hotaks444
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आख़िरकार उसने अपनी आखें खोलकर देखा कि वो इस समय कहाँ और किन लोगों के बीच, किन हालातों में है…
जैसे ही उसने अपनी आँखें खोली, तीन शख्स उसके बिस्तर के पास खड़े दिखाई दिए, वो अपनी पूर्व-बात स्थिति समझ कर फिर से चीखने वाली थी कि उनमें से एक शख्स (मे) ने उसका मुँह बंद कर दिया और उसे समझाने लगा.
देखो ! डरो नही, हम वो नही हैं जो तुम्हारे साथ रेप कर रहे थे, हम तुम्हें बचाकर यहाँ लाए हैं. अब तुम्हें घबराने की ज़रूरत नही है.
व.व.वू.. फिर से लेजाएँगे मुझे, रोते हुए बोली वो..
मे - नही अब वो तुम्हें नही ले जा सकते, वो सब मर चुके हैं..
वो - क्या..? कैसे..? वो तो बड़े ख़तरनाक लोग थे..! उन्हें किसने मारा..?
मे - हमने उन चारों को मार दिया है, और तुम्हें वहाँ से ले आए हैं, अब तुम्हें कोई हानि नही पहुँचाएगा.
वो - लेकिन आप लोग कॉन हैं..?
मे - हमें तुम अपना दोस्त ही समझो, और सारी बात बताओ कि क्या हुआ था तुम्हारे साथ..!
उसने उठने की कोशिश की लेकिन शरीर के दर्द ने उसे उठाने नही दिया, तो मैने उसे सहारा देकर बिठाया और उसकी पीठ के पीछे तकिये का सहारा लगा कर बेड से टेक लगा कर बिठा दिया.
उसने अपने शरीर पर नज़र डाली, जो जगह-2 से नोच-खरोंच से भरा हुआ था, जहाँ अब मलम लगी हुई थी.
अपनी आँखों में पानी लाकर उस युवती ने बोलना शुरू किया-
मेरा नाम नीरा है, अपने माँ-बापू के साथ गाँव में रहती हूँ.
गाँव शहर से ज़्यादा दूर होने के कारण पढ़ लिख भी नही पाते हैं बच्चे, सो में भी नही पढ़ पाई, बस 5वी तक की शिक्षा ही ले पाई.
मेरा एक छोटा भाई भी था, मे अपने गाँव की सबसे सुंदर लड़की थी.
ये लोग जंगलों में रहकर वहाँ से लकड़ी और जंगली जानवरों को मार कर उनका व्यापार करते हैं, कभी-2 घूम फिर कर हमारे गाँव भी आ जाते थे.
हमारे घर वाले, जब ये लोग आते थे तो अपने-2 बच्चों को छिपा देते थे जिससे इन लोगों की नज़र ना पड़े और ये कुछ नुकसान ना पहुँचा सकें.
कल ये लोग आकस्मात हमारे गाँव में आ गये, इससे पहले कि मे और मेरा भाई कहीं छिप्ते, इन्होने हमें देख लिया और पकड़ लिया.
हम दोनो को ज़बरदस्ती जंगल की ओर ले जाने लगे जब मेरे माँ-बापू ने हमें छुड़ाने की कोशिश की तो उन लोगों ने उन दोनो को गोली मार दी, और फिर मेरे भाई को भी मार दिया, और मुझे उठा ले गये..
इतना कहते-2 वो फुट-2 कर रोने लगी.
मे - देखो नीरा ! तुम रोओ नही, हमें पता है तुम एक बहादुर लड़की हो. वैसे तुम्हारी उम्र क्या है अभी.
वो- 19 साल…!
मे- तुम्हें उनके दूसरे साथियों का पता है कि वो कहाँ रहते हैं..?
वो- ऐसे लोगों का कोई एक ठिकाना तो होता नही है बाबूजी, यहाँ तो जंगल का समंदर सा फैला हुआ है, कही भी आते- जाते हैं ये लोग.
