hotaks444
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मैने चारपाई पर साइड को खिसक कर जगह बनाई और बोला- अरे छोटी शेरनी कब आई ? आओ बैठो.
वो मेरे पास नीचे को पैर लटका कर बैठ गयी, मैने कहा- और सूनाओ आज मेरे पास कैसे आई.. कोई काम था..?
वो - काम तो आप आपा के ही करते हो, मेरी तो यहाँ कोई परवाह ही नही करता, छोटी हूँ ना इसलिए..!
मे उठ कर सिरहाने की ओर बैठ गया और बोला - अरे ! ये क्या कह रही हो तुम..?
आज इस घर में, मे हूँ ही तुम्हारी वजह से, और तुम कह रही हो कि मे तुम्हारी कोई परवाह नही करता…!
बोलो क्या करूँ मे तुम्हारे लिए..?
वो नज़र झुकाए ही बोली - आप आपा से कितना प्यार करते हैं, और मेरी ओर नज़र उठा के भी नही देखते, क्या मे इतनी बुरी दिखती हूँ..?
मे चोंक गया और बोला – आपा से प्यार करते हैं मतलब..? फिर उसकी ठोडी के नीचे हाथ लगा कर अपनी ओर उसका चेहरा करके बोला –
तुमसे ये किसने कहा कि तुम बदसूरत हो, सच कहूँ तो तुमसे ज़्यादा कमसिन और हसीन लड़की मैने आज तक नही देखी.
वो अभी भी नज़रें नही मिला रही थी, फिर भी झेन्प्ते हुए बोली – मैने आपा और आप दोनो को प्यार करते हुए देखा है, कल शाम को और रात को भी.
मे – क्या..? क्या देखा है तुमने..?
वो - सब कुछ..! और वो सब देखते हुए, ना जाने क्यों मुझे अपनी बड़ी बेहन से जलन सी हो रही थी.
मैने उसके चेहरे को अपने दोनो हाथों में ले लिया और उसकी आँखों में झाँकते हुए पुछा- तो अब तुम क्या चाहती हो..? जो तुम कहोगी मे वही करूँगा.
वो ज़मीन पर नज़रें गढ़ाए, झेंपती हुई बोली - मुझे भी मेरे हिस्से का प्यार चाहिए,
मैने उसके चेहरे को उपर करते हुए कहा – हिस्सा ऐसे माँगा जाता है..? नज़रें झुका कर…
मुझ पर तुम्हारा पहला हक़ है, और हक़ आँखों में आँखे डालकर लिया जाता है, ना कि झुका कर…
और रही बात तुम्हारे हिस्से की, तो बिल्कुल मिलेगा क्यों नही मिलेगा मेरी गुड़िया को उसके हिस्से का प्यार,
मे तो इसलिए पहल नही कर रहा था कि कहीं तुम ग़लत ना समझो मेरे प्यार को, वरना तुम तो मुझे पहले दिन से ही भा गयी थी.
ये कहकर मैने उसे खींच कर अपने सीने से लगा लिया, उसके कठोर 32 के उभार मेरे सीने में गढ़ने लगे.
उसने अपना चेहरा मेरे चौड़े कंधे में छुपा कर कहा- सच..!
मैने उसके अन्छुए पतले-2 सुर्ख रसीले लवो को चूम लिया और कहा- मुच.
शाकीना ! मेरी जान, तुम तो मेरे दिल का वो नगीना हो, जिससे हर किसी को नही दिखाया जाता, छुपा कर रखना होता है.
मेरी बात सुन कर वो मेरे सीने से लिपट गयी, अपनी मरमरी बाहों का घेरा मेरी पीठ पर कस लिया.
कुछ देर मैने उसे ऐसे ही लिपटे रहने दिया, फिर उसके कंधे पकड़ कर अलग किया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा-
लेकिन पहली बार प्यार में कुछ कुर्बनिया देनी होती है, उसके लिए तैयार हो.
