desiaks
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उस भयाक दुर्घना को घटे छः महीने बीत गए थे।
सतीश, राज द्वारा तैयार किए गए जहर के तोड़ से बिल्कुल स्वस्थ हो गया था । लेकिन ज्योति की मौत के बारे में और डॉक्टर जय से उसके सम्बंधों के बारे में सूनकर उसका दिल दिल्ली से उचट गया था और उसने मुम्बई जा बसने का फैसला कर लिया था, जहां पहले से ही उसका अच्छा खासा कारोबार थां
सतीश के आग्रज पर राज ने भी दिल्ली में अपनी जायदाद बेच डाली थी और दोनों जिगरी दोस्त मुम्बई आ गये थे। जिस तरह राज, ज्योति की मौत के बाद दिन-रात साये की तरह सतीश के साथ रहा था, उससे सतीश बहुत प्रभावित था और जब राज की वजह से वो मौत के मुंह से निकल आया तो उसके बाद अब वो एक दिन के लिए भी राज से दूर नहीं रहना चाहता था।
पूरी कथा जाने लेने के बाद उसके दिमाग से ज्योति की मौत का सदमा भी दूर हो गया था और अब वो स्वस्थ, प्रसन्न और प्रफुल्ल जीवन गुजार रहा था।
उस दिन शाम बहुत सुहानी थी और राज तथा सतीश चौपाटी की सैर कर रहे थे, उनके एक तरफ मुम्बई की ऊंची
और आलीशान बिल्डिंगे थी और दूसरी तरफ दृष्अि-सीमा तक फैला हुआ नीला समुद्र था। सूरज सागर मे डूब रहा लगता था
और संतरी रंग की किरणें समुन्द्र पर नाच रही थी। बड़ा मोहक सनसेट का दृश्य था।
ठण्डी हवा के नाम झोंके उन दोनों के चेहरो को छूकर गुजर रहे थे और राज को ऐसा महससू हो रहा था जैसे किसी अदृश्य सुन्दरी की रेशमी जुल्फें उसके चेहरे का छूकर गुजर रही थी।
जुहू चौपाटी पर भीड़-भाड़ थी, सुन्दर चंचल लड़कियां रंग-बिरंगे लुभावने कपड़े पहने इधर-उधर तितलियों की तरह मंडराती फिर रही थी।
सूरज का आग्नेय गोला आधा सुमन्द्र में डूब चुका था, राज उस दृश्य के सम्मोहन में ऐसा फंसा कि स्तब्ध सा खड़ा सूरज पर निगाहे जमाए रहा।
न जाने कितनी देर वो उसी अवस्था में खड़ा रहा, कि अचानक उसने सतीश के हाथों की सख्ख पकड़ अपने कंधों पर महसूस की तो चौंक उठा। सतीश के मुंह से हल्की सी ताज्जुब भरी चीख निकली थीं
"राज!" कहते हुए सतीश ने राज को अपनी तरफ खींचा-“वो सामने देखों ब्लैक ड्रेस में......।" साथ ही उसने एक तरफ इशारा किया।
राज ने उसे तरफ देखा, जिस तरफ सतीश ने अंगुली से इशारा किया था। उसे कोई तीस गज की दूरी पर एक औरत खड़ी नजर आई, जिसने चुस्त काले कपड़े पहन रखे थे और आंखों पर एक फैशनेबल धूम का चश्मा चढ़ा रखा था।
राज को हैरत हुई कि वो इस वक्त धूम का चश्मा क्यों लगाए हुए हैं लेकिन उससे भी ज्यादा जिस चीज ने राज को हैरान किया, वो यह थी कि उस औरत के चेहरे पर नकाब पड़ी हुई थी। होंठों से ऊपर माथे तक का हिस्स खुला हुआ था
और आंखों पर चश्मा था, मिस्त्री ढंग की नकाब।
- “हमारे सहां इस किस्म की नकाबें नहीं पहनी जाती ।" सतीश ने धीरे से कहा-"यह अरब और अफ्रीका का रिवाज हैं
“हां। राज ने कहा, " मैने भी दो-चार अंग्रेजी फिल्मों में देखा हैं और मैं भी यही सोच रहा था। शायद यह औरत उन्ही में से किसी देश की टूरिस्ट हो.........।"
