hotaks444
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घर के ऐसे माहॉल में स्नेहा घर से बाहर निकलती भी कैसे, क्या बोलके निकले या किसी को बताए बिना निकले वो सोच सोच के परेशान हो रही थी... उधर ज्योति और शीना दोनो साथ बैठे थे अपने कमरे में पर कोई किसी से बात नहीं कर रहा था., बाल्कनी से आ रही लहरों की पत्थर से टकराने की आवाज़ भी आज शीना को शोर लग
रहा था, वहीं ज्योति अपनी खामोशी से लड़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो कोशिश नाकामयाब होती.. जब भी वो सोचती कुछ कहके यह अजीब सी खामोशी तोड़ी जाए,
अपनी उस सोच को शब्दों में तब्दील नहीं कर पाती..
"ज्योति..." शीना ने सीलिंग की तरफ देखते हुए कहा
"ह्म्म्म.." ज्योति ने बस इतना ही जवाब दिया
"यार, आज सुबह कमिशनर अंकल आए थे, और जब मैं उनके पास गयी थी उनकी बातें सुनने को, तो उन्होने मुझे बैठने ही नहीं दिया, किसी ना किसी बहाने से दूर भेजते और फिर जब मैं डोर से देखती तो पापा के एक्सप्रेशन्स बहुत सीरीयस होते.. क्या लगता है तुझे, क्या बात होगी.." शीना ने ज्योति की तरफ अपना चेहरा करके कहा
"कुछ नहीं, अक्सर ऐसे केसस में कमिशनर आता है और कहता है कि केस सीधा है, गाड़ी का आक्सिडेंट हुआ है, आप चाहें तो तहकीकात करें या तो केस बंद कर दें , और जो सामने होता है वो कहता है कि जो होना था वो हो गया है, अब आप केस बंद करें या तहकीकात करें मुझे कोई फरक नही पड़ेगा.. और फिर केस बंद हो जाता है.." ज्योति अभी भी सीलिंग की ओर देखे जा रही थी
"ह्म्म्म्म ..." शीना ने भी बस इतना कहा और दोनो बस सीलिंग को घूर्ने लगी..
उधर अमर ने रिकी को अपने पास बुलाया और राजवीर भी उनके साथ वहीं था.. हर बार जब भी अमर अपने घर के आलीशान कान्फरेन्स रूम में होता तो उसके साथ विक्रम भी होता, लेकिन आज ऐसा नहीं था.. आज वो यहाँ विक्रम के साथ नहीं, पर विक्रम की वजह से था... अमर कान्फरेन्स रूम में लगे अपने और विक्रम की फोटो को एक टक देख रहा था और बस देखे ही जा रहा था.. राजवीर और रिकी दोनो उसके पीछे खड़े थे और वो समझ रहे थे अमर की भावनाओं को..
"विक्रम के जाने के बाद आज पहली बार यह कमरा मुझे काटने को दौड़ रहा है, आज पहली बार यह कमरा मुझे खाली सा लग रहा है..विक्रम जब भी यहाँ रहता हमेशा मुझे कहता , पापा आप चिंता ना करें , अब आपकी उमर रिटाइयर्मेंट की आ गयी है सब काम मैं संभाल रहा हूँ.. और आज वो ही चिंता दे गया मुझे.. आज वो ही अकेला छोड़ गया है मुझे.." अमर ने अपनी फोटो से नज़रें हटाई और राजवीर और रिकी का सामना किया, अमर की आँखें नम तो थी ही, लेकिन उसकी बातें सुन
के रिकी भी कमज़ोर पड़ने लगा.. राजवीर ने तुरंत रिकी और अमर को पास पड़े चेर्स पे बिठाया
"भाई साब, अब अगर हम लोग ही कमज़ोर पड़ेंगे तो घर कैसे संभलेगा, घर की औरतों का ध्यान कौन रखेगा, वो लोग पहले से ही टूट चुकी हैं, और अब आपकी यह हालत देख के मुझे डर है कहीं वो बिखर ही ना जायें.." राजवीर ने खुद को मज़बूत करके कहा
"तुम ठीक कह रहे हो राजवीर, रिकी, तुम क्या कर सकते हो अपने भाई के लिए.." अमर के इस सवाल से राजवीर और रिकी दोनो चौंक गये, किसी को नहीं पता था कि अमर का इस सवाल का क्या मतलब निकाले.. यह सवाल उम्मीदों से परे था, इसलिए दोनो खामोश रहे और अमर को देखने लगे..
