Antarvasna kahani नजर का खोट - Page 6 - SexBaba
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Antarvasna kahani नजर का खोट

मैं और वो उसके कमरे में आ गए वो मेरे पास आ लेटी मैंने उसे अपने से चिपका लिया उसने भी दूर जाने की कोशिश नहीं की उसके पसीने की हलकी सी महक मुझ पर नशा सा करने लगी मैंने अपना हाथ उसकी नाभि पर रख दिया 

वो- क्या इरादा है 

मैं- कुछ नहीं 

वो- पर एक बात समझ नहीं आयी तुम्हारी साइकिल क्यों ले गयी और फिर उसका जलना मतलब जब उसे जलना ही था तो साइकिल का क्या करेगी

मैं- यही तो समझ नहीं आया एक बात हो सकती है जंगल के पार दस पंद्रह किलोमीटर सरहदी इलाका है तो क्या पता कोई तस्कर लोगो ने ये खेल खेला हो अपना माल रखते हो बावड़ी मे

वो- नहीं, देखो तस्कर लोग इस इलाके में नहीं आते है दूसरा बावड़ी मे कुछ और ही चक्कर है क्योंकि तुमने बताया न की रात को दरवाज़ा खुल गया था पर सुबह बात दूसरी थीं ये कोई और चक्कर है पर अगर बात भूत प्रेतों की हुई तो मामला गंभीर होगा और तब हमें किसी सयाने की मदद लेनी होंगी

मैंने अपना हाथ उसके पेट से सरकाते हुए उसकी चूचियो तक पहुचा दिया और उनको धीरे से सहलाते हुए बोला- भूतनी थी तो उसने मुझे नुकसान क्यों नहीं पहुचाया जिस तरीक़े से उसने अपनी बाहे फैलायी थीं और उसकी वो आँखे ऐसा लगता था की जैसे मैं जानता हूं 

वो-भूत प्रेत हज़ार भेस बदल लेते है ,आह धीरे दबा न

मैंने थोड़ा जोर से उसकी चूची को मसल दिया था 

मैं-देखते है रात को 

मैंने उसे अपनी और खींच लिया और उसके निचले होंठ को अपने दोनों होंठो के बीच दबा लिया उसने अपनी बाह मेरी पीठ पर रख दी और मुझे चूमने का पूरा मौका दिया उसने मैंने उसका हाथ अपने लण्ड पर रख दिया और वो पेण्ट के ऊपर से ही उसको रगड़ने लगी

मैं- पूजा ऐसी ही बावड़ी लाल मंदिर में भी है 

वो- हाँ वो मेरे पिताजी ने बनायीं थी 

मैं- तब तो तू ये भी जानती होगी की लाल मंदिर में ।।।।।।

"Shhhhh मैंने कहा था न कुंदन की तू मुझसे अतीत के बारे में सवाल नहीं करेगा " वो बोली

मैं- हां याद है 

कहकर मैंने उसकी सलवार का नाडा खोल दिया अंदर उसने चड्डी नहीं पहनी थी सलवार उतरते ही उसने एक चादर से हम दोनों को ढक लिया मैं उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भरके सेहलाने लगा 

मैं-अगर रात को मुझे कुछ हो गया तो 

वो- जबतक मैं हु कुछ नहीं होने दूंगी और मैं न रही तो बात और है 

उसने मेरी पेण्ट को खोल दिया और लण्ड को अपनी मुट्ठी के दबा लिया इस बीच मेरी ऊँगली उसकी चूत की दरार पर पहुच गयी थी जैसे ही मैंने अंदर डालने की कोशिश की उसने अपनी टांगो को भींच लिया ओर मुझसे लिपट गयी

एक बार फिर से हम दोनों के होंठ आपस में जुड़ गए थे बदन से बदन जो रगड़ खा रहे थे तो उत्तेजना अपने चरम पर आने लगी थी पर हमारी भी हदे थी तो मैंने उसे अपने से दूर कर दिया 

मैं-पूजा जमीन पर खेती होगी ना 

वो- जरूर होगी मुझे तुम पर भरोसा है 

मैं- पिछले कुछ दिनो में मैं ऐसा उलझा अगर तुम न होती तो मैं कुछ नहीं कर पाता

वो- चल अब झूठी तारीफे ना कर सोते है थोड़ी देर रात को जागना है 

मैं- मैं तू इस तरह पास रहेगी तो सो न पाउँगा

वो- कपडे भी तूने ही उतारे है 

मैं- बात वो नहीं है मैं एक पप्पी लेना चाहता हु 

वो- तो इसमें पूछना क्या ले ले

मैं- यहाँ लेना चाहता हु 

बोलकर मैंने उसकी चूत पर हाथ रख दिया पूजा बुरी तरह से शर्मा गई 

वो- सो जा 

एक बार फिर से उसे अपने सीने से लगा लिया और ऐसे ही उसे अपनी बाहों में लिए लिए कुछ देर के लिए हम सो गए जब मेरी आँख खुली तो वो बिस्तर पर नहीं थी बाहर हल्का हल्का सा अँधेरा हो रहा था मैं कुछ ज्यादा ही सो गया था मैंने हाथ मुह धोये और फिर पूजा को देखा वो दूसरे कमरे में थी

मैंने देखा उसने वो ही काले कपडे पहने हुए थे जो जब मैं पहली बार उससे मिला था तब पहने थे 

मैं- तैयार है 

वो- हाँ तू कुछ खायेगा 

मैं- नहीं चाय पीने की इच्छा है 

वो- चाय नहीं मिलेगी दूध नहीं है पशु बेच दिए तो दूध का जुगाड़ नहीं है

मैं- कोई नहीं पर और थोड़ा अँधेरा घिर आये फिर चलते है 

वो- जैसा तुझे ठीक लगे 

तो करीब घंटे भर बाद हम दोनों पैदल खारी बावड़ी की तरफ चल दिए हमारे पास एक टोर्च भी थी जो बहुत काम आ सकती थी वातावरण में रोज जैसी ही ख़ामोशी भरी पड़ी थी हम दोनों वहाँ पहुचे और देखा की आज वहाँ पर दो दीये जले हुए थे

मैं- कल एक था आज दो है 

वो- देखने दे 

पूजा ने दोनों दियो को कुछ देर देखा और फिर वापिस अपनी जगह पर रख दिया अब हम लोग उस तरफ चले जहा वो राख थी पर अब वहां कुछ नहीं था 

मैं- राख कहा गयी 

वो- मुझे क्या पता 

उसने मेरी बतायी जगह को सूंघ कर देखा और फिर किताब में से कुछ पढ़ा और चावल के कुछ दाने उस जगह पर बिखेर दिए जो कुछ पल में ही काले पड़ गए पूजा धीरे से बोली- कुछ है यहाँ 

मैं- क्या 

वो- पता नहीं पर कुछ है देखो दाने काले पड गए 

मैं- किताब में पढ़ के कुछ कर फिर

वो- क्या करूँ ये किताब तो मैंने मेले में ली थी इसके मन्त्र कैसे काम करते है कुछ उल्टा सीधा हो गया तो

मैं- वो भी देखेंगे मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है जब तू मेरे साथ है तो मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं हो सकता 

वो- इतना भरोसा मत कर मुझ पर कुंदन 

मैं- अब है तो है 

हम बाते कर ही रहे थे की वो दोनों दिए झट से बुझ गए और जैसे ही दिये बुझे अँधेरा गहरा सा लगने लगा हम दौड़ कर दियो के पास आये हवा भी इतनी तेज नहीं थी की उसके जोर से ही वो बुझ जाये खैर मैंने माचिस जलायी और दियो को फिर से रोशन किया 

पूजा- क्या लगता है 

मैं- मुझे क्या पता 

वो- आओ वो कमरा देखते है 

तो मैं और वो उस कमरे के पास आये अब उसके दरवाजे पर ताला नहीं था दरवाजे के पास वो ही पानी की हांडी थी मैंने ढक्कन हटाया पानी लबालब था उसमें मैं पीने ही वाला था की पूजा ने मुझे रोका और बोली-रुक जरा देखने दे

मैं- पानी ही तो है 

पर उसने टोर्च जलायी और हांड़ी की तरफ की और अब होश उड़ने की बारी मेरी थी क्योंकि जिसे मैं पानी समझ रहा था वो पानी नहीं बल्कि खून था मुझे तो देखते ही उबाक सी आयी और तभी टोर्च बुझ गयी अब इसे क्या हुआ मैंने कोशिश की पर वो नहीं जली
पूजा दौड़ कर गयी दिया लेने ताकी कुछ रौशनी हो पर उसे झटका सा लगा क्योंकि वहाँ दिए थे ही नहीं मेरा माथा थोड़ा सा घूमने लगा जैसे कुछ गलत सा होने लगा हो ऊपर से मैं पूजा को भी अपने साथ ले आया था 

वो- कमरा देखे 

मैं- ह्म्म्म

मैंने दरवाजे को धक्का दिया और वो चर्रर्र करता हुआ खुल गया हम अंदर गए पर आज कमरे में पता नहीं क्या क्या भरा हुआ था 

पूजा- तूने तो कहा था कमरा खाली है 

मैं- कल तो था अभी कैसे भर गया 

वो- मुझे क्या पता पूजा एक काम करते है अभी यहाँ से वापिस चलते है कल दिन में आएंगे जब रौशनी होगी तो इतनी परेशानी नहीं होगी और हम आराम से खोज बीन कर सकेंगे

वो- हां यही सही रहेगा 

हम दोनों वापिस बावड़ी की तरफ आये और देखा की आज पानी ऊपर तक भरा हुआ था उसमें हम दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी ये कैसा खेल था या नजरो का धोखा कुछ देर पहले तक तो ये सूखी पड़ी थी मैं सोचने लगा की ये झमेला आखिर है तो क्या है 
पर इतना हम दोनों ही समझ गए थे की यहाँ अब रुकना नहीं है तो हम खिसक लिए वहाँ से पूरे रास्ते हमने कुछ बाते नहीं की बस चुपचाप आ गए रात भी काफी हो गयी थी तो बस सो गए चुपचाप अगले दिन हम सुबह सुबह से फिर से वहां पर पहुच गए और दोपहर तक कुछ सुराग ढूंढते रहे


पर कुछ नहीं मिला हाँ इतना जरूर था उस कमरे पर ताला फिर से लगा हुआ था और बावड़ी हमेशा की तरह सूखी हुई थी 

पूजा- कुंदन ताला तोड़ दू क्या 

मैं- तोड़ तो दे पर कुछ उल्टा सीधा हो गया तो 

वो- देखेंगे वो भी पर इतना जरूर है की इस कमरे में कुछ तो है 

मैं- हाँ पूजा कभी ये खाली होता है कभी उसमे कुछ सामान सा होता है चक्कर क्या है 
 
पूजा ने एक बड़ा सा पत्थर उठाया और ताले पर दे मारा ताला तिड़क गया और हम अंदर गए और देखा की पुरे कमरे में बदबू सी भरी थी दीवारों पर जगह जगह खून था ताज़ा खून कही कही राख थी जो खून से गीली सी हुईं पड़ी थी

