desiaks
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" तनिक रुकिए राजकुमार... ". बड़ी बड़ी आँखे किये हुये हर्षपाल ने चादर अपने कमर से बांधा और नंगे बदन ही सैया से उठकर नीचे उतर आएं, देववर्मन के विपरीत दिशा में थोड़ी दूर तक टहल कर गएँ, फिर रुकें, और पीछे मुड़कर बोलें. " तो आप ये कह रहें हैं राजकुमार, की आपकी छोटी बहन और छोटे भाई में अनैतिक सम्बन्ध है, वही छोटी बहन जिससे हमारा विवाह तय हुआ था, और अब दोनों पति पत्नि हैं, और इस घिनौने बंधन को स्वीकार कर राजा नंदवर्मन अब हमें ही मूर्ख बना कर मुझे अपमानित कर रहें हैं, वो भी हमें पूरी सच्चाई से अवगत कराये बिना ??? ".
नाटकिय तरीके से देववर्मन ने अपना सिर झुका लिया, मानो हर्षपाल की बात का उत्तर देने का साहस उनमें ना हो !
" अगर आपका कथन सत्य है तो फिर आप ही हमें एक कारण बताईये राजकुमार, की क्यूँ ना हम अभी यहीं आपका वध करके अपने अपमान का प्रतिशोध ले लें ??? ".
" अगर ऐसा करने से आपका प्रतिशोध पूर्ण होता है राजन, तो आप अवश्य ही ऐसा करें ! ".
" चिंता ना करें राजकुमार, सिर्फ आपके प्राण लेकर हमारी प्रतिशोध की अग्नि शांत ना होगी. आपके बाद आपके पिताश्री, आपकी छोटी बहन और आपके छोटे भाई कि भी यही स्थिति होगी ! ".
" मैं यहाँ निहत्था ही आया हूँ राजन... हमारे परिवार ने आपके साथ जो कुछ भी किया है उसके बाद आपका विरोध करने का साहस मुझमें तो नहीं रहा ! ".
हर्षपाल ने धीरे से अपना सिर हिलाया, मानो सब कुछ समझने कि चेष्टा कर रहें हों, और पूछ बैठे.
" आपको हमसे क्या चाहिए राजकुमार, अपने परिवार के विरुद्ध जाकर आपने हमें ये सब क्यूँ बताया ? ".
" इसके तीन प्रमुख कारण हैं राजन... ". देववर्मन समझ चुके थें कि उनका तीर निशाने पर लग गया है, तो अब वो हर्षपाल को समझाते हुये बोलें. " प्रथमत: मेरी छोटी बहन और छोटे भाई ने भाई बहन के पवित्र रिश्ते का अपमान किया है, द्वितीय, आपने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा है, सो आपको धोखा देना मुझे स्वीकार नहीं, और तृतीय कारण ये है राजन, कि मैं स्वयं भी पूर्ण रूप से स्वार्थ से परे नहीं हूँ !!! ".
" तो फिर आपका स्वार्थ क्या है राजकुमार ? ". हर्षपाल ने देववर्मन के समीप आकर धीरे से पूछा.
" मुझे राजसिंहासन चाहिए, मैं चाहता हूँ कि आप इसमें मेरी सहायता करें ! ".
" भला वो कैसे ? ".
" हमारे राज्य पर आक्रमण करके... ".
" वो तो हम यूँ भी कर ही सकते हैं... परन्तु आपकी सहायता करके हमें क्या लाभ होगा ? ".
" आपके अपमान का प्रतिशोध पूर्ण होगा ! ".
" फिर आपको हम राजा घोषित क्यूँ करें राजकुमार, आपका राज्य स्वयं ना हड़प लें ? ". हर्षपाल ने ब्यंग से मुस्कुराते हुये पूछा.
" मेरी सहायता के बिना आप कभी भी हमारे राज्य को पराजित नहीं कर पाएंगे राजन ! ". देववर्मन ने दृढ़ स्वर में कहा.
" और इसका कारण ? ".
" हमारे राजमहल कि बनावट ही ऐसी है कि लाख कोशिशों के बावजूद भी आप प्रवेशद्वार के फाटक तक भी नहीं पहुँच पाएंगे, फिर या तो आपके सारे सैनिक मार गिराए जायेंगे, या फिर आपको पराजय स्वीकार करके वापस लौट जाना पड़ेगा... ".
हर्षपाल ध्यानपूर्वक देववर्मन कि बात सुनते रहें.
" सिर्फ मुझे राजमहल का एक गुप्त द्वार ज्ञात है, जो कि मैं आपके लिए खोल सकता हूँ, ताकि आप और आपकी सेना अंदर प्रवेश कर सके. जो युद्ध आप तीन दिन तक लगातार लड़ कर भी हार जायेंगे, वही युद्ध आप मेरी सहायता से कुछेक क्षणो में ही जीत सकतें हैं राजन ! ".