"पापा, मैं भैया के लिए कुछ भी कर सकता हूँ..इस घर के लिए कुछ भी कर सकता हूँ... आप निश्चिंत रहें, आप आवाज़ कीजिए, मैं ना नहीं कहूँगा.." रिकी ने जज़्बाती बनते हुए कहा
"रिकी, राजवीर के साथ विक्रम के काम काज को सम्भालो, राजवीर, रिकी को सब कुछ बताओ, विक्रम क्या करता था, कैसे करता था.. शुरुआत में जो भी काम काज रहेगा उसकी देख रेख रिकी करेगा लेकिन ज़िम्मेदारी राजवीर, तुम्हारी होगी.. और जब रिकी को सब कुछ समझ आए तब राजवीर तुम अपने काम पे ध्यान देना.... इस दोरान राजवीर, तुम्हारे काम का कुछ नुकसान हो, उसकी भरपाई हम कर लेंगे.."
"भाई साब, इतना छोटा नहीं कीजिए, यह घर मेरा भी है... मेरा काम या विक्रम का काम, है तो एक ही.. आप चिंता ना करें, मैं सब देख लूँगा और रिकी को समझा दूँगा.." कहके राजवीर और रिकी दोनो वहाँ से जाने के लिए उठे ही थे कि फिर अमर ने कहा
"अभी हम ने अपनी बात ख़तम नहीं की है, बैठ जाओ.." अमर ने कुर्सी की तरफ इशारा करके कहा
"रिकी, तुम्हारे रिज़ॉर्ट का क्या करोगे जिसका आइडिया तुमने मुझे दिया था और जिसपे तुमने काम शुरू भी कर लिया है"
"पता नही पापा, फिलहाल तो अब आप ने जो कहा मैं उसपे ध्यान दूँगा, रिज़ॉर्ट का बाद में कुछ कर लेंगे, जो चीज़ है उसपे ध्यान दूं ना कि उस चीज़ पे जो फिलहाल सिर्फ़ काग़ज़ पे है.."
"काग़ज़ पे जो चीज़ है उसे हक़ीकत में बनाना ही विक्रम का काम था.. तुम्हारी जगह विक्रम होता तो यह जवाब कभी नहीं देता.. सीधा मैं कहूँ तो मैं चाहता हूँ तुम दोनो काम देखो, क्यूँ कि इसमे तुम्हारे साथ ज्योति रहेगी तो रिज़ॉर्ट वाला वर्कलोड इतना ज़्यादा नहीं होगा, और तुम्हारा सपना भी पूरा हो जाएगा.. हां लेकिन इसके लिए तुम्हे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी, अगर पढ़ाई करोगे तो तुम विक्रम का काम हॅंडल नहीं कर पाओगे.. सोच समझ कर फ़ैसा लो और मुझे बताओ, कोई जल्दी नहीं है मुझे, तुम्हारे पास 3 दिन का वक़्त है"
अमर की यह बात सुन रिकी को काफ़ी खुशी महसूस हुई क्यूँ कि पढ़ाई ना करने का रंज उसे बिल्कुल नहीं था, उसने अब तक जो लंडन में किया था वो काफ़ी था, अब अगर वो ज़िंदगी में प्रॅक्टिकल चीज़ें नहीं करेगा तब तक उसे अपनी अब तक की हुई पढ़ाई व्यर्थ ही लगेगी और अब जब उसे मौका मिल रहा था तो वो मना नहीं कर सकता. और अमर ने विक्रम के काम काज के साथ साथ रिकी के प्रॉजेक्ट का भी ख़याल रखा था, इससे अच्छी बात क्या हो सकती थी रिकी के लिए.. अगर मॅनेज्मेंट लॅंग्वेज में कहूँ तो सिर्फ़ प्रॉजेक्ट मॅनेज्मेंट ही