पर एक कोने में संदूक था लकड़ी का जो काफी पुराना सा लग रहा था जिसे दीमक लगी हुई थी मैंने उसे खोला तो उसमें एक लाल जोड़ा था 

पूजा- दुल्हन का जोड़ा है 

मैं- हाँ ऐसे लगता है जैसे आजकल में ही बनवाया गया हो 

वो- पुराना है इसपे सितारों की झालर है अब ऐसा कोई नहीं पहनता पर कुछ साल पहले ऐसे जोड़े चलन में थे और देख कुछ है क्या 
मैंने देखा कुछ और कपडे थे और फिर नीचे बहुत से गहने थे सोने चांदी के 

मैं- वजन तो काफी होगा 

वो- हमें क्या रख देते है जिसका होगा ले जायेगा 

हमने वो सामान रखा और कमरे को बंद किया और कुछ दूर एक पेड़ के नीचे बैठ गए बल्कि ये कहु की गहरी सोच में डूब गए 

मैं- पूजा किसका होगा सामान 

वो- अब मैं क्या जानू पर इतना जरूर है की यहाँ एक राज़ है जिसे हमे कुरेदना नहीं चाहिये यहाँ जो भी है या नहीं है अपने को उससे माफी मांग लेनी चाहिये और फिर यहाँ नहीं आएंगे

मैं- तुझे जो ठीक लगे वैसे भी इन ऊपरी पंगो में कुछ नहीं रखा है 

मैंने पूजा की बात मान ली और हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी फिर हम वहाँ से निकल लिए पूजा अपने घर चल दी और मैं गांव की ओर हमारे खेतो की तरफ आ ही रहा था की तभी मुझे साइकिल पर वो छज्जे वाली आती दिखी तो मैं रुक गया वो भी साइकिल से उतरी
मैं खेत के डोले पर बैठ गया वो मेरे पास आई

मैं- कैसी हो 

वो- कैसी भी हु आपको क्या 

मैं- नाराज हो

वो- मैं भला क्यों नाराज होने लगी 

मैं- जानता हूं नाराज हो तुम्हारी नाराजगी जायज है पर बीते कुछ दिनों में जरा भी फुर्सत नहीं आयी लाल मंदिर वाले दिन के बाद कुछ समय हॉस्पिटल में बिताना पड़ा अभी घरवाले थोड़ी सख्ताई करते है तो इतना बाहर नहीं निकल पाया पर मैं सोच ही रहा था की आपसे मिलु

वो- जानते है कितनी फ़िक्र हो रही थी हमे और एक आप है क़ी 

मैं- अब माफ़ भी करदो वैसे तुम इस तरफ तुम कहा जा रही थी

वो- आज सोचा खेतो की तरफ घूम लू बहुत दिन से इस तरफ आना हुआ नहीं था 

मैं- अच्छा किया इसी बहाने मुलाकात हो गयी 

वो- मुलाकात तो तब हो जब आप गांव में रुके हमने अपनी सहेली से पता किया था आप पता नहीं कहा लापता रहते है

मैं- बताया न बस उलझा हु कुछ कामो में 

वो- इतने उलझे है की हमारी झूठी सी याद भी नहीं आयी 

मैं- याद उनकी आती है जो दूर होते है भला आप मुझसे कहा दूर है 

वो मुस्कुरा दी फिर बोली- जब हमें पता चला की आप को बहुत ज्यादा चोट लगी तो जी बहुत घबरा गया था 

मैं- तो फिर मिलने क्यों न आयी

वो- हम गए थे हॉस्पीटल अपनी सहेली के साथ बहाना करके बस देखना चाहते थे एक बार आपको पर आपके घरवाले थे तो बस आ गए

मैं- मैं सोच ही रहा था की एक दो दिन में आपसे मिलु 

वो- मिलने वाले सोचते नहीं जनाब 

मैं- अजी आप कहिये तो सही हम तो 24 घंटे आपका ही दीदार करते रहे 

वो- दीदार बाद में कीजियेगा यहाँ ऐसे खुले में बाते करना ठीक नहीं आइये हमारे खेतो की तरफ चलते है 

मैं- चलिये

मैं बहुत खुश था कि छज्जे वाली से मुलाकात हो गयी उसकी साइकिल का हैंडल थामे हुए मैं उसके साथ उसके खेतो की तरफ आ गया पर हम वहां नहीं रुके वो मुझे एक तरफ ले आयी जहा पर कुछ घने पेड़ थे और उनके एक तरफ एक छोटा सा बगीचा सा बना था

वो- इसे हमने बनाया है

मैं- अच्छा है 

वो- जब भी तन्हा होते है यहाँ आ जाते है इस तरफ की फिजा ही अलग है राहत सी मिलती है सुकून है
सच ही तो कहा था उसने राहत है सुकून हैं इसी तरफ तो मुझे पूजा मिली थी और उसके आने से कैसे ज़िन्दगी बदल सी गयी थी तभी मैंने उसे देखा वो मेरी और ही देख रही थी और मुझे ऐसे लगा की जैसे मैं कोई चोर हु
वो- कहा खो गए 
मैं- बस यु ही 
वो-आपके खेत भी इस तरफ ही है ना
मैं- हाँ कुछ दूर आगे है यहाँ से
वो- चलो अब खेतो के बहाने से ही मुलाकात हो जाया करेगी 
मैं- एक बात कहु आप बहुत खूबसूरत है
वो- हां जानते है हम सब ऐसे ही कहते है
मैं- सोचता हूं आपसे पहले क्यों नहीं मिला
वो- हम तो आपको हमेशा से जानते है पर शायद आपको देर हो गयी हमारी तरफ तवज्जो देने में 
मैं- अब क्या कर सकते समय से पहले क्या हो अब देखो कई बार दिल करे तो भी न मिल पाए कई बार मज़बूरी हो जाती तो कई बार बस किसी न किसी काम में उलझ जाते 
वो- बात सही है पर अपनों के लिए थोड़ा टाइम निकाल लेना चाहिए किसी ने कहा है कि रिश्तो को भावनाओ और अपनेपन से सींचा जाना चाहिए तभी बात बनती है 
मैं- कोशिश रहेगी आगे से आपको इंतज़ार न करना पड़े 
वो- हम कर लेंगे इंतज़ार 
वो हँसने लगी तो मैं भी मुस्कुरा दिया थोड़ा सा समय जो मिला उसके साथ अच्छा लगा बहुत सी बातें की हमने बस एक दूसरे से खुलने की कोशिश कर रहे थे हम 
मैं- फिर कब मिलोगी
वो- कुछ दिन के लिए हम बुआ के घर जा रहे है उसके बाद मिलूंगी 
मैं- कितने दिन के लिए 
वो- हफ्ता भर तो लग जायेगा 
मैं- आते ही खबर करना 
वो- आप पता कर लेना 
करीब दो घंटे हमने बाते की शाम भी होने लगी थी तो हम फिर थोड़ी दूरी बनाते हुए गांव की तरफ हो लिए घर के दरवाजे पर ही भाभी मिली पर उन्होंने कुछ कहा नहीं ये बात और थी की अंदर माँ सा से खूब खरी खोटी सुननी पडी
मैं अपने कमरे में आ गया कुछ देर बाद भाभी भी आई
भाभी- खाना लगा दू या खाकर आये हों
मैं- खाऊंगा
भाभी खाना ले आयी मैं पलंग पर बैठ के खाना खाने लगा वो पास में कुरसी पर बैठ गयी 
भाभी- तो कहा थे 
मैं- बस ऐसे ही 
वो- ऐसे ही क्या 
मैं- एक जरुरी काम आन पड़ा था तो समय लग गया 
वो- अच्छा 
मैं- भाभी उस रात घर पे कोई नहीं था कहा गए थे सब लोग 
वो- तुम्हारे भैया के दोस्त के घर गए थे तुमको कितना जगाया था पर तुम पड़े थे 
मैं- कब जगाया था मुझे क्यों नहीं पता
वो- आजकल तुम्हे होश ही कहा रहता है
भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए हलकी सी अंगड़ाई ली जिस से उनका सीना तन सा गया उनके माध्य्म आकार की चूचिया खड़ी होने लगी जब उन्होंने देखा की मेरी निगाहे कहा है तो वो बोली- पहले खाना खा लो ये तो हमेशा ही तुम्हारे सामने रहती है 
मैं बुरी तरह से लजा गया मैंने नजरे नीची कर ली और खाना खाने लगा जल्दी ही मैंने खाना ख़तम कर लिया तो उन्होंने मुझे पानी का गिलास पकड़ाया और बोली- कल हमे अपनी सहेली से मिलने जाना है और हम चाहते है की तुम साथ चलो
मैं- पर भाभी कल तो मुझे पढ़ने जाना है 
वो- तुमने हमारी बात ठीक से सुनी नहीं कल दोपहर बाद चलेंगे
मैं- जैसा आप कहे वैसे भाई कहा है
वो- चाची के साथ नोहरे में गए है
मैं- ध्यान रखा कीजिये उनका कही चाची उनपर भी डोरे ना डाल ले
वो- देवर जी आप शायद भूल जाते है कि ठाकुरो की रगों मे खून के साथ साथ हवस भी दौड़ती है जब ठाकुरो की प्यास जागती हैं तो रिश्तो की डोर कब टूट जाती है पता भी नहीं चलता खैर, तुम्हारी जानकारी के लिए बता दू की चाची के तुम्हारे भाई से भी वैसे ही संबंध है जैसे की तुमसे है 
भाभी ने ये बात बोलकर जैसे धमाका ही कर दिया था कुछ पलों के लिए मैं सोचने समझने की शक्ति ही खो बैठा जैसे चाची भाई से भी चुदती है नहीं ऐसा नहीं हो सकता 
मैं- होश में तो हो भाभी आप अपने पति के बारे में ये बात कर रही है 
वो- बुरा लगा न तुम्हे पर यही सच है शादी क़े कुछ महीनो बाद ही मैं इस बात को जान गयी थी बुरा लगता था पहले पर अब समय के साथ समझौता कर लिया है मैंने पर मैं नहीं चाहती थी की चाची अब तुम्हे भी उसी राह पर ले जाए इसिलिये मैंने तुम्हे उनसे दूर रहने को कहा
मैं- पर भाई सा आपके साथ ऐसे कैसे कर सकते है आपका हक़ चाची नहीं छीन सकती है 
वो- ठाकुरायिनो का हक़ बस इन चार दिवारी के अंदर ही दम तोड़ देता हूं रही बात चाची की तो याद करो वो परिस्तिथियाँ जिनमे वो कितनी आसानी से तुम्हारी बाहों मे आ गिरी होगी
भाभी की बात सोलह आने सच थी मुझे कोई खास दिक्कत नहीं हुई थी उसको चोदने में पर मैं मुर्ख इस बात को समझ नहीं पाया था 
भाभी- तुम्हे अपना मानती हूं तुमपर अपना हक समझती हूं इसलिए कभी कठोर व्यवहार करती हूं पर चाहती हु तुम इस दलदल से दूर रहो जीवन में तुम्हे बहुत वफादार लोग मिलेंगे अच्छे और गलत में फर्क करना सीखो 
मैं- जैसा भाभी सा कहेंगी वैसा कुंदन करेगा
भाभी ने बर्तन समेटे और बोली- बाद में मिलते है तुमसे
मैं बहुत अच्छे मूड से घर आया था सोचा था की आराम करते हुए गाने सुनेंगे आयत को महसूस करेंगे पर अब दिमाग खराब हो चला था बहुत देर तक बस मैं सोचता रहा फिर मैंने निर्णय लिया की चाची से अब खुलके बात करूंगा
रात को मैं चाची के घर गया तो वो मुझे देखते ही खुश हो गयी और सीधा मेरी गोद में आ बैठी चाची ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए और किस करने लगी पर मैंने उसे अपने से दूर कर दिया
 
