XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन ) - Page 5 - SexBaba
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XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

उस भयाक दुर्घना को घटे छः महीने बीत गए थे।

सतीश, राज द्वारा तैयार किए गए जहर के तोड़ से बिल्कुल स्वस्थ हो गया था । लेकिन ज्योति की मौत के बारे में और डॉक्टर जय से उसके सम्बंधों के बारे में सूनकर उसका दिल दिल्ली से उचट गया था और उसने मुम्बई जा बसने का फैसला कर लिया था, जहां पहले से ही उसका अच्छा खासा कारोबार थां

सतीश के आग्रज पर राज ने भी दिल्ली में अपनी जायदाद बेच डाली थी और दोनों जिगरी दोस्त मुम्बई आ गये थे। जिस तरह राज, ज्योति की मौत के बाद दिन-रात साये की तरह सतीश के साथ रहा था, उससे सतीश बहुत प्रभावित था और जब राज की वजह से वो मौत के मुंह से निकल आया तो उसके बाद अब वो एक दिन के लिए भी राज से दूर नहीं रहना चाहता था।

पूरी कथा जाने लेने के बाद उसके दिमाग से ज्योति की मौत का सदमा भी दूर हो गया था और अब वो स्वस्थ, प्रसन्न और प्रफुल्ल जीवन गुजार रहा था।

उस दिन शाम बहुत सुहानी थी और राज तथा सतीश चौपाटी की सैर कर रहे थे, उनके एक तरफ मुम्बई की ऊंची
और आलीशान बिल्डिंगे थी और दूसरी तरफ दृष्अि-सीमा तक फैला हुआ नीला समुद्र था। सूरज सागर मे डूब रहा लगता था
और संतरी रंग की किरणें समुन्द्र पर नाच रही थी। बड़ा मोहक सनसेट का दृश्य था।

ठण्डी हवा के नाम झोंके उन दोनों के चेहरो को छूकर गुजर रहे थे और राज को ऐसा महससू हो रहा था जैसे किसी अदृश्य सुन्दरी की रेशमी जुल्फें उसके चेहरे का छूकर गुजर रही थी।

जुहू चौपाटी पर भीड़-भाड़ थी, सुन्दर चंचल लड़कियां रंग-बिरंगे लुभावने कपड़े पहने इधर-उधर तितलियों की तरह मंडराती फिर रही थी।

सूरज का आग्नेय गोला आधा सुमन्द्र में डूब चुका था, राज उस दृश्य के सम्मोहन में ऐसा फंसा कि स्तब्ध सा खड़ा सूरज पर निगाहे जमाए रहा।
न जाने कितनी देर वो उसी अवस्था में खड़ा रहा, कि अचानक उसने सतीश के हाथों की सख्ख पकड़ अपने कंधों पर महसूस की तो चौंक उठा। सतीश के मुंह से हल्की सी ताज्जुब भरी चीख निकली थीं

"राज!" कहते हुए सतीश ने राज को अपनी तरफ खींचा-“वो सामने देखों ब्लैक ड्रेस में......।" साथ ही उसने एक तरफ इशारा किया।

राज ने उसे तरफ देखा, जिस तरफ सतीश ने अंगुली से इशारा किया था। उसे कोई तीस गज की दूरी पर एक औरत खड़ी नजर आई, जिसने चुस्त काले कपड़े पहन रखे थे और आंखों पर एक फैशनेबल धूम का चश्मा चढ़ा रखा था।

राज को हैरत हुई कि वो इस वक्त धूम का चश्मा क्यों लगाए हुए हैं लेकिन उससे भी ज्यादा जिस चीज ने राज को हैरान किया, वो यह थी कि उस औरत के चेहरे पर नकाब पड़ी हुई थी। होंठों से ऊपर माथे तक का हिस्स खुला हुआ था
और आंखों पर चश्मा था, मिस्त्री ढंग की नकाब।

- “हमारे सहां इस किस्म की नकाबें नहीं पहनी जाती ।" सतीश ने धीरे से कहा-"यह अरब और अफ्रीका का रिवाज हैं

“हां। राज ने कहा, " मैने भी दो-चार अंग्रेजी फिल्मों में देखा हैं और मैं भी यही सोच रहा था। शायद यह औरत उन्ही में से किसी देश की टूरिस्ट हो.........।"

"लेकिन उन दोनों के लिए उस औरत की तरफ आकर्षित हो जाना सिर्फ कपड़ों और नकाब की वजह से ही नहीं थी।
 
बल्कि पहली नजर में देखने पर ही कम से कम राज को तो ऐसा महससू हो रहा था कि उसने इस औरत को देख रखा हैं, कई बार देखा हुआ हैं, काफी करीब से देखा हुआ हैं। लेकिन कहां , यह उस वक्त उसे कतई यादनही आ रहा था।
और राज का ख्याल था कि इसी बात ने सतीश पर भी अजीब सा असर किया था, वर्ना नकाब लगाइ एक औरत जिसका चेहरा भी वो दोनों नही देख सकते थे, उसमें भला सतीश की क्या दिलचस्पी हो सकती थी।

राज!” सतीश ने राज के कंधे पर अपनी पकड़ सखत करने हुए कहा-“भगवान जाने मुझें क्या हो रहा हैं........मुझें ऐसा लग रहा हैं मैं इस औरत को बहुत अर्से से जानता हूं। मेरा दिल उसकी तरफ खिंचता जा रहा हैं......उसका सुडौल कद-काठ, जिस्म का आकार और चेहरे का खुला हिस्स मुझें जाना-पहचाना लग रहा है। राज.......आखिरकार यह हैं कौन ?"

'मुझें क्या मालूम!" राज ने उसका हाथ अपने कंधे पर से हटाते हुए कहा-“लेकिन इसमें सन्देह नही कि उसे देखकर मेरे दिल में भी यही ख्याल आ रहे है। यकीनन उस औरत को हमने पहले कई बार देख रखा हैं.......और बहुत करीब से देख रखा

"चलों, जरा पास जाकर देखें हो सकता हैं कुछ याद आ जाए।" सतीश ने सुझाव दिया।

"ठीक हैं।" राज ने जवाब दियां

वो दोनों टहलते हुए उस औरत के करीब जा खड़े हुए। वो औरत एक नौजवान से बाते कर रही थी। उसकी पीठ राज और सतीश की तरफ थी और उसे उनकी कोई खबर नही थीं

दोनो उसके बिल्कुल करीब जाकर खड़े हो गए और उसे खोजती हुई आंखों से देखते रहें बात करते हुए उसका हाथ हिलाने और आकर्षक ढंग से गर्दन को झटकने का स्टाइल भी उसके जाने-पहचाने थे। लेकिन राज को यह समझ नहीं आ रहा था कि वो कौन हैं और उसे कहां देखा हे।

वो गोरे रंग और थोड़ें गुदाज जिस्म वाली औरत थी और जितना चेहरा उसका नजर आ रहा था , उसे देखकर ही अन्दाजा लगाया जा सकता था कि वो किनी हसीन है।

काली चुस्त साड़ी और ब्लाउज उस पर खूब फब रहा था। वो राज और सतीश के दिलों में जैसे उतरी जा रही थी।

