desiaks
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पुरानी बात है, मैंने स्कूल से निकल कर जूनियर कॉलेज में कदम रक्खा ही था, सारा माहौल उस समय रूमानी लगता था, हर लड़की खूबसूरत लगती थी, शरीर और दिमाग में मस्ती रहती थी, शरीर जैसे हर समय विस्फोट के लिए तैयार, मुठ मारने लगा था, लंड बेचैन रहता था, वैसे मैं पढाई में भी तेज था और क्लास में ऊँचे दर्जे से पास होता था, इस वजह से घर और बाहर इज्जत थी, किसी चीज के लिए घरवाले मना नहीं करते, उसी समय गर्मी की छुट्टियां हुई और मेरे ताउजी के एक घनिष्ट मित्र अपनी पत्नी और बेटी के साथ हमारे घर आये तीन चार दिनों के लिए, उन्हें पुरी जाना था और हमारे यहाँ रुके थे, बेटी अलीगढ़ के एक स्कूल में नवी कक्षा की छात्रा थी और अभी अभी परीक्षा का रिजल्ट आया था जिसमे पास हो गयी थी, छुट्टियों के बाद दसवीं कक्षा में दाखिला लेना था, उसके परिवार से हमारा बहुत पुराना सम्बन्ध था और मेहमानों जैसी कोई बात नहीं थी. उसके पिताजी भी मेरे पिताजी के दोस्त जैसे ही थे. पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे, तीन चार सालों से ताउजी व्यापार के लिए पूना रहने लगे थे. कोमल को बहुत सालों के बाद देखा था, उसे मेरे बारे में याद तो था, पहले बिलकुल एक छोटी बच्ची सी थी जब देखा था, हमलोग मकान के पीछे के बाड़े में खेले हुए थे और उसे याद था की साथ ही आइसक्रीम खाने और पिक्चर देखने गए थे जब वो एक दो बार आयी थी, अब जब वो आयी तो मैंने देखा की वो बड़ी लगने लगी थी, शरीर भर गया था, ऊँचाई भी पूरी हो गयी थी, अब वो सलवार पेहेनने लगी थी, मेरा भी देखने का अंदाज बदल गया था, पहले इस तरह से देखा नहीं था, अब वो शर्माती थी, और ज्यादा कर अपनी माँ के साथ ही रहती, थोड़ी बहुत बातें हुई लेकिन झिझकते हुए, मुझे वो बहुत अच्छी लगी, सुन्दर तो थी ही लेकिन जवानी आने से और भी मदमस्त लगने लगी थी, मैं उससे दोस्ती बढ़ाने और किसी भी तरह उसे आगोश में लेने के लिए व्याकुल हो गया, अब छुट्टियों के बावजूद में दोस्तों के पास नहीं जा रहा था और घर में ही रहता, छोटे भाई के जरिये कोमल के साथ कैरम, लूडो खेलने की योजना बनाता और उसके सामने रहने की कोशिश करता, वो लोग तीन चार दिन के लिए ही आये थे, बातों बातों में अकेले में मैंने एक दो बार उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ की तो वो शर्मा गयी, लगा जैसे की उसे यह सुनने में अच्छा लगा.
दूसरी रात को मैं, कोमल और भाई जमीन पर बैठे लूडो खेल रहे थे, माँ पिताजी वगैरह दुसरे कमरे में थे, मैं मौका पाकर कोमल के हाथों को और बाँहों को छु देता था, एक दो बार मैंने पासा फेंकते हुए अपना हाथ उसके जांघों पर भी रख कर हलके से दबा दिया था पर उसने कोई विरोध नहीं किया, शायद उसे लगा हो की अनायास ही ऐसा हुआ हो, उसकी भरी भरी गुदाज जांघों के स्पर्श से बिजली सी शरीर में कौंध गयी, मेरा शरीर अब आवेश से गरम हो रहा था, रात को मैं हाफ पैंट पेहेन कर सोता था, मैंने कोशिस की और कोमल के और नजदीक खिसककर हो गया, मैंने धीरे से अपने एक पैर के पंजों को कोमल की जांघों के नीचे घुसाना शुरू किया, उसने मेरी ओर