चाची- क्या हुआ कुंदन
मैं- चाची मुझे तुमसे कुछ बात करनी है और मैं चाहूंगा की तुम सच बोलना 
वो- तुझसे झूठ बोला है कभी 
मैं- तुझे मेरी सौगंध अगर तू झूठ बोली तो कुंदन का मरा मुह देखेगी
चाची- क्या हुआ तुझे बात क्या है साफ़ बोल
मैं- मेरे अलावा तुम्हारे किस किस से सम्बन्ध है 
वो- जब तुम्हे पता है तो पूछते क्यों हो
मैं- तू पहली औरत थी जिसने मुझे मर्द होने का अहसास करवाया तेरा अहसान है मुझ पर और मैं तेरी इज्जत भी बहुत करता हु क्योंकि तू चाची के साथ साथ और भी कुछ है मेरे लिए और अगर तूने मुझे कभी एक पल भी अपना माना हो तो सब बता मुझे
वो- अपना मानती हूं इसीलिये तेरे साथ सोती हु मैं तुझे सब सच बता दूंगी पर क्या तू सच सुन और बर्दाश्त कर पायेगा तेरे आस पास जो ये नकली दुनिया है ये एक मिनट में गिर जायेगी फिर न कहना की सच बताया ही क्यों
मैं- मैं सुनना चाहूंगा
वो- तो फिर सुन तू ही फैसला लेना तेरी चाची सही है या गलत
चाची-तो बता कहा से शुरू करू

मैं- आपके और भाई सा के बीच ये सब कैसे शुरू हुआ
वो- मेरे और इन्दर के बीच ये सब कैसे शुरू हुआ उससे पहले तू ये जान ले की वो क्या वजह थी की मुझे इन्दर को देनी पड़ी
मैं- क्या भाई ने जबर्दस्ती की आपके साथ 
वो- बताती हु, बात तब की है जब तुम्हारे दादा ने एक ब्याह में मुझे देखा उन्होंने ही मेरा रिश्ता तुम्हारे चाचा से करवाया था सब सही था मैं ब्याह कर इधर आ गयी कुछ महीने ठीक गुजरे पर तुम्हारे चाचा की माली हालत ठीक नहीं थी 
वो बहुत कोशिश करते थे पर बचत होती नहीं थी राणाजी उनके खास दोस्त थे और अक्सर वो हमारी मदद करते थे धीरे धीरे वो घर आने लगे वैसे दोनों घरो में दुरी कितनी ही है पर तब हमारे पक्के मकान नहीं थी एक दिन मैं आंगन में नाहा रही थी की मेरी नजर तुम्हारी छत पर पड़ी तो मैंने देखा की राणाजी मुझे नहाती हुई देख रहे है
राणाजी के बारे में ये सुनकर बहुत अजीब लगा मुझे पर अभी पूरी कहानी मालूम करनी थी तो सुनता रहा
चाची- मुझे गुस्सा आया पर फिर सोचा की गलती मेरी ही थी जो ऐसे बिना चारो तरफ देखे नहाने लगी बात आई गयी हो गयी पर मैंने गौर किया जब भी मौका लगता राणाजी की नजरें बस मुझ पर ही टिकी रहती कभी कभी मुझे अच्छा भी लगता पर वो मेरे जेठ लगते थे तो लाज भी आती
दिन गुजर रहे थे तुम्हारे चाचा का कोई भी काम चलता ही नहीं था वो तो राणाजी की वजह से किसी चीज़ की दिक्कत नहीं थी तो मैं भी उनकी तरफ झुकने लगी या यु कहु की उनके अहसानो तले दबने लागी
और फिर आया होली का दिन उस सुबह से ही राणाजी और तुम्हारे चाचा ने खूब शराब पी हुई थी और पूरा दिन रंग खेला शाम हो गयी थी यहाँ मीट मुर्गे की दावत हो रही थी और दौर चला शराब का तुम्हारे चाचा ने हद से ज्यादा पी ली थी और फिर बेहोश हो कर लुढ़क गया

पर राणाजी पीते रहे और फिर वो उठे मैं सोची जा रहे है पर उन्होंने कुण्डी लगा दी और मेरे पास आकर बोले- बहु हमारे साथ नहीं खेलोगी होली और मेरा हाथ पकड़ लिया मैंने छुडाने की कोशिश की पर उन्होंने कहा की अगर मैं उनकी बात मान लेती हूं तो वो इस घर को महल बना देंगे और भी कई वादे किए उन्होंने हम तो पहले ही उनके बोझ तले दबे थे 
पर इससे पहले मैं कुछ जवाब दे पाती वो मुझे बिस्तर पर ले आये जब सुबह वो यहाँ से गए तो मेरी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल चुकी थी और फिर तुम तो जानते हो की एक बार जब लहू मुह लग जाये तो फिर क्या होता है और फिर राणाजी के आगे मेरी बिसात भी क्या थी उन्होंने हमारी ज़िंदगी ही बदल दी थी तो मैंने भी समझौता कर लिया 
बच्चे हो गए ज़िन्दगी आगे चल पडी थी पर राणाजी का जब दिल करता नीचे लिटा लेते थे फिर उन्होंने कुछ जुगाड़ करवा कर तुम्हारे चाचा को विदेश भेज दिया ताकी हमारे बीच कोई न आ सक़े इधर इन्दर भी जवान हो रहा था तुमसे कुछ कम होगा उस समय उम्र में पर समझदार था
पर तभी एक हादसा हो गया जिस से राणाजी की ज़िंदगी बहुत बदल गयी उनका वो ठाकुरो वाला अहंकार टूट कर बिखर गया उन्होंने अपने हर बुरे काम से तौबा कर ली ठाकुर हुकुम सिंह बस राणाजी बन कर रह गए उन्होंने यहाँ तक की मुझसे भी दुरी बना ली
मैं जानती हूं की तुम्हे बुरा भी लगेगा अपने पिता के बारे में ये सब जानकर अपने घर के बारे में ये छुपी बाते जानकर पर अब जब बात खुल ही रही है तो पूरी तरह से खुले वैसे भी हमाम में हम सब नंगे ही है 
मेरा और राणाजी का अवैध संबंध ख़तम ही हो गए थे मैं भी खुश थी की चलो आज नहीं तो कल ये सब ख़त्म होना ही था पर फिर एक दिन राणाजी ने मुझे खारी बावड़ी के पास बुलाया अब उनका कहा मैं कैसे टालती तो मैं गयी उस दिन वो बहुत संजीदा से थे
उन्होंने कहा की वो बहुत अकेला महसूस कर रहे है और बस एक आखिरी बार मेरे साथ करना चाहते है तो वो मुझे वहाँ बने एक पुराने कमरे में ले गए और फूटी किस्मत की न जाने कैसे इन्दर ने मुझे राणाजी की बाँहों में देख लिया
उस शाम जब मैं वहाँ से अपने खेत पर आयी तो इंदर भी वहाँ आ गया और उसने सीधे सीधे ही मुझसे बात की और कहा की मैं उसे भी दू तो मुझे उसके साथ हमबिस्तर होना पड़ा और फिर सिलसिला बाप के बाद बेटे के साथ चल पड़ा पर फिर उसकी नौकरी लग गयी जब वो छुट्टी आता तब करता
तुम्हारे चाचा तीन चार साल में कुछ दिनो के लिए आते पर मैं खुश थी क्योंकि मेरे जिस्म की प्यास बुझती रहती थी और फिर उस दिन मैंने खेत में तुमको पकड़ा तो मेरी सोयी इच्छा भड़क उठी और फिर तुमसे भी सम्बन्ध बन गए पर कुंदन चाहे हमारे बीच जिस्मानी रिश्ता क्यों न हो मैंने तुझे अपने बेटे जैसा ही माना है 
ये सब जानने के बाद तू चाहे तो मुझसे नफ़रत करे पर मेरा प्यार तेरे लिए सच्चा है 
मैं- नफरत नहीं चाची बस सोच रहा हु घरवालो ने और क्या क्या राज़ छुपा रखे है तुमसे नाराज नहीं हूं क्योंकि मैं जानता हूं ठाकुरो की हवस उनकी रगो में खून के साथ दौड़ती है पर मैं ये जानना चाहता हु की भाई उस समय वहाँ बावड़ी पर क्या कर रहा था

चाची-इस बारे में मैं पक्का तो कुछ नहीं कह सकती पर वो जगह बरसो से सुनसान है बियाबान है तो जिस तरह से राणाजी ने मुझे बुलाया था ऐसे कोई भी उपयोग कर सकता है तो क्या पता इन्दर भी किसी लड़की को लाया हो 
मैं-ह्म्म्म, पर आपने कहा क़ी राणाजी आपको कमरे में ले गए थे तो ताला उन्होंने ही खोला था 
वो- हाँ,
मैं-चाची वो बावड़ी तो अर्जुनगढ़ वालो क़ी है तो राणाजी के पास कमरे की चाबी कहा से आयी
चाची- तेरे इस सवाल का जवाब देना मेरे लिए जरुरी नहीं है पर फिर भी बता दू की एक समय था जब वहां के ठाकुर अर्जुन सिंह जी और राणाजी गहरे दोस्त थे दोनो में भाइयो सा प्यार था लोग उनकी दोस्ती की मिसाले देते थे तो कोई ताज्जुब नहीं अगर राणाजी के पास चाबी हो
मैं- बस एक सवाल और पूछुंगा अगर उन दोनों में दोस्ती थी तो फिर लाल मंदिर में दोनों एक दूसरे के सामने क्यों खड़े हो गयी
चाची ने एक गहरी सांस ली और बोली- इस सवाल का जवाब बस राणाजी के पास है
चाची- मैं ये भी जानती हूं कि तुझे जस्सी ने ये सब बताया होगा और साथ ही तुझे मुझसे दूर रहने को कहा होगा क्योंकि उसे सब पता चल गया था पर मैं जैसी भी हु कुंदन तुझसे कभी दगा नहीं करुँगी तू आज़मा लेना चाहें

