एक बार फिर बिस्तर पर होता पर आज कुदरत हमारे साथ नहीं थी मैंने और छाया ने इतना दुखद दिन आज से पहले कभी नहीं देखा था।

(मैं डिसूजा)

होटल समय 11 बजे

मैं होटल की सीसीटीवी फुटेज देख रहा था तभी सत्यनारायण का फोन आया

"सर दूसरे कमरे में भी खून के निशान मिले हैं"

"क्या? कहां?"

"सर' सर बिस्तर पर"

"ठीक है मैं आता हूं।"

(दूसरे वाले कमरे में)

गद्दे पर थोड़ा रक्त के निशान थे और उसके आसपास दाग बने हुए थे रक्त का निशान ताजा था।

मेरा सिपाही मूर्ति सामने आया और बोला

"सर इस गद्दे के ऊपर बिछी हुई चादर पर कोई भी दाग नहीं था पर गद्दे पर यह दाग ताजा लगता है"

पीछे से किसी दूसरे सिपाही ने कहा

"कहीं सुहागरात का खून तो नहीं है"

पीछे से दबी हुई हंसी आवाज आई।

" रूम सर्विस से पता करो इस दाग के बारे में"

दोनों ही रूम से मेरी टीम ने कई सारे सबूत इकट्ठा किए बिस्तर पर लगे हुए खून को भी मैंने फॉरेंसिक टीम में भेज दिया।

होटल के दोनों कमरों को सील कर हम लोग वापस पुलिस स्टेशन आ गए सोमिल की तलाश अभी भी जारी थी सोमिल की कॉल डिटेल का इंतजार था।

वापस पुलिस स्टेशन आते समय मैं उन दोनों युवतियों के बारे में सोच रहा था नाइटी पहने हुई युवती बेहद कामुक थी दूसरी वाली तो और भी सुंदर थी । मेरे मन में कामुकता जन्म ले रही थी पर मैंने अभी इंतजार करना उचित समझा।

मंगलवार सुबह 8:00 बजे, मानस का घर

(मैं मानस)

पिछली रात में और सीमा अपने बिस्तर पर थे । छाया को भी अपने कमरे में मन नहीं लग रहा था वह भी हमारे पास आ गई। हम सोमिल के बारे में बातें करते करते सो गए। हम तीनों एक ही बिस्तर पर के दिनों बाद थे।

छाया का विवाह भी हो चुका था और प्रथम संभोग भी। यदि आज कोई और दिन होता तो मैं,सीमाऔर छाया अपने अद्भुत त्रिकोणीय प्रेम का आनंद ले रहे होते। पर आज सोमिल के इस तरह गायब होने का दुख हम तीनों को था। हम तीनों की ही कामुकता जैसे सूख गई थी अन्यथा दो अप्सराओं को अपनी गोद में लिए हुए अपने राजकुमार को नियंत्रण में लाना असंभव था।

मेरे फोन पर घंटी बजी डिसूजा का फोन था

"10:00 बजे इन दोनों महिलाओं को लेकर टिटलागढ़ पुलिस स्टेशन आ जाइए"

"सोमिल का कुछ पता चला सर"

"अभी तक तो नहीं पर हां मुझे कुछ सबूत हाथ लगे हैं आइए बात करते हैं"

हम तीनों पुलिस स्टेशन के लिए निकल गए। सीमा और छाया ने जींस और टीशर्ट पहनी हुई थी वह दोनों ना चाहते हुए भी आज के दिन कामुक लग रही थी। भगवान ने उन्हें ऐसा शरीर ही दिया था चाहे वह कोई भी वस्त्र पहन ले उनकी कामुकता और यौवन स्वतः ही आस-पड़ोस के युवाओं को आकर्षित करता था। मुझे उन दोनों को हब्शी पुलिस वालों के पास ले जाने में डर भी लग रहा था पर हमारे पास कोई चारा नहीं था। मैं अपने मन की बात उन दोनों को बता भी नहीं सकता था। उन दोनों अप्सराओं को लेकर मैं मन ही मन चिंतित था।

उस बदबूदार पुलिस स्टेशन में पहुंचकर छाया और सीमा के चेहरे पर घृणा और तनाव दिखाई पड़ने लगा वह दोनों दीवार पर पड़ी हुई पान की पीक को देखकर उबकाई लेने लगीं। मैंने उन्हें धैर्य रखने के लिए कहा कुछ ही देर में हम डिसूजा के ऑफिस में थे।

हमें आपको होटल की लॉबी में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दिखानी है आपको उसमें सोमिल की पहचान करनी है

छाया और सीमा के पैर कांपने लगे उन्हें अपने दिए गए बयानों और कैमरे में कैद हुई घटनाओं का विरोधाभास ध्यान आ गया था मैं स्वयं इस बात से डर गया कि मेरे और छाया के संबंध अब सार्वजनिक हो जाएंगे जिस समाज के डर से हम दोनों ने विवाह नहीं किया था वह समाज हमें इस घृणित कार्य ( हमारे लिए वो पवित्र ही था) के लिए दोषी ठहराएगा।

उसने अपने टीवी पर होटल के लॉबी की सीसीटीवी फुटेज लगा दी।

हम चारों लॉबी में चलते हुए आ रहे थे। छाया और सीमा की खूबसूरती में मैं एक बार फिर खो गया सोमिल को कमरे में छोड़ने के बाद जब हम तीनों एक कमरे में घुसे तभी डिसूजा ने वीडियो रोक दिया उसने पूछा...

"शादी किसकी हुई थी?"

"छाया शर्माते हुए आगे आई".

"तुम अपने पति को छोड़कर इन दोनों के कमरे में क्यों गई थी.?".

छाया बहुत डर गई थी उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकल पा रही थी. तभी सीमा ने पीछे से कहा..

"वह हमारा कमरा देखने और हम दोनों का आशीर्वाद लेने गई थी"

डिसूजा अपनी कामुक निगाहों से छाया और सीमा को सर से पैर तक देख रहा था मुझे पूरा विश्वास था कि वह उनके उभारों से अपनी आंख सेंक रहा है पर पुलिसवाला होने की वजह से मैं कुछ नहीं कर सकता था। मुझे यह अपमानजनक भी लग रहा था पर मैं मजबूर था। हमने तो एक बात छुपाई थी उस बात के लिए हम बहुत डरे हुए थे उसने वीडियो दोबारा चला दिया।

कुछ ही देर में सोमिल अपने कमरे से निकलकर वापस लिफ्ट की तरफ जाता हुआ दिखाई दिया। उसकी पीठ सीसीटीवी कैमरे से दिखाई पड़ रही थी। हमने उसे उसे पहचान लिया।

"अरे यह तो सोमिल है यह कहां जा रहे हैं?" सीमा ने आश्चर्यचकित होकर बोला.

इसके बाद टीवी पर आ रही तस्वीर धुंधली हो गई और स्क्रीन ब्लैंक हो गए ऐसा लगता था जैसे कैमरा खराब हो गया या कर दिया गया हो

मैंने डिसूजा से पूछा इसके आगे की रिकॉर्डिंग दिखाइए

उसने कहा

इसके बाद किसी ने सीसीटीवी कैमरे को डैमेज कर दिया है।

मैं मन ही मन बहुत खुश हो गया पर झूठा क्रोध दिखाते हुए कहा

"किसने तोड़ दिया"

"परेशान मत होइए अभी उत्तर मिल जाएगा"

उसने अपने एक सिपाही को बुलाया जिसने हम से हमारे बेंगलुरु में रहने वाले मित्रों और रिश्तेदारों के नंबर लिखवाए और कहा

आप लोग बाहर बैठिए मुझे छाया जी से कुछ बात करनी है। छाया डर गई पर कुछ कुछ बोली नहीं

मैं और सीमा कमरे से बाहर आकर बाहर पड़ी एक बेंच पर बैठ कर छाया का इंतजार करने लगे।
 
भाग -25
(मैं सोमिल)

अपने गर्दन में हुए तीव्र दर्द से मुझे जीवित होने का एहसास हुआ। मैंने स्वयं को बिस्तर पर पड़ा हुआ पाया। खिड़की से आती हुई रोशनी मेरी अचानक वीरान हुई जिंदगी में उजाला करने की कोशिश कर रहा थी। मैंने आवाज दी

"कोई है? कोई है?"

कुछ देर बाद कमरे का दरवाजा खुला और एक सुंदर लड़की ने प्रवेश किया उम्र लगभग 22-23 वर्ष रही होगी। उसने एक सुंदर सा स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था।

"जी सर' पानी लाऊं क्या?"

"यह कौन सी जगह है? मैं कहां हूं?

"सर यह सब तो मुझे पता नहीं पर मुझे आपका ख्याल रखने को कहा गया है"

मैंने बिस्तर से उठने की कोशिश की पर तेज दर्द की वजह से उठ नहीं पाया. वह पानी की बोतल देते हुए बोली

"थोड़ा पानी पी लीजिए और चेहरा धो लीजिए आपको अच्छा लगेगा."

मैं उठ पाने की स्थिति में नहीं था मैं कराह रहा था. उसने स्वयं पास पड़ा हुआ नया तौलिया उठाया और उसे पानी से गीलाकर मेरा चेहरा पोछने लगी। मुझे उसकी इस आत्मीयता का कारण तो नहीं समझ में आया पर मुझे उसका स्वभाव अच्छा लगा। एक बार फिर प्रयास कर मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। कमरा बेहद खूबसूरत था कमरे के बीच बेहद आकर्षक डबल बेड लगा हुआ था जिस पर सफेद चादर बिछी हुई थी कमरे की सजावट देखकर ऐसा लगता था जैसे वह किसी 4 स्टार होटल का कमरा हो कमरे से बाहर निकलते हैं एक छोटा हाल था और उसी से सटा हुआ किचन।

"बाथरूम किधर है"

"सर, उस अलमारी के ठीक बगल में"

बाथरूम के दरवाजे की सजावट इतनी खूबसूरती से की गई की मैं उसे देख नहीं पाया था। बाथरूम भी उतना ही आलीशान था जितना कि कमरा।

मुझे इतना तो समझ आ ही गया था कि मुझे यहां पर कैद किया गया है मैंने चीखने चिल्लाने की कोशिश नहीं की क्योंकि इसका कोई फायदा नहीं था।

क्या नाम है तुम्हारा

"जी शांति"

"बाहर कौन है?"

"साहब दो गार्ड रहते हैं. वही जरूरत का सामान लाकर देते हैं"

"तुम यहां कब से आई हो?"

"साहब आपके साथ साथ ही तो आई यह लोग आपको डिक्की में लेकर आए थे। मैं भी उसी गाड़ी में थी।"

"यह लोग आपको यहां किस लिए लाए हैं?"

उसका यह प्रश्न मेरा भी प्रश्न था.मैं निरुत्तर था तभी मुझे बाहर बात करने की आवाज सुनाई दी.

"सर वह होश में आ गया है"

"ठीक है सर"

मेरे कमरे में फोन की घंटी बजी मैंने शांति से कहा

"देखो तुम्हारा फोन बज रहा है"

"सर मेरा फोन तो उन लोगों ने आने से पहले ही ले लिया"

यह मेरा फोन नहीं था पर मैंने जानबूझकर उसे उठा लिया

"सोमिल सर आप ठीक तो है ना?"

"आप कौन बोल रहे हैं?"

"सर आप मुझे नहीं जानते हैं."

"मुझे यहां क्यों लाया गया है?"

"मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकता हूं. पर हां यदि आपको कोई तकलीफ हो तो मुझे बता सकते हैं. आपको जब भी मुझसे बात करनी हो बाहर खड़े गार्ड से बोल दीजिएगा। और हां, यहां से निकलने के लिए व्यर्थ प्रयास मत कीजिएगा। आपका प्रयास आपके लिए ही नुकसानदायक होगा। अभी जीवन का आनंद लीजिए एकांत का भी अपना मजा होता है। आपके घर वाले और परिवार वाले सुरक्षित हैं और कुशल मंगल से हैं। अच्छा मैं फोन रखता हूं।"

" सुनिए.. सुनिए…" मेरी आवाज मेरे कमरे तक ही रह गई मोबाइल फोन का कनेक्शन कट चुका था.

मैंने फोन से छाया का नंबर डायल करना चाहा वही एक नंबर था जो मुझे मुंह जबानी याद था इस नंबर पर यह सुविधा उपलब्ध नहीं है की मुंह चिढ़ाने वाली ध्वनि मेरे कानों तक पहुंची. इसका मुझे अनुमान भी था मैंने फोन बिस्तर पर पटक दिया आश्चर्य की बात यह थी यह फोन नया था और अच्छी क्वालिटी का था मुझे अपने यहां लाए जाने का कारण अभी भी ज्ञात नहीं था।

उधर पुलिस स्टेशन में

(मैं छाया)

डिसूजा ऊपर से नीचे तक मुझे घूर रहा था ऊपर वाले ने मुझे जो सुंदरता दी थी इसका दुष्परिणाम मुझे आज दिखाई पड़ रहा था। उसकी नजरों से मेरे बदन में चुभन हो रही थी। वह मेरे स्तनों पर नजर गड़ाए हुए था। उसने कहा…

"तुम्हारी भाभी भी उस दिन सुहागरात मनाने आई थी क्या?"

मैंने सिर झुका कर बोला

"नहीं वह दोनों हमारे साथ यहां इसलिए आए थे ताकि हम कंफर्टेबल महसूस कर सकें"

"ओह, तो आप अपने भैया और भाभी के साथ कंफर्टेबल महसूस करती हैं."

मैंने कोई जवाब नहीं दिया.

"मानस आपके सौतेले भाई है ना? और सीमा आपकी सहेली?"

"जी"

"उन दोनों का कमरा सुहागरात की तरह क्यों सजाया हुआ था?"

"यह आप उन्ही से पूछ लीजिएगा।" मैंने थोड़ा कड़क हो कर जवाब दिया.

"आपके सोमिल से संबंध कैसे थे आप दोनों ने पसंद से शादी की थी या जबरदस्ती हुई थी"

"हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे"

"सोमिल की अपनी कंपनी में किसी से दुश्मनी थी?"

"दुश्मनी तो मैं नहीं कह सकती पर हां कुछ साथी उनकी तरक्की से जलते थे और वह कंपनी के मालिक से उनकी शिकायत किया करते थे"

"क्या आपको लगता है कि इस पैसे के गबन में उन्होंने अपनी भूमिका अदा की होगी"

"मैं यह आरोप नहीं लगा शक्ति पर इसकी संभावना हो सकती है यह आपको ही पता करना होगा"

"क्या नाम है उनका?"

"लक्ष्मण और विकास"

"मैं आपका दुख समझ सकता हूं. अपनी सुहागरात के दिन आनंद की बजाय जिस दुख को आपने झेला है और आपको अपने पति के विछोह का सामना करना पड़ रहा है वह कष्टदायक है, पर धैर्य रखिए हम सोमिल को जरूर ढूंढ निकालेंगे।" वो हमदर्दी भरे स्वर में बोला. वह अभी भी मेरी तरफ देख रहा था।

उसकी हमदर्दी भरी बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए वह उठ खड़ा हुआ और बोला

"आप जा सकती हैं, वैसे भी आप जैसी सुंदर युवती की आंखों में आंसू अच्छे नहीं लगते है..

मुझे उसकी यह बात छेड़ने जैसी लगी पर मुझे बाहर जाने की इजाजत मिल गई थी मैंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया। बाहर मानस और सीमा मेरा इंतजार कर रहे थे मुझे देखकर वह दोनों अंदर की बातें पूछने लगे।

मानस भैया एक बार फिर डिसूजा के पास गए और उसकी अनुमति लेकर कुछ ही देर में वापस आ गए।

हम वापस अपने घर के लिए निकल रहे थे। मैंने मानस और सीमा से डिसूजा के मन में पैदा हुए शक के बारे में बताया। मानस भैया ने कहा

"छाया हमारा प्रेम सच्चा है हमने कोई भी चीज गलत नहीं की है भगवान पर भरोसा रखो सब ठीक होगा"

शाम 4 बजे मानस का घर …
(मैं छाया)
मैं, मानस और सीमा डाइनिंग टेबल पर बैठकर चाय पीते हुए आगे की रणनीति के बारे में बात कर रहे थे तभी मेरे मोबाइल पर ईमेल का अलर्ट आया मैंने मेल देखा उसमें सोमिल की कई सारी फोटो थी उसने अभी भी वही पैंट पहनी थी जो उसने सुहागरात के दिन पहनी थी। मैं बहुत खुश हो गई मानस और सीमा भी उठकर खड़े हो गए मैं मानस भैया के गले लग गई

"सोमिल जिंदा है…. " मैं खुशी से चिल्लाई मानस भैया ने मुझे अपने आलिंगन में भर लिया। एक बार फिर हम तीनों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। सीमा भी आकर हम दोनों से सट गयी। हमने ई-मेल के नीचे संदेश खोजने की कोशिश की…… पर उसमें सिर्फ सोमिल की तस्वीरें थी कुछ तस्वीरों में एक सुंदर सी लड़की भी दिखाई पड़ रही थी जिसे हम तीनों में से कोई नहीं जानता था

मानस भैया ने डिसूजा को फोन लगाना चाहा मैं एक बार फिर डर गई उसका नाम सुनते ही मेरे शरीर में सनसनाहट फैल जाती थी। ऐसा लगता था जैसे मुझे एकांत में पाकर डिसूजा मेरा बलात्कार तक कर सकता था उसकी आंखों में हमेशा हवस रहती थी चाहे वह मुझे देख रहा हो या सीमा भाभी को।

मानस भैया ने वह ईमेल डिसूजा को भेज दी और सोमिल के घर वालों को भी बता दिया। हम तीनों आज खुश थे शर्मा जी और माया आंटी भी हमारी खुशी में शामिल हो गए शर्मा जी बोले..

