hotaks444
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अब मे पहली बार उसकी चूत चाटने वाला था, सो लग गया अपना हुनर दिखाने.. थोड़ी ही देर में वो अपना दर्द भूलके, उड़ चली ऊडन खटोले पे बैठ के आसमानों में, जब उतरी तो उसकी चूत आँसुओं से तर थी.
मैने उसे पुछा गन्ना चूसना चाहोगी, तो वो तैयार हो गयी और में खड़ा हो गया, वो पंजों के बल बैठ कर मेरे लौडे को चूसने लगी, नौसीखिया थी, पर चलेगा....
थोड़ी देर लॉडा चुसवाने के बाद, जब मेरा जंग बहादुर जंग लड़ने के लिए पूरी तरह अकड़ कर खड़ा हो हो गया, तो मैने उसे लिटाया, और सेट करके, धीरे-2, आहिस्ता-2, दो-तीन बार में पूरा डालके चोदने लगा..
इस बार मैने उसे ज़्यादा दर्द नही होने दिया, और एक मझे हुए खिलाड़ी की तरह चोदने लगा, जब वो एक बार और झड गयी तो फिर मैने उसे घोड़ी बना दिया, और पीछे से उसकी टांगे चौड़वाकर पेल दिया उसकी नयी फटी चूत में..
आहह… क्या मज़ा आ रहा था, लौंडिया मस्ती में अपनी गान्ड को मेरे लंड पे पटक रही थी, मेरे लंड के साइड वाला प्लेट फारम धप्प से उसके चुतड़ों पर टकराता.. लगता जैसे मृदंग पर थाप पड़ी हो कही..
20 मिनट में ही हम हाफने लगे.. पूरा दम लगा दिया हम दोनो ने तब जाके कहीं बादल बरसे.. और जब बरसे तो क्या खूब बरसे… आहह.. बेसूध पड़ गये..
जाने कब तक एक दूसरे की बाहों में पड़े रहे… जाने कब नींद में चले गये… होश ही नही रहा..जब आँख खुली तो 5 बज रहे थे, मैने उसे जगाया..
मे- दीदी..दीदी.. उठो, सुबह हो गयी…
वो हड़बड़ा कर उठी, अपनी हालत देखी, हड़बड़ाहट में जैसे ही पलंग से नीचे उतरी तो खड़ी ना रह सकी, और फिर से पलंग पर गिर पड़ी..
मे- दीदी आराम से, अभी ताज़ा ताज़ा औरत बनी हो.. थोड़ा दर्द रहेगा..
वो फिर जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर निकल गई मेरे कमरे से.. क्योकि डर था कोई देख ना ले, गाँव में वैसे भी सभी जल्दी उठते है.. शौच वग़ैरह के लिए,
उस जमाने में गाँव में घरों में तो शौचालय होते नही थे तो खेतों में ही जाना पड़ता था.
उस दिन कुछ खास नही किया, गर्मियो के दिन थे, तेज धूप की वजह से कहीं आने-जाने का मन नही, हम दोनो दोस्त घर में ही पड़े रहे, कभी भाभी से मस्ती मज़ाक चलता रहा, तो कभी मौका पाके रेखा की खबर खबर लेली, उसको थोड़ा दर्द सा था सुबह-2 तो एक पेन किल्लर देदि..
शाम को मे और धनंजय, मंदिर की तरफ नहर के किनारे निकल गये, जहाँ थोड़ा गर्मी के दिनो में ठंडा सा रहता था नहर की वजह से.
मंदिर पे आके भगवान के सामने माथा टेका, और थोड़ी देर ठंडी हवा में मंदिर के चिकने फर्श पर लेट के बातें करते रहे..
कुछ देर बाद नहर के किनरे-2 टहलते हुए पानी के बहाव के बिपरीत दिशा में चल पड़े.. और मंदिर से कोई 1 किमी दूर निकल आए, तब तक नहर का दूसरा पुल (ब्रिड्ज) भी आ गया.
सूरज ढल रहा था, उस ब्रिड्ज से एक रास्ता नहर के उस पार बसे दूसरे गाँव को जाता था, हम अपनी धुन में चलते-2 उस ब्रिड्ज के नज़दीक तक पहुच गये.
हुआ यौं कि जब हम मंदिर में लेटे थे, तब वो जो लड़के मैने ठोके थे उस दिन, वोही लड़के नहर के दूसरी साइड बैठे थे, उन्होने मुझे देख लिया पर मेरी नज़र उन पर नही पड़ी.