हर्षपाल के चेहरे पर अभी भी शंका के बादल मंडराते देख देववर्मन समझ गएँ कि शायद उन्हें हमले के लिए मनाना इतना आसान नहीं होगा, तो वो उठ खड़े हुये, और अपना अंतिम दाँव फेंका.
" ठीक है राजन, मुझे कुछ नहीं चाहिए. आप मुझे सिंहासन सौंप दें, फिर मैं अपने राज्य को आपके अधीन घोषित कर दूंगा, यानि हमारा राज्य आपके राज्य का ही हिस्सा हुआ समझिये, केवल नाममात्र का राजा बने रहने में मुझे कोई आपत्ति नहीं !!! "
हर्षपाल कुछ नहीं बोलें, पीछे मुड़कर टहलते हुये कुछ सोचने लगें, कुछ देर बाद वापस देववर्मन के पास आएं, और अपना चेहरा देववर्मन के चेहरे के एकदम समीप लेजाकर उनकी आँखों में आँखे डालकर अपनी आँखे बड़ी बड़ी करते हुये बोलें.
" आपका परिवार हमें पहले ही अत्यंत अपमानित कर चुका है, धोखा किया है हमारे साथ, ऐसी परिस्थिति में आपके परिवार के किसी भी व्यक्ति पर भरोसा करना अब मेरे प्रति संभव नहीं रहा. फिर भी हमें आपकी बात पर भरोसा करने का मन कर रहा है . परन्तु एक बात स्मरण रखिये राजकुमार, अगर आपने हमारे साथ किसी प्रकार का छल कपट करने का दुस्साहस किया, तो आपका राज्य भले ही हम ना जीत पाएं, आपके प्राण लेने से हमें स्वयं यमराज भी नहीं रोक पाएंगे !!! ".
हर्षपाल कि कठोर धमकी से एक क्षण के लिए देववर्मन भी सहम से गएँ, फिर हल्का सा मुस्कुरायें, और बोलें.
" मेरा वध करने का विकल्प आपके पास हमेशा रहेगा राजन ! ".
" हम्म्म्म... मेरी भी एक शर्त है राजकुमार देववर्मन... ".
" अवश्य राजन... ".
" अवंतिका और विजयवर्मन का वध मैं स्वयं अपने हाथों से करूँगा !!! ".
" अगर वो दोनों मेरे हाथों मृत्यु को प्राप्त होने से बच गएँ, तो अवश्य ही राजन !!! ". देववर्मन ने दाँत पीसते हुये कहा.
" और मैंने सुना है कि आपकी पत्नि चित्रांगदा भी रूप सौंदर्य में कुछ कम नहीं !!! ". हर्षपाल ने घृणित तरीके से मुस्कुराते हुये कहा.
देववर्मन ने अपनी आँखे नीचे कर ली, एक क्षण को रुकें, कुछ सोचा, और फिर आँखे ऊपर करके मुस्कुराते हुये उत्तर दिया.
" मेरी बहन अवंतिका जैसी सुंदर तो नहीं, जिसमें आपकी पत्नि बनने के गुण हों, परन्तु युद्ध के उपरांत अगर आप उसे अपनी दासी भी बना लें तो अवश्य ही ये उसका सौभाग्य होगा, जिसके लिए वो आजीवन आपकी ऋणी रहेगी ! ".
हर्षपाल ने मुस्कुराकर देववर्मन को दोनों कंधो से पकड़ कर मित्रता का अस्वासन दिया.
" परन्तु आपको एक दो दिन के अंदर ही आक्रमण करना होगा, अवंतिका और विजयवर्मन राज्य छोड़कर भागने कि तैयारी में हैं ! ". देववर्मन ने कहा.
" हमारी सेना सर्वदा तैयार रहती है राजकुमार... बस आप अपनी सहायता वाली बात पर अडिग रहें ! ".
" जी राजन... ". देववर्मन ने कहा, फिर थोड़ा मुस्कुराकर विषय बदलते हुये बोलें. " अब तनिक मदिरा मंगवाईये राजन, आपके भय से मेरा गला सूख गया है ! ".
इतना सुनते ही हर्षपाल ज़ोर से अट्टहास करते हुये हँस पड़ें, और द्वार की ओर देखकर ताली बजाई, तो एक दासी तुरंत कक्ष के अंदर आई, और सिर झुकाकर खड़ी हो गई.
" मूर्ख स्त्री... देख क्या रही हो, मदिरा लाओ... मदिरा !!! ". हर्षपाल ज़ोर से चिल्लायें.