मे - वैसे तुमने ज़्यादा से ज़्यादा कितने लोगों को देखा है ऐसे..!
वो - कभी-2 तो ये 20-25 तक भी आते थे.
मे - अब तुम कहाँ जाना चाहोगी..? आगे क्या करना है..?
वो - अब मेरा कॉन बचा है जिसके पास जाउन्गी, वैसे भी ये मेरी जिंदगी तो अब नरक बन चुकी है, जीने में रखा ही क्या है ? अब तो मेरे मर जाने में ही भलाई है.
मैने उसे समझाते हुए कहा - देखो नीरा ! मरने से आज तक किसी का भला नही हुआ है, भगवान ने ये जीवन दिया है जीने के लिए, इसे ऐसे ही ख़तम नही करना चाहिए.
तुम एक बहादुर लड़की हो, हम चाहते हैं, कि तुम इस जीवन का मुक़ाबला पूरी बहादुरी से लड़ते हुए करो.
वो सुबक्ते हुए बोली - अब मे अकेली क्या मुक़ाबला करूँगी जिंदगी का ? कहाँ जाउन्गि..? मेरे पास बचा ही क्या है जीने के लिए..?
मे - क्या तुम ये नही चाहोगी कि तुम्हारी तरह कोई और नीरा अनाथ ना हो..?
वो - मेरे चाहने ना चाहने से क्या होता है बाबू साब..!
मे - अगर होता हो तो….! देखो ! अगर तुम चाहो तो बहुत कुछ हो सकता है, हम तुम्हें इस काबिल बनाएँगे कि तुम जमाने की मुश्किलों का सामना डटकर कर सको.
और अपने परिवार की मौत का बदला भी ले सको, ताकि फिर कोई मज़लूम इस तरह से असहाय और बेबस ना हो.
वो – लेकिन ये होगा कैसे..?
मे - वो सब तुम हम पर छोड़ दो, तुम बस ये बताओ, कि तुम इनके खिलाफ लड़ना चाहती हो या नही, इसमें हम तुम्हारा पूरा साथ देंगे.
वैसे भी तो तुम मरना ही चाहती हो, अगर वो मौत किसी के काम आ सके, किसी का भला करते हुए आए तो जीवन सफल हो जाता है, है ना !
वो - हमम्म… ! ठीक है, आज से आप लोग जैसा कहेंगे मे वैसा ही करूँगी…, वैसे भी ये जिंदगी तो आप ही की लौटाई हुई है.
मे - शाबास ! ये हुई ना कुछ बात…!
फिर मैने उसे उसकी सारी दबाईयाँ देते हुए समझाया - लो ये सब तुम्हारी दबाइयाँ हैं, इनको समय से खाना है, और ये ट्यूब अपने ज़ख़्मों पर लगाना है दिन में दो बार, उस जगह पर भी. समझ गयी.
मेरी बात का मतलब समझते हुए, थोड़ा शरमाते हुए उसने सर हिलाकर हामी भरी..!
मैने आगे कहा - घर में खाने पीने की सभी चीज़ मौजूद हैं, तो खुद पकाना और समय से खाना, हम लोग कुछ दिनो के लिए बाहर जा रहे हैं तब तक तुम अच्छी तरह से अपनी देखभाल करना,
जब हम लोग लौट के आयें तो हमें हमारी शेरनी पूरी तरह स्वस्थ मिलनी चाहिए..! ठीक है..!
और हां ! बिना काम के ज़्यादा देर घर से बाहर मत जाना, किसी से मेल-जोल बनाने की भी ज़रूरत नही है, और ना ही फालतू इधर-उधर जाना है, समझ गयी.
उसने मुस्करा कर हामी भरी, अब उसके चेहरे पर कुछ ध्रड निश्चय के भाव नज़र आरहे थे…
फिर हम तीनों दोस्त उसे अकेला छोड़कर बाहर निकल गये..!
