Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - Page 2 - SexBaba
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Antarvasna kahani वक्त का तमाशा

जैसे जैसे वक़्त बढ़ रहा था, वैसे वैसे वातावरण और खुशनुमा होता जाता.. पहाड़ों के बीच से सूरज निकलता हुआ काफ़ी रोचक कर देता है देखने वाले को, लेकिन इस वक़्त रिकी बाल्कनी में खड़े अपनी सोच में ही डूबा हुआ था.. शीना तीसरा कॉफी का कप लाई और रिकी के साथ खड़ी होके बाहर के नज़ारे को देखने लगी.. सुबह के 7 बजे थे लेकिन हवा अब तक सर्द थी और सुहासनी और स्नेहा अब तक कमरे से बाहर नहीं आए थे... शीना आज के दिन के लिए काफ़ी खुश थी, वो हमेशा से रिकी के ज़्यादा करीब जाना चाहती थी, लेकिन बीती रात की बातें जो रिकी ने उसके साथ की, उससे शीना को यकीन हो गया कि रिकी के करीब वो पहले से ही है, तभी तो रिकी ने उसके साथ सब बातें शेअर की..



"अच्छा भाई.. एक बात तो आपने बताई नहीं मुझे.." शीना ने कॉफी का सीप लेते हुए कहा



"सब तो बता दिया, अब बाकी क्या रहा.. चलो पूछो देखें क्या है.." रिकी ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा



"भाई, आप की कोई गर्लफ्रेंड नहीं है लंडन में..." शीना ने काफ़ी ज़ोर दिया था गर्लफ्रेंड शब्द पे



"गर्लफ्रेंड नहीं.. लेकिन फ्रेंड्स हैं... इनफॅक्ट हमारा ग्रूप है और उसमे लड़कियाँ ज़्यादा हैं... काफ़ी मस्ती करते हैं, काफ़ी अच्छा वक़्त निकलता है उनके साथ... अब बस दो दिन और , फिर मैं वापस उन लोगों के पास पहुँच जाउन्गा..." रिकी ने कहके शीना की तरफ देखा जो खामोशी से उसके जवाब को सुन रही थी..



"नही, गर्लफ्रेंड है कि नहीं...." शीना ने फिर अपना सर झटक के कहा



"कहा तो फ्रेंड्स हैं, और लड़कियाँ हैं.. तो गर्लफ्रेंड्स हुई ना.." रिकी ने फिर हँस के कहा... रिकी जानता था कि शीना हमेशा से उसके बारे में पस्सेसिव रही है, रिकी जब भी घर आता, शीना की कोई ना कोई फरन्ड रिकी से मिलने को बोलती.. शीना हमेशा एक कवच की तरह थी, कम से कम लड़कियों के मामले में तो यह बात सही थी...



"भाई, मेरा मतलब है कि लवर है या नहीं.." लवर वर्ड पे शीना ने फिर से ज़ोर डालके कहा



"ओह... ऐसा बोल ना, नही.. आइ आम नोट डेटिंग एनिवन... वैसे क्यूँ पूछ रही है तू.." रिकी ने शीना के सर पे हाथ फिरा के कहा



"नहीं भाई.. ऐसे ही, आंड दूर ही रहना लड़कियों से समझे... फिर मुझे नहीं कहना कि मैने वॉर्न नहीं किया.." शीना ने रिकी को उंगली दिखा के कहा




"अरे तुम दोनो उठ गये..." सुहसनी ने पीछे से आवाज़ देते हुए कहा,




"हां माँ, बस अभी 20 मिनट हुए... कॉफी पी रहे थे.." शीना ने झूठ कहा और फिर कुछ देर तक इधर उधर की बातें करके सुहासनी फ्रेश होने चली गयी... सुहासनी के जाते ही




"चलो, हम भी फ्रेश होते हैं.. नही तो भाभी आ जाएगी यार...." रिकी ने शीना से कहा




"भाभी आ जाएगी तो..." शीना ने रिकी से खड़े रहने का इशारा करके कहा




"कुछ नहीं, बट आइ डोंट फील कॉन्फोर्टब्ले टॉकिंग विद हेर यार... मतलब, कुछ समझ नहीं आता, शी ईज़ वेरी.... वेरी....." रिकी को आगे का शब्द नहीं मिल रहा था




"स्ट्रेंज.. आइ नो...." शीना ने उसकी अधूरी लाइन को पूरा किया और अपने कमरे में जाने लगी... रिकी कुछ देर उधर ही खड़े रहके फिर उस काग़ज़ के बारे में सोचने लगा, फिर जब उसके दिमाग़ में कुछ क्लिक नही हुआ तो वहाँ से निकल के अपने रूम की ओर बढ़ गया....