सतीश पर तो उसे देखकर जैसे जादू सा हो गया था। वो एकटक उसे औरत की तरफ ही देखे जा रहा था। अचानक बाते करते-करते वो औरत राज और सतीश की तरफ पलटी एक पल के लिए उस औरत की निगाह राज और सतीश की निगाहों से मिली।

भगवान जाने यह राज का वहम ही थी या हकीकत थी, वो उन्हें देखकर इतनी बुरी तरह चौंकी थी जैसे उसने बिजली का नंगा तार छू लिया हों

एक-दो पल के लिए उसके चेहरे का सफेदी मिला गुलाबी रंग एकदम लाल हो गया, फिर फौरन ही पीला पड़ गया। वो कुछ देर हैरत और खौफ भरी निगाहों से उन्हे घूरती रही। उसका जवाब साथी भी उसके इस व्यवहार पर कुछ हैरान था।

फिर वो तेजी से पटी और अपनी नौजवान साथी का हाथ पकड़ कर लम्बे-लम्बे डग भरती, चौपाटी की भीड़ में मिलकर गायब हो गई।

उसक निगाहों से ओझल हो जाने पर सतीश चौंका और उसने राज हा हाथ पकड़कर उसे खीचते हुए जल्दी से कहा

"चलो जल्दी....हम उसका पीछा करेंगे।"

राज बगैर कुछ बोले, सतीश के साथ चल पड़ा। लेकिन इतनी सी देर में ही काली नकाब वाली औरत को न जाने जमीन गिल गई थी या आसमान उठा ले गया था, वो उन्हें कहीं नहीं दिखाई दी

उन्होने बीच पर चारों तरफ घूम-घूम कर देखा उसे तलाश करते रहे, लेकिन वो उन्हें फिर दिखाइ नही दी जब तलाश करते-करते वो थक गए और अन्धेरा छा गया तो राज ने सतीश से कहा

"वो नही मिलेगी सतीश! मेरा ख्याल हैं कि वो अपने साथी के साथ उसी वक्त चौपाटी छोड़ गई होगी।

"लेकिन यार, फौरन से भी पहले तो हमने उसका पीछा करना शुरू कर दिया था। कम से कम जाती हुई तो वो हमें दिखाई देनी चाहिए थी न ? सतीश ने दलील दी।

कोई जरूरी थोड़ें ही था।" राज ने जवाब दिया और करीब ही खड़ी कारों की तरफ इशारा किया-'इतने समय में वो मजे-मजे से कार में बैठकर यहां से रूख्सत हो गई होगी।'

"चलो चलते हैं फिर हम भी........ " सतीश ने मुंह लटका कर कहा।

फिर वो मरे-मेरे कदमों से राज के साथ चल पड़ा लेकिन कुछ देर तक चलकर ही वो फिर रूक गया ओर राज का हाथ थाम कर बोला

"लेकिन मैं कसम खाकर कहता हूं कि अभी हम उस औरत को बहुत करीब से जानते थे और हमारे इस सन्देह की पुष्टि उस
औरत के चौकने ने भी कर दी थी। तुमने देखा था, जब उसकी नजर हम पर पड़ी थी तो वह कितने जोरों से चौकी थी ? उसके
चेहरे पर दो पल में ही कई रंग बदले थे।"

"हां! मैंने भी ये दोनों बाते महसूस की थी।" राज ने जवाब दिया।

"बस, इसका मतलब साफ है। वो औरत भी हमसे अच्छी तरह वाफिक थी, इसलिए हमें देखकर चौंकी थी। सवाल यह हैं अगर वो हमें अच्छी तरह जानती थी तो उसने हमसे बाम करने की कोशिश क्यों नही कि, हमें देखते ही चौंककर भाग क्यों खड़ी हुई,जैसे हम पिस्तौल लिए उसे मारने के लिए खड़े हो ?"
 
"बस.....यही वो सवाल हैं जो मुझे भी परेशान कर रहे है। ?' राज ने जवाब दियां

उसके बाद वो दोनो ही खामोश हो गए थे और असी उलझन मे फंसे घर आ गए थे

अस्थाई तौर पर उन दोनों ने उस औरत का ख्याल दिल से निकाल दिया था। लेकिन खाने के बाद जब वो बिस्तरों पर जा लेटे तो उसे अज्ञात औरत के ख्याल ने फिर राज को आ घेरा

बार-बार राज के दिल में एक सवाल उठ रहा था, कि वो कौप थी? लेकिन उसके दिमाग से उसे इसका कोई जवाब नहीं मिलता था। वो साने की कोशिश करता तो उसे काली नकाब वाली रहस्यमयी का चेहरा उसकी आंखों मे घूम जाता और वो चौंक उठता था।

यही हालत शायद सतीश की भी थी , क्योंकि रात के करीब डेढ़ बजे वो दबे पांव राज के कमरे में दाखिल हुआ। राज ने आहट पाकर उसकी तरफ देखा और पूछा

"कौन......... सतीश?"

"हां, मैं ही हूं।'' उसने कहा-"क्या तुम अभी तक सोये नहीं हों ?"

"नींद ही नहीं आ रही हैं यार...... ।'राज ने जवाब दिया। यही हालत मेरी भी हैं।" वो राज के करइब आकर बैठ गया। थोड़ी देर की खामोशी के बाद बोला
"तुमसे क्या छुपाना राज , दरअसल उस नकाबपोश औरत का ख्याल मुझें सोने नहीं दे रहा हैं

“मेरी नींद भी उसी वजह से उड़ी हुई है।" राज हंस कर बोला," लेकिन सतीश, भगवान के वास्ते उस औरत पर आशिक होने की कोशिश मत करना। तुम बार एक ऐसी रहस्यमयी से प्यार करके उसका नतीजा भुगत चुके हो। कही ऐसा न हो कि.......।"

“नहीं-नहीं। ऐसी कोई बात नहीं है यार।" सतीश ने जल्दी से नीकण्ठ की बात काटकर कहा,” मूझे तो यह सवाल परेशान कर रहा हैं कि वो हैं कौन ? अचानक इस वक्त मुझे एक अजीब समानता का ख्याल आया है और मैं अपना ख्याल तुम्हें बताने के लिए बह उठ आया हूं।"

"कैसा ख्याल ?" राज ने पूछा।

"क्या तुमने महसूस नही किया वा ज्योति से कितनी मिलती-जुलती पर्सनेलिटी वाली थी। ? स्वर्गीय ज्योति........मेरी बीवी जैसी थी बिल्कुल वो।"

ज्योति का नाम सुनकर राज के जेहर मे ज्योति का व्यक्तित्व घूम गया। उसने मन ही मन दोनों औरतों की तुलना की तो दोनो मे वाकई बहुत समानता पाए। मगर फिर उसे ख्याल आया कि वो तो बहुत साल पहले मर चुकी थी, उसकी आंखों के सामने ही।

“समानता थोड़ी बहुत जरूर है।........" उसने धीरे से कहा।

'थोड़ी बहुत नहीं, बहुत ज्यादा हैं" सतीश ने कहा, 'अगर नकाबपोश औरत की दाई भौंह पर एक काला निशान बना दिया जाए , जो ज्योति की भौंह के पास था, ता उसमें और ज्योति में रत्ती भर भी फर्क नहीं रहेगा।

“हो सकता हैं इसी समातनता की वजह से हमारा ध्यान उसकी तरफ हो गया हो। राज ने कहा, लेकिन सवाल यह कि अगर यह सिर्फ समानता की वजह से था तो उसका असर हम पर ही होना चाहिए था। वो क्यों हमें देख कर चौंकी थी और भाग निकली थी ?"

