hotaks444
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तभी उसकी मम्मी आ गई..! हमने खड़े होके नमस्ते की, उन्होने हमारे बारे मे रिंकी से पुछा..!
मम्मी- ये कॉन हैं रिंकी..?
रिंकी- मम्मी, ये अरुण है, एक्सवाई गाँव का है, आपको याद है, हमारे कॉलेज का फंक्षन..?
मम्मी- हां..! याद है, मैने तो वो पूरा प्रोग्राम देखा था..
रिंकी- मेरे साथ जो डुयेट गया था… पहचाना नही…?
मम्मी- ओह्ह..अच्छा वो अरुण है…! कैसे हो बेटा, क्या कर रहे हो आजकल..?
मे- मे ठीक हूँ आंटीजी, आजकल इंजिनियरिंग कर रहा हूँ,
रिंकी- वो न्यूज़ याद है मम्मी आपको, दो महीने पहले एक ड्रग माफिया का सफ़ाया वाली..!
मम्मी- हां.. हां वो *** शहर की..?
रिंकी- हां, वो इन्होने ही किया था उस गॅंग का सफ़ाया…
मम्मी- क्याअ..? सच में..? तुम तो बड़े बहादुर हो..? और ये कॉन है बेटा..?
मे- ये मेरा दोस्त है, हम दोनो और भी 6 दोस्त थे सबने मिलके किया था ये काम.
ऐसे ही कुछ देर और बात-चीत होती रही, फिर हम उठके चलने लगे.. तो रिंकी बोली, मम्मी मे इन्हें बाहर तक छोड़ के आती हूँ..!
मम्मी- हम.. ठीक है, जल्दी आना..
धनंजय को मैने इशारा कर दिया तो वो थोड़ा पहले गेट से बाहर आगया, और फिर जैसे ही हम मेन गेट तक पहुँचे, मैने मूड के पीछे देखा कि उसकी मम्मी तो नही आरहि.
फिर उसको पकड़ के एक लंबी सी किस… कि, अपने लौटने का डेट/ टाइम दिया और बाइ बोलके निकल आया..!
वो बहुत देर तक गेट से हमें देखती रही, जबतक उसकी नज़रों से ओझल नही हो गये….!
रास्ते में- अरुण भाभी तो बहुत सुंदर ढूढ़ ली यार, मानना पड़ेगा, हर काम तेरा पर्फेक्षन से होता है कैसे मिली ? बोला धनंजय..
मे- हंसते हुए..! ऐसा कुछ नही है यार.., पता नही हम एक हो पाएगे या नही..? अपने यहाँ जात-पात का बड़ा लोचा रहता है यार.. ये जैन है, मे पंडित तो पता नही आगे क्या होगा..?
और मैने गाँव तक उसको अपने मिलन का पूरा किस्सा सुना दिया, वो बड़ा इंप्रेस हुआ हमारी प्रेम कहानी सुन कर.
कुछ दिन और हमने मेरे गाँव मे निकाले खेत वग़ैरह घूमे.. उसको बताया कैसे मेहनत करके मैने पढ़ाई की, कितने मुश्किल दौर से गुजरा था मेरा बचपन…!
धनंजय- अब पता लगा साले तू इतना टफ क्यों है, और हमारी भी मारके रखता है..!
मे- क्यों तुझे पसंद नही है मेरा बिहेवियर ..?
धनंजय- साले पसंद नही होता तो साथ रहता क्या..? तेरी एक आवाज़ पर मर-खपने को तैयार रहता..? मेरे गले लगते हुए.. अब मत करना ऐसी बात वारना तेरी गान्ड मार लूँगा.. समझा...!!
और फिर एक दिन निकल लिए धनंजय के गाँव..
उसका घर एक हवेली नुमा काफ़ी बड़ा था, घर के सामने बड़ी सी चौपाल जिस पर ज़्यादा तर समय गाँव के बहुत से लोग बैठे रहते थे, हुक्का गुडगुडाते हुए..!
उसके पिता जी इस गाँव के मुखिया थे और लोग भी उन्हें इसी नाम से बुलाते थे..!
जब हम शाम के समय वहाँ पहुँचे तब भी वहाँ गाँव के बड़े-छोटे कम-से-कम 20-25 लोग बैठे थे..!
हमें देखते ही उसके पिता जी खुशी से चीख ही पड़े…धन्नु… मेरा धन्नु आ गया रे.. आ..आजा.. मेरे शेर..!