"चलो सोमिल मिल गया इस बात की खुशी है." मेरी छाया बेटी के चेहरे पर हंसी तो आयी…

आज शर्मा जी ने मुझे पहली बार बेटी कहा था अन्यथा वह मुझे अक्सर छाया ही कहते थे उनकी इस आत्मीयता से मैं प्रभावित हो गई पिछले एक डेढ़ साल में वह लगभग मेरे पिता की भूमिका में आ चुके थे…

मैंने मानस भैया से कहा

"चलिए थोड़ा बाहर घूम कर आते हैं…"

सीमा भाभी बोली

"हां, इसे घुमा लाइए मन हल्का हो जाएगा तब तक हम लोग नाश्ता बना लेते हैं"

कुछ ही देर में मैं मानस भैया के साथ लिफ्ट में आ चुकी लिफ्ट के एकांत ने और जो थोड़ी खुशी हमें मिली थी उसने हमें एक दूसरे के आलिंगन में ला दिया हमारे होंठ स्वतः ही मिल गए और मेरे स्तन उनके सीने से सटते चले गए। मेरे कोमल नितंबों पर उनकी हथेलियों ने पकड़ बना ली...मेरा रोम रोम खुश हो रहा था।

अचानक मुझे सोमिल की फोटो में दिख रही सुंदर युवती का ध्यान आया वह कौन थी मेरा दिमाग चकराने लगा…..
 
भाग-26
(मैं सोमिल)

अपने गर्दन में हुए तीव्र दर्द से मुझे जीवित होने का एहसास हुआ। मैंने स्वयं को बिस्तर पर पड़ा हुआ पाया। खिड़की से आती हुई रोशनी मेरी अचानक वीरान हुई जिंदगी में उजाला करने की कोशिश कर रहा था। मैंने आवाज दी

"कोई है? कोई है?"

कुछ देर बाद कमरे का दरवाजा खुला और एक सुंदर लड़की ने प्रवेश किया उम्र लगभग 22-23 वर्ष रही होगी। उसने एक सुंदर सा स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था।

"जी सर' पानी लाऊं क्या?"

"यह कौन सी जगह है? मैं कहां हूं?

"सर यह सब तो मुझे पता नहीं पर मुझे आपका ख्याल रखने को कहा गया है"

मैंने बिस्तर से उठने की कोशिश की पर तेज दर्द की वजह से उठ नहीं पाया. वह पानी की बोतल देते हुए बोली

"थोड़ा पानी पी लीजिए और चेहरा धो लीजिए आपको अच्छा लगेगा."

मैं उठ पाने की स्थिति में नहीं था मैं कराह रहा था. उसने स्वयं पास पड़ा हुआ नया तौलिया उठाया और उसे पानी से गीलाकर मेरा चेहरा पोछने लगी। मुझे उसकी इस आत्मीयता का कारण तो नहीं समझ में आया पर मुझे उसका स्वभाव अच्छा लगा। एक बार फिर प्रयास कर मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। कमरा बेहद खूबसूरत था कमरे के बीच बेहद आकर्षक डबल बेड लगा हुआ था जिस पर सफेद चादर बिछी हुई थी कमरे की सजावट देखकर ऐसा लगता था जैसे वह किसी 4 स्टार होटल का कमरा हो कमरे से बाहर निकलते हैं एक छोटा हाल था और उसी से सटा हुआ किचन।

"बाथरूम किधर है"

"सर, उस अलमारी के ठीक बगल में"

बाथरूम के दरवाजे की सजावट इतनी खूबसूरती से की गई की मैं उसे देख नहीं पाया था। बाथरूम भी उतना ही आलीशान था जितना कि कमरा।

मुझे इतना तो समझ आ ही गया था कि मुझे यहां पर कैद किया गया है मैंने चीखने चिल्लाने की कोशिश नहीं की क्योंकि इसका कोई फायदा नहीं था।

क्या नाम है तुम्हारा

"जी शांति"

"बाहर कौन है?"

"साहब दो गार्ड रहते हैं. वही जरूरत का सामान लाकर देते हैं"

"तुम यहां कब से आई हो?"

"साहब आपके साथ साथ ही तो आई यह लोग आपको डिक्की में लेकर आए थे। मैं भी उसी गाड़ी में थी।"

"यह लोग आपको यहां किस लिए लाए हैं?"

उसका यह प्रश्न मेरा भी प्रश्न था.मैं निरुत्तर था तभी मुझे बाहर बात करने की आवाज सुनाई दी.

"सर वह होश में आ गया है"

"ठीक है सर"

मेरे कमरे में फोन की घंटी बजी मैंने शांति से कहा

"देखो तुम्हारा फोन बज रहा है"

"सर मेरा फोन तो उन लोगों ने आने से पहले ही ले लिया"

यह मेरा फोन नहीं था पर मैंने जानबूझकर उसे उठा लिया

"सोमिल सर आप ठीक तो है ना?"

"आप कौन बोल रहे हैं?"

"सर आप मुझे नहीं जानते हैं."

"मुझे यहां क्यों लाया गया है?"

"मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकता हूं. पर हां यदि आपको कोई तकलीफ हो तो मुझे बता सकते हैं. आपको जब भी मुझसे बात करनी हो बाहर खड़े गार्ड से बोल दीजिएगा। और हां, यहां से निकलने के लिए व्यर्थ प्रयास मत कीजिएगा। आपका प्रयास आपके लिए ही नुकसानदायक होगा। अभी जीवन का आनंद लीजिए एकांत का भी अपना मजा होता है। आपके घर वाले और परिवार वाले सुरक्षित हैं और कुशल मंगल से हैं। अच्छा मैं फोन रखता हूं।"

" सुनिए.. सुनिए…" मेरी आवाज मेरे कमरे तक ही रह गई मोबाइल फोन का कनेक्शन कट चुका था.

मैंने फोन से छाया का नंबर डायल करना चाहा वही एक नंबर था जो मुझे मुंह जबानी याद था इस नंबर पर यह सुविधा उपलब्ध नहीं है की मुंह चिढ़ाने वाली ध्वनि मेरे कानों तक पहुंची. इसका मुझे अनुमान भी था मैंने फोन बिस्तर पर पटक दिया आश्चर्य की बात यह थी यह फोन नया था और अच्छी क्वालिटी का था मुझे अपने यहां लाए जाने का कारण अभी भी ज्ञात नहीं था।

उधर पुलिस स्टेशन में

(मैं छाया)

डिसूजा ऊपर से नीचे तक मुझे घूर रहा था ऊपर वाले ने मुझे जो सुंदरता दी थी इसका दुष्परिणाम मुझे आज दिखाई पड़ रहा था। उसकी नजरों से मेरे बदन में चुभन हो रही थी। वह मेरे स्तनों पर नजर गड़ाए हुए था। उसने कहा…

"तुम्हारी भाभी भी उस दिन सुहागरात मनाने आई थी क्या?"

मैंने सिर झुका कर बोला

"नहीं वह दोनों हमारे साथ यहां इसलिए आए थे ताकि हम कंफर्टेबल महसूस कर सकें"

"ओह, तो आप अपने भैया और भाभी के साथ कंफर्टेबल महसूस करती हैं."

मैंने कोई जवाब नहीं दिया.

"मानस आपके सौतेले भाई है ना? और सीमा आपकी सहेली?"

"जी"

"उन दोनों का कमरा सुहागरात की तरह क्यों सजाया हुआ था?"

"यह आप उन्ही से पूछ लीजिएगा।" मैंने थोड़ा कड़क हो कर जवाब दिया.

"आपके सोमिल से संबंध कैसे थे आप दोनों ने पसंद से शादी की थी या जबरदस्ती हुई थी"

"हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे"

"सोमिल की अपनी कंपनी में किसी से दुश्मनी थी?"

"दुश्मनी तो मैं नहीं कह सकती पर हां कुछ साथी उनकी तरक्की से जलते थे और वह कंपनी के मालिक से उनकी शिकायत किया करते थे"

"क्या आपको लगता है कि इस पैसे के गबन में उन्होंने अपनी भूमिका अदा की होगी"

"मैं यह आरोप नहीं लगा शक्ति पर इसकी संभावना हो सकती है यह आपको ही पता करना होगा"

"क्या नाम है उनका?"

"लक्ष्मण और विकास"

"मैं आपका दुख समझ सकता हूं. अपनी सुहागरात के दिन आनंद की बजाय जिस दुख को आपने झेला है और आपको अपने पति के विछोह का सामना करना पड़ रहा है वह कष्टदायक है, पर धैर्य रखिए हम सोमिल को जरूर ढूंढ निकालेंगे।" वो हमदर्दी भरे स्वर में बोला. वह अभी भी मेरी तरफ देख रहा था।

उसकी हमदर्दी भरी बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए वह उठ खड़ा हुआ और बोला

"आप जा सकती हैं, वैसे भी आप जैसी सुंदर युवती की आंखों में आंसू अच्छे नहीं लगते है..

मुझे उसकी यह बात छेड़ने जैसी लगी पर मुझे बाहर जाने की इजाजत मिल गई थी मैंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया। बाहर मानस और सीमा मेरा इंतजार कर रहे थे मुझे देखकर वह दोनों अंदर की बातें पूछने लगे।

मानस भैया एक बार फिर डिसूजा के पास गए और उसकी अनुमति लेकर कुछ ही देर में वापस आ गए।

हम वापस अपने घर के लिए निकल रहे थे। मैंने मानस और सीमा से डिसूजा के मन में पैदा हुए शक के बारे में बताया। मानस भैया ने कहा

"छाया हमारा प्रेम सच्चा है हमने कोई भी चीज गलत नहीं की है भगवान पर भरोसा रखो सब ठीक होगा"

शाम 4 बजे मानस का घर …

मैं, मानस और सीमा डाइनिंग टेबल पर बैठकर चाय पीते हुए आगे की रणनीति के बारे में बात कर रहे थे तभी मेरे मोबाइल पर ईमेल का अलर्ट आया मैंने मेल देखा उसमें सोमिल की कई सारी फोटो थी उसने अभी भी वही पैंट पहनी थी जो उसने सुहागरात के दिन पहनी थी। मैं बहुत खुश हो गई मानस और सीमा भी उठकर खड़े हो गए मैं मानस भैया के गले लग गई

"सोमिल जिंदा है…. " मैं खुशी से चिल्लाई मानस भैया ने मुझे अपने आलिंगन में भर लिया। एक बार फिर हम तीनों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। सीमा भी आकर हम दोनों से सट गयी। हमने ई-मेल के नीचे संदेश खोजने की कोशिश की…… पर उसमें सिर्फ सोमिल की तस्वीरें थी कुछ तस्वीरों में एक सुंदर सी लड़की भी दिखाई पड़ रही थी जिसे हम तीनों में से कोई नहीं जानता था

मानस भैया ने डिसूजा को फोन लगाना चाहा मैं एक बार फिर डर गई उसका नाम सुनते ही मेरे शरीर में सनसनाहट फैल जाती थी। ऐसा लगता था जैसे मुझे एकांत में पाकर डिसूजा मेरा बलात्कार तक कर सकता था उसकी आंखों में हमेशा हवस रहती थी चाहे वह मुझे देख रहा हो या सीमा भाभी को।

मानस भैया ने वह ईमेल डिसूजा को भेज दी और सोमिल के घर वालों को भी बता दिया। हम तीनों आज खुश थे शर्मा जी और माया आंटी भी हमारी खुशी में शामिल हो गए शर्मा जी बोले..

"चलो सोमिल मिल गया इस बात की खुशी है." मेरी छाया बेटी के चेहरे पर हंसी तो आयी…

आज शर्मा जी ने मुझे पहली बार बेटी कहा था अन्यथा वह मुझे अक्सर छाया ही कहते थे उनकी इस आत्मीयता से मैं प्रभावित हो गई पिछले एक डेढ़ साल में वह लगभग मेरे पिता की भूमिका में आ चुके थे…

मैंने मानस भैया से कहा

"चलिए थोड़ा बाहर घूम कर आते हैं…"

सीमा भाभी बोली

"हां, इसे घुमा लाइए मन हल्का हो जाएगा तब तक हम लोग नाश्ता बना लेते हैं"

कुछ ही देर में मैं मानस भैया के साथ लिफ्ट में आ चुकी लिफ्ट के एकांत ने और जो थोड़ी खुशी हमें मिली थी उसने हमें एक दूसरे के आलिंगन में ला दिया हमारे होंठ स्वतः ही मिल गए और मेरे स्तन उनके सीने से सटते चले गए। मेरे कोमल नितंबों पर उनकी हथेलियों ने पकड़ बना ली...मेरा रोम रोम खुश हो रहा था।

अचानक मुझे सोमिल की फोटो में दिख रही सुंदर युवती का ध्यान आया वह कौन थी मेरा दिमाग चकराने लगा…..
 
भाग -27
मंगलवार ( दूसरा दिन)
सोमिल का कैदखाना( शाम 5 बजे)
[मैं सोमिल]

मैंने खिड़की से बाहर देखा शाम हो रही थी खिड़की की सलाखों के पीछे जंगल का खुशनुमा माहौल था पंछी अपने घरों को लौट रहे थे और मैं यहां इस एकांत में फंसा हुआ था. भगवान ने मेरे साथ यह अन्याय क्यों किया था मैं खुद भी नहीं जानता था। मुझे यह भी नहीं पता था कि मेरी पत्नी छाया किस अवस्था मे है। उस रात सीमा के साथ मुझे अपने वचन को पूरा करना था पर निष्ठुर नियति ने मेरे सपने चकनाचूर कर दिये थे।

तभी शांति चाय लेकर मेरे कमरे में आई। यह लड़की मेरे लिए एक और आश्चर्य थी। वह एयर होस्टेस की तरह खूबसूरत थी और उतनी ही तहजीब वाली वह हर बात बड़े धीरे से बोलती उसकी चाल ढाल में भी शालीनता थी। उसे किसने मेरी सेवा में यहां भेजा था यह प्रश्न बार-बार मुझे चिंतित कर रहा था।

"सर, चाय पी लीजिए अच्छा लगेगा" वह चाय के साथ कुछ बिस्किट भी ले आई थी."

वह दो कप चाय लेकर आई थी मुझे लगा शायद वह एक कप अपने लिए भी लाई थी मैंने उसे बैठने के लिए कहा वह बिस्तर के सामने पड़े सोफे पर बैठकर चाय पीने लगी।

मैंने उससे पूछा तुम यहां मेरे साथ क्यों आई।

"वह मेरा भाई है ना, उसने कहा तुम्हें जंगल में एक साहब का एक महीने तक ख्याल रखना है. तुम्हें खूब सारे पैसे मिलेंगे मुझे पैसों की जरूरत थी तो मैं आ गई." वह मुस्कुरा रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह स्वेच्छा से और खुशी-खुशी यहां आई है। एक महीने की बात सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

"शांति ने अलमारी खोलकर मेरे लिए एक सुंदर सा पायजामा कुर्ता निकाला और बिस्तर पर रख दिया सर आप नहा कर कपड़े चेंज कर लीजिए" मैं आपके लिए खाना बना देती हूं वह किचन की तरफ चल पड़ी..

मैं अभी भी अपने पुराने कपड़े ही पहने हुए था मुझे नहाने की तीव्र इच्छा हुई शावर के नीचे गर्म पानी की फुहार में नहाते हुए मैं यहां लाए जाने का कारण सोच रहा था। अचानक मुझे शांति का ध्यान आया वह लड़की कितनी निडर और निर्भीक थी जो एक अनजाने पुरुष का ख्याल रखने यहां तक आ गई थी। निश्चय ही बाहर खड़े गार्ड उसकी सुरक्षा करते पर फिर भी यह उस सुंदर लड़की के लिए एक कठिन कार्य था। उसकी सुंदरता को ध्यान करते हुए मुझे अपने लिंग में उत्तेजना महसूस होने लगी। मैने अपना ध्यान भटकाया और स्नान करके कमरे में वापस आ गया मैंने तोलिया पहनी हुई थी।

बिस्तर पर मेरे अंडर गारमेंट्स नहीं थे मैंने शांति को आवाज दी..

वह कमरे में आ गई

मैंने पूछा "अंडर गारमेंट्स नहीं है क्या?" "सर वह तो उन लोगों ने नहीं दिया"

"गार्ड से बोलो कहीं से लेकर आए" वह बाहर चली गई

सर उन्होंने कहा है वह कल लाने का प्रयास करेंगे.

मैं सिर्फ तौलिया पहने हुए था मुझे अपनी नग्नता का एहसास था मैं शांति के सामने ज्यादा देर इस तरह नहीं रहना चाहता था। मैंने पजामा और कुर्ता वैसे ही पहन लिया बिना अंडरवियर के मैं असहज महसूस कर रहा था मेरा लिंग वैसे भी सामान्य पुरुषों से बड़ा था। मैं बिस्तर पर बैठ गया।

शांति द्वारा बनाया गया खाना बेहद स्वादिष्ट था उसने आज चिकन की डिश बनाई थी मैं खुद भी आश्चर्यचकित था की यह कौन व्यक्ति है जिसने हमारे खाने पीने का इतना भव्य प्रबंध किया हुआ है। मुझे भूख लगी थी मैंने पेट भर कर खाना खाया। शांति ने मुझे कुछ पेन किलर दवाइयां दी जिसे खाकर मैं जल्दी ही सो गया।

अर्धनिद्रा में जाते हैं मुझे सुहागरात के दिन हुई घटना याद आने लगी। सीमा के जाने के बाद मेरे फोन की घंटी बजी। फोन पर कोई नया नंबर था मैंने फोन उठा लिया। लक्ष्मण ( मेरे आफिस का साथी) ने कहा पाटीदार सर नीचे आपका इंतजार कर रहे हैं। मैं माना नहीं कर पाया।

"ठीक है आता हूं" पाटीदार सर विदेश से बेंगलुरु लौटे थे वह शादी में उपस्थित नहीं हो पाए थे इसलिए मुझे लगा शायद वह मुझसे मिलकर यह बधाई देना चाह रहे हैं. मैं तेज कदमों से चलते हुए लिफ्ट की तरफ आ गया. मैंने छाया को फोन करने की कोशिश की पर कॉल कनेक्ट नहीं हुई। लिफ्ट में पहुंचते ही लक्ष्मण मुझे वहां दिखाई पड़ गया। जल्दी चलो लिफ्ट तेजी से नीचे की तरफ चल पड़ी। रिसेप्शन हॉल में पाटीदार साहब नहीं थे। लक्ष्मण ने हाल में खड़े एक व्यक्ति से पूछा सर कहां गए उसने जबाब दिया

पार्किंग में गए हैं।

लक्ष्मण के साथ साथ में बाहर पार्किंग में आ गया तभी किसी ने मेरी गर्दन पर प्रहार किया और मैं बेहोश हो गया। यही सब याद करते हुए मेरी आँख लग चुकी थी।


पुलिस स्टेशन (शाम 9 बजे, )
हवलदार सत्यनारायण भागता हुआ डिसूजा के कमरे में आया.

