XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 17 - SexBaba
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XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

“मखानी।” जगमोहन के कानों में शौहरी की फुसफुसाहट पड़ी।

बोल ।” ।

भंवर सिंह को भी बेहोश करना है।”

बेहोश करने की जरूरत क्यों होती है?” मखानी के होंठ हिले।
“पिशाचों को शोर से नफरत है। शिकार होश में होगा तो शोर करेगा ही। तब पिशाच गुस्से में उसकी जान ले लेंगे।”

पिशाचों को मना कर दो कि शिकार की जान नहीं लेनी है।” मखानी ने राय दी।

“पिशाच की जात ही ऐसी है कि शोर सुनते ही वो गुस्से में भर जाते हैं।”

“तो ये काम किसी और को...।”

“जो काम पिशाच कर सकते हैं, वो दूसरा नहीं कर सकता। ये काम पिशाचों के लिए ही है।”

“तुम लोगों की दुनिया मेरी समझ से बाहर है।”

“तूने करना भी क्या है समझ के?” शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी—“भंवर सिंह को बेहोश कर। कमला रानी से नहीं मिलना?”

“क्यों नहीं मिलना ।” मखानी कह उठा“उससे मिलने के लिए तो मैं कुछ भी कर...।”

रास्ता साफ होगा तो कमला रानी आएगी।

” मैं अभी मुच्छड़ को बेहोश करता हूं।”

“वो तुझे ढूंढता ही आ रहा है।”

मुच्छड?”

“हां, भंवरसिंह ।”

जगमोहन इस वक्त बंगले की लॉबी में था कि बांके वहां आ पहुंचा।

तम उधरो हौवे, छोरो दिखो का?”

नहीं। वो बंगले में नहीं है।”

“पक्को ?”
हां। मेरा दिल तो बुरी आशंका से घबरा रहा है। रुस्तम के साथ कुछ बुरा न हो गया हो ।”

बांकेलाल राठौर के दांत भिंच गए।

“पोतोबाबे आए क्या?”

नहीं ।” ईब वो आयो तो म्हारे को बतायो।” बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा।

“क्यों?"
अंम उसो को ‘वड' दयो। वो ई सबो कुछ करो हो और जथूरा का नाम ले दयो ।”

तभी जगमोहन दीवार के पास पहुंचा और नीचे देखता कह उठा।

बांके ये देख, क्या है।” बांकेलाल राठौर करीब आया। बोला ।

किधरो?”

“इधर, नीचे।” पास आकर बांकेलाल राठौर देखने के लिए नीचे झुका।

उसी पल फुर्ती से मखानी ने बांके का सिर थामा और दीवार पर दे मारा।

ये का करो हो। मन्ने का थारी भैंसों को खोल लयो हो ।” बांकेलाल राठौर गुस्से से बोला और छिटककर दो कदम दूर हट गया।
दोनों की नजरें मिलीं।

जगमोहन खतरनाक निगाहों से बांकेलाल राठौर को देख रहा था।

बांकेलाल राठौर हाथ से अपना सिर रगड़ता जगमोहन को देखते ही चौंका।
“तंम जगमोनो न हौवे। थारी यो मुस्कान, उसो की न हौवो।” बांके के होंठों से निकला।

“ठीक पहचाना तूने भंवर सिंह।”

“भंवर सिंह, थारे को म्हारा नामो भी पतो हौवे, पैले जन्मो का, तंम-तंम कौनो हौवे?”

मखानी।

” “मखानो?”

मखानी हूँ मैं ।” जगमोहन के होंठों से खतरनाक, धीमा स्वर निकल रहा था—“त्रिवेणी के पास जाना है तेरे को?”

छोरे को तंमने गायब करो हो ।”

जगमोहन मुस्कराकर, बांकेलाल राठौर की तरफ बढ़ने लगा। बांकेलाल राठौर सतर्क हो गया।
 
“तंम जगमोनो नेई, उसी का बहरूपो हौवे हो। अंम थारो को ‘वड' दयो हो।” वो गुर्राया।

“छोड़ना नहीं मखानी।” जगमोहन के कानों में शौहरी की फुसफुसाहट पड़ी—“जैसे भी हो, बेहोश कर दे इसे। इसके बाद कमला रानी तेरे पास आएगी। वो भी तेरे से मिलने को बेचैन जगमोहन बांके के पास पहुंचता जा रहा था।