नहीं, बल्कि उसके साथ साथ टाइम मॅनेज्मेंट, रीसोर्स मॅनेज्मेंट जैसे चीज़ें भी प्रॅक्टिकल में इंप्लिमेंट करने को मिलेगी, किसी भी मॅनेज्मेंट स्टूडेंट के लिए इससे अच्छी चीज़ क्या हो सकती है.. रिकी अंदर ही अंदर काफ़ी खुश हो गया था, मन में सोचने लगा था कि वो क्या करेगा, कैसे करेगा और हर वो चीज़ जो आदमी करता है जब उसे अपना सपना पूरा होते हुए दिखता है, लेकिन रिकी तो हमारा रिकी ही है.. कभी अपने एमोशन्स को अपने उपर हावी नहीं होने देता, इसलिए उसने अपनी खुशियों को दिल में दबाए ही रखा
"ओके पापा.." कहके रिकी ने हल्की स्माइल दी और राजवीर के साथ वहाँ से निकल गया.. बाहर आते ही रिकी और राजवीर बातें करने लगे के कब से काम शुरू करना है..
यह तय हुआ 2 दिन बाद से राजवीर विक्रम के काम काज के बारे में रिकी को बताना शुरू करेगा.. विक्रम और अमर ने घरवालों को दिखाने के लिए तीन फ़र्ज़ी कंपनीज़ खोल रखी थी.. राइचंद'स कन्स्ट्रक्षन, राइचंद'स टेक्सटाइल्स आंड राइचंद'स गेम्स... अमर और विक्रम के अलावा सिर्फ़ राजवीर जानता था कि यह सब कंपनीज़ टाइमपास के लिए हैं, राइचंद'स कन्स्ट्रक्षन का हिसाब किताब, टेक्सटाइल्स में साले , किसी को कुछ नहीं पता था.. कन्स्ट्रक्षन में जितने फ्लॅट्स बनते सब अमर के दोस्तों में जाते जिनके पैसों का कुछ ठिकाना नहीं था, जब किसी को देने होते तब दे देते.. गिन चुन के 10 - 12 साल में बस 4 बिल्डिंग ही बनी थी और सब की सब अमर और विक्रम के दोस्तों से भरी हुई थी.. एक साइट पे हमेशा काम चलता रहता ताकि लोगों को कुछ दिख सके.. टेक्सटाइल्स का हाल क्या था वो किसी को नहीं पता था, सूरत
में एक लूम फॅक्टरी थी पर वहाँ से जो माल बनता उसमे से बिक्री सिर्फ़ 805 की ही होती, पर वहाँ भी प्रोडक्षन बंद नहीं कर सकते नहीं तो मज़दूरों को भूके पेट रहना पड़ता.. पेपर पे देखा जाए तो कन्स्ट्रक्षन और टेक्सटाइल्स का मिला के मुनाफ़ा कुछ 20-30 करोड़ था वो भी सालाना..
रिकी का दिल बार बार यही कहता कि काश शीना उसके साथ जाय्न हो जाए रिज़ॉर्ट वाले प्रॉजेक्ट में, लेकिन अब जब उसने देखा कि रिज़ॉर्ट को शायद अकेले भी मॅनेज करना पड़े तो उसका दिमाग़ दोबारा सोचने लगा.. वो जानता था कि ज्योति अकेले में सब मॅनेज कर लेगी और वो भी उम्दा तरीके से, शीना ना ही मॅनेज्मेंट पढ़ी है और ना
ही उसने कभी की है, इसलिए उसपे अकेले यह काम का भरोसा करना शायद ठीक ना रहे.. जब दिल और दिमाग़ की यह लड़ाई किसी निर्णय पे नहीं पहुँच पाई, तब उसने सोचा क्यूँ ना डाइरेक्ट शीना से बात की जाए..
