XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - SexBaba
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XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

desiaks

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Aug 28, 2015
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देवराज चौहान और मोना चौधरी एक साथ




जथूरा

वो बेढंगा-सा पत्थर था जो कि उस सुनसान सड़क के पचास फीट ऊपर हवा में देर से लहरा रहा था। अजीब-सा पत्थर। इधर-उधर से दो-चार चोंचें बाहर निकली हुई थीं। कहीं से गहरा तो कहीं से उभरा हुआ था। परंतु उसमें एक बात बेहद खास थी, वो थी उसका चमकना । जब भी वो सूर्य की सीधी किरणों के सामने आता तो उसके चमकने का नजारा देखने ही वाला होता। रंग-बिरंगी किरणें निकलतीं उसमें से और कई फीट दूर तक फैलती दिखाई देतीं।।

यूं वो पत्थर ज्यादा बड़ा नहीं था।

हाथ की मुट्ठी में उसे जकड़ा जा सकता था, परंतु फिर भी वो थोड़ा-बहुत दिखाई देता रहता।

ये हैरत और रहस्यमय बात थी वो देर से उस सड़क के पचास फीट ऊपर मंडरा रहा था।

सड़क पर से इक्का-दुक्का वाहन कभी-कभार निकल जाते थे।

धूप से तप रही थी सड़क। गर्मी ने मौसम को बेहाल किया हुआ था। । तभी दूर सड़क पर काले रंग की लम्बी कार आती दिखाई दी। कार की खिड़कियों के शीशे काले थे। उसके अलावा सड़क पर दूर तक कोई वाहन नहीं आ रहा था।

वो कार अब पास आ चुकी थी। एकाएक वो चमकता पत्थर तेजी से नीचे आया और कार के आगे के शीशे पर जा लगा। ‘चटाक' की तेज आवाज आई और वो पत्थर कार के भीतर प्रवेश कर गया। शीशा चटक गया था। फौरन ही कार के ब्रेक लगते चले गए।

कार में दो व्यक्ति थे।
दोनों की उम्र 50-55 थी। उन्होंने महंगे कपड़े पहन रखे थे। उनमें से एक कार को चला रहा था और दूसरा बगल में बैठा था।
दोनों बचपन के यार थे। अब दोनों अलग-अलग बिजनेस करते थे और अपने काम में सफल थे। इस वक्त वे दोनों पांच-सात दिन मौज-मस्ती में बिताने के लिए दिल्ली से कहीं दूर जा रहे थे। उनकी मौज में खलल न पड़े, इस वास्ते उन्होंने साथ में ड्राइवर भी नहीं लिया था।
| एक का नाम लक्ष्मण दास था।
दूसरा सपन चड्ढा था।
ये हादसा होते ही लक्ष्मण दास ने फौरन कार के ब्रेक लगा दिए। पहिए के चीखने की आवाज उभरी फिर थम गई।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा। चेहरों पर बौखलाहट थी।
फिर सामने चटक चुके शीशे को देखा, जिसके पार कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। शीशे में उस जगह पर छेद नजर आ रहा था, जहां से रास्ता बनाता वो पत्थर कार् के भीतर आ पहुंचा
था।
 
क्या हुआ लक्ष्मण?” सपन चड्ढा परेशान-सा कह उठा। किसी हरामी ने पत्थर मारा है कार पर। देखता हूँ साले को अभी।” लक्ष्मण दास ने कहा और कार को सड़क किनारे रोककर | खड़ा किया–“छोडूंगा नहीं उस कमीने को ।” वो दरवाजा खोलकर बाहर निकलता कह उठा। | ‘क्या मुसीबत है!' सपन चड्ढा बड़बड़ाया और वो भी बाहर निकला।

दोनों की निगाह हर तरफ घूमी। वहां कोई होता तो उन्हें नजर आता! “कोई नहीं है।” सपन चड्ढा कह उठा।
छिप गया होगा।”
“छोड़। रास्ते में कहीं से नया शीशा फिट करा लेंगे।” सपन चड्ढा ने कहा।

सारा मजा खराब कर दिया।” चल अब।” गुस्से में बड़बड़ाता लक्ष्मण दास चटक चुके शीशे को नीचे गिराने लगा कि आगे का रास्ता साफ देख सके। साथ ही साथ वो नजरें भी घुमा रहा था कि पत्थर फेंकने वाला दिखे तो सही।
सपन चड्ढा ने भी उसके काम में हाथ बंटाया। “तूने आज सुबह किसका मुंह देखा था?” सपन चड्ढा ने पूछा।

