hotaks444
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वो हिश्टीरियाइ ढंग से हँसता हुआ हुआ नीरा की ओर गन लहराता हुआ झपटा, और उसे गन पॉइंट पर लेते हुए बोला-
ये सब तेरी वजह से हुआ है हरम्जदि कुतिया, मे तुझे जिंदा नही छोड़ूँगा.
अभी वो उस पर गोली चलाना ही चाहता था, कि तभी…. ढाय… धाय… दो गोली और चली,
प्रताप और चौधरी दोनो के शरीर फर्श पर पड़े तड़प रहे थे.
तभी वहाँ तीन नकाब पोश नुमाया हुए, जिनमें से दो की गन की नाल से अभी भी धुआँ निकल रहा था.
उन्हें देख कर एंपी और राइचंद का मूत निकल गया और वो थर-2 काँपने लगे.
उनमें से एक नकाब पोश गुर्राया- क्यों एंपी.. ग़लत काम करते कभी नही
काँपा, आज अपनी मौत को सामने देख कर मूतने लगा.
वो दोनो मिमियाते हुए बोले…हहामें माफ़ करदो, ये सब इन दोनो कुत्तों ने किया था…
नकाब पोश - अच्छा तो क्या तुम लोग अपना गुनाह कबूल करोगे…?
एंपी - हां ! आप लोग जैसा कहोगे हम वैसा ही करेंगे..!
नकाबपोश – अच्छा ! और फिर कोर्ट के सामने मुकर जाओगे..! है ना ! या फिर उससे जुड़े हुए जड्ज या पोलीस को ही खरीद लोगे.. क्यों..?
सुन एंपी , हम लोग यहाँ क़ानून-2 का खेल खेलने नही आए… समझे, हमारा काम है ऑन दा स्पॉट फ़ैसला…
इसके साथ ही फिर धाय..धाय… दो गोली और चली, और उन दोनो के जिस्म भी थोड़ी देर तडपे, फिर शांत हो गये.
उन्होने वहाँ कुछ ऐसे सबूत छोड़े जो ये साबित करते थे कि वे देश-द्रोही थे…
फिर वो तीनों नीरा को साथ लेकर वहाँ से ऐसे गायब हो गये जैसे गधे के सर से सींग….
हमारा ये मिसन भी लगभग सक्सेस्फुल रहा, ज़्यादातर हार्ड कोर नक्सली जो कुट्टी के साथ थे वो मारे जा चुके थे,
कुछ ने सरेंडर कर दिया था. जंगलों में कुछ दिनों के लिए शांति हो गयी थी.
हम लोग कुछ दिनो के लिए अपने-2 परिवार के पास लौट गये.
वाकी के ग्रूप भी बहुत हद तक सक्सेस रहे थे, अपने इलाक़ों में उन्होने कुछ हद तक कामयाबी हाशील की थी…
कुछ अभी भी लगे थे अपने-2 मिसन पर, जिनकी टाइम तो टाइम रिपोर्ट हम हेड ऑफीस को देते रहते थे.
ट्रिशा की प्रेग्नेन्सी का ये लास्ट समय चल रहा था, उसकी माँ हमारे साथ आई हुई थी, और अब नीरा भी मेरे साथ ही हमारे घर आ गयी थी.
मौका देख कर समय समय पर उसकी भी सेवा हो जाती थी, वैसे भी मेरी पत्नी तो इस काबिल थी नही आजकल.
एक दिन ट्रिशा ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया, घर भर में काफ़ी समय के बाद खुशियों ने कदम रखा था.
उधर निशा ने भी एक बेटे को जन्म दिया, दोनो बहनों के जीवन में एक साथ खुशियों की बहार आई थी,
ऋषभ और उसकी पत्नी ने वहाँ का सब संभाल लिया था.
मैने अपनी माँ को भी बुलवा लिया था, श्याम भाई उन्हें अपने साथ ले आए थे…
पोते को देख कर मेरी माँ बहुत खुश थी, अपने सबसे छोटे बेटे, जिसके भविष्य की उसे हर समय चिंता सताती रहती थी, वो आज अपने परिवार के साथ सुखी था.