दासी के बाहर जाते ही देववर्मन ने हर्षपाल से कहा.
" वैसे आपके राजमहल में और भी सुंदर नर्तकीयां हैं क्या ??? ".
हर्षपाल एक बार पुनः ठहाका मारकर हँस पड़ें, और बोलें.
" अवश्य राजकुमार...अवश्य, अभी उपस्थित करता हूँ !!! ".
नाटकिय तरीके से देववर्मन ने अपना सिर झुका लिया, मानो हर्षपाल की बात का उत्तर देने का साहस उनमें ना हो !
" अगर आपका कथन सत्य है तो फिर आप ही हमें एक कारण बताईये राजकुमार, की क्यूँ ना हम अभी यहीं आपका वध करके अपने अपमान का प्रतिशोध ले लें ??? ".
" अगर ऐसा करने से आपका प्रतिशोध पूर्ण होता है राजन, तो आप अवश्य ही ऐसा करें ! ".
" चिंता ना करें राजकुमार, सिर्फ आपके प्राण लेकर हमारी प्रतिशोध की अग्नि शांत ना होगी. आपके बाद आपके पिताश्री, आपकी छोटी बहन और आपके छोटे भाई कि भी यही स्थिति होगी ! ".
" मैं यहाँ निहत्था ही आया हूँ राजन... हमारे परिवार ने आपके साथ जो कुछ भी किया है उसके बाद आपका विरोध करने का साहस मुझमें तो नहीं रहा ! ".
हर्षपाल ने धीरे से अपना सिर हिलाया, मानो सब कुछ समझने कि चेष्टा कर रहें हों, और पूछ बैठे.
" आपको हमसे क्या चाहिए राजकुमार, अपने परिवार के विरुद्ध जाकर आपने हमें ये सब क्यूँ बताया ? ".
" इसके तीन प्रमुख कारण हैं राजन... ". देववर्मन समझ चुके थें कि उनका तीर निशाने पर लग गया है, तो अब वो हर्षपाल को समझाते हुये बोलें. " प्रथमत: मेरी छोटी बहन और छोटे भाई ने भाई बहन के पवित्र रिश्ते का अपमान किया है, द्वितीय, आपने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा है, सो आपको धोखा देना मुझे स्वीकार नहीं, और तृतीय कारण ये है राजन, कि मैं स्वयं भी पूर्ण रूप से स्वार्थ से परे नहीं हूँ !!! ".
" तो फिर आपका स्वार्थ क्या है राजकुमार ? ". हर्षपाल ने देववर्मन के समीप आकर धीरे से पूछा.
" मुझे राजसिंहासन चाहिए, मैं चाहता हूँ कि आप इसमें मेरी सहायता करें ! ".
" भला वो कैसे ? ".
" हमारे राज्य पर आक्रमण करके... ".
" वो तो हम यूँ भी कर ही सकते हैं... परन्तु आपकी सहायता करके हमें क्या लाभ होगा ? ".
" आपके अपमान का प्रतिशोध पूर्ण होगा ! ".
" फिर आपको हम राजा घोषित क्यूँ करें राजकुमार, आपका राज्य स्वयं ना हड़प लें ? ". हर्षपाल ने ब्यंग से मुस्कुराते हुये पूछा.
" मेरी सहायता के बिना आप कभी भी हमारे राज्य को पराजित नहीं कर पाएंगे राजन ! ". देववर्मन ने दृढ़ स्वर में कहा.
" और इसका कारण ? ".
" हमारे राजमहल कि बनावट ही ऐसी है कि लाख कोशिशों के बावजूद भी आप प्रवेशद्वार के फाटक तक भी नहीं पहुँच पाएंगे, फिर या तो आपके सारे सैनिक मार गिराए जायेंगे, या फिर आपको पराजय स्वीकार करके वापस लौट जाना पड़ेगा... ".
हर्षपाल ध्यानपूर्वक देववर्मन कि बात सुनते रहें.
" सिर्फ मुझे राजमहल का एक गुप्त द्वार ज्ञात है, जो कि मैं आपके लिए खोल सकता हूँ, ताकि आप और आपकी सेना अंदर प्रवेश कर सके. जो युद्ध आप तीन दिन तक लगातार लड़ कर भी हार जायेंगे, वही युद्ध आप मेरी सहायता से कुछेक क्षणो में ही जीत सकतें हैं राजन ! ".
हर्षपाल के चेहरे पर अभी भी शंका के बादल मंडराते देख देववर्मन समझ गएँ कि शायद उन्हें हमले के लिए मनाना इतना आसान नहीं होगा, तो वो उठ खड़े हुये, और अपना अंतिम दाँव फेंका.