अब तेरे से क्या छिपाना ।” लक्ष्मण दास मुंह फुलाकर बोला—“शीशे में अपना ही चेहरा देखा था।”

“तभी।”

“चुप कर। नहीं तो तेरे दांत तोड़ दूंगा। मैं इस वक्त गुस्से में

" तभी सपन चड्ढा की निगाह कार के भीतर पड़ी तो उसके चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। आगे की दोनों सीटों के बीच उसे वो ही चमकता-सा पत्थर नजर आ रहा था। सपन चड्ढा की आंखें फैल गईं। वो जल्दी से कार के दरवाजे की तरफ बढ़ा और उस पत्थर को उठाकर हाथ में ले लिया। उसे उलट-पलटकर देखा।

लक्ष्मण—इधर तो आ।” सपन चड्ढा ने उसे पुकारा। “तंग मत कर।”

ये देख, मेरे हाथ में क्या है?” लक्ष्मण दास उसके पास आया। उस चमकते पत्थर को देखकर चौंका।

ये क्या?”

इसी ने तो हमारी कार का शीशा तोड़ा है। मैंने इसे कार के भीतर से उठाया है।”

“ये तो कीमती पत्थर लगता है।” लक्ष्मण दास ने तुरंत पत्थर अपने हाथ में लिया।

दोनों बेहद हैरानी में थे।

इसे किसी ने फेंका नहीं है।” लक्ष्मण दास बोला-“इतना कीमती पत्थर कोई कैसे फेंक सकता है?”

हीरा है।” । “शायद उससे भी बढ़कर। इसकी चमक देख, हीरा भी इस तरह नहीं चमकता ।” लक्ष्मण दास ने सिर उठाकर आसमान की तरफ देखा और कह उठा–“शायद हमारे हाथ बेशकीमती चीज लग गई है।”

बेशकीमती?” । “हां, लगता है ये पत्थर अंतरिक्ष में से नीचे आ गिरा है। ये इस धरती का पत्थर नहीं है। कितनी तेजी से आया? वरना कार के शीशे को आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता। एक-आध पत्थर शीशे को आसानी से नहीं तोड़ सकता। ये बहुत ऊपर से शीशे पर आ गिरा है। अंतरिक्ष की ही देन है ये पत्थर ।”

“फिर तो सच में बेशकीमती है।” सपन चड्ढा अजीब-से स्वर में कह उठा।

निकल ले यहां से ।” दोनों कार में बैठे।
 
लक्ष्मण ने कार आगे बढ़ा दी। अब वो चमकता पत्थर सपन चड्ढा के हाथ में था। “अब इसका हम क्या करेंगे?” सपन चड्ढा बोला।

जेब में रख। बहुत ऊंचे दामों पर बेचेंगे। माल को आधा-आधा करेंगे।” लक्ष्मण दास मुस्करा पड़ा।

“तू रोज सोकर उठने के बाद शीशे में अपना चेहरा देखा कर ।” सपन चड्ढा मुस्कराकर बोला।

“अब से ऐसा ही किया करूंगा।” लक्ष्मण दास हंसा।।

सपन चड्ढा ने उस चमकते पत्थर को अपनी पैंट की जेब में रख लिया।

कार अब ज्यादा रफ्तार से नहीं चल रही थी। क्योंकि सामने का शीशा टूटा होने की वजह से हवा सीधी चेहरों पर पड़ रही। थी। अब गर्मी का एहसास उन्हें होने लगा था। वरना पहले तो कार का ए.सी. चल रहा था।

कोई वर्कशाप देख, जहां से शीशा लगवा सकें।”

आधे घंटे बाद आएगी ।” लक्ष्मण दास बोला-“मैं उस कीमती | पत्थर के बारे में सोच रहा हूं।” ।

लगता है हमारी किस्मत के दरवाजे...ओह।” क्या हुआ?” लक्ष्मण दास ने उसे देखा। “वो...वो पत्थर गर्म हो रहा है।” सपन चड्ढा ने अपनी पैंट की जेब की तरफ देखा।

ये कैसे हो सकता है।” । “ये हो रहा है उल्लू के पट्टे।” सपन चड्ढा ने हड़बड़ाकर जेब में हाथ डाला और पत्थर निकाला-“देख...गर्म है ये।” । “ओह...सच में ।” लक्ष्मण दास ने पत्थर को हाथ लगाते ही कहा।।

“अब क्या करूं...इसे तो हाथ में रखना भी कठिन होता जा रहा है।” सपन चड्ढा कह उठा।

डैशबोर्ड पर रख दे।” । सपन चड्ढा ने फौरन पत्थर को डैशबोर्ड पर रख दिया।

ये गर्म क्यों हो रहा है?