देखा पर कहा कुछ नहीं और दूर हटने की कोशिश भी नहीं की, मेरी हिम्मत बढ़ी और मैं पैर की उंगुलियों से उसके जांघों के नीचे हिस्से को सहलाने लगा, मुझे लगा की मेरे पैरों पर किसी ने गरम कोमल स्पंज रख दिया है, थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया की कोमल ने अपनी जांघों को कुछ ऊपर किया जैसे की मुझे और अन्दर तक पैर डालने के लिए कह रही हो, मैंने हिम्मत कर अपने पंजो को और अन्दर किया, अब मेरे पंजे बिलकुल उसके योनी के नजदीक थे, मैं धीरे धीरे अपने पैर के अंगूठे से उसके योनी के पास उसे छेड़ रहा था,
मेरा लंड बेकाबू हो गया था, मैं उसे अपना फुफकारता हुआ लंड दिखाना चाहता था, अब मन खेल में नहीं था, कोमल भी बेमन से खेल रही थी, उसकी आवाज़ उखड़ रही थी, लग रहा था उसका गला सूख गया है, मेरे पैर की उंगलिया अब उसके योनी के ऊपर तक पहुँच गयी थी, मैं अंगूठे से उसकी बूर दबा रहा था, मुझे लगा जैसे की उसकी बूर से कुछ पानी जैसा निकला हो, उसकी सलवार गीली लग रही थी, मेरे लिय बैठना मुश्किल था, मैंने कोमल से कहा मेरी गोटियाँ ऐसे ही रहने दो और तुम दोनों खेलो और मैं सुसु से आता हूँ फिर तुम्हे हराऊँगा, मुझे मालूम था भाई जीत जायेगा , वो बहुत लूडो खेलता था, वही हुआ, थोड़ी देर में वो जीत गया और खेल से बाहर हो गया, अब मैं और कोमल थे, भाई अपने बेड पर जा कर किताब पढ़ने लगा, मैं आकर अपनी जगह बैठ गया, कोमल से कहा आगे खेलो, और पहले की तरह अपने पंजों को कोमल के जांघों के नीचे सरकाने लगा, कोमल ने बिना कुछ कहे जांघे ऊपर की और मैं उसकी बूर को कुरेदने लगा, अब हम खेल का बहाना कर रहे थे, थोड़ी देर बाद देखा तो भाई सो रहा था, अब वो बार बार मेरी तरफ देख रही थी, मैंने एक प्लान किया था, बाथरूम से वापस आते समय अपने पैंट के सामने के दो बटन खोले लिए थे, अब बैठते समय वहां बने सुराख़ से लंड थोड़ा थोड़ा झांक रहा था, कोमल की नजर उसपर पड़ रही थी, मैं ऐसा बना हुआ था की मुझे मालूम ही नहीं हो ही मेरे बटन खुले हैं, मैं कनखियों से देख रहा था,
कोमल की नजर बार बार उस और जा रही थी, मेरा निशाना ठीक था, कोमल और मै दोनों व्याकुल थे, हम खेल रहे थे लेकिन कोई दूसरा ही खेल चल रहा था, दोनों चुप थे, लंड अन्दर बने रहने को तैयार नहीं था, आवेश में फटकर बाहर आना चाहता था, मैं कोमल को बार बार अब छु रहा था , कभी जांघों पर, कभी उसकी कमर पर, कभी उसके हाथों को पकड़ रहा था, उसका जिस्म बहुत ही भरा भरा था, अचानक मैंने देखा कोमल की आँखे मेरे पैंट नीचले हिस्से पर जम गयी हैं, लंड बेकाबू होकर सामने के दरवाज़े से बाहर फिसल पड़ा, अपनी उत्तेजित अवस्था में तना खड़ा था पुरी लम्बाई के साथ, लाल सुपाड़ा, वासना की तरलता से चिकना और चमकता हुआ, ६.५ इंच लम्बा, मोटा और कुछ कुछ हल्का कलास लिए हुए, तनाव से फडफडा रहा था, कोमल स्तब्ध सी फटी फटी आँखों से देख रही थी, मैं फिर भी अंजान सा बना उससे पासा फेकने को कहता रहा, कोमल भी उत्तेजित थी, उसकी बूर का पानी मेरे अंगूठे को गीला कर रहा था, उससे रहा नहीं गया और वो उठ कर भागी, कहा "मुझे अब नहीं खेलना है" , समझ में नहीं आया की कहीं नाराज तो नहीं हो गयी.