“मुझें तो काई गडबड़ लगती है।' सतीश ने कहा।

"और मेरी समझ में नही आ रहा कि क्या कहूं।” राज बोला-" हो सकता हैं ज्योति की कोइ बहन हों ..... ।

'नही। ज्योति ने कभी अपनी किसी बहन का जिक्र नहीं किया।" सतीश ने कहा-“एक डेढ़ साल के अर्से में उसने ऐसा जिक्र नहीं किया था, हमशक्ल बहन वाला।

'लेकिन एक ऐसी औरत से क्या उम्मीद की जा सकती हैं जो शुरू से अंत तक रहस्यमयी और अन्धे कुए की तरह गहरी रही हो। वो किसी खास मकसद से यह बहन वाला राज छुपा रही हो......."
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'हमे यह नहीं भूलना चाहिए राज कि ज्योति मर चुकी और
और उसकी बहन को हमने देखा तो क्या-उसका जिक्र भी हमने कभी नहीं सुना-तो हमें कैसे पहचान सकती थी? फिर वो हमें देखते ही चौंक कर भाग क्यों निकली थी ?"

"इस सवाल का जवाब न मेरे पास हैं, न तुम्हारे पास..." राज ने उकताकर कहा-"अब यह ख्याल दिल से निकाल दो। दो बज चुके है। खामखां दिमाग खपाने से क्या फायदा ?" सतीश खामोशी के साथ राज के पास से उठा और छोटे-छोटे कदम उठाता हुआ कमरे से बाहर चला गया। राज लेट गया, लेकिन और एक घंटा करवटें बदलने के बाद ही सो पायां

दूसरे दिन वो डॉक्टर सांवत से मिले तो यो ही राज ने उससे भी उस नकाब वाली औरत का जिक्र कर दियां,
पूरी बात सुनकर डॉक्टर सावंत ठहाका लगाकर हंस पड़े।
 
दूसरे दिन वो डॉक्टर सांवत से मिले तो यो ही राज ने उससे भी उस नकाब वाली औरत का जिक्र कर दियां,
पूरी बात सुनकर डॉक्टर सावंत ठहाका लगाकर हंस पड़े।

"क्यों, क्या हुआ ?" राज ने उन्हें हंसते देखकर पूछा।

"मेरे ख्याल में आप लोग बहुत ज्यादा जिज्ञासु प्रवृति के साबित हुए है।" डाक्टर सांवत ने जवाब दिया, जिस औरत को आप लोगों ने देखा हैं, उसका नाम शिंगूरा हैं, वो काहिरा के एक अमीर खानदान से सम्बंध रखती हैं, यहां अपने भाई जमाल पाशा के साथ रहती हैं, जो कोई बिजनेस करता हैं और शिगूरा खुद मुम्बई के हाई सर्किल की जान है। करीब-करीब हर बड़े क्लब और संस्था की वो मेम्बर हैं । अगर आप चाहें तो मैं आज शाम को ही आपकी मुलाकात उससे करवा सकता हूं।।'

डॉक्टर सावंत की बात सुनकर राज ने राहत की लम्बी सांस ली कि यह तो पता चला कि वो रहस्यमयी हैं कौन ?"

"लेकिन एक बड़ा सवाल अब भी बाकी था कि वह रहस्यमयी उन्हें देखकर चौंकी क्यों थी ?" और घबरा कर भाग क्यों गई थी ?

राज और सतीश ने एक-दूसरे की तरफ देखा और और आंखों-आंखों में इशारों के बाद उन्होने डॉक्टर सांवत से अपने सन्देह बताकर शिगूरा से मिलने की इच्दा जताई। राज बोला

“डाक्टर सांबत आपकी मेहरबानी होगी। आज ही हमारा उससे परिचय करवा दें। आपकी शायद मालूम नही कि मैं काहिरा जा चुका हूं। हो सकता हैं हम लोग काहिरा में मिल चुके हों।"

"बहुत अच्छा।' डॉक्टर सांवत ने कहा, आज शाम को पांच बजे आप दोनों यहां आ जाईए, आमतौर पर शाम को वो रेड रोज क्लब से मिला करती हैं मैं भी उस क्लब का मेम्बर हूं।

उन्होने डॉक्टर सांवत का शुक्रिया अदा किया और वापस आ गए।

शाम के ठीक पांच बजे वो डॉक्टर सांवत के फ्लैट पर पहुंच गए। वो भी तैयार था, फौरन ही तीनों कार में बैठकर रेड रोज क्लब रवाना हो गए।

बीस मिनट बाद ही वो तीनों रेड रोज क्लब पी रहे थे। शिंगुरा अभी तक नहीं आई थी और वो तीनों इधर-अधर की बातें करते हुए वक्त गुजार रहे थे, लेकिन उनकी निगाहे दरवाजे पर ही लगी हुई थीं

ठीक छः बजे वो किसी रहस्यमय साये की तरह क्बल के दरवाजे पर प्रकट हुईं । वही खड़े-खड़ें उसने एक पैन करती हुई निगाह चारों तरफ डाली, फिर उसकी निगाह राज और सतीश पर पड़ी

बीच का फासला ज्यादा होने के बावजूद राज ने उसकी आंखों में हैरत के भाव देखे। लेकिन यह सिर्फ एक क्षण के लिए था फौरन ही वो सम्भल गई थी।

फौरन ही बो मुस्कराती हुई आगे बढ़ी, क्लब का हर मेम्बर शायद उसे जानता था और हर कोई चाहता था कि कुछ देर उसकी मेज पर बैठ कर उससे कुछ बातें कर ले। हम शख्स उससे तपाक से बात करता था और आंखों के आग्रह से उसे कुछ पी लेने के लिए कहता था।

वो मुस्कराती हुई, सब के अभिवादनों को जवाब देती हुई, गर्दन को जरा सा झुका कर हंसती हुई सीधी राज वाली मेज पर चली आई।

"हैलो डॉक्टर सांवत! कहिये, कैसे मिजाज हैं?"

“मेहरबानी हैं जी।" डॉक्टर सावंत ने खड़े होकर उसका स्वागत किया और उसके लिए एक कुर्सी खींच दीं राज के ख्याल में शिंगूरा की आवाज सुरीली होनी चाहिए थी, लेकिन इस वक्त भराई हुई थी। जैसे गला बैठ गया हो उसका । राज ने सोचा शायद खांसी जुकाम की वजह से हो गई हों

शिंगुरा के कुर्सी पर बैठ जाने के बाद डॉक्टर सांवत ने उनका परिचय करवाते हुए कहा
“मिस शिंगूरा, ये आपसे मिलने आए हैं, मेरे दोस्त , राज औ सतीश!" और फिर उन दोनों की तरह देखकर बोला-"और आप हैं मिस शिंगूरा। इस क्लब की आत्मा !