अंतरिक्ष से आया पत्थर है ये। यहीं की जमीन के असर की वजह से कुछ हो रहा होगा। अभी सब ठीक हो जाएगा।”

सपन चड्ढा रह-रहकर कर डैशबोर्ड पर रखे पत्थर को देखने लगा।

लक्ष्मण दास कार चलाने पर ध्यान दे रहा था।

तभी सपन चड्ढा की आंखें भय और हैरत से फैलती चली गईं।

वो पत्थर एकाएक मानवीय आकृति का रूप लेने लगा था। | सपन चड्ढा चीखकर, लक्ष्मण दास को बताना चाहता था, परंतु होंठों से आवाज न निकली।

देखते ही देखते वो तीन इंच की हिलती-फिरती आकृति में बदल गया। गंजा सिर । कानों में बालियां। नाक में नथनी। बड़े-से कान। सूखा-सा शरीर। टांगों के बीच कोई कपड़ा जैसा कुछ लिपटा था।

लक्ष्मण।” सपन चड्ढा के गले से खरखराता-सा स्वर उभरा। हां।” देख...पत्थर ।”
 
लक्ष्मण दास की निगाह ज्यों ही उस तरफ घूमी, घबराहट में कार पर से कंट्रोल हट गया।

कार संभाल ।” सपन चड्ढा चीखा। परंतु तब तक कार ‘धड़ाम से सड़क के किनारे खड़े पेड़ से जा टकराई थी।
सपन चड्ढा ने किसी तरह खुद को बचाया।

लक्ष्मण दास का माथा स्टेयरिंग से जा टकराया। परंतु रफ्तार कम होने की वजह से बचाव हो गया था।
परंतु वो तीन इंच का इंसान डैशबोर्ड पर मौजूद रहा।

ये...ये क्या है सपन?” क...कहीं अंतरिक्ष जीव त...तो नहीं है?” पागल है क्या...ये...ये।” तभी कार में अजीब-सी महक फैलने लगी। दोनों को लगा जैसे उनके मस्तिष्क सुन्न होने लगे हों।

जो मुझे छू लेता है, वो मेरा गुलाम बन जाता है।” डैशबोर्ड पर खड़े तीन इंच के आदमी के होंठों से आवाज निकली–“तुम दोनों ने मुझे छुआ, अब तुम दोनों मेरे गुलाम हो ।”

क...कौन हो तुम?”

मोमो जिन्न हूँ मैं।”

मोमो जिन्न?”

हां, जथूरा का सेवक मोमो जिन्न। इस दुनिया के लोग मुझे कम ही जानते हैं।”

इ...इस दुनिया...?”

“खामोश रहो। जो मैं कहता हूं सिर्फ वो सुनो। मैं तो कब से | तुम दोनों के इंतजार में उड़ रहा था।”

“उड़ रहा था?”

। “हां, जथूरा ने खबर भिजवाई थी मुझे कि तुम दोनों यहां से निकलोगे और...।”

तेरी तो ।” एकाएक लक्ष्मण दास ने उसे पकड़ने के लिए गुस्से से अपना हाथ आगे बढ़ाया। | इससे पहले कि वो मोमो जिन्न को पकड़ पाता, उसके हाथ को बेहद तीव्र झटका लगा।। | लक्ष्मण दास का पूरा शरीर झनझना उठा।

मोमो जिन्न की हंसी गुंजी वहां।।

दोबारा ऐसी गलती की तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। अपने गंदे हाथ मुझसे दूर रखो।” मोमो जिन्न ने कहा।
 
लक्ष्मण दास अपना हाथ थामे डरा-सा बैठ गया। सपन चड्ढा के होश गुम हो गए लगते थे।

उसी पल मोमो जिन्न ने डैशबोर्ड से छलांग लगाई और पीछे वाली सीट पर जा पहुंचा और देखते-ही-देखते वो चार फीट जितना बड़ा होता चला गया। अब वो आराम से सीट पर बैठ गया था।

लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा की गर्दन घूमी और उस पर जा टिकी थी।

उसका बड़ा रूप देखकर दोनों कांप उठे थे।

मैं तो पेड़ से भी लम्बा हो जाऊं, लेकिन इस वक्त कार में बैठा हूं।” मोमो जिन्न हंस पड़ा-“ये बात अपने दिमाग में बिठा लो कि तुम दोनों अब मेरे गुलाम हो। जो मैं कहूंगा, वो ही तुम्हें करना पड़ेगा। तुम दोनों ने मुझे छुआ, इससे मुझे हक मिल गया, तुम दोनों को गुलाम बनाने का ।” ।