ये बहुत खतरनाक है मखानी, ये...।” तभी बांकेलाल राठौर, पास आते जगमोहन पर झपट पड़ा। तेजी से जगमोहन से टकराया।

जगमोहन के पांव उखड़ गए। वो पीछे को गिरने को हुआ तो उसने बांके की कमीज पकड़ ली। नतीजा ये हुआ कि दोनों ही नीचे आ गिरे। बांके ने फुर्ती दिखाई और जगमोहन के ऊपर चढ़ बैठा।।

“अंम थारे को ‘वड' दयो।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर ने रिवॉल्वर निकाल ली। चेहरे पर खतरनाक भाव बिखरे हुए थे। आंखों में क्रोध की लाली दिख रही थी। उसने रिवॉल्वर जगमोहन के गले पर लगा दी।

“अपने जगमोहन को मारेगा तू?" मखानी जल्दी-से बोला।

तंम जगमोनो न होवोतंम...।”

ये शरीर तो जगमोहन का है।” मखानी ने चालाकी से उसे बातों में फंसाने की कोशिश की।

। “यो शरीरो।” ।

“हां । ये शरीर तो जगमोहन का है। मैं जगमोहन के भीतर हूं। मेरा क्या है, मैं तो निकल जाऊंगा, हवा की तरह। तू जो भी करेगा, उसमें जगमोहन के शरीर को क्षति पहुंचेगी।”

बांकेलाल राठौर के दांत भिंच गए। वो मखानी की बातों में फंसता दिखा।

“अब तू क्या करेगा मुच्छड़?”

“तंम म्हारे को मुच्छड़ बोल्लो हो ।”

“हां।” जगमोहन के होंठों पर मुस्कान उभरी–“तू मुझे गोली मार दे।”

“थारी बॉडी किधर हौवे, यो तो जगमोहन की बॉडी हौवे ।”

हां। समझ चुका है मेरी बात ।” मखानी हंसा–“फंस गया तू। मुझे मारेगा तो जगमोहन मरेगा। नहीं मारेगा तो मैं तेरे को बेहोश कर दूंगा। बोल अब क्या करेगा?”

बांके दांत भींचे उसे देखता रहा।

रिवॉल्वर हटा ले । घोड़ा दब गया तो जगमोहन मर जाएगा।”

बांके ने रिवॉल्वर गले से हटा ली।

ऊपर से हट, जगमोहन को तकलीफ हो रही है।”

“थारे को कैसे पतो कि जगमोनो को तकलीफ हौवो हो?” बांके के माथे पर बल पड़े।

“मैं उसके भीतर हूं। वो जो भी सोचता महसूस करता है, मुझे पता चल जाता है।” मखानी ने कहा।

न चाहते हुए भी बांके जगमोहन के ऊपर से उठ खड़ा हुआ।

मखानी खड़ा हुआ और जेब से चाकू निकालकर उसे खोल लिया।

“यो का करो हो?”

मैं जगमोहन को चाकू मारने जा रहा हूं।”

न...नहीं ।” बांके के होंठों से निकला “यो मत करो हो। जगमोहन को मतो मारो।”

ना मारूं?”

“भगवानो वास्तो नेई मारो।” बांकेलाल राठौर का स्वर कांप सा उठा था।

रिवॉल्वर फेंक ।”
बांके ने तुरंत रिवॉल्वर फेंक दी।
“तू तो अच्छा यार है जगमोहन का ।” मखानी रिवॉल्वर उठाते हुए कह उठा।
 
बांके क्रोध भरी निगाहों से उसे घूर रहा था। मखानी उसके पास पहुंचा और बोला।

मैं तो तेरे को त्रिवेणी के पास भेज रहा हूं।

” वो किधर हौवो?” तभी मखानी का रिवॉल्वर वाला हाथ घूमा और नाल की तीव्र चोट उसकी कनपटी पर की।

बांके के होंठों से दबी-दबी कराह निकली।

मखानी ने उसी पल दूसरी चोट की।

बांके की आंखों के सामने लाल-पीले सितारे नाचे और वो बेहोश होकर नीचे जा लुढ़का।।
मखानी ने चाकू और रिवॉल्वर अपनी जेब में रख लिए।

वाह मखानी, तूने तो बढ़िया ढंग से काम निबटा डाला। मैं तेरे को अपने साथ ले जाऊंगा।” शौहरी की आवाज कानों में पड़ी।

“कहां?”