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"खूब......." राज ने मुस्करा कर उससे हाथ मिलाते हुए कहा।

बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर।" उसने हल्की सा कहकहा लगाया, “काश यह हकीकत हो।8।

इस वक्त वो हल्के हरे रंग के कपड़े पहने हुए थी और इसी रंग का नकाब उसके चेहरे पर था। चश्मा भी बदला हुआ था, लेकिन शीशे इसके भी रंगीन थे।
 
सतीश ने उससे हाथ मिलाया तो उसका चेहरा भी गुलाबी हो गया, जैसे किसी कुंवारी कन्या के सामने शादी का जिक्र छेड़ दिया गया हो।

दस-पन्द्रह मिनट वो उनकी मेज पर बैठी डॉक्टर सांवत से बातें करती रही और उसके बदन से फूटती भीनी-भीनी सुगन्ध राज और सतीश के दिमागों को छूती रही ।
शिंगुरा ने ज्यादातर डॉक्टर सांवत से ही बातचीत की थी, इसलिए वो दोनों खामोश बैठे शिंगरा के बदल और चेहरे को गौर से देखते रहे।

शायर उन दोनों की उत्सुक निगाहों से शिगूरा भी अन्जान नही थीं, क्योंकि कभी-कभी वो भी तिरछी निगाहों से उन दोनों की तरफ देखकर धीरे से मुस्करा देती थी।
करीब पन्द्रह मिनट बाद वहीं नौजवान हॉल में दाखिल हुआ,

जिसे उन्होनें चौपाटी पर शिंगूरा के साथ देखा था। उसे देखकर शिगूरा खड़ी हो गई और डाक्टर सांवत से “एक्सक्यूज मी डॉक्टर' कहकर उस जवान के साथ दूसरी मेज पर जा बैठ।

"डॉक्टर सावंत, क्या आपको यह औरत शिंगूरा रहस्यमयी नही लगती ?"

"क्यों ?" उसमें ऐसी कोन सी बात हैं जो उसे रहस्यमयी कहा जाए ?" सांवत न पूछा।

"उसकी नकाब।” सतीश ने कहा।

"बिल्कुल नहीं।' वो उसके देश और समाज का एक जरूरी रिवाज और परम्परा हैं।" सावंत ने कहा।

और उसके रंगीन गॉगल्स जो फैशन नहीं, उसकी आंखों को छुपाने का काम करते हैं। क्या उसकी आंखों में कोई खराबी हैं

“नहीं, मैंने उसकी आंखें बहुत करीब से देखी है।" डॉक्टर सांवत ने कहा,“ उसकी दोनों आंखें बड़ी सुन्दर और मोहक हैं हालांकि यह चीज मुझें भी हैरत में डाल देती हैं कि वो हर वक्त चश्मा क्यों लगाए रहती है।

लेकिन इस बात पर ज्यादा ध्यान इसलिए नही दिया क्योंकि आजकल बहुत से लोग हर वक्त चश्मा लगाए रखते है।

इसके बाद ज्यादा बहस को फिजूल समझ कर राज ने बातचीत का विषय बदल दिया।

शिंगूरा और उसका भाई अलग मेज पर बैठे किसी मामले पर बहस कर रहे थे। राज ने अन्दाजा लगाया कि बाते उन्ही के बारे में हो रही हैं। क्योंकि एक-दो बार उसके भाई ने मुड़कर उनकी तरफ देखा भी था। बीच में शिंगुरा का भाई एक बार उठकर काउंटर पर गया था और किसी को फोन करता रहा था। वो वापस जाकर बैठ गया था ओर उसके आधे घंटे बाद वो दोनो उठ कर चले गए थें

(यह कहानी उस वक्त की हैं जब मोबाईल फोन अभी आए नहीं हुए थे और बम्बई अभी मुम्बई नहीं बनी थी)

उनके जाने के थोड़ी देर बाद ही नीकलण्ठ और सतीश भी उठ खड़े हुए।

क्लब से बाहर आकर वो अपनी कार की तरफ बढ़ा तो राज ने सड़क पर एक शख्स को खडें देखा। किसी का सड़क पर खडे होना कोई ध्यान देने की बात नही थी, लेकिन उस शख्स का चेहरा इतना भयानक था कि उसे देखकर राज को झुरझुरी आ गई
चौ
ड़ा चकला चेहरा जिस पर चेचक के बड़े-बड़े दाग थे, आंखें सुर्ख अंगारों जैसी, डील-डौल किसी खतरनाक पहलचान जैसा वो शानदार सूट पहने हुए था, इसके बावजूद ऐसा लगता था जैसे कोई गुण्डा किसी का सूट चुकरा कर पहन आया हो।

उसे देख कर खामखां एक खौफ भरी नफरत राज के दिल में जाग रही थी। जब वो तीनों उसके करीब से गुजरे तो उसे गुण्डे ने बहुत गौर से उनके चेरे देखे।

कितनी भयानक शक्ल हैं उस आदमी की।" थोडा आगे बढ़ जाने पर सतीश ने कहा।

बिल्कुल खूनी गुण्डा लगता हैं।” डाक्टर सावंत ने हंसकर कहा।

वो पार्किंग लॉट में पहुंचे तो राज ने देखा कि एक कार की आगली सीट पर शिगुरा और उसका भाई बैठे थे, शिंगूरा का भाई स्टेयरिंग व्हील पर झुककर कार स्टार्ट करने की कोशिश कर रहा था।
 
वो तीनों उन्हें नजरअन्दाज करते हुए अपनी कार में सवार हो गए। राज ने ड्राईविंग सीट पर बैठ कर कार स्टार्ट कर दी। लेकिन सड़क पर उसकी निगाह बैक ब्यू मिरर पर पड़ी तो यह देखकर राज हैरान रह गया कि वो भयानक सूरत वाला गुण्डा सड़क पार करके शिंपूरा की कार की तरफ जा रहा था

कुछ ही दूर जाकर राज ने पलटकर देखा तो वो बदमाश शिंगूरा की कार की खिड़की पर झुका उसके भाई से बात कर रहा था और उनकी कार की तरफ घूर कर देख रहा था।

बात राज को वाकई कुछ अजीब सी लगी थी। उसने कुछ सोचकर सतीश और डॉक्टर सांवत से इस बात का जिक्र नहीं किया, लेकिन उसके अपने दिमाग में खटका सा जरूर लग गया था
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उसके बाद एक हफ्ता बड़े आराम से बगैर किसी घटना के गुजर गया।

वो यानि राज और सतीश अब लगभग शिंगुरा जैसी रहस्यमयी हस्ती को भूलते जा रहे थे या फिर जानबूझ कर उसके बारे में ध्यान नहीं दे रहे थे। डॉक्टर सावंत भी एक वैज्ञानिक था और उसे भी जहरों से बहुत दिलचस्पी थी। राज और डॉक्टर सांवत मध्यप्रदेश में एक जहर के बारे में प्रयोग कर रहे थे।