धनंजय ने आगे बढ़कर उनके पैर छुए.. तो उन्होने उसे गले से लगा लिया..मेरे बारे में पुचछा, तो उसने सब बताया..मे जब उनके पैर लगने लगा तो उन्होने मेरे कंधे पकड़ के रोक लिया, और कहा..
नही बेटा… ये पाप हम पर ना चढ़ो.. तुम ब्राह्मण पुत्र हो, और ब्राह्मण सदैव हमारे पूज्य,नीय रहे हैं,
मे- अरे अंकल आप मेरे पिता समान हैं, तो मेरा फ़र्ज़ ज़्यादा बनता है..
वो- वो सब शहरों मे ठीक है बेटा, हमें गाँव की परंपरा निभाने दो..!
फिर घर के अंदर गये, धनंजय की माँ से मिले, उसके एक बड़े भाई थे कोई 6 साल बड़े.. शादी हो चुकी थी.. भाभी बड़ी सुंदर और सुशील लगी, हल्के से घूँघट मे,
लंबा कद, 34 के बूबे, कमर एकदम पतली, पर ताजी-ताजी भैया की रातों की मेहनत का असर उसके गोल-मटोल कुल्हों पर सॉफ दिख रहा था.
हो सकता है घोड़ी बनके चोदने मे ज़्यादा शौक रखते होंगे, कसी हुई शादी में कुछ ज़्यादा ही मस्त लग रहे थे.
वैसे भी गाँव देहात और उपर से ठाकुरों के घर की परंपरा.. तो थोड़ा लाज-परदा होता ही है.
एक बेहन जो अरुण से 2 साल बड़ी, उसकी शादी होनी थी अभी.. गोरी चिटी, अच्छे नैन नक्श, गोल चेहरा, लंबे बाल सलवार सूट मे कसी हुई गोल-गोल चुचियाँ ना ज़्यादा छोटी, ना ज़्यादा बड़ी.
एकदम सपाट पेट, पतली कमर, हल्के पीछे को उभरे हुए कूल्हे, कुल मिलकर देसी माल लगती थी वो.
मेरी तरह धनंजय भी अपने बेहन भाइयों मे सबसे छोटा था.
चाइ नाश्ता करने के बाद, हम गाँव घूमने निकल गये, गाँव ज़्यादा बड़ा तो नही था पर ठीक तक था, जैसे गाँव होते थे उस जमाने में.
मम्मी- ये कॉन हैं रिंकी..?
रिंकी- मम्मी, ये अरुण है, एक्सवाई गाँव का है, आपको याद है, हमारे कॉलेज का फंक्षन..?
मम्मी- हां..! याद है, मैने तो वो पूरा प्रोग्राम देखा था..
रिंकी- मेरे साथ जो डुयेट गया था… पहचाना नही…?
मम्मी- ओह्ह..अच्छा वो अरुण है…! कैसे हो बेटा, क्या कर रहे हो आजकल..?
मे- मे ठीक हूँ आंटीजी, आजकल इंजिनियरिंग कर रहा हूँ,
रिंकी- वो न्यूज़ याद है मम्मी आपको, दो महीने पहले एक ड्रग माफिया का सफ़ाया वाली..!
मम्मी- हां.. हां वो *** शहर की..?
रिंकी- हां, वो इन्होने ही किया था उस गॅंग का सफ़ाया…
मम्मी- क्याअ..? सच में..? तुम तो बड़े बहादुर हो..? और ये कॉन है बेटा..?
मे- ये मेरा दोस्त है, हम दोनो और भी 6 दोस्त थे सबने मिलके किया था ये काम.
ऐसे ही कुछ देर और बात-चीत होती रही, फिर हम उठके चलने लगे.. तो रिंकी बोली, मम्मी मे इन्हें बाहर तक छोड़ के आती हूँ..!
मम्मी- हम.. ठीक है, जल्दी आना..
धनंजय को मैने इशारा कर दिया तो वो थोड़ा पहले गेट से बाहर आगया, और फिर जैसे ही हम मेन गेट तक पहुँचे, मैने मूड के पीछे देखा कि उसकी मम्मी तो नही आरहि.
फिर उसको पकड़ के एक लंबी सी किस… कि, अपने लौटने का डेट/ टाइम दिया और बाइ बोलके निकल आया..!
वो बहुत देर तक गेट से हमें देखती रही, जबतक उसकी नज़रों से ओझल नही हो गये….!
रास्ते में- अरुण भाभी तो बहुत सुंदर ढूढ़ ली यार, मानना पड़ेगा, हर काम तेरा पर्फेक्षन से होता है कैसे मिली ? बोला धनंजय..