"शीना, व्हेअर् आर यू..." रिकी ने फोन लगा के कहा
"अपने रूम में भाई, क्यूँ"
रहा था, वहीं ज्योति अपनी खामोशी से लड़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो कोशिश नाकामयाब होती.. जब भी वो सोचती कुछ कहके यह अजीब सी खामोशी तोड़ी जाए,
अपनी उस सोच को शब्दों में तब्दील नहीं कर पाती..
"ज्योति..." शीना ने सीलिंग की तरफ देखते हुए कहा
"ह्म्म्म.." ज्योति ने बस इतना ही जवाब दिया
"यार, आज सुबह कमिशनर अंकल आए थे, और जब मैं उनके पास गयी थी उनकी बातें सुनने को, तो उन्होने मुझे बैठने ही नहीं दिया, किसी ना किसी बहाने से दूर भेजते और फिर जब मैं डोर से देखती तो पापा के एक्सप्रेशन्स बहुत सीरीयस होते.. क्या लगता है तुझे, क्या बात होगी.." शीना ने ज्योति की तरफ अपना चेहरा करके कहा
"कुछ नहीं, अक्सर ऐसे केसस में कमिशनर आता है और कहता है कि केस सीधा है, गाड़ी का आक्सिडेंट हुआ है, आप चाहें तो तहकीकात करें या तो केस बंद कर दें , और जो सामने होता है वो कहता है कि जो होना था वो हो गया है, अब आप केस बंद करें या तहकीकात करें मुझे कोई फरक नही पड़ेगा.. और फिर केस बंद हो जाता है.." ज्योति अभी भी सीलिंग की ओर देखे जा रही थी
"ह्म्म्म्म ..." शीना ने भी बस इतना कहा और दोनो बस सीलिंग को घूर्ने लगी..
उधर अमर ने रिकी को अपने पास बुलाया और राजवीर भी उनके साथ वहीं था.. हर बार जब भी अमर अपने घर के आलीशान कान्फरेन्स रूम में होता तो उसके साथ विक्रम भी होता, लेकिन आज ऐसा नहीं था.. आज वो यहाँ विक्रम के साथ नहीं, पर विक्रम की वजह से था... अमर कान्फरेन्स रूम में लगे अपने और विक्रम की फोटो को एक टक देख रहा था और बस देखे ही जा रहा था.. राजवीर और रिकी दोनो उसके पीछे खड़े थे और वो समझ रहे थे अमर की भावनाओं को..
"विक्रम के जाने के बाद आज पहली बार यह कमरा मुझे काटने को दौड़ रहा है, आज पहली बार यह कमरा मुझे खाली सा लग रहा है..विक्रम जब भी यहाँ रहता हमेशा मुझे कहता , पापा आप चिंता ना करें , अब आपकी उमर रिटाइयर्मेंट की आ गयी है सब काम मैं संभाल रहा हूँ.. और आज वो ही चिंता दे गया मुझे.. आज वो ही अकेला छोड़ गया है मुझे.." अमर ने अपनी फोटो से नज़रें हटाई और राजवीर और रिकी का सामना किया, अमर की आँखें नम तो थी ही, लेकिन उसकी बातें सुन
के रिकी भी कमज़ोर पड़ने लगा.. राजवीर ने तुरंत रिकी और अमर को पास पड़े चेर्स पे बिठाया
"भाई साब, अब अगर हम लोग ही कमज़ोर पड़ेंगे तो घर कैसे संभलेगा, घर की औरतों का ध्यान कौन रखेगा, वो लोग पहले से ही टूट चुकी हैं, और अब आपकी यह हालत देख के मुझे डर है कहीं वो बिखर ही ना जायें.." राजवीर ने खुद को मज़बूत करके कहा
"तुम ठीक कह रहे हो राजवीर, रिकी, तुम क्या कर सकते हो अपने भाई के लिए.." अमर के इस सवाल से राजवीर और रिकी दोनो चौंक गये, किसी को नहीं पता था कि अमर का इस सवाल का क्या मतलब निकाले.. यह सवाल उम्मीदों से परे था, इसलिए दोनो खामोश रहे और अमर को देखने लगे..