उधर चेन्नई पहुँचते ही विक्रम ने इरीटा ग्रांड चोला में चेक इन करके अपने नेटवर्क के सभी बुक्कीस का वेट करने लगा... जैसे जैसे दिन ढलता गया वैसे वैसे उसके साथी बुक्की उससे मिलने पहुँचे.. सब के आ जाने बाद खाने का और दारू का दौर चालू हुआ और साथ ही आइपीएल के शेड्यूल की बातें..




"हां तो इस बार कौन जीतेगा,.." विक्रम ने काम की बात चालू की




"यह आप पूछ क्यूँ रहे हैं, आप कहते हैं वो जीत जाएगा, वैसे भी बीसीसीआइ का बाप है अपने साथ" एक बुक्की ने उसको जवाब दिया




"इस बार काम थोड़ा लो रहके करना है, काफ़ी बदलाव आने वाले हैं वर्किंग कमेटी और बीसीसीआइ में... और हां, यह रहे तुम सब लोगों के लिए फ़ोन.. हर एक फोन पे सब का नाम लिखा हुआ है, वो ले लो.. सब के नंबर्स रोमिंग पे हैं, मतलब मुंबई वाला पुणे का नंबर इस्तेमाल करेगा.. इससे थोड़ी सेफ्टी रहेगी हमारे लिए..." विक्रम ने सब को फोन्स पकड़ाते हुए कहा.. फोन्स लेके सब लोग देख ही रहे थे कि तभी विक्रम के रूम का दरवाज़ा नॉक हुआ.. इस तरह अचानक दरवाज़ा खटकने की आवाज़ से सब लोग एक बार सकपका गये, लेकिन फिर जब उन्होने अपनी घड़ी देखी तब उन्हे अंदाज़ा हो गया कि यह कौन हो सकता है
 
"मेरा कट इस बार दुगना चाहिए मुझे.." विक्रम के ठीक सामने बैठे शाकस ने उसकी आँखों में देख के कहा और साथ ही अपनी शराब की चुस्की लेने लगा.. बीसीसीआइ का बाप उसके सामने बैठा था, पिन स्ट्रिपेस सूट, बाल चप्पट बने हुए, आँखों पे चश्मा.. शकल से एक दम सीधा दिखने वाला आदमी, आज इंडियन क्रिकेट चला रहा था.. चला रहा था या उसका सौदा कर रहा था भी कह सकते हैं.. आज इंडियन क्रिकेट की हर चीज़ कमर्षियल थी, टेलएकास्ट राइट्स, प्लेयर आड्स, मर्चेनडाइज़.. जितने पॉपुलर खिलाड़ी, उतने ही पैसे मिलते बीसीसीआइ को.. लेकिन बीसीसीआइ के बाप को इतना पैसा भी बहुत कम लगने लगा.. आइपीएल एक मन की उपज आज महज़ एक सौदा बन गया था, टीम ओनर्स जितना बाप के करीब उतना ही उन्हे पैसा मिलता... षेडूल से लेके रिज़ल्ट तक, सब तय होता रहता.. खिलाड़ी महेज़ आक्टिंग करने आते फील्ड पे.. सभी इंटरनॅशनल खिलाड़ी जानते थे यह ड्रामा, लेकिन पैसों ने सब का मूह बाँध रखा था.. बीसीसीआइ की लॉबी आइसीसी में भी मज़बूत थी फिलहाल, जिस टीम के साथ इंडिया खेलती उसको भी पैसों का एक हिस्सा मिलता तो कोई कैसे मना करेगा...



"दुगना बहुत ज़्यादा है.. पिछले साल की फाइनल में हुआ नुकसान अब तक हम रिकवर नही कर पाए.. आपके बेटे ने तो हमे हरा ही दिया, अगर दुगना चाहिए तो वो नुकसान की भरपाई आप करेंगे या आपका बेटा ?" विक्रम का इशारा उसी की टीम के कॅप्टन की तरफ था.. दुनिया जानती थी कॅप्टन और बीसीसीआइ के बाप साथ में थे..



"आखरी वक़्त के बदलाव के ज़िम्मेदार हम नहीं हैं.. अगर डील डन है तो हां बोलो, अगर नहीं तो मुझे यहाँ वक़्त बर्बाद करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.." बीसीसीआइ के बाप ने अपना ग्लास ख़तम किया और फिर विक्रम के जवाब का इंतेज़ार करने लगा



"सब वेन्यूस, हर मॅच के प्लेयिंग 11, पिच कैसी बनेगी, कौन किस नंबर की टीशर्ट पहनेगा.. यह सब फ़ैसले मैं करूँगा, और मॅच के एक दिन पहले बता दिया जाएगा कि टॉस जीत के बॅटिंग करनी है या बोलिंग.. प्लेयिंग 11 में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए बिना मेरे कहे, और अगर कोई घायल है वो फिर भी खेलेगा फिर चाहे उसको बीच मॅच से निकाल दो.. इसके अलावा टीम ओनर्स से मेरी मुलाक़ात सीरीस के पहले.. सिर्फ़ उनके और मेरे बीच में.." अगर यह सब मंज़ूर है तो दुगना डन है, नहीं तो मेरा वक़्त भी ज़ाया ना करें आप..




