Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - Page 5 - SexBaba
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Antarvasna kahani वक्त का तमाशा

घर के ऐसे माहॉल में स्नेहा घर से बाहर निकलती भी कैसे, क्या बोलके निकले या किसी को बताए बिना निकले वो सोच सोच के परेशान हो रही थी... उधर ज्योति और शीना दोनो साथ बैठे थे अपने कमरे में पर कोई किसी से बात नहीं कर रहा था., बाल्कनी से आ रही लहरों की पत्थर से टकराने की आवाज़ भी आज शीना को शोर लग
रहा था, वहीं ज्योति अपनी खामोशी से लड़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो कोशिश नाकामयाब होती.. जब भी वो सोचती कुछ कहके यह अजीब सी खामोशी तोड़ी जाए,

अपनी उस सोच को शब्दों में तब्दील नहीं कर पाती..



"ज्योति..." शीना ने सीलिंग की तरफ देखते हुए कहा



"ह्म्म्म.." ज्योति ने बस इतना ही जवाब दिया



"यार, आज सुबह कमिशनर अंकल आए थे, और जब मैं उनके पास गयी थी उनकी बातें सुनने को, तो उन्होने मुझे बैठने ही नहीं दिया, किसी ना किसी बहाने से दूर भेजते और फिर जब मैं डोर से देखती तो पापा के एक्सप्रेशन्स बहुत सीरीयस होते.. क्या लगता है तुझे, क्या बात होगी.." शीना ने ज्योति की तरफ अपना चेहरा करके कहा



"कुछ नहीं, अक्सर ऐसे केसस में कमिशनर आता है और कहता है कि केस सीधा है, गाड़ी का आक्सिडेंट हुआ है, आप चाहें तो तहकीकात करें या तो केस बंद कर दें , और जो सामने होता है वो कहता है कि जो होना था वो हो गया है, अब आप केस बंद करें या तहकीकात करें मुझे कोई फरक नही पड़ेगा.. और फिर केस बंद हो जाता है.." ज्योति अभी भी सीलिंग की ओर देखे जा रही थी



"ह्म्म्म्म ..." शीना ने भी बस इतना कहा और दोनो बस सीलिंग को घूर्ने लगी..



उधर अमर ने रिकी को अपने पास बुलाया और राजवीर भी उनके साथ वहीं था.. हर बार जब भी अमर अपने घर के आलीशान कान्फरेन्स रूम में होता तो उसके साथ विक्रम भी होता, लेकिन आज ऐसा नहीं था.. आज वो यहाँ विक्रम के साथ नहीं, पर विक्रम की वजह से था... अमर कान्फरेन्स रूम में लगे अपने और विक्रम की फोटो को एक टक देख रहा था और बस देखे ही जा रहा था.. राजवीर और रिकी दोनो उसके पीछे खड़े थे और वो समझ रहे थे अमर की भावनाओं को..



"विक्रम के जाने के बाद आज पहली बार यह कमरा मुझे काटने को दौड़ रहा है, आज पहली बार यह कमरा मुझे खाली सा लग रहा है..विक्रम जब भी यहाँ रहता हमेशा मुझे कहता , पापा आप चिंता ना करें , अब आपकी उमर रिटाइयर्मेंट की आ गयी है सब काम मैं संभाल रहा हूँ.. और आज वो ही चिंता दे गया मुझे.. आज वो ही अकेला छोड़ गया है मुझे.." अमर ने अपनी फोटो से नज़रें हटाई और राजवीर और रिकी का सामना किया, अमर की आँखें नम तो थी ही, लेकिन उसकी बातें सुन
के रिकी भी कमज़ोर पड़ने लगा.. राजवीर ने तुरंत रिकी और अमर को पास पड़े चेर्स पे बिठाया



"भाई साब, अब अगर हम लोग ही कमज़ोर पड़ेंगे तो घर कैसे संभलेगा, घर की औरतों का ध्यान कौन रखेगा, वो लोग पहले से ही टूट चुकी हैं, और अब आपकी यह हालत देख के मुझे डर है कहीं वो बिखर ही ना जायें.." राजवीर ने खुद को मज़बूत करके कहा



"तुम ठीक कह रहे हो राजवीर, रिकी, तुम क्या कर सकते हो अपने भाई के लिए.." अमर के इस सवाल से राजवीर और रिकी दोनो चौंक गये, किसी को नहीं पता था कि अमर का इस सवाल का क्या मतलब निकाले.. यह सवाल उम्मीदों से परे था, इसलिए दोनो खामोश रहे और अमर को देखने लगे..



"पापा, मैं भैया के लिए कुछ भी कर सकता हूँ..इस घर के लिए कुछ भी कर सकता हूँ... आप निश्चिंत रहें, आप आवाज़ कीजिए, मैं ना नहीं कहूँगा.." रिकी ने जज़्बाती बनते हुए कहा



"रिकी, राजवीर के साथ विक्रम के काम काज को सम्भालो, राजवीर, रिकी को सब कुछ बताओ, विक्रम क्या करता था, कैसे करता था.. शुरुआत में जो भी काम काज रहेगा उसकी देख रेख रिकी करेगा लेकिन ज़िम्मेदारी राजवीर, तुम्हारी होगी.. और जब रिकी को सब कुछ समझ आए तब राजवीर तुम अपने काम पे ध्यान देना.... इस दोरान राजवीर, तुम्हारे काम का कुछ नुकसान हो, उसकी भरपाई हम कर लेंगे.."



"भाई साब, इतना छोटा नहीं कीजिए, यह घर मेरा भी है... मेरा काम या विक्रम का काम, है तो एक ही.. आप चिंता ना करें, मैं सब देख लूँगा और रिकी को समझा दूँगा.." कहके राजवीर और रिकी दोनो वहाँ से जाने के लिए उठे ही थे कि फिर अमर ने कहा



"अभी हम ने अपनी बात ख़तम नहीं की है, बैठ जाओ.." अमर ने कुर्सी की तरफ इशारा करके कहा



"रिकी, तुम्हारे रिज़ॉर्ट का क्या करोगे जिसका आइडिया तुमने मुझे दिया था और जिसपे तुमने काम शुरू भी कर लिया है"



"पता नही पापा, फिलहाल तो अब आप ने जो कहा मैं उसपे ध्यान दूँगा, रिज़ॉर्ट का बाद में कुछ कर लेंगे, जो चीज़ है उसपे ध्यान दूं ना कि उस चीज़ पे जो फिलहाल सिर्फ़ काग़ज़ पे है.."



"काग़ज़ पे जो चीज़ है उसे हक़ीकत में बनाना ही विक्रम का काम था.. तुम्हारी जगह विक्रम होता तो यह जवाब कभी नहीं देता.. सीधा मैं कहूँ तो मैं चाहता हूँ तुम दोनो काम देखो, क्यूँ कि इसमे तुम्हारे साथ ज्योति रहेगी तो रिज़ॉर्ट वाला वर्कलोड इतना ज़्यादा नहीं होगा, और तुम्हारा सपना भी पूरा हो जाएगा.. हां लेकिन इसके लिए तुम्हे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी, अगर पढ़ाई करोगे तो तुम विक्रम का काम हॅंडल नहीं कर पाओगे.. सोच समझ कर फ़ैसा लो और मुझे बताओ, कोई जल्दी नहीं है मुझे, तुम्हारे पास 3 दिन का वक़्त है"



अमर की यह बात सुन रिकी को काफ़ी खुशी महसूस हुई क्यूँ कि पढ़ाई ना करने का रंज उसे बिल्कुल नहीं था, उसने अब तक जो लंडन में किया था वो काफ़ी था, अब अगर वो ज़िंदगी में प्रॅक्टिकल चीज़ें नहीं करेगा तब तक उसे अपनी अब तक की हुई पढ़ाई व्यर्थ ही लगेगी और अब जब उसे मौका मिल रहा था तो वो मना नहीं कर सकता. और अमर ने विक्रम के काम काज के साथ साथ रिकी के प्रॉजेक्ट का भी ख़याल रखा था, इससे अच्छी बात क्या हो सकती थी रिकी के लिए.. अगर मॅनेज्मेंट लॅंग्वेज में कहूँ तो सिर्फ़ प्रॉजेक्ट मॅनेज्मेंट ही नहीं, बल्कि उसके साथ साथ टाइम मॅनेज्मेंट, रीसोर्स मॅनेज्मेंट जैसे चीज़ें भी प्रॅक्टिकल में इंप्लिमेंट करने को मिलेगी, किसी भी मॅनेज्मेंट स्टूडेंट के लिए इससे अच्छी चीज़ क्या हो सकती है.. रिकी अंदर ही अंदर काफ़ी खुश हो गया था, मन में सोचने लगा था कि वो क्या करेगा, कैसे करेगा और हर वो चीज़ जो आदमी करता है जब उसे अपना सपना पूरा होते हुए दिखता है, लेकिन रिकी तो हमारा रिकी ही है.. कभी अपने एमोशन्स को अपने उपर हावी नहीं होने देता, इसलिए उसने अपनी खुशियों को दिल में दबाए ही रखा



"ओके पापा.." कहके रिकी ने हल्की स्माइल दी और राजवीर के साथ वहाँ से निकल गया.. बाहर आते ही रिकी और राजवीर बातें करने लगे के कब से काम शुरू करना है..

यह तय हुआ 2 दिन बाद से राजवीर विक्रम के काम काज के बारे में रिकी को बताना शुरू करेगा.. विक्रम और अमर ने घरवालों को दिखाने के लिए तीन फ़र्ज़ी कंपनीज़ खोल रखी थी.. राइचंद'स कन्स्ट्रक्षन, राइचंद'स टेक्सटाइल्स आंड राइचंद'स गेम्स... अमर और विक्रम के अलावा सिर्फ़ राजवीर जानता था कि यह सब कंपनीज़ टाइमपास के लिए हैं, राइचंद'स कन्स्ट्रक्षन का हिसाब किताब, टेक्सटाइल्स में साले , किसी को कुछ नहीं पता था.. कन्स्ट्रक्षन में जितने फ्लॅट्स बनते सब अमर के दोस्तों में जाते जिनके पैसों का कुछ ठिकाना नहीं था, जब किसी को देने होते तब दे देते.. गिन चुन के 10 - 12 साल में बस 4 बिल्डिंग ही बनी थी और सब की सब अमर और विक्रम के दोस्तों से भरी हुई थी.. एक साइट पे हमेशा काम चलता रहता ताकि लोगों को कुछ दिख सके.. टेक्सटाइल्स का हाल क्या था वो किसी को नहीं पता था, सूरत
में एक लूम फॅक्टरी थी पर वहाँ से जो माल बनता उसमे से बिक्री सिर्फ़ 805 की ही होती, पर वहाँ भी प्रोडक्षन बंद नहीं कर सकते नहीं तो मज़दूरों को भूके पेट रहना पड़ता.. पेपर पे देखा जाए तो कन्स्ट्रक्षन और टेक्सटाइल्स का मिला के मुनाफ़ा कुछ 20-30 करोड़ था वो भी सालाना..



रिकी का दिल बार बार यही कहता कि काश शीना उसके साथ जाय्न हो जाए रिज़ॉर्ट वाले प्रॉजेक्ट में, लेकिन अब जब उसने देखा कि रिज़ॉर्ट को शायद अकेले भी मॅनेज करना पड़े तो उसका दिमाग़ दोबारा सोचने लगा.. वो जानता था कि ज्योति अकेले में सब मॅनेज कर लेगी और वो भी उम्दा तरीके से, शीना ना ही मॅनेज्मेंट पढ़ी है और ना
ही उसने कभी की है, इसलिए उसपे अकेले यह काम का भरोसा करना शायद ठीक ना रहे.. जब दिल और दिमाग़ की यह लड़ाई किसी निर्णय पे नहीं पहुँच पाई, तब उसने सोचा क्यूँ ना डाइरेक्ट शीना से बात की जाए..