मे- हंसते हुए..! ऐसा कुछ नही है यार.., पता नही हम एक हो पाएगे या नही..? अपने यहाँ जात-पात का बड़ा लोचा रहता है यार.. ये जैन है, मे पंडित तो पता नही आगे क्या होगा..?
और मैने गाँव तक उसको अपने मिलन का पूरा किस्सा सुना दिया, वो बड़ा इंप्रेस हुआ हमारी प्रेम कहानी सुन कर.
कुछ दिन और हमने मेरे गाँव मे निकाले खेत वग़ैरह घूमे.. उसको बताया कैसे मेहनत करके मैने पढ़ाई की, कितने मुश्किल दौर से गुजरा था मेरा बचपन…!
धनंजय- अब पता लगा साले तू इतना टफ क्यों है, और हमारी भी मारके रखता है..!
मे- क्यों तुझे पसंद नही है मेरा बिहेवियर ..?
धनंजय- साले पसंद नही होता तो साथ रहता क्या..? तेरी एक आवाज़ पर मर-खपने को तैयार रहता..? मेरे गले लगते हुए.. अब मत करना ऐसी बात वारना तेरी गान्ड मार लूँगा.. समझा...!!
और फिर एक दिन निकल लिए धनंजय के गाँव..
उसका घर एक हवेली नुमा काफ़ी बड़ा था, घर के सामने बड़ी सी चौपाल जिस पर ज़्यादा तर समय गाँव के बहुत से लोग बैठे रहते थे, हुक्का गुडगुडाते हुए..!
उसके पिता जी इस गाँव के मुखिया थे और लोग भी उन्हें इसी नाम से बुलाते थे..!
जब हम शाम के समय वहाँ पहुँचे तब भी वहाँ गाँव के बड़े-छोटे कम-से-कम 20-25 लोग बैठे थे..!
हमें देखते ही उसके पिता जी खुशी से चीख ही पड़े…धन्नु… मेरा धन्नु आ गया रे.. आ..आजा.. मेरे शेर..!
धनंजय ने आगे बढ़कर उनके पैर छुए.. तो उन्होने उसे गले से लगा लिया..मेरे बारे में पुचछा, तो उसने सब बताया..मे जब उनके पैर लगने लगा तो उन्होने मेरे कंधे पकड़ के रोक लिया, और कहा..
नही बेटा… ये पाप हम पर ना चढ़ो.. तुम ब्राह्मण पुत्र हो, और ब्राह्मण सदैव हमारे पूज्य,नीय रहे हैं,
मे- अरे अंकल आप मेरे पिता समान हैं, तो मेरा फ़र्ज़ ज़्यादा बनता है..
वो- वो सब शहरों मे ठीक है बेटा, हमें गाँव की परंपरा निभाने दो..!
फिर घर के अंदर गये, धनंजय की माँ से मिले, उसके एक बड़े भाई थे कोई 6 साल बड़े.. शादी हो चुकी थी.. भाभी बड़ी सुंदर और सुशील लगी, हल्के से घूँघट मे,
लंबा कद, 34 के बूबे, कमर एकदम पतली, पर ताजी-ताजी भैया की रातों की मेहनत का असर उसके गोल-मटोल कुल्हों पर सॉफ दिख रहा था.
हो सकता है घोड़ी बनके चोदने मे ज़्यादा शौक रखते होंगे, कसी हुई शादी में कुछ ज़्यादा ही मस्त लग रहे थे.
वैसे भी गाँव देहात और उपर से ठाकुरों के घर की परंपरा.. तो थोड़ा लाज-परदा होता ही है.
एक बेहन जो अरुण से 2 साल बड़ी, उसकी शादी होनी थी अभी.. गोरी चिटी, अच्छे नैन नक्श, गोल चेहरा, लंबे बाल सलवार सूट मे कसी हुई गोल-गोल चुचियाँ ना ज़्यादा छोटी, ना ज़्यादा बड़ी.
एकदम सपाट पेट, पतली कमर, हल्के पीछे को उभरे हुए कूल्हे, कुल मिलकर देसी माल लगती थी वो.
मेरी तरह धनंजय भी अपने बेहन भाइयों मे सबसे छोटा था.
चाइ नाश्ता करने के बाद, हम गाँव घूमने निकल गये, गाँव ज़्यादा बड़ा तो नही था पर ठीक तक था, जैसे गाँव होते थे उस जमाने में.