"पापा, मैं भैया के लिए कुछ भी कर सकता हूँ..इस घर के लिए कुछ भी कर सकता हूँ... आप निश्चिंत रहें, आप आवाज़ कीजिए, मैं ना नहीं कहूँगा.." रिकी ने जज़्बाती बनते हुए कहा
"रिकी, राजवीर के साथ विक्रम के काम काज को सम्भालो, राजवीर, रिकी को सब कुछ बताओ, विक्रम क्या करता था, कैसे करता था.. शुरुआत में जो भी काम काज रहेगा उसकी देख रेख रिकी करेगा लेकिन ज़िम्मेदारी राजवीर, तुम्हारी होगी.. और जब रिकी को सब कुछ समझ आए तब राजवीर तुम अपने काम पे ध्यान देना.... इस दोरान राजवीर, तुम्हारे काम का कुछ नुकसान हो, उसकी भरपाई हम कर लेंगे.."
"भाई साब, इतना छोटा नहीं कीजिए, यह घर मेरा भी है... मेरा काम या विक्रम का काम, है तो एक ही.. आप चिंता ना करें, मैं सब देख लूँगा और रिकी को समझा दूँगा.." कहके राजवीर और रिकी दोनो वहाँ से जाने के लिए उठे ही थे कि फिर अमर ने कहा
"अभी हम ने अपनी बात ख़तम नहीं की है, बैठ जाओ.." अमर ने कुर्सी की तरफ इशारा करके कहा
"रिकी, तुम्हारे रिज़ॉर्ट का क्या करोगे जिसका आइडिया तुमने मुझे दिया था और जिसपे तुमने काम शुरू भी कर लिया है"
"पता नही पापा, फिलहाल तो अब आप ने जो कहा मैं उसपे ध्यान दूँगा, रिज़ॉर्ट का बाद में कुछ कर लेंगे, जो चीज़ है उसपे ध्यान दूं ना कि उस चीज़ पे जो फिलहाल सिर्फ़ काग़ज़ पे है.."
"काग़ज़ पे जो चीज़ है उसे हक़ीकत में बनाना ही विक्रम का काम था.. तुम्हारी जगह विक्रम होता तो यह जवाब कभी नहीं देता.. सीधा मैं कहूँ तो मैं चाहता हूँ तुम दोनो काम देखो, क्यूँ कि इसमे तुम्हारे साथ ज्योति रहेगी तो रिज़ॉर्ट वाला वर्कलोड इतना ज़्यादा नहीं होगा, और तुम्हारा सपना भी पूरा हो जाएगा.. हां लेकिन इसके लिए तुम्हे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी, अगर पढ़ाई करोगे तो तुम विक्रम का काम हॅंडल नहीं कर पाओगे.. सोच समझ कर फ़ैसा लो और मुझे बताओ, कोई जल्दी नहीं है मुझे, तुम्हारे पास 3 दिन का वक़्त है"
अमर की यह बात सुन रिकी को काफ़ी खुशी महसूस हुई क्यूँ कि पढ़ाई ना करने का रंज उसे बिल्कुल नहीं था, उसने अब तक जो लंडन में किया था वो काफ़ी था, अब अगर वो ज़िंदगी में प्रॅक्टिकल चीज़ें नहीं करेगा तब तक उसे अपनी अब तक की हुई पढ़ाई व्यर्थ ही लगेगी और अब जब उसे मौका मिल रहा था तो वो मना नहीं कर सकता. और अमर ने विक्रम के काम काज के साथ साथ रिकी के प्रॉजेक्ट का भी ख़याल रखा था, इससे अच्छी बात क्या हो सकती थी रिकी के लिए.. अगर मॅनेज्मेंट लॅंग्वेज में कहूँ तो सिर्फ़ प्रॉजेक्ट मॅनेज्मेंट ही नहीं, बल्कि उसके साथ साथ टाइम मॅनेज्मेंट, रीसोर्स मॅनेज्मेंट जैसे चीज़ें भी प्रॅक्टिकल में इंप्लिमेंट करने को मिलेगी, किसी भी मॅनेज्मेंट स्टूडेंट के लिए इससे अच्छी चीज़ क्या हो सकती है.. रिकी अंदर ही अंदर काफ़ी खुश हो गया था, मन में सोचने लगा था कि वो क्या करेगा, कैसे करेगा और हर वो चीज़ जो आदमी करता है जब उसे अपना सपना पूरा होते हुए दिखता है, लेकिन रिकी तो हमारा रिकी ही है.. कभी अपने एमोशन्स को अपने उपर हावी नहीं होने देता, इसलिए उसने अपनी खुशियों को दिल में दबाए ही रखा
"ओके पापा.." कहके रिकी ने हल्की स्माइल दी और राजवीर के साथ वहाँ से निकल गया.. बाहर आते ही रिकी और राजवीर बातें करने लगे के कब से काम शुरू करना है..