"शीना, व्हेअर् आर यू..." रिकी ने फोन लगा के कहा



"अपने रूम में भाई, क्यूँ"


 
"उः, अभी नीचे मेरी गाड़ी के पास आ जाओ, मुझे कुछ ज़रूरी काम है तुम से.. आंड मेक इट फास्ट, फॅशन परेड नहीं जाएँगे, ट्रस्ट मी.." रिकी ने कहके फोन कट कर दिया और जल्दी अपनी गाड़ी की तरफ पहुँच गया. शीना ने भी जल्दी से अपना हुलिया ठीक किया और रिकी के पास पहुँच गयी... गाड़ी के पास जाके उसने देखा तो

रिकी गाड़ी में बैठा उसका ही वेट कर रहा था.. बिना किसी सवाल के शीना अंदर बैईः गयी और दोनो वहाँ से निकल गये.. जाना कहाँ था वो दोनो नहीं जानते थे,

इसलिए रिकी ने सोचा कहीं गाड़ी रोकने से बेहतर है कि चलती गाड़ी में ही बात की जाए



"शीना, यू नो, मुझे ज्योति से ज़्यादा तुम पे विश्वास है... तुम सिर्फ़ मेरी बहेन ही नहीं, मेरी दोस्त भी हो.. भले तुम क्वालिफिकेशन में ज्योति की लेवेल पे नहीं हो,

लेकिन फिर भी मैं जानता हूँ कि मैं अगर तुम्हे कुछ काम समझाऊ और करने के लिए दूं तो तुम मुझे निराश नहीं करोगी... क्या मैने सही कहा" रिकी ने शीना की आँखों में देख के कहा



"भाई, सबसे पहली बात मुझे ज्योति या किसी और के साथ भी कंपेर मत कीजिए, दूसरी बात, यस.. भले ही मैं खुद को निराश करूँ, लेकिन आप को कभी निराश नहीं कर सकती.. जो भी काम, जैसा भी काम, आप साथ में होगे तो मैं बखूबी उसे करूँगी..." शीना की बातों से ऐसा लग रहा था कि शायद वो समझ गयी है रिकी क्या बात करने वाला था आगे



"ओके शीना, एक काम करो, पुणे खोपोली हाइवे पे नोवोटेल का रिज़ॉर्ट है, चेक इट आउट... अब्ज़र्व करो वहाँ की हर अमिनिटी को, वहाँ आ रहे लोगों के क्लास को, वहाँ के इंफ़्रा को.. आंड हमारा रिज़ॉर्ट कैसा होना चाहिए वैसा एक लेआउट तैयार करो.. उसमे ग्रॅफिक्स की मदद से मुझे एक डमी पीस दिखाओ कि रिज़ॉर्ट कैसा होगा, कहाँ से
एंट्री, कहाँ से एग्ज़िट, कितने रूम्स.. हर वो चीज़ जो आक्चुयल में होगी, मुझे वो कंप्यूटर में देखनी है... क्या तुम कर पाओगी..." रिकी का ध्यान अभी पूरा रोड पे ही था, उसने जैसा सोचा था वैसा बिल्कुल नहीं हुआ.. उसे लगा शायद शीना उसकी बात सुन के शॉक होगी और कहेगी कि मैं यह सब कैसे करूँगी, वगेरह वगेरह.. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ..



"कर पओगि कि नहीं, जवाब तो दो यार, खामोश क्यूँ हो.." रिकी ने 2 मिनिट बाद फिर उसे कहा



"कर पाउन्गी ? मैने पहले ही कहा था ना कि मैं ज्योति की कंपॅरिज़न में नहीं आती.. मैने यह ऑलरेडी कर दिया है..." शीना ने जैसे ही यह कहा रिकी को अपने कानो पे विश्वास नहीं हुआ और अब उसे एक झटका लगा.. साइड में गाड़ी रोक के उसने फिर शीना को देखा



"व्हाआटततटटतत्त..." रिकी को शब्द नहीं मिल रहे थे आगे कुछ कहने के लिए



"यस, यह सब कर चुकी हूँ मैं.. और उस दिन सुबह को मैं आप सब को यही बता रही थी जो मेरा सर्प्राइज़ था, लेकिन शायद.." कहते कहते शीना रुक गयी और फिर

कुछ देर बाद बोली.. "एनीवेस, आप को जो भी चाहिए मैं कर चुकी हूँ, अब बस आप को और पापा को दिखाना है.. जैसे ही पापा देखेंगे उन्हे यकीन हो जाएगा कि उनकी अपनी बेटी भी कुछ कर सकती है.."



"और यह सब कब किया तुमने.." आख़िरकार रिकी को कुछ शब्द मिल गये



"उस दिन रात को आपको याद है जब मैं घर पे नहीं थी, और आप ने मुझे कितने फोन किए, मैं वो पूरा एक दिन मेरी एक आर्किटेक्ट फरन्ड है उसके साथ लोनवाला में बने डेला रिज़ॉर्ट में थी.. सुबह को निकल के हम वहाँ पहुँच गये और वहाँ की हर एक चीज़ को अपनी कॅमरा में कॅप्चर किया.. वहाँ कैसे लोग आते हैं, कौन्से महीने में सबसे ज़्यादा आते हैं और लोग क्यूँ आते हैं.. उन सब की रिपोर्ट बना दी है मैने.. और मेरी वो फरन्ड की मदद से हम ने ग्रॅफिकल लेआउट भी बना दिया है.

आंड चिंता नहीं करें भाई, डेला की कॉपी नहीं करेंगे हम.. जो हम ने सोचा है वो उससे भी अच्छा कॉन्सेप्ट है, जो बंदा रिलॅक्स होने आएगा वो रिलॅक्स होके आएगा और रिलॅक्स होके जाएगा.. बताइए, कैसी लगी मेरी प्लॅनिंग.." शीना ने अपनी बात ख़तम की, रिकी को उसपे यकीन नहीं हो रहा था.. रिकी उसे बस एक टक देखे जा रहा था



"सोचने के लिए किसी पढ़ाई की ज़रूरत नहीं है भाई, आंड ट्रस्ट मी.. आप से ज़्यादा मैं चाहती थी कि ज्योति इस प्रॉजेक्ट में ना रहे...' शीना ने फाइनली अपने ग्लासस चढ़ा लिए और खामोशी से आगे देखने लगी.. रिकी कुछ देर वहीं बैठे बैठे सोचने लगा और घर की तरफ गाड़ी मोड़ दी.. पूरे रास्ते में रिकी के दिमाग़ में सिर्फ़ दो वाक्य गूंजते रहे..



"जैसे ही पापा देखेंगे, उन्हे यकीन हो जाएगा कि उनकी बेटी भी कुछ कर सकती है..." और " आप से ज़्यादा मैं चाहती थी कि ज्योति इस प्रॉजेक्ट में ना रहे.."



औरत या लड़की, चाहे उपर उपर से कितना भी दिखाए कि वो बहुत अच्छी दोस्त हैं, या उनके मन में कोई ईर्षा की भावना नहीं है, लेकिन हक़ीक़त बिल्कुल विपरीत होती है.. रिकी को अब यह दिख रहा था, लेकिन इसमे दोष शीना का भी नहीं था, वो दरअसल अमर को दिखाना चाहती थी कि सिर्फ़ ज्योति में ही नहीं, उनकी अपनी बेटी में भी वो सब गुण है जो उसे सम्पुर्न बनाते हैं, लेकिन शीना कभी दिखा नहीं पाती.. इसलिए इससे अच्छा मौका उसे नहीं मिल सकता था, तभी तो उसने ज्योति से दो कदम आगे बढ़ के वो सब काम पहले ही कर लिया जो ज्योति खुद 2 महीने बाद करने वाली थी.. उसपर ना ज्योति और ना शीना को यह पता था कि अमर और रिकी की क्या बात हुई आज सुबह, इसलिए शीना को यह बहुत बड़ा अड्वॅंटेज था.. रास्ते में शीना बस यही सोचती रही कि अब ज्योति नहीं आएगी उसके और रिकी के बीच में,

लेकिन रिकी को डाउट था कि अमर मानेगा कि नहीं.. क्यूँ कि वो जानता था कि अमर ने एक बार कह दिया फिर वो खुद भी बदलता नहीं है.. कुछ देर में जब दोनो घर पहुँचे, रिकी ने शीना से उसका डाटा मँगवाया और अमर से मिलने चला गया जो अभी भी कान्फरेन्स रूम में बैठा था.. अमर के पास जाके रिकी ने उसे सब बता दिया

और उसे कन्विन्स कर लिया कि एक बार वो शीना की मेहनत भी देख ले... शीना जैसे ही रूम में आई, उसके हाथ में उसकी डिस्क थी.. अमर और रिकी के सामने आके शीना ने प्रोजेक्टर से अपनी डिस्क कनेक्ट की कि अमर ने उसे रुकने को कहा, और इंटरकम से सुहसनी, स्नेहा , राजवीर और ज्योति को भी बुला दिया.. करीब 5 मिनट में सब
आए और उन सब से अमर ने बात की.. सुहसनी काफ़ी खुश थी कि शीना ने बहुत ही अच्छे काम में अपना दिमाग़ लगाया, वहीं राजवीर और स्नेहा के चेहरे पे बिल्कुल भाव नहीं थे.. राजवीर को शायद इससे कोई फरक नहीं पड़ता क्यूँ कि अगर ज्योति यहाँ नहीं , तो कहीं और कुछ कर लेगी इतनी काबिल तो है वो.. स्नेहा उपर से नहीं दिखा रही थी लेकिन अंदर उसे एक बहुत बड़ा झटका लगा था, क्यूँ कि जो शीना ने उसे कहा वो उसने कर के दिखाया, और इसका मतलब अब आगे शीना स्नेहा के कहने पे नहीं चलेगी.. ज्योति एक कोने में खड़ी कुछ और सोच रही थी.. क्या, वो कोई नहीं जानता.. खैर, शीना ने जैसे ही प्रोजेक्टर ऑन किया, स्क्रीन पे जो आया वो देख के उसके साथ रिकी की आँखें भी फटी की फटी रह गयी.. शायद ही शीना और रिकी को कभी इतना बड़ा झटका लगा हो...
 
शीना ने जैसे ही डिस्क को कनेक्ट किया, रिकी और शीना की आँखें फटी की फटी रह गयी.. डिस्क पूरी फॉर्मॅट हो चुकी थी, प्रॉजेक्ट के अलावा जो दूसरा डाटा था वो भी नहीं रहा था.. शीना और रिकी ने दोनो ड्राइव्स चेक की लेकिन कुछ भी नहीं था, दोनो ने हर ऑप्षन एक्सप्लोर किया , हिडन फाइल्स या फोल्डर्स.. लेकिन वैसा कुछ नहीं था... शीना के पैरों तले ज़मीन खिसकने लगी थी, और रिकी भी वहीं खड़े खड़े बस शीना की आँखों में देख रहा था जैसे पूछ रहा हो... "अब ?"



"क्या हुआ शीना, कुछ प्राब्लम है..." अमर ने शीना से गंभीरता से पूछा



"उः डॅड, लगता है डिस्क बदल गयी है, शीना, गो आंड चेक अनदर डिस्क..." रिकी ने शीना से पहले अमर को जवाब दिया



शीना जानती थी कि यही उसकी डिस्क है, लेकिन वो यह नहीं समझ पा रही थी कि उसके अलावा और कोई नहीं जानता था कि उस डिस्क में क्या है, तो फिर डाटा कहाँ
गया... शीना को यूँ खड़े देख अमर ने फिर कहा



"शीना, प्राब्लम क्या है.."



"दाद, मेरा डेटा किसी ने फॉर्मॅट कर लिया है.. आइ मीन, अंदर से सब कुछ डेलीटेड है... समझ नहीं आ रहा , कौन करेगा.." शीना यह बोलते हुए स्नेहा को ही देख रही थी



"शीना ऐसा कैसे होगा, डिस्क पासवर्ड प्रोटेक्टेड है, तुमने हम सब के सामने पासवर्ड डाला, फिर कोई कैसे तुम्हारी डिस्क डेलीट कर सकता है.." अमर ने वहाँ से उठते हुए कहा.. अमर को उठते देख रिकी उसे कन्विन्स करने लगा कि वो वहाँ से ना जाए और जल्द ही उसका कोई रास्ता ढूँढ लेंगे.. स्नेहा वहीं से शीना को आँखों आँखों में कुछ कह रही थी और अपने चेहरे पे एक मुस्कान लिए हुई थी... रिकी जब तक अमर को समझता तब तक शीना ने स्नेहा को ऐसे देख समझ लिया के यह हरकत किसकी है



"शीना, बेटा कोई बात नहीं.. तुम फिर से काम करो, हम फिर देख लेंगे.." अमर ने जैसे ही यह कहा और वहाँ से जाने लगा, तभी शीना बोली



"दाद, प्लीज़ बैठ जाइए.. मेरे पास बॅक अप है.."



शीना की यह बात सुन जैसे रिकी को नया जीवन मिल गया हो और सुहसनी का चेहरा एक बार फिर खिल उठा... दूसरी बार काम करना पड़ेगा यह सुन ज्योति को थोड़ी आशा की किरण दिखी थी लेकिन अब वो भी नहीं रही, और स्नेहा.. इस बार स्नेहा के चौंकने की बारी थी.. स्नेहा की आँखें बड़ी हो गयी शीना की यह बात सुन



"तो दिखाओ हमें बेटा, हम इंतेज़ार कर लेंगे..." कहके अमर और फिर उसका पूरा परिवार फिर वहीं पर बैठ गया... शीना ने जल्दी से अपने मोबाइल से कॉल किया और
किसी के साथ बात करने लगी.. कुछ ही देर में शीना की एक फरन्ड आई और उसे डिस्क देके वापस चली गयी.. शीना ने फिर डिस्क कनेक्ट की और सब को अपना काम दिखाने लगी...



"यह बॅक अप कहाँ से आया.." रिकी ने शीना से धीरे से कान में पूछा



"कुछ नहीं भाई, जो मेरी फरन्ड आर्किटेक्ट है ना, उसी के डिस्क में मैने सेव रखा था.. ताकि एमर्जेन्सी में काम आए, आंड सी माइ आइंटूयीशन.."