वो - हां ! मुझे पता है, पहली बार तो सबको ही देनी पड़ती हैं, तो मे क्यों नही, फिर आप जैसा समझदार इंसान जब प्यार करे तो मुझे डरने की क्या ज़रूरत..!
उसकी सहमति जान मैने उसे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और उसके गाल पर अपनी खुरदूरी दाढ़ी रगड़ते हुए उसके कश्मीरी सेबों को सहला कर कहा-
तो फिर आज चलो जानवरों को लेकर वहीं झरने के पास, हम वहीं प्यार करेंगे.
मेरी बात से वो इतनी खुश हो गयी, कि मेरे चेहरे पर उसने अनगिनत चुंबन जड़ डाले…,
फिर मेरी गोद से उठ कर किसी चंचल हिरनी की तरह कुलाँचे भरती हुई घर के अंदर चली गयी अपनी आमी को बोलने की वो जानवरों को चराने जा रही है…
वो जल्दी से जल्दी उस स्वर्गीय आनंद को पाने की खुशी में , जिसकी झलक उसने अपनी बेहन को लेते हुए देखी थी,
और जिसकी झलक मात्र से ही अपनी मुनिया भिगो ली थी, उसने जानवरों को बाडे से निकाला और हांक दिया झरने वाले मैदान की तरफ…!
ये एक हरा-भरा घस्स का मैदान था, जिसके एक तरफ उँचे-2 घने पेड़ थे, फिर थोड़ा ढलान लिए हुए वो मैदान जिसके दूसरी ओर एक दम साफ नीले पानी की झील जैसी थी, जिसका पानी एक झरने से निकल कर जमा हो रहा था.
जहाँ पानी जमा हो रहा था उसकी गहराई कुछ ज़्यादा नही थी सीधे खड़े होने पर मेरे सीने तक आता,
अतिरिक्त पानी, एक पतली सी पत्थरीली नहर से अंदर जंगल में से होता हुआ नीचे के इलाक़ों में जा रहा था.
हमने जानवरों को उस मैदान में छोड़ दिया घास खाने, और एक पेड़ के नीचे एक बिछवन डालकर उसके उपर बैठ गये.
मेरा उस झील और झरने के अंदर पानी में घुसकर मज़ा लेने का मन था, सो मैने शाकीना से कहा –
मेरा नहाने का मन है, क्या तुम मेरे साथ नहाना चाहोगी ?
वो – मे तो अपने कपड़े भी नही लाई, तो कैसे नहा सकती हूँ ?
मे – अरे यार ! कपड़े पहन कर कॉन नहाता है..? ब्रा-पेंटी तो पहनी ही होगी ना..! वही पहन कर नहा लो, अंदर पानी में कॉन देखता है..!
वो – नही मुझे हया आएगी..!
मे – मेरे अलावा यहाँ और कॉन है जिससे हया आएगी..?
वो फिर भी नही मानी, मैने अपने कपड़े निकाले और मात्र अंडरवेर में मैने पानी में छलान्ग लगा दी, और तैरने लगा.
शाकीना मुझे नहाते हुए देख रही थी, झील के ठंडे-2 पानी में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था, मैने उसको इशारा किया पानी में आने के लिए.
जब वो नही आई तो मैने झरने का रुख़ किया और तैरते-2 झरने के पास पहुँच गया, जहाँ पत्थरों से पानी टकरा कर सफेद रूई के माफिक लग रहा था.
जब मैने पीछे मूड कर शाकीना क़ी ओर देखा तो वो मुझे उस बिछवन के पास नही दिखी.
कुछ देर वहीं एक पत्थर पर बैठ मे उसका इंतजार करता रहा, वो फिर भी नही दिखी, तो मेरे मन में शंका के बादल उठने लगे.
मैने वहीं बैठे-2 उसको आवाज़ दी, लेकिन कोई जबाब ना पाकर मे लौटने लगा.
अभी मे बीच में ही पहुँचा था कि मेरे पास ही पानी के अंदर वो दिखाई दी, किसी सुनहरी जलपरी सी, एक छोटी सी ब्रा और पेंटी में.