म...मैंने कहां छुआ?” सपन चड्ढा ने कहा। “जब मैं पत्थर बना हुआ था तो तुम दोनों ने मुझे छुआ ।”

हमने तो पत्थर को छुआ था।” “वो मैं ही था। लेकिन तुम लोगों ने मुझे कीमती पत्थर समझा। मैं तुम दोनों की बातें सुन रहा था और बहुत मजा आ रहा था मुझे। अगर तुम लोग मुझे न छूते तो, तब मैं तुमसे बात कर ही नहीं सकता था।” | लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा, दोनों मन ही मन कांप रहे थे। चेहरे फक्क थे। हालत बुरी थी।

“त...तुम हमसे क्या चाहते हो?”

मैं कुछ नहीं चाहता। मेरी अपनी तो इच्छाएं ही नहीं हैं। वो | तो जथूरा का हुक्म मानना पड़ता है।”

कौन...जथूरा...लक्ष्मण तू जानता है जथूरा को?”

इस नाम की मेरी कोई पार्टी नहीं ।”

मैं अपने मालिक जथूरा की बात कर रहा हूं। उसके हुक्म पर ही आया हूं।” |
दोनों चुप।।
“तू देवा को जानता है लक्ष्मण दास?”

“देवा, नहीं, मैं इस नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानता।” लक्ष्मण दास जल्दी से बोला।

झूठ मत बोल मेरे से, वरना मैं तुझे मार दूंगा।”

‘’ कसम से, मैं किसी देवा को नहीं जानता।”
उसी पल मोमो जिन्न की आंखें बंद हो गईं। वो इस तरह गर्दन हिलाने लगा, जैसे किसी की बात सुन रहा हो। फिर उसने आंखें खोलीं और कह उठा।
“तू देवराज चौहान को नहीं जानता क्या?”

व...वो डकैती मास्टर?” लक्ष्मण दास के होंठों से निकला। उसी की बात कर रहा हूं।” “उसका नाम देवा नहीं...।”

मैं उसे देवा कहकर बुलाता हूं।” मोमो जिन्न मुस्करा पड़ा-“तू देवराज चौहान को कैसे जानता है?”

“म...मैंने एक बार उससे अपना कोई काम करवाया था।”

“फिर तो बढ़िया पहचान है उससे ।”

थोड़ी सी, उसका फोन नम्बर है मेरे पास–दें क्या?”

 
रख अपने पास। बहुत काम आएगा अभी।” मोमो जिन्न ने कहा।

क्या मतलब?”

“तू मतलब बड़े पूछता है।”

न...हीं पूछता।” मोमो जिन्न ने सपन चड्ढा को देखा।

और तू, सपन चड्ढा नाम है तेरा?”

“हजूर, कोई गलती हो गई मुझसे? मैं देवराज चौहान को नहीं जानता।”

उसे जानने की जरूरत भी नहीं है।” मोमो जिन्न बोला—“मोना चौधरी को जानता है?”

नहीं जानता।” ।

तो तेरी पहचान करानी पड़ेगी मोना चौधरी से।

” म...मैं समझा नहीं ।”

दो पल चुप रहकर मोमो जिन्न कह उठा। “एक बात कान खोलकर सुन लो। अब तुम दोनों मेरे गुलाम हो। जो मैं कहूंगा, वो तुम लोगों को हर हाल में करना पड़ेगा। न करने का मतलब बहुत बुरा होगा। मैं तुम दोनों को नंगा करके
| भरे बाजार में घाव बहुत बुरा होगा हर हाल में करना इलाम

। “ऐसा मत करना।” लक्ष्मण दास कह उठा।

जब मेरी बात नहीं मानोगे तो मैं ऐसा ही करूंगा। इंसान कैसी सजाओं से डरते हैं, मैं सब जानता हूं। मैं बहुत बुरी सजाएं देता हूं। सुनोगे तो कांप उठोगे। नमूना दिखाऊ क्या?"