“पूर्वजन्म में चलेगा?”

कमला रानी के बिना मैं कहीं नहीं जाऊंगा।” ।

“वो भी यही कहती है कि तेरे बिना कहीं नहीं जाऊंगी।” शौहरी की आवाज में हंसी आ गई–“वो तेरे साथ कहीं भी जाने को तैयार

“तो मैं उसके साथ ही पूर्वजन्म में जाऊंगा।”

“ठीक है तुम दोनों चलना पूर्वजन्म में । भौरी के साथ इस बारे में मेरी बात हो चुकी है।”

“इसे ले जाने के लिए पिशाचों को बुला । देवराज चौहान इधर आ गया तो...।”

बुलावा भेज दिया है उन्हें। वो आते ही होंगे। तू देवा के पास जा, कि वो इधर न आए।” | मखानी लॉबी से बाहर की तरफ बढ़ गया।

देवराज चौहान सोफा चेयर पर बैठा सिगरेट के कश ले रहा था, जब जगमोहन वहां पहुंचा।
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

“रुस्तम बंगले में है ही नहीं।” जगमोहन ने बैठते हुए चिंतित स्वर में कहा।। |

“वो खतरे में फंस चुका है।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।

“समझ में नहीं आता कि बंगले में उसके लिए क्या खतरा आ सकता है।”

“कुछ तो हुआ ही है। बांके कहां है?”

“किचन में है। कॉफी बना रहा है।” जगमोहन बोला-“जो कुछ भी हो रहा है, उसके बचाव में करने को हमारे पास कुछ नहीं?”

“नहीं। मेरी समझ में तो कुछ नहीं, तुम ही बता दो अगर कुछ किया जा सकता है।”
 
जगमोहन चुप कर गया। थोड़ा वक्त बीता कि देवराज चौहान उठकर किचन की तरफ बढ़ा।

कहां चले?"

बांके के पास । अब तक उसे आ जाना चाहिए था। अब ये जगह सुरक्षित नहीं रही।” देवराज चौहान ने जाते हुए कहा।

जगमोहन उसे जाते देखता रहा।

“मखानी ।” शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी–“अब देवा को पता चल जाएगा कि भंवर सिंह भी बंगले पर नहीं है।”

“पिशाच उसे ले गए?” जगमोहन के होंठ हिले।

“कब के। भंवर सिंह को तो अब तक, बाकी लोगों के पास पहुंचा दिया होगा।”

कहां पर?"

ये तेरे जानने के लायक नहीं है। तू ज्यादा बातें न पूछा कर। कालचक्र के सेवक सिर्फ अपने काम से मतलब रखते हैं।”

मैं कालचक्र का सेवक नहीं हूं।”

“अब तू भी कालचक्र से जुड़ चुका है। ये बात तेरे को पहले भी समझाई थी।”

कमला रानी भी कालचक्र से जुड़ गई है?

” हां, वो भी।”

कमला रानी कब आएगी यहां?” । ।

“जग्गू और गुलचंद को मंजिल पर पहुंचाकर, नगीना के रूप में वो यहां पहुंचेगी।”
तभी देवराज चौहान आता दिखा।

बांके किचन में नहीं है।” देवराज चौहान बोला–“बंगले में भी नहीं लग रहा।”

“ये कैसे हो सकता है।” जगमोहन कहते हुए तेजी से किचन की तरफ बढ़ा और जोर से पुकारा–“बांके।”

देवराज चौहान की अजीब-सी निगाह जगमोहन पर थी। जगमोहन निगाहों से ओझल हो गया।

पांच मिनट बाद जगमोहन वापस लौटा। चेहरे पर हैरानी-परेशानी के भाव थे।

“बांके कहीं भी नहीं है। रुस्तम की तरह गायब हो गया। आखिर वो कहां गया?” जगमोहन का स्वर तेज था।

“इस बात का जवाब मुझसे ज्यादा तुम बेहतर जानते हो ।” देवराज चौहान ने चुभते स्वर में कहा।

क्या मतलब?” जगमोहन की नजर, देवराज चौहान पर जा बैठी।

कौन हो तुम?”