लेकिन जैसे ही हम नहर पर टहलने निकले, वो वहाँ से रफ्फु चक्कर हो गये, और अपने गाँव जाके, अपने घरवालों और दोस्तों को ले आए.
हम उस ब्रिड्ज पर थोड़ी देर बैठने के मूड में थे, लेकिन जैसे ही हम ब्रिड्ज के पास पहुँचे, उसी ब्रिड्ज से आते हुए, 8-10 लोग लाठियाँ डंडे हाथों में लिए हमारी ओर आते दिखे..
जैसे ही हमने उन्हें देखा, मैने झट से उनमें से एक लड़के को पहचान लिया, और धनंजय से बोला…
मे- धन्नु लगता है हम फँस गये… ये लोग हमें ही ठोकने आरहे हैं.
धनंजय - डरते हुए… क्या बात करता है यार..
मे- में सही कह रहा हूँ, ये साले वोही हैं जो उस दिन ठुक के गये थे..
धनंजय - अब क्या करें…?
मे- कुछ नही गान्ड कुटवा लेते हैं और क्या..
धनंजय - मज़ाक नही यार, जल्दी बोल अब क्या करें..
तब तक वो लोग हमारे और नज़दीक आ गये थे..
मे- धीमी आवाज़ में फुसफुसाते हुए… देख हमे सिर्फ़ इनके वार को बचाना है, उससे पहले एक-एक लाठी अपने हाथ में आ जानी चाहिए..
डरना मत हम वेल ट्रेंड हैं इन मामलों में सिर्फ़ विवेक से काम लेना बस.. अब देख एक ड्रामा करते हैं, तू सिर्फ़ साथ देते जा..
और तभी मैने धनंजय का कॉलर पकड़ लिया, वो तुरंत मेरी चाल समझ गया..
मे- उसका कॉलर पकड़ के…! साले फँसा दिया ना मुझे, आख़िर अपने इलाक़े का ही साथ दिया ना तूने, मुझे यहाँ लाने की तेरी चाल थी ना ये..?
धनंजय - मेरे कॉलर पकड़ते हुए..क्या बकवास कर रहा बेह्न्चोद.. उल्टा तेरी वजह से मे भी मुसीबत में फँस गया..ना तू उस दिन उन लड़कों को मारता और ना ये सब नौबत आती..
वो सब आश्चर्य चकित रह गये, और हमें आपस में ही भिडते हुए देखने लगे..
मैने उसे पुछा गन्ना चूसना चाहोगी, तो वो तैयार हो गयी और में खड़ा हो गया, वो पंजों के बल बैठ कर मेरे लौडे को चूसने लगी, नौसीखिया थी, पर चलेगा....
थोड़ी देर लॉडा चुसवाने के बाद, जब मेरा जंग बहादुर जंग लड़ने के लिए पूरी तरह अकड़ कर खड़ा हो हो गया, तो मैने उसे लिटाया, और सेट करके, धीरे-2, आहिस्ता-2, दो-तीन बार में पूरा डालके चोदने लगा..
इस बार मैने उसे ज़्यादा दर्द नही होने दिया, और एक मझे हुए खिलाड़ी की तरह चोदने लगा, जब वो एक बार और झड गयी तो फिर मैने उसे घोड़ी बना दिया, और पीछे से उसकी टांगे चौड़वाकर पेल दिया उसकी नयी फटी चूत में..
आहह… क्या मज़ा आ रहा था, लौंडिया मस्ती में अपनी गान्ड को मेरे लंड पे पटक रही थी, मेरे लंड के साइड वाला प्लेट फारम धप्प से उसके चुतड़ों पर टकराता.. लगता जैसे मृदंग पर थाप पड़ी हो कही..
20 मिनट में ही हम हाफने लगे.. पूरा दम लगा दिया हम दोनो ने तब जाके कहीं बादल बरसे.. और जब बरसे तो क्या खूब बरसे… आहह.. बेसूध पड़ गये..
जाने कब तक एक दूसरे की बाहों में पड़े रहे… जाने कब नींद में चले गये… होश ही नही रहा..जब आँख खुली तो 5 बज रहे थे, मैने उसे जगाया..
मे- दीदी..दीदी.. उठो, सुबह हो गयी…
वो हड़बड़ा कर उठी, अपनी हालत देखी, हड़बड़ाहट में जैसे ही पलंग से नीचे उतरी तो खड़ी ना रह सकी, और फिर से पलंग पर गिर पड़ी..
