hotaks444
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नौकरी हो तो ऐसी--12
गतान्क से आगे......
अभी कॉंट्रॅक्टर बाबू कुछ ज़्यादा ही गरम हुए लग रहे थे, उनकी साँस तेज़ चल रही थी…इधर जिस शिष्या के हाथ मे उनका लिंग था वो भी गरम हो गयी थी और ज़ोर ज़ोर्से उनका लिंग हिलाने लगी…. कॉंट्रॅक्टर बाबू चरम सीमा पर पहुच गये और उनके लंड ने उस शिष्या की पीठ पे और उसके हाथ पे अपना कामरस उगलना शुरू कर दिया…..उस शिष्या का हाथ कामरस से पूरा भर गया…और ये देख के बाजुवलि शिष्याए हल्के हल्के मुस्कुराने लगी और उसके तरफ देखने लगी…उसने अपना मुँह नीचे कर दिया और हल्के से अपना रुमाल निकाल के अपनी पीठ और हाथ सॉफ करने लगी…. इधर असीम आनंद की प्राप्ति कर कॉंट्रॅक्टर बाबू बहुत खुश हो गये… और उनका काला लंड मुरझा गया…. फिर उन्होने अपने पॅंट का नाडा खोला और उसे अंदर लेके शांति से सुला दिया…….
मंदिर मे पूजा चल रही थी. कॉंट्रॅक्टर बाबू का वीर्य दान अभी अभी हुआ था तो वो ज़रा शांति से बैठे थे.सेठानी अपने बगल मे बैठे सेठ जी से चुप चुप के कुछ बात किए जा रही थी और हस रही थी. वकील बाबू की बेटी भी बैठी दिख रही थी, पर गाड़ी मे रावसाब और वकील बाबू के काले लंड ने उसकी बुर की मा चोद दी थी, इसलिए वो थोडिसी टेढ़ी मेधी, पाव उपर नीचे किए जा रही थी... बल्कि उसे नींद भी बहुत आ रही थी... ये देख कर सेठानी ने मुझे उसे मंदिर के बाजू मे बने बड़े बंग्लॉ के एक रूम मे ले जाने का इशारा किया, मैं उठा और उसे ले जाने लगा तभी एक और पुरुष शिष्य भी उठ गया और हम उसे लेके तलवाले मंज़िल पे एक बड़े से कमरे मे लेके गये और उसे वहाँ पे सुला दिया हम वापस आके अपनी जगह पे बैठ गये और पूजा चल रही थी, आधे लोग सोने को आए थे आधे जाग रहे थे, कोई मन्त्र बोल रहा था कोई सुन रहा था कोई नही सुन रहा था. रावसाब वकील बाबू और कॉंट्रॅक्टर बाबू सामने बैठी महिला शिष्या की पीठ को घुरे जा रहे थे और मौका मिलते ही आगे खिसक के उनकी गांद से अपने घुटनो को मिला रहे थे, शिष्या आगे सरकने लगती तो सेठ जी सामने से पीछे देखते तो वो फिर पीछे हो जाती, ये देख के तीनो हसते और, जोरोसे उनकी गांद पर अपना घुटना घिसते....रावसाब अभी भी एक हाथ से अपने घोड़े को सहला रहे थे, वो बड़े लंबे रेस के घोड़े लग रहे थे. एक बात तो थी सेठ जी के परिवार की सभी महिलाओ की चुचिया बहुत बड़ी बड़ी थी..