"विक्रम, तुम शायद भूल रहे हो मैं कौन हूँ... मेरे सामने इतनी शर्त रखना ठीक बात नहीं.. अगर मैं ना कर दूं तो.." बीसीसीआइ के बाप ने फिर एक दूसरा जाम उठा लिया




हाः..विक्रम ने एक हरामी मुस्कान के साथ कहा " मुझे कोई फरक नहीं पड़ेगा, शायद आप भूल रहे हैं कुछ दिनो में बीसीसीआइ के एलेक्षन्स हैं, अगर हमारी मुलाक़ात के बारे में मीडीया या आपके विरोधी को पता लग गया तो ?"




"इससे तो तुम्हारा नुकसान भी होगा विक्रम, खोखली धमकी किसी और को देना.." सामने से जवाब आया




"खोखली धमकी नहीं, अपना मोबाइल चेक कीजिए आपको पता चल जाएगा.." विक्रम ने अपने मोबाइल से उसके मोबाइल पे एक MMएस भेजा... कुछ ही देर में जब वो म्मएस प्ले हुआ तो बीसीसीआइ का बाप हक्का बक्का रह गया.. उसके माथे पे शिकन बन गयी, पसीना बहने लगा... वीडियो में वो और विक्रम पिछले सेमी फाइनल की बातें कर रहे थे जिसमे उसकी आवाज़ और शकल क्लियर थी.. "तुम बोलो वो स्कोर होगा" यह लाइन उसके मूह से निकली हुई वीडियो में थी उसकी चिंता का कारण




"मैने पहले ही कहा था मैं खोखली धमकी नहीं देता.. अब मंज़ूर है या नहीं.." विक्रम ने जिस नंबर से म्ममस भेजा था उसका सिम कार्ड निकाल के तोड़ दिया और दूसरा सिम कार्ड लगा लिया.. उसके लिए यह आम बात थी, सिर्फ़ परिवार वाले ही जानते थे उसके पर्मनेंट नंबर.. उनके अलावा किसी को भी विक्रम से बात करनी होती तो या तो वो अमर के थ्रू करते या घर आके मिलते....




"इसमे तुम भी पकड़े जाओगे विक्रम..." फिर उसने धमकी दी, लेकिन आवाज़ इस बार दबी हुई थी




"इस देश में भेल से जल्दी बैल मिलती है , रही बात मेरी, मैं तो बुक्की हूँ छूट जाउन्गा बदनामी से कोई फ़र्क नही पड़ेगा.. लेकिन आपका क्या होगा, बीसीसीआइ के साथ साथ आइसीसी की चेर्मनशिप जो मिलने वाली है वो भी नहीं लगेगी.. इंटरनॅशनल लॉबी भी गँवा देंगे एक डोमेस्टिक लालच के चक्कर में.." विक्रम ने उसके सामने प्रस्ताव के काग़ज़ फेंकते हुए कहा... जैसे ही बीसीसीआइ के बाप ने काग़ज़ उठाए धीरे धीरे उसका डर एक गुस्से में बदलने लगा




"यह क्या है, दुगना देने के लिए तैयार थे, और अब यह. पिछले टाइम से आधा, " उसने काग़ज़ फेंकते हुए कहा




"गुस्सा नही करो, पहले मान जाते तो दुगना देता, अब मुझे वीडियो भेजने की मेहनत करवाई उसका पेनाल्टी है यह.. जो सब इन्फर्मेशन माँगी है वो चाहिए मुझे पिछले साल के आधे रेट पे.." विक्रम ने उसे अपना फोन दिखाते हुआ कहा...




बीसीसीआइ का बाप पहली बार दीवार के कोने पे आ गया था, ऐसा नहीं है के इससे पहले विक्रम और उसकी कभी पैसों पे लड़ाई नहीं हुई, लेकिन इस बार पता नहीं क्यूँ विक्रम ने उसे बिल्कुल बोलने का मौका नहीं दिया.. जब पेपर साइन हुए तब विक्रम फिर बोला




"आज की मुलाक़ात के वीडियोस भी हैं.. इसलिए ध्यान रखना.. पहली मॅच के पाँच दिन पहले सब डीटेल्स चाहिए, और शेड्यूल बनते ही पहली कॉपी मेरे पास आएगी.. अब आप जा सकते हैं.." विक्रम बीसीसीआइ के बाप को प्यार से गेट आउट बोलने लगा




"मुझे अच्छी तरह याद है, फाइनल में तो हमने बहुत जीता था, फिर कौन्से नुकसान की बात कर रहे थे आप.. " विक्रम के एक बुक्की ने उसे पूछा




"अगर तू यह समझता तो आज मेरी जगह पे होता, चलो निकलो काम करते हैं.." विक्रम ने कहा और एक एक कर सब लोग धीरे धीरे रूम से निकलने लगे.. सब के निकलते ही विक्रम ने भी अपना बॅग निकाला, कपड़े बदल के चेक आउट मारा और पुणे के लिए रवाना हो गया....