न...हीं...।”

“समझदार हो। अब मेरा पहला आदेश सुनो। वापस जाओ। मुझसे पूछे बिना तुम लोग शहर से बाहर नहीं जाओगे।”

पूछेगे कैसे?” मोमो जिन्न कहोगे तो मैं हाजिर हो जाऊंगा।”

ठीक है।” सपन चड्ढा बोला–“लेकिन तुम चाहते क्या हो हमसे? हम...।”

“मालूम हो जाएगा। याद रखो, जथूरा महान है। उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। वो हादसों का देवता है। परंतु आसमान में बुरे ग्रह इकट्ठे हो रहे हैं, जो कि जथूरा के हक में ठीक नहीं। उन बुरे ग्रहों में दो ग्रह मुख्य हैं देवा और मिन्नो। इनमें से एक ग्रह मिट गया तो दूसरे की ताकत खुद-ब-खुद ही खत्म हो जाएगा। अब तुम दोनों माध्यम बनोगे जथूरा के खेल के। तभी तो मजा आएगा।”

मजा? किसे आएगा मजा?”

सबको, जो भी इस खेल में शामिल होगा।” मोमो जिन्न हंस | पड़ा-“वास्तव में जथूरा महान है। उस जैसा दूसरा कोई नहीं ।”
 
जगमोहन ने कार को जर्जर हो रही छः मंजिला इमारत की पार्किंग में रोका और इंजन बंद करके बाहर निकला।
चिलचिलाती धूप जोरों पर थी। दिन के बारह बज रहे थे। उसने सिर उठाकर इमारत की छठी मंजिल को देखा, फिर रूमाल निकालकर चेहरे पर उभर रहे पसीने को पोंछता बड़बड़ा उठा।
‘मैंने जाने कौन से पाप किए होंगे, जो मुझे इस गर्मी में, सीढ़ियों से छः मंजिलें तय करनी पड़ रही हैं। ।
फिर जगमोहन इमारत के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया। ये बरसोवा का भीड़-भाड़ वाला, महंगा इलाका था। बाहर की सड़क पर जाते वाहनों का शोर भीतर तक, उसके कानों में पड़ रहा था।

ये पुरानी इमारत थी। लिफ्ट का इंतजाम नहीं था। जगमोहन जब सीढ़ियां चढ़कर छठी मंजिल पर पहुंचा तो हांफ रहा था। चेहरा और शरीर पसीने से भर चुका था। चंद पल ठिठककर जगमोहन ने सांसों को संयत किया। रूमाल निकालकर पसीना पोंछा फिर आगे बढ़ गया।

दाईं तरफ वाले फ्लैट पर पहुंचकर रुका। दरवाजा बंद था। | जगमोहन ने बाहर लगी बेल का स्विच दबाया तो भीतर कहीं बेल बजी।

गर्मी को कोसता जगमोहन इधर-उधर देखने लगा। तभी दरवाजा खुला। तीस बरस का लाल-लाल आंखों वाला आदमी दिखा। उसका चेहरा बता रहा था कि रात उसने दबाकर पी थी। जिसके निशान चेहरे पर अभी तक नजर आ रहे थे।

तुम?” जगमोहन को देखते ही उसके होंठों से निकला।

हजम नहीं हुआ मेरा आना?" जगमोहन होंठ सिकोड़कर कह उठा।

आओ।” दरवाजा पूरा खोलते वो पीछे हटता चला गया। जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया। उसने दरवाजा बंद कर दिया। ये कमरा ड्राइंग रूम था और ए.सी. चल रहा था। जगमोहन ने उस आदमी को देखा और बोला।

रमजान भाई हैं या छः मंजिल की सीढ़ियां चढ़नी बेकार गईं?” हैं, तुम बैठो।”

सुनकर राहत मिली ।” जगमोहन ने कहा और आगे बढ़कर सोफे पर जा बैठा।

मिनट-भर बाद ही कमरे में पचास बरस के रमजान भाई ने भीतर प्रवेश किया। उसने सफेद धोती-कुर्ता पहना हुआ था। और माथे पर तिलक लगा रखा था।

रमजान भाई तुम्हारी तो जात ही पता नहीं चलती ।” जगमोहन बोला।

क्यों?” रमजान भाई बैठते हुए मुस्कराकर बोला। “मुसलमान होकर तुम हिन्दुओं की तरह रहते...” फिर भी मेरी जात पता नहीं चली?” रमजान भाई मुस्कराया। हिन्दू हो?”

नहीं” रमजान भाई ने इंकार में सिर हिलाया। “मुसलमान हो?” *नहीं ।” “इसके अलावा कौन-सी जात है तुम्हारी?”

