Antarvasna kahani चुदाई का वीज़ा - SexBaba
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Antarvasna kahani चुदाई का वीज़ा

hotaks444

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चुदाई का वीज़ा

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राजशर्मा आपके लिए एक और छोटी सी कहानी पोस्ट कर रहा हूँ जो आपको ज़रूर पसंद आएगी

मेरा नाम नबीला है और में 24 साला एक शादी शुदा औरत हूँ. 

हम लोग कराची के रहने वाले हैं.

में अपनी तारीफ़ तो नही कर सकती मगर चूँकि हमारे मज़हब में गोरे रंग को ही खूबसूरती का मायर समझा जाता है . 

इस लिए मेरा रंग गोरा होने की वजह से देखने वाले कहते हैं कि में एक खूबसूरत लड़की हूँ.

खास कर मेरी आँखों, उभरे हुए मम्मों और हिप्स ने मुझे ऐसा बना दिया था. मेरी कॉलेज की सहेलियाँ मेरा शुमार एक खूबसूरत और सेक्सी लड़कियों में करती थीं.

मुझे कॉलेज से फारिग हुए अभी चन्द महीने ही हुए थे. कि मेरे घर वालो ने मेरी शादी जमाल नामी एक शख्स से कर दी गई.

मेरे शोहर जमील हमारी कोई रिश्तेदारी में से नहीं हैं. बस एक शादी में उन की बहन और बहनोई ने मुझे देख लिया था और में उन को पसंद आ गई. 

हमारे मुल्क के अक्सर लोग बाहर रहने वाले पाकिस्तानियों से बिला वजह ही मुतसर रहते हैं. 

चूंकि मेरे शोहर अमेरिका में रहते हैं . इस लिए ज्यूँ ही उन के घर वाले उन का रिश्ता ले कर हमारे घर आए. तो मेरे घर वालों ने कुछ ज़्यादा छान बीन नही की और फॉरन ही हाँ कर दी.

जमाल एक अच्छे इंसान और आम से लड़के हैं. वो मुझे बेहाद पसंद करते हैं और में भी उन से प्यार करती हूँ. 

मेरे सुसराल वाले भी बहुत ही अच्छे लोग हैं. खास तौर पर मेरे सास और सुसर तो बहुत ही शफ़ीक़ और मुहब्बत करने वाले हैं और मेरा बहुत ख़याल रखते हैं.

मेरी सास और सुसर ने अपनी सग़ी बेटी और मुझ में कभी कोई फ़र्क़ नहीं होने दिया. 

मेरे सुसराल वालों का नर्सरी के इलाक़े में बहुत बड़ा बंगला है. जिस में में,सास सुसर के अलावा उन की बेटी और उस का शोहर घर दामाद बन कर उन के साथ ही रिहाइयश पज़ीर( रहते है ) हैं.

मुझे शादी के बाद अपने सुसराल में और हर तरह का आराम ओ सुकून था.

लेकिन परेशानी अगर थी तो बस ये कि मेरे शोहर शादी के बाद कुछ महीने मेरे साथ गुज़ार कर वापिस चले गये.

अब मेरी शादी को दो साल बीत चुके थे .लेकिन अभी तक मेरे अपने शोहर के पास अमेरिका जाने के कोई भी आसार नज़र नहीं आ रहे थे .

इस दौरान जमाल हर साल एक महीने के लिये आ जाते हैं. मगर साल के बाकी महीने उन के बगैर दिल नही लगता है.

एक दिन जब अपने शोहर से दूरी मेरे लिए नकाबिले बर्दाश्त हो गई. तो मैने फोन पर जमाल सेआमेरिका आने के लिए अपना विज़िट वीसा अप्लाइ करने का मशवरा किया.

जमाल ने मुझ मना किया कि में अभी विज़िट वीसा अप्लाइ ना करूँ.और वो जल्द ही मेरे ग्रीन कार्ड के लिए पेपर्स इम्मिग्रेशन में जमा करवा देंगे.

लेकेन उन के समझाने के बावजूद मैने इसरार किया कि ट्राइ करने में क्या हर्ज है.

आख़िर कार मेरी ज़िद के आगे हार मानते हुए जमाल ने मुझे विज़िट वीसा अप्लाइ करने की इजाज़त दे दी.

वीसा अप्लाइ करने के एक महीने बाद मुझे अमेरिकन एंबसी इस्लामाबाद से इंटरव्यू की कॉल आ गई.

मैने अपने सुसर (जिन को में एहतराम से अब्बा कहती हूँ) से बात कर के इस्लामाबाद जाने का प्रोग्राम बना लिया

प्रोग्राम के मुताबिक मेरे सुसर और मैने इंटरव्यू वाली सुबह की पहली फ्लाइट से इस्लामाबाद जाना और फिर उसी दिन शाम की फ्लाइट से वापिस कराची चले आना था.

फिर अपने प्रोग्राम के मुताबिक मेरे इंटरव्यू वाले दिन में और अब्बा दोनो बाइ एर इस्लामब्द पहुँच गये.

चूँकि हमारा इरादा तो उसी शाम ही को वापिस कराची आने का था. इस लिए हम ने अपने साथ किसी किसम का कोई समान या बॅग लाना मुनासिब नही समझा.

हम एरपोर्ट से टॅक्सी ले कर सीधे एम्बैसी आए और में इंटरव्यू के लिए एंबसी के अंदर चली गई. 

जब कि अब्बा बाहर बैठ कर मेरे वापिस आने का इंतिज़ार करने लगे.

मुझे बहुत ही उम्मीद थी कि आज ज़रूर मुझे विज़िट वीसा मिल जाएगा. और में जल्द ही हवाओं में उड़ कर अपने शोहर की बाहों में पहुँच जाऊंगी.

मगर सोई किस्मत कि इंटरव्यू के बाद वीसा ऑफीसर ने मुझे वीसा देने से इनकार कर दिया.

वीसा ऑफीसर के इनकार ने मेरे दिल की आरज़ू को तहस नहस कर दिया. और में रोने लगी कि एक उम्मीद थी वो भी ख़तम हो गई थी.

मगर अब क्या हो सकता था.इस लिए में अफ्सुर्दा अंदाज़ में बोझिल कदमो से चलती हुई एम्बैसी के गेट से बाहर निकल आई.

एंबसी से बाहर निकली तो एक नई मुसीबत मेरी मुन्तिजर थी. 

सुबह जब इंटरव्यू के लिए में एम्बैसी में एंटर हुई थी. उस वक़्त तक तो मोसम ठीक था. 

मगर जब बाहर निकली तो देखा कि बाहर तो गजब की बारिश हो रही है. 