उधर रिकी अपनी माँ और बाकी लोगों के साथ मुंबई के लिए निकल ही रहा था के तभी स्नेहा का फोन आया.. नंबर देख के उसके चेहरे पे मुस्कान आ गयी...




"हेलो, हां जी कैसे हैं.." स्नेहा ने मुस्कुरा के कहा



"ओह... एक मिनिट आप मम्मी को बोल दीजिए तो ज़्यादा सही रहेगा...." कहके स्नेहा ने फोन सुहासनी को देने के लिए आगे किया



"कौन है... क्या हुआ" सुहासनी ने फोन को बिना हाथ लगाए पूछा




"यह हैं, कह रहे हैं कि पुणे उन्हे कुछ काम है और अकेले हैं तो बोर हो रहे हैं, इसलिए मुझे भी बुला रहे हैं.. मैने कहा आप मम्मी को बोल दीजिए" स्नेहा ने फिर फोन आगे करके कहा




"इसमे मैं क्या बात करूँ, तुम कर लो.. हम तुम्हे पुणे ड्रॉप कर देते हैं" सुहासनी ने गाड़ी में बैठ के कहा और स्नेहा भी अंदर बैठ गयी.. सब लोग पुणे की तरफ बढ़ने लगे.. गाड़ी चलाते वक़्त फिर से रिकी किन्ही ख़यालों में खो गया, सुहासनी आगे बैठे बैठे हल्की नींद में खोने लगी.. शीना और स्नेहा भी अपनी अपनी खिड़कियों से बाहर देख रहे थे. कहते हैं कि जब सफ़र शुरू होता है तो सब के मन बहुत खुश होते हैं और लोग उतने ही उत्साही होते हैं.. और सफ़र ख़तम होने लगे तो सब लोगों की उत्तेजना ठीक उसी स्पीड से नीचे भी आ जाती है.. अभी यहाँ भी यही हो रहा था, रिकी यह सोच रहा था वो लंडन जाए या नहीं.. क्यूँ कि महाबालेश्वर में हुई घटना ने उसके अंदर एक अजीब सी झिझक पैदा कर रखी थी.. क्यूँ की वो यह घटना किसी को बता भी नहीं सकता था और ना ही उसके बारे में आगे कुछ कर सकता था.. उपर से शीना ने भी उसको दुविधा में डाल रखा था... इसी कशमकश में गाड़ी पुणे के नज़दीक आ गयी... उधर स्नेहा के दिमाग़ में भी कुछ चल रहा था, लेकिन क्या.. शीना रिकी के बारे में सोच रही थी, उसके साथ बिताए हुए कुछ घंटे उसकी ज़िंदगी के सबसे यादगार लम्हे थे.. उसने कभी नहीं सोचा था कि वो रिकी के साथ इतना खुल के बात कर पाएगी कभी.. पर दिल ही दिल में वो सोच रही थी के काश रिकी लंडन ना जाए..
 
"चलिए भाभी, आपकी मंज़िल आ गयी... लेकिन भैया तो दिख नहीं रहे.." रिकी ने होटेल इस्टा के बाहर गाड़ी रोक के कहा, जो की पुणे कि विमान नगर एरिया में बना हुआ था..




"अभी ही उनका मसेज आया, थोड़ा टाइम लग जाएगा उनको, बट यहाँ रूम ऑलरेडी है तो मैं उपर जाती हूँ" स्नेहा ने गाड़ी से उतरते हुए कहा




"ओके भाभी, आप कहो तो हम वेट करें भैया के आने तक" शीना ने खिड़की का काँच नीचे उतार के कहा




"अरे नहीं, मैं उपर ही जा रही हूँ... यह भी आ जाएँगे.. " स्नेहा ने फिर कहा और फिर होटेल के अंदर बढ़ गयी और साथ ही रिकी भी मुंबई की तरफ निकल गया




स्नेहा ने होटेल जाके चेक इन किया और रूम की ओर बढ़ने लगी.. स्नेहा काफ़ी खुश लग रही थी... तीसरे फ्लोर पे जाके रूम नंबर 3324 के आगे स्नेहा खड़ी हुई और बेल बजा दी.. एक ही बेल में दरवाज़ा खुल गया



"उम्म्म.... कैसी है मेरी रानी.." अंदर से निकले शक्स ने स्नेहा को दरवाज़े पे खड़ा देख कहा

"तुम यहाँ तक आई कैसे, आइ मीन तुम्हारी सास ने पूछा नही कुछ" स्नेहा के प्रेमी ने उसे स्कॉच का ग्लास देते हुए कहा



"वो सब तुम मुझ पे छोड़ दो.. यह सोचना मेरा काम है.." स्नेहा ने उसके हाथ से ग्लास लेके कहा और अपने लिए एक सिगरेट भी जला दी...