राज के दिन भर के वक्त का ज्यादातर हिस्स उसी काम में लग जाता था और सतीश या तो दिन भर कोई उपन्यास पढ़ता रहता था या पडौस के बुजूगो। के साथ ताश खेलता रहता था।

शाम को जरूरज वो दोनो साथ-साथ तफरीह के लिए निकलते और किसी क्लब, बार या रेस्टोरेंट वगैरह में वक्त बिता कर रात बारह साढ़े बारह तक वापस लौटते थे।

शाम को वो हमेशा पैदल ही निकलते थे, जरा-जरा से कामों के लिए बम्बई की सड़कों पर कार दौड़ाते फिरना राज को पसन्द नही था। उसके ख्याल में इससे आदमी सुस्त हो जाता हैं। रात के वक्त सुनसान सड़ाकं पर टहलते हुए उसे बड़ा मजा आता था।

बम्बई का चर्च रोड़ बड़ा मार्डन इलाका हैं, वहां शकर के दूसरे इलाको की तरह उन दिनों ज्यादा गहमा गहमी नही होती थी,

ज्यादातर लोग शादियों में आते-जाते हैं, इसलिए सड़के वीरान ही रहती है। रात की लाइटों की रोशनी में चौड़ी-चौडी खाली सड़कों के दोनों तरफ खड़ी इमारते राज को बहुत अच्छी लगती थी। बड़ी-बड़ी लाईटें दूर तक फैली खाली सड़क को और भी आकर्षक बना देती थी।

रात के वक्त क्योंकि कारों, गाड़ियों की भी ज्यादा भीड़ नही होती, इसलिए वो दोनों फुटपाथ छोड़कर सड़क पर चलना ज्यादा पसन्द करते थे।

उस दिन उन्हें बालरूम डांस में काफी देर हो गई थी। दरअसल सतीश को एक हसीन लड़की मिल गई थी और उसके साथ डांस करने में वो इतना मस्त हो गया था कि उसी वक्त का अहसासा ही नहीं रहा था।

दो बजे के करीब जब राज ने खासतौर से घड़ी उसके सामने कर दी थी, तब वो चौंककर जैसे होश में आया था और उसने लड़की का वादा करे उससे विदा ली थी।

उस दिन हल्की-हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी, लेकिन ज्यादा परेशानी की बात नहीं थी, इसलिए उन्होंने कार में आना पसन्द नहीं किया था और न ही लौअते वक्त भी टैक्सी ली थी। अपने अपने रेनकोट वो जरूर साथ लाए थे।

रात के दो बजे सड़क हमेशा की तरह सुनसान थीं। काली सड़क पर खम्भों की रोशनी बड़ी जादुई लग रही थी। राज और सतीश सड़क के बीचों-बीच मजे से चले आ रहे थे, अपनी-अपने ख्यालों में गुम।

करीब आधा मील चलने के बाद उन्हें पीछे से आती किसी कार की आवाज सुनाई दी और वो दोनों सड़क के मध्य से एक तरफ हट गए।

राज खड़ा होकर सिगरेट सुलगाने लगा। सतीश भी रूक गया, कार इतने में उनके करीब आ गई थी।

कार बहुत आहिस्ता चल रही थी या फिर उनके करीब आकर ही रफ्तार सुस्त कर दी गई थी। कार के अन्दर और बाहर की तमाम लाईटें बन्द थी।

कार जब बिल्कुल उनके बराबर पहुंच गई तो राज ने संयोग से ही उसकी तरफ तिरछ निगाल डाल ली, कार के अन्दर का दृश्य देखकर जैसे उसके बदन में बिजनी दौड़ गई। उसके दिमाग की नसे झनझना उठी। उसके बाद जो कुछ हुआ, वो सिर्फ एक पल में ही हो गया।

राज ने बाद में बहुत दिनों तक भगवान का शुक्र मनाया था कि ऐन वक्त पर उसकी नजर कार की तरफ घूम गई थी वर्ना उस रात इन दोनों में से एक का अंत तो हो ही गया होता।

वो खतनाक घटना एक सैकिण्ड से भी कम वक्त में हो गई थीं सिगरेट सुलगाते-सुलगाते जब राज की निगाह कार के अन्दर पड़ी ती तो उस कार में एक तेज चमक दिखाई दी थी, जैसे कोई चमकता खंजर लाईट के सामने पड़ गया हो।

आधे सैकिण्ड में ही उसके जेहर में सारा सीन घूम गया। बाकी आधे सैकिण्ड में उसने बिजली की तरह तड़प कर सतीश को एक धक्का दिया और साथ ही खुद भी जमीन पर गिर गया।

अभी वो जमीन पर गिरे भी नही थे कि कोई चीज सांय की आवाज के साथ उनके सिरों के ऊपर से गुजर गई और सड़क के किनारे एक पेड़ के तने में जा लगी।
जब वो नीचे गिर थे, ठीक उसी वक्त जोर से बादल गरजे थे और साथ ही बिजली चमकी थीं बिजली की रोशनी में राज को कार के स्टेयरिंग के पीछे एक चेहरा दिखाई पड़ा था।

उस चेहरे की सिर्फ एक ही झलक देखना काफी थी।
 
राज फौरन पहचान गया वो चेहरा उसी भयानक सूरत आदमी का था जिसे राज ने उस दिन रेड रोज क्लब के बाहर सड़क पर देखा था।
अगले पल कार सड़क पर हवा से बातें करती हुई उनकी निगाहों से ओझल हो गई थी । सतीश चूंकि सड़क की तरफ पीठ किए राज की तरफ देख रहा था, इसलिए उसे इस पूरे मामले की कोई खबर नहीं थी। वो गिर कर उठा था और खौफ भरे स्वर में बोला था

“य.......यह क्या था? वो अपने कपड़ें झाड़ रहा था।

"अभी बताता हूं।''राज बोला।

उसके बाद वो उसा पेड़ की तरफ गया जिसके तने में वो चमकता खंजर घुस गया था। वहां पहुच कर उसकी आशका सही साबित हुई। पेड़ के तने में एक अरबी ढंग का मुड़ा हुआ खंजर आधा घुसा हुआ था। राज ने उसे खीचकर बाहर निकाला और उसे लाकर सतीश को दिखाकर कहा

"यह चक्क र था........।"

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“ सतीश हैरान और परेशान था।

"क्-क्या मतलब ?"

“मतलब यह हैं कि किसी ने हम दोनों में से एक को खत्म करने के लिए इस खंजर से हमला किया था । लगता हैं वो चाकू फेंकने का माहिर हैं, वो तो ऐन वक्त पर मेरी निगाह पड़ गई, वर्ना आज हममें से एक ही जिन्दा बचता।

सतीश ने खौफ और हैरत से खंजर को हाथा में लेते हुए कहा
“आखिर कौन था वो ? बॉम्बे में हमारा कौन दुश्मन हो सकता

"मुझे क्या पता !" राज ने झूठ बोला।

क्योंकि उस भयानक चेहरे वाले की सूरत देखते ही उस दिन की सारी घटनाएं राज की आंखों के सामने घूम गई थी- जिनके बारे में उसके सिवा कोई नहीं जानता था। उस भयानक शख्स का उन्हें गौर से देखना, फिर उनके रवाना होते ही उसका दौड़कर शिंगूरा के भाई के पास जाना और फिर आज उन पर हमला करना, एक ही जंजीर की कड़ियां थीं

, राज के ख्याल से, शिगूरा चाहे कोई भी हो, वो उन दोनों फिर यही सवाल पैदा होता था कि शिंगूरा आखिर हैं कौन ?"