"प्राउड ऑफ यू स्वीटहार्ट...गुड जॉब" रिकी फिर शीना के कान में फुसफुसाया और शीना सब को अपना काम दिखाने लगी.. प्रेज़ेंटेशन की हर एक स्लाइड में डीटेल से डिस्क्राइब किया गया था कि काम कैसे होगा, कब होगा, कहाँ होगा और क्यूँ होगा.. वो जानती थी कि अमर को क्यूँ में सबसे ज़्यादा इंटेरेस्ट है, इसलिए उसने अमर के सवालों का जवाब अपनी प्रेज़ेंटेशन में रख दिया था ताकि अमर को सवाल पूछने का मौका ही ना मिले.. जैसे जैसे प्रेज़ेंटेशन आगे बढ़ती वैसे वैसे अमर के चेहरे पे मुस्कान बढ़ती जाती.. बाजू में बैठी सुहसनी बार बार उसे कोहनी मारती जैसे कहती हो "ख़ामाखाँ हमारी बेटी को बुद्धू समझते थे".. जैसे ही प्रेज़ेंटेशन ख़तम हुई वहाँ मौजूद लोगों ने शीना की हौसला अफ़ज़ाहि के लिए खड़े रहके तालियाँ बजा दी और उसकी बहुत तारीफ़ करने लगे..



"वाह बेटी, शाबाश.. मुझे हमेशा वो इंसान पसंद है जो वक़्त से दो कदम आगे चलना पसंद करे.. तुम्हारे इस काम को देख के लग रहा है अब हम रिज़ॉर्ट का काम शुरू कर सकते हैं..." अमर ने शीना की पीठ थपथपाते हुए कहा



"नहीं डॅड, अभी तो ज़मीन देखना बाकी है, तो उसके बिना कैसे करेंगे.." रिकी ने बीच में अमर को टोकते हुए कहा



"ज़मीन ईज़ नोट आ प्राब्लम रिकी... ज़मीन का सौदा होने में कितना वक़्त लगेगा...लेकिन जिस काम में सबसे ज़्यादा वक़्त लगता है, वो काम तो शीना ने कर दिया... एक काम करते हैं.. मैं कल ही महाबालेश्वर के लिए निकल जाता हूँ ज़मीन देखने, राजवीर भी मेरे साथ चलेगा.. तुम आज आराम कर लो, कल से अपनी टीम बनाना चालू कर दो, बेस्ट लोगों की टीम बनाओ, जो इस रिज़ॉर्ट में काम करेंगे...और हमारी कन्स्ट्रक्षन कंपनी है ही, वहाँ कॉंटॅक्ट करो, तुम्हे सब मिल जाएगा... इस रिज़ॉर्ट को जल्द से जल्द शुरू कर देते हैं.." अमर ने फ़ैसला सुनाया और वहाँ से जाने लगा, तभी फिर रिकी ने उसे रोक दिया



"डॅड, यह तो बताते जाइए कि शीना इस प्रॉजेक्ट में रहेगी या नहीं"



"रिकी, तुम्हारा प्रॉजेक्ट है यह.. फ़ैसला तुम्हे करना है कि इस प्रॉजेक्ट में ज्योति रहेगी या शीना.." कहके अमर वहाँ से निकल गया और रिकी के हाथ में दे गया एक बॉम्ब, जो उसे या तो शीना को पकड़ना था या तो ज्योति को... रिकी दिल से चाहता था कि शीना इस प्रॉजेक्ट में काम करे, लेकिन वो ज्योति को मना नहीं कर सकता था.. उसने शीना को इतना सपोर्ट किया था क्यूँ कि उसे लगा था कि अमर ही इस बात में फ़ैसला सुनाएगा.. बल्कि उसे लगा था कि अमर को अलग प्रेज़ेंटेशन दिखा के रिकी और शीना मामला सेट कर देंगे ताकि अमर के मूह से ही ज्योति को ना सुनना पड़े, पर यहाँ तो सब दाव उल्टे पड़ गये थे... अमर के जाते ही सुहसनी और राजवीर भी वहाँ से निकल गये थे.. रिकी और शीना के साथ वहाँ स्नेहा और ज्योति खड़े थे बस..
 
"भैया, इट्स ओके... इतनी मेहनत के बाद भी अगर शीना को उसकी क्रेडिट ना मिले तो यह इनजस्टिस होगा... आप दोनो इस प्रॉजेक्ट पे काम कीजिए, आंड इन केस इफ़ एनी वन एल्स ईज़ नीडेड तो मैं तो हूँ ही... आंड शीना, प्रेज़ेंटेशन बहुत अच्छा था, आइ लव्ड इट आ लॉट..." ज्योति ने वहाँ खड़े खड़े कहा और कुछ देर में वहाँ से निकल गयी..

रिकी और शीना दोनो जानते थे कि ज्योति हर्ट तो हुई थी, लेकिन इसके अलावा वो लोग कुछ कर भी नहीं सकते थे... रिकी को शीना का सपोर्ट इसके लिए नहीं था कि
वो उसकी बहेन है, बल्कि इसलिए था क्यूँ कि दोनो के दिल करीब थे.. ज्योति यही समझ रही थी कि दोनो भाई बहेन हैं इसलिए एक दूसरे को इतना सपोर्ट कर रहे हैं और यहाँ उसे अकेले होने का खलल हो रहा था.. सोच रही थी कि आख़िर खून तो खून के ही काम आएगा.. ज्योति अंदर से दुखी तो थी लेकिन वो जानती थी कि दुख दिखाने का कोई मतलब नहीं है, इसलिए उसने ऐसा कहा और वहाँ से निकल गयी..



"भाभी, बूर्नोल लाउ या कुछ और.." शीना ने ज्योति के जाते ही वहाँ खड़ी स्नेहा से कहा.. शीना की यह बात सुन स्नेहा ने ऐसा दिखावा किया जैसे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन वो शीना की बात सुन कुछ कहती उससे पहले फिर शीना बोली



"मेरी डिस्क तो फॉर्मॅट कर दी आपने, लेकिन आपने कभी ऐसा नहीं सोचा होगा ना कि मेरे पास उसका बॅकप होगा... ब्रेकिंग न्यूज़ भाभी, आपकी ननद को आपने इतना ज़्यादा बेवकूफ़ समझ लिया है कि उसका छोटे से छोटा काम भी आपको अब बहुत बड़ा लगेगा.." शीना ने फिर स्नेहा से कहा और आँखों से रिकी को वहाँ से जाने का इशारा किया, बिना कुछ पूछे या कहे रिकी भी वहाँ से निकल गया..



"मेरी बात सुनो शीना.." स्नेहा ने जैसे ही यह कहा कि फिर शीना ने उसे टोकते हुए कहा



"तुम मेरी बात सुनो, मिसेज़ स्नेहा राइचंद... अगर तुम्हे लगता है कि मैने तुमसे जो बातें कही है, वो तुम किसी को बता दोगि तो मुझे कुछ नुकसान होगा... तुम भूल रही हो कि मैं इस घर की बेटी हूँ, मुझे कोई कुछ नहीं करेगा, लेकिन तुम... तुम इस घर में किसी को पसंद नहीं हो.. अगर मुझ पे कोई इल्ज़ाम लगाने की कोशिश भी की उससे पहले यह याद रखना कि तुम इस घर में विक्रम भैया के साथ आई थी.. लेकिन अब तो वो हैं नहीं, अब तुम क्या करोगी..." शीना की यह बातें सुन स्नेहा की हालत सही में खराब हो चुकी थी.. शीना ने उसे आज तक तुम कहके नहीं बुलाया था लेकिन आज अचानक उसका यह रूप देख स्नेहा सहम गयी थी.. उसने सोचा खामोश रहना ही बेहतर होगा उस वक़्त, इसलिए वो खामोश रही



"और एक बात सुनो, तुम्हे क्या लगता है कि मुझे पासवर्ड्स याद नहीं रहते... स्नेहा, तुम शायद यह भूल रही हो कि तुमसे ज़्यादा क्वालिफाइड हूँ मैं.. डिस्क के पास तो मैने अपने पासवर्ड का नोट इसलिए रखा था क्यूँ कि मैने तुम्हे उसी रात देख लिया था जब मैं मेरी आर्किटेक्ट फ्रेंड के साथ घर आई थी और तुमने मेरा पीछा किया था मेरे रूम तक, यह देखने के लिए कि मैं क्यूँ इतनी देर से आई हूँ.. जब मैने तुम्हे यह करते देखा तो मैने सोच लिया था कि शायद मैं तुम्हे आज़मा के देख लूँ, शायद मैं ग़लत निकलूं कि तुम सही में मेरी दोस्त बन गयी हो.. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.. डाटा डेलीट कर के तुमने यह यकीन दिला दिया है मुझे कि तुम मेरी दोस्त तो नहीं हो, लेकिन फ़ैसला अब तुम्हारे हाथ में है... या तो मेरे साथ दुश्मनी चुनो, या तो अपने काम से मतलब रखो... और याद रखना, इस घर में हर वक़्त कोई ना कोई किसी को देख रहा होता है, तुम्हे लगता है कि तुम अकेली इस घर की जेम्स बॉन्ड हो तो तुम ग़लत हो..." शीना मिसेज़ स्नेहा राइचंद से अब सिर्फ़ स्नेहा पे आ चुकी थी.. स्नेहा यह भाँप रही थी कि शायद अब तुम से तू पे आने में भी यह वक़्त नहीं लेगी, इसलिए उसने चुप चाप वहाँ से जाने की सोची और जैसे ही मूडी शीना ने फिर उसे चोन्का दिया



"उस दिन तुम किसी से फोन पे बात कर रही थी ना, विक्रम भैया के लिए..."



शीना की यह लाइन सुन स्नेहा पे जैसे बिजली सी गिरी, उसके कदम वहीं जम से गये और उसके कानों में जैसे किसी ने खोलता हुआ तेल डाल दिया हो, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे, वो फिर पलटी जवाब देने के लिए, लेकिन आज शीना का दिन था... यह वक़्त.. शीना का था



"डोंट वरी, मैं किसी से नहीं कहूँगी, क्यूँ कि मैं ही तुम्हे सब के सामने नंगा करूँगी.. और हां दूसरों के कमरे पे नज़र रखने के चक्कर में तुम अपने कमरे की हिफ़ाज़त तो करती नहीं.. देखना जाके के कहीं कुछ मिस्सिंग तो नहीं है तेरे रूम से..."



स्नेहा जल्दी से अपने कमरे की तरफ भागी जैसे कुत्ते उसके पीछे लग गये थे.. जल्दी से अपने कमरे में पहुँच के उसने सब चीज़ें चेक की, सब कुछ ठीक था.. वॉर्डरोब से लेके उसके बिस्तर के नीचे रखी सब चीज़ें, उसने ध्यान से देखा लेकिन सब ठीक था... कमरे में बैठे बैठे वो कुछ याद ही कर रही थी तभी फिर शीना की आवाज़ आई



"अरे पागल औरत, अपना मोबाइल कैसे भूल गयी हाँ.." शीना उसके कमरे के पास खड़ी थी और उसने अपने हाथ में उसका मोबाइल दिखाते हुए कहा... शीना की बातें सुन स्नेहा अचंभे में पड़ गयी थी, भाभी से मिसेज़ राइचंद, मिसेज़ राइचंद से स्नेहा और स्नेहा से पागल औरत.. शीना जिस तरह स्नेहा का लेवेल गिराती जा रही थी हर गुज़रते सेकेंड में, वैसे तो स्नेहा को यह लगने लगा था कि अगली लाइन में शीना कहीं उसे रंडी या बाज़ारू ना बुला दे



"ज़बान पे लगाम लगाओ शीना.." स्नेहा ने ताव में आके उसे कहा



"यह गर्मी किसी और को दिखाना समझी... यह ले तेरा मोबाइल, जो काम मेरे को करना था वो तो मैं कर चुकी हूँ.. अब याद रखना.. तू जहाँ.. जहाँ चलेगा..... मेरा साया.. साथ होगा.." गुनगुनाके शीना वहाँ से निकल गयी और अपने कमरे में घुसने से पहले फिर स्नेहा की ओर देखा



"इस बार मेरा पीछा नहीं किया तूने... रंडी कहीं की..." कहके शीना मुस्कुरा दी और अपने कमरे में चली गयी... स्नेहा पसीना पसीना हो चुकी थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या से क्या पोज़िशन हो गयी उसकी... उसे पता नहीं था कि शीना ऐसा बिहेव कर सकती है, बिहेव छोड़ो, शीना इतना दिमाग़ लगा सकती है... उसकी सारी मेहनत धरी की धरी रह गयी, अब उसका काम तो छोड़ो, उसका यहाँ टिकना भी बहुत मुश्किल लगने लगा था उसे... उसने जल्दी से अपना कमरा लॉक किया और फोन करने लगी, लेकिन जैसे ही उसे ख़याल आया कि फोन शीना के पास था, उसने फिर कट कर लिया और सिम कार्ड निकाल लिया... उसे डर था कि कहीं उसके कॉल्स शीना भी ना सुन ले, इसलिए वो तुरंत घर से निकली और अपने लिए एक न्यू फोन और सिम कार्ड लेने गयी.. कुछ ही देर में स्नेहा एक कॉफी शॉप पे पहुँची जहाँ वो किसी का इंतेज़ार कर रही थी कि तभी उसे शीना का फोन आया... उसका कॉल देख के स्नेहा एक पल के लिए घबरा गयी और फोन कट कर दिया, लेकिन बार बार शीना उसे कॉल करती रही जब तक की स्नेहा ने आन्सर नहीं किया