"दोनों कमरों से मिले ब्लड सैंपल की रिपोर्ट आ गई है. गद्दे पर से मिले ब्लड सैंपल में वीर्य भी पाया गया है। सत्या ( एक सिपाही) सही कह रहा था वहां सुहागरात मनाई गई थी. उसकी नाक सच में बहुत तेज है वह कुत्ते की माफिक सब सूंघ लेता है।

डिसूजा की आंखों में चमक आ गयी उसने प्रत्युत्तर में कुछ भी नहीं कहा पर उसका कामुक दिमाग षड्यंत्र रचने लगा।

सोमिल की फोटो देखकर वह पहले ही आश्वस्त हो चुका था। सोमिल को जिस कमरे में रखा गया था इससे उसने अंदाजा कर लिया था कि उसका किडनैप किसी विशेष मकसद के लिए किया गया है।

मानस का घर (शाम 9 बजे)
(मैं मानस)

लिफ्ट में छाया को अपनी बाहों में लेकर एक बार फिर मैं उत्तेजित हो गया था इस लिफ्ट में न जाने कितनी बार मेरे राजकुमार और छाया की राजकुमारी ने मुलाकात की थी। अब छाया की राजकुमारी रानी बन चुकी थी और सम्भोग की हकदार थी। मेरा राजकुमार उसकी आगोश में जाने के लिए तड़प रहा था। लिफ्ट को ऊपर से नीचे आने में लगभग 2 मिनट लगते थे छाया के कोमल नितंबों को सहलाते-सहलाते मेरा राजकुमार रानी से मिलने को व्याकुल हो उठा। मैंने छाया की पेंटी सरकाने ने की कोशिश की तभी लिफ्ट के रुकने का एहसास हुआ। मैं और छाया दोनों ही इस अप्रत्याशित रुकावट से दुखी हो गए। लिफ्ट में एक और महिला अंदर आ गई थी मिलन संभव नहीं था। हम दोनों कुछ देर बाहर घूम कर वापस आ गए।

(मैं छाया)

रात 9 बजे मेरे मोबाइल पर फिर एक बार ई-मेल आया। मैं उछलते हुए हुए मानस भैया के कमरे में गई। सोमिल की नई तस्वीरें ईमेल में आई हुई थी पजामे कुर्ते में खाना खाते हुए सोमिल को देखकर ऐसा कतई नहीं लग रहा था कि वह किडनैप हुआ हो। प्लेट में दिख रहा चिकन और होटल का भव्य कमरा इस बात की साफ गवाही दे रहा था।

सीमा ने चुटकी ली

"नंदोई जी मुझसे डर कर भाग तो नहीं गए और वहां होटल में मजे कर रहे है"

मानस भैया ने कहा

"यह सोमिल को फसाने की किसी की चाल हो सकती है. पैसे का गबन हुआ है। इस तरह आलीशान कमरे उसे अय्याशी करते हुए दिखा कर उस पर पैसों के गबन के आरोप को मजबूती दी जा सकती है"

मैं मानस भैया की समझदारी की कायल हो गई मैं प्यार से उनके पास चली गई उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया।

सीमा भाभी को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने कहा

"छाया आज यही सो जाओ वैसे भी हम तीनों को एक साथ वक्त बिताये बहुत दिन हो गए" और उन्होंने मुझेआंख मार दी.

मैं भी आज बहुत खुश थी चलिए हम दोनों नहा लेते हैं तब तक मानस भैया भी नहा लेंगे नहा लेने से नींद अच्छी आएगी मैंने भी उन्हें छेड़ दिया। मैं और सीमा मेरे कमरे में आ चुके थे उधर मानस भैया हम दोनों का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।


बिस्तर पर मेरी दोनों अप्सराएं मेरे अगल बगल थीं। सोमिल के गायब होने से हुए दुख से ज्यादा उसके मिलने की खुशी थी। हम तीनों ही उसकी फोटो देखकर अत्यंत प्रसन्न हो गए थे। ऐसा लग रहा था जैसे वह सकुशल है उसका मिलना हमारे लिए जरूरी था। उसकी सलामती ने आज हमें चैन से सोने की इजाजत दे दी थी। हम तीनों एक दूसरे की बाहों में लिपट रहे थे। छाया हमेशा की तरह हमारे बीच में थी छाया को नग्न करने में जितना मजा मुझे आता था उतना ही सीमा को।

छाया के वस्त्र अलग होते ही उसका यौवन उभर कर आ गया। आज से 2 दिन पहले ही उसने सुहागरात मनाई थी और वह भी अपने सर्वकालिक प्रिय राजकुमार के साथ उन दोनों का अलौकिक प्रेम भरा युद्ध दर्शनीय रहा होगा। राजकुमारी ने रानी बनकर अपनी लज्जा छोड़ी थी पर अपना शौर्य नहीं। राजकुमारी का मुंह खुल गया था पर उसकी अद्भुत कमनीयता कायम थी।

सीमा छाया की रानी को देखकर बेहद प्रसन्न थी। उसने बिना कुछ कहे उसे चूम लिया। रानी के छोटे से मुख को सीमा की जीभ बड़ा करने की कोशिश कर रही थी पर छाया की रानी लगातार अपना प्रतिरोध दिखा रही थी। जीभ के संपर्क में आने से रानी अपना प्रेम रस छोड़ना शुरू कर चुकी मैं उसके स्तनों पर अपने होठों से प्रहार कर रहा था। मेरी छाया दोहरे आक्रमण का शिकार हो रही थी। आज भी हम दोनों उसे हमेशा की तरह पहले इस स्खलित करना चाहते थे पर आज वह सिर्फ जिह्वा और हाथों से खेलते हुए स्खलित नहीं होना चाहती थी।

सीमा यह बात भलीभांति समझती थी कि संभोग का सुख मुखमैथुन और योनि मर्दन से ज्यादा आंनददायक होता है। उसने कुछ देर छाया को उत्तेजित करने के पश्चात मेरे राजकुमार को अपने हाथों में ले लिया और मुझे इशारा किया। छाया की रानी मुंह बाए हुए अपने राजकुमार की प्रतीक्षा कर रही थी।

राजकुमार अपनी प्यारी रानी की आगोश में आ गया मेरी कमर हिलने लगी सीमा अपनी आंखों के सामने यह दृश्य देखकर मुस्कुरा रहे उसने मुझे छेड़ा

"ध्यान रखना वह सोमिल की अमानत है और तुम्हारी छोटी बहन भी उसकी रानी को घायल मत कर देना"

मैं सीमा की बातें सुनकर और उत्तेजित हो गया इस भाई-बहन के शब्द से मुझे सिर्फ और सिर्फ उत्तेजना मिलती थी। इसी शब्द ने मेरा और छाया का विछोह कराया था।कमर की गति बढ़ते ही सीमा मुस्कुराने लगी उसने छाया के होठों पर चुंबन प्रारंभ कर दिया। मेरी प्यारी छाया के चेहरे पर लालिमा थी। आज वह अपनी प्यारी सहेली के सामने संभोग सुख ले रही थी। मेरे और सीमा के प्रयासों से छाया शीघ्र स्खलित हो गई। मैं भी चाहता था की छाया के साथ ही स्खलित हो जाऊं पर मेरा दायित्व मुझे रोक रहा था मेरी पत्नी सीमा मेरी प्रतीक्षा में थी। छाया के स्खलन के पश्चात छाया ने सीमा को उत्तेजित करने का मोर्चा संभाल लिया। मेरा राजकुमार अपनी पटरानी में प्रवेश कर गया कुछ ही देर के प्रयासों में मेरा और सीमा का भी स्खलन हो गया मेरे वीर्य की धार ने मेरी दोनों अप्सराओं को भिगो दिया। हम तीनों इस अद्भुत सुख की अनुभूति के साथ निद्रा देवी की आगोश में चले गए।
 
भाग 28
बुधवार (तीसरा दिन)
मानस का घर (सुबह 8.15 बजे)
(मैं मानस)

सुबह फोन की घंटी बजते ही मेरे मन में एक अनजाना सा डर समा गया. यह लगभग वही समय था जिस समय कल डिसूजा ने फोन किया था।

मैने फोन उठाया , जिसका मुझे डर था वही हुआ यह फोन डिसूजा का ही था मैंने भगवान को मन में याद किया

"यस मिस्टर मानस, आप सोमिल की पत्नी छाया को लेकर सुबह 10:00 बजे पुलिस स्टेशन आ जाइए"

"सर, कुछ मालूम चला क्या?"

"आइए वही बात करते हैं"

उसकी आवाज में तल्खी थी. मुझे एक अनजाना डर सताने लगा। डिसूजा के पास छाया को ले जाने में मुझे हमेशा डर लगता था. छाया जैसी कोमलांगी और सुंदर नवयौवना को देखकर उसकी आंखों में जो हवस आती थी वह डराने वाली थी। हम मजबूर थे मैंने यह बात छाया और सीमा को बताई छाया डर के मारे रोने लगी।

मैंने उसे अपने सीने से लगाया और समझाया। सीमा ने कहा मैं भी चलूंगी साथ में। एक बार हम तीनों फिर तैयार होकर पुलिस स्टेशन के लिए निकल पड़े। छाया ने आज बिल्कुल सादे कपड़े पहने थे। उसने सलवार कुर्ता पहना था और दुपट्टा भी ले लिया था। वह पूरी तरह अपनी कामुकता को छुपाना चाहती थी और सादगी से वहां जाना चाहती थी। वह डिसूजा की आंखों में हवस देख चुकी थी और उसे किसी भी तरह बढ़ाना नहीं चाहती थी।

यह मेरी वही छाया थी जिसे कामुकता जी भर कर पसंद थी। वह अपनी कामुक हंसी और अदाओं से आस पास के लोंगों को हमेशा उत्तेजित करके रखती थी। पर आज वह स्वयं डरी हुई थी।

पुलिस स्टेशन जैसे-जैसे करीब आ रहा था हम तीनों का डर बढ़ता जा रहा था। छाया मेरे से चिपकती जा रही थी और उसकी गर्दन झुकी हुई थी।

पुलिस स्टेशन आ चुका। कुछ ही देर में हम तीनों डिसूजा के ऑफिस में थे

जंगल का कैदखाना ( सुबह 4 बजे)
(मैं सोमिल)

जल्दी सो जाने की वजह से मेरी नींद रात में ही खुल गई मैंने देखा शांति सोफे पर सो रही थी। उसने अपने ऊपर एक चादर डाल रखी थी जो उसके पैरों से हट गई थी। कमरे में इतनी ठंड नहीं थी की चादर ओढ़ने की जरूरत पड़े । मुझे लगता था शांति ने स्वयं को ढकने के लिए चादर का उपयोग किया था ठंड से बचने के लिए नहीं।

मुझे इस तरह उसे सोफे पर देखकर दया आ रही थी पर मैं उसे बिस्तर पर आने को नहीं कह सकता था। वह युवा लड़की थी मैं पशोपेश में था सोफा इतना बड़ा भी नहीं था जिस पर मैं आराम से सो जाता और उसे बिस्तर पर सुला देता। मैं कुछ देर यूं ही बिस्तर पर जागता रहा बाहर जाने का कोई उपाय नहीं था मुझे सुबह होने का इंतजार करना था।

इसी दौरान मोबाइल पर मेरी नजर पड़ी। मैंने टाइम पास करने के लिए मोबाइल उठा लिया। मोबाइल में कोई नंबर सेव नहीं था। मोबाइल खंगालने पर मुझे कुछ मीडिया फाइल दिखाई पड़ी मैंने उसे प्ले कर दिया। वह पोर्न फिल्म थी। कमरे में अचानक आह... ऊह...की आवाजें आने लगी मैं घबरा गया. शांति कमरे में ही थी।

मैंने किसी तरह मोबाइल को बंद किया तब तक शांति करवट ले चुकी थी। उसकी चादर अब नीचे गिर चुकी थी। शांति की नाइटी से उसके पैर झांक रहे थे। जितना ही मैं नजर हटाता उतनी ही मेरी नजर उसकी तरफ जाती। उसकी पीठ मेरी तरफ थी वह करवट लेकर लेटी हुई थी । पीछे से उसके नितंबों और जांघों का आकार भी स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। स्त्रियों के शरीर की बनावट करवट लेकर सोने पर स्पष्ट दिखाई पड़ती है। मेरे लिंग में न चाहते हुए भी उत्तेजना आ चुकी वह पूरी तरह खड़ा हो गया था।

मैं बिस्तर पर बैठा उसे सहला कर शांत करने लगा पर जितना ही मैं उससे सहलाता था वह उतना ही उत्तेजित होता। अंततः मैंने उसे अपनी हथेलियों से जकड़ कर अपने लिंग का मान मर्दन करना शुरू कर दिया। उसे झुकाने के प्रयास में मेरे हाथों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी। मेरी हथेलियों की विजय होने ही वाली थी पर शायद बिस्तर पर हो रही हलचल से शांति की नींद खुल गई। वह उठ खड़ी हुई...

"सर कोई दिक्कत है?" उसने कमरे में लगी बड़ी लाइट जला दी कमरे अब पूरी तरह प्रकाश हो गया।

मैंने फुर्ती से बगल में पड़ा हुआ तकिया उठाकर अपनी गोद में ले लिया मैं अपनी यह उत्तेजित अवस्था उसे बिल्कुल नहीं दिखाना चाहता था वह शर्मसार हो जाती और मैं भी।

सुबह के 4:00 बज रहे थे।

सर क्या मैं आपका बाथरूम यूज कर सकती हूं..

मुझे थोड़ा अनकंफरटेबल महसूस हुआ मैंने कहा "कोई और बाथरूम नहीं है क्या?"

"नहीं सर' आपको दिक्कत होगी तो मैं बाहर चली जाऊंगी खुले में" उसके चेहरे पर तनाव आ गया था।

कितनी सुंदर और युवा लड़की का बाहर खुले में जाना मुझे कतई गवारा नहीं था बाहर 2-2 गार्ड भी थे. मनुष्य में हवस कभी भी जाग सकती है। मैंने उसे बाथरूम प्रयोग करने की इजाजत दे दी। वह बाथरूम में जा चुकी थी कुछ ही देर में मुझे शीशश….सुसु…..ररररर .की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी। कमरे की असीम शांति में यह ध्वनि और भी स्पष्ट थी। हर पुरुष इस ध्वनि को भलीभांति पहचानता है और उसके मन में ध्वनि स्रोत की एक झलक अवश्य बन जाती है।

मैं अपने मन में जाग रही कामुकता को रोक रहा था और नीचे मेरा लिंग विद्रोह पर उतारू था। इस मधुर ध्वनि से वह और भी तन गया था। दिमाग में आए विचारों को वह जाने वह कैसे पढ़ लेता था। मेरी हालत खराब होने लगी अब मैं उसे सहला भी नहीं सकता था।

कुछ ही देर में शांति बाहर आ चुकी थी

"सर, चाय पिएंगे?

मैंने सहमति में सर हिला दिया

"ठीक है मैं आपके लिए चाय ले आती हूं" वह किचन की तरफ जाने लगी मैंने आवाज देकर कहा शांति दरवाजा बंद कर देना. उसने दरवाजा सटा दिया. मेरे मन में आया उठकर दरवाजा अंदर से बंद कर लूँ और आराम से अपना हस्तमैथुन पूरा कर लूँ पर ऐसा करना मुझे ठीक नही लगा।

मैं बिस्तर पर बैठा रहा और शांति के चाय लेकर आने का इंतजार करता रहा। मेरा ल** अभी भी वैसे ही तना हुआ था। मैंने ऐसी उत्तेजना पहले कभी महसूस नहीं की थी।

मैं अपने ल** को हाथों से हल्का हल्का सहला रहा था।

कुछ ही देर में शांति चाय लेकर आ गई हम दोनों ने चाय पी और इधर उधर की बातें करने लगे। आने वाले समय मेरे लिए कठिन हो रहा था। शांति का साथ अब मेरे लिए उत्तेजना का विषय हो चुका था। जितना ही मैं उससे ध्यान भटकाता उतना ही मेरा ध्यान उसकी तरफ जा रहा था। जाने प्रभु ने मेरे भाग्य में क्या लिखा था?

बाहर दरवाजे पर हुई खटपट से शांति कमरे से बाहर चली गई और बाहर गार्डो से बात करने लगी।

मैं मौका देख कर बाथरूम में चला गया जहां सीमा और छाया को याद करते हुए मैंने अपना हस्तमैथुन पूरा किया पर इस दौरान बीच-बीच में शांति अपने अद्भुत यौवन से अपनी जगह बना रही थी।

पुलिस स्टेशन (सुबह 10.15 बजे)
(मैं मानस)

हमें देखते ही डिसूजा ने कहा

"ओह, तो आप तीनों एक साथ ही चलते हैं"

"नहीं, सर वो छाया अकेली थी ना इसलिए मैं उसके साथ आ गई " सीमा ने सफाई दी

चलिए जब आप यहां आ ही गयी हैं तो छाया जी का साथ दीजिए। उसने आवाज दी

"सत्यभामा इन दोनों को ले जाओ"

"आप बाहर बैठिये।? उसने मेरी तरफ इशारा किया.

मैं छाया और सीमा को कातर निगाहों से देखते हुए उसके कमरे से बाहर आ गया. मुझे इन दोनों को वहां छोड़कर इस तरह बाहर आने में बहुत कष्ट हो रहा था. पर ऐसा लगता था जैसे डिसूजा मन में कुछ सोच कर बैठा हैं। मैं रुवांसा होकर कमरे से बाहर आया और उसके ऑफिस के सामने पड़ी एक बेंच पर बैठकर सोचने लगा।

(मैं छाया)

मानस भैया के जाते ही सत्यभामा ने कहा "सर पूछताछ किससे करनी है" डिसूजा ने मेरी तरफ इशारा किया. सत्यभामा ने कहा "चल" मुझे उसका यह संबोधन बहुत खराब लगा.