और क्यों उनसे भयभीत हैं ? और क्यों उन्हें रास्ते से हटाना चाहती हैं?

"क्या सोचने लगे ?' सतीश ने उसे सोच मे डूबे देखकर पूछा।

'राज चौंक उठा। फिर उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

'कुछ नही। मैं सोच रहा था, वो कौन शख्स हैं जो हमें कत्ल करना चाहता है.......और क्यों कत्ल करना चाहता हैं हमें ?

'राज ने कई दिनों से शिंगूरा के प्रति अपने दिल मेंपहपने वाले सन्देहों को सतीश से छुपा लिया ताकि सतीश भयभीत न जो जाए।

"चलों अब जल्दी से घर चले।" सतीश ने कहा, "कहीं कोई लफड़ा न हो जाए। सुबह को हमारी लाशें ही उस सड़क पर पाई जाए।"

"चलो।"

राज बोला और वो दोनों वहां से चल पड़े। थोड़ी दूर चलने के बाद सतीश ने कहा

"अब हमें हमेशा बहुत सतर्क रहना चाहिए। आईन्दा हम कार में आया करेंगे।"

“मुझें क्या मालूम था कि मेरा पैदल चलने का शौक खतरनाक भी साबित हो सकता हैं?" राज ने कहा। बाकी रास्ता उन्होंने बड़ें चौंकन्ने होकर गुजारा और तेज-तेज चलते हुए सही सलामत घर पहुंच गए।

दूसरे दिल राज जब डॉक्टर सांवत के यहां गया तो वह चकमता खंजर भी साथ लेता गया था। राज ने उसे रात की पूरी घटनाएं विस्तार से सुनाइ तो वह हैरान रह गया।
 
डॉक्टर सावंत बहुत देर तक परेशान बैठा रहा, जब राज ने उसे शिंगूरा के बारें में अपने सन्देहों से आगाह किया और उस भयानक सूरत आदमी के बारे में बताया तो वह और ज्यादा हैरत में पड़ गया था और कुछ देर बाद बोला था
'इसका मतबल हैं राज साहब........कि शिंगूरा के बारे में आपका सन्देह और अन्दाजा गलत नहीं था। यकीनन वो रहस्यमयी....या उससे भी कुछ खतरनाक औरत है।' ।

“मैं तो उसी दिन समझ गया था, जब मैंनेउसे चौपाटी पर देखा थां हमें देख कर पहले तो वो बुरी तरह चौकी थी, उसके बाद घबरा कर वहां से भाग निकली थी मैं तभी समझ गया था। कि वो ओरत हमें पहचानती हैं और नकाब के पीछे अपना चेहरा छुपाना चाहती हैं। लेकिन यहां तक तो मैंने सोचा भी नहीं था कि वो हमें कत्ल करवाने पर ही तुम जाएगी।

“आखिर वो हैं कौन ?

“यही तो लाख टके का सवाल , जिसका जवाब मैं ढूंढ रहा हूं।

“तुम्हें याद नहीं आता कि आखिर तुमने उस औरत को कहां देखा था ?"

“नही! कुछ भी तो याद नही आ रहा कि हमने उसे कहां देखा हैं। लेकिन इतना जरूर हैं कि हमने उसे देखा हैं और कई बार बहुत करीब से देखा हैं।" नीकण्डठ ने गम्भीर लहजे में कहा, "आप उसे जानते होंगें, अगर किसी तरह से उसकी नकाब उतर जाए तो पहचान भी लेंगे कि वो कौन है?"

"और कुछ, इसके अलावा?" डॉक्टर सावंत ने पूछा।

"इसके अलावा यह कि उसका रंग और आकार तथा होंठों के ऊपर का हिस्सा एक ऐसी औरत से मिलते-जुलते हैं जिसका डेढ़ साल पहले देहांत हो चुका है। हमारी आंखों के सामने ।"

"क्या कोई दुर्घटना घटी थी उस औरत के साथ ? क्या वो औरत तुम्हारे बहुत करीब थी?”

"वो औरत...।" राज मुस्कराया-"हमारी सबसे बड़ी दुश्मन थी, जिसने सतीश को लगभग मार ही डाला था। अगर वो मर न जाती तो जरूर हम दोनों को ही मार डालती।"

राज ने रुक कर गहरी सांस ली और डॉक्टर सावंत की तरफ देखकर बोला
"अब आपसे क्या छुपाना....वो सतीश की बीवी थी।"

डॉक्टर सावंत का मुंह हैरत से खुल गया।
" सतीश की बीवी थी..?"

"जी हां।' सतीश की बीवी थी वो, जो सतीश से पहले अपने पांच पतियों को एक सांप का जहर चटा कर मार चुकी
थी...और आखिरकार खुद भी एक सांप के जहर से ही मारी गई थी।"

डाक्टर सावंत ने मेज पर आगे की तरफ झुक कर राज को गौर से देखा और फिर किसी सोच में गुम हो गया। थोड़ी देर सोच कर वो बोला
"हूं....। उसके बाद क्या हुआ था? जरा विस्तार से मुझे बताओ।"

राज ने ज्योति और डॉक्टर जय का पूरा किस्सा डॉक्टर सावंत को सुनाया। सारी घटनाओं को सुनकर डॉक्टर सावंत का मुंह हैरत से एक बार फिर खुले का खुल रह गया, काफी देर बात उसने एक लम्बी और ठंडी सांस ली और बोला
"राज साहब, ऐसी भयानक और रहस्यमयी घटना आज तक मेरी जानकारी में नहीं आई...।"

"यकीनन नहीं आई होगी।" राज बोला, "लेकिन यह भी सच है कि कई बार हरकतें किसी भी कहानी से ज्यादा खौफनाक और रहस्यमय होती हैं।''

"ठीक कहा है तुमने।" डॉक्टर ने सोचते हुए कहा।

फिर उसने मेज पर से वो चमकता खंजर उठाया और उसे उलट-पुलट कर देखने लगा। उसने खंजर की धार पर अंगुली फेर कर धार की तेजी का अन्दाजा लगाना चाहा तो राज जल्दी से बोला
"डॉक्टर साहब, इसकी धार को न छुएं, हो सकता है खंजर जहरबुझा हो।"

डॉक्टर सावंत ने फौरन अपनी अंगुली हटा ली और बोला
"हां, ऐसा हो तो सकता है।"

"दरअसल, मैं यह खंजर लाया ही आपके पास इसलिए हूं, ताकि यह जांच ही जा सके कि यह जहरबुझा है या नहीं।" राज ने कहा, ” और अगर यह जहरबुझा है तो फिर कौनसा जहर इस्तेमाल किया गया है...।"

"हां, यह ठीक रहेगा। चलो, अभी मालूम कर लेते हैं।'