हमने अपने बेटे का नाम सुलभ रखा.. वो बिल्कुल अपनी माँ की छवि था. इतना प्यारा था कि हर कोई उसे प्यार करने लग जाता.
रोना तो जैसे उसको आता ही नही था. नीरा उसका विशेष ख्याल रखती थी.
कुछ समय और व्यतीत हुआ, बीच बीच में हम तीनों दोस्त अपने मिसन का रिव्यू लेने चले जाते, और जो भी उचित आक्षन होता वो करके वापस अपने घर आ जाते.
मैने ट्रिशा के साथ सलाह मशविरा करके, उसी के स्टाफ के ही एक कॉन्स्टेबल रमेश के साथ नीरा की शादी करवा दी,
रमेश का भी इस दुनिया में कोई नही था…वो दोनो एक दूसरे का साथ पाकर बड़े खुश थे.
अभी मेरा बेटा 10 महीने का ही हुआ था कि ट्रिशा फिर से प्रेग्नेंट हो गयी, लोगों ने काफ़ी सुझाव दिए कि अभी बड़ा बेटा छोटा है, तो दूसरे की परवरिश कैसे होगी,
इसलिए अबॉर्षन करा लेना चाहिए, जिससे कुछ हद तक ट्रिशा भी सहमत हो गयी, लेकिन मैने मना कर दिया.
पता नही ईश्वर ने क्या सोच कर उस भ्रूण को मेरी पत्नी के गर्भ में डाला होगा, अब उसके अरमानों का गला गर्भ में ही घोंट देना ये मेरी नज़र में महपाप होगा. सो हमने उसे रखने का फ़ैसला लिया.
ट्रिशा ने समय पर दूसरे बेटे को जन्म दिया, हमने दुगने उत्साह से नये मेहमान का स्वागत किया और उसका नाम कौशल रखा.
चूँकि नीरा भी ज़्यादातर हमारे साथ ही रहती थी, तो दोनो बच्चों की परवरिश में कोई खास परेशानी नही आई.
ये सब तेरी वजह से हुआ है हरम्जदि कुतिया, मे तुझे जिंदा नही छोड़ूँगा.
अभी वो उस पर गोली चलाना ही चाहता था, कि तभी…. ढाय… धाय… दो गोली और चली,
प्रताप और चौधरी दोनो के शरीर फर्श पर पड़े तड़प रहे थे.
तभी वहाँ तीन नकाब पोश नुमाया हुए, जिनमें से दो की गन की नाल से अभी भी धुआँ निकल रहा था.
उन्हें देख कर एंपी और राइचंद का मूत निकल गया और वो थर-2 काँपने लगे.
उनमें से एक नकाब पोश गुर्राया- क्यों एंपी.. ग़लत काम करते कभी नही
काँपा, आज अपनी मौत को सामने देख कर मूतने लगा.
वो दोनो मिमियाते हुए बोले…हहामें माफ़ करदो, ये सब इन दोनो कुत्तों ने किया था…
नकाब पोश - अच्छा तो क्या तुम लोग अपना गुनाह कबूल करोगे…?
एंपी - हां ! आप लोग जैसा कहोगे हम वैसा ही करेंगे..!
नकाबपोश – अच्छा ! और फिर कोर्ट के सामने मुकर जाओगे..! है ना ! या फिर उससे जुड़े हुए जड्ज या पोलीस को ही खरीद लोगे.. क्यों..?
सुन एंपी , हम लोग यहाँ क़ानून-2 का खेल खेलने नही आए… समझे, हमारा काम है ऑन दा स्पॉट फ़ैसला…
इसके साथ ही फिर धाय..धाय… दो गोली और चली, और उन दोनो के जिस्म भी थोड़ी देर तडपे, फिर शांत हो गये.
उन्होने वहाँ कुछ ऐसे सबूत छोड़े जो ये साबित करते थे कि वे देश-द्रोही थे…
फिर वो तीनों नीरा को साथ लेकर वहाँ से ऐसे गायब हो गये जैसे गधे के सर से सींग….