"हम ठीक जा रहे हैं ना प्लॅनिंग में.. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं होगी.." प्रेम ने उसके पास बैठ के कहा



स्नेहा ने एक लंबा कश अंदर लिया और धुआँ उसके मूह पे छोड़ दिया.. अंधेरे कमरे में बस एक हल्की रोशनी थी जो टेबल लॅंप की थी, उपर से स्नेहा ने चेंज करके एक पतला डार्क ब्लू ईव्निंग गाउन पहना था जो उसके घुटनो तक भी नहीं आ रहा था, स्नेहा के सफेद शरीर पे डार्क कलर उफ्फान मचा रहा था, साँस लेती तो उसके गदराए चुचे उपर नीचे हिलते देख किसी की भी हलक सुख जाती.. स्नेहा को ऐसे देख प्रेम के लंड के अंदर जान आने लगी और वो उसे धीरे धीरे मसल्ने लगा जीन्स के उपर से ही... तकरीबन अगले 5 मिनिट तक स्नेहा धीरे धीरे शराब के घूँट लेती रही, सिगरेट के कश लेती रही और प्रेम उसके नंगे पेर सहलाता रहा... धीरे धीरे जब स्नेहा का नशा बढ़ने लगा, तब स्नेहा ने भी अपने पैर प्रेम की टाँगो पे लंबे कर दिए जिससे अब प्रेम का लंड ठीक स्नेहा की जाँघ के नीचे था... प्रेम भी उपर बढ़ गया और अब स्नेहा की जांघें सहलाने लगा.. सहलाते सहलाते प्रेम अब उसकी जांघों को दबाने लगा जिससे उसका ज़ोर प्रेम अपने लंड पर भी महसूस कर रहा था... ज़मीन पे स्नेहा अब लंबी होके लेट गयी जिसकी वजह से उसके चुचे अब बाहर निकल आए थे.. जैसे जैसे प्रेम का ज़ोर बढ़ता वैसे वैसे स्नेहा भी तेज़ साँसें लेती और छोड़ती....



"उम्म्म..अहहहहहा" स्नेहा ने सिसकारी ली... स्नेहा की सिसकारी सुनके प्रेम अपने घुटनो पे आ गया और स्नेहा के पेर की उंगलियाँ चूसने लगा और उसकी एडी अपने लंड पे रगड़ने लगा.. स्नेहा को यह बहुत अच्छा लग रहा था.. धीरे धीरे चल रही साँसें अब तेज़ होने लगी



"अहहहहा अहहा यस उम्म्म्मम सक माइ फीट बेबी उफ़फ्फ़ अहाहहा... उम्म्म्म" स्नेहा धीरे धीरे चिल्लाने लगी और साथ ही अपने पेर की एडी प्रेम के लंड पे तेज़ी से रगड़ने लगी...



"अहहहहा एस अहहहहा... उम्म्म्म ओह्ह्ह्ह अहहः फास्टर बेबी अहहहाहा" स्नेहा अब अपना आपा खोने लगी थी.... "अहहहहहह.. उम्म्म हाहहहह उई अहहाहा कीप सकिंग एसस्शाहहः..." स्नेहा की चूत से पानी बहने लगा था .. प्रेम इस काम में माहिर था, स्नेहा की चूत को बिना छुए ही उसकी चूत पनियाने लगती...




"अहहाहा उम्म्म्म...." जैसे एक राहत की सिसकारी ली स्नेहा ने जब उसकी चूत कुछ शांत हुई... स्नेहा की साँसें अभी भी तेज़ चल रही थी.. स्नेहा झट से ज़मीन पर से उठी और प्रेम के बाल पकड़ के उसके होंठों को चूमने लगी.. स्नेहा प्रेम को दर्द भी देती थी सेक्स के साथ.. दोनो में से स्नेहा हमेशा डॉमिनेंट सी रहती चुदाई के मामले में...



स्नेहा बेरेहमी से प्रेम के होंठों को चूसने लगी और प्रेम भी अपने हाथ स्नेहा के चुतड़ों पे ले जाके उन्हे मसल्ने लगा.. करीब 5 मिनट तक दोनो एक दूसरे के होंठों को चूस्ते रहे और एक एक करके अपने बदन से कपड़े उतार कर फेंकने लगे.. स्नेहा ने अंदर से कुछ भी नहीं पहना था, हल्की रोशनी में उसके सफेद चुचे देख प्रेम से रहा नहीं गया और उसने स्नेहा के होंठों को छोड़ उसका दूध पीने लगा और दोनो हाथों से स्नेहा की कमर कसने लगा... प्रेम की जीभ अपने निपल्स पे महसूस करते ही स्नेहा ने फिर एक बार सिसकारी भरी


"अहहहाहा माअमामा"