सबकी सारिया थोडिसी खिसकी हुई थी तो बाजू से बड़ी बड़ी चुचिया देखने को मिल रही थी मैं सोच रह था कि इस नौकरी मे मुझे महीने का पगार भी मिलनेवाला है और इन सब और बातो का मज़ा ये तो दुगना लॉटरी है. किसीकि लटकती हुई चुचिया तो किसीकि मजबूत और छाती से तंगी चिपकी हुई ताजे आम के तरह नोकदार आकार बनाती चुचिया देख के मेरे लंड की हालत और बेकार हुई जा रही थी. अभी पूजा लगभग ख़तम होने को थी बस आधा पौना घंटा और बाकी थी. तभी एक पंडित उधर से उठे और बंगले की तरफ चल दिए, उनकी जगह दूसरे पंडित ने ले ली, उनके पीछे सेठानी भी चल दी, मुझे ये बात थोडिसी रहास्यमय लगी पर मैं बैठा रहा जैसे कि मैं पहले बंगले मे जा चुका था इसलिए मैं चाहू तो अभी भी जाके ये लोग कहाँ गये ये आसानी से पता लगा सकता था थोड़ी देर मे मैं मूत के आता हू कहके उधर से उठा और बंगले की तरफ चल दिया...बाहर सब अंधेरा था बंगले के बाजू मे बस रोशनी थी वो भी बहुत धीमी थी... बंगले के चारो और बड़ा सा कंपॅन लगा हुआ था और चारो और से बहुत सारी जगह छूटी हुई थी जो आगे जाके बड़े बड़े खेतो को मिलती थी. मैं बंगले के पीछे गया और आगे थोड़ा सा खेतो मे चलता गया, उधर मैने अपने लंड को धार मारने के लिए बाहर निकाला और राहत की साँस लेते हुए मूत क्रिया पूर्ण की वापसे आते समय मैं बंगले के पीछे से दिख रही बड़ी बड़ी खिड़कियो को देखते जा रहा था, मैं पहचान पा रहा था कि अनुमान से देखा जाए तो जिस खिड़की मे लाइट जल रही है वो वोही है जिसमे हमने वकील बाबू के बेटी को सुलाया था...मेरा दिमाग़ तेज़ चलने लगा और मैने समझ लिया कि दाल मे कुछ तो काला है क्यू कि जब हम उसे सुला के निकले थे तो हम ने लाइट बंद कर दी थी………
गतान्क से आगे......
अभी कॉंट्रॅक्टर बाबू कुछ ज़्यादा ही गरम हुए लग रहे थे, उनकी साँस तेज़ चल रही थी…इधर जिस शिष्या के हाथ मे उनका लिंग था वो भी गरम हो गयी थी और ज़ोर ज़ोर्से उनका लिंग हिलाने लगी…. कॉंट्रॅक्टर बाबू चरम सीमा पर पहुच गये और उनके लंड ने उस शिष्या की पीठ पे और उसके हाथ पे अपना कामरस उगलना शुरू कर दिया…..उस शिष्या का हाथ कामरस से पूरा भर गया…और ये देख के बाजुवलि शिष्याए हल्के हल्के मुस्कुराने लगी और उसके तरफ देखने लगी…उसने अपना मुँह नीचे कर दिया और हल्के से अपना रुमाल निकाल के अपनी पीठ और हाथ सॉफ करने लगी…. इधर असीम आनंद की प्राप्ति कर कॉंट्रॅक्टर बाबू बहुत खुश हो गये… और उनका काला लंड मुरझा गया…. फिर उन्होने अपने पॅंट का नाडा खोला और उसे अंदर लेके शांति से सुला दिया…….