वह लगभग 35 से 36 वर्ष की मोटी महिला थी। उसे देख कर ऐसा लगता था जैसे भगवान ने उसे महिला बनाकर गलती की थी जाने वह कौन सा पुरुष होगा जो इस महिला के साथ संभोग करने की सोच सकता होगा।

मैंने सीमा को अपने साथ चलने इशारा किया पर उसने रोक दिया

"तु नहीं, तु वहीं बैठी रह.सिर्फ तू चलेगी" उसका मुझे इस तरह से संबोधित करना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. डिसूजा के कमरे में एक और दरवाजा था वह मुझे उस दरवाजे से लेकर अंदर के कमरे में आ गई। अंदर एक गंदा सा कमरा था जिसमें एक कुर्सी रखी हुई थी। कोने में एक स्ट्रेचर था जिस पर किसी को लिटाया जा सकता था दूसरी तरफ कोने में पुलिस की कुछ लाठियां रखी हुई थी मैं यह दृश्य देख कर डर गई। मैंने इस बारे में सुना जरूर था पर मैं अभागी आज स्वयं इस रूम में थी।

"बैठ" लकड़ी की कुर्सी अत्यंत गंदी थी मैंने उसकी बात अनसुनी कर दी। सत्यभामा ने दरवाजा बंद कर दिया मुझे बहुत डर लग रहा था। उसने पूछा

"क्या नाम है तेरा"

" जी छाया"

" तेरी सुहागरात की उस दिन ?"

"जी"

"क्या हुआ मनाई की नहीं सुहागरात?" मै चुप रही

" मनाई कि नहीं?"

मैं फिर भी नहीं बोली

"बोलती क्यों नहीं?"

" मुझे गुस्सा आ गया मैंने कहा नहीं मैं बेहोश हो गई थी"

"अच्छा तू बेहोश हो गई थी।"

"अच्छा यह बता तू कुंवारी है? या मजा ले चुकी है?

मैं फिर चुप हो गई

"साली बोलती क्यों नहीं?"

"आप मुझसे ऐसे बात मत कीजिए"

वह मेरे पास आई और मेरे कोमल गालों पर एक जोर का चाटा दिया। शायद चाटे की आवाज सीमा ने भी सुन मुझे सीमा की आवाज सुनाई दी

"सर अंदर क्या हो रहा है? यह आवाज कैसी थी?" डिसूजा ने कड़क आवाज में कहा

"घबराइए नहीं, आप का भी नंबर आएगा"

मैं अपनी स्थिति देख कर सुबकने लगी थी।

"अब साफ-साफ बता कुंवारी है या चु**वा चुकी है"

मैं उसकी इस गंदी भाषा से शर्मसार हो गई। मैंने सच बोलना ही उचित समझा

" जी मैं कुंवारी नहीं हूं"

"अब ये भी बता दे तेरी सील उसी दिन टूटी थी या नहीं?"

"जी" मैं उसकी बात नहीं समझ पाई थी

"अरे मेरी फूल कुमारी उसी रात पहली बार चु**वाई थी या पहले भी?"

हम लोगों ने जिस बात को छुपाने के लिए इतना झूठ बोला था वही बात वह सुनना चाहती थी मैंने साफ मना कर दिया

"नहीं, पहले भी"

"देख झूठ मत बोलना उस दिन दूसरे कमरे में बिस्तर पर चुदाई वाला खून और वीर्य दोनों मिला है"

मैं पूरी तरह डर गई । मैं होटल से सुहागरात वाली चादर तो ले आई थी पर मुझे नहीं पता था की हमारे प्रेम के अंश गद्दे तक भी पहुंच गए थे.

वह फिर बोली जा स्ट्रेचर पर लेट जा और अपनी सलवार निकाल ले

मुझे यह उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी मैं चुपचाप सर झुकाए रही। वह मेरे पास आए और मुझे धक्का देते हुए बोली जल्दी खोल नही तो मैं फाड़ दूंगी फिर यहां से तुझे नंगा ही जाना पड़ेगा। कोई चारा न होते हुए मैंने अपनी सलवार उतार दी और स्ट्रेचर पर लेट गयी। वह मेरी नंगी जाँघों की फैलाकर मेरी रानी के होठों को अपनी गंदी उंगलियों से फैलाने लगी।

इतने में दरवाजा खुला वहां खड़े होकर डिसूजा ने आवाज दी क्या हुआ बताया इसने…

कहती है यह पहले से खेली खायी है उस रात इसकी भाभी ने सुहागरात बनाई थी। चल जाने दे ब्लड टेस्ट से ही सामने आ जाएगा

मैं शर्म से पानी पानी हो गई डिसूजा ने इतनी ही देर में ही मेरी नग्नता के दर्शन कर लिए थे। वह मेरी रानी को तो नहीं देख पाया जिसे मैंने अपने कुर्ते से तुरंत ही ढक दिया था पर मेरी गोरी जाँघे उसकी निगाहों से न बच सकीं। डिसूजा अपने होठों पर जीभ फेरते हुए वापस कमरे में लौट गया।

मैं अपनी सलवार पहनकर वापस डिसूजा के कमरे में आ गई थी।

उसमें हम दोनों की तरफ देखते हुए कहा

"देखिए उस दिन दोनों ही कमरों से हमें खून के निशान मिले हैं एक कमरे में तो किसी आदमी का खून हुआ और दूसरे कमरे में.."

"इज्जत का" सत्यभामा की आवाज आई

"वो लड़का तेरा सगा भाई है"

"जी नहीं"

"कभी राखी बांधी है उसको?"

मैं फिर एक बार चुप हो गई.

"दोनों कब से एक साथ रहते हो"

"पिछले चार-पांच सालों से"

डिसूजा ने किसी को फोन किया और कुछ देर में एक लड़का अंदर आया मानस भैया भी उसके पीछे-पीछे अंदर आ गए.

राजू इन तीनों को ले जा और इनका ब्लड सैंपल दिलवा दे और इस लड़के का वीर्य भी टेस्ट करवा देना।

"आप लोग जाइए ब्लड रिपोर्ट आने के बाद बात करता हूं"

हम तीनों डिसूजा के कमरे से डरे सहमे बाहर आ गए.

ब्लड सैंपल देने के बाद मानस भैया ने अपना सीमन भी दिया मुझे लगता है मेरे आने के बाद ऐसा पहली बार हुआ था जब मानस भैया के राजकुमार ने उनके हाथों वीर्य स्खलन कराया हो। मानस भैया ने उस लड़के का नंबर लिया और हम अपने घर आ गये।

हम तीनों यह बात जान गए थे की मानस और मेरे संबंध सार्वजनिक होने में अब सिर्फ ब्लड रिपोर्ट की देर है।
 
जंगल का कैदखाना (सुबह के 9:00 बजे)
[मैं सोमिल]

मैं एक बार फिर खिड़की के पास खड़ा हुआ बाहर प्रकृति के नजारे देख रहा था अद्भुत रमणीय माहौल था. वही पास से एक नदी भी गुजर रही थी काश मेरी छाया यहां होती. मैं अब भी यह बात नहीं सोच पा रहा था कि मुझे यहां पर लाने का क्या प्रयोजन हो सकता है। मैंने गार्ड से कहा

"मुझे तुम्हारे साहब से बात करनी है" कुछ ही देर में कमरे में फोन की घंटी बजी..

"जी सर, क्या बात है?"

"प्लीज मुझे बताइए मुझे यहां पर क्यों लाया गया है"

"सर यह तो मुझे नहीं पता. मुझे आपका ख्याल रखने के लिए कहा गया है. आपको कोई दिक्कत हो तो बताइए."

" मैंने गार्ड से कुछ कपड़े लाने के लिए कहे हैं"

"सर माफ कीजिएगा जहां आप हैं वहां से आबादी बहुत दूर है" मैंने जरूरत के कपड़े वहां पहले ही भेज दिए हैं. प्लीज उनसे ही काम चला लीजिए". वैसे भी आपको उसी कमरे के अंदर ही रहना है कपड़ों की कोई विशेष आवश्यकता नहीं पड़ेगी."

फोन कट हो गया

.उधर शांति गार्ड से भिड़ गई थी सर का अंडर गारमेंट क्यों नहीं लाया. उन दोनों की बातचीत तल्ख हो चली थी। अचानक शांति रोते हुए अंदर आई। उसके होंठ से खून बह रहा था। मैं भागकर बाहर गया पर गार्ड बाहर जा चुका था। मैं वापस शांति के पास आया मैंने पास पड़े तौलिए से उसके होठों पर लगा खून पोछने की कोशिश की।

शांति सुबक रही थी मेरी आत्मीयता भरे व्यवहार से वह मुझसे सटती चली गई। इस बात का एहसास तब हुआ जब उसके कोमल स्तन मेरे सीने से टकराये। मेरे शरीर में करंट दौड़ गई मेरा ल** एक बार फिर उत्तेजित हो गया। इससे पहले कि वह मेरे ल** की चुभन अपने पेट पर महसूस करती। मैंने उसे थोड़ा सा अलग किया।

वह अभी भी सुबक रही थी। मैं उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से सहला रहा था जितना ही मैं उसे छूता मेरा ल** उतना ही तन रहा था। कुछ देर में वह चुप होकर मुझसे अलग हुई और सोफे पर बैठ गई और बोली

"सर, ये लोग बहुत दुष्ट हैं. यह हमारी कोई बात नहीं मानेंगे. मैंने पैसे के लिए इनकी बात मान कर बहुत बड़ी गलती कर दी."

मुझे वह भी मेरी तरह बेबस दिखाई पड़ने लगी. कुछ देर बाद उसने कहा सर आप नहा लीजिए तब तक मैं खाना बना लेती हूँ। मैं बाथरूम में नहाने चला गया उसने एक नया पजामा कुर्ता बिस्तर पर रख दिया था अंडरवियर आज भी नहीं था।

बाथरूम में रखे गए बॉडी शावर जेल और तरह-तरह की खुशबू वाले शैंपू को देखकर मुझे लगा सालों ने इतनी व्यवस्था यहां कैसे कर ली थी मेरा एक अंडरवियर तक तो ला नहीं पा रहे थे।

मेरे बाहर आने के बाद शांति भी नहाने चली गई। बाथरूम के अंदर नहा रही शांति की सुंदर काया मेरे विचारों में घूमने लगी। जब वह बाहर आयी तब मैं उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया। शांति ने मेरी वही सफेद शर्ट पहनी थी जो मैंने सुहागरात के दिन पहनी थी। शांति के शरीर पर एकमात्र वही वस्त्र था। मेरी शर्ट उसके नितंबों के ठीक नीचे तक आ रही थी पर उसकी जांघें स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। वह उन्हें छुपाने की कोशिश कर रही थी पर यह संभव नहीं था। मेरी सफेद शर्ट शांति के शरीर पर जगह-जगह चिपक गई थी। शांति का गोरा रंग शर्ट के अंदर से अपनी चमक बिखेर रहा था। शर्ट विशेषकर उसके स्तनों पर चिपक गई थी जिससे स्तनों का आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। वह मुझे अत्यंत उत्तेजक लग रही थी। उसके होंठ का कट एक दाग जैसा दिखाई पड़ रहा था मैंने अपने इतने करीब किसी सुंदर लड़की को इस तरह कामुक अवस्था मे पहली बार देखा था। मुझे अपने ल** में फिर उत्तेजना महसूस होने लगी। शांति बला की खूबसूरत लग रही थी। यदि वह मेरी छाया होती तो अब तक मैं उसे उठाकर बिस्तर पर ले आया होता आगे क्या होता या आप सोच सकते हैं।

अचानक मैं अपने विचारों से बाहर आया और उससे पूछा

"तुम्हारे कपड़े कहां गए? सर मैं दो नाइटी लेकर आई थी कल एक बाहर सूखने डाली थी गार्ड कहता है वह आंधी में उड़ गई। वही पुराने वाले से काम चलाओ। सर मुझे गंदे कपड़े पहनना बिल्कुल पसंद नहीं है। इसलिए मैंने आपकी यह पुरानी शर्ट पहन ली.मुझे माफ कर दीजिए"

वह बढ़कर मेरी तरफ आने लगी.

मैंने कहा "ठीक है कोई बात नहीं"

मैं उसे इस तरह अपने पास नहीं बुलाना चाह रहा था. वह ड्रेसिंग टेबल के पास चली गई और अपने बाल सवारने लगी मैं उसे पीछे से देख रहा था. उसके नितम्ब मेरी आंखों के सामने अठखेलियां कर रहे थे। उसकी जाँघें पीछे से और स्पस्ट दिखाई दे रहीं थीं। मैं अपनी आंखों से सफेद शर्ट के पीछे उसकी ब्रा और पेंटी खोज रहा था मुझे अभी तक उनके दर्शन नहीं हुए थे। अचानक शांति में ड्रेसिंग टेबल के ऊपर पड़ी किसी चीज को हटाने के लिए अपने हाथ ऊपर किये और मेरी शर्ट ऊपर उठ गयी। मुझे उसके नितंबों के अर्ध दर्शन हो गए। उसके नितंबों का मुझे उतना ही भाग दिखाई पड़ा जितना चतुर्थी के दिन चंद्रमा दिखाई देता है।

उसके साथ ही यह बात भी प्रमाणित हो गई कि उसने पैन्टी नहीं पहनी थी। मैंने किसी लड़की के नग्न नितंब आज पहली बार देखे थे। मेरा ल** पूरी तरह विद्रोह करने पर उतारू था। ऐसा लगता था यदि मैंने उसे उसी समय नहीं सहलाया तो वह उत्तेजना से फट जाएगा।

शांति अपने शरीर पर कभी बॉडी लोशन लगाती कभी अपने बालों पर कंघी करती। उसकी हर गतिविधि में उसके अंग प्रत्यंग मेरी आंखों के सामने नाचते। ऐसी गजब की उत्तेजना मेरे जीवन में पहली बार मिल रही थी। अचानक शांति की कंघी नीचे गिर गई। जैसे वह उसे उठाने के लिए नीचे झुकी मेरी शर्ट एक बार और ऊपर आ गई मुझे उसकी जांघों के जोड़ पर उसकी चू** एक झलक दिखाई दे दी। जब तक मैं उसे देख कर उसके स्वरूप को अपनी निगाहों में कैद कर पाता शांति उठ कर खड़ी हो गयी और मेरी तरफ पलटी। उसने मुझे अपनी तरफ देखते हुए पकड़ लिया था।

उसकी खूबसूरती देखकर मैं दंग रह गया था। आज वह बहुत सुंदर लग रही थी। उसके शरीर पर एक मात्र वस्त्र मेरी शर्ट थी जो उसे और भी खूबसूरत बना रही थी। वह उसके शरीर को ढक कम रही थी उसकी बल्कि उसमें छुपी कामुकता को जगा रही थी। मेरा मन मचलने लगा मैं उसे अपनी बाहों में भर कर उसे प्यार करने की सोचने लगा। मुझे अपने वचन की याद आई मुझे अपना कौमार्य सीमा की चू** में ही तोड़ना था। मेरी सुहागरात के दिन मुझे सीमा के साथ संभोग करना था पर मुझे निष्ठुर नियति ने यहां कैद कर दिया था।

आज फिर मेरे सामने साक्षात रति, शांति के रूप में उपस्थित थी। वह मुझे संभोग के लिए प्रेरित कर रही थी। मुझे नहीं पता शांति के मन में क्या भावनाएं थी।

शांति तैयार होने के बाद खाना बनाने चली गई मैं उसे देखने के लिए तड़प रहा था। मैंने एक दो बार हॉल में आकर किचन की तरफ देखा। उसकी नग्न जाँघें मुझे किचन में जाने के लिए प्रेरित कर रहीं थीं। मैं उसके पास गया और पानी के लिए कहा। उसने मुझे पानी दिया और बड़ी मादक अदा से कहा सर मुझे बुला लिया होता।

उसे क्या पता था मुझे उसे देखना था पानी नही पीना था। मेरी कैद को शांति ने खुशनुमा बना दिया था। वापस आकर मैं बिस्तर पर बैठ गया और अपने मन ही मन शांति के साथ रंगरलिया मनाने लगा। मेरा ल** पूरी तरह उत्तेजित था उसे मेरा इस तरह सहलाना बहुत अच्छा लग रहा था।

शांति आज दिन भर मेरी शर्ट पहन कर रही थी. हम धीरे-धीरे एक दूसरे से बात करने लगे थे मेरे द्वारा सुबह दिखाई गई आत्मीयता से वह मेरे और करीब आ गई थी।

शाम को उसने कौतूहल वश टीवी के नीचे की अलमारी खोली। उसमें शराब की बोतलें देखकर वह आश्चर्य से बोली

"सर, यह देखिए" वह चहक उठी थी। वहां पर रेड वाइन तथा व्हिस्की की कुछ बोतलें रखी थी। शांति ने पूछा

"सर आप लेना पसंद करेंगे" मेरी इच्छा तो थी पर मैंने ना में सर हिला दिया.