प्रेम ने अब अपनी मज़बूत बाहों में स्नेहा को गोद में ले लिया और अब उसके चुचे ठीक प्रेम के मूह के सामने थे, प्रेम ने एक नज़र भर उन्हे देखा और फिर अचानक स्नेहा ने जल्दी से उसके मूह को अपने चुचों में गढ़ा दिया जैसे कि वो रुकना ही नहीं चाहती थी... जब प्रेम उसके चुचों को अपने मूह में लेके चूस्ता स्नेहा एका एक अपने बदन को ढीला छोड़ पीछे की तरफ हवा में लटक आई और उसकी काली लंबी ज़ूलफें एक अलग ही मदहोशी लाती प्रेम के ज़हन में



"अहाहा कीप शक्किंग बेबी अहहहाहा यस अहहाहाः..." स्नेहा अब फिर आगे हुई और प्रेम के बालों को फिर नोच के उसके होंठों को चुचों से हटाया और उन्हे चूसने लगी.. प्रेम अब उसको गोदी में उठते हुए उसके होंठों को चूस्ता रहा और थोड़ा आगे बढ़ के उसको बेड पे फेंक दिया.. बेड पे गिरते ही स्नेहा फिर अपनी भूख में चिल्लाई



"अहहः लिक्क माइ पुसी बस्टर्ड आहहा.." कहके स्नेहा ने अपनी टाँगें चौड़ी की और अपनी सॉफ गुलाबी चूत को प्रेम के सामने पेश किया.. प्रेम बेड पे आके उसकी जांघों को चाटने लगा और एक हाथ से उसकी दूसरी जाँघ सहलाता और दूसरे हाथ से उसकी चूत के दाने को रगड़ता.. स्नेहा की मुलायम जाँघ को चाट के प्रेम बेकाबू होता जा रहा था, लेकिन वो जानता था के स्नेहा को इतनी जल्दी चुदाई पसंद नहीं इसलिए वो धीरे धीरे मज़े लेके उसकी जांघों को चूसे जा रहा था..



"अहहहाहा चूत चूस ना अहाहहाहा.. यआःाहहहा" स्नेहा की प्यास अब नहीं थम रही थी.. प्रेम ने हल्के से उसकी जांघों को खोला और उसकी चूत पे अपनी जीभ रखी ही थी के स्नेहा ने एक ज़ोरदार चीख से अपना पानी छोड़ दिया




"अहहहहहहाहा उईइ अहहाहा पी ले अहहहहहः...." स्नेहा चिल्लाई और अपने हाथ से प्रेम को अपनी चूत में धंसा दिया. प्रेम मज़े से उसकी चूत का नमकीन पानी पीने लगा..



"उम्म्म पी लो प्रेम आहहहाहाहा ओह्ह्ह एस्स अहहह......" कहके स्नेहा झटके खाने लगी और प्रेम मज़े की उसकी चूत चाटने में लगा रहा.... 15 मिनिट में स्नेहा दूसरी बार झड़ी थी... जैसे ही स्नेहा की चूत खाली हुई, उसने प्रेम को अपनी चूत से दूर किया और उसे बेड पे खड़े होने का इशारा किया.. प्रेम बेड पे खड़ा हुआ और स्नेहा की नशीली आँखों के सामने प्रेम का उफ्फान मचाता हुआ लंड था... प्रेम का लंड देख के स्नेहा और बहकने लगी और जल्दी से उसे हाथ में भरा और एक ही झटके में अपने मूह के अंदर घुसा लिया... स्नेहा बहुत ही धीरे धीरे शुरू करके प्रेम के लंड को चूसने लगी, लेकिन जैसे जैसे उसके दिमाग़ का जंगलीपन बढ़ा, वैसे वैसे तेज़ी बढ़ने लगी, और लंड चूस्ते चूस्ते स्नेहा अपने नखुनो से प्रेम के टट्टों को नखुनो से कुरेदने लगी... मज़े के साथ अब प्रेम को दर्द भी होने लगा था, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं थी स्नेहा को रोकने की




"अहाहहा उम्म्म औचहहहहहहा धीरीई स्नहााहह अहहहाहा....." प्रेम बस यह कहके कराहता रहा पर स्नेहा ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं... चूस्ते चूस्ते स्नेहा अब उसके लंड को दातों से हल्के हल्के चबाने लगी और टट्टों को मुट्ठी में भर के उन्हे दबाने लगी और साथ ही अपनी आँखों से प्रेम के भाव देखने लगी जहाँ मज़ा कम और दर्द ज़्यादा था... यही तो चाहिए था स्नेहा को, चुदाई उसकी होने वाली थी लेकिन दर्द सामने वाले को मिलता था....