पानी साफ होने के कारण वो मुझे साफ-2 दिख रही थी.
वो मेरे पास नीचे को पैर लटका कर बैठ गयी, मैने कहा- और सूनाओ आज मेरे पास कैसे आई.. कोई काम था..?
वो - काम तो आप आपा के ही करते हो, मेरी तो यहाँ कोई परवाह ही नही करता, छोटी हूँ ना इसलिए..!
मे उठ कर सिरहाने की ओर बैठ गया और बोला - अरे ! ये क्या कह रही हो तुम..?
आज इस घर में, मे हूँ ही तुम्हारी वजह से, और तुम कह रही हो कि मे तुम्हारी कोई परवाह नही करता…!
बोलो क्या करूँ मे तुम्हारे लिए..?
वो नज़र झुकाए ही बोली - आप आपा से कितना प्यार करते हैं, और मेरी ओर नज़र उठा के भी नही देखते, क्या मे इतनी बुरी दिखती हूँ..?
मे चोंक गया और बोला – आपा से प्यार करते हैं मतलब..? फिर उसकी ठोडी के नीचे हाथ लगा कर अपनी ओर उसका चेहरा करके बोला –
तुमसे ये किसने कहा कि तुम बदसूरत हो, सच कहूँ तो तुमसे ज़्यादा कमसिन और हसीन लड़की मैने आज तक नही देखी.
वो अभी भी नज़रें नही मिला रही थी, फिर भी झेन्प्ते हुए बोली – मैने आपा और आप दोनो को प्यार करते हुए देखा है, कल शाम को और रात को भी.
मे – क्या..? क्या देखा है तुमने..?
वो - सब कुछ..! और वो सब देखते हुए, ना जाने क्यों मुझे अपनी बड़ी बेहन से जलन सी हो रही थी.
मैने उसके चेहरे को अपने दोनो हाथों में ले लिया और उसकी आँखों में झाँकते हुए पुछा- तो अब तुम क्या चाहती हो..? जो तुम कहोगी मे वही करूँगा.
वो ज़मीन पर नज़रें गढ़ाए, झेंपती हुई बोली - मुझे भी मेरे हिस्से का प्यार चाहिए,
मैने उसके चेहरे को उपर करते हुए कहा – हिस्सा ऐसे माँगा जाता है..? नज़रें झुका कर…
मुझ पर तुम्हारा पहला हक़ है, और हक़ आँखों में आँखे डालकर लिया जाता है, ना कि झुका कर…
और रही बात तुम्हारे हिस्से की, तो बिल्कुल मिलेगा क्यों नही मिलेगा मेरी गुड़िया को उसके हिस्से का प्यार,
मे तो इसलिए पहल नही कर रहा था कि कहीं तुम ग़लत ना समझो मेरे प्यार को, वरना तुम तो मुझे पहले दिन से ही भा गयी थी.
ये कहकर मैने उसे खींच कर अपने सीने से लगा लिया, उसके कठोर 32 के उभार मेरे सीने में गढ़ने लगे.
उसने अपना चेहरा मेरे चौड़े कंधे में छुपा कर कहा- सच..!
मैने उसके अन्छुए पतले-2 सुर्ख रसीले लवो को चूम लिया और कहा- मुच.
शाकीना ! मेरी जान, तुम तो मेरे दिल का वो नगीना हो, जिससे हर किसी को नही दिखाया जाता, छुपा कर रखना होता है.
मेरी बात सुन कर वो मेरे सीने से लिपट गयी, अपनी मरमरी बाहों का घेरा मेरी पीठ पर कस लिया.
कुछ देर मैने उसे ऐसे ही लिपटे रहने दिया, फिर उसके कंधे पकड़ कर अलग किया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा-
लेकिन पहली बार प्यार में कुछ कुर्बनिया देनी होती है, उसके लिए तैयार हो.
वो - हां ! मुझे पता है, पहली बार तो सबको ही देनी पड़ती हैं, तो मे क्यों नही, फिर आप जैसा समझदार इंसान जब प्यार करे तो मुझे डरने की क्या ज़रूरत..!