एम्बैसी के सामने काफ़ी लॅडीस और जेंट्स’ खड़े भीग रहे थे. 
 
शायद उन के लोग अभी अंदर ही थे. इस लिए उन के इंतिज़ार में वो लोग बाहर बारिश में ही खड़े होने पर मजबूर थे.उन के साथ साथ अब्बा भी बुरी तरह से भीगे हुए थे.

में तो वीसा ना मिलने की वजह से पहले ही परेशान थी.और अब एक नई मुसीबत बारिश की शकल में मेरी मुन्तिजर थी. 

अब्बा ने मुझ से कहा कि चलो एर पोर्ट चलते हैं वहीं बैठ कर शाम की फ्लाइट का इंतेज़ार करेंगे.

में बाहर आई तो मूसला धार बारिश की वजह से में भी फॉरन ही खूब भीग गई.

मैने गर्मी की वजह से वाइट कलर के लवन के कपड़े पहने हुए थे. 

और “सोने पर सोहगा” कि में आज सुबह जल्दी जल्दी में सफेद कपड़ों के नीचे काले रंग का ब्रेजियर पहन के आई थी.

इस लिए ज्यूँ ही बारिश के पानी ने बारीक कपड़ों में मलबोस मेरे जिस्म को भिगोया. तो ना सिर्फ़ मेरे जिस्म का अंग अंग नीम नुमाया होने लगा. बल्कि सफेद कपड़ों के नीचे मेरे काले रंग के ब्रेजियर में क़ैद मेरे बड़े बड़े मम्मे और भी उभर कर नुमाया होने लगे.

में बारिश में भीगते हुए अपने इर्द गिर्द खड़े मर्दों की गरम निगाहों को अपने उघड़े हुए जिस्म के आर पार होता हुआ महसूस कर रही थी.

अब्बा भी शायद लोगों की मुझ पर पड़ती हुई बे बाक निगाहों को समझ रहे थे. 

इसी लिए उन्होने मुझे थोड़ा गुस्से में कहा “नबीला बेटी में इसी लिए तुम को कहता हूँ कह घर से बाहर हमेशा चादर ले कर निकला करो मगर तुम नही मानती”.

अपने सुसर की बात सुन कर मुझे और शर्मिंदगी हुई .मगर अब हो भी क्या सकता था. 

इस लिए बे बसी की हालत में अपनी निगाहें ज़मीन पर गाढ़े में चुप चाप खड़ी बारिश में भीगती रही.

एंबसी के सामने दो तीन टेक्शी खड़ी तो थीं. मगर उन सब ने उस वक़्त एरपोर्ट जाने से इनकार कर दिया.

इस की वजह ये थी कि उन को करीब के पेसेन्जर मिल रहे थे. इस लिए शायद वो कम वक़्त में ज़्यादा पैसे बनाने को तरजीब दे रहे थे.

जब अब्बा ने देखा कि इस वक़्त कोई भी टेक्शी वाला हम को एरपोर्ट ले जाने को तैयार नही. 

तो उन्हो ने मुझे कहा कि हम करीब के एक होटेल में चले चलते हैं. और फिर शाम को वहाँ से ही एर पोर्ट चले जाएँगे.

में तो पहले ही अपने नीम दिखते जिस्म पर पड़ने वाली लोगो की भूकी नज़रों से तंग थी. इस लिए मैने फॉरन हां कर दी और यूँ हम लोग टेक्शी में बैठ कर एक करीबी होटेल में चले आए.

कमरे में पहुँच कर में भीगी ही हालत में कमरे के सोफा पर बैठ गई. जब कि अब्बा ने एरपोर्ट फ्लाइट की इन्फर्मेशन के लिए फोन मिला लिया.

फोन की लाइन मिलने पर एरपोर्ट इंक्वाइरी से मालूम हुआ कि चान्स पर होने की वजह से शाम की फ्लाइट पर हमारी सीट्स कन्फर्म नही हैं. 

इस पर अब्बा ने कहा कि वो बुकिंग ऑफीस जा कर सीट कन्फर्म करवा लेते हैं और वापिसी पर हम दोनो के लिए बाज़ार से एक एक जोड़ा कपड़ों का भी लेते आएँगे. 

ये कह कर अब्बा ने रूम सर्विस मेरे लिए कुछ कहने का ऑर्डर दिया और फिर वो पीआईए ऑफीस जाने के लिए कमरे से निकल गये.

अब्बा के जाने के थोड़ी देर बाद होटेल का वेटर मेरे लिए समोसे और चाय वग़ैरह ले आया.

में अभी सोमोसे खाने में मसरूफ़ थी, कि उसी वक़्त जमाल के मोबाइल पर फोन आगया और मेने उन को सारी तफ़सील बता दी कि वीसा रिजेक्ट हो गया है. जमाल ने मुझे तसल्ली दी तो मेरा दिल थोड़ा हलक हो गया.

जमाल से बात ख़तम होने के बाद में सोचने लगी कि में कब तक इन भीगे हुए कपड़ों में ही लिपटी बैठी रहूं गी.

फिर मैने सोचा कि अभी अभी तो अब्बा गये हैं उन को लोटने में अभी देर है तो क्यों ना में अपने कपड़े उतार कर उन को अच्छी तरह से सूखा लूँ. 

ताकि अगर अब्बा के लाए हुए कपड़े मुझे पूरे ना आए तो में अपने इन्ही कपड़ों को दुबारा पहन सकूँगी.
 
ये सोच कर मैने अपने कपड़े उतार दिए और उन्हे खूब अच्छी तरह निचोड़ कर सोफा पर फेला दिया ताकि खुसक हो जाएँ. 

में बेड पर ब्लंकेट ओढ़ कर नंगी ही लेट गई .मेरा इरादा था कि अब्बा के वापिस आने से पहले पहले में दुबारा अपने कपड़े पहन लूँगी.

एक तो सुबह सवेरे जल्दी उठने की वजह, उपर से वीसा ना मिलने की मायूसी और फिर ठंडे जिस्म को कंबल की गर्मी ने मेरे जिस्म को वो राहत पहुँचाई कि मुझ पर एक उनीदी सी छाने लगी.

पता नही में कितनी देर इसी तरह सोती रही. फिर अचानक मेरी आँख खुली तो मुझे महसूस हुआ कि में बेड की एक साइड पर करवट लिए सो रही थी.

अभी मेरी आँखे पूरी तरह खुली भी नही थीं कि मुझे ये अहसास हुआ कि में बेड पर अकेली नही बल्कि कोई और भी मेरे जिस्म के पीछे लेटा हुआ है. और वो जो कोई भी है उस का एक हाथ मेरे नंगे मम्मो को सहला रहा था. 