"न्यू फोन, न्यू सिम कार्ड क्या करेगी लेके स्वीटहार्ट...तेरी जॅक तो मैं लगा के ही रहूंगी, और अभी कॉफी शॉप में किसका इंतेज़ार कर रही है है.. ज़रा मुझे भी
पिला दे कॉफी अपने हाथों से" शीना ने उसे फोन पे कहा और खुद ही कट कर दिया.. स्नेहा की आँखें लाल हो चुकी थी, उसके सर पे बाल इससे पहले कभी नहीं
आए थे, इसलिए वो वहाँ से जल्दी उठी और घर की तरफ निकल गयी.. रास्ते में उसने एक बूथ पे गाड़ी रोकी और किसी को कॉल किया



"नहीं आज नहीं आ सकती मैं.." स्नेहा ने फोन करके पहला ही वाक्य यह कहा और आगे सब बता दिया जो जो शीना ने उसके साथ किया और उसे कहा



"तुम पागल हो स्नेहा, मैने तुम्हे पहले ही कहा था शीना जितनी ज़मीन के बाहर है, उतनी ही ज़मीन के अंदर भी.. तुम ने उसे अनडरएस्टीमेट कर के बहुत बड़ी ग़लती

कर दी.. दुश्मनी का पहला क़ायदा होता है कि कभी अपने दुश्मन को कमज़ोर ना समझो, और तुम यही भूल गयी स्नेहा... अब जो भी हुआ है उसे ठीक तुम करोगी, और याद रखो, मैं तो किसी तरह नहीं फन्सू इसमे, लेकिन तुम एनीवेस घर से निकली जाओगी अपने.. नुकसान सब तुम्हारा है, बेहतर है कुछ रास्ता निकालो इसका नहीं तो..."

सामने शख्स ने बस इतना ही कहा के फिर स्नेहा बोली



"शीना को ख़तम करना पड़ेगा अब, इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है"



"तुम बौखला चुकी हो... अगर शीना को कुछ भी होता है तो उसमे हमारा कोई फ़ायदा नहीं है, अब तक तो उसने रिकी को सब बता दिया होगा. क्या फिर रिकी को भी
मारोगी, इसके अलावा कुछ सोचो तुम, मुझे भी वक़्त दो, बाद में बात करते हैं.." कहके फोन कट हो गया और स्नेहा डर डर के अपनी गाड़ी में बैठी के तभी फिर शीना का फोन आ गया.. वो जानती थी कि फोन कट करके कोई फ़ायदा नहीं है, इसलिए उसने पहली रिंग में ही फोन उठा लिया



"अरे ज़रा सुन, तूने बिल नहीं भरा क्या अपने मोबाइल का, जो बूथ पे खड़ी हुई है हाँ... यार मुझे बोल देती, मैं बिल भर देती, अभी तू राइचंद'स की बहू ही है,
जब घर से निकली जाएगी, तभी तेरे ऐसे दिन आएँगे, अभी फिलहाल ऐश कर ले जितनी हो सके... और हां, अभी कहीं रुकना नहीं, वरना फिर मुझे मेरी उंगलियों को
तकलीफ़ देके तुझे कॉल करना पड़ेगा..." कहके शीना ने फिर कॉल कट किया और स्नेहा बीच सड़क पसीने से भीगी हुई खड़ी रही..
 
"भाई, क्या कर रहे हो...." शीना ने रिकी के कमरे में जाके कहा



"कुछ नहीं, कल के बारे में सोच रहा हूँ, कल से चाचू के साथ जाना है ऑफीस, देखें भैया क्या काम करते थे, फिर मुझे वो भी करना पड़ेगा, और डॅड महाबालेश्वर जाएँगे ज़मीन देखने, तो होप्फुली वो भी जल्दी हो जाए तो अच्छा है.." रिकी ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली और एक शीना को पकड़ाते हुए कहा



"ओह्ह्ह... मतलब आप कल से बिज़ी हो जाओगे, मेरे लिए बिल्कुल वक़्त नहीं रहेगा आप के पास..." शीना ने उदास होके कहा



"हहा, ऐसा बिल्कुल नहीं है डियर, आंड आने वाले कल की बात छोड़ो, आज इतना अच्छा काम मिला है तुम्हे, मैने इतनी मदद भी की, उसके बदले में मुझे तो कुछ भी नहीं दिया

तुमने.." रिकी ने अपनी बाहें शीना के गले में डाल के कहा लेकिन इससे पहले उसने यह भी देख लिया था कि उसके रूम का दरवाज़ा बंद है, क्यूँ कि जबसे ज्योति आई थी, तब से उनके घर पे शरलॉक होम्ज़ की एंट्री हुई हो ऐसा लग रहा था



"उम्म्म, क्या चाहिए भाई..मैने कब आपको कुछ माना किया है.." शीना ने एक दम धीरे से कहा और उसने भी हिम्मत करके अपनी बाहें रिकी के गले में डाली.. रिकी और शीना के होंठ एक दूसरे के काफ़ी नज़दीक आ चुके थे, दोनो एक दूसरे की साँसों को महसूस कर सकते थे , दोनो एक दूसरे के दिल की धड़कनो को सुन सकते थे... शीना के दिल की धड़कन
काफ़ी तेज़ चल रही थी, यह सोच के कि शायद रिकी आज कुछ ऐसा ना कह दे जिसे शीना ना तो मना कर सके और ना ही आसानी से से हां बोल सके... वहीं रिकी भी धीरे धीरे बेकाबू हो रहा था, अब तक उसके हाथ शीना की पीठ पे थे , लेकिन उसने धीरे धीरे वो हाथ उठाए और शीना के बालों में डाल के उसे अपने और नज़दीक ला दिया..

शीना की साँसें काफ़ी तेज़ चल रही थी, इतनी गर्मी थी उसकी साँसों में कि रिकी उन्हे महसूस करके पसीने से भीगने लगा था



"बोलिए ना भ्ााईयईईईईई..." शीना ने उखड़ती हुई साँसों से कहा



"शीना, रिलॅक्स... डिन्नर आंड डेट..." रिकी ने हल्के से मुस्कुरा के कहा और शीना को खुद से अलग कर दिया.. पहले तो जैसे शीना को समझ ही नहीं आया के रिकी ने क्या कहा, वो उस पल में इतनी बह चुकी थी कि रिकी अगर उसे कुछ भी कहता.... कुछ भी... तो वो मना नहीं कर पाती, लेकिन जब उसे एहसास हुआ तब उसे हल्की सी शरम आने
लगी जिसकी वजह से उसके गाल काफ़ी लाल हो चुके थे...



"ओह्ह, यस.. उहह, एनिवेर यू से भाई..." शीना ने खुद को संभालते हुए कहा और अपने बालों को ठीक करने लगी



"शीना , उससे पहले भाभी के साथ क्या बात की वो बताओ मुझे, " रिकी को अचानक याद आया कि थोड़ी देर पहले क्या हुआ था



"भाई, यू नो मेरी डिस्क का डाटा उन्होने ही डेलीट किया था, कैसे किया मुझे वो भी समझ नहीं आ रहा, पासवर्ड उनके पास कहाँ से आया मुझे कुछ आइडिया नहीं है.. बट उस रात को जब मैं मेरी फ्रेंड के साथ आई थी वापस तब उन्होने मेरा पीछा मेरे रूम तक किया था, यहाँ तक तो मेरी नज़र गयी जब वापस मैं बाहर आई और कॉरिडर में हल्की सी रोशनी थी जिसमे मुझे उनका साया दिख गया, तभी मैं समझ गयी कि वो कुछ चेक करने आई होगी.." शीना ने अपने बाल बाँधते हुए कहा



"पर जब उन्होने तुम्हारा पीछा किया और तुमने देखा भी था, तो डिस्क लॉक भी तो कर सकती थी ना.. आइ मीन यह सब होता ही नहीं.." रिकी ने एक सीधी बट बहुत ही वॅलिड पॉइंट निकाली



"हां, बट मैं देखना चाहती थी कि वो क्या करना चाहती है, पिछले कुछ दिनो से आइ हॅड ट्राइड टू बी फ्रेंड्स विड हर, बट इस हरकत से उन्होने साबित कर दिया कि वो इस लायक ही नहीं है के वो किसी की दोस्त बन सके... एनीवे, अब चलो भी तैयार हो जाओ.. लेट मी ऑल्सो बी रेडी , सी यू इन 30 मिनिट्स..." कहके शीना जैसे ही जाने लगी कि तभी उसने
फिर पीछे मूड के रिकी से कहा



"सिर्फ़ आप और मैं ही जा रहे हैं, सिर्फ़ आप और मैं ही जानते हैं इसके बारे में..." शीना ने हंस के कहा और वहाँ से निकल गयी.. रिकी उसकी बात को समझ गया और रेडी होने लगा... करीब आधे घंटे के बाद रिकी ने सुहसनी से कहा के वो कहीं बाहर काम से जा रहा है और अपनी गाड़ी लेके घर से थोड़ी दूरी पे जाके शीना का वेटकरने लगा.. शीना भी तकरीबन 10 मिनिट बाद सुहसनी से यह कह के निकली के उसकी फ्रेंड के साथ कहीं जा रही है.. ऐसा उन्होने इसलिए किया क्यूँ कि वो जानते थे कि ज्योति को आज कल उन दोनो की बातों में कुछ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट है.. खैर, जैसे शीना रिकी के करीब आती जाती वैसे वैसे उसका दिल ज़ोर से धड़कता जाता.. रिकी की नज़र जब शीना पे गयी तब वो उसे देखता ही रह गया.. शीना ने सिंपल लेकिन स्टाइलिश कपड़े पहने हुए थे,



"हेलो मिस्टर... कॅन यू प्लीज़ स्टॉप चेकिंग मे आउट.." शीना ने फ्लर्टेशस अंदाज़ में कहा



"सम्वन'स लुकिंग वेरी प्रेटी टुडे..." रिकी ने शीना के हाथ में एक छोटा सा गिफ्ट पॅकेट पकड़ाते हुए कहा



"वेल, सम्वन'स लुकिंग कूल ऐज वेल..."







शीना ने रिकी को देख के कहा और गिफ्ट ले ली. रिकी ने तुरंत ही उसके लिए दरवाज़ा ओपन किया ताकि शीना अंदर बैठ सके.. यह चीज़ें वैसे एक लड़की अपने बॉय फ्रेंड या अपने लाइफ पार्ट्नर से एक्सपेक्ट करती है, पर शीना के लिए यह सब रिकी कर रहा था.. शीना को यह सब बहुत अच्छा लग रहा था... जैसे ही शीना गाड़ी में बैठी, दोनो अपनी मंज़िल
की तरफ बढ़ने लगे...



"अववव, थॅंक यू वेरी मच भाई... दिस ईज़ प्राइस-लेस.." शीना ने गिफ्ट में डाइमंड रिंग को देख के कहा... रिकी लंडन से ही सब के लिए गिफ्ट्स लाया था और सही टाइम पे उसने सब को दे भी दी थी गिफ्ट्स, बस शीना की बाकी थी, उसे लगा आज सही टाइम है यह देने का इसलिए उसने आज ही यह गिफ्ट उसे दे दी...



"अब मुझे भी आपके लिए कोई गिफ्ट लानी पड़ेगी ना.." शीना ने रिंग को अपनी उंगली में पहेन लिया और रिकी को दिखाने लगी



"वैसे हम कहाँ जाएँगे, ट्रीट तुम्हारी तरफ से है तो वेन्यू ऑफ युवर चाय्स.." रिकी ने गाड़ी मराइन ड्राइव की तरफ मोडते हुए पूछा



"उम्म्म्म, ऐसा है क्या.. ठीक है चलो, पर आज मेरी अम्यूज़्मेंट पार्क जाने की बहुत दिल है.. अपन वहाँ चल सकते हैं प्लीज़..."



"अम्यूज़्मेंट पार्क.. फॉर आ डेट ?" रिकी ने आँखें बड़ी करके कहा और गाड़ी वापस घुमा के बोरीवली की तरफ ले ली



"यस, इट्स गॉना बी गुड फन.. आंड डेट का मतलब सिर्फ़ यह थोड़ी है कि खाना खाओ आंड डॅन्स करो.. डेट का मतलब है स्पेंडिंग आ क्वालिटी टाइम टुगेदर..."