मैं?” जगमोहन चौंका–“मैं जगमोहन हूं।” उसके होंठों से निकला।

अब मुझे तुम पर शक होने लगा है।”

“क्या कह रहे हो?” जगमोहन अचकचाया। आंखें फैलकर चौड़ी हो गई थीं।

“मस्त रह मखानी।” कानों में शौहरी की फुसफुसाहट पड़ी—“देवा अंधेरे में तीर चला रहा है।”

“रुस्तम को तुम अपने बिस्तर पर सोया छोड़कर आए और वो गायब हो गया।” देवराज चौहान बोला।

“तो इसमें मेरा क्या कसूर है।” ।

“बांके को तुम किचन में छोड़कर आए और वो गायब हो गया ।”
 
“तो क्या करूं मैं अगर वो गायब हो गए।” जगमोहन के माथे पर बल नजर आने लगे।
“सोहनलाल तुम्हें बंगले से बाहर उतारकर, खुद कार ले गया और अभी तक वापस नहीं लौटा। कई घंटे बीत गए। फोन मिलाओ तो उसका फोन नहीं मिल रहा।” देवराज चौहान ने चुभते स्वर में कहा—“ये तीनों आखिरी बार सिर्फ तुम्हारे सम्पर्क में आए और गायब हो गए। अब तुम्हें पूर्वाभास भी नहीं हो रहा। रुस्तम गायब हुआ तो कोई पूर्वाभास नहीं। उससे पहले सोहनलाल की कोई खबर नहीं...।”

“नगीना भाभी का पूर्वाभास हुआ...।” जगमोहन ने कहना चाहा।।

“रुस्तम के गायब होने के बाद तुम्हें उसका पूर्वाभास नहीं हुआ। जबकि बारी-बारी सबका हो रहा था।”

“तो इसमें मेरी क्या गलती है, नहीं हुआ तो नहीं हुआ ।” जगमोहन झल्लाया।

“तुम जगमोहन नहीं, बल्कि उसके चेहरे में बहरुपिये हो ।” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया।” ।

तुम इस बात को नकार नहीं सकते।” देवराज चौहान के दांत भिंच गए।

“देवा अंधेरे में तीर चला रहा है। तू लगा रह अपनी लाइन पर।” शौहरी की फुसफुसाहट पुनः कानों में पड़ी।

“मुझे लगता है कि जथूरा अब अपनी कोशिश में कामयाब होने लगा है।” जगमोहन चिढ़कर बोला–“वो हममें झगड़ा करवाना चाहता है, एक-दूसरे के प्रति मन में शक डालना चाहता है और वो सफल हो गया। तुम्हारे मन में मेरे लिए शक आ गया कि मैं, मैं नहीं तो आगे कुछ भी कहना बेकार होगा।”

देवराज चौहान जगमोहन को देखता रहा। जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

अब हमारी बारी है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“हमारी बारी?” जगमोहन ने उसे देखा।

हां, जथूरा का कालचक्र तेजी से काम कर रहा है। वो सबको गायब करता जा रहा है। नगीना, मोना चौधरी, महाजन, बांके, रुस्तम राव, सोहनलाल, ये सब कालचक्र के फंदे में फंस चुके हैं।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“फिर तो हम दोनों और पारसनाथ ही बचे हैं।”

हां ।” देवराज चौहान ने उसे देखा–“क्या पता पारसनाथ भी फंस चुका हो।” ।

मैं उसे फोन करके देखता हूं।” जगमोहन ने पारसनाथ का नम्बर मिलाया। बात हो गई। “तू ठीक है?" जगमोहन ने व्याकुलता से पूछा।

तू घबराया हुआ क्यों है?”

बांके और रुस्तम भी जाने कहां गायब हो गए। हम तीनों ही बचे हैं। सोहनलाल का भी कुछ पता नहीं चल रहा।”

ओह।” बात करके जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा।

अभी तक तो पारसनाथ ठीक है।”

जथूरा इस बात की पूरी चेष्टा कर रहा है कि हम पूर्वजन्म में प्रवेश कर सकें।” देवराज चौहान बोला।

“मुझे समझ नहीं आता कि आखिर हम पूर्वजन्म में प्रवेश करना ही क्यों चाहते हैं?” जगमोहन झल्लाया।

