desiaks
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पूरी बैठक में बैठे लोगों में सन्नाटा छा गया था. राणाजी के चेहरे पर खौंफ और आश्चर्य के डोरे थे. आँखों में पानी का होना बताता था कि उन्हें इस पंचायत के फैसले से कितनी परेशानी हुई है. लेकिन कहते क्या? अगर वो आज की पंचायत के पंच होते तो शायद उन्हें भी लोगों की सोच के हिसाब से ही फैसला करना पड़ता. उनकी भी पहले की सोच यही थी कि हमेशा अपनी जाति में ही रिश्ता करना चाहिए लेकिन मजबूर हालात और समय के पहिये ने उन्हें इन सब को मानने से इनकार कर दिया था. आज उनकी सोच पहले से पूरी तरह अलग थी. लेकिन माला को अपने घर से निकाल फेंकना उनसे नहीं हो सकता था. कैसे उस गर्भवती लडकी को अपने घर से निकाल बाहर कर देते जिसके पेट में उनका खुद का खून पल रहा था. गलती तो खुद उनकी थी जो माला को व्याह कर अपने घर लाये. फिर उसकी सजा माला को क्यों मिले?
माला तो निर्दोष और नादान थी. लोग उनसे जलते हैं फिर माला क्यों इस जलन का फल भुगते. वो तो बेचारी इस गाँव के किसी आदमी से लडी तक नही. फिर गाँव के लोगों ने उनको बर्वाद करने के लिए माला को दांव पर क्यों लगा दिया? राणाजी ने पंचों की तरफ याचना भरी नजरों से देखते हुए कहा, “पंच लोगों क्या उस निर्दोष लडकी के लिए यह सजा कुछ ज्यादा नही है? क्या आपको नही लगता कि मुझे मेरे दोष से ज्यादा सजा दी गयी है? वो लडकी एक औरत है और औरत को इस तरह की सजा देकर आप लोग कितना ठीक कर रहे हैं ये मैं नहीं जानता लेकिन उस औरत की हाय जरुर लगेगी आप लोगों को. मैं फिर से एक बार आप को इस फैसले पर विचार करने के लिए कहता हूँ."
कुछ पंच लोग चाहते थे कि राणाजी पर कुछ रुपयों का जुरमाना लगा उन्हें बख्श दिया जाय लेकिन अधिकतर इस बात से इत्तेफाक नही रखते थे. उन्हें तो राणाजी को बर्बाद करना ही करना था. पंचों ने एक स्वर में कहा कि अब फैसला बदला नही जा सकता. इतना सुन राणाजी वहां से चल दिए. लोगों में फिर से खुसर पुसर होनी शुरू हो गयी. राणाजी से जलने वाले लोग कहते थे कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. अब होगी इसकी बर्बादी.
राणाजी का दिमाग बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. वो अपने घर की वजाय सीधे गुल्लन के घर पहुंचे.
गुल्लन के घर गुल्लन की बीबी थी लेकिन गुल्लन नही थे. गुल्लन की बीबी ने उनको बताया कि गुल्लन कुछ दिनों के लिए कही बाहर गये हुए हैं. राणाजी को गुल्लन से कुछ हल मिलने की उम्मीद थी लेकिन अब वो भी खत्म सी हो गयी.
राणाजी गुल्लन के घर से थोडा आगे ही चले थे कि एक आदमी ने उनको बताया कि गुल्लन को गाँव के मुखिया लोगों ने गाँव से बाहर भेजा है. जिससे आपका कोई फायदा न हो सके और दूसरी बात गुल्लन ने ही पंचायत के लालच में आ आपके बारे में सारी बात इन लोगों को बताई है.
माला तो निर्दोष और नादान थी. लोग उनसे जलते हैं फिर माला क्यों इस जलन का फल भुगते. वो तो बेचारी इस गाँव के किसी आदमी से लडी तक नही. फिर गाँव के लोगों ने उनको बर्वाद करने के लिए माला को दांव पर क्यों लगा दिया? राणाजी ने पंचों की तरफ याचना भरी नजरों से देखते हुए कहा, “पंच लोगों क्या उस निर्दोष लडकी के लिए यह सजा कुछ ज्यादा नही है? क्या आपको नही लगता कि मुझे मेरे दोष से ज्यादा सजा दी गयी है? वो लडकी एक औरत है और औरत को इस तरह की सजा देकर आप लोग कितना ठीक कर रहे हैं ये मैं नहीं जानता लेकिन उस औरत की हाय जरुर लगेगी आप लोगों को. मैं फिर से एक बार आप को इस फैसले पर विचार करने के लिए कहता हूँ."
कुछ पंच लोग चाहते थे कि राणाजी पर कुछ रुपयों का जुरमाना लगा उन्हें बख्श दिया जाय लेकिन अधिकतर इस बात से इत्तेफाक नही रखते थे. उन्हें तो राणाजी को बर्बाद करना ही करना था. पंचों ने एक स्वर में कहा कि अब फैसला बदला नही जा सकता. इतना सुन राणाजी वहां से चल दिए. लोगों में फिर से खुसर पुसर होनी शुरू हो गयी. राणाजी से जलने वाले लोग कहते थे कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. अब होगी इसकी बर्बादी.
राणाजी का दिमाग बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. वो अपने घर की वजाय सीधे गुल्लन के घर पहुंचे.
गुल्लन के घर गुल्लन की बीबी थी लेकिन गुल्लन नही थे. गुल्लन की बीबी ने उनको बताया कि गुल्लन कुछ दिनों के लिए कही बाहर गये हुए हैं. राणाजी को गुल्लन से कुछ हल मिलने की उम्मीद थी लेकिन अब वो भी खत्म सी हो गयी.
राणाजी गुल्लन के घर से थोडा आगे ही चले थे कि एक आदमी ने उनको बताया कि गुल्लन को गाँव के मुखिया लोगों ने गाँव से बाहर भेजा है. जिससे आपका कोई फायदा न हो सके और दूसरी बात गुल्लन ने ही पंचायत के लालच में आ आपके बारे में सारी बात इन लोगों को बताई है.