"लेकिन उन दोनों के लिए उस औरत की तरफ आकर्षित हो जाना सिर्फ कपड़ों और नकाब की वजह से ही नहीं थी।
सतीश, राज द्वारा तैयार किए गए जहर के तोड़ से बिल्कुल स्वस्थ हो गया था । लेकिन ज्योति की मौत के बारे में और डॉक्टर जय से उसके सम्बंधों के बारे में सूनकर उसका दिल दिल्ली से उचट गया था और उसने मुम्बई जा बसने का फैसला कर लिया था, जहां पहले से ही उसका अच्छा खासा कारोबार थां
सतीश के आग्रज पर राज ने भी दिल्ली में अपनी जायदाद बेच डाली थी और दोनों जिगरी दोस्त मुम्बई आ गये थे। जिस तरह राज, ज्योति की मौत के बाद दिन-रात साये की तरह सतीश के साथ रहा था, उससे सतीश बहुत प्रभावित था और जब राज की वजह से वो मौत के मुंह से निकल आया तो उसके बाद अब वो एक दिन के लिए भी राज से दूर नहीं रहना चाहता था।
पूरी कथा जाने लेने के बाद उसके दिमाग से ज्योति की मौत का सदमा भी दूर हो गया था और अब वो स्वस्थ, प्रसन्न और प्रफुल्ल जीवन गुजार रहा था।
उस दिन शाम बहुत सुहानी थी और राज तथा सतीश चौपाटी की सैर कर रहे थे, उनके एक तरफ मुम्बई की ऊंची
और आलीशान बिल्डिंगे थी और दूसरी तरफ दृष्अि-सीमा तक फैला हुआ नीला समुद्र था। सूरज सागर मे डूब रहा लगता था
और संतरी रंग की किरणें समुन्द्र पर नाच रही थी। बड़ा मोहक सनसेट का दृश्य था।
ठण्डी हवा के नाम झोंके उन दोनों के चेहरो को छूकर गुजर रहे थे और राज को ऐसा महससू हो रहा था जैसे किसी अदृश्य सुन्दरी की रेशमी जुल्फें उसके चेहरे का छूकर गुजर रही थी।
जुहू चौपाटी पर भीड़-भाड़ थी, सुन्दर चंचल लड़कियां रंग-बिरंगे लुभावने कपड़े पहने इधर-उधर तितलियों की तरह मंडराती फिर रही थी।
सूरज का आग्नेय गोला आधा सुमन्द्र में डूब चुका था, राज उस दृश्य के सम्मोहन में ऐसा फंसा कि स्तब्ध सा खड़ा सूरज पर निगाहे जमाए रहा।
न जाने कितनी देर वो उसी अवस्था में खड़ा रहा, कि अचानक उसने सतीश के हाथों की सख्ख पकड़ अपने कंधों पर महसूस की तो चौंक उठा। सतीश के मुंह से हल्की सी ताज्जुब भरी चीख निकली थीं
"राज!" कहते हुए सतीश ने राज को अपनी तरफ खींचा-“वो सामने देखों ब्लैक ड्रेस में......।" साथ ही उसने एक तरफ इशारा किया।
राज ने उसे तरफ देखा, जिस तरफ सतीश ने अंगुली से इशारा किया था। उसे कोई तीस गज की दूरी पर एक औरत खड़ी नजर आई, जिसने चुस्त काले कपड़े पहन रखे थे और आंखों पर एक फैशनेबल धूम का चश्मा चढ़ा रखा था।
राज को हैरत हुई कि वो इस वक्त धूम का चश्मा क्यों लगाए हुए हैं लेकिन उससे भी ज्यादा जिस चीज ने राज को हैरान किया, वो यह थी कि उस औरत के चेहरे पर नकाब पड़ी हुई थी। होंठों से ऊपर माथे तक का हिस्स खुला हुआ था
और आंखों पर चश्मा था, मिस्त्री ढंग की नकाब।
- “हमारे सहां इस किस्म की नकाबें नहीं पहनी जाती ।" सतीश ने धीरे से कहा-"यह अरब और अफ्रीका का रिवाज हैं
“हां। राज ने कहा, " मैने भी दो-चार अंग्रेजी फिल्मों में देखा हैं और मैं भी यही सोच रहा था। शायद यह औरत उन्ही में से किसी देश की टूरिस्ट हो.........।"
"लेकिन उन दोनों के लिए उस औरत की तरफ आकर्षित हो जाना सिर्फ कपड़ों और नकाब की वजह से ही नहीं थी।