“हम नहीं प्रवेश करना चाहते। परंतु हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि हम चुप भी नहीं बैठ सकते। हम नहीं जानते कि जथूरा हम सबको गायब करके कहां ले जा रहा है। वो करना क्या चाहता है।” देवराज चौहान ने परेशान स्वर में कहा—“हम सिर्फ इतना जानते हैं कि जथूरा तब तक हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक हम पूर्वजन्म की धरती पर कदम न रख दे। और वो हमें हर हाल में रोकने की चेष्टा में है कि हम पूर्वजन्म में प्रवेश न कर सकें।”
 
मखानी ।” कानों में शौहरी की फुसफुसाहट पड़ी—“देवा का दिमाग खराब होता जा रहा है। इसे कुछ भी ठीक से समझ नहीं आ रहा। कुछ ही देर की बात है, कमला रानी के आते ही, ये भी पिशाचों के कब्जे में होगा।”

“मैं इसे भी बेहोश करूं क्या?” जगमोहन धीमे स्वर में बड़बड़ा उठा।।

“तू अकेला देवा को नहीं संभाल सकता। मामला खराब मत कर देना। कमला रानी को आ लेने दे।”

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखकर कहा।
कुछ कहा तुमने?”
“नहीं ।” जगमोहन ने चेहरे पर परेशानी ओढे, इंकार में सिर हिला दिया।
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जगमोहन और सोहनलाल कमला रानी का पीछा करते, कब के मुम्बई से बाहर निकल चुके थे। वो मोना चौधरी को नजरों से ओझल नहीं होने देना चाहते थे और जानना चाहते थे कि कहां जाती है। उसका कोई ठिकाना है तो कहां पर है। पीछा करते हुए अब तो दोपहर भी ढलने लगी थी। हाइवे पर उनकी कारें दौड़ी जा रही थीं।

“ये आखिर जा कहां रही है?” सोहनलाल बोला।

जहां भी जाए।” जगमोहन के होंठ भिंच गए–“मैं इसे छोडूंगा नहीं। ये मोना चौधरी असली नहीं, उसका बहुरूप है।”
। “देवराज चौहान तुम्हारा-मेरा इंतजार कर रहा होगा।”
“उसे फोन करके बता दो कि हम किस काम में व्यस्त हैं। अब तक तो देवराज चौहान का फोन आ जाना चाहिए था।”
सोहनलाल जेब से फोन निकालता कह उठा।
जथूरा ने हम लोगों के बहरूप पेश करके, हमारा दिमाग खराब कर रखा है।”

“जथूरा का ये तमाशा ज्यादा नहीं चलने वाला।” जगमोहन कड़वे स्वर में बोला-“जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा।”

सोहनलाल ने देवराज चौहान का नम्बर मिलाया। दो-चार बार कोशिश की, परंतु नम्बर नहीं मिला।

मेरे फोन में शायद सिगनल नहीं आ रहा।”

“मेरा फोन ले लो।” जगमोहन ने जेब से अपना फोन निकालकर उसे दिया।

तभी काफी आगे जा रही कमला रानी की कार को सड़क से उतरकर कच्चे में जाते देखा।

ये कहां जा रही है?”

सोहनलाल ने गर्दन घुमाकर सामने देखा। साथ ही नम्बर मिला रहा था।

उधर गांव है कोई।” नम्बर मिलाने के बाद सोहनलाल ने फोन कान से लगाया।
परंतु नम्बर नहीं लगा।

तुम्हारे फोन से भी नम्बर नहीं लग रहा ।” सोहनलाल ने कहा।
 
रहने दो। मेरे खयाल में हम मंजिल पर आ पहुंचे हैं। मोना चौधरी का बहरूप उस गांव की तरफ जा रहा है। वहीं उसका ठिकाना होगा ।”

“उस गांव में। मुझे नहीं लगता।”

“हाईवे छोड़कर उस गांव की तरफ जाने का तो यही मतलब है सोहनलाल ।”

वो अभी तक पीछे हैं कमला रानी।” भौरी की आवाज कानों में पड़ी।

“जग्गू और गुलचंद सोचते हैं कि जैसे मुझे उनके पीछे आने का पता नहीं है।” कमला रानी मुस्करा पड़ी। ।

“तेरे को जैसा समझाया है, वैसा ही करना। जल्दी से काम को पूरा कर।” ।

“कर तो रही हूं भौरी।”

“मैं देख रही हूं तेरे में सुस्ती आ रही है। तू ऐसे ही ढीली होती रही तो मखानी से कैसे मिलेगी?”

