desiaks
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बीच का करीब पन्द्रह दिनों का वक्त राज को मिस्र जाने की तैयारियों में लग गया। वो घड़ी आ ही पहुंची, जब राज को अपने दोस्त सतीश और अपनी खतरनाक मगर हसीन भाभी से विदा लेकर लम्बे समय के लिए बिछुड़ जाना था।
रेलवे स्टेशन तक ज्योति और सतीश उसे छोड़ने पहुंचे थे। सतीश बहुत उदास था और ज्योति काफी दुखी नजर आ रही थी। उनकी पार्टी में सह आदमी थे, इसलिए फर्स्ट क्लास का एक पूरा कम्पार्टमेंट बम्बई तक के लिए बुक करवा लिया गया था, मुम्बई से समुद्री जहाज में यात्र करनी थी।
गाड़ी छूटने में अभी करीब आधा घंटा बाकी था, इसलिए राज, सतीश और ज्योति रिफ्रेशमेंट रूम मैं आ बैठे, ताकि चाय के साथ-साथ बातें भी हो सकें।
"वहां जाकर चिी-पत्र तो लिखी करोगे?" चाय आने के बाद ज्योति ने ट्रे अपनी तरफ सरकाते हुए कहा
"जरूर....नियमित रूप से।" राज ने जवाब दिया।
"लिखोगे?" सतीश ने झुंझला कर कहा, ''पर तुम कभी भी नियमित रूप से पत्र नहीं लिख सकते। मैं तुम्हारी आदतें अच्छी तरह जानता हूं।"
"नहीं राज जी, ऐसी हरकत हरगिज न करना, बर्ना कम से कम मुझे बहुत कष्ठ होगा।" ज्योति ने बड़े मासूम लहजे में कहा।
"नहीं भाभी। यह तो बस यों ही झल्लाहट निकाल रहा है। बर्ना मैं तो खतो-कितावत में बहुत चुस्त आदमी हूं। हर रोज पत्र लिखा करूंगा। एक-एक पत्र के दो-दो जवाब दिया करूंगा।" राज ने हंस कर कहा।
ज्योति भी हंस पड़ी। वो चाय तैयार कर चुकी थी, उसने कप उन दोनों की तरफ सरका दिया।
चाय के दौरान कोई बात नहीं हुई। तीनों खामोशी से चाय पीते रहे। राज ने यह जरूर महसूस किया कि ज्योति की । जादूभरी निगाहें उसके चेहरे का थोड़ी-थोड़ी देर बाद गौर से जायजा लेती रही हैं। जैसे वो राज को परख रही हो या फिर इस लम्बी जुदाई के ख्याल से उसे जी भर कर देख लेना चाहती हो।
उसकी बड़ी-बड़ी खूबसूरत आंखों में आज एक साथ-साथ कई भाव नाच रहे थे। एक तेज चमक, थोड़ी उदासी और थोड़ा सा दुख भी। जैसे वो अपनी आंखों से ही कुछ कहना चाह रही हो, लेकिन किसी वजह से कह न पा रही हो । राज ने घड़ी देखी तो गाड़ी छूटने में सिर्फ दस मिनट रह गए थे।
"दस मिनट रह गए हैं, अब हमे चलना चाहिए।" राज बोला, साथ ही वो उठ खड़ा हुआ। ज्योति और सतीश भी खामोशी से उठ खड़े हुए। ज्योति ने बिल पे किया और तीनों बाहर आ गए।
बाहर निकलते हुए राज ने मूड जरा हल्का बनाने के लिए मजाकिया लहजे में कहा
"भाभी, सतीश मेरा बड़ा प्यारा दोस्त और बड़ी सीधा-सादा आदमी है और सच्चा निष्ठावान भी, बेवकूफी की हद सीधा! इसे मैं आपके भरोसे छोड़े जा रहा हूं, जरा इसका ख्याल रखियेगा।"
"ओह राज, सतीश की तुम चिंता ने करो। ये इतने सीधे सादे भी नहीं हैं जितने कि शक्ल से नजर आते हैं।" ज्योति ने कहा और उन दोनों के दरम्यान में आकर उसने अपने एक हाथ थाम लिया।
उसका नर्स और नाजुक हाथ अपने हाथ में आते ही राज के बदन में झुरझुरी सी आ गई। उसे ऐसा लगा जैसे सैंकड़ों च्यूटियां उसकी रगों में दौड़ने लगी हों।
राज के सारे बदन में ज्योति के गुदाज हाथ की गर्मी लहरें बनकर दौड़ गई थी। बहुत दिनों से राज ज्योति के उस खतरनाक नेकलेस को भूला हुआ था। लेकिन इस वक्त ज्योति का हाथ छूते ही भगवान जाने क्यों, उसकी निगाहें उसके नेकलेस की तरफ उठ गईं।