"अरे हां बाबा, चलो.. एस्सेल वर्ल्ड चलते हैं.. आंड डॉन'ट टेल मी इमेजिका चलना है, पुणे नहीं जाना, इट विल बी वेरी लेट फॉर आ डे.." रिकी ने शीना को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया
 
"ह्म्‍म्म, चलो ड्राइवर, आगे देखो...मेम्साब को आराम करने दो.." शीना ने हँस के कहा और सीट को थोड़ा रिक्लाइन कर के इतमीनान से लंबी ड्राइव का मज़ा लेने लगी... बाहर मौसमअच्छा था इसलिए रिकी ने रूफटॉप भी ओपन कर लिया और दोनो सुहाने मौसम का आनंद लेने लगे... जहाँ ट्रॅफिक हल्का रहता, वहाँ रिकी तिरछी नज़रों से शीना की उड़ती हुई ज़ुल्फो
को देखता, उसके मासूम चेहरे को देखता.. हवा में शीना अपना स्कार्फ लहराने लगी और वो भी रिकी की आँखों में देखती.. जब जब शीना रिकी को देखते हुए पकड़ लेती,

रिकी नज़रें सीधी कर लेता और शीना अंदर ही अंदर मुस्कुरा देती... जैसे जैसे वो लोग एस्सेल वर्ल्ड के नज़दीक पहुँचते वैसे वैसे मौसम और सुहाना हो जाता, जंगल के बीच के रास्ते से जाने का मज़ा अलग ही होता है और ऐसे में जब दो लोग ऐसे हो जिनके दिल एक दूसरे से जुड़े हुए थे, वो लोग उस रास्ते से जा रहे हो तब भला कोई कैसे होश में रहेगा..



"दिल.... सम्भल जा ज़रा... फिर मोहब्बत करने चला है तुउउउ.. दिल्ल्ल, यहीं रुक जा ज़रा, फिर मोहब्बत करने चला है तुऊउ.." शीना रिकी को देख के गुनगुनाने लगी..



"नाइस वाय्स शीना, कभी कभी मैं सोचता हूँ तुमने पढ़ाई आगे क्यूँ नहीं की, और सिर्फ़ पढ़ाई नहीं, उसके अलावा कुछ कर लेती , किसी अच्छे प्रोफेशन में करियर बनाती, आइएम श्योर बहुत कामयाबी मिलती तुम्हे.." रिकी बहती हवा का आनंद लेते हुए बोला



"नोट श्योर भाई, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था उस वक़्त क्या करूँ क्या नहीं.. पापा और भैया ने कहा जैसा मुझे समझ आए.. आइ मीन अगर मुझे समझ आता तो मैं उनसे पूछती ही क्यूँ.. आंड आप भी नहीं थे, तो गाइड कौन करता.. और अभी अड्वाइज़ कौन्से काम की, मेरी परवाह होती तो उस वक़्त ही बताते यह सब.." शीना ने झूठा गुस्सा दिखा के कहा



रिकी ने इसका जवाब कुछ नही दिया और गाड़ी चलाता रहा.. करीब 10 मिनिट में दोनो एस्सेल वर्ल्ड पहुँच गये.. एस्सेल वर्ल्ड जाके जैसे शीना का बचपन लौट आया हो, राइड्स देख के वो काफ़ी एग्ज़ाइटेड हो गयी थी,



"पहले इसमे चलते हैं, फिर उसमे, उसके बाद उसमे. और हां यह तो जाना ही है इसमे डरना नहीं आप.. फिर उसके बाद उसमे भी, आज तो सब में बैठेंगे.." शीना बच्चों की तरह कूद रही थी और रिकी उसके साथ आगे बढ़ रहा था.. जैसे जैसे दिन बीता वैसे वैसे दोनो मज़े लेते रहे... दिन ढलता चला गया पर शीना की एनर्जी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी.. रिकी भी काफ़ी खुश था शीना का यह साइड देख के.. राइड्स के साथ साथ फिश पॅडिक्यूवर का मज़ा भी लिया उन दोनो ने.. जैसे जैसे मछलियाँ शीना के पैरों को टच करती वैसे वैसे उसके बदन में अजीब सी लहर दौड़ती और शीना बाजू में बैठे रिकी से चिपक जाती.. सेम रिकी भी करने लगा, करीब 15 मिनिट की मसाज को दोनो ने तीन बार रिपीट करवाया ताकि एक दूसरे को छू सकें ज़्यादा से ज़्यादा.. दोनो एक दूसरे का हाथों को बार बार पकड़ लेते और मुस्कुराने लगते.. दोनो जान चुके थे कि एक दूसरे की छुअन का मज़ा ले रहे हैं और दोनो चाहते थे कि वो हमेशा ऐसे ही बैठ सकें.. लेकिन फाइनली दोनो वहाँ से उठे और आगे बढ़ने लगे..

अब जब आगे बढ़े, तब शीना ने सब कुछ भुला दिया और रिकी का हाथ पकड़ के उसके साथ चलने लगी जैसे कोई पत्नी अपने पति का हाथ थाम के चलती है.. जब शीना छोड़ देती, तब रिकी कंधे के पीछे हाथ डाल के उसे अपने से चिपका देता और आगे बढ़ने लगते.. दोनो के रिश्ते में अब कोई शरम नहीं थी, खुल के एक दूसरे को टच करते, एक दूसरे को बाहों में लेते,

कभी कभी रिकी उसे गोद भी उठा लेता.. आस पास वालों को देख यह लगता जैसे कि नये प्रेमी पंछी आए हैं..



"अब चलें के यूही मुझे पकड़ के बस चलते रहने का इरादा है मिस्टर.." शीना ने रिकी के कंधे से अपना सर उँचा कर के उसकी आँखों में देख के कहा



"मेरा पकड़ना अच्छा नहीं लगा तुम्हे.." बड़े ही रोमॅंटिक अंदाज़ में रिकी ने जवाब दिया



मैं तो चाहती हूँ कि आप मुझे हमेशा ऐसे ही पकड़े रहें, कभी भी ना छोड़ो.. बस आप और मैं, कोई तीसरा नहीं... यूही मैं आपकी बाहों में सर रख के हर एक पल को खुशनुमा बना दूं, यूही आपकी बाहों में अपनी ज़िंदगी बिता दूं..ना दिन देखूं, ना रात.. वक़्त की कोई पाबंदी नहीं.. जब जी चाहे आपकी आँखों की गहराई में डूब जाउ, जब जी चाहे आपकी साँसों को महसूस कर सकूँ...जब जी चाहे आपके दिल की धड़कनो को सुनूँ



"शीना, शीना...." रिकी ने शीना का कंधा हिला के कहा जिससे शीना अपने ख़यालों से बाहर आई



"हुह्म, क्या हुआ भाई..क-क-क- क्या कहा आपने.." शीना हकलाने लगी जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो



"मैने कहा यहाँ से वापस चलने का इरादा है या नहीं.."



"हां भाई चलिए... सांताक्रूज़ ईस्ट, वेस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पे लेना गाड़ी अब.."



"वहाँ क्यूँ.."



"भाई, चलिए तो, अभी 6 हुए हैं, पहुँचते पहुँचते 8 बज़ेंगे, तो डिन्नर करके चलें ना.. अब लेट्स गो.." शीना ने फिर रिकी की बाहों में अपना हाथ डाला और दोनो आगे बढ़ गये.. ट्रॅफिक रहने के कारण, दोनो करीब 8.30 बजे वहाँ पहुँचे



"ह्म्‍म्म, इंप्रेस्सिव मिस राइचंद.. ग्रांड हाइयट में डिन्नर..." रिकी ने वलेट को चाबी दी और दोनो रेस्तरो की तरफ बढ़ गये



"उः, एक्सक्यूस मी, मिस राइचंद.. आइ हॅव आ बुकिंग हियर.." शीना ने वहाँ के मॅनेजर से कहा और रिकी और शीना उसके साथ रेस्तरो की तरफ बढ़ गये..



"यू कॅन गेट इन प्लीज़ मॅम... फुड आंड ड्रिंक्स विल बी हियर इन आ वाइल.." मॅनेजर ने दोनो से कहा और वहाँ से निकल गया



रिकी ने जैसे ही अंदर पेर रखा, पूरा रेस्तरो हल्की लाइट्स से जगमगा उठा.. बीच में पड़ी एक कपल टेबल जिसपे पहले से कॅंडल जल रही थी और एक शॅंपेन बॉटल पड़ी थी.. रिकी ने दूसरा कदम रखा ही था कि सामने लगी लेड पे फ्लश होने लगा. "वेलकम बॅक रिकी... मिस्ड यू आ लॉट.. यूअर्स शीना.."



"ह्म्‍म्म, तो यह सब कब किया आपने.." रिकी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया जिसे शीना ने थाम लिया और दोनो टेबल की तरफ चले गये



"वो सब सोचना मेरा काम है मिस्टर.. आप बस डिन्नर को एंजाय कीजिए.." शीना ने बहुत ही सिड्यूसिंग अंदाज़ में कहा..



धीरे धीरे दोनो की बातें कम हुई, आँखों से आँखें चार हुई और ग्लास में शॅंपेन गिरने लगी.. जैसे जैसे वक़्त बीत रहा था, वैसे वैसे दोनो एक दूसरे की आँखों में खोते गये और ग्लास पे ग्लास खाली करने लगे... रेस्तरो में अकेले होने के नाते उन्हे नॉर्मल टेंपरेचर की एसी की हवा भी सर्द लगने लगी, सर्द हवा में शॅंपेन का नशा उनकी आँखों में दिखने लगा.. माहॉल उस वक़्त काफ़ी खूबसूरत था, रिकी और शीना अकेले, उन्हे तंग करने वाला तीसरा कोई नहीं... रेस्तरो में केवल कॅंडल लाइट और आस पास रखे कई सारे हार्ट शेप्ड बेलून्स.. ऐसा लग रहा था जैसे भाई बेहन एक दूसरे के वॅलिंटाइन हो और आज अपना प्यार सेलेब्रेट करने आए हैं.. शीना ने हवा में हाथ उठा के कुछ इशारा किया और तुरंत ही रोमॅंटिक म्यूज़िक बजने लगा



"कॅन आइ हॅव दा प्लेषर टू डॅन्स वित यू स्वीटहार्ट.." शीना ने अपनी टेबल से उठ के रिकी की तरफ अपना हाथ बढ़ा के कहा



रिकी और शीना ने एक दूसरे की कमर में हाथ डाला और आँखों से आँखें मिला के डॅन्स करने लगे.. उनके होंठ खामोश थे, लेकिन उनकी आँखें बहुत बोल रही थी.. डॅन्स करते करते रिकी ने शीना को अपने से दूर किया लेकिन हाथ पकड़े रखा और फिर गोल घुमाता हुआ उसे अपनी तरफ खींच लिया , इससे जब शीना फिर पीछे आई तब शीना के नितंब के एहसास का मज़ा रिकी लेने लगा, उसके होंठ शीना की गर्दन पे थे और उसके हाथ शीना के चुचों के बेहद करीब जिसे शीना ने पकड़े हुए था.. रिकी अपनी गरम साँसें उसके गर्दन पे छोड़ता और शीना भी आँखें बंद किए हुए उसका आनंद ले रही थी.. शीना को जब एहसास हुआ कि उसकी गान्ड पे रिकी का लंड चुभ रहा था, तब आँखें खोले बिना वो सीधी हुई और रिकी को हग करके बोली



"आइ मिस्ड यू आ लॉट भाई... आ लॉट..." ऐसा करने से अब रिकी के हार्ड ऑन का एहसास उसे अपनी चूत पे हुआ.. रिकी के लिए यह एहसास बिल्कुल नया था, लेकिन उसने यह जान लिया कि शीना को इससे बिल्कुल अनकंफर्टबल नहीं लग रहा, इसलिए उसने भी पीछे हाथ ले जाके शीना को कस के अपनी बाहों में भरा और उसके बालों को चूमते हुए बोला



"मिस्ड यू आ लॉट सिस.. आ लॉट..."



कुछ देर युहीन रहने के बाद जब दोनो को वक़्त का एहसास हुआ तब ना चाहते हुए भी दोनो वहाँ से निकल गये और जल्दी से घर के पास पहुँच गये.. इस बार रिकी ने शीना को पहले जाने दिया और जैसे ही शीना घर पहुँची , उसने उस वक़्त रिकी को वापस आने का मेसेज किया.. कुछ देर में रिकी भी वापस आ गया और घर पे सब को सोता हुआ पाया तो

शीना को गुड नाइट करता हुआ चलूं..