"चलिये!'' राज ने कहा और उठ गया।

वो दोनों डॉक्टर सावंत की लेब्रॉटरी में जा पहुंचे। डॉक्टर सावंत की लेब्रॉटरी तीन हिस्सों में थी। पहले हिस्से में वो तरह-तरह के प्रयोग करता था जिसमें शीशे का सामान और कई नाजुक-नाजुक सी मशीनें पड़ी हुई थी और इलैक्ट्रिक और इलैक्ट्रानिक्स के कई यन्त्र भी खूबसूरती और करीने से फिट थे।

दूसरे हिस्से में डॉक्टर सावंत किस्म-किस्म के जहर इकट्टे रखता था जो वो सांपों, छिपकलियों और बिच्छुओं वगैरह से निकालता था।

लेब्रॉटरी का तीसरा हिस्सा वाकई सबसे ज्यादा खतरनाक था क्योंकि तीसरे हिस्से में ही शीशे के जारों और बोतलों में सांप-बिच्छु वगैरह सैकड़ों जहरीले जीव मरे पड़े थे। चूहे और खरगोश वगैरा यहीं पर पिजरों में बन्द करके रखे गए थे, उन्हीं पर जहरों का प्रयोग किया जाता था।
इस हिस्से के दरवाजे पर और अन्दर भी, डॉक्टर सावंत ने बड़े-बड़े अक्षरों में लिखकर लगा रखा था

"कृपया यहां की किसी भी चीज को न छुएं।"

राज और डॉक्टर सावंत आगे पीछे लेब्रॉटरी में दाखिल हुए। डॉक्टर ने खंजर को एक शीशे के बर्तन में डाला और बर्तन को एक बिजली के थर्मोस्टेट वाले हीटर पर रख दिया।

थोड़ी देर बाद पानी को चूल्हे पर से उतार लिया और गर्म पानी को बड़ी सावधानी से एक दूसरे बर्तन में डाला गया।

उसके बाद डॉक्टर अपनी लेबॉटरी के खतरनाक हिस्से से दो खरगोश पकड़ लाया। सबसे पहले उसने पानी में दस-बारह बूंदें गर्म पानी की डाली और वो पानी का बर्तन एक खरगोश के सामने रख दिया।

खरगोश पानी पीने लगा। लेकिन अभी आधा पानी भी उसके पेट में नहीं पहुंचा होगा कि खरगोश ने पानी पर से मुंह खींच लिया।

उसने गर्दन झटकी, एक हिचकी सी ली, और बेजान होकर एक तरफ ढलक गया। डॉक्टर सावंत ने खरगोश की तरफ इशारा करते हुए कहा
"आपका ख्याल ठीक निकला। देखा आपने, कैसा खतरनाक और तेल जहर था?"

"जी हां, देखा। और मुझे इस बात का यकीन भी था।" राज ने जवाब दिया।
इसके बाद डॉक्टर सावंत ने एक और बर्तन में सारा पानी डाला और सिर्फ दो बूंदें उस पर जहरीले पानी की उस सादे पानी में डालकर शीशे की एक लम्बी सलाई से पानी में जहरीला पानी मिला दिया।
 
उसके बाद बहुत हल्का सा जहर मिला वो पानी दूसरे खरगोश को पिलाया गया। दूसरे खरगोश ने सारा पानी पी लिया। दो मिनट तक वो भी खरगोश खूब उछला, भागा। फिर उस पर नशा सा छाने लगा, थोड़ी ही देर में वो बेहोश होकर गिर गया।

डॉक्टर सावंत खरगोश की आंखों के पपोटे उलट कर आंखें का, उसके दिल की धड़कनों का और सांसों के आने-जाने का मुआयना करता रहा।

मुआयना खत्म करने के बाद वो लेब्रॉटरी के जहर भण्डार वाले हिस्से में गया और वहां से एक छोटी सी शीशी निकाल लाया। फिर उसमें से थोड़ी सी दवा इंजेक्शन के जरिये उस खरगोश के शरीर में पहुंचा दी।

एक मिनट बाद ही खरगोश होश में आकर चलने-फिरने लगा। लेकिन हालत नशे वाली ही रही-"अब एक घंटे बाद यह ठीक हो जायेगा।" डॉक्टर सावंत ने कहा।

उसके बाद उसने खरगोश को पकड़कर दोबारा पिंजरे में बंद कर दिया। फिर बोला
"जहर कितना खरतनाक था, यह तो आपने देख ही लिया।

अब मैं आपको यह भी बता दूं कि यह जहर सिंगापुर के जंगलों में पाए जाने वाले एक घातक सांप का है। उस सांप के जहर पर मैं वैज्ञानिक प्रयोग कर चुका हूं। बाद में मैंने जो इंजेक्शन खरगोश को दिया था, उसमें इसी सांप से जहर लिया गया, जहर का तोड़ था। अगर जहर भारी मात्र में शरीर में पहुंचा हो तो तोड़ के जरिये आदमी की जान बचाई जा सकती है।"

यह जान लेने के बाद कि खंजर सांप के जहर में बुझा हुआ था, राज को सख्त हैरत हुई। इसका मतलब साफ था कि एक बार फिर वो सांपों, जहरों और हसीन दुश्मनों के जाल में फंसते जा रहे हैं।
इस वक्त राज के जेहन मे दिवंगत डॉक्टर जय वर्मा का चेहरा घूम गया, जो सांपों के जहर का माहिर था और जिसने बड़े-बड़े खतरनाक सांप पाल रखे थे और आखिरकार अपनी प्रेमिका ज्योति के मरने की खबर पाकर वो खुद भी एक सांप का जहर पीकर मर गया था।

वो तमाम घटनाएं राज के जेहन में दौड़ने लगीं। इसका मतलब था कि उनके कत्ल की कोशिश के पीछे भी किसी सांपों के जहर के माहिर शख्स का दिमाग काम कर रहा था। वर्ना आमतौर पर चाकू-छुरों को सांपों को जहरों में नहीं बुझाया जाता था। इस काम के लिए दूसरे कई घातक जहर इस्तेमाल किए जाते हैं। राज जितना सोचता था, मामला उतना ही उलझता जाता था।

एक रहस्यमयी औरत, उसकी ज्योति से समानता, उन पर सोचा-समझा कातिलाना हमला और खंजर का सांप के जहर में बुझा होना, यह सारी घटनाएं इतनी हैरत भरी थीं कि नीलकण्ड की समझ में ही कुछ नहीं आ रहा था।

अगर ज्योति उसके सामने न मर गई होती और डॉक्टर जय की लाश का उसने खुद मुआयना न किया होता तो उसने यही समझना था कि वा औरत सोना ही है इन घटनाओं के पीछे पहले की तरह ही डॉक्टर जय का दिमाग ही काम कर रहा है।

लेकिन हकीकत उसके समाने थी, वो दोनों ही मर चुके थे। फिर इस स्थिति में तो किस पर सन्देह कर सकता था? सिर्फ शिंगूरा की शख्सियत उसके सामने थी। वो ज्योति से मिलती-जुलती क्यों थी? क्यों वो उनको मार डालना चाहती थी? ये तमाम सवाल उसके जेहन में चकरा रहे थे।

अचानक राज के दिमाग में एक बात आई और उसने डॉक्टर सावंत से पूछा
"क्या ख्याल है अगर हम दोनों दोस्त बम्बई छोड़ दें?"