अब लंड को शांत करना आसान नहीं था, मैं उठा लाइट बंद की और बिस्तर पर लेट गया, कोमल की गुदाज झंघे और उसके भारी नितम्ब याद आ रहे थे, उनको नंगा देखने की इच्छा तेज हो गयी, उन्हें छूने की और चूमने की इच्छा हो रही थी, उसकी योनी का गीलापन परेशान कर रहा था, उसके उठे हुए वक्ष और भरे नितम्बो को याद कर रहा नहीं गया, मुठ मार कर लंड को शांत किया, भरभराकर वीर्य निकल पडा, कब गहरी नीद आयी मालूम नहीं. गर्मी का समय था, लगभग सुबह ५-६ बजे नीद खुली तो पाया मुहं में एक अजीब क़िस्म का कड़वा मीठा सा स्वाद है, ताज्जुब हुआ, शीशे में देखा तो मुहं में चोकलेट लगी हुई थी और लगा किसीने जबदस्ती मुहं में चाकलेट डालने की कोशिश की थी, यह किसने किया होगा मैंने सोचा, कमरे से बाहर आया और कोमल के कमरे में झांक कर देखा वह सो रही थी, उसकी माँ और पिताजी नहीं थे, फिर मैंने अपने बाबूजी के कमरे में देखा वहां भी कोई नहीं था, मुझे ध्यान आया रात को माँ ने बताया था की उनलोगों के साथ सुबह का दर्शन करने मंदिर जाने का प्रोग्राम था और घर की चाभियाँ मुझे दी थी, मंदिर हमारे यहाँ से कोई ४५ किलोमीटर होगा , बाहर देखा तो गाड़ी गैरेज में नहीं थी, मतलब था उनको कम से कम २-३ घंटे तो लगेंगे, मैं समझ गया यह चोकलेट की बदमाशी हो न हो कोमल की ही थी,
मैं वापस आया और कोमल के कमरे में देखा, वो ऐसे ही सो रही थी पैर फैला कर नितम्बों को ऊपर किये, वक्ष को गद्दे पर दबाये हुए, उसकी चूत के निचले हिस्से का का हल्का उभार उसके सलवार में दिख रहा था, मैं नजदीक आया और गौर से देखा उसने अन्दर पेंटी नहीं पहनी हुई थी, कुर्ती ऊपर सरक गयी थी, की कमर को सलवार के नाड़े ने घेर रखा था, मुझे रात को सताया, मैंने भी बदला लेने की सोची, कोमल का पूरा शरीर उस समय गजब की सेक्सी अवस्था में गद्दे पर फैला पड़ा था, वो पुरी नीदं में बेखबर सो रही थी, मैंने उसके नजदीक बैठ गया और उसके बेधड़क फैले शरीर का आनंद लेने लगा, गदराया बदन, कमर गोरी जिसपर सलवार बंधी थी, उभार के साथ बड़े नितम्ब, बाल खुले, साँसों के साथ वक्ष ऊपर नीचे हो रहा था, कोई प्रतिमा सी लग रही थी, जैसे बुला रही थी मुझे ले लो,
मुझे अपने पर कंट्रोल नहीं रहा, मैं उसकी पीठ की और बैठा था, धीरे धीर कुर्ती को और ऊपर सरकाया, वो थोडा कुनमुनाई पर उठी नहीं, अब उसकी पूरी नंगी कमर दिख रही थी, मेरे हाथ काँप रहे थे, मैंने धीरे से हाथ कमर पर घेर कर सलवार के नाड़े को खींचना शुरू किया, डर भी लग रहा था की कहीं उठ न जाए और बात बिगड़ जाये, नाड़ा खुल गया और सलवार की पकड़ कमर पर ढीली हो गयी, मैंने सलवार को नीचे खिसकाना शुरू किया लेकिन सलवार थोड़ी सी नीची होकर रुक गयी, वो गद्दे और नितम्ब के बीच में दबी थी, और खींचने पर कोमल जग जाती, कोमल के गोरे और चिकने नितम्ब अपनी उभार के साथ ऊपरी हिस्सा दिख रहा था, नितम्बों के बीच की दरार दिख रही थी , मैंने धीरे से हाथ उसके नितम्बों पर रक्खा और चूम लिया, हाथ को दरार के ऊपर से नीचे सरकाने की कोशिश की तो गरम हवा सी हथेलियों में लगी, बहुत मजा आ रहा था और डर से एक रोमांच भी हो रहा था, मेरे शरीर के रोंये खड़े हो गए थे,