“मखानी।” कमला रानी की आंखों में चमक आ गई—“वो कहां तेरे इंतजार में बैठा है।

” किधर?”

देवा के पास। उसने अपना काम पूरा कर लिया है। वो तेरे से तेज है।”

“क्यों न होगा।” कमला रानी मुस्कराई–“आखिर मर्द जो ठहरा।” ।

“हमारी दुनिया में मर्द-औरत एक ही फुर्ती से काम करते हैं। तूने मखानी के साथ वहां जाना है कि नहीं ।”

मखानी को पूछंगी।” ।

“पूछ लिया है। शौहरी से मेरी बात हो गई है। मखानी तेरे साथ पूर्वजन्म में जाने को तैयार है।” ।

“सच?” कमला रानी का चेहरा खिल उठा–“मखानी मेरे से कितना प्यार करता है?”

“जग्गू की कार भी इधर मुड़ गई है।” भौरी की आवाज कमला रानी के कानों में पड़ी—“वो तेरे को मिन्नो समझ रहा है।” फिर तुरंत ही कह उठी–“एक मिनट–शौहरी कुछ कह रहा है।” * दो पलों के बाद भौरी कह उठी।

“मैंने तेरे को गलत कहा, जग्गू और गुलचंद जानते हैं कि तू मिन्नो नहीं, उसका बहरूप है। इसलिए वो तेरे पीछे हैं कि देख सके तू जाती कहां है, क्या कर रही है।”

कमला रानी कुछ नहीं बोली।

सामने के कच्चे मकान के पीछे है कुआं, सीधे वहीं चल ।” कमला रानी कार को वहीं ले गई।

बस, अब बाहर आ जा।” कमला रानी बाहर निकली और पलटकर पीछे देखा। काफी दूर से कार इधर आती दिखाई दी।
 
सब याद है तेरे को?

” हां।”

मैं तेरा रूप बदल रही हूं। जग्गू और गुलचंद आए तो...” ।

“सब संभाल लूंगी, तू मेरा रूप बदल ।”

मात्र दस सेकंड बीते कि कमला रानी का रूप बदलने लगा। देखते-ही-देखते वो गांव की बूढ़ी औरत में परिवर्तित हो गई। झुर्रियों से भरा चेहरा । शरीर पर सूती, मैला हो रहा सूट। बालों की चुटिया हुई पड़ी थी। पांवों में टूटी-सी चप्पल थी। कमला रानी पीठ झुकाए, सामने नजर आ रहे कुएं की तरफ बढ़ने लगी।

इस वक्त यहां गांव का कोई इंसान नजर नहीं आ रहा था।

“ये काम खत्म कर ।” भौरी की आवाज कमला रानी के कानों में पड़ी—“इसके बाद तेरे को देवा के पास भेजूंगी। वहां मखानी भी होगा।” ।

जगमोहन ने कार को कुछ पहले ही रोक दिया था।

वो उस तरफ गई है।” सोहनलाल गांव के मकानों के पीछे देखता कह उठा।

दोनों आगे बढ़े।

यहां क्या करने आई होगी वो?

” देखते हैं।”

दोनों उस कार के पास पहुंचे। कार के भीतर झांका। वो खाली थी।

वो आगे बढ़ते चले गए।

ज्योंही गांव के कच्चे मकान को पार किया तो उन्हें कुआं दिखा। कुएं के पास बूढ़ी औरत दिखी जो कुएं के भीतर झांक रही थी। दोनों की निगाह इधर-उधर गई, परंतु उन्हें मोना चौधरी न दिखी।

कहां गई वो?”

“उस बुढ़िया से पूछते हैं।”

दोनों बुढ़िया के पास जा पहुंचे।

“सुनो।” सोहनलाल ने बुढ़िया से कहा-“अभी-अभी यहां एक लड़की आई थी। किधर गई?”