"आहहहा स्नेहा, मैं आ रहा हूँ.... अहाहा" जैसे ही प्रेम ने यह कहा, स्नेहा ने तुरंत उसके टट्टों को छोड़ दिया और लंड को मूह से निकाल दिया और प्रेम को बेड पे सोने का इशारा दिया.. प्रेम बेड पे आके पीठ के बल सोया और स्नेहा ने एक नज़र उसके सलामी देते हुए लंड पे डाली और हँसते हुए उसपे बैठने लगी... स्नेहा ने अपने पेर चौड़े किए और अपनी चूत के मूह पे प्रेम के लंड के टोपे को रखा और एक नज़र प्रेम पे डाली.... प्रेम ने एक ही झटके में अपने पैरों को उपर उठाया जिससे उसका लंड सीधा जाके स्नेहा की चूत में घुस गया और स्नेहा को एक मीठे दर्द का अनुभव दिया...



"आहहः धीरे बेन्चोद कहीं के..." स्नेहा ने प्रेम की आँखो में देख के कहा



"तूने ही तो बेन्चोद बनाया है मेरी प्यारी दीदी अहहाहा.. दर्द देने का हक सिर्फ़ तेरा थोड़ी है.." प्रेम ने धीरे से लंड को अंदर बाहर करना चालू किया... धीमी गति के झटकों में प्रेम को काफ़ी मज़ा आता.. लंड एक शॉट में अंदर घुसा देता और फिर धीरे धीरे पूरा बाहर निकालता, फिर टोपे को वापस स्नेहा की चूत पे रगड़ता और वापस अंदर डालता.. स्नेहा मज़े में आँखें बंद करके उसके लंड पे बैठी रही और अपना चेहरे को मदहोशी में जाके पीछे कर दिया और एक हाथ से प्रेम के पैरो को पकड़े रखा और दूसरे से अपने चुचे मसल्ने लगी...



"अहाहहा प्रेम उफफफ्फ़ अहाहाआ..उम्म्म्मम सस्सिईईईईईयाहहः.." स्नेहा की मस्ती फिर से अपनी चरण सीमा पे पहुँचने लगी थी.. प्रेम ने अपने झटकों की स्पीड उतनी ही धीमे रखी और अब अपने दोनो हाथ आगे बढ़ा दिए, एक से स्नेहा के चुचे को मसल्ने लगा और दूसरा उसकी चूत के दाने पे रख के उसे रगड़ने लगा... इससे स्नेहा और भी पागल हो गयी और उसने जल्द ही अपनी दोनो हाथ आगे बढ़ा के प्रेम की छाती पे रख दिए और उसे नाखुनो से कुरेदने लगी.. जैसे जैसे स्नेहा की मदहोशी बढ़ने लगी, वैसे वैसे प्रेम के झटके बंद हुए और अब स्नेहा उसके लंड पे उछलने लगी... स्नेहा ज़ोर ज़ोर से उछलने लगी और उछलते वक्त उसके चुचे और उसके लंबे बाल हवा में लहराने लगे.... प्रेम को यह सीन तो पागल करने लगा था..उपर से स्नेहा उछलती और नीचे से प्रेम भी अपने झटके लगाने लगा..




"अहहहः प्रेम मैं आ रही हूँ अहहाहा.. यआःहहहा अहाहा... कम वित मी बेबी अहाहहा...." कहके स्नेहा का उछलना और तेज़ हो गया, उसके साँसें और तेज़ हो गयी और कुछ ही सेकेंड्स में वो निढाल प्रेम की छाती पे गिर गयी.. स्नेहा की चूत अपने और प्रेम के पानी के साथ रिसने लगी.. और दोनो भाई बहेन बहुत तेज़ी से साँसें ले रहे थे... कुछ देर के बाद दोनो की साँसें वापस आने लगी और एक दूसरे से अलग होके अपने अपने कपड़े पहनने लगे...



"दीदी, अभी कहाँ जाओगी.." प्रेम ने अपनी जीन्स पहेन के कहा



"ज़ाउन्गी अपने पति के पास, वो भी यहीं है.. खैर तुम चिंता नहीं करो..हम जल्द ही अपने प्लान में कामयाब होंगे.. डीटेल मैं तुम्हे फोन पे दूँगी.." स्नेहा ने अपने कपड़े ठीक किए, मेक अप थोड़ा ठीक किया और प्रेम के रूम से निकल गयी..
 
स्नेहा प्रेम से प्रेम लीला रचा के जल्दी से बाहर निकली और बाहर आके विक्रम को फोन किया...



"हां बोलो, " विक्रम ने स्नेहाके फोन का जवाब देते हुए कहा



स्नेहा :-विकी, मिस्सिंग यू आ लॉट..