वह मायूस हो गई थी उसने कहा ठीक है तब मैं भी नहीं लूंगी. मैं उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित था। यह कैसी सुंदरी थी जो सुरा पान भी करती थी। मैंने फिर कहा ठीक है तुम्हारी इच्छा है तो मैं भी ले लूंगा।

शांति मुझे एक चुलबुली पर संजीदा लड़की लगी थी। सुबह से अभी तक वह सिर्फ मेरे शर्ट में घूम रही थी पर उसने अपनी योनि को मेरी नजरों से बचा कर रखा था। सिर्फ सुबह की एक गलती को छोड़कर जो उससे अनजाने में हो गई लगती थी। हर समय वह अपने दोनों पैरों को सटाए रखती या एक दूसरे के ऊपर चढ़ा कर रखती थी। वह अपनी जांघों को तो मेरी नजरों से नहीं बचा पायी पर अपनी योनि को वह सदैव आवरण देने में कामयाब थी।

कुछ ही देर में वह पूरी व्यवस्था के साथ वापस आ गयी। उसने अपने लिए रेड वाइन निकाली और मेरे ग्लास में भी रेड लाइन डालने लगी। मैंने उसे मना किया मुझे व्हिस्की ही देना उसने रेड लेबल की बोतल निकाल ली और मेरे लिए व्हिस्की का एक पेग बना दिया। हम दोनों अपने-अपने पैग का आनंद लेने लगे वह सोफे पर बैठी थी उसने फिर अपने पैर एक दूसरे पर चढ़ा लिए थे वह किसी भी अवस्था में अपनी चू** (माफ कीजिएगा मैं आगे उसे मुनिया शब्द से संबोधित करूंगा) को मेरी नजरों से बचाना चाहती थी. धीरे-धीरे हम दोनों शराब के सुरूर में आ गए। शांति कुछ ही देर में खाना ले आई। मैं बिस्तर पर बैठकर खाने लगा और वह सोफे पर। अचानक उसके हाथ से खाने की प्लेट सोफे पर गिर पड़ी। वह घबरा गई उसे साफ करने के चक्कर में उसे और गंदा कर दिया। पानी के प्रयोग से सोफा पूरी तरह गीला हो गया था। मुझे लगता है उस पर शराब का नशा हावी था।

मैंने उसे बिस्तर पर बैठने के लिए कहा वह सर झुकाए हुए थी। मुझे उसे देख कर बहुत प्यार आ रहा था। मैंने खाने की प्लेट किचन तक पहुंचाई। और जब तक मैं वापस आता वह बिस्तर पर गिर चुकी थी। उसके पैर अभी भी लटके हुए थे। मेरी शर्ट उसकी मुनिया को बमुश्किल ढकी हुई थी। यदि मैं अपने होठों से उसे फूक मारता तो उसकी मुनिया मेरी आंखों के सामने होती।

पर मुझे यह अच्छा नहीं लगा मैंने उसे आवाज दी

" शांति ..शांति" उसने आंखें खोली और एक बार फिर उठ कर बैठ गयी। मैंने कहा तुम सो जाओ वह उठकर गीले हो चुके सोफे की तरफ जाने लगी। सोफा किसी भी हाल में सोने लायक नहीं बचा था। मुझे उस पर दया आ गई मैंने उसे अपने ही बिस्तर पर एक तरफ सुला दिया। उसने अपनी आंखें कुछ पल के लिए खोली और बोली

" सर आप बहो…...त अच्छे हैं" उसकी आवाज में गजब की मादकता थी। उसकी आंखें बंद हो गई मैने उसे चादर से उसे ढक दिया कुछ ही देर में वह नींद में चली गई। कमरे में इतनी ठंड नहीं थी फिर भी मैंने उसे चादर से ढक दिया था। मुझे पता था जब तक उसे मैं इस अर्धनग्न स्थिति में देखता रहूंगा मुझे नींद नहीं आएगी।

मैं बिस्तर पर लेटा हुआ शांति के बारे में ही सोच रहा था वह एक परी के रूप में इस कमरे में मेरे साथ थी पर क्यों? यह प्रश्न अनुत्तरित था। वासना ने मुझे भी अपने आगोश में ले लिया था। मैं उसके साथ छेड़खानी करना चाहता था। मुझे उसके स्तनों को सहलाने और उसे अपनी बाहों में लेने के लिए तड़प पैदा हो चुकी थी पर हिम्मत नहीं थी। काश वह मेरी सीमा या छाया होती। अब तक हम दो जिस्म एक जान हो गए होते।

मैंने ध्यान भटकाने के लिए फिर मोबाइल हाथ में उठा लिया इस बार मैंने सावधानी से मोबाइल का वॉल्यूम कम किया और उसमें पढ़ी हुई वीडियो क्लिप्स देखने लगा सारी वीडियो क्लिप उत्तेजक ब्लू फिल्म से भरीं थीं। मेरा ल** जो कुछ समय के लिए ढीला हुआ था फिर तन कर वापस खड़ा हो गया मैंने अपने ल** को कुछ देर सहलाया। शराब का नशा मुझ पर आ ही चुका था मुझे भी जल्दी ही नींद आ गई।


पुलिस स्टेशन (शाम 6:00 बजे)
(मैं डिसूजा)

मूर्ति भागता हुआ मेरे कमरे में आया

"सर, सर, उस मरे हुए आदमी का पता चल गया"

" कौन है?"

"सर वह एक कंप्यूटर हैकर है. पहले भी वह फर्जी बैंक ट्रांसफर के मामले में पकड़ा जा चुका है. इंदिरा नगर पुलिस थाने में उसके नाम से दो एफ आई आर दर्ज है. लगभग 3 साल पहले पुलिस ने उसे पकड़ा भी था"

"मूर्ति तुमने बहुत अच्छा काम किया है"

मूर्ति के सफेद दांत काले चेहरे के बीच से दिखाई पड़ने लगे।

मैंने साइबर क्राइम टीम को फोन किया

"एनी अपडेट"

"जी सर, मैं आपको रिंग करने ही वाला था"

"बताइए"

"सर, जिस कमरे में मर्डर हुआ है उसी कमरे से रात 12:00 बजे पैसे ट्रांसफर किए गए हैं। इसमें सोमिल के मोबाइल का भी प्रयोग किया गया है। ऐसा लगता है जैसे किसी कंप्यूटर हैकर ने अकाउंटेंट का पासवर्ड हैक कर लिया है। उसने सोमिल के फोन की ओटीपी और उस पासवर्ड की मदद से पैसे विदेश ट्रांसफर कर दिए हैं।"

"ठीक है सारी रिपोर्ट्स मेरे ऑफिस में भेज दो"

पाटीदार की कंपनी का मुख्य अकाउंटेंट उसका अपना बेटा था जिसने पैसों के गबन की रिपोर्ट लिखाई थी। मुझे यह बात समझ आ चुकी थी के गबन में सोमिल का हाथ नहीं है। होटल के रिसेप्शन में लगे कैमरे की रिकॉर्डिंग से मैंने सोमिल को लगभग 10:00 बजे बाहर निकलते हुए देखा था। उसके बाद सोमिल के होटल में आने का कोई प्रमाण नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे उसे कमरे से बाहर निकाल कर उसके कमरे से ही होटल का इंटरनेट प्रयोग कर किसी ने उस हैकर की मदद से पैसों का गबन किया और अंत में उसे मार दिया।

सोमिल को गायब करवा कर वह इस खून और गबन का आरोप उस पर लगाना चाहता था। मुझे अब सिर्फ उस व्यक्ति की तलाश थी। मेरे पास छाया द्वारा बताए गए दो नाम थे लक्षमन और विकास। मैंने आगे की रणनीति बना ली।

छाया से मिलने का वक्त आ चुका था। मेरी अप्सरा को देखने के लिए मेरी आंखें तरस रही थी। मैं उसका सुख एक बार भोगना अवश्य चाहता था। जो युवती अपने भाई के साथ सहर्ष सुहागरात मना सकती है वह स्त्री कितनी कामुक होगी मुझे इसका अंदाजा लग चुका था।

इस व्यभिचार के लिए मैं मन ही मन तैयार हो गया था। मुझे सिर्फ छाया को रजामंद करना था। मुझे पता था वह मुझे जैसे कुरूप व्यक्ति से कभी संभोग करना नहीं चाहेगी पर मेरे हाथ में जो सबूत थे वह उसे रजामंद करने के लिए काफी थे।

छाया जैसी सुंदरी के साथ रजामंदी से किया गया संभोग स्वर्गीय सुख से कम नहीं होगा मेरा मन बेचैन हो रहा था।
 
भाग 29
बुधवार
मानस का घर [शाम 6:00 बजे]
(मैं छाया)
आज पुलिस स्टेशन में हुई बेज्जती से मैं बहुत दुखी थी. मानस और सीमा भी गुस्से में थे .मानस ने अपने कई दोस्तों और परिचितों को फोन किया पर कोई भी इतना प्रभावशाली नहीं था जो डिसूजा को उसकी औकात पर ले आता. घर में बेचैनी का माहौल था। मेरी मां भी डिसूजा को जी भर कर कोस रही थी पर इन सब का कोई औचित्य नहीं था। वह निरंकुश जैसा व्यवहार कर रहा था.
तभी शर्मा जी मुख्य दरवाजे से अंदर आए मां ने उन्हें सब कुछ बता दिया। उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था. उन्होंने किसी को फोन लगाया और बात करते हुए अपने कमरे में चले गए. अंदर से उनकी आवाज सुनाई पड़ रही थी जिसमें उनके क्रोध की झलक साफ साफ महसूस हो रही थी. वह अत्यधिक उत्तेजित अवस्था में उस आदमी से बात कर रहे थे. कुछ देर बाद वह वापस आये और मुझे अपने पास बुलाया। मैं उनके पास आ गई उन्होंने मुझे अपने से सटा लिया और मेरे माथे को चूम कर बोला
"छाया बेटी कल तक डिसूजा इस केस से बाहर होगा।"
इतना कहते हुए शर्मा जी ने मुझे अपने पास खींच लिया। उनका यह आलिंगन मुझे सामान्य से कुछ ज्यादा लगा। आज उन्होंने मुझे छाया बेटी कहा था इसलिए मैं कुछ गलत नहीं सोच पाई। अन्यथा उस आलिंगन में मेरे स्तन शर्मा जी के सीने से सट गये थे।
यह निश्चय ही पिता पुत्री के आलिंगन से ज्यादा था। मैंने इसकी कल्पना नहीं की थी। मैं तुरंत ही उनसे अलग हो गई वह अपनी कही गई बात पर आश्वस्त थे। उन्होंने कहा
" मेरी होम मिनिस्टर के पीए से बात हो गई है कल मैं उनसे मिलकर डिसूजा को इस केस से हटवा दूंगा। आप लोग निश्चिंत रहिए ।"
मानस और सीमा के चेहरे पर सुकून आ गयी थी। मां भी खुश थी उन्होंने कहा
"आप बैठिए मैं आपके लिए चाय लाती हूँ" हम सभी आपस में बात करने लगे. मैं उनके आलिंगन के बारे में अभी भी सोच रही थी।
आज भी मेरे ई मेल पर सुनील की फोटो आई थी। वह लड़की आज सोमिल के साथ उत्तेजक अवस्था में सोफे पर बैठी हुई थी। उसने सोमिल की वही शर्ट पहनी थी जी उसने सुहागरात के दिन पहनी थी। मुझे उस लड़की की अवस्था आपत्तिजनक लग रही थी। मैंने उसकी फोटो सिर्फ मानस भैया को दिखाई। वह मुझे अच्छे से समझते थे उन्होंने कहा
"छाया मुझे पूरा विश्वास है सोमिल ऐसा नहीं कर सकता। वह निश्चय ही किसी जाल में फंसा हुआ है। तुम निश्चिंत रहो हम इसका हल ढूंढ निकालेंगे।

गुरूवार (चौथा दिन)
जंगल का कैदखाना (सुबह 4 बजे)
(मैं सोमिल)
मैंने शांति के कोमल हाथों को अपने सीने पर पाया। उसके पैर मेरी जांघों पर थे उसका घुटना मेरे ल** से सटा हुआ था। वह सो रही थी। रात में वह मेरे पास कब आ गई मुझे खुद भी पता नहीं चला। मैंने ना चाहते हुए भी करवट ली मेरा चेहरा अब उसकी तरफ हो गया था शायद मेरे हिलने डुलने से उसकी नींद में व्यवधान पड़ा वह थोड़ी देर के लिए हिली और फिर मुझसे और तेजी से सट गई। वह लगभग मुझे आलिंगन में ले चुकी थी उसके स्तन मेरे सीने से सटने लगे थे। उसकी बांहें मेरी पीठ पर आ चुकी थी। वह अपने एक पैर को मेरी दोनों जांघों के बीच रखने का प्रयास कर रही थी। मुझे भी उसका इस तरह पास आना अच्छा लग रहा था। मेरे हाथ उसकी पीठ पर चले गए। हम दोनों पूरी तरह एक दूसरे के आलिंगन में आ चुके थे।
मैं जाग रहा था और वह सो रही थी। मेरा ल** तन कर खड़ा हो गया था। शांति के स्तन अब मेरे सीने को पूरी तरह छू रहे थे। वह जब भी हिलती उसके निप्पलों की चुभन मेरे सीने पर महसूस होती। उसके निप्पल कड़े थे मेरे सीने पर उनकी ताकत महसूस महसूस हो रही थी।
मेरी हथेलियों ने बिना मेरे आदेश के शांति को अपने करीब खींच लिया मेरा ल** अब उसके पेट से सट रहा था और निश्चय ही उसे चुभ रहा होगा।
अचानक शांति ने अपना हाथ मेरी पीठ पर से हटाया और नीचे ले जाकर मेरे ल** के सुपारे पर रख दिया उसके कोमल हाँथ का स्पर्श पाकर ल** में अजीब सी संवेदना हुई। आज कई वर्षों बाद मेरे ल** पर किसी लड़की का हाथ लगा था। ऐसा लग रहा था उसकी नसें फट जाएंगी। मैंने अपने ल** को और आगे की तरफ धक्का दिया। वह उसके पेट से छू रहा था शांति मेरी उत्तेजना पहचान गई थी। अपने अपने हथेलियों से मेरे ल** को सहलाना शुरु कर दिया ल। वह जैसे जैसे उसे सहलाती मेरा ल** और उत्तेजित होता।
शांति ने धैर्य बनाए रखा वह उसे प्यार से उसी तरह सहलाती रही. मेरे हाथ उसके नितंबों को छूने लगे। मेरी शर्ट जाने कब ऊपर की तरफ खींच गई थी। उसके कोमल और मुलायम नितंब मेरी हथेलियों में आते ही मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई ।
उसकी हथेलियों का स्पर्श लगातार मुझे मिल रहा था। कुछ ही देर में मैंने उसे खींचते हुए अपने पेट पर ले लिया। मुझे पता था वह जाग रही थी पर मैंने उससे कोई भी बात करना उचित नहीं समझा। हम दोनों के अंग प्रत्यंग एक दूसरे से मिलने को बेकरार थे। शांति मेरे ऊपर आ चुकी थी उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर के दोनों तरफ कर लिए।
शांति के स्तन मेरे सीने से छू रहे थे। उसके स्तनों का स्पर्श मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहा था। मेरी दोनों हथेलियां उसके नितंबों पर थी और उनकी कोमलता का एहसास कर रहीं थी। मेरा लं** बेताब हो रहा था. दोनों नितंबों के बीच गहराई में मेरी उंगलियां उसके तथाकथित अपवित्र द्वार को भी छू रहीं थी और मेरी उत्तेजना को बढ़ा रहीं थीं।
शांति अपने स्तनों को लगातार मेरे सीने पर रगड़ रही थी। उसका चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल समीप था। शांति की सांसे तेजी से चल रहीं थीं. उसकी कमर कमनीय और पतली थी। अचानक मुझे शांति की मुनिया से बहते हुए प्रेम रस का एहसास मेरे ल** के सुपारे पर हुआ. इस गीलेपन के एहसास से मुझे अत्यंत उत्तेजना हुई. हथेलियों में जो अब तक शांति के स्तनों को सहला रही थी अचानक उन्हें मसलना शुरू कर दिया.
शांति अपनी कमर पीछे ले जा रही थी। मैंने आंख खोल कर देखा शांति की आंखें बंद थी। मैंने भी इस स्थिति का आनंद लेते हुए आंखें बंद कर लीं। शांति की कोमल मुनिया का एहसास मेरे ल** के सुपारे पर हो रहा था। शांति धीरे-धीरे पीछे आ रही थी और मेरा लं** उसके मुख में प्रवेश कर रहा था. उसने अपनी कमर एकाएक पीछे कर दी और मेरा ल** उसकी गहराइयों में उतर गया । मुझे सीमा को दिए हुए वचन की याद आई। मैं कांपने लगा मेरा वचन टूट गया ……….
तभी मेरी नींद खुल गई ..…….शांति अभी भी करवट लेकर मेरे से दूर सोई हुई थी. मेरा सुखद स्वपन टूट गया था पर मेरा सीमा को दिया बचन सुरक्षित था। मैं खुश था और शांति को देख कर मुस्कुरा रहा था।
यह तय था कि मेरा प्रथम संभोग सीमा के साथ ही होगा. आखिर वह वही सीमा थी जिसने मेरे लं**की दो-तीन वर्षों तक सेवा की थी. मेरा ध्यान शांति की तरफ गया वह करवट लेकर लेटी हुई थी. उसने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर जाने कब हटा दी थी. मेरी शर्ट उसके नितंबों को ढकने में नाकाम हो रही थी. कमरे में फैली हल्की रोशनी में उसकी जांघें और नितंबों का कुछ हिस्सा स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. यदि वहां थोड़ी और रोशनी होती तो जांघों के जोड़ पर निश्चय ही उसकी मुनिया भी दिखाई पड़ती.
मुझे बाथरूम जाना था मैंने लाइट जला दी बाथरूम से आने के पश्चात मेरी नजर शांति के नितंबों पर पड़ी उसके गोल नितंबों के बीचोबीच उसकी मुनिया के दोनों होंठ दिखाई पड़े. शांति जितनी सुंदर थी उतने ही उसके निचले होंठ. एकदम बेदाग मैंने वैसे भी आज तक स्त्री योनि साक्षात नहीं देखी थी और शांति की योनि देखकर मुझे खुशी हो रही थी. नारी शरीर का यह भाग मेरी कल्पना से ज्यादा खूबसूरत था. मैं उसे कुछ देर यूं ही देखता रहा और बिस्तर पर आ गया मैंने लाइट बंद नहीं की थी. मेरी नजरें उस दिव्य दृश्य से हट नहीं रही थी.
मैं शांति के जगने का इंतजार करने लगा. शायद कमरे की लाइट से उसकी आंखें प्रकाशमय हो गयीं थी. वह अचानक मेरी तरफ मुड़ गयी. मैंने पाया उसके शर्ट के ऊपर के कुछ बटन जाने कब खुल गए थे. उसके दोनों स्तन मुझे दिखाई पड़ रहे थे स्तनों के निप्पल जरूर उस शर्ट से ढके हुए थे परंतु उनका आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था.
मेरी उत्तेजना चरम पर थी मेरा ल** अभी भी खड़ा था. पिछले 15 घंटों से मैं उसे अपने हाथों से सहलाते हुए उसे शांत कर दे रहा था पर अब वह विद्रोह पर उतारू था. शांति सो रही थी मैंने हस्तमैथुन का निर्णय कर लिया. मेरे पास शांति की मुनिया और स्तन दोनों की स्पष्ट छवि थी. मेरे विचारों में अर्धनग्न शांति पूरी तरह नग्न हो चुकी थी. अपने देखे गए स्वप्न में मैंने उसके साथ संभोग भी कर लिया था. मैंने अपनी पलकें बंद कर ली और उसके साथ अपने विचारों में ही संभोग रत हो गया. उसकी मुनिया का स्थान मेरे हाथ ले चुके थे. शांति का मेरे ल** पर उछलना और मेरे हाथों का आगे पीछे होना दोनों में जमीन आसमान का अंतर था पर मुझे आनंद आ रहा था.
अपने विचारों में ही उसकी नग्नता का ही जितना आनंद ले रहा था उतना मेरे ल** के लिए काफी था. मैं आंखें बंद किए इस अद्भुत हस्तमैथुन का आंनद उठा रहा था. जैसे ही मेरा वीर्य स्खलित होने वाला था मेरी आंखें खुल गई. बिस्तर पर उठ कर बैठी हुई शांति को देखकर मेरे होश फाख्ता हो गए. मेरे ल** से वीर्य धारा फूट पड़ी.
जब तक शांति संभल पाती वीर्य की धार अपनी उचाई तय करने के बाद उसके स्तनों पर गिर पड़ी. मेरे लिए वीर्य स्खलन रोक पाना असंभव था. मैंने अपने ल** को शांति के दूसरी तरफ कर दिया. इस अद्भुत और शर्मनाक हस्तमैथुन से मैं शांति से नजरे मिलाने लायक नहीं रह गया था. मैंने कहा "सॉरी शांति" और करवट लेकर अपनी आंखें बंद करके मैं उससे बात कर पाने की स्थिति में नहीं था वह मुस्कुराते हुए बाथरूम की तरह चली गई थी बाथरूम से आती हुई मधुर ध्वनि मेरे कानों तक पहुंच रही थी पर मेरा लं** अब शांत हो चुका था उसे कुछ समय तक आराम की जरूरत थी.