मैं- मुझे अपनी जान से ज्यादा आप पर भरोसा है चाची पर मुझे अभी जाना होगा पर मैं जल्दी ही आऊंगा तुम्हारे पास

मैंने अपने होंठ चाची के होंठो पर रख दिये और कुछ देर तक चूमता रहा फिर मैं अपने कमरे में आ गया मुझे इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं थी की मेरे पिता और भाई का चरित्र कैसा था मुझे परवाह थी पूजा की जो ये बात पहले से ही जानती थी की मैं उसके पिता के कातिल का बेटा हु पर फिर भी उसने मुझसे नफरत नहीं की

मेरा दिमाग हद से ज्यादा ख़राब होने लगा मैंने चुपके से राणाजी की अलमारी से पिस्टल निकाली और अपनी गाड़ी लेकर सीधा पूजा के घर की तरफ हो लिया भला समय कितना ही लग्न था जब उसके घर में पंहुचा तो देखा की वहां पर ताला लगा है मैंने सोचा क्या पता झोपडी में हो पर वो वहाँ पर भी नहीं थी

एक तो मेरा दिमाग हद से ज्यादा खराब हुआ पड़ा था एक पूजा न जाने कहा थी

तभी मुझे कुछ ख्याल आया और मैंने गाड़ी उस तरफ घुमाई जहा वो मुझे पहली बार मिली थी पर वो उस पीपल के पेड़ के पास भी नहीं थी पूजा गयी तो कहा गयी मेरा गुस्सा बुरी तरह से भड़क रहा था मुझे बस पूजा की चाहत थी इस समय और तभी मैं जान गया अगर वो यहाँ नहीं है तो कहा होगी

मैंने गाड़ी घुमा दी और जल्दी ही गाड़ी अर्जुन गढ़ की और धूल उड़ाते हुए चली जा रही थी रात के अँधेरे में उन कच्चे रास्तो पर तेज रफ़्तार गाड़ी जिसकी मंजिल अभी थोड़ी दूर थी मैंने उसी बंद पड़े डाकखाने को पार करते हुए गांव से बाहर जाने वाले मोड़ को पार किया और मेरा अंदाजा बिलकुल सही था 
 
पूजा उसी पेड़ के नीचे बैठी हुई उस हवेली को निहार रही थी जैसे ही गाड़ी रुकी उसका ध्यान मेरी और हुआ और मुझे वहां देख कर वो बुरी तरह से चौंक गई

पूजा- तू इस वक़्त यहाँ जबकि मैंने तुझे कहा था तू यहाँ कभी नहीं आयेगा

मैं- गाड़ी में बैठ

वो- तूने कसम तोड़ दी न मेरी नहीं रख पाया ना मेरी बात का मान

मैं- पूजा गाड़ी में बैठो

उस अँधेरे में भी मैंने उसकी आँखों से गिरते उन आंसुओ को देख लिया था पर वो चुपचाप गाड़ी में बैठ गयी पुरे रस्ते में हमारे बीच कोई बोल चाल नहीं हुई सिवाय उसकी सिसकियों के जल्दी ही हम उसके घर पर थे

उसने ताला खोला और हम अंदर आये

मैं- तू सब जानती थी ना

वो- हां सब जानती हूं

मैं- फिर भी मुझे अपनाया तूने 

वो- तो गलत किया क्या 

मैं-पर 

वो- मैं इस काबिल हु की किस पर भरोसा करु किस पर नहीं ये पहचान सकू

मैं- पर मैं तुम्हारे गुनहगार का बेटा हु

वो-उसमे तुम्हारा क्या दोष और वैसे भी गड़े मुरदे क्यों उखाड़ना जब आने वाले एक खूबसूरत कल की तस्वीर आँखो में है 

मैं-ये बन्दुक ले और इसकी सारी गोलिया मेरे सीने में उतार दे ताकि मैं इस क़र्ज़ को चूका सकू ले गोली चला 

मैंने बन्दुक उसके हाथ में रख दी

वो- तुझे क्या लगता है मुझे बदला लेना है अगर मुझे बदला लेना होता तो तुझे उसी समय मार सकती थी जब तू पहली बार मुझसे मिला था या फिर हर उस बार जब जब तू मेरे साथ है पर कुंदन मुझे भरोसा है तुझ पर अपना मानती हूं तुझे रही बात जान लेने की तो बस इतना याद रखना कुंदन से पहले पूजा की जान जायेगी

बहुत बड़ी बात कह दी थी उसने सोने का दिल था इस लड़की का 

मैं- पर मैं इस बोझ के साथ कैसे जियूँगा 

वो- तो उतार दो इस बोझ को मिटा दो इस नफरत को दोनों गाँवो का भाई चारा वापिस कायम करदो मैंने तुमसे बस कुछ कहा था पर तुम 

मैं- मैंने बहुत ढूंढा तुझे और फिर सोचा की बस उसी जगह मिलोगी तो क्या करता 

वो- इंतज़ार करते खैर जाने दो खाना बनाती हु मुझे पता है जब तुम्हे भूख लगती है तो ज्यादा गुस्सा करते हो

मैं- बातो को मत घुमा पूजा 

वो- तो क्या करूँ आखिर क्यों तू मुझे उस रास्ते पर चलने को कह रहा है जिस पर मुझे जाना ही नहीं है मैं तुमसे बड़ी हु तुमसे ज्यादा दुनिया दारी समझती हूं इसलिए कह रही हु तेरे मेरे बीच कोई दिवार नहीं आ सकती 

मैं-तू कैसे इतनी अच्छी हो सकती है

वो- क्योंकि तुम इतने अच्छे हो तुमने मेरे लिये अपनी जान तक दांव पर लगा दी और फिर तुम्हारी जान मेरी ही तो है और जो अपना है उसका क्या लेना क्या देना 

मेरे पास उसकी बातों का कोई जवाब नहीं था 

मैं- पर तू आज के बाद अकेली अर्जुनगढ़ नहीं जाएगी 

वो- घर है वहां मेरा 

मैं- मैंने कब मना किया मैंने बस इतना कहा क़ी तू अकेली वहां नहीं जाएगी

वो- चल ठीक है और कुछ 

मैं- तू कहे तो तेरे लिए एक हवेली बनवा दू

वो- तुझे क्या लगता है मुझे इन सब की चाहत है 

मैं-पर मैं चाहता हु की तू अकेली ना रहे 

वो- मैं खुश हूं कुंदन, और क्या होगा अगर तू हवेली बनवा देगा तो वो बस एक मकान होगा घर नहीं क्योंकि घर लोगो से बनता है परिवार से बनता है अपनों से बनता है मेरी इच्छा घर में रहने की है कुन्दन

मैं- तो फिर चल मेरे साथ 

वो- कहा

मैं- घर, मेरे घर हमारे घर

वो- किस हक़ से 

मैं-तू जो समझे उस हक़ से 

वो- क्या बात है जो आज इतना परेशां है कुछ बात है तो बता मुझे 

मैं-क्या बताऊँ पूजा 

वो- मुझसे छुपा भी नहीं पायेगा ज्यादा देर तू

मैं- बताता हूं

मैंने उसे सारी बात बता दी बस अपने और चाची वाले हिस्से को छुपा लिया 

उसने पूरी बात सुनी फिर बोली- इसमें हैरानी की क्या बात है कुंदन अक्सर सबसे ज्यादा हल्ला वो ही मचाते है जो खुद नंगे होते है मर्दो के लिये औरत बस एक खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं होता औऱ फिर जो इस समाज के ठेकेदार बने फिरते है वो ही सबसे ज्यादा इस दलदल में धंसे होते है पर तुमने ये क्यों नहीं बताया की तुम भी शामिल हो चाची के साथ

मैं-तुम समझ गयी

वो- मैंने कहा न तुम मुझसे नहीं छुपा पाओगे

मैं- अब क्या बताता तुम्हे की ।।।

वो- समझ सकती हूं और अब तुम समझो जिस तरह से तुम रुक नहीं पाए वो लोग भी नहीं रुक पाये 

मैं- तुम नहीं समझोगी 

वो- कुंदन अपने कुल में इस प्यास के बहुत किस्से हुए है और होते रहेंगे हम किस किस के बारे में सोचेंगे वैसे गाड़ी अच्छी है तुम्हारी चलाने दोगे

मैं- तेरी ही है 

मैंने चाबी उसके हाथ में रख दी
 
खाना खाने के बाद कुछ देर मैं लेट गया वो मेरे पास बैठ कर मेरे सर को सहलाने लगी आराम से मिला कुछ देर बाद वो मेरे सीने को सहलाते हुए बोली- तुम उस दिन रुक क्यों गए 
मैं- क्योंकि मुझमे वो प्यास नहीं है मैं भरोसे को अहमियत देता हूं और जब मैं तेरे मन को जीत लूंगा तो जिस्म की अहमियत ही क्या रह जायेगी
वो- आओ घूमने चलते है 
मैं- अभी 
वो- अभी 
मैं- जो तू चाहे 
हमने घर को ताला लगाया और पूजा ने गाड़ी स्टार्ट की और जिस कुशलता से वो गाड़ी चला रही थी मैं कायल हो गया 
मैं- हम कहा जा रहे है 
वो- पता नहीं 
मैं- बढ़िया 
वो हंसने लगी हम वहां से दूर सरहदी इलाके की तरफ निकल गयी और फिर एक सुनसान तरफ पूजा ने गाड़ी रोक दी
मैं- क्या हुआ 
वो- कुछ नहीं
मैं- तो गाड़ी क्यों रोकी
वो- यु ही 
मैं- तेरी बाते समझ ही नहीं आती 
उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और बोली -आओ कुछ दिखाती हु
वो मुझे अपने साथ लेकर चलती रही कुछ दूर बाद जगह हरी भरी होने लगी पेड़ पौधे आने लगे हम एक तरफ से जंगल में घुस गए पर जैसे उसे मालूम था कि उसे कहा जाना है और कुछ देर बाद हम नदी के एक तरफ खड़े थे 
वो- तेरी तम्मन्ना थी न मेरे साथ नदी में नहाने की 
मैं- पागल ये कोई टाइम है क्या 
वो- कपडे उतार और आजा
मैं- कोई आ गया तो 
वो- रात बहुत बीती कम बची आजा
पूजा ने अपने कपडे उतारे और निर्वस्त्र होकर नदी के शांत जल की और बढ़ चली मेरी निगाह उसके सुडौल नितंबो से जा चिपकी और उस हाहाकारी नज़ारे ने बदन में अचानक से गर्मी बढ़ा सी दी 
मैंने भी अपने कपडे उतारे और उसके पीछे पीछे पानी में उतर गया जल्दी ही हम दोनों आमने सामने खड़े थे वो मेरे करीब आयी और हमारे होंठ आपस में जुड़ गए वो लिपट गयी मुझसे
मेरे हाथ उसके नितंबो को मसलने लगे मैंने धीरे से उसके कूल्हों को फैलाया और मेरी उंगलिया उसके गुदाद्वार पर अपनी उपस्तिथि दर्ज करवाने लगी उसका हाथ कब मेरे लण्ड तक पहुच गया पता ही नहीं चला हम दोनों कंधो तक पानी में डूबे हुए हलचल मचा रहे थे
कुछ देर बाद हमारा चुम्बन टुटा उसने अपना सर मेरे कंधे पर रखा और बस शांत खड़ी रही उसकी दहकती सांसे मुझे अपने कंधे पर महसूस हो रही थी जबकी नीचे उसकी उंगलियां मेरे लण्ड से अठखेलिया कर रही थी
मैं- चुप क्यों है 
वो - यु ही 
मैं-तू बहुत सुंदर है
वो- कितनी बार बताओगे
मैं- जबतक दिल करेगा
वो- दिल तो नादान होता है उसकी क्या सुननी
मैं- तो किसकी सुनु फिर 
वो- मेरी 
मैं- और क्या कहती हो तुम
वो- कुछ नहीं 