एक लम्हे के लिए तो मुझे कुछ समझ में नही आया कि ये क्या हो रहा है. और फिर में जैसे ही नींद के खुमार से बाहर आई तो अपने मम्मो पर फिसलते हुए किसी के हाथ को महसूस कर के मेरी तो जान ही निकल गई. 

में समझी कि शायड ये आदमी मेरे कमरे में समोसे और चाये लाने वाला वेटर हो सकता है. 

क्यों कि मैने नोट किया था कि जब वो मुझे खाने देने दरवाज़े पर आया था. तो मुझे ट्रे पकड़ाते वक़्त वो ब गौर मेरे जिस्म का जायज़ा ले रहा था.

में एक दम चीखते हुए उठ बैठी और अपने पीछे लेटे हुए शक्स को बेड से धकेलने लगी.

धक्का देते वक़्त ज्यूँ ही मेरी नज़र उस शक्स के चेहरे पर पड़ी तो मेरा रंग फक हो गया .

क्यों कि वो शक्स होटेल का वेटर नही बल्कि मेरे अपने सुसर (अब्बा जी) मेरे साथ एक बेड पर पूरी तरह नंगे लेटे हुए थे.

में अब्बा को अपने साथ इस हालत में देख कर दम ब खुद हो गई.

मुझे यकीन नही हो रहा था. कि अब्बा अपनी उस बहू के साथ जिस को वो अपनी बेटी कहते नही थकते थे. वो उस के साथ आज इस तरह बिल्कुल नंगे लेटे हुए थे और उन के चेहरे पर निदमत ( शर्म ) नाम की कोई चीज़ भी नही थी.

में अपना जिस्म ब्लंकेट से छुपाने लगी तो ज़लील अब्बा ने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे ज़बरदस्ती अपने साथ लिटाने लगे. 

“अब्बा में आप की बेटी हूँ, आप क्यों मेरे साथ ये ज़ुल्म कर रहे हैं” कहते हुए मैने अपने आप को अपने सुसर की क़ैद से छुड़ाने की कॉसिश की.

लेकेन अब्बा ने मेरी बात को अन सुनी करते हुए मुझे अपनी तरफ खींचा और मेरे जिस्म को अपने बाजुओं में भर लिया.

मैने कहा कह “हट जाइए वरना में शोर मचा दूँगी, आप को शरम आनी चाहिए” 

लेकिन अब्बा को तो जैसे किसी बात का असर नही हो रहा था. 

उन्होने मुझे बेड पर सीधा लिटाया और खुद फॉरन मेरे जिस्म के उपर आ गये. 

जब मैने देखा कि अब्बा पर मेरी किसी बात का असर नही हो रहा है.

तो मैने ज़ोर ज़ोर से चीखना शुरू कर दिया “बचाओ बचाओ”.

लेकिन लगता था कि होटेल का कमरा एर कंडीशन होने के साथ साथ साउंड प्रूफ और चीख प्रूफ भी था. शायद इसी लिए मेरी चीखे कमरे से बाहर किसी और को सुनाई ना दीं.

अब में नगी बिस्तर पर चित लेटी हुई थी. जब कि अब्बा मेरी टाँगों के बीच में बैठे हुए थे.

उन्होने अब मेरी दोनो टाँगों को अपने दोनो हाथों से फैला दिया.जिस की वजह से मेरी फुद्दी पहली बार मेरे अपने सुसर के सामने बिल्कुल खुल गई.

अपनी जवान बहू की सॉफ शफ़ाफ़ और फूली हुई चूत को देख कर अब्बा की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई.
 
ज़ाहिर सी बात है एक 60 साला बूढ़े आदमी को जब एक 24 साला जवान चूत नज़र आ जाए तो उस की तो जैसे लॉटेरी ही निकल आती है.

अब्बा भी मेरी जवान गरम चूत को देख कर मचलने लगे. 

60 साल की उमर के होने का बावजूद उन का लंड मेरी चूत और मुझे देख कर तन गया था.

और अब वो मेरे अंदर घुसने के लिए बे करार हो कर उछल कूद में मसरूफ़ था.

अब्बा मेरे उपर लेट गये और उन का लंड मेरी चूत की दीवारों के उपर रगड़ खाने लगा.

मैने एक बार फिर अपने दोनों हाथों से अब्बा के सीने पर रख कर उन को अपने उपर से धकेलने की कॉसिश की.मगर एक मर्द होने के नाते अब्बा में मुझ से ज़्यादा ताक़त थी.

और अब्बा ने अपने लंड को मेरी चूत के उपर टिका कर एक धक्का मारा. तो उन का बूढ़ा लंड मेरी जवान चूत की दीवारों को चीरता हुआ मेरी फुद्दी में दाखिल होने में कामयाब हो गया.. 

अपने सुसर के लंड को अपनी चूत के अंदर जाता हुआ महसूस कर के मेरी जान ही निकल गई. और बे सकता मेरे मुँह से अपने सुसर के लिए गालियाँ निकाल ने लगीं.

“जॅलील, कुत्ते,कमिने इंसान हट जाओ मेरे उपर से,में तुम्हारी असलियत सब को बताऊंगी चाहे कुछ भी हो जाय” में चीख रही थी.

लेकिन अफ्रीन है बेगैरती और ज़लील अब्बा पर कि वो कुछ ना बोले बस चुप चाप अपना लंड मेरी चूत के अंदर बाहर करते रहे. 

नीचे से अपना लंड मेरी फुद्दी में डालने के बाद उपर से अब्बा ने अपना मुँह आगे बढ़ा कर अपने बूढ़े गलीज़ होंठो को मेरे नादां-ओ-मुलायम होंठों पर रख कर मुझ किस करने की कॉसिश की.

ज्यूँही अब्बा अपना मुँह मेरे मुँह के करीब लाए तो मैने उन को किस देने की बजाए उन के मूँह पर थूक दिया और कहा कि अपनी बेटियों से भी यही करता है कुत्ते.

में अब्बा को गालियाँ देती रही और रोती रही.मगर ऐसा लगता था कि अब्बा तो अंधे और बहरे बन कर बेज़्जती प्रूफ हो चुके थे. उन पर मेरी किसी बी बात और गाली का असर नही हो रहा था.

अब्बा ने जब देखा कि में उन को अपने होंठो से किस नही दे रही. तो उन्हो ने मेरे गाल गर्दन और चुचियों को अपने नापाक होंठो से चूमना चाटना शुरू कर दिया.

वो मेरे मम्मो को अपने मनहूस होंठों से चाट रहे थे और में चुप चाप आँसू बहा रही थी.