जैसे ही उसने अपनी आँखें खोली, तीन शख्स उसके बिस्तर के पास खड़े दिखाई दिए, वो अपनी पूर्व-बात स्थिति समझ कर फिर से चीखने वाली थी कि उनमें से एक शख्स (मे) ने उसका मुँह बंद कर दिया और उसे समझाने लगा.
देखो ! डरो नही, हम वो नही हैं जो तुम्हारे साथ रेप कर रहे थे, हम तुम्हें बचाकर यहाँ लाए हैं. अब तुम्हें घबराने की ज़रूरत नही है.
व.व.वू.. फिर से लेजाएँगे मुझे, रोते हुए बोली वो..
मे - नही अब वो तुम्हें नही ले जा सकते, वो सब मर चुके हैं..
वो - क्या..? कैसे..? वो तो बड़े ख़तरनाक लोग थे..! उन्हें किसने मारा..?
मे - हमने उन चारों को मार दिया है, और तुम्हें वहाँ से ले आए हैं, अब तुम्हें कोई हानि नही पहुँचाएगा.
वो - लेकिन आप लोग कॉन हैं..?
मे - हमें तुम अपना दोस्त ही समझो, और सारी बात बताओ कि क्या हुआ था तुम्हारे साथ..!
उसने उठने की कोशिश की लेकिन शरीर के दर्द ने उसे उठाने नही दिया, तो मैने उसे सहारा देकर बिठाया और उसकी पीठ के पीछे तकिये का सहारा लगा कर बेड से टेक लगा कर बिठा दिया.
उसने अपने शरीर पर नज़र डाली, जो जगह-2 से नोच-खरोंच से भरा हुआ था, जहाँ अब मलम लगी हुई थी.
अपनी आँखों में पानी लाकर उस युवती ने बोलना शुरू किया-
मेरा नाम नीरा है, अपने माँ-बापू के साथ गाँव में रहती हूँ.
गाँव शहर से ज़्यादा दूर होने के कारण पढ़ लिख भी नही पाते हैं बच्चे, सो में भी नही पढ़ पाई, बस 5वी तक की शिक्षा ही ले पाई.
मेरा एक छोटा भाई भी था, मे अपने गाँव की सबसे सुंदर लड़की थी.
ये लोग जंगलों में रहकर वहाँ से लकड़ी और जंगली जानवरों को मार कर उनका व्यापार करते हैं, कभी-2 घूम फिर कर हमारे गाँव भी आ जाते थे.
हमारे घर वाले, जब ये लोग आते थे तो अपने-2 बच्चों को छिपा देते थे जिससे इन लोगों की नज़र ना पड़े और ये कुछ नुकसान ना पहुँचा सकें.
कल ये लोग आकस्मात हमारे गाँव में आ गये, इससे पहले कि मे और मेरा भाई कहीं छिप्ते, इन्होने हमें देख लिया और पकड़ लिया.
हम दोनो को ज़बरदस्ती जंगल की ओर ले जाने लगे जब मेरे माँ-बापू ने हमें छुड़ाने की कोशिश की तो उन लोगों ने उन दोनो को गोली मार दी, और फिर मेरे भाई को भी मार दिया, और मुझे उठा ले गये..
इतना कहते-2 वो फुट-2 कर रोने लगी.
मे - देखो नीरा ! तुम रोओ नही, हमें पता है तुम एक बहादुर लड़की हो. वैसे तुम्हारी उम्र क्या है अभी.
वो- 19 साल…!
मे- तुम्हें उनके दूसरे साथियों का पता है कि वो कहाँ रहते हैं..?
वो- ऐसे लोगों का कोई एक ठिकाना तो होता नही है बाबूजी, यहाँ तो जंगल का समंदर सा फैला हुआ है, कही भी आते- जाते हैं ये लोग.