मानस का घर (सुबह 8 बजे)
(मैं मानस)
मेरे फोन पर वही घंटी बजी. मैंने डिसूजा के फोन के लिए अलग घंटी रख ली थी. मैंने फोन उठाया डिसूजा की आवाज आयी
"मिस्टर मानस आपने और छाया ने तो खूब गुलछर्रे उड़ाये है?
"जी, क्या मतलब है आपका?
"मतलब मैं समझा दूँगा आप अपनी छमिया को लेकर थाने पहुंच जाना 12:00 बजे. ध्यान रखना 10:00 नहीं 12:00 बजे."
"क्या हुआ सर? कुछ बताइए तो क्या बात है?"
"तुम लोगों ने उस रात जो किया है उसके सारे सबूत मेरे पास आ गए हैं. मुझे यहां आकर समझाना कि तुम दोनों ने क्या किया था उस रात."
मैं बहुत डर गया. छाया और सीमा किचन में नाश्ता बना रही थीं . मैंने उन्हें आवाज भी और हम तीनों मेरे कमरे में आ गए. मैंने डिसूजा से हुई सारी बातें बता दी. छाया डर के मारे रोने लगी. वह बहुत मासूम थी. हमारा प्यार सच्चा था हमने जो किया था वह गलत नहीं था यह हम तीनों जानते थे पर डिसूजा इस बात को समाज में फैला कर हमारी बेज्जती करना चाहता था. हमारे लिए यह असहनीय हो जाता. आखिर हमें समाज में ही रहना था. हम तीनों बहुत डर गए थे. छाया रोए जा रही थी. मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूमने लगा. वह बोली
"मानस भैया अब हम लोग क्या करेंगे?
मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा
"मेरी छाया चाहे कुछ भी हो जाए हम इस बात को बाहर नहीं आने देंगे. चाहे हमें इसके लिए कुछ भी करना पड़े. यदि डिसूजा ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा चाहे मुझे अपना आने वाला सारा जीवन जेल में ही क्यों न बिताना पड़ा मेरी आंखों में खून आ गया था. मैंने उसके दोनों गालों को सखलाते हुए बोला
" तुम चुप हो जाओ मैं तुम्हें रोता नहीं देख सकता"
छाया मुझसे अमरबेल की तरह लिपट गई थी. सीमा भी उसकी पीठ सहला रही थी और उसके गालों को चूम रही थी. हम तीनों के चेहरे एक दूसरे से सटे हुए थे. सच में यदि ऊपर वाला देखता तो हम तीनों का प्यार देखकर निश्चय ही कोई ना कोई मार्ग हमारे लिए अवश्य बना देता. हमारा प्रेम सच्चा था हम तीनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे।
हम तीनो में से कोई भी नाश्ता करने के पक्ष में नहीं था. हमने बड़ी मुश्किल से अपना समय काटा और पुलिस स्टेशन जाने के लिए तैयार होने लगे. सीमां को मैंने आज जाने के लिए मना कर दिया वैसे भी उसके पेट में दर्द था वह रजस्वला थी.
छाया एक बार फिर सादगी से तैयार हुई उसने सफेद सलवार कुर्ता पहना जिस पर छोटे-छोटे गुलाबी रंग के फूल बने हुए थे. इतनी सादगी भरे कपड़े भी उसके शरीर पर खिल रहे थे. हम दोनों पुलिस स्टेशन की तरफ चल पड़े. मैं स्वयं ही ड्राइव कर रहा था. छाया मेरे बगल में बैठी थी वह आने वाली घटनाओं के बारे में सोच रही थी. उसने मुझसे कहा
"डिसूजा बहुत खराब है वह निश्चय ही मुझे ब्लैकमेल करेगा मैंने उसकी आंखों में हवस देखी है। कहीं उसने मेरे साथ संभोग की मांग रख दी तब?"
छाया की यह बात सोच कर मैं डर गया वह इतनी सुंदर और कोमल थी और डिसूजा इतना भयानक. ऐसा लगता जैसे कोई काला कुत्ता किसी खरगोश के साथ संभोग कर रहा हो. मैं वह दृश्य सोच कर मन ही मन डर गया. मैंने छाया की जांघों पर हाथ रखा और उसे थपथपाते हुए कहा
"छाया घबराओ मत, भगवान हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होने देंगें." हालांकि इसका डर मेरे मन में भी आ चुका था. हम पुलिस स्टेशन पहुंचने ही वाले थे तभी छाया के फोन पर घंटी बजी. शर्मा जी का फोन था..
छाया ने फोन स्पीकर पर कर दिया
"जी"
" छाया बेटी डिसूजा इस केस से बाहर हो गया है. यह केस मिस्टर रॉबिन देखेंगे. भगवान ने हमारी सुन ली."
छाया खुशी से चहकने लगी और बोली
"आप हमारे लिए भगवान हैं डिसूजा को आपने इस केस से हटवाकर हम सबको एक बड़ी मुसीबत से बचा लिया है" "छाया बेटी तुम और माया जी मेरे लिए एक जैसे हो. जितना प्यार में माया जी से करता हूं उतना तुमसे भी करता हूँ. आखिर तुम मेरी बेटी हो."
"डिसूजा ने हम लोगों को 12:00 अपने ऑफिस बुलाया था. हम लोग वहीं जा रहे थे"
"अब वहां जाने की कोई जरूरत नहीं है तुम लोग आराम से रहो में शाम को आकर बात करता हूं"
उन्होंने फोन काट दिया था।

डी आई जी आफिस ( दिन 12.15 बजे)
शर्मा जी डी.आई.जी के ऑफिस में बैठे हुए थे. होम मिनिस्टर ने डीआईजी को जरूरी निर्देश पहले ही दे दिए थे. शर्मा जी बेसब्री से डिसूजा का इंतजार कर रहे थे जिसे डीआईजी ने अपने ऑफिस में बुलवा लिया था. उन्हें अपनी विजय पर गर्व था. उनके इस कार्य ने उन्हें छाया और उनके परिवार वालों की नजरों में महान बना दिया होगा सा उनका अनुमान था. वह घर के मुखिया के रूप में अपना प्रभाव बना सकते थे. कुछ ही देर में डिसूजा भीगी बिल्ली की तरह कमरे में प्रवेश किया
"वह होटल मर्डर वाले केस का क्या हुआ"
"सर लगभग क्लोज होने वाला है जो आदमी मरा था वह कंप्यूटर हैकर है किसी ने उसे पैसों का गबन करने के लिए हायर किया था और काम हो जाने के बाद उसे वही मार दिया. जो आदमी गायब हुआ था सर मुझे लगता है उसे फंसाया गया है क्योंकि उसके कमरे का उपयोग सिर्फ इंटरनेट एक्सेस करने के लिए किया गया है और उसका मोबाइल फोन भी ओटीपी के लिए प्रयोग किया गया है. मैं जल्दी ही उस आदमी का पता लगा लूंगा."
"और कोई बात"
"जी सर, सोमिल का साला भी इस घटना में शामिल हो सकता है……"
"अच्छा डिसूजा एक काम करो तुम यह केस रॉबिन को दे दो" तुम्हें एक जरूरी मिशन पर जाना है. डीआईजी ने उसकी बात बीच मे ही काट दी.
"पर सर मैं एक-दो दिन में यह केस क्लोज कर के चला जाऊंगा"
"नहीं, डिसूजा तुम्हें आज ही इस केस को हैंड वर्क करना होगा और अपने नए मिशन की जानकारी एसपी रामप्रताप से ले लेना."
"सर…."
"ठीक है तुम जा सकते हो.." डिसूजा का मुंह छोटा हो गया था. उसके चेहरे पर तनाव था. वह कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर डीआईजी ने अपना सर झुका लिया था और वह अपने कार्यों में खो गया था.
डिसूजा वापस जा चुका था. मैंने डीआईजी साहब को थैंक यू कहा और बाहर आ गया.
शाम तक रोबिन इस केस के इंचार्ज बन चुके थे वह मेरे पूर्व परिचित भी थे. मैंने डीआईजी साहब से उनका नाम की ही सिफारिश की थी.
शाम को में उनके ऑफिस में उनसे मिला और इस केस से संबंधित सारी जानकारी इकट्ठा की. मेरे लिए आज का दिन बहुत अच्छा था. मेरी माया और छाया दोनों खुशी खुशी मेरा इंतजार कर रहे होंगे ऐसी मुझे उम्मीद थी.
वीरान रास्ता ( दोपहर 2 बजे)
शर्मा जी का फोन कटते ही छाया खुशी से चहकने लगी. वह मुझ से लिपटना चाहती थी पर मैं ड्राइविंग सीट पर था. मैंने अपनी गाड़ी तुरंत दूसरी दिशा में मोड़ ली. अब हम डिसूजा से आजाद थे और शायद पुलिस स्टेशन से भी. शर्मा जी ने वाकई सराहनीय कार्य किया था. हम दोनों ही उनके शुक्रगुजार थे. छाया की खुशी का ठिकाना नहीं था. उसने मुझसे कहा
"मानस भैया आज उसी वीरान जगह पर ले चलिए."
मैं उसकी बात समझ नहीं पाया मैंने उससे पूछा
"कौन सी जगह?"
वह शरमा गई और बोली
"जहां आपने मुझे खुली हवा में ही नग्न कर दिया था"
मैं मुस्कुराने लगा मुझे वह दिन याद आ गया. मुझे छाया की इस अदा पर हंसी भी आ रही थी और मेरे राजकुमार में उत्तेजना भी.
छाया में आज उत्पन्न हुई कामुकता खुशी की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी. आज मेरी छाया पुराने रूप में मुझे दिखाई पड़ी. पिछले तीन-चार दिनों का अवसाद जैसे छूमंतर हो गया था. तभी छाया के मोबाइल पर ईमेल अलर्ट फिर आया. उसमें इस बार भी सोमिल की फोटो थीं. फ़ोटो देखकर छाया की आंखें फटी रह गई. उसने मुझे फोटो दिखाने की कोशिश की. मैंने गाड़ी एक तरफ रोक कर वह फोटो देखी. सोमिल बिस्तर पर नग्न पड़ा हुआ था उसका पायजामा नीचे खिसका हुआ था और राजकुमार से उछलता हुआ वीर्य फोटो में कैद हो गया था. सोमिल की आंखें बंद थी. वह लड़की सोमिल की शर्ट पहने हुए ठीक बगल में बैठी थी और उसे ध्यान से देख रही थी. उस लड़के की नग्न जाँघे और खुले हुए स्तन भी उस फोटो में स्पष्ट दिखाई दे रहे थे.
छाया आज बहुत खुश थी उसने वह फोटो देखते ही कहा "यह फोटो देखकर तो लग रहा है कि सोमिल को भी एक छाया मिल गई है"
मैंने छाया को चूम लिया और कहा
"मेरी छाया इकलौती है और इकलौती ही रहेगी"
मैंने अपनी गाड़ी उस वीरान जगह की तरह घुमा ली. यह वही जगह थी जहां मैं छाया को एक बार लेकर गया था. यह बेंगलुरु शहर से लगभग 10 - 12 किलोमीटर दूर थी तथा मुख्य सड़क से हटकर थी. वहां से नदी का सुंदर नजारा दिखाई पड़ता था. जाने अभी तक बेंगलुरु के प्रॉपर्टी बिल्डरों की नजर वहां तक क्यों नहीं पहुंची थी. मेरे एक दोस्त ने मुझे उस जगह के बारे में बताया था. मैं और छाया उस दिन बहुत खुश थे. छाया के कहने पर हम उस जगह को देखने चले गए वहां का नजारा वास्तव में बहुत खूबसूरत था. छाया उसे देखकर मोहित हो गई. उस दिन उसने हमेशा की तरह स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था. मुझे उससे छेड़खानी करने का मन हुआ कुछ ही देर में वह मेरी बाहों में थी. हम दोनों पास पड़े हुए पत्थर पर बैठ गए थे. छाया मेरी गोद में थी प्रकृति के इस नजारे को देखते हुए वह मेरे राजकुमार को अपने कोमल हाथों से सहला रही थी और मेरी उंगलियां उसकी राजकुमारी को. हमारे होंठ आपस मे एक हो गए थे. एक दूसरे को इस तरह प्रकृति की गोद में स्खलित करने का सुख अद्भुत था.
यही बातें सोचते सोचते हम दोनों एक बार फिर उसी जगह पर आ गए. गाड़ी को किनारे खड़ी करने के बाद हम उसी जगह पर एक बार फिर खड़े थे. वह पत्थर आज भी वहीं पड़ा हुआ हमारे प्रेम की गवाही दे रहा था जिस पर मेरे और छाया के प्रेम रस के कुछ अंश गिरे हुए थे बाकी तो छाया के स्तनों में सुखा लिया था.
छाया शर्माते हुए उसी जगह की तरफ बढ़ रही थी. उसके चेहरे पर एक बार फिर शर्म की लाली आ गई थी. उसे पता था कुछ देर बाद क्या होने वाला था. वह खुद ही स्वेच्छा से वही करने यहां आई थी मैं तो बस उसका साथ दे रहा था. छाया को आगे आगे चलते देख मुझे हंसी आ रही थी. उसके नितंब पीछे से बड़ी अदा से हिल रहे थे. वह सलवार कुर्ता पहने हुए थे और सीधी-सादी लड़की जैसे लग रही थी पर वस्त्रों के अंदर मेरी कामुक छाया थी अद्भुत और बेमिसाल.
वाद अदुतीय प्राकृतिक छटा को निहार रही थी. तभी मेरे हाथ उसकी कमर पर आ गए. वह कुछ बोली नहीं मेरे हाथों में अपना काम करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में छाया की सलवार जमीन पर थी। छाया की पैंटी को सरकाने में मेरी उंगलियों को काफी मेहनत करनी पड़ी. जाने क्या सोचकर उसने इतनी कसी हुई पैंटी पहनी थी. एक पल के लिए मुझे लगा कि उसने डिसूजा से बचने के लिए इतनी टाइट पेंटी पहनी थी पर उसे यह बात नहीं मालूम थी कि डिसूजा संभोग के लिए उसकी इस पैंटी को एक पल में फाड़ देता और उसकी कोमल योनि को तार-तार कर देता.
मेरी हथेलियां उसकी जांघों पर खेलने लगी. धीरे-धीरे वो छाया के निचले होठों को तलाश रही थी. मेरी मध्यमा उंगली ने छाया की रानी के दोनों होठों को अलग किया और स्वयं रानी के प्रेम रस में डूब गई. मैंने अपनी उंगली को होंठों के ऊपर किनारे तक लाया और वह भग्नासा से छूने लगा. छाया ने अपनी कमर पीछे की तरफ कर ली और जांघों को सिकोड़ लिया. वह पूरी तरह उत्तेजित थी. मुझे लगता है रास्ते में वह यहां होने वाले घटनाक्रम को ही सोच रही थी. मैंने उसकी रानी को और ज्यादा तंग करना उचित नहीं समझा मेरी उनलियों की काबिलियत से वह भलीभाँति परिचित थी. मैंने उसके स्तनों का हाल-चाल लेना चाहा. वह भी ब्रा के अंदर कैद थे. छाया ने आज ऐसी ब्रा पहनी थी जिससे उसके स्तनों का आकार दब गया था. छाया ने अपने अंगो को बचाने के लिए व्यूहरचना की थी ऐसा उसने डिसूजा के डर की वजह से किया था।
छाया के स्तनों को आजाद करना जरूरी था वरना वह छाया की इस अद्भुत खुशी में शरीक नहीं हो पाते और मेरा राजकुमार भी उनकी संवेदना पाने के लिए तरसता रहता. मैंने छाया का कुर्ता ऊपर उठाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे कुर्ता ऊपर आ रहा था उसके नितंब कटीली कम,र गोरी पीठ और सफेद ब्रा नजर आने लगी. छाया के हाथ स्वतः ही ऊपर उठते चले गए और कुर्ता बाहर आ गया. छाया अभी भी अपना चेहरा नदी की तरफ की हुई थी मैंने ब्रा के हुक खोलने शुरू कर दिए. मेरी उंगलियों को हुक खोलने में अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ रही थी. आखरी हुक खोलते ही ब्रा एक स्प्रिंग की तरह अलग हो गई. छाया की पीठ पर ब्रा के निशान बन गए थे मैंने उसे अपने हाथों से सहलाया और होठों से चूम लिया. छाया ने स्तनों के आजाद होते ही छाया का रोम रोम खिल उठा. मेरे हाथ उसके स्तनों पर चले गए छाया में मुझे कष्ट न देते हुए अपनी ब्रा को स्वयं ही अपने शरीर से अलग कर दिया. कुदरत की बनाई हुई मेरी खूबसूरत और कमसिन छाया आज प्रकृति की गोद में ही नग्न खड़ी थी और संभोग सुख के लिए प्रतीक्षारत थी.
मैं उसके स्तनों और पेट को सहलाता हुआ सामने की तरफ आ गया. मुझे छाया की खूबसूरत रानी के दर्शन हुए. वह अपने होंठों को एक दूसरे से चिपकाये हुए मुस्कुरा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने भीतर से रिस रहे प्रेमरस को बाहर आने से रोकना चाहती हो. पर इश्क और मुश्क छुपाये नही छुपते. होंठो के बीच प्रेमरस झांक रहा था. मेरी उंगली ने कुछ प्रेमरस रानी के होंठों पर भी लगा दिया था वो चमक रहे थे.
मैंने आज कई दिनों बाद छाया की रानी पर हल्के बाल देखें थे. शायद पिछले दो-तीन दिनों के तनाव में वह अपनी रानी का ख्याल नहीं रख पाई थी अन्यथा छाया के ऊपर और नीचे के होंठो में नियति ने सुंदरता कूट-कूट कर भरी थी. छाया की बाहें अब हरकत में आ रहीं थीं. उसकी उंगलियां मेरी बेल्ट से खेलने लगी राजकुमार बाहर आने के लिए बेताब था. कुछ ही देर में वह छाया के हाथों में अपनी लार टपकाते हुए खेल रहा था. मैं छाया की पीठ और नितंबों को सहला रहा था मैंने पूरे वस्त्र पहने हुए थे और छाया पूर्णता नग्न. हमारे अप्रतिम प्रेम का गवाह वह बड़ा पत्थर निकट ही था. मैंने छाया को अपनी गोद में उठाया और उस पत्थर पर के पास आ गया. मैंने छाया को अपनी गोद में बिठा लिया उसके दोनों पैर मेरी कमर के दोनों तरफ थे और चेहरा मेरी तरफ. मेरा पेंट मेरे घुटनों तक आ गया था. मेरी जांघें नग्न थीं. छाया अपने नितंबों को मेरी जांघों पर टिकाए हुए थी. राजकुमार उसके और मेरे पेट के बीच दबा हुआ था. हमारे होंठ मिलते चले गए. छाया को आज मिली अद्भुत खुशी ने उसमें और जोश भर दिया था यह उसके होठों की गति से स्पष्ट था।
उसके स्तन मेरी शर्ट से टकरा रहे थे मुझे उनकी अनुभूति नहीं हो पा रही थी. मैंने अपनी शर्ट ऊंची कर ली हम दोनों के निप्पल आपस में मिलने लगे. छाया मेरे होठों को बेतहाशा चूमे जा रही थी. हमारी जीभ भी आपस में एक दूसरे को उसी तरह छू रही थी जैसे राजकुमार रानी के मुख्य को छू रहा था. छाया ने अपने पैरों से स्वयं को व्यवस्थित किया हुआ था वह भी। राजकुमार को छेड़ना जानती थी. मुझे मेरा राजकुमार छाया के नटखट पुत्र जैसा लगता था वो दोनों एक दूसरे से बहुत छेड़खानी करते और उतना ही प्यार.
अचानक छाया नीचे की तरफ बैठती चली गई और मेरा राजकुमार रानी की गहराइयों में उतरता गया. छाया की रानी का कसाव अद्भुत था ऐसा लग रहा था जैसे किसी पतली सकरी गुफा में राजकुमार को गहरे दबाव के साथ जाना पड़ रहा था. राजकुमार रानी द्वारा उत्सर्जित प्रेम रस के सहारे बढ़ता जा रहा था और छाया का चेहरा लाल होता जा रहा था. उसके होंठ मेरे होंठ से अलग हो रहे थे. शायद छाया के ध्यान रानी की तरफ था. वह राजकुमार को अपने अंदर बिना दर्द के सजो लेना चाहती थी. राजकुमार के पूरा प्रविष्ट होने के बाद छाया ने चैन की सांस ली. उसने अपनी आंखें खोली और मुझे अपने चेहरे की तरफ देखता पाया. उसमें अपनी पतली उंगलियों से मेरी आंखें बंद कर दी और कहा
"प्लीज आंखें बंद कर लीजिए मुझे शर्म आ रही है" इस चटक धूप में छाया के साथ इस तरह संभोग करना अद्भुत आनंद था. मैंने अपनी पलकें बंद कर ली. छाया की कमर ऊपर नीचे होने लगी. छाया अद्भुत लय में अपनी कमर ऊपर नीचे कर रही थी. राजकुमार रानी के इस तरह आगे पीछे होने से बेहद खुश था. वो उछल उछल कर रानी के अंदरूनी भाग में प्रवेश करता और उसके होंठो तक आता. मेरे दोनों हथेलियां छाया के नितंबों को सहारा दी हुई थीं और उन्हें आगे पीछे होने में मदद कर रहीं थीं. बीच-बीच में मेरी उंगलियां छाया की दासी को भी छू देतीं. ऐसा करते ही छाया के कमर स्थिर हो जाती. मैं उसका इशारा समझ जाता और अपनी उंगलियों को हटा लेता. छाया की कमर फिर हिलने लगती मुझे पता था कि वह तिरछी निगाहों से मुझे देख रही होगी. पर उसने मेरी पलके बंद कर दी थी मैंने उस सुख का अनुभव लेने का विचार त्याग दिया छाया धीरे-धीरे उत्तेजित हो चली थी. मैंने महसूस किया कि छाया की कमर अब ज्यादा ऊपर नीचे नहीं हो रही थी अपितु एक ही जगह पर वह अपनी कमर को तेजी से हिला रही थी. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अपनी भग्नासा को मेरे शरीर के रगड़ रही थी. मैंने उसके स्तनों को सहलाना शुरु कर दिया. अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पओं को दबाते ही छाया कांपने लगी वह स्खलित हो रही थी. मुझे पता था उसने अपनी आंखें बंद कर ली होंगी. मैं उसे स्खलित होते हुए देखना चाहता था वह उस समय बहुत प्यारी लगती थी. मैंने अपनी आंखें खोल दी. छाया का चेहरा लालिमा से दमक रहा था उसने अपन निचला होठ दांत से दबाया हुआ था. मैंने एक बार फिर उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया.
रानी के कंपन लगातार राजकुमार को महसूस हो रहे थे. मैं भी मेरी छाया के साथ-साथ स्खलित होना चाहता था. मैंने भी अपनी कमर तेजी से हिलानी शुरू कर दी. मेरी जांघों के ऊपर नीचे होने की वजह से छाया उछलने लगी. राजकुमार से और बर्दाश्त ना हुआ. इससे पहले कि वीर्य की पहली धार छाया की रानी को भिगोती, छाया ने अपनी कमर ऊपर उठा ली. राजकुमार बाहर आ गया और छाया को भिगोना शुरु कर दिया. मेरी हथेलियों ने राजकुमार को दिशा देने का कार्य बखूबी सम्हाल लिया था.
छाया हंस रही थी और वीर्य की धार से बचने का झूठा प्रयास कर रही थी. वीर्य स्खलन समाप्त होते ही उसने राजकुमार को अपने हाथों में ले लिया और नीचे झुक कर उसे चूम लिया. मैं उसके मुलायम बालों पर उंगलियां फिरता रह गया.
छाया ने अपने वस्त्र पहन ने शुरू किए. सलवार पहनाने में मैंने उसकी मदद की प्रत्युत्तर में मुझे छाया की रानी को चुमने का एक अवसर मिल गया. छाया जोर से हंस पड़ी और मेरे सिर को दूर धकेला. उसकी रानी में संवेदना अभी भी कायम थी. छाया की ब्रा और पेंटी नीचे पड़ी थी जिसे मैंने अपने हाथों में उठा लिया और अपने पैंट की दोनों जेब में रख लिया. हम दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले कार की तरफ बढ़ चले. हमारे चेहरे पर खुशी और सुकून था.
घर पहुंचने पर हमारे कपड़ों की सलवटें और हमारे चेहरे पर खुशी देख कर सीमा ने घटनाक्रम भाप लिया. शर्मा जी ने शायद माया आंटी को भी फोन कर दिया था.
छाया भी मेरे साथ मेरे कमरे में आ गई थी. मैंने उसकी ब्रा और पेंटी अपनी जेब से निकाल कर बिस्तर पर रख दी. सीमा पीछे खड़ी थी वह मुस्कुराने लगी और बोली
"मेरी ननद डिसूजा से तो बच गए पर उसके भैया से बचना मुश्किल है" सीमा स्वयं रजस्वला थी उसे मेरे और छाया के बीच हुए संभोग से कोई आपत्ति नहीं थी. यदि वह स्वस्थ होती तो निश्चय ही हमारा साथ दे रही होती. हम दोनों ने सीमा को अपने आलिंगन ने ले लिया और उसके गालों को चूम लिया. आज का दिन शर्मा जी ने हमारे लिए खुशनुमां बना दिया था।
मानस का घर ( शाम 6:00 बजे)
(मैं मानस)
दरवाजे पर आहट हुई. सीमा ने दरवाजा खोला किसी अनजान व्यक्ति ने उसे एक लिफाफा दिया और तुरंत ही वापस लौट गया. अंदर आने के बाद उसने लिफाफा खोला मैं, छाया और माया जी सीमा के पास ही थे. हम सभी को उतनी ही उत्सुकता थी कि इस लिफाफे में क्या है? लिफाफा खोल कर सीमा ने अंदर पड़े फोटोग्राफ्स बाहर निकाल दिए. यह सभी फोटोग्राफ छाया के थे. कुछ में वह पूर्ण नग्न अवस्था में थी. कुछ फोटो में छाया के साथ मैं भी दिखाई दे रहा था और भी आपत्तिजनक अवस्था में. कुछ फोटो में सीमा भी थी. एक फोटो में छाया और सीमा पूरी तरह नग्न होकर बाथरूम में नहा रहीं थीं । छाया के शरीर पर हल्दी लगी हुई थी. यह स्पष्ट हो गया था यह सारी फोटो विवाह भवन के बाथरूम से लीं गयीं थीं. माया आंटी को हमारे संबंधों की भनक थी उन्होंने यह फोटो देखकर कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया न हीं हमने उन्हें सफाई देने की कोशिश की.
यह कौन व्यक्ति था जिसने बाथरूम में कैमरा लगाया हुआ था? कहीं इसमें कोई साजिश तो नहीं थी? या फिर होटल वाले ने अपनी कामुकता शांत करने के लिए ऐसा किया था.
हम तनाव में आ गए थे।
 