"शीना, कॅन आइ कम इन..' रिकी ने दरवाज़ा नॉक करते हुए कहा



"यस भाई, आ जाओ.." शीना ने धीरे से कहा ताकि कोई सुन ना ले



रिकी अंदर गया तो देखा कमरा बिल्कुल अंधेरे में था, केवल एक साइड लॅंप जल रहा था.. रिकी शीना के पास जाके झुक गया और अपने होंठों को शीने के होंठों के करीब लेके गया और धीरे से अपने होंठ उसके होंठों से रगड़ने लगा








"आइ जस्ट केम हियर टू विश यू गुड स्लीप.." रिकी और शीना दोनो ने अपने जज़्बातों पे कंट्रोल रखा और आगे बिना कुछ कहे रिकी वहाँ से निकल गया.. आज के दिन के बाद शीना को भी बहुत सुकून भारी नींद आई वहीं रिकी भी समझ नहीं पा रहा था आज उसे क्या हुआ, लेकिन वो यह ज़रूर जानता था के जो भी हुआ उसे बहुत अच्छा लगा






"देखा तुमने, आइ टोल्ड यू... दोनो के बीच में भाई बहेन से ज़्यादा का रिश्ता है पर मेरी बात कोई मानता ही नहीं..." किसी कमरे में ग्लास में दारू भरते भरते कोई अपने साथ बैठे हुए इंसान को यह कहने लगा
 
"तुम जानते हो, इन्ही सब चीज़ों की वजह से मैने घर के हर कमरे, हर कॉरिडर में कॅमरा फिट करवाए हैं ताकि सब पे नज़र रख सकें.." सुहासनी ने राजवीर के हाथ से ग्लास लेते हुए कहा.. उस दिन राजवीर और सुहासनी के बदन का मिलन अधूरा रह गया था ज्योति की वजह से, लेकिन आज राजवीर ने इतमीनान से काम करने की ठान रखी थी क्यूँ कि उसने ज्योति के रूम को बाहर से लॉक कर दिया था और यह भी चेक कर लिया था कि ज्योति रूम के अंदर ही है..



"तुम्हारे अलावा कौन जानता है कि घर में सीसीटीवीकैमरा हैं, आइ मीन घर के हर कोने में.." राजवीर सुहसनी के पास बैठ गया और उसकी जांघों को सहलाने लगा.. वैसे तो सुहसनी साड़ी में ही रहती थी पूरा दिन , लेकिन आज राजवीर के पास आई थी अपनी रात रंगीन बनाने इसलिए ऐसी नाइटी पहेन के आई थी कि उसको देख के किसी भी मर्द के लंड पे वार होने लगे, उपर से बाल खुले और अपने बदन को अच्छी तरह से चमका के आई थी.. सुहसनी अपने यार से चुदने के लिए बहुत बेताब थी आज



"उम्म्म, मेरे अलावा किसी को मालूम नहीं होगा शायद, और अगर पता भी चलेगा तो क्या फरक पड़ता है, सब घरवाले ही हैं.. सब की सेक्यूरिटी का हवाला देके खुद को बचा लूँगी मैं.." सुहसनी ने पैर लंबे किए और अपनी नगी जांघें राजवीर के पैर पे रख दी और उसके पैर का अंगूठा राजवीर के लंड के उभार के ठीक पास था, राजवीर ने सुहसनी की जांघों को सहलाना चालू रखा और धीरे धीरे उसके पेर के अंगूठे को अपने लंड के पास लाके छोड़ दिया ताकि आगे का काम सुहसनी खुद कर ले



"बात तो तुम्हारी सही है, लेकिन अभी जो तुमने देखा, तुम्हारा अपना बेटा तुम्हारी अपनी बेटी को चुम्के गया था, या यूँ कहे के चूमते चूमते रह गया.. उसका क्या, तुम्हे इस रिश्ते से कोई परहेज़ नहीं है.." राजवीर अब सुहसनी की ऐडियो को मसल्ने लगा और नखुनो से गुदगुदाने लगा



"परहेज़ कैसा, रिश्ता तो तुम्हारा और मेरा भी नाजायज़ है.. लेकिन मैने कभी इससे परहेज़ नहीं किया, और रही बात रिकी और शीना की, मौज करने दो उन्हे, जवानी के आलम पे हैं दोनो, और हम पैसे वालों के लिए यह सब बातें नॉर्मल हैं राजवीर.. ऐयाशी की नयी उँचाइयों को छूना हमारा काम है, शीना और रिकी फिर भी कुछ नहीं करते, घर पे बँधे हुए हैं... जैसे जैसे शीना बड़ी हो रही थी वैसे वैसे मुझे लग रहा था कि शीना अपने यारों को घर लाके मज़े लेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, वो तो बहुत सीधी निकली, लेकिन रिकी वाला सीन देख आज मुझे अच्छा लगा.. मैं तो चाहती हूँ कि मेरे बच्चे बस ज़िंदगी के मज़े लें, वो मज़े जो मैं कभी ना ले सकी.." सुहसनी ने एक ही साँस में अपनी बात कह डाली पर इसे सुनके राजवीर को कोई अस्चर्य नहीं हुआ... दोनो आराम से अपनी ड्रिंक पीने लगे और राजवीर ने फिर अपना पंजा सुहसनी की जांघों पे रखा और निचले हिस्से को सहलाने लगा



"उम्म्म, मज़ा आ रहा है ऐसे.. अच्छा, तुम यह कहो, तुमने भी तो उस दिन अपना लोड्‍ा अपनी जवान बेटी को दिखाया था, तुम्हे कैसा लगा था वो करके हाँ.." सुहसनी ने जैसे ही यह बात कही, राजवीर के लंड जो हल्का खड़ा था, वो अपने पूरे आकार में आने लगा जिसे सुहसनी ने भी अपने पेर के अंगूठे से महसूस किया.. राजवीर ने कुछ जवाब नहीं दिया और अपनी ड्रिंक का आनंद ले रहा था



"तुम भले ना बोलो, लेकिन तुम्हारे लंड ने तो गवाही दे दी, बेटी चोद बन गये तुम तो राजवीर, अब देर ना करना उसे अपने नीचे लाने में.." सुहसनी ने इस बार अपना पूरा पेर राजवीर के लंड पे रखा और उसे सहलाने लगी



"आआहहा... क्या कह रही हो, वो बेटी है मेरी.... अहहहा, लेकिन सही कहा तुमने, जवान हो गयी है अब, उसे भी तो लंड चाहिए ना... कुछ भी बोलो सुहसनी, हमारी बच्चियाँ है बड़ी प्यारी और एक नंबर का शरीर है उनका... फिर चाहे शीना हो या ज्योति... ज्योति से ज़्यादा माल तो मुझे शीना लगती है, जब अपनी गान्ड ठुमका के चलती है तो कसम से जी चाहता है कि वहीं साली को नंगा कर दूं और उसकी गान्ड चाट्ता रहूं.. जब साँस लेती है तो उसके चुचे देख ऐसा लगता है जैसे वहीं उसके चुचों को मूह में ले लूँ और चूस चूस के लाल कर दूं... और उसपे ज्योति मिल जाए तो ज़्यादा मज़ा आ जाए.. थ्रीसम करवाऊ, मेरा लंड ज्योति की गान्ड में, ज्योति की ज़बान शीना की चूत में और शीना के चुचे मेरे मूह में अहहहः.." राजवीर यह सब सुहसनी के पेर का एहसास अपने लंड पे पाते हुए बोलने लगा और सुहसनी उसे और आगे ले जाना चाहती थी इसलिए उसने अपनी गति भी बढ़ा दी जिसके बाद राजवीर सिर्फ़ सिसकने लगा



"तो चोद डालो ना, किसने मना किया है.. मैं तो खुश होउंगी देख के कि मेरी बच्चियाँ घर पे मज़े ले रही हैं.. और तुम्हारे जैसा लंड पाके तो वो और भी खुश हो जाएँगी, भला ऐसा मूसल उन्हे कहाँ मिलेगा.. ज़रा देखो तो बेशरम को आहाहह हाए... अपनी बेटी का नाम सुनके, अपनी भतीजी का नाम सुनके कैसे खड़ा हो गया है... साला बेटीचोद..." कहके सुहसनी ने अपने पेर के अंगूठे को राजवीर की शॉर्ट्स की एलास्टिक में फसाया और उसे नीचे करने लगी.. राजवीर ने भी उसकी मदद की और अपनी गान्ड उठा दी जिससे सुहसनी अपने काम में कामयाब हुई.. अंदर राजवीर ने कुछ नहीं पहना था , उसका खड़ा हुआ लंड सुहसनी ने अपने दोनो पैरों के बीच में ले लिया और अपने पैरों से उसके मूसल को हिलाने लगी



"अहहाहा, शीना बेटा, चाचू के लंड को मूह में लो ना.. उम्म्म." राजवीर ने अपनी आँखें बंद करके सुहसनी से कहा



"हां चाचू, क्यू नहीं.." कहके सुहसनी अपनी जगह पे उल्टी हो गयी और अब सोफे पे पेट के बल लेट के राजवीर के लंड को थोड़ा गीला किया और उसे धीरे धीरे कर मूह में लेने लगी.. मूह में लेके सुहसनी ने अंदर तक राजवीर के लंड को उतार दिया अपनी हलक में... कभी उसे पूरा अंदर लेती, तो कभी बाहर निकाल के उसके लंड के टोपे पे अपनी जीभ रखती और आइस क्रीम की तरह चुस्ती...



"अहाहा क्या कर रही है ज्योति अहहाहा. पापा का ध्यान अच्छे से रख बेटा उफ़फ्फ़ अहहः.."



यह सुनके सुहसनी अपने हाथ पीछे ले गयी और अपनी नाइटी के उपर का हिस्सा अपने शरीर से अलग कर दिया और इस दौरान उसने राजवीर के लंड को अपने मूह से नहीं निकाला था, जैसे ही सुहसनी उपर से नंगी हुई, उसने राजवीर के लंड को मूह में से निकाला



"अहहाहा पापा, कितना बढ़िया लंड है आपका अहाहाहा... पापा, मेरे बूब्स को कौन दबाएगा अहहहहौमम्म.." सुहसनी यह कहके फिर राजवीर के लंड को मूह में लेके उसके चुप्पे मारने लगी और दूसरे हाथ से राजवीर के टट्टों को भी दबाने लगी... राजवीर ने भी अपना हाथ आगे किया और सुहसनी के चुचों को मसल्ने लगा...



"अहहाहा कितने बड़े चुचे हैं मेरी बेटी के, कितनो से चुदवाया है मुझसे पहले मेरी बेटी ने अहहहा...हां ऐसे ही करो उफ़फ्फ़ अहहाहा..." कहके राजवीर ने अपना ज़ोर सुहसनी के चुचों पे बढ़ाया और सुहसनी के चूसने के मज़े लेने लगा



"किसी से नहीं पापा आहहहहा उम्म्म स्लूर्रप्प्प्प अहहहहहहा उम्म्म यूम्मम अहहहहा.. आपका लंड अहहहा बहुत अच्छा है पापा अहाहहाअ, आइस क्रीम कॅंडी के जैसा, आराम कीजिए पापा, अब मैं क्रीम निकाल रही हूँ इसमे से अहहहहा.." कहके सुहसनी ने राजवीर के लंड को मूह में फिर लिया और उसे ऐसे चूसने लगी जैसे इस रात की सुबह नहीं.. जन्गलियो की तरह उसके लंड को चुस्ती, रगड़ती टट्टों पे नाख़ून मारती, और राजवीर बस सिसकता रहता... जब सुहसनी थक गयी तब उसने लंड को मूह से निकाला और उसे हाथ से हिलाने लगी



"अहहाहा राजवीर, बेटी के नाम पे इतना कड़क हो गया है तेरा अहहहाहा.. आहम्‍म्म्म ओह्ह्ह अहहाहा ज्योति को चोद डाल राजवीर, बेटी चोद बन जा साले उहहाहहहहंम.... शीना को भी ले ले साथ में भडवे, अहहहाहाहः कोई फरक नहीं पड़ेगा अहहहा... अहहाहा हाआंणन्न् राजवीर, आजा , झाड़ दे शीना और ज्योति के नाम पे अहहाहा आहा आजा ना अहहहा देख ज्योति की चूत को चाट रहा है तू, और हाथ में शीना के चुचे हैं अहहहाहा आहहा हाआँ झाड़ दे मेरे यार आहाहहहा..." कहते कहते सुहसनी राजवीर के लंड को बहुत तेज़ी से हिलाने लगी, जिसे राजवीर भी सह नहीं पाया , उसने तुरंत सुहसनी को अपने नीचे लिया और अपने लंड को पकड़ के जैसे ही पीछे किया उसके लंड ने पिचकारियाँ छोड़ना चालू कर दिया... ज्योति के नाम पे राजवीर ऐसा झडा जैसे इससे पहले कभी झडा ही ना हो



जैसे ही राजवीर ने अपना सारा माल सुहसनी के चेहरे पे छोड़ा, सुहसनी ने जितना हो सके उतना अपने अंदर घटक लिया और अपनी उंगलियाँ चाटने लगी... राजवीर अब तक ठंडा नहीं हुआ था , इसलिए उसने सुहसनी को ऐसे ही रखा और नीचे झुक के उसका लोवर भी उतार दिया और सुहसनी की चिकनी चूत के दर्शन हो गये
 
"उम्म्म आहहा क्या बात है भाभी, आज चिकनी बन के आई हो..." कहके राजवीर ने अपनी जीभ सुहासनी की चूत पे रखी और धीरे धीरे कर उसे चाटने लगा



"अहहाहा हां मेरे देवर, जानती थी तू आज बेटी को चोदेगा इसलिए अहहाहा हां ऐसे ही चाटो पापा अहहाहा " सुहसनी ने अपने पैरों को चौड़ा कर दिया और राजवीर के सर को अपनी चूत के अंदर घुस्साने लगी... रजावर भी लॅप लॅप करके सुहसनी की चूत को चाटने लगा और सुहसनी को मज़े देता रहा.. सुहसनी सातवें आसमान पे पहुँच चुकी थी, हवा में अपने दोनो हाथ उठा के मस्ती में आ गयी और चूत चुसाइ के मज़े लेने लगी, हवा में उसके चुचों को झूलता देख कोई भी दूसरा मर्द वहाँ होता तो उसे खड़े खड़े चोद डालता, लेकिन फिलहाल यह दोनो अकेले ही थे और खुद मस्ती में थे.. सुहासनी को इतना कराहता देख राजवीर ने अपने दोनो हाथों से सुहसनी के दोनो हाथ पकड़ लिए और चूत चाटने में लगा रहा.. यूँ क़ैद में सुहसनी ऐसे कराह रही थी जैसे पन्छि पिंजरे में बंद होता है और बाहर आने को उत्सुक रहता है...