मे - वैसे तुमने ज़्यादा से ज़्यादा कितने लोगों को देखा है ऐसे..!
वो - कभी-2 तो ये 20-25 तक भी आते थे.
मे - अब तुम कहाँ जाना चाहोगी..? आगे क्या करना है..?
वो - अब मेरा कॉन बचा है जिसके पास जाउन्गी, वैसे भी ये मेरी जिंदगी तो अब नरक बन चुकी है, जीने में रखा ही क्या है ? अब तो मेरे मर जाने में ही भलाई है.
मैने उसे समझाते हुए कहा - देखो नीरा ! मरने से आज तक किसी का भला नही हुआ है, भगवान ने ये जीवन दिया है जीने के लिए, इसे ऐसे ही ख़तम नही करना चाहिए.
तुम एक बहादुर लड़की हो, हम चाहते हैं, कि तुम इस जीवन का मुक़ाबला पूरी बहादुरी से लड़ते हुए करो.
वो सुबक्ते हुए बोली - अब मे अकेली क्या मुक़ाबला करूँगी जिंदगी का ? कहाँ जाउन्गि..? मेरे पास बचा ही क्या है जीने के लिए..?
मे - क्या तुम ये नही चाहोगी कि तुम्हारी तरह कोई और नीरा अनाथ ना हो..?
वो - मेरे चाहने ना चाहने से क्या होता है बाबू साब..!
मे - अगर होता हो तो….! देखो ! अगर तुम चाहो तो बहुत कुछ हो सकता है, हम तुम्हें इस काबिल बनाएँगे कि तुम जमाने की मुश्किलों का सामना डटकर कर सको.
और अपने परिवार की मौत का बदला भी ले सको, ताकि फिर कोई मज़लूम इस तरह से असहाय और बेबस ना हो.
वो – लेकिन ये होगा कैसे..?
मे - वो सब तुम हम पर छोड़ दो, तुम बस ये बताओ, कि तुम इनके खिलाफ लड़ना चाहती हो या नही, इसमें हम तुम्हारा पूरा साथ देंगे.
वैसे भी तो तुम मरना ही चाहती हो, अगर वो मौत किसी के काम आ सके, किसी का भला करते हुए आए तो जीवन सफल हो जाता है, है ना !
वो - हमम्म… ! ठीक है, आज से आप लोग जैसा कहेंगे मे वैसा ही करूँगी…, वैसे भी ये जिंदगी तो आप ही की लौटाई हुई है.
मे - शाबास ! ये हुई ना कुछ बात…!
फिर मैने उसे उसकी सारी दबाईयाँ देते हुए समझाया - लो ये सब तुम्हारी दबाइयाँ हैं, इनको समय से खाना है, और ये ट्यूब अपने ज़ख़्मों पर लगाना है दिन में दो बार, उस जगह पर भी. समझ गयी.
मेरी बात का मतलब समझते हुए, थोड़ा शरमाते हुए उसने सर हिलाकर हामी भरी..!
मैने आगे कहा - घर में खाने पीने की सभी चीज़ मौजूद हैं, तो खुद पकाना और समय से खाना, हम लोग कुछ दिनो के लिए बाहर जा रहे हैं तब तक तुम अच्छी तरह से अपनी देखभाल करना,
जब हम लोग लौट के आयें तो हमें हमारी शेरनी पूरी तरह स्वस्थ मिलनी चाहिए..! ठीक है..!
और हां ! बिना काम के ज़्यादा देर घर से बाहर मत जाना, किसी से मेल-जोल बनाने की भी ज़रूरत नही है, और ना ही फालतू इधर-उधर जाना है, समझ गयी.
उसने मुस्करा कर हामी भरी, अब उसके चेहरे पर कुछ ध्रड निश्चय के भाव नज़र आरहे थे…
फिर हम तीनों दोस्त उसे अकेला छोड़कर बाहर निकल गये..!