desiaks
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देवराज चौहान और मोना चौधरी एक साथ
जथूरा
वो बेढंगा-सा पत्थर था जो कि उस सुनसान सड़क के पचास फीट ऊपर हवा में देर से लहरा रहा था। अजीब-सा पत्थर। इधर-उधर से दो-चार चोंचें बाहर निकली हुई थीं। कहीं से गहरा तो कहीं से उभरा हुआ था। परंतु उसमें एक बात बेहद खास थी, वो थी उसका चमकना । जब भी वो सूर्य की सीधी किरणों के सामने आता तो उसके चमकने का नजारा देखने ही वाला होता। रंग-बिरंगी किरणें निकलतीं उसमें से और कई फीट दूर तक फैलती दिखाई देतीं।।
यूं वो पत्थर ज्यादा बड़ा नहीं था।
हाथ की मुट्ठी में उसे जकड़ा जा सकता था, परंतु फिर भी वो थोड़ा-बहुत दिखाई देता रहता।
ये हैरत और रहस्यमय बात थी वो देर से उस सड़क के पचास फीट ऊपर मंडरा रहा था।
सड़क पर से इक्का-दुक्का वाहन कभी-कभार निकल जाते थे।
धूप से तप रही थी सड़क। गर्मी ने मौसम को बेहाल किया हुआ था। । तभी दूर सड़क पर काले रंग की लम्बी कार आती दिखाई दी। कार की खिड़कियों के शीशे काले थे। उसके अलावा सड़क पर दूर तक कोई वाहन नहीं आ रहा था।
वो कार अब पास आ चुकी थी। एकाएक वो चमकता पत्थर तेजी से नीचे आया और कार के आगे के शीशे पर जा लगा। ‘चटाक' की तेज आवाज आई और वो पत्थर कार के भीतर प्रवेश कर गया। शीशा चटक गया था। फौरन ही कार के ब्रेक लगते चले गए।
कार में दो व्यक्ति थे।
दोनों की उम्र 50-55 थी। उन्होंने महंगे कपड़े पहन रखे थे। उनमें से एक कार को चला रहा था और दूसरा बगल में बैठा था।
दोनों बचपन के यार थे। अब दोनों अलग-अलग बिजनेस करते थे और अपने काम में सफल थे। इस वक्त वे दोनों पांच-सात दिन मौज-मस्ती में बिताने के लिए दिल्ली से कहीं दूर जा रहे थे। उनकी मौज में खलल न पड़े, इस वास्ते उन्होंने साथ में ड्राइवर भी नहीं लिया था।
| एक का नाम लक्ष्मण दास था।
दूसरा सपन चड्ढा था।
ये हादसा होते ही लक्ष्मण दास ने फौरन कार के ब्रेक लगा दिए। पहिए के चीखने की आवाज उभरी फिर थम गई।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा। चेहरों पर बौखलाहट थी।
फिर सामने चटक चुके शीशे को देखा, जिसके पार कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। शीशे में उस जगह पर छेद नजर आ रहा था, जहां से रास्ता बनाता वो पत्थर कार् के भीतर आ पहुंचा
था।