साथ ही साथ उन का लंड मेरी फुद्दी में बिना रोक टोक अंदर बाहर होने में मसरूफ़ था. 

हालाकि शादी के बाद में अपने शोहर से चुदवाते वक़्त बहुत एंजाय करती और मस्ती और जोश में मेरे मुँह से निकलने वाली सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूँज कर मेरे शोहर को मजीद जोश में लाती थीं.

मगर अब्बा से सख़्त नफ़रत और उन पर बे पनाह गुस्सा आने की वजह से लगता था कि मेरी फुद्दी वाला हिस्सा जैसे “सुन्न” हो गया था. 

इसी लिए में उस वक़्त अपनी चूत और निचले धड में कुछ भी महसूस करने से कसीर हो चुकी थी. 

अब्बा काफ़ी देर तक मुझे चोदते रहे और फिर वो ज़लील इंसान मेरे अंदर ही डिसचार्ज हो गया.

अपने लंड का पानी मेरी चूत में गिराने के बाद अब्बा ने अपने कपड़े समेटे और वॉश रूम में चले गये. 

जब कि में ब्लंकेट में लिपटी हुई हिचकियाँ लेते हुए रोती रही.
 
थोड़ी देर बाद वो वॉश रूम से बाहर आए तो उन्होंने कपड़े पहने हुए थे. 

मुझे अभी तक कंबल में लेटे देखा तो बोले “बेटी उठो कपड़े बदल लो फ्लाइट सीट कन्फर्म होगई है हमे जल्दी एरपोर्ट चलना है. 

बेटी कहने पर मैने उन को नफ़रत से देखा और गुस्से में चिल्लाते हुए बोली” खबरदार अगर मुझे अब बेटी कहा बेगैरत इंसान”

अब्बा ने मेरे गुस्से का कोई असर नही लिया बल्कि वो मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकल गये.

उन के जाने के बाद में ब्लंकेट लपेट कर उठ गई और शवर में जा कर अब्बा के लाए हुए दूसरे कपड़े बदल लिये.

जहाज़ में अब्बा मेरे साथ ही बैठे हुए थे. और उन की बे शर्मी की हद ये थी कि सीट पर ऐसे पुर सकून सोते हुए खर्राटे ले रहे थे जैसे कुछ हुआ ही नही. 

जब कि मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में एक तूफान बर्पा हुआ था. कि आज में अपने उस सुसर के हाथों ही बे आबरू हो चुकी थी. जिस ससुर को मैने दिल की गहराइयों से अपने बाप का मुकाम दिया था. 

जब में कराची वापिस अपने ससुराल पहुँची तो अपनी सास को देखते ही में अपनी सास को बताना तो चाहती थी. कि उन के शोहर ने किस तरह होटेल के कमरे में मेरी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दीं हैं.

मगर चाहने के बावजूद मेरी ज़ुबान ने मेरा साथ देने से इनकार कर दिया.और में अपना मुँह खोलने की बजाए उन से से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी .

अब्बा ने मुझे रोते देखा तो अम्मी से कहने लगे कि हमारी बेटी को वीसा ना मिलने का बहुत दुख हे. इस लिए ये सारे रास्ते रोती ही रही हे.

जिस पर मैरी सास मुझे तसल्ली देने लगीं और अब्बा अपने नवासों नवासी से खेलने में मसरूफ़ हो गये. 

अब्बा पूरे खानदान में एक शरीफ आदमी मशहूर थे और मुझ समेत अपनी बेटी को चादर ओढ़ने और बारीक कपड़े ना पहनने का हुकुम देते थे.

लेकिन में नही जानती थी कि नज़ाने कब से वो अपनी ही बहू की चादर उतरने का मंसूबा बनाए बैठे थे.

मेने फ़ैसला कर लिया था कि कुछ भी हो जमाल को ज़रूर बताउन्गी और मुझे तो अब अपनी सुसराल के हर मर्द से नफ़रत हो गई थी.

रात को जमाल का फ़ोन आया तो में टूट टूट कर रोने लगी और कहा कि आप के अब्बा सही आदमी नहीं हैं. 

मेने सोचा अगर जमाल को एक दम सारी बात बताउन्गी तो उन पर क़यामत टूट पड़ेगी. 

इस लिए में अपने शोहर से खुल कर बात करने की बजाए उन को इशारे में अपनी बात समझाना चाहती थी.

मेरी बात सुन कर जमाल हंसते हुए कहने लगे कि क्या कह दिया मेरे अब्बा ने. तो मेने फिर भी पूरी बात तफ़सील से बताने की बजाय कहा कि वो मुझे ग़लत नज़रों से देखते हैं. 

मेरा इतना कहने की देर थी कि जमाल चीख उठे और मुझ पर चिल्लाते हुए बोले “ मेरे खानदान के सब लोग सही कहते थे कि खानदान से बाहर शादी ना करो,आज तुम मेरे बाप की नज़रों पर इल्ज़ाम लगा रही हो कल ये भी कह देना कि वो तुमसे सेक्स करना चाहते हैं”.

अपने शोहर को इस तरह गुस्से में आता देख कर मैने उन को अपनी पूरी कहानी बयान करने की एक और कॉसिश की तो मेरी बात स्टार्ट होते ही जमाल ने दुबारा फोन पर गुस्से में चिल्लाते हुए मुझे अपनी ज़ुबान बंद करने का कहा “आज तो ये बात कह दी है अगर फिर कभी ऐसी ज़लील बात की तो में अभी तलाक़ देने को तैयार हूँ. कल मेरी बहनों और बहनोइयों पर भी इल्ज़ाम दे देना” और धक्के में फ़ोन रख दिया.

मुझे जमाल की बातों पर ज़ररा बराबर भी अफ़सोस ना हुआ क्यों कि अपनी इज़्ज़त अपने ही सुसर के हाथों लूटने के बाद जमाल की बातों की अब क्या हैसियत थी. 

में समझ गई कि एक बेटा होने के नाते जमाल अपने जाहिरे शरीफ नज़र आने वाले अब्बा के बारे में मेरी किसी बात का यकीन नही करेंगी.

इस लिए अपना बसा बसाया घर उघड़ने की बजाए इस वाकये को एक भयानक ख्वाब समझ कर भूल जाना ही मेरे लिए बहतर बात है.

इस लिए में खामोश हो गई और फिर जमाल को फ़ोन किया और माफी माँग ने लगी.

जमाल ने मेरी बात को एक ग़लती समझ कर इस शर्त पर मुझे माफ़ किया कि में दुबारा कभी उन के अब्बा पर किसी किस्म के इल्ज़ाम तराशि नही करूँगी. 