मे- दीदी आराम से, अभी ताज़ा ताज़ा औरत बनी हो.. थोड़ा दर्द रहेगा..
वो फिर जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर निकल गई मेरे कमरे से.. क्योकि डर था कोई देख ना ले, गाँव में वैसे भी सभी जल्दी उठते है.. शौच वग़ैरह के लिए,
उस जमाने में गाँव में घरों में तो शौचालय होते नही थे तो खेतों में ही जाना पड़ता था.
उस दिन कुछ खास नही किया, गर्मियो के दिन थे, तेज धूप की वजह से कहीं आने-जाने का मन नही, हम दोनो दोस्त घर में ही पड़े रहे, कभी भाभी से मस्ती मज़ाक चलता रहा, तो कभी मौका पाके रेखा की खबर खबर लेली, उसको थोड़ा दर्द सा था सुबह-2 तो एक पेन किल्लर देदि..
शाम को मे और धनंजय, मंदिर की तरफ नहर के किनारे निकल गये, जहाँ थोड़ा गर्मी के दिनो में ठंडा सा रहता था नहर की वजह से.
मंदिर पे आके भगवान के सामने माथा टेका, और थोड़ी देर ठंडी हवा में मंदिर के चिकने फर्श पर लेट के बातें करते रहे..
कुछ देर बाद नहर के किनरे-2 टहलते हुए पानी के बहाव के बिपरीत दिशा में चल पड़े.. और मंदिर से कोई 1 किमी दूर निकल आए, तब तक नहर का दूसरा पुल (ब्रिड्ज) भी आ गया.
सूरज ढल रहा था, उस ब्रिड्ज से एक रास्ता नहर के उस पार बसे दूसरे गाँव को जाता था, हम अपनी धुन में चलते-2 उस ब्रिड्ज के नज़दीक तक पहुच गये.
हुआ यौं कि जब हम मंदिर में लेटे थे, तब वो जो लड़के मैने ठोके थे उस दिन, वोही लड़के नहर के दूसरी साइड बैठे थे, उन्होने मुझे देख लिया पर मेरी नज़र उन पर नही पड़ी.
लेकिन जैसे ही हम नहर पर टहलने निकले, वो वहाँ से रफ्फु चक्कर हो गये, और अपने गाँव जाके, अपने घरवालों और दोस्तों को ले आए.
हम उस ब्रिड्ज पर थोड़ी देर बैठने के मूड में थे, लेकिन जैसे ही हम ब्रिड्ज के पास पहुँचे, उसी ब्रिड्ज से आते हुए, 8-10 लोग लाठियाँ डंडे हाथों में लिए हमारी ओर आते दिखे..
जैसे ही हमने उन्हें देखा, मैने झट से उनमें से एक लड़के को पहचान लिया, और धनंजय से बोला…
मे- धन्नु लगता है हम फँस गये… ये लोग हमें ही ठोकने आरहे हैं.
धनंजय - डरते हुए… क्या बात करता है यार..
मे- में सही कह रहा हूँ, ये साले वोही हैं जो उस दिन ठुक के गये थे..
धनंजय - अब क्या करें…?
मे- कुछ नही गान्ड कुटवा लेते हैं और क्या..
धनंजय - मज़ाक नही यार, जल्दी बोल अब क्या करें..
तब तक वो लोग हमारे और नज़दीक आ गये थे..
मे- धीमी आवाज़ में फुसफुसाते हुए… देख हमे सिर्फ़ इनके वार को बचाना है, उससे पहले एक-एक लाठी अपने हाथ में आ जानी चाहिए..
डरना मत हम वेल ट्रेंड हैं इन मामलों में सिर्फ़ विवेक से काम लेना बस.. अब देख एक ड्रामा करते हैं, तू सिर्फ़ साथ देते जा..
और तभी मैने धनंजय का कॉलर पकड़ लिया, वो तुरंत मेरी चाल समझ गया..
मे- उसका कॉलर पकड़ के…! साले फँसा दिया ना मुझे, आख़िर अपने इलाक़े का ही साथ दिया ना तूने, मुझे यहाँ लाने की तेरी चाल थी ना ये..?
धनंजय - मेरे कॉलर पकड़ते हुए..क्या बकवास कर रहा बेह्न्चोद.. उल्टा तेरी वजह से मे भी मुसीबत में फँस गया..ना तू उस दिन उन लड़कों को मारता और ना ये सब नौबत आती..
वो सब आश्चर्य चकित रह गये, और हमें आपस में ही भिडते हुए देखने लगे..