दूसरी रात को मैं, कोमल और भाई जमीन पर बैठे लूडो खेल रहे थे, माँ पिताजी वगैरह दुसरे कमरे में थे, मैं मौका पाकर कोमल के हाथों को और बाँहों को छु देता था, एक दो बार मैंने पासा फेंकते हुए अपना हाथ उसके जांघों पर भी रख कर हलके से दबा दिया था पर उसने कोई विरोध नहीं किया, शायद उसे लगा हो की अनायास ही ऐसा हुआ हो, उसकी भरी भरी गुदाज जांघों के स्पर्श से बिजली सी शरीर में कौंध गयी, मेरा शरीर अब आवेश से गरम हो रहा था, रात को मैं हाफ पैंट पेहेन कर सोता था, मैंने कोशिस की और कोमल के और नजदीक खिसककर हो गया, मैंने धीरे से अपने एक पैर के पंजों को कोमल की जांघों के नीचे घुसाना शुरू किया, उसने मेरी ओर देखा पर कहा कुछ नहीं और दूर हटने की कोशिश भी नहीं की, मेरी हिम्मत बढ़ी और मैं पैर की उंगुलियों से उसके जांघों के नीचे हिस्से को सहलाने लगा, मुझे लगा की मेरे पैरों पर किसी ने गरम कोमल स्पंज रख दिया है, थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया की कोमल ने अपनी जांघों को कुछ ऊपर किया जैसे की मुझे और अन्दर तक पैर डालने के लिए कह रही हो, मैंने हिम्मत कर अपने पंजो को और अन्दर किया, अब मेरे पंजे बिलकुल उसके योनी के नजदीक थे, मैं धीरे धीरे अपने पैर के अंगूठे से उसके योनी के पास उसे छेड़ रहा था,
मेरा लंड बेकाबू हो गया था, मैं उसे अपना फुफकारता हुआ लंड दिखाना चाहता था, अब मन खेल में नहीं था, कोमल भी बेमन से खेल रही थी, उसकी आवाज़ उखड़ रही थी, लग रहा था उसका गला सूख गया है, मेरे पैर की उंगलिया अब उसके योनी के ऊपर तक पहुँच गयी थी, मैं अंगूठे से उसकी बूर दबा रहा था, मुझे लगा जैसे की उसकी बूर से कुछ पानी जैसा निकला हो, उसकी सलवार गीली लग रही थी, मेरे लिय बैठना मुश्किल था, मैंने कोमल से कहा मेरी गोटियाँ ऐसे ही रहने दो और तुम दोनों खेलो और मैं सुसु से आता हूँ फिर तुम्हे हराऊँगा, मुझे मालूम था भाई जीत जायेगा , वो बहुत लूडो खेलता था, वही हुआ, थोड़ी देर में वो जीत गया और खेल से बाहर हो गया, अब मैं और कोमल थे, भाई अपने बेड पर जा कर किताब पढ़ने लगा, मैं आकर अपनी जगह बैठ गया, कोमल से कहा आगे खेलो, और पहले की तरह अपने पंजों को कोमल के जांघों के नीचे सरकाने लगा, कोमल ने बिना कुछ कहे जांघे ऊपर की और मैं उसकी बूर को कुरेदने लगा, अब हम खेल का बहाना कर रहे थे, थोड़ी देर बाद देखा तो भाई सो रहा था, अब वो बार बार मेरी तरफ देख रही थी, मैंने एक प्लान किया था, बाथरूम से वापस आते समय अपने पैंट के सामने के दो बटन खोले लिए थे, अब बैठते समय वहां बने सुराख़ से लंड थोड़ा थोड़ा झांक रहा था, कोमल की नजर उसपर पड़ रही थी, मैं ऐसा बना हुआ था की मुझे मालूम ही नहीं हो ही मेरे बटन खुले हैं, मैं कनखियों से देख रहा था,
कोमल की नजर बार बार उस और जा रही थी, मेरा निशाना ठीक था, कोमल और मै दोनों व्याकुल थे, हम खेल रहे थे लेकिन कोई दूसरा ही खेल चल रहा था, दोनों चुप थे, लंड अन्दर बने रहने को तैयार नहीं था, आवेश में फटकर बाहर आना चाहता था, मैं कोमल को बार बार अब छु रहा था , कभी जांघों पर, कभी उसकी कमर पर, कभी उसके हाथों को पकड़ रहा था, उसका जिस्म बहुत ही भरा भरा था, अचानक मैंने देखा कोमल की आँखे मेरे पैंट नीचले हिस्से पर जम गयी हैं, लंड बेकाबू होकर सामने के दरवाज़े से बाहर फिसल पड़ा, अपनी उत्तेजित अवस्था में तना खड़ा था पुरी लम्बाई के साथ, लाल सुपाड़ा, वासना की तरलता से चिकना और चमकता हुआ, ६.५ इंच लम्बा, मोटा और कुछ कुछ हल्का कलास लिए हुए, तनाव से फडफडा रहा था, कोमल स्तब्ध सी फटी फटी आँखों से देख रही थी, मैं फिर भी अंजान सा बना उससे पासा फेकने को कहता रहा, कोमल भी उत्तेजित थी, उसकी बूर का पानी मेरे अंगूठे को गीला कर रहा था, उससे रहा नहीं गया और वो उठ कर भागी, कहा "मुझे अब नहीं खेलना है" , समझ में नहीं आया की कहीं नाराज तो नहीं हो गयी.