मैंने उसे गोद में उठाया और नदी से थोड़ी दूर रेत पर लिटा दिया मैंने अपने होंठ उसकी चूची पर रख दिए और उसको चूसने लगा उसकी मुट्ठी लण्ड पर फिर से कस गयी और वो अपने हाथ को जोरो से ऊपर नीचे करने लगी 
जल्दी ही उसके उभारो में तनाव आने लगा तो मैंने उसकी जांघो को खोला और उसकी चूत पर उंगलिया फेरने लगा वहाँ पर बहुत ज्यादा गीलापन हो चूका था एक दो मिनट उसे तड़पाते हुए अब अपना मुंह उसकी चूत से लगा दिया 
पूजा के कूल्हे ऊपर को उठ गए जो इस बात का सबूत था की किस तरह वो उत्तेजित है जैसे जैसे मेरी जीभ उसके कामरस की उन शबनमी बूंदों को चाट रही थी पूजा की सिसकारियां उस शांत वातावरण में गूंजने लगी थी
बीच बीच में मैं अपने दांतों से उसकी चूत की नर्म खाल को काट लेता तो उसकी हालत और ख़राब हो जाती पल पल वो और ज्यादा पैर पटकने लगी थी 
और कितना प्रतिकार कर पाती वो पाँच मिनट भी नहीं पकड़ पायी वो और उसने अपने रस से मेरे चेहरे को सान दिया कुछ देर वो अपनी उखड़ी सांसो को नियंत्रित करती रही और फिर मुझ पर टूट पड़ी उसने अपने मुंह में मेरे लण्ड को भर लिया 
और ये दिखाने लगी की उसकी चूत की तरह ही उसके होंठ भी कितना दहक रहे है उसकी उंगलियां मेरे सीने पर रेंग रही थी और मुह बार बार ऊपर नीचे हो रहा था मस्ती में चूर होकर मैंने अपनी आँखे बंद करली और स्खलन की ओर बढ़ने लगा 

करीब 5-7 मिनट बाद उसने अपने होंठ मेरे लण्ड के इर्द गिर्द कस दिए और मेरे पानी की पिचकारियां उसके मुंह में गिरने लगी पर उसने अपना मुंह तब तक नहीं खोला जबतक उसने वीर्य की आखिरी बून्द तक नहीं निचोड़ ली
उसके बाद वो मेरे सीने पर सर रख कर लेट गयी कुछ नींद सी आने लगी थोड़ी ही देर में तो एक बार फिर से नहाकर हमने कपडे पहने और घर आ गए पर सुबह होने में ज्यादा देर नहीं थी तो मैंने अब गांव चलना ही ठीक समझा 
पता नहीं क्यों बहुत थकान सी होने लगी थी जब मैं घर पंहुचा तो मैंने देखा बस भाभी ही जागी हुई थी पर इससे पहले की वो कोई सवाल जवाब करती मैं सो गया
फिर सीधा दोपहर को ही मैं जगा तो देखा की घर पर बस भाभी ही थी जो शायद कुछ देर पहले ही नहा कर आई थी क्योंकि वो अपने गीले बाल झटक रही थी 
मैं- और लोग कहा है 
वो- माँ सा तो चाची के पास गयी है और बाकियो का पता नहीं 
मैं- खाने को कुछ अच्छा सा बना दो मैं नहाकर आता हूं
 
मैंने अपना सामान लिया और बाथरूम में घुस गया पर वहां जब मैंने भाभी की गीली ब्रा और पेंटी देखी तो मेरा दिल धड़कने लगा मैंने उसकी कच्छी को हाथ में लिया और सूंघ के देखा पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने उसकी एक पप्पी ली और वापिस रख दिया 
मेरी आँखों के सामने भाभी का सेक्सी रूप आने लगा बड़ी मुश्किल से नहाया मैं मैं तैयार हुआ ही था की भाभी कमरे में आ गयी आज तो कयामत ही लग रही थी वो साड़ी को इतना नीचे बाँधा था की उनकी नाभि का पूरा दर्शन हो रहा था
भाभी- हो लिए तैयार फटाफट खाना खा लो फिर हमें चलना है
मैं- जी ठीक है 
वो- सामान नीचे रखा है गाड़ी में डाल लेना
मैं- कैसा सामान 
वो- सहेली की बहन की शादी है तो दो दिन रुकेंगे सामान तो चाहियेगा ना
मैं- पर आप तो बोले थे की मिलने जा रहे है 
वो- हां तो मिलने ही जा रहे है ना
मैं- पर दो दिन भैया को ले जाओ ना
वो- अगर वो जाते तो फिर तुम्हारी क्या जरूरत थी पगले 
करीब घंटे भर बाद मैं भाभी के साथ जा रहा था उसकी सहेली के घर
भाभी ने जो श्रृंगार किया था बेहद खूबसूरत लग रही थी मेरी नजर बार बार उनको देखे जा रही थी 
भाभी- मैं हर समय घर पे ही रहती हूं ना मुझे तो जब चाहे ताड सकते हो अभी गाड़ी पे ध्यान दो देवर जी
मैं- आप बहुत सुन्दर लग रही हो आज
वो-ये पुराने तरीके है कुछ नया सोचो 
मैं- भाभी, मैंने चाची से उस बारे में बात की थी 
वो- पर क्यों
मैं- दिल किया तो 
उसके बाद मैंने भाभी को सारी बाते जो मेरे और चाची के दरमियान हुई थी बता दी जिसे सुनकर भाभी गहरी सोच में पड़ गयी फिर बोली- कुंदन पुरानी बातों को क्या उखाड़ना अब मैं खुद तुम्हे ये सब नहीं बताना चाहती थी पर हालात के मारे है हम सब
मैं- भाभी दिल करता है इस घर से दूर चला जाऊ 
वो- कहा जाओगे जीना यहाँ मरना यहाँ 
मैं- खैर, छोड़ो अगर बुरा न मानो तो एक बात पुछु 
वो- हाँ 
मैं- आपके और भैया के बीच सबठीक है ना
वो- हाँ, सब सही है 
मैं- आप जान बूझ के मुझे अपने साथ लायी है ना
वो- तुम चाहो तो ऐसा समझ सकते हो 
मैं- आजकल कोई भी साफ साफ बातें क्यों नहीं करता है हर बात को घुमाना जरुरी है क्या 
वो- तुम भी तो कहा सीधा जवाब देते हो
बातो बातो में हम सहर आ गए हमने कुछ तोहफे ख़रीदे अभी कुछ समय और लगना था हमे तो भाभी ने एक बार फिर से जिक्र छेड़ दिया चाची का 
भाभी- वैसे कैसी है वो बिस्तर में 
मैं- कौन 
वो- तुम्हारी प्यारी चाची 
मैं- भाभी अब इतना तो पर्दा रहने दो 
वो- बताओ ना हमे पूछना है 
मैं- ठीक है 
वो- बस ठीक है 
मैं- ठीक से थोड़ी ज्यादा 
वो- अगर कोई ऐसी घडी आये की तुम्हे चाची और मुझमे से चुनाव करना हो तो किसे चुनोगे
मैं- मैं आपको चुन चूका हूँ ना भाभी
भाभी मुस्कुरा दी 
मैं- भाभी आप आजकल इन सब बातों में बहुत दिलचस्पी ले रही है क्या बात है 
वो- तुम्हारे सिवा किससे अपने मन की बात करती हूं कुंदन बस बहाने है जी बहलाने के 
मैं- साफ साफ कहिये ना 
वो- ठीक है क्या मैं तुम्हे पसंद हु 
मैं- ये कैसा सवाल है जाहिर है आप पसंद है आप भाभी है मेरी
वो- नहीं क्या मैं उस तरह से पसंद हु तुम्हे जैसे चाची
मैं- भाभी, अब इतना भी न गिराइए की कुंदन उठ ही न सके ऐसा बोलने से अच्छा तो थप्पड़ ही मार लेती