“मैं इंसान की जात का हूं।” जगमोहन मुस्कराया।

“मैं हिन्दू नहीं, मुसलमान नहीं। इंसान हूँ मैं...बस। यही मेरी जात है। ये ही मेरा धर्म है।”
 
“बहुत ऊंचे खयाल हैं।”

“साधारण विचार है मेरा ये। ऊंचा-बूंचा कुछ नहीं है।” रमजान भाई हाथ हिलाकर बोला।।

काम की बात कर ।” जगमोहन की निगाह उसके चेहरे पर जा टिकी।

“तू आया है तो तू करेगा बात ।”

तेरा काम पूरा हो गया? “हां, तूने और देवराज चौहान ने कर दिया ।” “काम में कोई कमी तो नहीं रही?”

नहीं ।” । “कितने दिन हो गए काम को पूरे हुए?”

चार दिन ।”

और तूने नोट देने का नाम ही नहीं लिया। एक बार भी फोन नहीं किया कि तूने नोट तैयार कर रखे हैं। तेरी जात इंसानों वाली है तो इंसानों वाला काम कर। कीमत चुका ।” जगमोहन बोला।।

मैं दो-तीन दिन बहुत व्यस्त रहा।” । अब तो व्यस्त नहीं है?” नहीं हूं।” रमजान भाई मुस्करा पड़ा। नोट निकाल ।”

नोट तैयार रखे हैं तेरे।” फिर रमजान भाई ने आवाज लगाई–“किशन ।” ।

वो ही आदमी कमरे में आ पहुंचा।

जगमोहन के लिए ठंडा-गर्म...।” । नोट की बात कर ठंडा-गर्म मैं लेकर ही यहां आया हूं।” इसका सामान ला दे।” रमजान भाई ने कहा। किशन वापस चला गया।

मेरे को फोन करता तो, मैं तेरे को नोट पहुंचा देता।”

तेरी इतनी ही मेहरबानी होगी कि अपने आदमी के हाथ नोट छः मंजिल नीचे तक कार में पहुंचा देना।”

तभी वो आदमी मीडियम साइज का छोटा ब्रीफकेस लेकर आया और जगमोहन के सामने रखा।

“खोल इसे ।”

उसने सूटकेस खोला। हजार की गड्डियों से ठुसा पड़ा था वो। '

कितने हैं?" जुगमोहन ने रमजान भाई को देखा।
असी लाख ।” । “बात कितने में तय हुई थी?” जगमोहन के मत्थे पर बल पड़े। “अस्सी लाख।”

“तुमने कहा था कि काम मेरी पसंद से निबटाओगे तो एक करोड़ दूंगा। और तू मान चुका है कि काम में कोई कमी नहीं रही।”

“तो तेरे को मेरी कही वो बात याद है।”

नोटों से वास्ता रखती, मैं कोई बात नहीं भूलता। बीस और दे।”

रमजान भाई ने उस आदमी को इशारा किया तो वो पलटकर चला गया।

किधर गया है वो?” बीस लेने ।” रिवॉल्वर लेने तो नहीं भेजा?” “रमजान भाई कभी भी धोखेबाजी नहीं करता।”

तभी वो वापस आया। हाथ में मोटे कागज का छोटा-सा लिफाफा था, जिसका पैकिट बना रखा था। वो उसने जगमोहन के सामने रख दिया।

“इसमें कितने हैं?”

“बीस लाख।”

ये ठीक है।” जगमोहन ने लिफाफा उठाया और उसे खोलकर भीतर झांका। | हजार-हजार के नोटों की गड्डियां दिखीं।

“नोट असली ही हैं न? कहीं ये तो नहीं कि छापाखाना लगाकर, उसमें छपे नोट मुझे टिका रहे हो?”

रमजान भाई मुस्कराया।
 
अब इस सामान को नीचे मेरी कार तक...।” कहते-कहते जगमोहन के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। उसे लगा जैसे दिमाग में कोई चीज घुसती चली गई हो।

आंखें बंद कर लीं। होंठ जोरों से भींच लिए। इस बदलाव पर रमजान भाई चौंका। उसने अजीब-से स्वर में पुकारा।
“क्या हुआ जगमोहन, तू ठीक तो है?”