बुढ़िया कुएं में झांकना छोड़कर, सीधी हुई और पलटी।
क्या कहा?” उसने पूछा।

“अभी-अभी यहां एक लड़की आई थी। वो कहां गई। तुमने देखा होगा उसे ।” सोहनलाल ने पुनः कहा।

शर्म नहीं आती।” बुढिया ने आंखें निकालकर कहा।

हमने ऐसा क्या कह दिया जो...।”
लड़की का पीछा करते हो और पूछते हो क्या कह दिया।” बुढ़िया ने डांट वाले अंदाज में कहा।

“व...वो मेरी बहन है।” सोहनलाल जल्दी से बोला।

“तो यूं कहो न ।” बुढ़िया ने सिर हिलाया-“लेकिन वो गांव में क्या करने आई है?”

उसे कुछ काम होगा।”

तो तुम लोग अपनी बहन का पीछा क्यों कर रहे हो?”
 
सोहनलाल ने जगमोहन को देखा। जगमोहन ने जेब से सौ का नोट निकालकर उसे दिखाया।

तुम हमें बताओ वो लड़की किस तरफ गई है, तब ये नोट तुम्हें दे देंगे।”

| “मुझे नोट नहीं चाहिए।” बुढ़िया बोली-“मेरी बाल्टी कुएं में गिर गई है, वो निकाल दो ।”

“बाल्टी?”

उस लड़की ने मुझसे किसी का नाम बताकर पूछा था कि वो कहां रहता है। मैं जानती हूं वो कहां गई है, मेरी बाल्टी निकाल दो तो, मैं बता दूंगी।” बुढ़िया ने कहा।

“तू इसकी बाल्टी देख, मैं आस-पास देखता हूं।” सोहनलाल ने कहा और आगे बढ़ गया।

जगमोहन जल्दी से कुएं के पास पहुंचा।

तीन-साढ़े तीन फीट ऊंची दीवार थी कुएं की। दीवार पर हाथ रखकर जगमोहन ने भीतर झांका तो नीचे कुएं में पानी चमका। रस्सी नीचे तक जा रही थी, परंतु नीचे जाने के लिए सीढ़ियों जैसा कुछ नहीं था। स्पष्ट था कि कुएं में नीचे उतरना कठिन था। बाल्टी नहीं निकाली जा सकती थी।

इससे पहले कि जगमोहन वहां से हटता, सीधा होता। | बुढ़िया फुर्ती से नीचे झुकी और जगमोहन की दोनों पिंडलियां पकड़कर ऊपर उठाती चली गई। जगमोहन को संभलने का मौका नहीं मिला और बुढ़िया ने पिंडलियां उठाकर, जगमोहन को कुएं में धकेल दिया।

जगमोहन की जोरदार चीख पूंजी।। ‘छपाक’ उसके कुएं के पानी में गिरने की आवाज आई। बुढ़िया मुंडेर पर हाथ रखे, नीचे झांकने लगी।

वाह कमला रानी, तूने तो कमाल कर दिया। उसके कानों में भौरी की आवाज़ पड़ी।

जगमोहन की वो चीख सोहनलाल के कानों तक पहुंच गई थी। सोहनलाल दौड़ा आया।

क्या हुआ?”

“तुम्हारा भाई कुएं में गिर गया है।” बुढ़िया ने कहा।

“क्या?” सोहनलाल ने उसी पल आगे बढ़कर कुएं में झांका। उसे कुएं के पानी में जगमोहन दिखा। “ठीक है तू?” सोहनलाल ने ऊंचे स्वर में पूछा।

हां। मुझे इसी बुढ़िया ने कुएं में फेंका है।” नीचे से जगमोहन ने गुस्से से कहा।।

“क्या?” सोहनलाल ने अचकचाकर, पास खड़ी बुढ़िया को देखा।

“तुम्हारा भाई तो पागल है।” बुढ़िया ने भोलेपन से कहा-“भला मैं बूढ़ीं, उसे कैसे नीचे फेंक सकती हूं।” ।

“वो झूठ नहीं बोलेगा।” सोहनलाल ने बुढ़िया को घूरा।

“सत्यवादी की औलाद है कि वो झूठ नहीं बोलेगा।” बुढ़िया ने तीखे स्वर में कहा—“वो झूठ ही तो बोल रहा है। कुएं में झांक रहा था, खुद को संभाल नहीं सका और नीचे जा गिरा। अब गुस्से में मेरी तरफ उंगली उठा रहा है।” ।

तेरे से बाद में बात करूंगा। इसे निकालें कैसे?

