desiaks
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“मखानी।” जगमोहन के कानों में शौहरी की फुसफुसाहट पड़ी।
बोल ।” ।
भंवर सिंह को भी बेहोश करना है।”
बेहोश करने की जरूरत क्यों होती है?” मखानी के होंठ हिले।
“पिशाचों को शोर से नफरत है। शिकार होश में होगा तो शोर करेगा ही। तब पिशाच गुस्से में उसकी जान ले लेंगे।”
पिशाचों को मना कर दो कि शिकार की जान नहीं लेनी है।” मखानी ने राय दी।
“पिशाच की जात ही ऐसी है कि शोर सुनते ही वो गुस्से में भर जाते हैं।”
“तो ये काम किसी और को...।”
“जो काम पिशाच कर सकते हैं, वो दूसरा नहीं कर सकता। ये काम पिशाचों के लिए ही है।”
“तुम लोगों की दुनिया मेरी समझ से बाहर है।”
“तूने करना भी क्या है समझ के?” शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी—“भंवर सिंह को बेहोश कर। कमला रानी से नहीं मिलना?”
“क्यों नहीं मिलना ।” मखानी कह उठा“उससे मिलने के लिए तो मैं कुछ भी कर...।”
रास्ता साफ होगा तो कमला रानी आएगी।
” मैं अभी मुच्छड़ को बेहोश करता हूं।”
“वो तुझे ढूंढता ही आ रहा है।”
मुच्छड?”
“हां, भंवरसिंह ।”
जगमोहन इस वक्त बंगले की लॉबी में था कि बांके वहां आ पहुंचा।
तम उधरो हौवे, छोरो दिखो का?”
नहीं। वो बंगले में नहीं है।”
“पक्को ?”
हां। मेरा दिल तो बुरी आशंका से घबरा रहा है। रुस्तम के साथ कुछ बुरा न हो गया हो ।”
बांकेलाल राठौर के दांत भिंच गए।
“पोतोबाबे आए क्या?”
नहीं ।” ईब वो आयो तो म्हारे को बतायो।” बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा।
“क्यों?"
अंम उसो को ‘वड' दयो। वो ई सबो कुछ करो हो और जथूरा का नाम ले दयो ।”
तभी जगमोहन दीवार के पास पहुंचा और नीचे देखता कह उठा।
बांके ये देख, क्या है।” बांकेलाल राठौर करीब आया। बोला ।
किधरो?”
“इधर, नीचे।” पास आकर बांकेलाल राठौर देखने के लिए नीचे झुका।
उसी पल फुर्ती से मखानी ने बांके का सिर थामा और दीवार पर दे मारा।
ये का करो हो। मन्ने का थारी भैंसों को खोल लयो हो ।” बांकेलाल राठौर गुस्से से बोला और छिटककर दो कदम दूर हट गया।
दोनों की नजरें मिलीं।
जगमोहन खतरनाक निगाहों से बांकेलाल राठौर को देख रहा था।
बांकेलाल राठौर हाथ से अपना सिर रगड़ता जगमोहन को देखते ही चौंका।
“तंम जगमोनो न हौवे। थारी यो मुस्कान, उसो की न हौवो।” बांके के होंठों से निकला।
“ठीक पहचाना तूने भंवर सिंह।”
“भंवर सिंह, थारे को म्हारा नामो भी पतो हौवे, पैले जन्मो का, तंम-तंम कौनो हौवे?”
मखानी।
” “मखानो?”
मखानी हूँ मैं ।” जगमोहन के होंठों से खतरनाक, धीमा स्वर निकल रहा था—“त्रिवेणी के पास जाना है तेरे को?”
छोरे को तंमने गायब करो हो ।”
जगमोहन मुस्कराकर, बांकेलाल राठौर की तरफ बढ़ने लगा। बांकेलाल राठौर सतर्क हो गया।
बोल ।” ।
भंवर सिंह को भी बेहोश करना है।”
बेहोश करने की जरूरत क्यों होती है?” मखानी के होंठ हिले।
“पिशाचों को शोर से नफरत है। शिकार होश में होगा तो शोर करेगा ही। तब पिशाच गुस्से में उसकी जान ले लेंगे।”
पिशाचों को मना कर दो कि शिकार की जान नहीं लेनी है।” मखानी ने राय दी।
“पिशाच की जात ही ऐसी है कि शोर सुनते ही वो गुस्से में भर जाते हैं।”
“तो ये काम किसी और को...।”
“जो काम पिशाच कर सकते हैं, वो दूसरा नहीं कर सकता। ये काम पिशाचों के लिए ही है।”
“तुम लोगों की दुनिया मेरी समझ से बाहर है।”
“तूने करना भी क्या है समझ के?” शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी—“भंवर सिंह को बेहोश कर। कमला रानी से नहीं मिलना?”
“क्यों नहीं मिलना ।” मखानी कह उठा“उससे मिलने के लिए तो मैं कुछ भी कर...।”
रास्ता साफ होगा तो कमला रानी आएगी।
” मैं अभी मुच्छड़ को बेहोश करता हूं।”
“वो तुझे ढूंढता ही आ रहा है।”
मुच्छड?”
“हां, भंवरसिंह ।”
जगमोहन इस वक्त बंगले की लॉबी में था कि बांके वहां आ पहुंचा।
तम उधरो हौवे, छोरो दिखो का?”
नहीं। वो बंगले में नहीं है।”
“पक्को ?”
हां। मेरा दिल तो बुरी आशंका से घबरा रहा है। रुस्तम के साथ कुछ बुरा न हो गया हो ।”
बांकेलाल राठौर के दांत भिंच गए।
“पोतोबाबे आए क्या?”
नहीं ।” ईब वो आयो तो म्हारे को बतायो।” बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा।
“क्यों?"
अंम उसो को ‘वड' दयो। वो ई सबो कुछ करो हो और जथूरा का नाम ले दयो ।”
तभी जगमोहन दीवार के पास पहुंचा और नीचे देखता कह उठा।
बांके ये देख, क्या है।” बांकेलाल राठौर करीब आया। बोला ।
किधरो?”
“इधर, नीचे।” पास आकर बांकेलाल राठौर देखने के लिए नीचे झुका।
उसी पल फुर्ती से मखानी ने बांके का सिर थामा और दीवार पर दे मारा।
ये का करो हो। मन्ने का थारी भैंसों को खोल लयो हो ।” बांकेलाल राठौर गुस्से से बोला और छिटककर दो कदम दूर हट गया।
दोनों की नजरें मिलीं।
जगमोहन खतरनाक निगाहों से बांकेलाल राठौर को देख रहा था।
बांकेलाल राठौर हाथ से अपना सिर रगड़ता जगमोहन को देखते ही चौंका।
“तंम जगमोनो न हौवे। थारी यो मुस्कान, उसो की न हौवो।” बांके के होंठों से निकला।
“ठीक पहचाना तूने भंवर सिंह।”
“भंवर सिंह, थारे को म्हारा नामो भी पतो हौवे, पैले जन्मो का, तंम-तंम कौनो हौवे?”
मखानी।
” “मखानो?”
मखानी हूँ मैं ।” जगमोहन के होंठों से खतरनाक, धीमा स्वर निकल रहा था—“त्रिवेणी के पास जाना है तेरे को?”
छोरे को तंमने गायब करो हो ।”
जगमोहन मुस्कराकर, बांकेलाल राठौर की तरफ बढ़ने लगा। बांकेलाल राठौर सतर्क हो गया।