" ठीक है राजन, मुझे कुछ नहीं चाहिए. आप मुझे सिंहासन सौंप दें, फिर मैं अपने राज्य को आपके अधीन घोषित कर दूंगा, यानि हमारा राज्य आपके राज्य का ही हिस्सा हुआ समझिये, केवल नाममात्र का राजा बने रहने में मुझे कोई आपत्ति नहीं !!! "
हर्षपाल कुछ नहीं बोलें, पीछे मुड़कर टहलते हुये कुछ सोचने लगें, कुछ देर बाद वापस देववर्मन के पास आएं, और अपना चेहरा देववर्मन के चेहरे के एकदम समीप लेजाकर उनकी आँखों में आँखे डालकर अपनी आँखे बड़ी बड़ी करते हुये बोलें.
" आपका परिवार हमें पहले ही अत्यंत अपमानित कर चुका है, धोखा किया है हमारे साथ, ऐसी परिस्थिति में आपके परिवार के किसी भी व्यक्ति पर भरोसा करना अब मेरे प्रति संभव नहीं रहा. फिर भी हमें आपकी बात पर भरोसा करने का मन कर रहा है . परन्तु एक बात स्मरण रखिये राजकुमार, अगर आपने हमारे साथ किसी प्रकार का छल कपट करने का दुस्साहस किया, तो आपका राज्य भले ही हम ना जीत पाएं, आपके प्राण लेने से हमें स्वयं यमराज भी नहीं रोक पाएंगे !!! ".
हर्षपाल कि कठोर धमकी से एक क्षण के लिए देववर्मन भी सहम से गएँ, फिर हल्का सा मुस्कुरायें, और बोलें.
" मेरा वध करने का विकल्प आपके पास हमेशा रहेगा राजन ! ".
" हम्म्म्म... मेरी भी एक शर्त है राजकुमार देववर्मन... ".
" अवश्य राजन... ".
" अवंतिका और विजयवर्मन का वध मैं स्वयं अपने हाथों से करूँगा !!! ".
" अगर वो दोनों मेरे हाथों मृत्यु को प्राप्त होने से बच गएँ, तो अवश्य ही राजन !!! ". देववर्मन ने दाँत पीसते हुये कहा.
" और मैंने सुना है कि आपकी पत्नि चित्रांगदा भी रूप सौंदर्य में कुछ कम नहीं !!! ". हर्षपाल ने घृणित तरीके से मुस्कुराते हुये कहा.
देववर्मन ने अपनी आँखे नीचे कर ली, एक क्षण को रुकें, कुछ सोचा, और फिर आँखे ऊपर करके मुस्कुराते हुये उत्तर दिया.
" मेरी बहन अवंतिका जैसी सुंदर तो नहीं, जिसमें आपकी पत्नि बनने के गुण हों, परन्तु युद्ध के उपरांत अगर आप उसे अपनी दासी भी बना लें तो अवश्य ही ये उसका सौभाग्य होगा, जिसके लिए वो आजीवन आपकी ऋणी रहेगी ! ".
हर्षपाल ने मुस्कुराकर देववर्मन को दोनों कंधो से पकड़ कर मित्रता का अस्वासन दिया.
" परन्तु आपको एक दो दिन के अंदर ही आक्रमण करना होगा, अवंतिका और विजयवर्मन राज्य छोड़कर भागने कि तैयारी में हैं ! ". देववर्मन ने कहा.
" हमारी सेना सर्वदा तैयार रहती है राजकुमार... बस आप अपनी सहायता वाली बात पर अडिग रहें ! ".
" जी राजन... ". देववर्मन ने कहा, फिर थोड़ा मुस्कुराकर विषय बदलते हुये बोलें. " अब तनिक मदिरा मंगवाईये राजन, आपके भय से मेरा गला सूख गया है ! ".
इतना सुनते ही हर्षपाल ज़ोर से अट्टहास करते हुये हँस पड़ें, और द्वार की ओर देखकर ताली बजाई, तो एक दासी तुरंत कक्ष के अंदर आई, और सिर झुकाकर खड़ी हो गई.
" मूर्ख स्त्री... देख क्या रही हो, मदिरा लाओ... मदिरा !!! ". हर्षपाल ज़ोर से चिल्लायें.
दासी के बाहर जाते ही देववर्मन ने हर्षपाल से कहा.
" वैसे आपके राजमहल में और भी सुंदर नर्तकीयां हैं क्या ??? ".
हर्षपाल एक बार पुनः ठहाका मारकर हँस पड़ें, और बोलें.
" अवश्य राजकुमार...अवश्य, अभी उपस्थित करता हूँ !!! ".