उसकी सहमति जान मैने उसे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और उसके गाल पर अपनी खुरदूरी दाढ़ी रगड़ते हुए उसके कश्मीरी सेबों को सहला कर कहा-
तो फिर आज चलो जानवरों को लेकर वहीं झरने के पास, हम वहीं प्यार करेंगे.
मेरी बात से वो इतनी खुश हो गयी, कि मेरे चेहरे पर उसने अनगिनत चुंबन जड़ डाले…,
फिर मेरी गोद से उठ कर किसी चंचल हिरनी की तरह कुलाँचे भरती हुई घर के अंदर चली गयी अपनी आमी को बोलने की वो जानवरों को चराने जा रही है…
वो जल्दी से जल्दी उस स्वर्गीय आनंद को पाने की खुशी में , जिसकी झलक उसने अपनी बेहन को लेते हुए देखी थी,
और जिसकी झलक मात्र से ही अपनी मुनिया भिगो ली थी, उसने जानवरों को बाडे से निकाला और हांक दिया झरने वाले मैदान की तरफ…!
ये एक हरा-भरा घस्स का मैदान था, जिसके एक तरफ उँचे-2 घने पेड़ थे, फिर थोड़ा ढलान लिए हुए वो मैदान जिसके दूसरी ओर एक दम साफ नीले पानी की झील जैसी थी, जिसका पानी एक झरने से निकल कर जमा हो रहा था.
जहाँ पानी जमा हो रहा था उसकी गहराई कुछ ज़्यादा नही थी सीधे खड़े होने पर मेरे सीने तक आता,
अतिरिक्त पानी, एक पतली सी पत्थरीली नहर से अंदर जंगल में से होता हुआ नीचे के इलाक़ों में जा रहा था.
हमने जानवरों को उस मैदान में छोड़ दिया घास खाने, और एक पेड़ के नीचे एक बिछवन डालकर उसके उपर बैठ गये.
मेरा उस झील और झरने के अंदर पानी में घुसकर मज़ा लेने का मन था, सो मैने शाकीना से कहा –
मेरा नहाने का मन है, क्या तुम मेरे साथ नहाना चाहोगी ?
वो – मे तो अपने कपड़े भी नही लाई, तो कैसे नहा सकती हूँ ?
मे – अरे यार ! कपड़े पहन कर कॉन नहाता है..? ब्रा-पेंटी तो पहनी ही होगी ना..! वही पहन कर नहा लो, अंदर पानी में कॉन देखता है..!
वो – नही मुझे हया आएगी..!
मे – मेरे अलावा यहाँ और कॉन है जिससे हया आएगी..?
वो फिर भी नही मानी, मैने अपने कपड़े निकाले और मात्र अंडरवेर में मैने पानी में छलान्ग लगा दी, और तैरने लगा.
शाकीना मुझे नहाते हुए देख रही थी, झील के ठंडे-2 पानी में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था, मैने उसको इशारा किया पानी में आने के लिए.
जब वो नही आई तो मैने झरने का रुख़ किया और तैरते-2 झरने के पास पहुँच गया, जहाँ पत्थरों से पानी टकरा कर सफेद रूई के माफिक लग रहा था.
जब मैने पीछे मूड कर शाकीना क़ी ओर देखा तो वो मुझे उस बिछवन के पास नही दिखी.
कुछ देर वहीं एक पत्थर पर बैठ मे उसका इंतजार करता रहा, वो फिर भी नही दिखी, तो मेरे मन में शंका के बादल उठने लगे.
मैने वहीं बैठे-2 उसको आवाज़ दी, लेकिन कोई जबाब ना पाकर मे लौटने लगा.
अभी मे बीच में ही पहुँचा था कि मेरे पास ही पानी के अंदर वो दिखाई दी, किसी सुनहरी जलपरी सी, एक छोटी सी ब्रा और पेंटी में.
पानी साफ होने के कारण वो मुझे साफ-2 दिख रही थी.