"अहाआहा राजवीर, ऐसे ही , मैं आने वाली हूँ अहहहा , हां चूस्ते रहो अहहाहा.... उम्म्म अहहहाहा माआ... आहहा हां ऐसे ही अहहहहहाआ और तेज़ उहह अहहहहः और तेज़ अहहहः इम्म्मममुंम्म्माहहहहा.... हां मैं आई राजवीर अहहहाहा और तेज़ अहहाहा ह्म्म अहहाहा और तेज़िीईईई सीए एआःहहहहहहः उम्म्म्मममम उईईइ अहहहहा मैं आई अहहहहहाहा.." सुहसनी छटपटाने लगी और झड़ने लगी, जब तक सुहसनी पूरी तरह से नहीं झड़ी तब तक राजवीर ने अपने हाथों से उसके हाथों को पकड़े रखा और उसकी चूत रस को लबा लब चाटने लगा तब तक, जब तक सुहसनी की चूत खाली नहीं होती...



सुहसनी की चूत को चाटने के बाद राजवीर का लंड फिर खड़ा हुआ, जिसे सुहसनी ने देखा और राजवीर को सोफा पे पैर खोल के बैठने का इशारा किया और खुद अपनी गान्ड फेला के उसके लंड के उपर बैठ गयी.. जैसे ही राजवीर का लंड अपनी गान्ड में महसूस किया, सुहसनी हल्के हल्के से कूदने लगी और राजवीर के मूसल को अपने अंदर लेने लगी







इतनी प्यारी और आनंद भरी चुदाई राजवीर ने शायद ही कभी की हो सुहसनी की, इसलिए वो भी इन हल्के हल्के धक्कों का मज़ा लेने लगा और अपने हाथ पीछे ले जाके सुहसनी का मज़ा दुगना करने के लिए उसके पैरों को सहलाने लगा, जिससे एक अजीब सी लहर सुहसनी के शरीर में दौड़ गयी और उसे महसूस करते ही सुहसनी ने राजवीर के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठों से अपने होंठ मिला लिए और दोनो चुदाई के साथ चूमने में भी व्यस्त हो गये... ऐसी धीमी और प्यार भरी गति की चुदाई से जब राजवीर थक गया तब उसने सुहसनी को अपने उपर से उतारा और सोफे के कोने में ले जाके उसे उल्टा लिटाया, जिससे सुहसनी का आधा शरीर उसके चुचों समेत हवा में लटक रहा था और पिछला आधा भाग सोफे पे पड़ा था... राजवीर ने एक बार उसके लंड पे थुका और इस बार सुहसनी की चूत पे लंड रख दिया... एक ही झटके में लंड घुस्सा के राजवीर ने पहले धीरे धीरे धक्के देना चालू किया, लेकिन जब देखा कि अब जंगली बनने की बारी आ गयी है, तो बिना सुहसनी को बताए उसने गति बढ़ा दी और देखते ही देखते सुहसनी की चूत को किसी जंगली घोड़े की तरह चोदने लगा


ऐसे तेज़ धक्के देख के सुहसनी को दर्द महसूस होने लगा



"हाए रे भडवे अहहाहा बेटी चोद, अपनी बेटी को ऐसे चोदना अहाहहाअ अहहा दर्द कर रहा है साले भडवे अयीई महहहहहाहा... " सुहसनी चिल्ला के कहने लगी लेकिन राजवीर जैसे बस बॅटरी वाली मशीन की तरह हो गया था जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था.. ऐसे करीब 10 मिनट चुदाई के बाद राजवीर और सुहसनी दोनो झड़ने के करीब पहुँच गये और बिना बताए ही एक दूसरे के साथ झड़ने लगे.. राजवीर ने अपना सारा माल सुहसनी की चूत के अंदर डाल दिया और सुहसनी को भी हल्का महसूस होने लगा.. इतनी चुदाई के बाद जब दोनो के शरीर थक गये, तब दोनो अलग हुए और वहीं सोफा पे पसर गये और तेज़ी से हाँफने लगे..





"तो अहहाहा कब उहह चुदवायेगी अहाहहा ज्योति और शीना को मुझ से.." राजवीर ने हान्फ्ते हुए अपनी टूटी हुई साँसों से कहा



"वो मेहनत तुम खुद करो, मिल जाए तो मज़े से ले लेना दोनो के, और ना मिले तो मैं तो हूँ ही.." सुहसनी ने अपनी साँसें संभाल के कहा और कुछ देर में खुद को ठीक करके राजवीर के कमरे से निकल गयी और राजवीर भी थक के अपने बेड पे जाके सो गया..




सुहसनी ने सही कहा था कि इस घर में वो जानती है कि कॅमरा कहाँ हैं और सब देख सकती है, लेकिन वो यह नहीं जानती थी कि उसके अलावा कोई और भी है जो इस राज़ को जानता था.. ज्योति, पिछले साल जब इस घर में आई थी तब उसकी नज़र अपने कमरे के वॉर्डरोब के उपर पड़ी जहाँ उसने कॅमरा को नोटीस किया, जैसे ही उसने यह देखा तो पहले तो वो शॉक हो गयी कि ऐसे कोई कैसे कर सकता है, लेकिन फिर उसे लगा कि शायद किसी वजह से लगाई गयी हो.. तब से वो ध्यान रखती कि कमरे में कुछ भी ऐसा वैसा ना करे वो.. लेकिन इस बार जब वो आई, तब उसने सब से पहले यह पता किया कि कॅमरा कहाँ कहाँ लगे हैं और उन सब को कैसे देखा जा सकता है.. आते ही उसने सब से पहले अपने रूम के कॅमरा को डीक्टिवेट करवाया ताकि उसकी अपनी प्राइवसी बनी रहे.. उसने उस दिन जब राजवीर के मोबाइल में सुहसनी की तस्वीर देखी, ठीक उसके दूसरे दिन ही ज्योति ने सब से पहले राजवीर और सुहासनी के कमरे के कॅमरा को अपने मोबाइल में कनेक्ट किया इंटरनेट कनेक्षन से.. राजवीर के कमरे में जो भी हरकत होती वो बड़ी आसानी से देख
सकती थी.. सुहसनी और राजवीर की ऐसी गरम चुदाई देख के और उसमे अपना और शीना का नाम सुन के ज्योति से भी रहा नहीं गया और अपनी चूत में उंगली करने लगी थी.. जब करीब एक घंटे बाद सुहसनी और राजवीर की चुदाई ख़तम हुई, तब ज्योति भी जाके फ्रेश हुई और सोचने लगी कि कैसे उसका बाप और उसकी बड़ी चाची उन्ही को चोदने का सोचते हैं, वैसे ज्योति को इसमे ग़लत या सही जैसा कुछ नहीं लगा.. लेकिन उसका ध्यान फिर उस बात पे गया जब राजवीर ने सुहसनी को रिकी और शीना के बारे में कहा...



"ह्म्म्म, भाई बहेन के बीच पनपता प्यार, तभी महाबालेश्वर की वादियों में घूमने का प्लान बनाया है दोनो ने और मुझे ऐसे निकाल दिया जैसे दूध में से मक्खी...." ज्योति ने खुद से कहा और तय कर लिया कि अब वो शीना के कमरे पे भी नज़र रखेगी.. और रही बात रिकी की, तो उसको अब शीना से दूर करके अगर अपने पास ना ला दिया तो मेरा नाम भी ज्योति नहीं.." ज्योति ने फिर खुद से कहा और सोने चली गयी
 
राइचंद'स में घर वाले धीरे धीरे विक्रम की मौत को भूलने की कोशिश कर रहे थे... सुबह सुबह जब सुहसनी और अमर रुटीन वॉक कर रहे थे, तभी इनस्पेक्टर निखिल वहाँ आ पहुँचता है....



"इनस्पेक्टर, जब भी आते हैं सुबह को ही आते हैं, कभी लेट भी हो जाया करो, सुहसनी, इनके लिए चाइ और नाश्ते का प्रबंध करो.." अमर ने निखिल से बैठने का इशारा किया



"सॉरी सर, बट सुबह के वक़्त ही आपके पास टाइम रहता है , फिर आप बिज़ी होते हैं इसलिए मैं इसी वक़्त आता हूँ, और आगे भी इसी वक़्त आउन्गा.." निखिल ने अपने ग्लास निकाल के कहा



"कोई बात नहीं, बताइए, क्या कर सकता हूँ मैं.."



"सर, जिस दिन विक्रम जी यहाँ से गये थे, उस दिन उन्होने अपने फरन्डस के साथ पार्टी की थी, और हम ने उनकी गवाही भी ले ली है..लेकिन..." निखिल कहते कहते रुक गया



"लेकिन पे रुकना बुरी बात है इनस्पेक्टर, ज़िंदगी में अपनी बात या तो बेबाकी से बोलना सीखो या तो चुप रहना सीखो..." अमर ने धीरे लेकिन कड़क टोन में कहा



"लेकिन सर, उनका एक फ्रेंड है. उसने गवाही में कहा, कि जिस रात उन्होने पार्टी थी, उस दिन वो सब लोग काफ़ी शराब पी रहे थे और मस्ती मज़ाक कर रहे थे, लेकिन विक्रम सर का दिमाग़ उनके साथ नही था, वो अपनी कुछ अलग सोच में डूबे हुए थे... कुछ देर में जब पार्टी ओवर हुई, तो उनके सब दोस्तों को नींद आने लगी, लेकिन विक्रम सर वैसे के वैसे ही थे.. मतलब कि वो या तो पी नहीं रहे थे या तो वो बहुत कम पी रहे थे... इसका कारण यह हो सकता है कि वो अपने दोस्तों के सो जाने का वेट कर रहे थे.." निखिल ने इतना ही कहा कि अमर ने बीच में टोक दिया



"लेकिन विक्रम ऐसा क्यूँ करेगा इनस्पेक्टर.."



"सर, उसी पे आ रहा हूँ मैं... जब मुझे उनके फ्रेंड ने यह कहा, तब मैने भी यही सवाल उससे पूछा, हाला कि उसे खुद नहीं पता था कि ऐसा क्यूँ कर रहे हैं विक्रम जी, लेकिन रात को जब सब लोग सो गये थे, इस बंदे ने जो विक्रम जी का दोस्त है, रात को उनकी आँख हल्की खुली थी, उन्होने जब आँख खोल के देखा तो विक्रम जी उस रूम की खिड़की पे कुछ देख रहे थे, फिर अचानक विक्रम जी ने उस खिड़की से छलाँग लगा ली जो थोड़ी दूर जाके जंगल में जाती है... जब तक उनके दोस्त को कुछ आइडिया आता, तब तक वो फिर नशे की वजह से सो गये... उनके सभी दोस्तों ने सेम गवाही दी है, लेकिन इस दोस्त की गवाही में सिर्फ़ यह बात ही अलग है, बाकी सब सेम है.. मतलब यह कि कोई झूठ नहीं बोल रहा, और हम ने सब का लाइव डिटेक्टर टेस्ट भी करवाया है.." निखिल ने अपनी बात ख़तम की और तब सुहसनी भी चाइ लेकर आ गयी...



"लेकिन इनस्पेक्टर, खिड़की के नीचे छलाँग क्यूँ लगाई, मतलब कि उसने ज़रूर कुछ अजीब होता हुआ देखा होगा, " अमर ने सुहसनी के जाते ही कहा



"या फिर किसी और को देखा हो..." निखिल ने यह बात अमर की आँख में आँख डाल के कही और दोनो की आँखें बड़ी हो गयी इस बात से... अमर को जैसे एक झटका सा लगा हो



"सर, आप चाहें तो यह सवाल स्किप कर सकते हैं, लेकिन क्या वजह है जो आप वो फार्म हाउस बेच रहे हैं.." निखिल ने अपनी चाइ लेते हुए कहा



अमर और निखिल यह बात कर ही रहे थे कि शीना खिड़की से यह सब देख रही थी और फोन पे किसी से बातें भी कर रही थी... उपर खड़े रहते रहते उसने देखा कि अमर और निखिल बहुत गंभीर होते जा रहे हैं, अमर अब अपनी शकल घुमा के कुछ बता रहा था, जैसे की कोई फ्लश बॅक या कुछ और बात जो सीरीयस थी..