वो- जी तो किया था पर जाने दिया वैसे अगर मैं तुम्हे पसंद नहीं तो फिर बाथरूम में मेरी कच्छी पर दाग क्यों छोड़ते हो
मैंने जितना समझा था भाभी उस से कही ज्यादा चतुर थी अब मैं क्या जवाब देता बस नजरे झुका ली कुछ देर ख़ामोशी सी छा गयी खैर जब हम उनकी सहेली के घर पहुचे तो रात हो ही गयी थी कुछ देर मिलना मिलाना हुआ उन लोगो ने खूब खातिर दारी की
अब दो दिन में शादी थी कुछ रस्मे निभायी जा रही थी खाना पीना हो रहा था खैर देर रात हमे अपना कमरा बताया गया मैं और भाभी अंदर आये 
मैं- मेरा कमरा कहा है
वो- ये क्या है 
मैं- तो आपका कमरा 
वो- यही है यही सो जाओ बेड काफी बड़ा है 
मैं- आपके पास
वो- घर नहीं सोते क्या एक मिनट लाइट जरा बंद करो मैं कपडे बदल लेती हूं
मैं- मैं बाहर जाता हूं आप चेंज कर लीजिए
वो- नहीं यही रहों कोई दिक्कत नहीं है
मैं- पर 
वो- भाभी को चोरी छिपे कपडे बदलते हुए देख सकते हो पर सामने नहीं चलो लाइट बंद कर दो
मुझे थकान सी हो रही थी मैं भाभी से एक निश्चित दुरी बना कर लेट गया और कब नींद आई खबर नहीं कितनी देर सोया पता नहीं पर जब मेरी नींद उचटी तो मैंने खुद को भाभी से लिपटे हुए पाया मेरा हाथ उनके पेट पर था 
मेरी नजर सामने घड़ी पर पड़ी सुबह के चार बजने में थोड़ा ही समय था मैंने देखा आंखे बंद थी उनकी पर साँस लेने से सीना ऊपर नीचे हो रहा था भाभी के रूप का तीर मेरे सीने में आकर लगा 
मैंने धीरे से अपना हाथ भाभी की चूची पर रखा और उसको हलके से दबाया इतना कोमल स्पर्श मैं धीरे धीरे दबाने लगा तभी भाभी मेरा हाथ हटाते हुए बोली- सो जाओ कुंदन ठाकुर 
मुझे बहुत शंर्मिन्दगी हुई जिस तरह से उन्होंने कुंदन ठाकुर कहा था मुझे अहसास करवाया गया था 
मैं- आप जाग रही थी 
वो मेरी तरफ करवट लेते हुए- अभी आँख खुली
करवट लेने से हालत ऐसी हो गयी थी की उनकी चूचिया मेरे सीने पर जोर डाल रही थी उनकी सांसे मेरे चेहरे पर पड़ने लगी थी उनके बदन की खुश्बू मुझमें घुलने लगी थी
भाभी- कैसे है 
मैं- क्या 
वो- जिन्हें दबा रहे थे 
मुझे सच में बहुत शंर्मिन्दगी हो रही थी मैं चुपचाप वहाँ से उठने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया 
वो- क्या हमने कहा तुमसे जाने को 
भाभी में मेरा हाथ अपने उभारो पे रखा और बोली- कैसे है 
मैं- माफ़ करदो भाभी ये गलती फिर नहीं होगी
वो थोड़ा सा और मेरे पास सरक गयी इस तरह से की उनका आधा बोझ मेरे ऊपर पड़ने लगा वो धीरे से फुसफुसाते हुए बोली- सो जाओ अभी समय है भोर होने में
बेशक मैंने आँखे बंद कर ली थी पर नींद आँखों से कोसो दूर थी भाभी की सांसे मेरी गर्दन पर पड़ रही थी मेरा पैर उनकी टांग के नीचे दबा था और उनकी चूचियो का बोझ मेरे सीने पर था 
जिस बेफिक्री से मुझसे लिपट कर वो सोयी हुई थी मेरी धड़कने बढ़ गयी थी पर सवाल यर था की आखिर उनके मन में चल क्या रहा है पर जब कोई जवाब नहीं मिला तो मैंने भी अपना हाथ भाभी की पीठ पर रख दिया और उसको हलके से अपने आगोश में ले लिया
करीब दस बजे तक मैं एक दम तैयार था पर मेरा मन यहाँ नहीं लग रहा था मैं बस हवेली में घूमने लगा और मैं एक ऐसे कमरे में आ गया जहाँ कुछ खास सामान नहीं था पर दिवार पर एक बड़ी सी तस्वीर लगी और जैसे ही मुझे समझ आया की वो तस्वीर किसकी है मेरे पैरो से जमीन खिसक गयी
 
वो एक बेहद खूबसूरत तसवीर थी जिसमे एक लड़की हाथो में कबूतर लिए खड़ी थी ऐसा लगता था कि जैसे अभी बोल पड़ेगी पर मेरी नजर उसकी उन हरी आँखों पर पड़ी थी मेरा दिमाग जैसे फट सा गया था 

क्योंकि तस्वीर में ये जो कोई भी थी इनको ही मैंने खारी बावड़ी में उस आग में जलते हुए देखा था मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था प्यास सी लगने लगी तो मैं कमरे से बाहर आया और मुझे एक लड़का दिखा 

मैं- सुनिये थोड़ा पानी चाहिये 

वो- अभी लाता हु 

वो जल्दी ही पानी ले आया और मैंने पानी पीते हुए उससे पूछा की - इस कमरे में ये तस्वीर किस्की है 

वो- हमारी बुआ की 

मैं- ओह बहुत ही अच्छी तस्वीर है 

उसने मेरे हाथों से गिलास लिया और जाने लगा तभी मैंने पूछा- तुम्हारी बुआ का अर्जुनगढ़ से क्या रिश्ता है 

उसने पीछे मुड़ कर बेहद गौर से देखा मुझे और फिर आगे बढ़ गया मैं उसके पीछे गया पर कुछ ही सेकण्ड्स में वो पता नहीं कहा गायब सा हो गया मैंने भाभी को बताया कि मन नहीं लग रहा थोड़ा बाहर घूम आऊ और गांव की तरफ आ गया 

घूमते हुए मैं गांव की चौपाल में पहुच गया दोपहर का समय था तो वहां ज्यादा लोग नहीं थे पर एक बूढ़ा बरगद के पेड़ के नीचे बैठा घूर रहा था मुझे तो मैं उसकी तरफ बढ़ गया दुआ सलाम की 

मैं- बाबा आप यही के हो 

वो- हाँ 

मैंने गौर किया बूढ़ा बस घूरे जा रहा था मुझे 

मैं- ऐसे क्या देख रहे हो बाबा 

वो-जोगन है तेरी ज़िन्दगी में 

मैं- कौन जोगन बाबा क्या बोल रहे हो

वो-सवालो का सैलाब आएगा और तुझे बहा ले जायेगा वक़्त है सम्भल जा दूर हो जा जोगन से 

मैने सोचा बाबा पागल है शायद क्या बोल रहा है तो मैं वहाँ से उठ कर वापिस चलने लगा तो वो पीछे से बोला- पद्मिनी से मिल आया न तू 

मैंने उसकी बात पर कोई गौर नहीं किया बस चलता रहा तो वो जोर से चिल्लाया - उसकी हरी आँखों में क्या देखा था तूने याद तो होगा न

और मैं रुक गया और वापिस उसके पास गया- आपको कैसे पता बाबा 

वो- वो इशारा कर रहा है कह रहा है तुझसे की दूर होजा वो तुझे फिर मिलेगी उसी तरह पर उसके ताप से मत डरना वो तुझे गले लगाएगी लग जाना प्यारे

बाबा उठा और अपनी लाठी टेकते हुए जाने लगा 

मैं- आपको ये कैसे पता चला 

वो- क्या फर्क पड़ता है बेटा जोगन जैसे नचाये मोह में नाचे प्रीत की डोर प्रत्यंचा बनेगी और लहू की धार बहेगी धार बहेगी 

मैं- मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा 

वो- समय बलवान प्यारे 

मैं- कौन है ये पद्मिनी बाबा

वो- थी एक अभागन 

बाबा ने इतना कहा और चल दिए अपने रास्ते पर मैंने रोकना चाहा पर रुके नहीं पर मेरी जान को उलझन पैदा कर गए बाबा का हर शब्द मेरी बेचैनी बढा गया आखिर कैसे वो जानता था सब कुछ और आगे क्या होने वाला था और सबसे बड़ी बाद की उसने कैसे जाना की पद्मिनी की जलती आँखों में मैंने क्या देखा था 

सवालो की भूलभुलैया किसी चक्कर घिन्नी की तरह मेरे सर को चकराने लगी थी मैंने आस पास के लोगो से उस बूढ़े के बारे में पूछा पर पता चला की वो पागल है ऐसे ही ऊलजलूल बकता रहता है पर मैं इतना तो जान गया था कि वो पागल तो नहीं है 
मैं वापिस आया और भाभी से मिला 

मैं- आपसे कुछ बात करनी है पद्मिनी के बारे में 

भाभी ने मुझे अजीब नजरो से देखा और बोली- अभी व्यस्त हु मैं

मैं- पर अभी जानना है मुझे 

वो- हमें आदत नहीं अपनी बात दोहराने की पता है ना 

मैं- मैंने कहा ना मुझे अभी जानना है

वो- वो इस की बेटी थी इतना काफी होगा तुम्हारे लिए 

मैं- खारी बावड़ी से क्या ताल्लुक था उनका बस ये और बता दो 

मैंने भाभी की आँखों में एक ठंडापन देखा और फिर वो बिना कोई जवाब दिए चल दी एक बार फिर से मेरी नजर उनकी मटकती गांड पर जम गयी अब मेरी हर एक साँस भारी हो रही थी ऐसा लग रहा था की जैसे मेरी हर सांस मुझ पर बोझ बन गयी हो

बाकि समय भाभी एक दो बार और मिली मुझसे पर इस बारे में कोई बात नहीं हुई मैं पद्मिनी के कमरे में गया पर वहाँ अब ताला लगवा दिया गया था मुझे अंदेशा सा हो गया कि शायद इस घर में भी कोई इस बारे में बात नहीं करेगा 

बाकि समय वहां पर क्या हो रहा था मुझे कुछ ध्यान नहीं रहा उलझ सा गया था मैं अनजानी उलझन में उस बाबा की बातों को समझने की कोशिश जारी थी मैं सोचने लगा बाबा किस जोगन के बारे में बात कर रहा था 
क्या पद्मिनी कोई जोगन थी या कोई और पर सबसे पहले पद्मिनी का इतिहास मिले तब आगे बात चले सवाल बहुत और जवाब एक भी नहीं सोचा अब सोया जाये कल देखते है मैं कमरे में आया और अटेच बाथरूम में घुस गया और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला अंदर भाभी को देखा 

गुलाबी ब्रा और सिल्क की जालीदार कच्छी जिसकी जाली से अंदर के काले बाल साफ़ नज़र आ रहे थे मैंने सोचा नहीं था वो अंदर होंगी पर अब हम दोनों एक दूसरे को देख रहे थे मैं उल्टे पाँव वापिस हो गया 

और एक चादर ओढ़ कर लेट गया कुछ देर बाद वो भी आई मैंने धीरे से आँख खोलकर देखा उनहोने एक नाइटी डाल ली थी वो भी चादर में घुस गयी और बोली- मैं जानती हूं जाग रहे हो

मैं चुप रहा 

वो- कुंदन 


मैंने आँख खोलदी भाभी ने मेरे पेट पर अपना हाथ रख दिया और मेरे पैर पर पैर रगड़ने लगी 

मैं- आप क्या चाहती है 
वो- तुम्हे नहीं पता 
मैं- आप बता दो 
भाभी का हाथ मेरे पेट से नीचे की तरफ जाने लगा मैंने सोचा वो लण्ड को पकड़ेंगी पर उन्होंने ऐसा नहीं किया 
वो- तुम्हे क्या लगता है 
मैं- किस बारे में 
वो- की मैं क्या चाहती हु 
मैं- आपके मन की आप जानो 
वो- कभी तू भी जान मेरे मन की 

भाभी का हाथ मेरी शर्ट के अंदर से होते हुए मेरे सीने पर रेंगने लगा 
मैं-क्या आप सेक्स करना चाहती है 

मैंने सीधा ही पूछ लिया और भाभी की हंसी छूट गयी बहुत दिनों बाद मैंने उन्हें इतना खिल खिला के हस्ते हुए देखा 

भाभी- हमारे घाघरे का नाड़ा इतना ढीला नहीं की तुम्हारे लिए खुल जायेगा देवर जी 

मैं-जानता हूं भाभी पर आजकल जो आपका व्यवहार है बस उसे समझने की कोशिश कर रहा हु 
वो- तो क्या समझे 