नेकलेस ज्योति की स्वच्छ, सुराहीदार गर्दन में पड़ा जगमगा रहा था।
रेलवे स्टेशन तक ज्योति और सतीश उसे छोड़ने पहुंचे थे। सतीश बहुत उदास था और ज्योति काफी दुखी नजर आ रही थी। उनकी पार्टी में सह आदमी थे, इसलिए फर्स्ट क्लास का एक पूरा कम्पार्टमेंट बम्बई तक के लिए बुक करवा लिया गया था, मुम्बई से समुद्री जहाज में यात्र करनी थी।
गाड़ी छूटने में अभी करीब आधा घंटा बाकी था, इसलिए राज, सतीश और ज्योति रिफ्रेशमेंट रूम मैं आ बैठे, ताकि चाय के साथ-साथ बातें भी हो सकें।
"वहां जाकर चिी-पत्र तो लिखी करोगे?" चाय आने के बाद ज्योति ने ट्रे अपनी तरफ सरकाते हुए कहा
"जरूर....नियमित रूप से।" राज ने जवाब दिया।
"लिखोगे?" सतीश ने झुंझला कर कहा, ''पर तुम कभी भी नियमित रूप से पत्र नहीं लिख सकते। मैं तुम्हारी आदतें अच्छी तरह जानता हूं।"
"नहीं राज जी, ऐसी हरकत हरगिज न करना, बर्ना कम से कम मुझे बहुत कष्ठ होगा।" ज्योति ने बड़े मासूम लहजे में कहा।
"नहीं भाभी। यह तो बस यों ही झल्लाहट निकाल रहा है। बर्ना मैं तो खतो-कितावत में बहुत चुस्त आदमी हूं। हर रोज पत्र लिखा करूंगा। एक-एक पत्र के दो-दो जवाब दिया करूंगा।" राज ने हंस कर कहा।
ज्योति भी हंस पड़ी। वो चाय तैयार कर चुकी थी, उसने कप उन दोनों की तरफ सरका दिया।
चाय के दौरान कोई बात नहीं हुई। तीनों खामोशी से चाय पीते रहे। राज ने यह जरूर महसूस किया कि ज्योति की । जादूभरी निगाहें उसके चेहरे का थोड़ी-थोड़ी देर बाद गौर से जायजा लेती रही हैं। जैसे वो राज को परख रही हो या फिर इस लम्बी जुदाई के ख्याल से उसे जी भर कर देख लेना चाहती हो।
उसकी बड़ी-बड़ी खूबसूरत आंखों में आज एक साथ-साथ कई भाव नाच रहे थे। एक तेज चमक, थोड़ी उदासी और थोड़ा सा दुख भी। जैसे वो अपनी आंखों से ही कुछ कहना चाह रही हो, लेकिन किसी वजह से कह न पा रही हो । राज ने घड़ी देखी तो गाड़ी छूटने में सिर्फ दस मिनट रह गए थे।
"दस मिनट रह गए हैं, अब हमे चलना चाहिए।" राज बोला, साथ ही वो उठ खड़ा हुआ। ज्योति और सतीश भी खामोशी से उठ खड़े हुए। ज्योति ने बिल पे किया और तीनों बाहर आ गए।
बाहर निकलते हुए राज ने मूड जरा हल्का बनाने के लिए मजाकिया लहजे में कहा
"भाभी, सतीश मेरा बड़ा प्यारा दोस्त और बड़ी सीधा-सादा आदमी है और सच्चा निष्ठावान भी, बेवकूफी की हद सीधा! इसे मैं आपके भरोसे छोड़े जा रहा हूं, जरा इसका ख्याल रखियेगा।"
"ओह राज, सतीश की तुम चिंता ने करो। ये इतने सीधे सादे भी नहीं हैं जितने कि शक्ल से नजर आते हैं।" ज्योति ने कहा और उन दोनों के दरम्यान में आकर उसने अपने एक हाथ थाम लिया।
उसका नर्स और नाजुक हाथ अपने हाथ में आते ही राज के बदन में झुरझुरी सी आ गई। उसे ऐसा लगा जैसे सैंकड़ों च्यूटियां उसकी रगों में दौड़ने लगी हों।
राज के सारे बदन में ज्योति के गुदाज हाथ की गर्मी लहरें बनकर दौड़ गई थी। बहुत दिनों से राज ज्योति के उस खतरनाक नेकलेस को भूला हुआ था। लेकिन इस वक्त ज्योति का हाथ छूते ही भगवान जाने क्यों, उसकी निगाहें उसके नेकलेस की तरफ उठ गईं।
नेकलेस ज्योति की स्वच्छ, सुराहीदार गर्दन में पड़ा जगमगा रहा था।