जगमोहन ने हाथ उठाकर, उसे खामोश रहने का इशारा किया। आंखें बंद हो गई थीं।

परंतु जगमोहन के मस्तिष्क की हालत अजीब-सी थी। | धमाके-से उठ रहे थे दिमाग में । बिजलियां-सी कौंध रही थीं। तभी उसे “एयरटेल' का बड़ा-सा बोर्ड लगा मस्तिष्क में दिखा। सामने सड़क थी, जिस पर ढेरों वाहन आ-जा रहे थे। फिर कुछ आगे उसे बस स्टॉप दिखा। स्टॉप की शेड के नीचे दस-बारह लोग खड़े थे। उनमें चौबीस-पच्चीस बरस की युवती थी। जिसने जींस की पैंट और स्कीवी पहन रखी थी । ब्वॉयकट बाल थे उसके। हाथ में उसने छोटा-सा पर्स थाम रखा था।
साधारण-सी खूबसूरती थी उसकी। उसी पल एक काले रंग की, काले शीशे चढ़ी कार वहां आ रुकी। कार का पिछला शीशा नीचे हुआ। भीतर युवक दिखा। फिर उस कार का बुरा एक्सीडेंट हुआ दिखा। युवती की कार में पड़ी लाश देखी। पास में वो युवक बुरी तरह घायल अवस्था में था।

एकाएक जगमोहन की आंखें खुल गईं। रमजान भाई और उसका साथी हैरानी से उसे देख रहे थे।

क्या हुआ?” रमजान भाई ने अजीब से स्वर में पूछा।

“मुझे जाना होगा ।” जगमोहन बेचैनी से कहते हुए उठ खड़ा हुआ—“म...मैंने कुछ देखा।”

क्या देखा...क्या कह रहे हो?” जगमोहन पलटा और तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ा। पैसा तो लेते जाओ।” परंतु तब तक जगमोहन बाहर निकल चुका था। फिर जगमोहन नीचे जाने के लिए तेजी से सीढ़ियां उतर रहा था। मस्तिष्क में उभरी घटनाएं उसकी आंखों के सामने नाच रही थी। युवती का चेहरा स्पष्ट तौर पर वो अपने दिमाग में महसूस | कर रहा था। वो रुकना चाहता था, ठिठककर, उन सब बातों का मतलब समझना चाहता था। परंतु कदम थे कि आगे बढ़े जा रहे थे, जैसे कोई उसे चलने पर मजबूर कर रहा हो। वो नीचे पहुंचा। पसीने से उसका शरीर भर चुका था। लेकिन उसे अपना होश नहीं था। पार्किंग में खड़ी कार की तरफ न जाकर, वो तेज-तेज कदमों से मुख्य प्रवेश गेट की तरफ बढ़ता चला गया।

जगमोहन उस गेट से बाहर निकल आया।

सामने ही सड़क पर वाहन तेजी से आते-जाते दिखाई दे रहे। थे। तभी उसकी निगाह सड़क पार ठीक सामने ‘एयरटेल' के बड़े से बोर्ड पर पड़ी। वो चौंका।
ये ही बोर्ड तो मैंने देखा था, बिल्कुल यही था।” जगमोहन एकाएक बेचैन हो उठा।

| उसी पल वो तेजी से आगे बढ़ा। वाहनों से भरी सड़क उसने पार कर ली और फुटपाथ पर ठिठककर उसने उस एयरटेल के बोर्ड को देखा कि अगले ही पल उसकी निगाह बाईं तरफ घूमती चली गई। | ‘इस तरफ, इधर ही तो है वो बस स्टॉप।' जगमोहन बड़बड़ाते हुए तेजी से फुटपाथ पर आगे बढ़ता चला गया। | वाहनों का कानों को फाड़ देने वाला, शोर कानों में पड़ रहा था। पसीने से भर चुका था वो। परंतु अपनी तो जैसे उसे होश ही नहीं थी।

करीब डेढ़ सौ कदम चलने पर उसे बस स्टॉप दिखा। वो तेजी से चलता वहां जा पहुंचा। वहां पर दस-बारह लोग खड़े थे। जगमोहन की निगाह उन लोगों पर गई। | फिर जगमोहन स्तब्ध रह गया। | वो ही युवती खड़ी थी, जो उसके दिमाग ने देखी थी। वो ही कपड़े। वैसा ही पर्स। जगमोहन भारी तौर पर बेचैनी महसूस करने लगा। आगे बढ़ता हुआ वो युवती से दो कदम के फासले पर जा खड़ा हुआ।

अब जगमोहन समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे?

कभी युवती को देखता तो कभी सड़क पर जाते वाहनों को देखने लगता।
 
उसी क्षण एक काली कार बस स्टॉप पर आ रुकी। उसके काले शीशे थे। | वो ही कार, जो उसके दिमाग ने देखी थी। जगमोहन बुरी तरह चौंका।

तभी उस कार का पीछे वाला शीशा नीचे हुआ तो जगमोहन स्तब्ध रह गया। वो ही युवक भीतर बैठा दिखा जो उसके मस्तिष्क ने देखा था। जगमोहन का हाल बुरा हो चुका था अब तक।
उस युवक ने आंख मारकर युवती से कहा।

चलना है?