"हाँ! इस तरह तुम लोग खतरे से जरूर दूर हो जाओगे।" डॉक्टर सावंत ने कहा-"लेकिन जरूरी नहीं कि तुम बच ही जाओ। हो सकता है तुम्हारा पीछा किया जाए और ये हमले जारी रखें जाएं। तब तक जब तक कि वो अपने उद्देश्य में सफल ने हो जाएं, या फिर उनका भेद ही न खुल जाए। जहां तक मैंने इस मामले पर सोचा है, आप उस औरत के यानि शिंगूरा के बहुत करीब रहे हैं और उसके किसी अहम राज से वाकिफ हो गए हैं। अब अचानक वो आप लोगों को सामने देख कर घबरा गई है। वो समझती है कि आपेन उसे पहचान लिया है और चूंकि आप उसके गहरे राजों से वाकिफ हैं, इसलिए उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं। यही वजह हो सकती है कि वह आप लोगों को कत्ल करवा कर यह किस्सा ही खत्म कर देना चाहती
"आपके ख्याल बहुत दिलचस्प हैं। लेकिन हकीकत यह है कि न तो अभी तक हमने उसे पूरी तरह पहचाना है और न ही हम उसके किसी राज से वाकिफ हैं।"

"यह अलग बात है कि तुम उसकी शख्सियत या उसके किसी राज से वाकिफ ने हो।" डॉक्टर सावंत ने कहा-"लेकिन वो ऐसा समझती है। नहीं तो खामखां दो अजनबियों की जान के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़ जाती ?" ।

"अब क्या कहा जा सकता है?" राज ने गहरी सांस ली।
 
"मेरी राय तो यही है कि आप दोनों सावधान रहें और किसी तरह यह मालूम करने की कोशिश करें कि शिंगूरा कौन है और आखिर चाहती क्या है। अगर आप लोग चाहें तो इस मामले में पुलिस की मदद भी ले सकते हैं। खुफिया विभाग के इंस्पेक्टर विशाल खन्ना मेरे दोस्त हैं, अगर आप चाहें तो मैं आपका उनसे परिचय करवा दूंगा।"

"नहीं डॉक्टर साहब। फिलहाल इसकी जरूरत नहीं है।" राज जल्दी से बोला, "मैं ऐसे मामलों में पुलिस या सीक्र आईक्र डीक्र का दखल पसन्द नहीं करता। ऐसे खतरों का सामना करने में मुझे खुद मजा आता है और इससे पहले भी इसी तरह के खतरों को मुकाबल पुलिस सहायता के बगैर ही कर चुका हूं।"

"जैसी आपकी इच्छा।" डॉक्टर सावंत ने कहा, "लेकिन फिर भी इतना जरूर कहूंगा कि आपको बहुत ज्यादा सावधान रहना चाहिए। इस बारे में मेरी जब भी जरूर पड़े, मैं हाजिर हूं।"

"बहुत-बहुत शुक्रिया। लेकिन फिलहाल अगर इन बातों का जिक्र सतीश से न ही करें तो बेहतर है, खामखां उसे डराने से क्या फायदा ?" राज ने कहा, ''मैं अकेला ही इसे मामले की तफ्तीश करना चाहता हूं।"

"ठीक है, मैं सतीश साहब से कुद नहीं कहूंगा।' डाक्टर सावंत ने कहा।

उसके बाद राज डॉक्टर सावंत से विदा होकर वापस अपने फ्लैट पर वापस आ गया।

उसके बाद भी कई दिन तक वो लगातार यही सोचता रहा कि क्या करना चाहिए? अपनी खोजबीन को वहां से शुरू करे? लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
राज और सतीश बहुत ज्यादा सावधान रहने लगे थे। रात को सोते वक्त वो फ्लैट के दरवाजे व खिड़कियां खुद बन्द करते थे और फ्लैट का कोना-कोना देख कर तसल्ली कर लेते थे, उसके बाद ही बिस्तर पर लेटते थे। बाहर जाते वक्त वो अपने ऑटोमैटिक रिवाल्वर साफ कर लेते थे। अब कार में ही आते-जाते थे और कोशिश करते थे कि रात को जल्दी वापए लौट आएं।

समझदारी का तकाजा भी यही था कि वो सतर्क रहें, क्योंकि ऐसे खतरनाक दुश्मन का क्या भरोसा कि कोई गुण्डा फ्लैट में घुसकर और छुप कर बैठ जाए और सोते हुए ही उनका काम तमाम कर जाए। या कोई दरवाजा या खिड़की खुली रह जाए और दुश्मन को घर में घुसने को मौका मिल पाए।

सतीश कभी-कभी हंस कर कहता था
"दिल्ली से यह सोचकर भागे थे कि बम्बई में निश्चित होकर मजे करेंगे। कहीं ऐसा न हो कि यहां से हमारी खबर ही बाहर जाए।"

इसी तरह दस-बाहर दिन और गुजर गए।
उस दौरान ने तो उन्हें शिंगूरा नजर आई थी और न ही कोई असाधारण घटना ही घटी थी। एक बार मार्केट में राज ने शिंगूरा के भाई को दूर से जरूर देखा था, लेकिन जब तक राज भागकर उसके करीब पहुंचा, वो भीड़ में गुम हो गया था।

शिंगूरा आजकल रेड रोज क्लब में भी नहीं जाती थी। डॉक्टर सावंत का कहना था कि जब से वो बम्बई आई है, यह पहला मौका है जब शिंगूरा क्लब से गैरहाजिर हुई है। इसका मतलब था कि राज और सतीश के दिखाई देने का उस पर यह असर हुआ था कि उसकी दिनचर्या भी प्रभावित हुई थी।

क्योंकि उनका पहला वार खाली गया था, इसलिए राज को पूरा यकीन था कि अब दूसरा वार वो बहुत सोच-समझ कर और भरपूर तरीके से करेंगे और अगर इन्होंने जरा सी भी लापरवाही बरती तो मौत के मुंह में समस जाएंगे। शिंगूरा की खामोशी तूफान से पहले की खामोशी थी और वो यकीनन कोई भयंकर योजना बना रही थी। वो किसी ऐसे पहलू से वार करना चाहते थे जहां उनकी सावधानी का घेरा कमजोर हो।

कई बार उन्होंने बम्बई छोड़ने के बारे में भी सोचा, लेकिन शिंगूरा के बारे में उनकी जिज्ञासा ने उन्हें बम्बई छोड़ने से रोक दिया।

राज और सतीश दोनों आखिर एकमत से इस नतीजे पर पहुंचे थे कि एक रहस्यमय औरत से डरकर बम्बई छोड़ने से अच्छा है कि मर जाएं। जब तक वो इस राज से पूरी तरह पर्दा नहीं उठा देंगे, तब तक वो बम्बई छोड़कर नहीं जाएंगे। चाहे हजारों खतरे उनकी राहों में आ खड़े हों।
 
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