हमारा ये मिसन भी लगभग सक्सेस्फुल रहा, ज़्यादातर हार्ड कोर नक्सली जो कुट्टी के साथ थे वो मारे जा चुके थे,
कुछ ने सरेंडर कर दिया था. जंगलों में कुछ दिनों के लिए शांति हो गयी थी.
हम लोग कुछ दिनो के लिए अपने-2 परिवार के पास लौट गये.
वाकी के ग्रूप भी बहुत हद तक सक्सेस रहे थे, अपने इलाक़ों में उन्होने कुछ हद तक कामयाबी हाशील की थी…
कुछ अभी भी लगे थे अपने-2 मिसन पर, जिनकी टाइम तो टाइम रिपोर्ट हम हेड ऑफीस को देते रहते थे.
ट्रिशा की प्रेग्नेन्सी का ये लास्ट समय चल रहा था, उसकी माँ हमारे साथ आई हुई थी, और अब नीरा भी मेरे साथ ही हमारे घर आ गयी थी.
मौका देख कर समय समय पर उसकी भी सेवा हो जाती थी, वैसे भी मेरी पत्नी तो इस काबिल थी नही आजकल.
एक दिन ट्रिशा ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया, घर भर में काफ़ी समय के बाद खुशियों ने कदम रखा था.
उधर निशा ने भी एक बेटे को जन्म दिया, दोनो बहनों के जीवन में एक साथ खुशियों की बहार आई थी,
ऋषभ और उसकी पत्नी ने वहाँ का सब संभाल लिया था.
मैने अपनी माँ को भी बुलवा लिया था, श्याम भाई उन्हें अपने साथ ले आए थे…
पोते को देख कर मेरी माँ बहुत खुश थी, अपने सबसे छोटे बेटे, जिसके भविष्य की उसे हर समय चिंता सताती रहती थी, वो आज अपने परिवार के साथ सुखी था.
हमने अपने बेटे का नाम सुलभ रखा.. वो बिल्कुल अपनी माँ की छवि था. इतना प्यारा था कि हर कोई उसे प्यार करने लग जाता.
रोना तो जैसे उसको आता ही नही था. नीरा उसका विशेष ख्याल रखती थी.
कुछ समय और व्यतीत हुआ, बीच बीच में हम तीनों दोस्त अपने मिसन का रिव्यू लेने चले जाते, और जो भी उचित आक्षन होता वो करके वापस अपने घर आ जाते.
मैने ट्रिशा के साथ सलाह मशविरा करके, उसी के स्टाफ के ही एक कॉन्स्टेबल रमेश के साथ नीरा की शादी करवा दी,
रमेश का भी इस दुनिया में कोई नही था…वो दोनो एक दूसरे का साथ पाकर बड़े खुश थे.
अभी मेरा बेटा 10 महीने का ही हुआ था कि ट्रिशा फिर से प्रेग्नेंट हो गयी, लोगों ने काफ़ी सुझाव दिए कि अभी बड़ा बेटा छोटा है, तो दूसरे की परवरिश कैसे होगी,
इसलिए अबॉर्षन करा लेना चाहिए, जिससे कुछ हद तक ट्रिशा भी सहमत हो गयी, लेकिन मैने मना कर दिया.
पता नही ईश्वर ने क्या सोच कर उस भ्रूण को मेरी पत्नी के गर्भ में डाला होगा, अब उसके अरमानों का गला गर्भ में ही घोंट देना ये मेरी नज़र में महपाप होगा. सो हमने उसे रखने का फ़ैसला लिया.
ट्रिशा ने समय पर दूसरे बेटे को जन्म दिया, हमने दुगने उत्साह से नये मेहमान का स्वागत किया और उसका नाम कौशल रखा.
चूँकि नीरा भी ज़्यादातर हमारे साथ ही रहती थी, तो दोनो बच्चों की परवरिश में कोई खास परेशानी नही आई.