हाला कि अगर मेरा शोहर ठंडे दिल से मेरी पूरी बात सुन लेता.तो शायद उन को ये अंदाज़ा हो जाता कि जिस बात को वो इल्ज़ाम तराशि कह रहे हैं वो असल में हक़ीकत है. 

अपने शोहर की तरफ से इस तरह का रिक्षन आने के बाद मैने अपने दिल में पक्का फ़ैसला कर लिया था. कह में इस तरह अपनी ज़िंदगी नहीं गुज़ारुँगी. 

लेकिन एक मसलिहत के तहत थोड़ी मुद्दत के लिए मैने बिल्कुल खामोशी इक्तियार कर ली.

इस की वजह ये थी. कि उन्ही दिनो मेरा भाई और मेरी अम्मी हमारे सब से बड़े भाई के पास दुबई गये हुए थे.

इस लिए में अब उन की वापसी की मुन्तिजर थी. कि ज्यूँ ही मेरा भाई और अम्मी पाकिस्तान वापिस आएँगे तो में अपना सुसराल छोड़ कर अपने मेके में अपनी अम्मी के पास चली जाउन्गी.

इसी दौरान इस्लामाबाद से वापिस के कुछ दिनो तक तो अब्बा मुझ से थोड़े दूर दूर ही रहे.

उस की वजह शायद ये हो सकती थी. कि वो फोन पर अपने बेटे जमाल की बात चीत से इस बात का अंदाज़ा लगा रहे हों गये. कि मैने अपने शोहर को उन की हरकत के मुतलक बता दिया है कि नही.

फिर जब अब्बा को अंदाज़ा हो गया कि मैने उन के बेटे जमाल से उस वाकिये के बारे में कोई बात नही की. तो उस का हॉंसला और बुलंद हो गया. 

अब अब्बा का जब दिल चाहता वो रात को चोरी छुपे मेरे कमरे में घुस आते और अपनी गंदी हवस पूरी कर लेते और में एक बेजान लाश की तरह कुछ भी नही कर सकती.

मेरी नींद और उस का शोहर घर के उपर वाली मंज़िल में रिहाइश पज़ीर थे. 

इस लिए वो लोग रात को एक दफ़ा उपर की मंज़िल पर जाने के बाद सुबह तक दुबारा नीचे नीचे नही आते थे.

जब कि मेरी सास अपने इलाज के लिए जो दवाई इस्तेमाल कर रही थीं. उनमे नींद की दवा शामिल होती थी.
 
इस लिए जब मेरी सास रात को अपने कमरे में जातीं .तो वो बिस्तर पर लेटते ही नीद की आगोश में चली जातीं और फिर अगली सुबह ही उन की आँख खुलती थी.

जिस वजह से रात की तन्हाई में अबाबा मेरे कमरे में बिना किसी ख़ौफ़ के चले आते और मुझे चोद कर अपने लंड की तसल्ली कर लेते.

वो मुझे चोदते वक़्त अक्सर कमरे की लाइट ऑन नही करते थे. 

मुझे अब्बा से इस क़दर नफ़रत थी. कि जब भी उस ने मुझे चोदा तो चुदाई के दौरान में जज़्बात से बिल्कुल अलग रहती सिर्फ़ ये ही महसूस करती कि कोई चीज़ मेरे जिस्म के अंदर बाहर हो रही है.

में बस एक बे जान बुत बन कर उस के धक्कों को अपनी चूत के उपर बर्दाश्त करती और ये ही दुआ करती कि ये गलीज़ इंसान जल्द आज़ जल्द अपने लंड का पानी निकाले और मेरी जान छोड़े.

अब्बा का मुझ से अपना गंदा खेल खेलते दो महीने हो चले थे. कि एक रात को जब वो मुझ चोदने लगे. तो अपनी चूत के अंदर जाता हुआ अब्बा का लंड मुझे पहले की निसबत काफ़ी सख़्त महसूस हुआ.

फिर जब अब्बा ने मेरी छूट में लंड डाल कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदना शुरू किया. तो मुझे उन के अंदाज़े चुदाई और धक्कों की रफ़्तार में पहले से काफ़ी तेज़ी महसूस हुई.

ना जाने मेरे दिल के किसी कोने से ये आवाज़ बुलंद हुई कि लगता है कि आज मेरे उपर चढ़ा हुआ शख्स अब्बा नही.

ये ख़याल आते ही चुदाई के दौरान मैने हाथ बढ़ा कर बेड के पास अलग टेबल लेम्प को ऑन किया तो मेरे उपर चढ़े आदमी का चेहरा देख कर ख़ौफ़ और शरम के मारे मेरा रंग फक्क हो गया.

में: खालिद भाई अप्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प?.

मेरे अंदर अपना लंड डाले और मुझे जोश से चोदने में मसरूफ़ वो आदमी अब्बा नही बल्कि खालिद था, अब्बा का घर दामाद.

में चीख उठी कि “ खालिद भाई ये में हूँ, आप क्या कर रहे हैं”.

तो खालिद बैशर्मी से हंसा और कहने लगा. कि अब्बा कर सकते तो क्या मुझ में काँटे लगे हुए हैं.तुम शोर करोगी तो सब जाग जाएँगे और फिर में भी सब को बता दूँगा कि तुम ने खुद मुझे अपने कमरे में बुलाया था. 

मुझे अंदाज़ा नही था कि खालिद ये राज़ जान चुका था. कि अब्बा मुझे अपनी हवस का निशाना बना रहे हैं.

सब घर वालो और खानदान वालों की नज़र में खालिद भी एक निहायत ही शरीफ और सच्चा शख्स मशहूर था.

इस लिए मुझे पता था कि अगर में शोर करूँ गी. तो वाकई ही कोई भी मेरी इस बात को कबूल नही करे गा कि खालिद खुद मेरे कमरे में आया है.

बल्कि इस के बजाय सब खालिद की कही हुई बात का यकीन करेंगे कि मैने ही उसे अपने पास अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिए बुलाया हो गा.

यूँ खालिद भाई की धमकी काम कर गई और में चुप चाप लेटी उन से चुदती रही.

कमरे में जलते बल्ब की वजह से मेरा पूरा कमरा रोशन हो गया था.

और इस रोशनी में खालिद अपना लंड बहुत ही आराम से मेरी फुद्दी के अंदर बाहर करने लगा.

खालिद ने मेरी टाँगें उठा कर अपने कंधे पर रखीं.उस के झटके बहुत ही आहिस्ता ऑर गहरे थे.

खालिद मुझे चोदते चोदते आगे बढ़ा और मेरे होंठो पर अपने मोटे होंठ रख
दिए. 