भाग- 30
यह कौन व्यक्ति था जिसने बाथरूम में कैमरा लगाया हुआ था? कहीं इसमें कोई साजिश तो नहीं थी? या फिर होटल वाले ने अपनी कामुकता शांत करने के लिए ऐसा किया था. मुझे बहुत क्रोध आ रहा था. मैंने विवाह भवन के मैनेजर को फोन करने की कोशिश की पर फोन नहीं लगा. मैंने अश्विन को फोन लगाया. (अश्विन मनोहर चाचा का दामाद था जिसकी शादी में हम लोग दो वर्ष पहले शरीक होने गए थे और उसी के बाद से मेरा और छाया का विछोह हो गया था हमारे प्रेम पर हमारा अनचाहा रिश्ता भारी पड़ गया था.) विवाह भवन की सारी व्यवस्था उसी ने की थी.

अश्विन ने फोन उठा लिया था

"जी, मानस भैया"

" तुम मेरे घर आ सकते हो क्या? हमें विवाह भवन चलना है."

"क्या बात हो गयी मानस भैया?"

"यहां आ जाओ फिर बात करते हैं"

"पर भैया मैं तो बेंगलुरु से बाहर हूं"

"ठीक है, मुझे उसके मैनेजर का कोई और नंबर हो तो भेज दो और आने के बाद मुझसे मिलना"

हम समझ चुके थे कि किसी ने बाथरूम में कैमरा लगाया था और वह छाया की नग्न तस्वीरें खींचना चाहता था. हमारी रासलीला के कारण मेरी और छाया की तस्वीरें भी छाया के साथ आ गई थी. हम तीनों ने विवाह भवन में जिस कामुकता का आनंद लिया था फोटो में उसकी एक झलक स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. माया आंटी इन फोटो को देखकर शर्मसार हो रही थी और उन्होंने वहां से हट जाना ही उचित समझा.

तभी मेरी नजर नीचे पड़े खत पर पड़ी. वहां पर हम तीनों ही थे और हमारे बीच कोई पर्दा नहीं था. मैने खत पढ़ना शुरू कर दिया


"प्यारी छाया,

मैंने आज तक जितनी भी लड़कियां देखी है उनमें तुम सबसे ज्यादा सुंदर हो, तुम मेरे लिए साक्षात कामदेवी रति का अवतार हो. मुझे सिर्फ और सिर्फ एक बार तुम्हारे साथ संभोग करना है. मुझे पता है मैं तुम्हारे लायक बिल्कुल भी नहीं हूं पर मन की भावनाएं तर्कों पर नहीं चलती. तुमसे संभोग किए बिना मेरे जीवन की बेचैनी कम नहीं होगी.

मानस के साथ होटल में मनाए गए सुहागरात से मुझे तुम्हारी कामुकता का अंदाजा हो गया है. मानस के साथ निश्चय ही तुम्हारे संबंध पिछले कई वर्षों से रहे होंगे. यूं ही कोई अपने सौतेले भाई के साथ सुहागरात नहीं मनाता.

मैं तुम्हारी इसी अदा का कायल हो गया हूँ. जिस प्रकार तुमने मानस के साथ रहते हुए भी अपने कौमार्य को बचा कर रखा था और उसे अपने विवाह उपरांत ही त्याग किया है मुझे यह बात भी प्रभावित कर गई है. मुझे यह भी पता है कि सोमिल इस समय कहां है और क्या कर रहा है. मेरा विश्वास रखो मैं तुम्हें ब्लैकमेल करना नहीं चाहता हूं पर तुमसे संभोग किए बिना मैं रह भी नहीं सकता हूँ.

तुम कामदेवी हो और अब तुमने अपना कौमार्य भी परित्याग कर दिया है अब तुम्हें किसी पर पुरुष से संभोग से आपत्ति नहीं होनी चाहिए. वैसे भी मैं तुम्हारे लिए इतना पराया नहींहूँ। मुझे सिर्फ और सिर्फ एक बार अपनी उत्तेजना का कुछ अंश देकर मुझे हमेशा के लिए तृप्त कर दो. संभोग के दौरान मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी कामुकता का आनंद लेना चाहता हूं तुम्हें आहत करना नहीं.

उम्मीद करता हूं कि तुम मेरी इस उचित या अनुचित याचना को पूरा करोगी. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं की होटल में हुई सुहागरात की घटना तुम तीनों के बीच ही रहेगी. मैं दोबारा कभी इस बात का जिक्र नहीं करूंगा. मेरे पास तुम्हारे कई सारे नग्न छायाचित्र है भविष्य के लिए तुम्हारी वही यादें ही मेरे लिए पर्याप्त होंगी।

उम्मीद करता हूं कि तुम मुझ पर विश्वास करोगी आज से 2 दिन बाद हमारा मिलन होगा मैं तुम्हें समय और स्थान ई-मेल पर सूचित कर दूंगा. सोमिल स्वस्थ और सामान्य है तथा अपनी कामुकता को जागृत कर रहा है जिसका सुख तुम्हें शीघ्र ही प्राप्त होगा.

मिलन की प्रतीक्षा में

तुम्हारा …..

छाया डरी हुई थी. आज ही वह डिसूजा के चंगुल से छूटी थी और फिर उसी भंवर जाल में फस रही थी. मैं एक बार तो पत्र लिखने वाले की संवेदना का कायल हो गया. उसने छाया की सुंदरता में इतने कसीदे पढ़ दिए थे कि मुझे उससे होने वाली नफरत थोड़ा कम हो गई थी.

पर वह मेरी छाया को भोगना चाहता था वह भी बिना उसकी इच्छा के यह बिल्कुल गलत था. छाया की कामुकता और उत्तेजना का भोग उसकी इच्छा के बिना लगाना नितांत जघन्य कृत्य था. वह काम देवी थी उससे बल प्रयोग करना या उसे बाध्य करना सर्वाधिक अनुचित था.

हमारे मन में तरह-तरह की बातें आने लगीं. माया जी को हमने यह बात नहीं बताई. यह बात हम तीनों के बीच ही थी और इसका निर्णय भी हम तीनों को ही करना था.


(मैं छाया)

शर्मा जी लगभग 8:00 बजे घर लौटे उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी. हम सभी ने उनका भव्य स्वागत किया. सच में आज उन्होंने डिसूजा को इस केस से हटवा कर हम सभी की इच्छा को पूरा कर दिया था. आज वह इस घर के मुखिया के रूप में दिखाई पड़ रहे थे. वह एक बार फिर मेरे पास आये और मेरे माथे को चूम लिया. मेरे दोनों गाल उनकी हथेलियों में थे उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में लेने की भी कोशिश की. मुझे उनका कल का आलिंगन याद था जिसमें मेरे स्तन उनके सीने से सट गए थे. आज सावधानी बरतते हुए मैं आगे झुक गई थी और सिर्फ अपने कंधों को उनके सीने से टकराने दिया.

उन्होंने फिर कहा

"कोई मेरे परिवार पर और खासकर मेरी छाया बेटी पर बुरी नजर डालेगा मैं उसे नहीं छोडूंगा." उनके उदघोष से मां का सीना गर्व से फूल गया था. उन्हें शर्मा जी को अपना जीवनसाथी चुनने पर आज अभिमान हो रहा था. मा ने उन पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. मां को इस खत की जानकारी नहीं थी इसलिए वह बहुत खुश थीं। हम तीनों के चेहरों पर अभी भी तनाव थे. यह बात हमने शर्मा जी से भी बताना उचित नहीं समझा.