” तीन हजार ।”

“दो दूंगा।” ।

“ठीक है।” कहकर युवती कार की तरफ बढ़ने को हुई। युवक ने कार का दरवाजा खोल दिया।

इससे पहले कि युवती आगे बढ़ती, जगमोहन ने झपटकर उसकी कलाई पकड़ ली।।

“छोड़ो मुझे।” युवती हड़बड़ाकर बोली।

“उसके साथ मत जाओ।” जगमोहन कह उठा।

मेरी उससे बात हो चुकी है। पहले तुम बात करते तो, मैं तुम्हारे साथ...।” ।

“इस कार का एक्सीडेंट होने वाला है।” जगमोहन तेज स्वर में बोला–“तुम मर जाओगी।”

“बकवास मत करो। वो मुझे दो हजार दे रहा है। मैं तुम्हारे साथ जाने वाली नहीं ।” युवती ने क्रोध से कहकर, अपनी कलाई छुड़ाई और आगे बढ़कर, खुले दरवाजे से कार में जा बैठी।
युवक ने दरवाजा बंद किया और दांत दिखाकर जगमोहन को देखा।

इस कार से बाहर निकल जाओ।” जगमोहन चीखा–“कार का एक्सीडेंट होने वाला है।”

युवक हंसा। उसी पल कार आगे बढ़ गई। जगमोहन होंठ भींचे कार को जाता देखने लगा।

तभी जगमोहन की आंखें फैल गईं। सामने से आता ट्रक, जिसका कि अचानक बैलेंस बिगड़ गया था, वो अपनी जगह छोड़कर, एकाएक उलटी दिशा में आने लगा। सामने काली कार थी। जो कि आगे बढ़ रही थी।

बचो-ऽऽऽ” जगमोहन गला फाड़कर चिल्लाया। बस स्टॉप पर खड़े अन्य लोगों की निगाह भी उस तरफ उठी।

यही वो पल था जब तेज रफ्तार से आता ट्रक, कार को रौंदता चला गया।

जगमोहन ठगा-सा खडा रह गया। टक्कर की ऐसी आवाज उभरी जैसे बम फटा हो। आधी कार ट्रक के नीचे जा धंसी थी। इसके साथ ही ट्रैफिक रुकने लगा। लोग इकट्ठे होने लगे।
| जगमोहन पागलों की तरह कार की तरफ दौड़ा।

अभी पूरी तरह वहां भीड़ इकट्ठी नहीं हुई थी। कार के पास पहुंचकर वो ठिठक गया। कार का पीछे वाला दरवाजा अधखुला हुआ था। भीतर उस युवती की उसी तरह लाश पड़ी नजर आई जैसे कि उसने देखा था और उसी सीट पर बगल में मौजूद युवक बुरी तरह घायल हुआ, तड़प रहा था।

तभी लोगों ने वहां इकट्ठा होना शुरू कर दिया था।

जगमोहन भीड़ से बाहर आया और वापस चल पड़ा। इस वक्त वो ही जानता था कि उसकी क्या हालत हुई पड़ी है। युवती का चेहरा बार-बार उसकी आंखों के सामने घूम रहा था। उसने युवती को रोकने की भरपूर चेष्टा की परंतु वो नहीं रुकी थी। उसे रोकने की थोड़ी और कोशिश करनी चाहिए थी। उसने सोचा।

जगमोहन वापस उस इमारत के अहाते में खड़ी कार की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा। बेहद अजीब-सी हालत हो रही थी उसकी। सिर घूमा हुआ लग रहा था। आंखों के सामने रह-रहकर वो एक्सीडेंट और युवक-युवती का चेहरा आ रहा था। क्या हो गया था उसे? उसे कैसे पता चल गया कि आने वाले वक्त में वो बुरी घटना होने वाली है? * जगमोहन ने सिर को झटका दिया।

परंतु ये सब कुछ उसके दिमाग से बाहर न निकल रहा था। जो हुआ वो उसके लिए कम हैरत की बात नहीं थी। वो अभी तक बीती बातों को न पचा पा रहा था।

आखिरकार जगमोहन ने गहरी सांस ली और फोन निकालकर रमजान भाई के नम्बर मिलाने लगा। तुरंत ही रमजान भाई से बात हो गई।

“तू किधर है, अचानक भाग क्यों गया तू?” रमजान भाई की आवाज कानों में पड़ी।
 
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