उस की ज़ुबान मेरे होंठो को एक दूसरे से अलग कर मेरे मुँह मे समा गयी. 

वो मेरे होंठों को चूस्ते चूस्ते अपनी ज़ुबान भी मेरे मुँह के अंदर डालने में कामयाब हो गया. 

उस की ज़ुबान मेरे मुँह का हर कोने में ऐसे फेरने लगी. जैसे वो शालीमार बाघ की सैर करने निकली हो.

साथ ही साथ खालिद एक हाथ से मेरे बदन को अपने सीने पर भींचे हुए था. और दूसरे हाथ को वो मेरी पीठ पर फेर रहा था. 

इसी तरह करते हुए उस ने अचानक मेरे चुतड़ों को पकड़ कर अपना लंड इतने ज़ोर से मेरी फुद्दी में पेला कि मेरे मुँह से एक चीख निकल गई “ हाआआआआआईयइ”.

“छोड़ो मुझे खालिद भाई” मैने अपने आप को खालिद के चुंगल से छुड़ाने की एक ना काम कोशिस की.

"तू मुझे छोड़ने का कह रही है, जब कि तेरी ये मस्त और तंग चूत को चोदने के बाद में तो सारी ज़िंदगी तुजाहे अपनी रंडी बना कर रहने का सोच रहा हूँ" कहते हुए खालिद भाई ने मेरी एक चूंची को अपने मुँह मे लेकर चूसना शुरू कर दिया. 
 
"तू मुझे छोड़ने का कह रही है, जब कि तेरी ये मस्त और तंग चूत को चोदने के बाद में तो सारी ज़िंदगी तुजाहे अपनी रंडी बना कर रहने का सोच रहा हूँ" कहते हुए खालिद भाई ने मेरी एक चूंची को अपने मुँह मे लेकर चूसना शुरू कर दिया. 

मेरे मम्मो को चूसने के साथ साथ नीचे से खालिद का लंड अपनी पूरी रफ़्तार के साथ मेरी चूत की चुदाई में मसरूफ़ था. 

फिर मेरी चुदाई करते करते खालिद एक दम रुका और उस ने अपने लंड को मेरी फुद्दी से पूरा बाहर निकाला और मेरे मुँह के सामने ले कर आया. 

खालिद के लंड पर मेरी चूत के सफेद पानी के कतरे लगे सॉफ नज़र आ रहे थे. 

खालिद ने अपने लंड को मेरे होंठो पर फेरते हुए कहा. " नबीला खोल अपना मुँह और मेरे लंड को चाट कर सॉफ कर." 

मेने नफ़रत से आँखें बंद कर ली.

मगर वो मानने वाला नही था. 

जब खालिद ने देखा कि में अपना मुँह नही खोल रही. तो उस ने मेरे मुँह पर एक ज़ोर दार थप्पड़ रसीद किया.

दर्द से “हाईईईईईईईईईईईईई” चिल्लाते हुए ज्यूँ ही मैने बे इकतियार अपना मुँह थोड़ा सा खोला.तो खालिद ने अपने लंड को मेरे मुँह मे डाल दिया.और मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड
को अंदर तक तक पेल दिया. 

मुझे उस के लंड से बहुत ही तीखी और गंदी सी स्मेल आई. जिस से मुझे घिंन सी आने लगी. 

खालिद का यूँ मुझ से वहशियाना सलूक देख कर मुझे सॉफ नज़र आ रहा था. कि आज मेरी हालत बहुत ही बुरी होने वाली है. 

अगर खालिद इसी तरह मुझे जबर्जस्ती चोदता और मारता रहा तो पता नही सुबह तक मेरी क्या हालत हो जाएगी. 

खालिद अब मेरे मुँह मे धका धक अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था. और ना चाहते हुए भी मुझे उस के लंड पर लगे अपनी चूत के पानी को अपनी ज़ुबान से चाट कर सॉफ करना पड़ा.

कुच्छ देर इस तरह मेरे मुँह को चोदने का बाद उस ने अपना लंड बाहर निकाला.

अब उस ने मुझे उलटा हो कर घोड़ी बनने को कहा. 

“ खालिद क्यों मुझे जॅलील करने पर तुले हो,खुदा के लिए मेरी जान छोड़ो अब” मैने एक दफ़ा फिर उस की मिन्नत की.

“जान तो में अब तुम्हारी उस वक़्त तक नही चोदुन्गा जब तक तुम्हे दिल भर का चोद ना लूँ, अब नखरे मत करो और जल्दी से उल्टी हो कर लेट जाओ” खालिद ने गुस्से में फुन्कार्ते हुए कहा.

“मरती क्या ना करती” में मजबूरन उल्टी हो कर अपने बिस्तर पर लेट गई.
 
मेरे उल्टी हो कर लेटते ही खालिद मेरे पीछे आन खड़ा हुआ.

उस ने “थू” कर के अपने मुँह से ढेर सारा “थूक” निकाला और कुछ थूक अपने लंड पर ऑर कुछ मेरी चूत पर लगा कर उस ने अपना लौडा मेरी फुद्दि के सुराख पर रख कर धक्का दिया ऑर उस का लंड अंदर चला गया. 

अब खालिद मुझे फिर किसी कुतिया की तरह चोदने लगा.

उस के तेज तेज झटकों की बदौलत जब उस का लंड मेरी चूत के अंदर जाता. तो मेरी फुद्दी के साथ उस के टटटे टकराने के साथ साथ उस की टाँगें भी पीछे से मेरे मोटे हिप्पस से जा टकराती. 

इस तरह ना सिर्फ़ कमरे में “थॅप थॅप” की आवाज़ गूँजती बल्कि उस कर हर झटके की वजह से मेरे मोटे मम्मे भी हिलने शुरू हो जाते.

खालिद कमरे की दीवार से लगे शीशे में मेरे हिलते हुए मम्मों को देख कर ऑर ज़ोर से मुझे चोदने लगा.

और इसके साथ साथ वो अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरी मम्मों को मसलने लगा.

उस के झटकों की रफ़्तार अब पहले से बहुत ही तेज हो गई थी.

में "आआआआआआईयईईई ईईईईईईईईईईईईईईई ऊऊऊऊऊऊऊऊऊँ म्म्म्म मममममममाआअ एयाया मुझे छोड़ दूऊऊऊओ" जैसे अल्फ़ाज़ से खालिद अभी तक इस काम से रोकने की कोशिस करने में लगी हुई थी. 

मगर उसी दौरान खालिद ने एक ज़ोर दार झटके के साथ ही अपना सारा वीर्य मेरी फुद्दी में उडेल दिया.