"चल सुन बाइ, हां बाबा, आ जाउन्गी मैं यार, तू ना बहुत लोड देती है आज कल आर्किटेक्ट बन के" कहके शीना ने फोन रखा और जैसे ही पीछे मूडी, अपने सामने रिकी को खड़ा पाया



"गुड मॉर्निंग भाई.. " शीना ने आगे बढ़ के कहा



"गुड मॉर्निंग शीना, सुबह सुबह क्या देख रही हो.." रिकी ने कमरे से बाहर आते हुए कहा और शीना भी उसके पीछे चल दी



"कुछ नहीं भाई, अच्छी चीज़ हो तो बताऊ.. जब देखो यह इनस्पेक्टर सुबह सुबह आता है और पूरा दिन फिर यह सोचते रहते हैं कि यह क्यूँ आया.. और पापा भी कुछ नहीं बताते हमें तो.." शीना और रिकी दोनो डाइनिंग टेबल पे बैठ गये और नाश्ता करने लगे... यह दोनो बातें ही कर रहे थे कि राजवीर और ज्योति के साथ सुहसनी भी आ गयी और सब नाश्ता करने लगे...



"भाभी, सुबह सुबह यह इनस्पेक्टर, क्या हुआ.. और स्नेहा भी नहीं दिख रही आज नाश्ते पे.." राजवीर ने सुहसनी से पूछा, लेकिन सुहसनी कुछ बोलती उससे पहले शीना बोल पड़ी



"चाचू, भाभी को मैं बुला लेती हूँ, लेकिन यह इनस्पेक्टर क्यूँ आया है, वो तो पापा ही बता सकते हैं..." कहके शीना स्नेहा को बुलाने चली गयी



"ह्म्‍म्म, सर अगर आप पर्मिशन दें तो क्या मैं उस फार्म हाउस में टाइम स्पेंड कर सकता हूँ... अगर आपकी इजाज़त हो तो ही.." निखिल और अमर अब खड़े रहके ही बातें कर रहे थे



"हां इनस्पेक्टर, आप मुझे बता देना कब जाना चाहते हैं, मैं अरेंज्मेंट्स करवा दूँगा.." उमेर ने फाइनली अपना मूह निखिल की तरफ घुमाया



"ठीक है सर, मैं आपसे कह दूँगा, बट आप वहाँ किसी को नही बोलें कि मैं इनस्पेक्टर हूँ, आप बस उनसे यह कहें कि दोस्त या दोस्त का बेटा है... या जो भी आपको सही लगे, बट इनस्पेक्टर.. बिल्कुल नही..."



"समझ गया मैं इनस्पेक्टर, डोंट वरी.. आप मुझे एक दिन पहले कह देना, मैं सब कर दूँगा.."



"ठीक है सर, मैं चलता हूँ फिलहाल तो.. उम्मीद है नेक्स्ट टाइम भी आपसे सुबह ही मुलाकात होगी.." निखिल ने हल्की सी हसी के साथ कहा और वहाँ से निकल गया
 
उधर स्नेहा अपने रूम में चक्कर लगा रही थी और सोच सोच के थकने लगी थी कि आख़िर शीना उसपे नज़र कैसे रख रही है.. इस सिलसिले में उसने हर चीज़ चेक की लेकिन उसे कुछ हासिल नहीं हुआ, सुबह अपने रूम में ठंडी हवा पाके भी स्नेहा को चेन नहीं था, उसके माथे का पसीना उसकी हालत बयान कर रहा था..



"अभी तो मैने कुछ नहीं किया, लेकिन फिर भी पसीना क्यूँ आ रहा है तुझे.." शीना ने स्नेहा के दरवाज़े को खोल के कहा और स्नेहा अचानक से शीना के आगमन पे चौंक उठी



स्नेहा ने पलट के देखा तो सामने शीना खड़ी थी और अपने हाथ में कीचैन घुमा रही थी..



"बोल भी, क्या सोच रही है.. वैसे भी आज कल तेरा दिमाग़ चल नहीं रहा, उसपे यह चिंता के भाव, शायद तेरे घुटनो में दर्द ना बढ़ जाए सोच सोच के..." शीना ने वहाँ बैठ के कहा



"शीना देखो, " स्नेहा ने बस इतना ही कहा के शीना ने फिर उसे रोक दिया



"तू देख, स्नेहा... सुबह सुबह मुझे कोई सीन क्रियेट नहीं करना... नाश्ता खाने चल.." शीना ने जैसे हुकुम दिया स्नेहा को और जाने के लिए खड़ी हुई



"मुझे नहीं खाना, और इज़्ज़त से बात करो... और यह जो ग़लत फ़हमी पाल रखी है तुम्हारे दिमाग़ में, उसे क्लियर कर दो.. ऐसा कुछ नहीं है जैसा सोच रही हो तुम.." स्नेहा ने फाइनली अपनी बात बोली



"खाने तो तुझे आना ही पड़ेगा, नहीं तो तू सोच नहीं सकती कि मैं क्या क्या कर सकती हूँ.. और रही बात ग़लत फ़हमी की, तो सुन.. यह जो तेरा दिमाग़ है ना, सिर्फ़ तेरे पास ही नहीं है.. घर के बाकी लोगों के पास भी है, इसलिए जैसा कह रही हूँ वैसा कर.. नहीं तो अभी के अभी पोलीस को बुला के तेरे बारे में कह सकती हूँ, फिर सडती रहना ज़िंदगी भर जैल में.. और वो जो तेरा यार है ना, तेरा भाई प्रेम.. ज़िंदगी भर कोर्ट के चक्कर लगाता रहेगा.. चूतड़ घिस जाएँगे ना दोनो के तब भी नहीं निकल पाओगे ऐसे केस लग सकते हैं.. प्यार से बोल रही हूँ चल तो चल.. और खा ले आराम से.. कुछ ही वक़्त की बात है, शायद उसके बाद जैल का खाना ही मिले तुझे.. और हां, याद रखना, जब भी अंदर जाएगी ना, तब कोई बाहर नहीं निकालेगा उसकी गॅरेंटी मैं तुझे देती हूँ.. ना तेरा यार भाई प्रेम... और ना ही...." शीना ने इतना कहा और वहाँ से निकल गयी....



"5 मिनट में आजा...." शीना ने फिर कॉरिडर से चिल्ला के कहा और खुद डाइनिंग टेबल की तरफ चल दी.." शीना की बातें सुन स्नेहा फिर से टेन्षन में आ गयी... बार बार सोचने लगी कि उसने शायद अपनी ज़िंदगी की सब से बड़ी ग़लती कर दी उसको बेवकूफ़ समझ के.. लेकिन अभी बिना कुछ सोचे उसने खुद को ठीक किया और हँसता हुआ चेहरा लेके नाश्ते की तरफ चल दी..



डाइनिंग टेबल पे जैसे सब स्नेहा का ही वेट कर रहे हो, जैसे ही स्नेहा आई सब ने खाना स्टार्ट किया और अपनी अपनी बातों में लग गये... राजवीर और अमर ज़मीन देखने की बातों में लगे तो सुहसनी बार बार इनस्पेक्टर के आने का कारण पूछती और अमर उसे नकार देता, लेकिन 4 दिमाग़.. 4 तेज़ और जवान दिमाग़ अपना अपना काम कर रहे थे... रिकी और शीना एक दूसरे के ख़यालों में तो खोए हुए ही थे, लेकिन शीना अपनी नज़रों से स्नेहा को ही देख रही थी और उसके मज़े ले रही थी.. स्नेहा बार बार यह अब्ज़र्व करती और परेशान होने लगती.. ज्योति के दिमाग़ में दो चीज़ें चल रही थी, एक वो रिकी के नज़दीक अब कैसे जाए... औरत चाहे कितने ही दिमाग़ वाली, कितनी सैयम वाली क्यूँ ना हो, लेकिन एक बार अगर उसे किसी बात की चोट लगती है तो वो सब कुछ भूल के उसी बात पे जुड़ी रहती है.. शीना ने अपने दिमाग़ का उपयोग करके महाबालेश्वर वाला रिज़ॉर्ट तो हासिल कर दिया, लेकिन अब उसके लिए उसे कोई कीमत भी चुकानी पड़ेगी... शायद यह कीमत रिकी भी हो सकती है... दूसरी तरफ जब वो शीना को देखती तो उसकी नज़रों का पीछा करके यह पाती कि शीना स्नेहा को देख रही है और जिससे स्नेहा भी सहम जाती बार बार... मतलब कुछ तो हुआ है दोनो के बीच में, नहीं तो वो जानती थी कि स्नेहा ऐसी नहीं कि वो शीना से सहमे, मतलब शीना को कुछ ऐसा हाथ लगा है जिससे वो स्नेहा के साथ खेल सकती है.. पर स्नेहा की ऐसी क्या बात हो सकती है... खैर, फिलहाल ज्योति ने तय किया कि वो अपना दिमाग़ एक ही बात पे लगाएगी, वो यह कि शीना को उससे दूर किया जाए.. कैसे, वो किसी को समझते देर नहीं लगनी चाहिए...



"वैसे भैया, आप आज से विक्रम भैया का काम देखने वाले हैं, और साथ ही महाबालेश्वर वाला प्रॉजेक्ट भी... सडन्ली इतना सब कुछ, कैसा लग रहा है आपको..." ज्योति ने रिकी से पूछा और अपनी बातचीत शुरू करने की कोशिश की



"हुह.. डर लग रहा है यार, आंड दो चीज़ें एक साथ, होप्फुली दोनो काम अच्छे से हो तो आइ विल बी वेरी हॅपी.."



"डरने का क्यूँ भाई, शीना भी है आंड बॅकप में मैं भी तो हूँ ना.. फिर क्यूँ डर.. मुझे लगा आप बोलोगे कि मैं बिज़ी होने वाला हूँ तो शायद सब को टाइम नहीं दे पाऊ इतना.." ज्योति ने फिर अपनी चाइ की सैप लेते हुए कहा



"बिज़ी तो रहूँगा ना, लेकिन ट्राइ करूँगा सब को अच्छे से टाइम भी दे पाऊ... डोंट वरी.." रिकी ने फिर शांति से जवाब दिया



"ट्राइ ना, इम्पॉसीबल नहीं है.. देखिए ताऊ जी, जो बंदा खुद श्योर नहीं है उसपे मैं कैसे यकीन कर लूँ.." ज्योति ने अमर से कहा और वहाँ बैठे सभी ज्योति की इस हरकत पे हँस पड़े, क्यूँ कि वो जानते थे के ज्योति उसे तंग कर रही है



"ऐसा नहीं है बेटा, डोंट वरी...अब उसकी खिचाई बंद भी करो.." अमर ने ज्योति से कहा



"ना , कोई खिचाई नहीं है.. अब मैं यहाँ अकेली रहूंगी क्या, या तो मैं वापस चली जाउन्गी पापा के साथ या तो रिकी भैया मुझे कहीं घुमाने ले जाए.. आप फ़ैसला कीजिए अब क्या करना है.." ज्योति ने फाइनली अपनी बात कही, और क्या खूब तरीके से कही.. वो जानती थी अमर क्या चूज़ करेगा



"अरे जाने की बात कहाँ से आई इसमे, अब हमने यहाँ रहने का फ़ैसला कर दिया तो कर दिया, अब मैं भाईसाब को फिर मना नहीं करूँगा.. तुझे जाना है तो अकेले जा.." राजवीर ने ज्योति का जवाब दिया



"क्या अकेले जा.. कोई नहीं जाएगा यहाँ से, यह फाइनल है.. और ज्योति, रही बात वक़्त की, चिंता नहीं करो.. तुम जहाँ बोलोगि तुम्हे रिकी वहाँ घुमा लाएगा. बट जाने की बात ना करो, और उसे काम तो शुरू करने दो पहले.." अमर ने अपना फ़ैसला सुनाया लेकिन ज्योति ने फिर उसकी नही सुनी



"नही नही, बिल्कुल नही, काम शुरू करके बिज़ी होंगे फिर क्या फ़ायदा, अभी कहीं पे घुमाने ले जाए तो ओके.. नही तो रहने दो.. और हां, मैं भैया के साथ अकेली जाना चाहती हूँ, कितने दिन हो गये ना ही इन्होने सोचा मेरे बारे में, ना ही किसी और ने" ज्योति ने सड़ा मूह बना के कहा



"अरे.. अच्छा बाबा ठीक है, कहाँ जाना चाहती हो.. रिकी, तुम देख लो और घुमा के लाओ इसे, आके काम शुरू करना, तब तक मैं और राजवीर ज़मीन भी देख लेंगे.. अब खुश बेटा.." अमर ने ज्योति से कहा और ज्योति ने भी खुशी में उछल के अमर को गले लगा लिया



ज्योति की बातें सुन शीना को टेन्षन होने लगी, कहाँ वो रिकी के साथ हॉलिडे की बातें सोच रही थी और कहाँ ज्योति ने सब के सामने अपनी बात की और उसे पर्मिशन मिल गयी.. इसे कहते हैं क्लीन बोल्ड होना...ह्म्‍म्म, शीना जी, कुछ सोचो नहीं तो हिमालय पे जाके मंतर जपने पड़ेंगे.. शीना ने मन ही मन सोचा और आगे क्या करना है वो सोचने लगी
 
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