अब लंड को शांत करना आसान नहीं था, मैं उठा लाइट बंद की और बिस्तर पर लेट गया, कोमल की गुदाज झंघे और उसके भारी नितम्ब याद आ रहे थे, उनको नंगा देखने की इच्छा तेज हो गयी, उन्हें छूने की और चूमने की इच्छा हो रही थी, उसकी योनी का गीलापन परेशान कर रहा था, उसके उठे हुए वक्ष और भरे नितम्बो को याद कर रहा नहीं गया, मुठ मार कर लंड को शांत किया, भरभराकर वीर्य निकल पडा, कब गहरी नीद आयी मालूम नहीं. गर्मी का समय था, लगभग सुबह ५-६ बजे नीद खुली तो पाया मुहं में एक अजीब क़िस्म का कड़वा मीठा सा स्वाद है, ताज्जुब हुआ, शीशे में देखा तो मुहं में चोकलेट लगी हुई थी और लगा किसीने जबदस्ती मुहं में चाकलेट डालने की कोशिश की थी, यह किसने किया होगा मैंने सोचा, कमरे से बाहर आया और कोमल के कमरे में झांक कर देखा वह सो रही थी, उसकी माँ और पिताजी नहीं थे, फिर मैंने अपने बाबूजी के कमरे में देखा वहां भी कोई नहीं था, मुझे ध्यान आया रात को माँ ने बताया था की उनलोगों के साथ सुबह का दर्शन करने मंदिर जाने का प्रोग्राम था और घर की चाभियाँ मुझे दी थी, मंदिर हमारे यहाँ से कोई ४५ किलोमीटर होगा , बाहर देखा तो गाड़ी गैरेज में नहीं थी, मतलब था उनको कम से कम २-३ घंटे तो लगेंगे, मैं समझ गया यह चोकलेट की बदमाशी हो न हो कोमल की ही थी,
मैं वापस आया और कोमल के कमरे में देखा, वो ऐसे ही सो रही थी पैर फैला कर नितम्बों को ऊपर किये, वक्ष को गद्दे पर दबाये हुए, उसकी चूत के निचले हिस्से का का हल्का उभार उसके सलवार में दिख रहा था, मैं नजदीक आया और गौर से देखा उसने अन्दर पेंटी नहीं पहनी हुई थी, कुर्ती ऊपर सरक गयी थी, की कमर को सलवार के नाड़े ने घेर रखा था, मुझे रात को सताया, मैंने भी बदला लेने की सोची, कोमल का पूरा शरीर उस समय गजब की सेक्सी अवस्था में गद्दे पर फैला पड़ा था, वो पुरी नीदं में बेखबर सो रही थी, मैंने उसके नजदीक बैठ गया और उसके बेधड़क फैले शरीर का आनंद लेने लगा, गदराया बदन, कमर गोरी जिसपर सलवार बंधी थी, उभार के साथ बड़े नितम्ब, बाल खुले, साँसों के साथ वक्ष ऊपर नीचे हो रहा था, कोई प्रतिमा सी लग रही थी, जैसे बुला रही थी मुझे ले लो,
मुझे अपने पर कंट्रोल नहीं रहा, मैं उसकी पीठ की और बैठा था, धीरे धीर कुर्ती को और ऊपर सरकाया, वो थोडा कुनमुनाई पर उठी नहीं, अब उसकी पूरी नंगी कमर दिख रही थी, मेरे हाथ काँप रहे थे, मैंने धीरे से हाथ कमर पर घेर कर सलवार के नाड़े को खींचना शुरू किया, डर भी लग रहा था की कहीं उठ न जाए और बात बिगड़ जाये, नाड़ा खुल गया और सलवार की पकड़ कमर पर ढीली हो गयी, मैंने सलवार को नीचे खिसकाना शुरू किया लेकिन सलवार थोड़ी सी नीची होकर रुक गयी, वो गद्दे और नितम्ब के बीच में दबी थी, और खींचने पर कोमल जग जाती, कोमल के गोरे और चिकने नितम्ब अपनी उभार के साथ ऊपरी हिस्सा दिख रहा था, नितम्बों के बीच की दरार दिख रही थी , मैंने धीरे से हाथ उसके नितम्बों पर रक्खा और चूम लिया, हाथ को दरार के ऊपर से नीचे सरकाने की कोशिश की तो गरम हवा सी हथेलियों में लगी, बहुत मजा आ रहा था और डर से एक रोमांच भी हो रहा था, मेरे शरीर के रोंये खड़े हो गए थे,