खालिद ने अपनी दरिंदगी पूरी की और चला गया. जब कि उस के लंड का पानी काफ़ी देर तक चूत से बाहर निकल कर मेरी टाँगों से होता हुआ बिस्तर पर गिरता रहा.

में खालिद की वहशियाना चुदाइ से थक गई थी. इस लिए उस के जाने के कुछ देर बाद मुझे भी नींद ने अपनी आगोश में ले लिया और में नंगी ही सो गई.

में सुबह काफ़ी देर तक सोती रही. फिर जब सुबह मेरी आँख खुली तो बिस्तर पर से उठते वक़्त मेरी नज़र सामने लगे शीशे पर पड़ी.

मेने ने देखा कि मेरा मेरे दोनो मम्मो पर खालिद के दाँतों के निशान अभी तक बाकी थे. और मेरे निपल्स भी सूजे हुए थे. 

जब कि नीचे मेरी चूत भी सूज कर और मोटी हो गई थी. जब कि मेरे जिस्म का अंग अंग अभी तक दर्द कर रहा था.

में सोचने पर मजबूर हो गई कि यहाँ तो में मर जाउन्गी . ना मेरा अमेरिका का बुलावा आएगा और ना में इस जहन्नुम से निकल पाउन्गी .

आख़िर में कब तक दामाद और ससुर की रखेल बन कर रहूंगी .

में ज़हनी तौर पर इतनी परेशान थी और खुद अपनी ही नज़रों में गिर गई थी. 

दिल चाहता था कि खुद कुशी करलूँ. या सारी ससुराल वालों को जमा करूँ और चीख चीख कर कहूँ कि "कोई और है तो आ जाय" मुझ से चुदाई करने.

उसी दिन अम्मी का दुबई से फोन आया कि वो और बिलाल भाई आज शाम की फ्लाइट से पाकिस्तान वापिस लौट रहे हैं.

मुझे तो इसी खबर का इंतिज़ार था. क्यों कि मैने इस्लामाबाद से वापसी पर ही ये तय कर लिया था. कि अपने ससुर के हाथों बे आबरू हो कर में अब मज़ीद अपने ससुराल मे नही रह सकती थी.

फिर आज खालिद भाई के साथ रात वाले वाकये के बाद मेरे लिए अब एक लम्हा इधर रुकना मुहाल था.

इस लिए उसी रात में अपनी सास से इजाज़त ले कर अपनी अम्मी के घर चली आई.
 
मेके में आते ही ज्यूँ ही मैं ने अपनी अम्मी को देखा तो में उन से लिपट कर ज़रो क़तर रोने लगी.

मुझ यूँ ज़रो कतर रोता देख कर अम्मी बहुत परेशान हो गईं.

अम्मी: नबीला बेटा क्यों इस तरह रो रही हो मेरी बच्ची.

में: कुछ नही अम्मी,आप से इतने दिनो के बाद जो मिल रही हूँ,इस लिए में रो पड़ी.

मैं उन को बताती भी तो किया, कि आप की बेटी अपने ही ससुर और उन के दामाद के हाथों लूट चुकी है.

वैसे भी मेरी अम्मी दिल की मरीज़ थीं. इस लिए मैं तो उन्हे ये बात बताना भी नही चाहती थी.

मुझे जो कुछ भी कहना था तो वो अपने बड़े भाई बिलाल से कहना था.

मगर इस के लिए भी में एक दो दिन के बाद उन से बात करना चाहती थी.

इस की वजह ये थी. कि एक तो अपनी अम्मी के घर आ कर में थोड़ा सकून से इस सारे मसले पर सोच बिचार करना चाहती थी.

दूसरा ये कि अम्मी और भाई आज ही घर वापिस लोटे थे. इस लिए मेरा इरादा था कि वो एक दो दिन आराम कर लें तो फिर में आराम से अपने भाई बिलाल से इस मसले का ज़िक्र करूँगी.

में अभी अम्मी से लिपटी उसी तरह रो रही थी. कि इतने में बिलाल भाई अंदर से चलते हुए ड्रॉयिंग रूम में दाखिल हुए.

उन्हो ने भी जब मुझे यूँ अम्मी से लिपट कर रोते देखा तो वो भी परेशान हो गये.

जब अम्मी मुझ से मिल कर अंदर अपने कमरे में चली गईं. तो भाई ने भी मुझ से पूछा कि में इस तरह क्यों रो रही हूँ और में अपने ससुराल में ठीक से तो हूँ ना.

“सब ठीक है भाई” मैने भाई से नज़रें चुराते उन को जवाब दिया.

मगर बिलाल भाई मेरी आँखों के गिर्द स्याह निशानों को देख कर कम अज कम ये समझ गये थे कि में उन से झूट बोल रही हूँ.

बिलाल भाई मुझ से दो साल बड़े हैं और बड़े होने की हैसियत से मुझे बहुत ही शिद्दत से चाहते हैं.

मेरी हर तकलीफ़ को ना सिर्फ़ वही जान सकते हैं. बल्कि उस के हाल के लिए वो कुछ कर भी सकते हैं.आख़िर कार में हूँ जो उन की इकलौती छोटी बहन.

बिलाल भाई: नबीला सच सच बताओ क्या जमाल या उस के अम्मी अब्बू से कोई बात हुई है?.

भाई के इसरार पर मैने पूरी बात तो नही बताई मगर दबे लफ़्ज़ों में उन को कहा दिया कि भाई में अब वहाँ नहीं जाऊंगी

भाई ने इस की वजह पूछी तो मेने कहा कि आप को जल्द ही सब कुछ बता दूँगी. 

मेरे ससुर के वापिस ना जाने की बात पर उन्हों ने कोई खास तवज्जो नहीं दी. 

क्यों कि शायद वो समझ रहे थे कि में किसी मामूली बात पर अपने ससुराल वालों से वक्ति तौर पर नाराज़ हूँ. 

और जब मेरा गुस्सा उतर जाएगा तो में खुद ही वापिस चली जाउन्गी .

बिलाल भाई की मेरे शोहर जमाल से भी बहुत दोस्ती थी. और इसी लिए जमाल की कॉसिश थी कि मेरे साथ साथ वो बिलाल भाई को भी अमेरिका बुला लें.

इसी लिए जमाल मेरे साथ साथ मेरे भाई बिलाल का वीसा हासिल करने की कोशिश में लगे हुए थे. 

अपनी अम्मी और भाई से मिलने के बाद रात को में अपने कमरे में जा कर सो गई.

मुझे ससुराल से आए अभी एक ही दिन गुज़रा कि मेरे बेगैरती ससुर (अब्बा) का फोन आया.