मंदिर मे पूजा चल रही थी. कॉंट्रॅक्टर बाबू का वीर्य दान अभी अभी हुआ था तो वो ज़रा शांति से बैठे थे.सेठानी अपने बगल मे बैठे सेठ जी से चुप चुप के कुछ बात किए जा रही थी और हस रही थी. वकील बाबू की बेटी भी बैठी दिख रही थी, पर गाड़ी मे रावसाब और वकील बाबू के काले लंड ने उसकी बुर की मा चोद दी थी, इसलिए वो थोडिसी टेढ़ी मेधी, पाव उपर नीचे किए जा रही थी... बल्कि उसे नींद भी बहुत आ रही थी... ये देख कर सेठानी ने मुझे उसे मंदिर के बाजू मे बने बड़े बंग्लॉ के एक रूम मे ले जाने का इशारा किया, मैं उठा और उसे ले जाने लगा तभी एक और पुरुष शिष्य भी उठ गया और हम उसे लेके तलवाले मंज़िल पे एक बड़े से कमरे मे लेके गये और उसे वहाँ पे सुला दिया हम वापस आके अपनी जगह पे बैठ गये और पूजा चल रही थी, आधे लोग सोने को आए थे आधे जाग रहे थे, कोई मन्त्र बोल रहा था कोई सुन रहा था कोई नही सुन रहा था. रावसाब वकील बाबू और कॉंट्रॅक्टर बाबू सामने बैठी महिला शिष्या की पीठ को घुरे जा रहे थे और मौका मिलते ही आगे खिसक के उनकी गांद से अपने घुटनो को मिला रहे थे, शिष्या आगे सरकने लगती तो सेठ जी सामने से पीछे देखते तो वो फिर पीछे हो जाती, ये देख के तीनो हसते और, जोरोसे उनकी गांद पर अपना घुटना घिसते....रावसाब अभी भी एक हाथ से अपने घोड़े को सहला रहे थे, वो बड़े लंबे रेस के घोड़े लग रहे थे. एक बात तो थी सेठ जी के परिवार की सभी महिलाओ की चुचिया बहुत बड़ी बड़ी थी..सबकी सारिया थोडिसी खिसकी हुई थी तो बाजू से बड़ी बड़ी चुचिया देखने को मिल रही थी मैं सोच रह था कि इस नौकरी मे मुझे महीने का पगार भी मिलनेवाला है और इन सब और बातो का मज़ा ये तो दुगना लॉटरी है. किसीकि लटकती हुई चुचिया तो किसीकि मजबूत और छाती से तंगी चिपकी हुई ताजे आम के तरह नोकदार आकार बनाती चुचिया देख के मेरे लंड की हालत और बेकार हुई जा रही थी. अभी पूजा लगभग ख़तम होने को थी बस आधा पौना घंटा और बाकी थी. तभी एक पंडित उधर से उठे और बंगले की तरफ चल दिए, उनकी जगह दूसरे पंडित ने ले ली, उनके पीछे सेठानी भी चल दी, मुझे ये बात थोडिसी रहास्यमय लगी पर मैं बैठा रहा जैसे कि मैं पहले बंगले मे जा चुका था इसलिए मैं चाहू तो अभी भी जाके ये लोग कहाँ गये ये आसानी से पता लगा सकता था थोड़ी देर मे मैं मूत के आता हू कहके उधर से उठा और बंगले की तरफ चल दिया...बाहर सब अंधेरा था बंगले के बाजू मे बस रोशनी थी वो भी बहुत धीमी थी... बंगले के चारो और बड़ा सा कंपॅन लगा हुआ था और चारो और से बहुत सारी जगह छूटी हुई थी जो आगे जाके बड़े बड़े खेतो को मिलती थी. मैं बंगले के पीछे गया और आगे थोड़ा सा खेतो मे चलता गया, उधर मैने अपने लंड को धार मारने के लिए बाहर निकाला और राहत की साँस लेते हुए मूत क्रिया पूर्ण की वापसे आते समय मैं बंगले के पीछे से दिख रही बड़ी बड़ी खिड़कियो को देखते जा रहा था, मैं पहचान पा रहा था कि अनुमान से देखा जाए तो जिस खिड़की मे लाइट जल रही है वो वोही है जिसमे हमने वकील बाबू के बेटी को सुलाया था...मेरा दिमाग़ तेज़ चलने लगा और मैने समझ लिया कि दाल मे कुछ तो काला है क्यू कि जब हम उसे सुला के निकले थे तो हम ने लाइट बंद कर दी थी………