मैं- कुछ नहीं अब आप ही समझाओ तो बात बने 
वो- अब क्या समझाऊ तुम्हे मेरा कहा मानते ही कहा हो तुम 
भाभी ने मेरा हाथ अपने स्तनों पर रखा और बोली- सहलाओ जरा 
मैंने उनकी और देखा तो उन्होंने आँखों से आश्वश्त किया तो मैं हौले हौले उनके स्तनों को सहलाने लगा 
वो- कुंदन तो मामला कहा तक बढ़ा 
मैं- जहा पहले था 
मैंने नाइटी के ऊपर से ही भाभी के चुच्चक को मसला तो उनके होंटो से आह निकल गयी 
वो- मामले के अंजाम का सोचा है कभी 
मैं- अभी तक तो नहीं 
वो- तो क्या बेवफाई करोगे
मैं- नहीं 
वो और करीब आयी मेरे और बोली- इश्क़ करने लगे हो 
मैं- पता नहीं
 
वो- खैर जाने दो, यहाँ से चलने के बाद हम देखने आएंगे की राणाजी की बताई ज़मीन पर कितनी मेहनत की है तुमने
भाभी ने नाइटी के बटन खोल दिए और मेरा हाथ भाभी की ब्रा पे आ गया 
मैं- रुक जाओ भाभी 
वो- अभी तो शुरू भी नहीं हुई
मैं- क्या आप मेरी परीक्षा ले रही है 
वो- नहीं बस सोच रहे है कि कभी ऐसा वक़्त आया की हमे प्यार की जरुरत हो तो तुम क्या हमारा साथ दोगे 
मैं- ये प्यार ही तो है भाभी आपका मेरा जो रिश्ता है आप भाभी से कही बढ़कर हो मेरे लिए आपकी छाया तले पला हु मैं
वो- जबसे हमे तुम्हारे और चाची के जिस्मानी रिश्तो का पता चला है पता नहीं क्यों पर जलन सी होती है
मैं- तभी आप ऐसे कर रहे हो 
भाभी ने मेरा हाथ अपनी चूची से हटा दिया और बोली- बात ये नहीं है जैसा की मैंने कुछ देर पहले कहा हम ऐसा नहीं सोच रहे और हम जानते है कि अगर हम सोचे भी तो जो मान तुम हमारा करते हो ये नहीं होगा
भाभी- दरअसल हम चाहते है कि तुम बस सामान्य तरीके से जीवन जियो उस राह पर ना चलो जिस पर बाकि चल रहे है क्योंकि हम तुम्हे टूट कर बिखरता हुआ नहीं देख पाएंगे जब तुम्हे देखते है उस कोशिश को करते हुए तो फक्र भी होता है और दुःख भी
मैं- भाभी मैं चाहता हु दोनो गाँवो की दुश्मनी ख़तम हो जाये भाईचारा कायम हो
वो-आखिर तुम्हे अर्जुनगढ़ में इतनी दिलचस्पी क्यों है 

मैं- बस यु ही 
वो- यु ही कुछ नहीं होता 
मैं- आपको सब पता है ना 
वो- शायद हां शायद ना 
मैं- पद्मिनी कौन थी 
वो- मेरी सहेली की बुआ और ठाकुर अर्जुन सिंह की पत्नी 
जैसे ही भाभी ने ये कहा कमरे में इस कदर शांति छा गयी जैसे बरसो से सुनसान हो पद्मिनी अर्जुन सिंह की पत्नी कैसे हो सकती थी उनकी पत्नी तो पूजा की माँ थी और मैंने खुद तस्वीर भी देखि थी उनकी
ये क्या झमेला था मैं सोचते हुए उठ कर बैठ गया 
भाभी- क्या हुआ कुंदन 
मैं- अर्जुन सिंह ने कितनी शादी की थी
भाभी- एक 
मैं- खारी बावड़ी से क्या रिश्ता था पद्मिनी का 
भाभी- पता नहीं बस इतना जानते है वो जगह अर्जुन सिंह की मिलकियत थी पर जैसा की हम बार बार तुम्हे चेता रहे है इन सब में मत पडो राणाजी को भान हुआ तो अच्छा नहीं होगा रात बहुत हुई सोते है
मैं वापिस लेट गया भाभी भी साथ थी 
मैं- एक बात कहे
वो- हाँ 
मैं- गुलाबी बहुत जंचता है आप पर
वो- ये बात है तो दिखा दे नजारा 
मैं- क्या इरादे है 
वो- जो तुम समझो 
मैंने भाभी की कमर में हाथ डाला और सोने की कोशिश करने लगा इस उम्मीद में की जो भी जैसे भी करना है मुझे खुद ही करना है पर कोई तो राह दिखाने वाला मिले पर शायद आज नींद भी नसीब में नहीं था भाभी के बदन की गर्मी मेरा बुरा हाल कर रही थी 
ऊपर से उनकी अठखेलिया मेरा जीना मुश्किल कर रही थी
मैं- सोने दो न भाभी
वो- मैं क्या कर रही हु 
मैं- देखो फिर मैं भी शरारत करूँगा फिर कहना मत 
वो- चलो हम भी देखे कैसी शरारत करते हो 
मैं- मैं बोल रहा हु भाभी
वो- बोलने से क्या होता करो कुछ 
मैं समझ रहा था भाभी से जीतना मेरे बस का नहीं है
मैं- एक बात बोलू बुरा न लगे तो 
वो- हां 
मैं- ये नाइटी उतार दो 
वो- अच्छा जी भला क्यों
मैं- आपको देखना है 
वो- नुमाइश है क्या जो देखोगे 
मैं- भरोसा नहीं क्या 
वो- खुद से ज्यादा तुम पर चलो तुम ही उतार दो 
मैं- सच में 
वो- सच में 
मैंने उनकी नाइटी उतार दी और मेरी धड़कने बढ़ने लगी भाभी को गुलाबी अंतरवस्त्रो में देख कर मेरा हाल क्या हुआ बस मैं ही जानता हूं एक बार फिर हम चादर के नीचे थे 
मैं- आप बहुत सुन्दर हो 
वो- तुम्हारी वाली से भी ज्यादा 
मैं- ये तो नहीं पता 

वो- उसको ऐसे नहीं देखा क्या 
मैं- देखा है बिना कपड़ो के भी देखा है 
वो- बहुत शैतान हो तुम 
मैं- नहीं,ऐसी बात नहीं है वैसे भैया खुशनसीब है जो आपको पाया इन्होंने 
भाभी ने मेरा हाथ अपनी जांघ पर रख दिया और बोली- सो तो है 
मैं- अगर भैया हमे ऐसे देखे तो 
वो- हम दोनों का कत्ल कर देंगे वो वो ऐसे सोचेंगे कि ।।।।। जबकि ऐसा है नहीं 
मैं- शायद इसीलिए कहते है आँखों देखा भी झूठ होता है 
वो- तो फिर तुमने आँखों देखे पर क्यों यकीन किया कुंदन 
मैं- किस बात पर 
वो- मैं पद्मिनी की बात कर रही हु
 
भाभी ने करवट ली जिस से उनकी पीठ सट गयी मेरे सीने से और उनके नितम्ब मेरे तने हुए लण्ड पर आ गए मैंने हाथ उनकी जांघ से हटा कर उनकी चूची पर रख दिया और उसको सहलाते हुए बोला
मैं- आपको कैसे पता 
वो- अंदाजा लगाया मैंने 
मैं- जब आप सब जानती है तो फिर बता क्यों नहीं देती 
वो- कहा न मैं ज्यादा नहीं जानती वैसे भी ये बाते 12-13 साल पुरानी है और फिर क्या फायदा इस जिज्ञासा का जिसमे नफरत ही मिलने है तुम्हारे सामने पूरी ज़िंदगी पड़ी है उसे जियो उसे खूबसूरत बनाओ
मैंने भाभी की ब्रा को खोल दिया अब वो ऊपर से नंगी थी मेरी बाँहों में मुझ पर उत्तेजना छाने लगी थी मैंने हौले से भाभी के कंधे को चूमा 
वो- कुंदन तुम्हे एक सलाह दे रहे है रिश्तो का मान करना पर इतना भी ना की रिश्ते ही ना रहे 
भाभी की ये बात सुनकर मैंने उनके उभारो से अपना हाथ हटा लिया और उस कमरे से बाहर निकल गया कुछ लोग सो रहे थे कुछ जाग रहे थे शादी जो थी मैंने एक चाय मंगवाई और हवेली के बाहर उस बड़े से बगीचे में एक बेंच पर बैठ गया 
हवा में हलकी सी ठण्ड थी मैं अपने विचारों में खोया था चाय की चुस्कियों के साथ मन में दोहरा द्वन्द था भाभी की वजह से मैं हद से ज्यादा गर्म हो चूका था और दिमाग में अर्जुन सिंह घूम रहे थे
आखिर ऐसे कौन सा राज़ था जिसे सब अपने अपने तरीके से छुपा रहे थे पूजा ने तो कसम दे रखी थी पर सवाल ये था की वो चाहती तो वो पद्मिनी के बारे में मुझे बता सकती थी
मेरे दिमाग में भाभी की कही वो बात गूंज रही थी ठाकुरो की रगो में खून के साथ हवस भी दौड़ती है अब भाभी ने जरा लिफ्ट क्या दी मैं कहा तक पहुच गया था कभी कभी तो नफरत सी होती थी खुद से 
मैं अपने विचारों में डूबा हुआ था की तभी मैंने एक औरत को बगीचे की दूसरी तरफ जहां घने पेड़ थे वहां जाते हुए देखा तो सबसे पहले मेरे दिमाग में बस ये ही बात आई की इतनी रात ये उस अँधेरी जगह में क्यों जा रही है
कुछ सोच कर मैं उसके पीछे हो लिया दबे पांव उस तरफ अँधेरा इतना था की पहली नजर में कुछ दिखे ही नहीं और तभी वो फुसफुसाते हुए बोली- कितनी देर लगादी आओ अब जल्दी से कर लो 
मैं कुछ समझ पाता इससे पहले ही उसने अपनी साडी को कमर तक उठाया और अपने हाथ घुटनो पर रखते हुए झुक गयी वैसे तो मुझे भी चूत की जरुरत महसूस हो रही थी इस समय पर ये थी कौन
वो- क्या सोचने लगे
मैंने अपने हाथ उसके कूल्हों पर रखे और फिर धीरे से उनको सहलाने लगा मसलने लगा मैंने अपना हथियार बाहर निकाला और उस पर थोड़ा सा थूक लगाया उस औरत ने जैसे ही मेरे हथियार को चूत के मुहाने पर महसूस किया वो थोड़ा सा और झुक गयी
मैंने उसकी कमर को थामा और लंड को अंदर की ओर ठेल दिया वो हल्का सा कसमसाई और मैंने बाकी बचा काम पूरा कर दिया पर जैसे ही लण्ड अंदर गया वो जान गयी की मैं वो नहीं जिससे चुदने वो आयी थी 
तो उसने आगे होने की कोशिश की पर मैंने उसकी कमर पर दवाब डाला हुआ था मैंने लण्ड को हल्का सा बाहर खींचा और फिर से अंदर सरका दिया 
वो- कौन हो तुम 
मैं- फर्क पड़ता है 
वो- छोड़ो मुझे,
मैं- जो काम करवाने आयी हो वो तो करवालो पहले
वो- पर तुम कौन 
मैं- चुदने आयी हो चुदाई का मजा लो क्या हम क्या तुम 
मेरी बात सुनकर उसने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया और मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ानी शुरू की धीरे धीरे वो भी मेरा साथ देने लगी अपनी आहो पर काबू करते हुए 
वैसे भी जब एक बार औरत की चूत में लंड सेट हो जाये तो उसका मजा दुगना हो जाता है कुछ देर मैंने उसे झुकाये रखा और फिर उसे खड़ी कर दिया और उसको चूमने लगा उसने अपने होंठ मेरे लिए खोल दिए 
मैंने अपना हाथ उसके ब्लाउज़ को खोलने के लिए रखा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया शायद वो कपडे नहीं उतारना चाहती थी तो मैं ऊपर से ही उसकी छाती दबाने लगा वो और मस्ताने लगी तो मैंने उसे साड़ी ऊपर करने को कहा 
और खड़े खड़े ही उसकी चुदाई करने लगा मैं लगातार तेज तेज धक्के लगाते हुए उसके पूरे चेहरे को चूमे जा रहा था अब वो भी खुल कर मेरा साथ दे रही थी पर ये एक जल्दबाज़ी वाली चुदाई थी जिसे जल्दी ही ख़त्म हो जाना था 
चुदाई के बाद उसने अपनी साडी को सही किया और जाने लगी मैंने रोकने की जरा भी कोशिश नहीं की न उसने मुड़ कर देखा मैं वापिस आकर उसी बेंच पर बैठ गया और एक बार फिर से सोचने लगा 