(मैं माया)

दो-तीन दिन की तनाव भरी जिंदगी के बाद आज का दिन सुखद था। मेरी बेटी के चेहरे पर आज हंसी दिखाई पड़ी थी। शर्मा जी को मैंने आज अपने हाथों से खिलाया। आज मैं उन्हें हर तरह से खुश करना चाहती थी। मैंने अपनी अलमारी में उत्तेजक वस्त्रों की तलाश की पर मेरे मन मुताबिक कोई भी वस्त्र ना मिला। मैंने छाया की अलमारी से एक सुंदर नाइटी निकाल ली मेरी उम्र के हिसाब से वह कुछ ज्यादा ही कामुक थी। शर्मा जी भी कम कामुक न थे वह बार-बार मुझे ऐसे वस्त्र पहनने के लिए बोलते थे। आज मैंने उनकी मन की इच्छा पूरी करने की ठान ली थी। बच्चों के अपने-अपने कमरे में जाने के बाद मैं नहाने चली गई। जैसे ही मैं बाथरूम से बाहर निकली शर्मा जी मुझे एकटक देखते रह गए। यह ड्रेस वास्तव में बहुत आकर्षक और कामुक थी। मेरा बदन छाया से लगभग मिलता-जुलता था मुझ में उतनी चमक और कोमलता तो नहीं थी पर बदन के उतार-चढ़ाव छाया से मिलते थे। वो मुझे एक टक देखते रह गए। उन्होंने कहा "तुमने छाया की ड्रेस पहनी है ना"

मैं मुस्कुराने लगी वह मेरी चोरी पकड़ चुके थे. उन्होंने उठकर मुझे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे बाल गीले थे मैंने उनसे कुछ समय मांगा पर वह सुनने को तैयार नहीं थे। जब तक मैं अपने बाल हेयर ड्रायर से सुखा रही थी तब तक वह मेरे स्तनों और जांघों से खेलना शुरू कर चुके थे। आज उनकी हथेलियों में गजब की उत्तेजना थी। उनका ल** मेरी नितंबों से लगातार टकरा रहा था वह नाइटी के ऊपर से ही मुझे सहलाए जा रहे थे। कभी-कभी वह उसके अंदर हाथ डाल कर मेरी जांघों को सहलाते। मैं भी उत्तेजित हो रही थी कुछ ही देर में हम दोनों बिस्तर पर थे। उन्होंने कहा

"तुमने छाया की नाइटी पहनी है उसे मालूम चल गया तो?"

"उसे कैसे मालूम चलेगा. मैं सुबह वापस रख दूंगी"

"पर इस नाइटी में तुम मुझे छाया जैसी दिखाई दोगी तो मैं तुमसे संभोग कैसे कर पाऊंगा"

"ठीक है लाइए मैं इसे उतार देती हूँ।" उन्होंने मेरे हाथ रोक लिए उन्होंने पूछा "छाया खुश तो है ना?"

"हां, आज वह बहुत खुश थी. और आपकी बहुत तारीफ कर रही थी"

"मैं भी उसे बहुत मानता हूं और उससे बहुत प्यार करता हूं" इतना कहकर उन्होंने मुझे दबोच लिया. उनके होंठ मेरे होठों को अपने बीच ले चुके थे। उनके लिंग का कड़ापन मेरे पेट को महसूस हो रहा था। उन्होंने फिर कहा

"आज तुम छाया की नाइटी पहन कर और भी जवान हो गई हो"

मेरी नाइटी मेरी कमर तक आ चुकी थी. मैंने उसे बाहर निकालने की कोशिश की पर शर्मा जी ने रोक दिया. वह उसी अवस्था में मेरे ऊपर आ गए और उनका लिंग मेरी योनि में टकरा गया.

आज मैं उन्हें भरपूर सुख देना चाहती थी यह बात सोचते हुए मेरी योनि में पहले से ही पर्याप्त गीलापन आ चुका था। शर्मा जी का लिंग के छूते ही मेरी प्यास बढ़ गई और शर्मा जी ने बिना देर करते हुए अपने लिंग को मेरी गहराइयों में उतार दिया। वह मेरे स्तनों को तेजी से मसल रहे थे और अपनी कमर से लगातार धक्के लगाए जा रहे थे। मैं भी उनकी उत्तेजना में उनका साथ दे रही थी कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं स्खलित हो जाऊंगी। शर्मा जी के रंग ढंग से ऐसा लग नहीं रहा था जैसे उन्हें पूरी संतुष्टि हुई हो। मैंने उन्हें नीचे आने का इशारा किया वह नीचे आ गए मैं उनकी कमर पर बैठकर अपनी योनि को आगे पीछे करने लगी। आज मैं स्वयं बहुत उत्तेजित थी और कुछ ही देर में मैं स्खलित होने लगी।

स्खलित होने के पश्चात उन्होंने मुझे अपने सीने से सटा लिया और मेरे माथे को चूमने लगे। मेरे दोनों गालों को सहलाते हुए वह बार-बार बोल रहे थे

मेरी प्यारी माया और माथे पर झूम रहे थे। मैं हारी हुई खिलाड़ी की तरह उनके पेट पर लेटी हुई थी। मेरी पराजित योनि में उनका लिंग अभी भी गर्व से खड़ा था। वह बार-बार मुझे सहलाए जा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने से उम्र में बड़े आदमी की सीने पर लेटी हुई हूं और वह मुझे बच्चों जैसा प्यार कर रहा है। पर जब मेरा ध्यान मेरी कमर के नीचे जाता मेरी नग्नता उस प्यार की परिभाषा बदल देती थी। शर्मा जी का लिंग अब मेरी योनि में धीरे-धीरे हिलना शुरू हो रहा था कुछ देर बाद शर्मा जी ने मुझे अपने ऊपर से उतरने का इशारा किया। मैं वापस एक बार फिर पीठ के बल लेटने लगी। शर्मा जी बिस्तर से उठ कर नीचे खड़े हो गए वह मुझे डॉगी स्टाइल में आने का इशारा कर रहे थे। आज वह भी पूरे मूड में थे। मैं उन्हें खुश करने के लिए बिस्तर पर डॉगी स्टाइल में आ गई। शर्मा जी ने नाइटी को उठाया और मेरी कमर पर रख दिया मेरे दोनों नितम्ब उनकी आंखों के ठीक सामने थे। नितंबों के बीच से झांक रही मेरी योनि के होंठ भी उन्हें अवश्य नजर आ रहे होंगे।

उनका मजबूत लिंग मेरे नितंबों पर टकरा रहा था। वह कामुक तरीके से मेरी पीठ सहला रहे थे और मेरे नितंबों को चूम रहे थे। अचानक ही उन्होंने मेरी योनि के होठों को चूम लिया मुझे उनसे यह आशा नहीं है आज यह पहली बार हुआ था मेरी योनि एक बार संभोग कर चुकी थी मुझे इस अवस्था में यह कार्य अनुचित लगा मैंने अपनी कमर हिला दी। शायद वह मेरा इशारा समझ गए थे वह वापस खड़े हो गए।

उनके लिंग में आज अद्भुत उत्तेजना थी। कुछ ही देर में लिंग मेरी योनि के मुख से सट गया। मेरी योनि संवेदनशील हो चुकी थी। उसके मुख पर गीलापन अभी भी कायम था। शर्मा जी धीरे-धीरे अपने लिंग का दबाव बढ़ाते गए और वह मेरी योनि में प्रविष्ट होता चला गया। इस अवस्था में शर्मा जी का लिंग मुझे और भी मजबूत और मोटा महसूस हो रहा था। वह मेरे गर्भाशय के मुख तक पहुंच गया था। शर्मा जी अपनी कमर को आगे पीछे करने लगे वह बार-बार मेरी नाइटी को छूते और नाइटी के ऊपर से ही मेरी पीठ को सहलाए जा रहे थे। कभी-कभी वह अपने हाथ नीचे कर नाइटी में ही कैद मेरे स्तनों को छूते। मुझे अद्भुत एहसास हो रहा था। मैं एक बार फिर उत्तेजित हो रही थी। कुछ ही देर में उनके कमर के धक्के बढ़ते गए उनकी लिंग के आने-जाने की गति में अद्भुत इजाफा हो गया था। वह काफी तेजी से अपने लिंग को मेरे योनि में आगे पीछे कर रहे थे। मैं उत्तेजना से कांपने लगी वह मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए थे कुछ ही देर में मैने उनके लिंग को अपनी योनि में फूलता पचकता हुआ महसूस करने लगी इस अद्भुत एहसास से मैं भी स्खलित होने लगी। उन्होंने मेरी कमर को पकड़कर तेजी से अपनी तरफ खींचा और अपने लिंग को पूरी ताकत से अंदर तक ले गए जो मेरे गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश कर रहा था। मैं उनके इस तीव्र उत्तेजना को पहचान गई थी मैंने उन्हें रोका नहीं । मेरी योनि में वीर्य वर्षा हो रही थी जिसकी मुझे अनुभूति भी हो रही थी शर्मा जी के पैर कांप रहे थे और उनका कंपन मुझे अपने नितंबों पर महसूस हो रहा था उनके मुख से धीमी आवाज आई।

छाया…..…………...की नाइटी बहुत सुंदर है मायाजी आप हमेशा ऐसे ही रहा कीजीए।

उनके मुंह से छाया शब्द सुनकर मैं अचानक डर गई पर पूरी बात सुनकर मैं संतुष्ट हो गई थी। छाया की यह नाइटी निश्चय ही उत्तेजक थी। इसने आज मेरी उत्तेजना में आग में घी का काम किया था। मैंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि उनकी खुशी के लिए ऐसे कई सारे वस्त्र अपनी भी अलमारी में रखूंगी।

वह अपना लिंग बाहर निकाल चुके थे मैंने उनके चेहरे की तरफ देखा वह तृप्त लग रहे थे। उन्होंने मुझे एक बार फिर अपने आलिंगन में ले लिया और मेरे दोनों गालों को सहलाते हुए मेरे माथे को चूम लिया।

मैं उनके आलिंगन में कुछ देर वैसे ही खड़ी रही। उन्होंने कहा तुमने और छाया ने मेरे जीवन में आकर मेरी वीरान जिंदगी में रंग भर दिए हैं। मैं भगवान से हमेशा तुम दोनों की खुशी मांगता हूँ और मानस की भी। उन्हें पता था, मानस भी हम दोनों को उतना ही प्यारा था।

(मैं शशिकांत शर्मा उर्फ शर्मा जी)

आज माया से संभोग करके मुझे जीवन का अद्भुत आनंद आया था. छाया की उत्तेजक नाइटी माया पर भी खूब खिल रही थी। यह पिछले 2 वर्षों से हो रहे हमारे मिलन से कुछ अलग था. आज माया ने पूरे तन मन से मुझे स्वीकार कर लिया था। आज उसका यह समर्पण मुझे अत्यंत आत्मीय लगा था और वह मेरे हृदय में आत्मसात हो गयी थी।

मैंने भी डिसूजा को इस केस से हटाकर अपने दायित्व का निर्वहन किया था मैं भगवान को शुक्रिया अदा कर रहा था कि आज मेरे संबंधों की वजह से मैं माया और उसकी बच्ची छाया के लिए कुछ कर पाया था।

संभोग के उपरांत मेरी आंख लग गई

मैंने अपने आप को बादलों में पाया मेरे पैर बादलों में थे पर मैं गिर नहीं रहा था। मैं अपने पैरों से बादलों को हटाता और वह हटकर कुछ दूर चले जाते और अगल-बगल के बादल उस जगह को भरने आ जाते। मुझे अद्भुत आनंद आ रहा था कभी मैं स्वयं को एक किशोर की भांति पाता कभी अपनी वर्तमान उम्र में। चारों तरफ पूर्ण सन्नाटा था पर उस दिव्य दृश्य को देखकर मैं आनंद में डूब गया था तभी अचानक मुझे एक दिव्य स्वरूप दिखाई दिया। मुझे बादलों से एक आकार अपनी तरफ आता हुआ दिखाई पड़ रहा था जैसे-जैसे का आकार मेरी तरफ आता मेरा कोतुहल बढ़ता जाता।

वह एक स्त्री थी जैसे जैसे वह करीब आ रही थी उसकी काया अब दिखाई पड़ने लगी थी पर वह अभी भी विशालकाय थी। सामान्य आकार से लगभग कई गुना विशाल। जैसे-जैसे वा मेरे करीब आती गई मुझे उसका आकार और बड़ा दिखाई पड़ने लगा यह निश्चय हो चुका था कि वह युवती की ही काया थी सफेद बादलों के बीच से गेंहुए हुए रंग की उसकी दिव्य काया अपना अद्भुत रूप दिखा रही थी। कामुक अंगो को बादलों ने घेर रखा था परंतु उस सुंदर काया की कामुकता को रोक पाने में बादल नाकाम हो रहे थे। उसके चेहरे , स्तन, नाभि प्रदेश और जाँघों के योग पर बादलों ने अपना आवरण दे दिया था। उस युवती के पूरे शरीर पर कोई भी वस्त्र नहीं था उसका मुख मंडल प्राकृतिक आभा से दमक रहा था। मैं उसे पहचान नहीं पा रहा था वह मेरे काफी करीब आ चुके थी। अचानक उसके चेहरे पर से बादल हटे मुझे वह कोई देवी स्वरूप प्रतीत हुई । मुझे अपनी गंदी सोच पर घृणा हुई मैं इस दिव्य शक्ति की जांघों और स्तनों पर अपना ध्यान केंद्रित किया हुआ था यह सोचकर मुझे शर्म और लज्जा आने लगी। मेरी गर्दन चुकी थी । तभी उस युवती की गूंजती हुई आवाज आई

"क्या हुआ आपने गर्दन क्यों झुका ली" मैं कुछ उत्तर न दे सका मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे व दिव्य शक्ति नाराज होकर मुझे कोई श्राप न दे दे। मैंने सर झुकाए हुए ही कहा

"मैं आपके दिव्य स्वरुप को नहीं पहचान पाया मेरा ध्यान भटक गया था मुझे क्षमा कर दीजिए"

"क्षमा मत मांगिए आपने कोई गलती नहीं की है जिस दृश्य को आप देखना चाहते थे आपने वही देखा. स्त्री शरीर के वही अंग आप को प्रभावित करते हैं जो आप पसंद करते हैं यदि आपने मेरे स्तनों और जांघों को देखने की चेष्टा की है तो निश्चय ही आपके मन में वासना ने जन्म लिया है. मैं तो स्वयं कामवासना की देवी रति हूं. धरती पर सभी वयस्क पुरुष मुझे ही ध्यान करते हैं कभी-कभी वह अपने साथी में मेरा स्वरूप पा लेते हैं। कभी पूर्ण तृप्त ना होने पर वह अपनी भावनाओं में मुझे याद कर लेते हैं। कभी मैं उनके समीप ही किसी और रूप में विद्यमान रहती हूँ। मैं उनकी कामवासना संतुष्ट करने में पूरी मदद करती हूं। जिन्हें कोई साथी नहीं मिल पाता वह मेरे ही अंगों पर ध्यान केंद्रित कर अपनी वासना की पूर्ति करते हैं और चरम सुख प्राप्त करते हैं"

मैं कामदेवी का विशाल हृदय देखकर गदगद हो गया. मैंने उन्हें प्रणाम किया उन्होंने फिर कहा

"यदि तुम इस प्रकार नतमस्तक रहोगे तो इस अद्भुत दिव्य दर्शन का आनंद कैसे ले पाओगे?"

मैंने अपनी नजरें उठा दीं वह मुस्कुराती हुई साक्षात मेरे सामने थीं। उनके इस विशाल रूप को देख पाने की मेरी क्षमता नहीं थी मैंने फिर एक बार कहा

"आपके इस दिव्य स्वरूप को मेरी आंखें देख पाने में नाकाम हो रही है. मेरी आंखें इस दिव्य रुप के चकाचौंध में दृष्टि हीन हो रहीं हैं कृपया अपना स्वरूप छोटा करें और मुझे दर्शन दें।"

उनका कद छोटा होता चला गया कुछ ही देर में वह सामान युवती की भांति मेरे सामने खड़ी थीं। चेहरे पर अद्भुत नूर था शरीर की बनावट आदर्श थी स्तनों को अभी भी बादल ने घेरा हुआ था पर उनका आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था ऐसा लगता था सांची के स्तूपों को छोटा करके उनके दोनों स्तनों की जगह रख दिया गया हो।सीने से कमर तक आते आते हैं कमर की चौड़ाई अद्भुत रूप से कम हो गई थी और उसके तुरंत ही पश्चात वह बढ़ते हुए उनके नितंब का रूप ले रही थी।

उनकी जाँघें बेदाग और सुडोल थी ऐसी दिव्य काया को मैं ज्यादा देर नहीं देख पाया। मेरी आँखें फिर झुक गई। उन्होंने फिर कहा

"यदि आपकी तृप्ति से हो गई हो तो मैं अंतर्ध्यान ही जाऊं"

" आपसे कोई आपसे कैसे तृप्त हो सकता है मेरी आंखें फिर खुल गई थी उनके चेहरे और शरीर से बादल हट चुके थे सुंदर सुडोल स्तन मेरी आंखों के सामने थे जांघों के जोड़ पर दो खूबसूरत होठ अपने बीच थोड़ी जगह बनाए हुए दर्शनीय थे। नाभि और जांघों के जोड़ के बीच की जगह एकदम सपाट और बेदाग थी। मैं उस अद्भुत काया को निहार रहा था। तभी मेरी नजर देवी के चेहरे पर गए मेरे मुख से निकल गया "छाया"

वह हंसने लगी

अचानक छाया का चेहरा गायब हो गया और वह चेहरा एक दिव्य स्वरुप में परिवर्तित हो गया. जब जब मैं अपना ध्यान चेहरे से हटाता और कामुक अंगो की तरफ लाता मेरे जेहन में कभी वह दिव्य चेहरा आता कभी छाया का चेहरा दिखाई पड़ता। मैंने एक बार फिर चेहरे की तरफ ध्यान लगाया और फिर छाया का ही चेहरा सामने आयाम

मैं इस दुविधा से निकल पाता तभी एक बार गूंजती हुई आवाज फिर आई

"आइए मेरे आगोश में आ जाइए. मैं धरती पर हर जगह अलग-अलग रूपों में उपलब्ध हूं. मेरी उपासना सारी मानव जाति करती है आप भी उनमें से एक हैं।"

मैं धीरे-धीरे उस अद्भुत काया की तरफ बढ़ने लगा। जैसे ही मैं उनके स्तनों को छु पाता मेरी नींद खुल गई।

मैं बिस्तर पर उठ कर बैठ गया। मैं मन ही मन डरा हुआ भी था पर अपने लिंग पर निगाह जाते हैं मेरा डर गायब हो चुका था। वह पूर्ण रूप से उत्तेजित था। शायद यह कामदेवी का ही आशीर्वाद था।


मैं माया जी की नाइटी हटाकर उनके कोमल नितंबों से अपने लिंग को सटा दिया और उन्हें अपने आगोश में लेकर सो गया। यश स्वप्न अद्भुत और अविश्वसनीय था उसने मेरे मन मे प्रश्न उत्पन्न कर दिया था.... क्या छाया कामदेवी रति की अवतार थी....???
 
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