यह तय हुआ 2 दिन बाद से राजवीर विक्रम के काम काज के बारे में रिकी को बताना शुरू करेगा.. विक्रम और अमर ने घरवालों को दिखाने के लिए तीन फ़र्ज़ी कंपनीज़ खोल रखी थी.. राइचंद'स कन्स्ट्रक्षन, राइचंद'स टेक्सटाइल्स आंड राइचंद'स गेम्स... अमर और विक्रम के अलावा सिर्फ़ राजवीर जानता था कि यह सब कंपनीज़ टाइमपास के लिए हैं, राइचंद'स कन्स्ट्रक्षन का हिसाब किताब, टेक्सटाइल्स में साले , किसी को कुछ नहीं पता था.. कन्स्ट्रक्षन में जितने फ्लॅट्स बनते सब अमर के दोस्तों में जाते जिनके पैसों का कुछ ठिकाना नहीं था, जब किसी को देने होते तब दे देते.. गिन चुन के 10 - 12 साल में बस 4 बिल्डिंग ही बनी थी और सब की सब अमर और विक्रम के दोस्तों से भरी हुई थी.. एक साइट पे हमेशा काम चलता रहता ताकि लोगों को कुछ दिख सके.. टेक्सटाइल्स का हाल क्या था वो किसी को नहीं पता था, सूरत
में एक लूम फॅक्टरी थी पर वहाँ से जो माल बनता उसमे से बिक्री सिर्फ़ 805 की ही होती, पर वहाँ भी प्रोडक्षन बंद नहीं कर सकते नहीं तो मज़दूरों को भूके पेट रहना पड़ता.. पेपर पे देखा जाए तो कन्स्ट्रक्षन और टेक्सटाइल्स का मिला के मुनाफ़ा कुछ 20-30 करोड़ था वो भी सालाना..
रिकी का दिल बार बार यही कहता कि काश शीना उसके साथ जाय्न हो जाए रिज़ॉर्ट वाले प्रॉजेक्ट में, लेकिन अब जब उसने देखा कि रिज़ॉर्ट को शायद अकेले भी मॅनेज करना पड़े तो उसका दिमाग़ दोबारा सोचने लगा.. वो जानता था कि ज्योति अकेले में सब मॅनेज कर लेगी और वो भी उम्दा तरीके से, शीना ना ही मॅनेज्मेंट पढ़ी है और ना
ही उसने कभी की है, इसलिए उसपे अकेले यह काम का भरोसा करना शायद ठीक ना रहे.. जब दिल और दिमाग़ की यह लड़ाई किसी निर्णय पे नहीं पहुँच पाई, तब उसने सोचा क्यूँ ना डाइरेक्ट शीना से बात की जाए..
"शीना, व्हेअर् आर यू..." रिकी ने फोन लगा के कहा
"अपने रूम में भाई, क्यूँ"