इस बार मैं राणाजी के बारे में सोच रहा था मैं खुद को उनकी जगह रख के देखने लगा की कैसे जवान होते ही चारो तरफ औरते आ गयी तो जब राणाजी अपनी जवानी में होंगे क्या बात होगी परंतु साथ ही वो मेरे पिता भी थे तो उस रिश्ते की इज्जत भी रखनी थी मुझे
मैं अपने भाई को कैसा समझता था और चाची के अनुसार वो कैसा था मेरे दिमाग में एक बात आई की शायद इन्दर ने कुछ ऐसा किया हो की दोस्ती दुश्मनी में बदल गया हो अब समस्या ये थी शक के घेरे में सब थे पर कोई कड़ी नहीं जुड़ रही थी जिससे किसी सिरे पर पंहुचा जा सके
हर बात राणाजी पर आकर ख़तम हो जाती थी अब ये पद्मिनी और बीच में आ गयी थी खैर पद्मिनी से याद आया ये ठाकुर अर्जुन सिंह की ससुराल थी मतलब पूजा का ननिहाल ओह तेरी! ये बात पहले क्यों नहीं सोची मैंने
पूजा क्यों नहीं आयी शादी में चलो माना की गाँव में उसका पंगा चल रहा परिवार से पर ननिहाल से क्या बात हुई पर एक पेंच और फंसा हुआ था यहाँ पर और वो ये था की पूजा के अनुसार उसकी माँ सरिता देवी थी पर लोगो के अनुसार अर्जुन सिंह की पत्नी पद्मिनी थी
तो क्या अर्जुन सिंह ने दो शादिया की थी पर लोगो ने बताया की एक विवाह किया था तो बस ये पेंच फंस गया था अगर ये बात पकड़ में आ जाये तो बात उलझे इतना तो मैं समझ गया था की ये ये ताश के पत्तो का महल था जो हवा के तेज झोंके से भरभरा कर गिर जायेगा 
फिर मैंने सोचा की राणाजी ऐसे थे तो उनका मित्र भी वैसा ही होगा मतलब इस बात की सम्भावना हो सकती थी की ऐसी की औरत हो जो दोनों की सेटिंग या रखैल टाइप हो अगर उसका पता मिले तो एक राह दिख सकती है
रात बहुत बीत चुकी थी तो मैंने सोना ही मुनासिब समझा और आकर भाभी की बगल में पड़ गया सुबह जरा देर से आँख खुली अलसाते हुए मैं तैयार हुआ आज शादी का दिन था पर मैं सोच रहा था कि अर्जुन गढ़ से कौन आता है पर वहाँ से कोई नहीं आया 
पता चला की अब दोनों घरानों के बीच कोई संबंध नहीं रहा ओह तो इस वजह से पूजा नहीं आयी होगी इस बीच दो चार लड़कियों से नैना दो चार से हुए पर भाभी आस पास ही थी इसलिए मैंने ज्यादा उड़ान नहीं भरी 
पूरी हवेली में धूम धाम मची हुई थी मेहमानों से भरा थी जगह बारात आने में थोड़ी ही देर थी चारो तरफ जैसे खुशिया बिखर गयी थी मैं एक कोने में कुर्सी पे बैठा हुआ था की एक करीब42-43 साल की औरत मेरे पास आकर बैठ गयी 

औरत- तुम ठाकुर हुकुम सिंह के बेटे हो न 
मैं- जी हां पर माफ़ कीजिये मैंने आपको पहचाना नहीं वो क्या है ना की मैं अपनी भाभी के साथ आया हु उनकी सहेली की बहन की शादी है
औरत- कोई बात नहीं वैसे मेरा नाम कामिनी है, कामिनी ठकुराइन मैं अनपरा गाँव से हु
 
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मुझे ध्यान आया अनपरा गाँव हमारे गांव से करीब 25-30 किलोमीटर दूर पड़ता था मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुराया उसने भी मुस्कान से जवाब दिया मैंने गौर किया इस उम्र में भी जवानी लबालब थी उस पर शारीर मांसल था पर मोटी नहीं थी कुछ कुछ बाल सफेद थे जिन्हें मेहँदी से लाल कर छुपाया गया था 
आज के हिसाब से कपडे पहने गए थे रुतबा झलकता था उसके व्यक्तित्व से 
वो- इतनी गौर से क्या देख रहे हो 
मैं- कुछ नहीं 
वो- और कैसे है ठाकुर साहब 
मैं- जी अच्छे है, पर आप कैसे जानते है राणाजी को 
वो- हम कैसे जानते है कभी उनसे ही पूछ लेना खैर जब घर जाओ तो उन्हें हमारा सलाम देना 
तभी उसे किसी से पुकारा और वो उठ कर चल पड़ी मेरी निगाह उसकी मटकती गांड पर पड़ी और न जाने मुझे क्यों ऐसा लगा की कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही है वो
उसके बाद एक दो बार और आपस में हमारी नजरे मिली और उसकी आँखों में मैंने एक खनक और होंठो पर एक रहस्यमयी मुस्कान देखि मैंने उसका वो देखने का अंदाज दिलकश सा था पर उसकी एक बात मेरे दिमाग में घूम रही थी

शादी राजी ख़ुशी निपट गयी सुबह करीब ढाई तीन बजे मैं और भाभी कमरे में आये भाभी ने बहुत भारी लहंगा चोली पहने हुए थे ऊपर से ढेरो गहने 

मैं- आज आप बहुत सुन्दर लग रही थी 

वो- क्या फायदा तुमने तो एक बार भी नहीं देखा मेरी तरफ

मैं- क्या आप भी 

और हम दोनो ही हस पड़े हमारे रिश्ते में कुछ तो बात थी इतनी उलझनों के बीच भाभी जैसे एक ताज़ी हवा का झोंका सा थी कुछ बातों के बाद हम सो गए सुबह हुई कुछ लोग जा रहे थे कुछ रुक गए थे 

मैंने तभी कामिनी को देखा और मेरे मन में ख्याल आया की कही ये ही तो नहीं थी उस रात बगीचे में मेरे साथ पर ये यहाँ अकेली लग रही है तो इसकी कोई सेटिंग होगी किसी से पर पहले ये पता करना की उस रात वो ही थी न ये जरुरी था 

इससे पहले मैं उसके पास जाता वो खुद ही मेरी तरफ आयी और बोली- रुकोगे आज 

मै- नहीं बस नाश्ता पानी करने के बाद निकल ही रहे है

हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे पर उसके हाव भाव से ऐसा कुछ लग नहीं रहा था और मैं सोच रहा था की जिक्र करू की नहीं की वो बोली- और इंद्र कैसा है 

मैं- आप कैसे जानते है उनको 

वो- मैं तो सबको जानती हूं

मैंने सोचा कही ये भी भाई के अतीत का कोई पन्ना तो नहीं 

मैं- ठीक है आजकल छुट्टी आये है कह दूंगा आप याद कर रही थी समय होगा तो मिल लेंगे आपसे

वो- तेज हो तुम जरुरत से ज्यादा तेज 

मैं- और आप रहस्यमयी एक दम से मेरे इतने करीब आने की कोशिश के पीछे क्या राज़ है 

उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोली- बरखुरदार, अब करीब तो आना ही पड़ेगा तुम्हारे मुरीद जो हो गए है 

मैं- तो बगीचे में आप थी उस रात 

वो- क्या फर्क पड़ता है 

मैं- आप ही थी पर आप के साथ कौन आने वाला था 

वो- मैंने कहा न क्या फर्क पड़ता है 

मैं-आप मेरे परिवार को कैसे जानती है 

वो- ये किया न तुमने जायज प्रश्न, बस यु समझ लो हम तुम्हारे दूर के रिश्तेदार है 

मैं- अगर आप राणाजी को जानती है तो अर्जुन ठाकुर को भी जानती होंगी

वो- तुम ये क्यों पूछ रहे हो 

मैं- पद्मिनी के बारे में जानना है मुझे 

उसने बड़ी अजीब नजरो से देखा मुझे और बोली- हुकुम सिंह से पूछो उससे बेहतर कौन जानता है उसे

मैं- मैंने आपसे जवाब मांगा है 

वो- तुम होते कौन हो मुझसे जवाब मांगने वाले 

मैं उसके पास गया और उसकी आँखों में आँखे डालते हुए बोला- मैं वो हु जिसने उस रात आपकी चूत की धज्जियां उड़ा दी थी 

वो- उफ्फ्फ ये गुमान ये अकड़ 

मैं- गुरुर आपको भी खूब है 

वो- गुरुर तो औरत का गहना होता है तलाश लेना अपने सवालो के जवाब और न मिलें तो इतनी हिम्मत रखना की अपने बाप से पूछ सको

इससे पहले की मैं उसे जवाब दे पाता वो दूसरी तरफ चल पड़ी पर फिर वो वापिस आयी और मेरे कान में बोली- तुम्हारी बहन कैसी है 

मैं- मैं ठीक है

वो- कहा है

मैं- विदेश में 

वो- बढ़िया 

उसने बस इतना कहा और चली गयी मैं उसकी मटकती गांड को देखता रहा तभी भाभी आ गयी और घंटे भर बाद हम वहाँ से चल दिए कामिनी ने मेरे दिमाग को और उलझा दिया था 
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