अब्बा:बेटी तुम कब घर वापिस आ रही हो हम सब तुम्हारे बेगैर बहुत उदास हैं.

अब्बा ने अपनी बात कहते हुए लफ़्ज उदास पर खास तौर पर ज़ोर दिया. 

तो में समझ गई कि वो दबे लफ़्ज़ों में कह रहे हैं कि असल में वो मेरी जवान चूत के बगैर उदास हो रहे हैं.

में:में अब कभी वापिस नहीं आउन्गी उस घर में.

मैने गुस्से में उन से कहा.

“चलो बेटी जब दिल चाहे आ जाना” अब्बा ने मेरे गुस्से वाले लहजे को नज़र अंदाज़ करते हुए जवाब दिया और फोन रख दिया.

मुझे आमी के घर आए अब तीन दिन हो गये थे.

उस दिन सनडे था और मैने सोचा कि आज भाई को सब बातें साफ साफ बता दूं.

और में दिल और ज़हन की गहराइयों से इस बात के लिये भी तैयार थी. कि भाई को अपनी सारी बात बयान करने के बाद में उन से कहूँ गी कि मुझे अब हर हाल में अपने शोहर से तलाक़ चाहिए.

फिर तलाक़ के बाद चाहे मेरी दूसरी शादी ना भी हो .मगर में इस अज़ब से अब हर क़ीमत पर आज़ाद होना चाहती थी.
 
उस रात खाने के बाद में कुछ देर तक बरतन वेघरा धोने में मसरूफ़ रही.

फिर किचन की सफाई से फारिग हो कर मैने शवर लिया और फिर कुछ देर अपने कमरे में बैठ कर भाई से बात करने के लिए अपनी हिम्मत जमा की.

मुझे पता था कि आज मेरी कहानी सुन कर मेरे भाई को बहुत ही दुख हो गा.

मैने भाई से बात करने के लिए रात के वक़्त का इंतिखाब इस लिये किया. क्यों कि मुझे डर था कि दिन के वक़्त भाई कहीं गुस्से में आ कर फॉरन अब्बा और खालिद से लड़ने उन के घर ना चले जाएँ.

में किसी किसम की लड़ाई और अपनी बदनामी नहीं चाहती थी. 

बस में ये चाहती थी कि भाई से मशवरा करूँ और तलाक़ ले लूँ.

क्योंकि जब से मेरे शोहर जमाल ने मुझे झूठा साबित करने की कॉसिश की थी.

उसी दिन से मैने ये सोच लिया था. कि जिस शोहर को मेरी बातों पर ऐतबार नहीं उस के साथ ज़िंदगी गुज़ारने में अब कोई मज़ा नही है. 

में अपने कमरे में बैठी अपनी अम्मी के सोने का इंतेज़ार कर रही थी. 

अम्मी का कमरा ग्राउंड फ्लोर पर था. जब कि बिलाल भाई घर के उपर की मंज़ल पर रहते थे.

रात के तकरीबन 11 बजे जब मुझे यकीन हो गया कि अम्मी अब सो चुकी होंगी.तो में आहिस्ता से अपने कमरे से निकली और दबे पावं स्टेर्स चढ़ती उपर चली आई.

भाई के कमरे में जलती लाइट को देख कर में मुन्तमिन हो गई कि भाई अभी जाग रहा है.

मैने भाई के कमरे को नॉक किया और कुछ देर इंतेज़ार के बाद जवाब ना पा कर में कमारे के अंदर चली गई.

मैने देखा कि भाई उधर तो मजूद नही. मगर भाई के कमरे का डीवीडी प्लेयर और टीवी ऑन हैं और टीवी स्क्रीन पर इंडियन मूवीस के गाने चल रहे थे.

में समझी कि बिलाल भाई हमें बताए बगैर मुहल्ले की दुकान से शायद सिगरेट लाने निकल गये हैं.

भाई को कमरे में माजूद ना पा कर मुझ बहुत मायूसी हुई और में वापिस जाने के लिए मूडी ही थी.कि भाई के कमरे के साथ अतेच्ड बाथरूम का दरवाजा अचानक खुला और अपने जिस्म के गिर्द तोलिया बाँधे बिलाल भाई कमरे में दाखिल हुए.

बिलाल भाई ने एक बड़ा तोलिया तो अपने जिस्म के गिर्द लपेटा हुआ था. जब कि एक और छोटे तोलिये से वो अपने सर के गीले बालों को सुखाने में मसरूफ़ थे.

में इस से पहले काफ़ी दफ़ा भाई को बगैर कमीज़ अपने घर में घूमते हुए देख चुकी थी.

इस के बावजूद हम दोनो बहन भाई एक दूसरे का यूँ इस तरह सामने करने के लिए ज़ेहनी तौर पर तैयार नही थे.

इस लिए भाई को मुझे रात के इस पहर अपने कमरे में और मुझे अपने भाई को यूँ नंगे बदन हालत में देख कर एक दम बहुत ही हर्ट हुई.

और हम दोनो अपनी अपनी जगह बुत बने एक दूसरे को आँखे फाडे देखते रहे.

चन्द लम्हो बाद मुझे ख्याल आया कि मुझे फॉरन इसी वक़्त भाई के कमरे से निकल जाना चाहिए.

“भाई में माफी चाहती हूँ कि में इस तरह आप के कमरे में चली आई” ये कहते हुए में बाहर निकलने के लिए मूडी.


में दरवाज़े से निकल ही रही थी कि भाई ने पीछे से मेरे कंधों पर हाथ रख कर कहा “नबीला रुक जाओ में अभी बाथरूम में जा कर कपड़े चेंज कर आता हूँ और फिर हम बैठ कर बातें करेंगे ”. 

में: आप कपड़े पहन कर मुझे बुला लेना मैने आप से एक ज़ुरूरी बात करनी है. 

मैने अपना सार नीचे झुकाते हुए बोला.

ये कह कर में फिर बाहर निकलने लगी.तो भाई मेरे सामने आ गया और कहने लगा “ रुक जाओ नबीला मुझे भी तुम से एक बात करनी है, में भी नहाते वक़्त तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था.

इस से पहले कि में मज़ीद कुछ की पाती भाई मुझे हाथ से पकड़ कर अपने कमरे में लेगया और मुझे अपने बेड पर बिठा दिया.

मुझे बेड पर बैठाने के बाद भाई ने बाथरूम में जा कर अपने कपड़े पहने की बजाय ड्रेसिंग टेबल से हेर बुरश उठाया और इसी तरह टावाल में ही मलबूस आ कर मेरे साथ बेड पर बैठ कर अपने बालों में ब्रश फेरने लगा. 
 
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