” रस्सी नीचे लटका दे। ऊपर चढ़ आएगा।” बुढ़िया बोली।
सोहनलाल ने नीचे झांककर कहा।

जगमोहन रस्सी लटक रही है। मैं इधर से रस्सी पकड़ लेता हूं, तू ऊपर चढ़ आ ।” ।

“इस बुढ़िया से बचकर रहना। इसने मुझे कुएं में फेंका है।” नीचे से जगमोहन ने कहा।

“तू ऊपर आ, फिर इस बुढ़िया से भी बात कर लेंगे।” सोहनलाल ने ऊपर रस्सी कसकर पकड़ ली।
 
तभी बुढ़िया मुस्कराई और सोहनलाल के पास आ गई। “तू कुछ खाता-पीता नहीं है।” वो बोली।

क्यों?” सोहनलाल रस्सी पकड़े कह उठा।

इतना दुबला-पतला क्यों है?” ।

तेरे को क्यों चिंता हो रही है?”

चिंता नहीं हो रही, सोच रही हूं कि तेरे को तो मैं इस तरह उठा लूंगी, जैसे बच्चे को उठाया जाता है।”

“मुझे उठाने की जरूरत क्या पड़ गई तेरे को?” सोहनलाल ने उसे देखते हुए तीखे स्वर में कहा।

कुएं में जो फेंकना है तेरे को।” बुढ़िया मुस्करा पड़ी।

क्या?" सोहनलाल चौंका। तभी बुढ़िया ने बिल्ली की तरह सोहनलाल पर झपट्टा मारा और उसे अपने आगोश में जकड़ लिया।

सोहनलाल ने रस्सी छोड़ी और बुढ़िया से भिड़ गया।

परंतु अगले ही पल उसे महसूस हो गया कि बुढ़िया में बेपनाह ताकत है।

बुढ़िया ने सोहनलाल को दोनों हाथों में उठाया और आगे बढ़कर उसे कुएं में फेंक दिया।

उसके पानी में गिरने की ‘छपाक' आवाज ऊपर तक आई।

“मान गई कमला रानी तुझे ।” भौरी की आवाज उसके कानों में पड़ी।

“कोई गांव वाला आएगा और उन्हें कुएं से निकाल लेगा।” कमला रानी ने कहा।

कालचक्र से वो नहीं बच पाएंगे।

” क्या मतलब?”

इस वक्त कालचक्र का जोर चल रहा है। होगा वही, जो कालचक्र चाहेगा। कालचक्र जग्गू और गुलचंद को भटका देगा।”

भटका देगा, कैसे—वो तो कुएं में हैं।

” ये आम कुआं नहीं है।” भौरी के हंसने की आवाज आई।

“मैं समझी नहीं।” ।

“तुझे समझने की जरूरत क्या है। तू मेरे संग रह और मजे कर। अब तेरा रूप बदल रही हूँ मैं।” ।

मोना चौधरी बनाएगी मुझे?"

नगीना बनाऊंगी। अब तू देवा के पास जाएगी।” भौरी की आवाज कानों में पड़ी।

एक बात मुझे समझ में नहीं आई।”

जग्गू और गुलचंद को क्यों नहीं बेहोश करके, पिशाचों के हवाले किया?”

“इसकी दो वजहें हैं कमला रानी।

” “क्या?”

पहली वजह तो ये है कि जग्गू पर किसी पवित्र शक्ति का साया है, जो उसे पूर्वाभास करा रही है। कालचक्र को इस बात का अंदेशा था कि वो जग्गू पर सीधे-सीधे हाथ डालेगा तो वो पवित्र शक्ति मुकाबले पर उतर सकती है।”

तो क्या कालचक्र उस शक्ति से डरता है?"

नहीं डरता। परंतु झगड़े में वक्त खराब करने का भी क्या फायदा । कालचक्र ने इस प्रकार जग्गू को झटका दिया। गुलचंद जग्गू के पास था तो उसके साथ कालचक्र को यही सलूक करना पड़ा।”

और दूसरी वजह क्या है?”

दूसरी ये कि मखानी, जग्गू के रूप में वहां पर मौजूद रहेगा, जहां वो सब हैं। वहां ऐसे काम करेगा कि उनमें झगड़ा हो ।”
“समझ गई।” कमला रानी ने सिर हिलाया-“अब तू मुझे नगीना बना।” ।
 
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