"मिस तो मैं भी कर रहा हूँ जानेमन, बट काम से पुणे जा रहा हूँ, जल्दी निपटा के आता हूँ तुम्हारे पास.." विक्रम अंजान था स्नेहा की हरकतों से



"मैं तो पुणे में ही हूँ, मुझसे यह दूरी बर्दाश्त नहीं हुई, इसलिए मैं ही यहाँ आई तुमसे मिलने.." स्नेहा ने फिर मासूम आवाज़ में कहा



"अरे वाह, एक काम करो, मेरी फ्लाइट अभी थोड़ी देर में टेक ऑफ होगी, तुम तब तक नोवोटेल में चेक इन करो, मेरे नाम से रूम बुक्ड है, मैं होटेल में इनफॉर्म कर देता हूँ तुम्हारे लिए... और हां, जाम रेडी रखना मेरी रानी..." कहके विक्रम ने फोन कट किया और फ्लाइट बोर्ड करने लगा.. इधर स्नेहा भी टॅक्सी पकड़ के नोवोटेल की तरफ बढ़ गयी... कोई तकलीफ़ नहीं हुई उसे राइचंद खानदान के लोगों को चूतिया बनाने में.. सुहासनी से झूठ कहा, और अब प्रेम से चुदवा के अपने पति को झूठ बोला




उधर मुंबई पहुँच के सुहासनी अपनी रोज़ मरहा की ज़िंदगी में लग गयी और अमर भी अपने काम में व्यस्त था, लेकिन रिकी और शीना के मन थे कि खामोश ही नहीं हो रहे थे.. रिकी इस असमंजस में था कि वो लंडन जाए या नहीं, और बार बार उसे महाबालेश्वर के मार्केट वाली घटना याद आती. उसने अभी भी वो काग़ज़ संभाल के रखा था.. बॅग तो खोल के बैठा था, लेकिन उसके अंदर कपड़े भरूं कि नहीं, बस यही सोच रहा था.. उधर शीना भी महाबालेश्वर से आके गुम्सुम थी, वो नहीं चाहती थी कि रिकी लंडन जाए पर वो उसे रोकने के लिए कुछ कर भी नहीं सकती थी.. वो बस यही सोच रही थी कि काश रिकी के साथ बिताए हुए पल उसे वापस मिले और वक़्त वहीं थम जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था.. दिल ही दिल में पता नहीं कब रिकी के प्रति उसका महज़ एक अट्रॅक्षन प्यार में बदलने लगा था, रिकी उससे जितना दूर रहता उसका प्यार उतना ही बढ़ता जाता, हाला कि सच यह भी है के शीना आज की लड़की थी, उसके लिए सेक्स भी उतना ही ज़रूरी था जितना प्यार.. वो मानती थी "लव विदाउट सेक्स आंड सेक्स विदाउट लव" ईज़ नोट पॅशनेट.. अपने रूम में खिड़की के बाहर बाहर देखते देखते उसकी आँखों से बस एक आँसू छलकने ही वाला था कि तभी उसे रिकी का सुझाव याद आया.. उसने तुरंत ही अपना हुलिया ठीक किया और फ्रेश होके रिकी के रूम की तरफ चल दी.. रिकी के रूम में जाते ही उसने देखा तो रिकी बेड पे बैठे बैठे कुछ सोच में डूबा हुआ था.. शीना वहीं खड़ी हो गयी और रिकी को उसका एहसास भी नहीं था, वहीं खड़े खड़े शीना रिकी को निहारने लगी.. उसके सर से लेके पावं तक शीना उसकी कायल थी, रिकी स्मार्ट तो था, लेकिन सब से ज़्यादा शीना को जो चीज़ भाती थी वो था उसका रहम दिल, उसका स्वाभाव.. रिकी की यह चीज़े ही थी जिसने शीना के अट्रॅक्षन को उसके प्यार में बदला था... कुछ देर वहीं खड़े खड़े जब शीना ने देखा के रिकी उसे देख ही नहीं रहा तब वो ज़ोर से बोली



"अच्छा तो ठीक है , मैं चली जाती हूँ बस..." शीना की इस आवाज़ से रिकी अपनी सोच से बाहर निकला तो सामने शीना खड़ी थी..



"अरे क्या हुआ, कहाँ जा रही हो.." रिकी अपने ख़यालों से बाहर आते हुए बोला



"कहीं नहीं, मैं 10 मिनट से यहाँ खड़ी हूँ, और आप हो के बस बेड शीट को देखे जा रहे हो, ले जाओ यह भी लंडन.. इसे बहुत मिस करोगे ना.." शीना ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा



"अरे नहीं यार, ऐसी बात नहीं है... आंड मिस तो मैं तुम्हे भी करूँगा यार...कम हियर..." रिकी अपनी जगह से उठा और शीना के पास गया, उसका ख़त पकड़ के उसे बेड पे बिठाया और खुद भी उसके सामने बैठ गया... शीना उसी वक़्त पिघल गयी जैसे आग की तपन में बरफ.. वो नहीं चाहती थी कि रिकी उसका हाथ छोड़े इसलिए उसने भी रिकी के हाथों में अपने हाथ दबा दिए... रिकी बस शीना को देखता रहा..शीना उपर से तो खामोश थी लेकिन उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था.. रिकी के हाथ को महसूस कर के जैसे समझो उसके अंदर की चिंगारियाँ भड़क गयी हो... रिकी ने धीरे धीरे अपना हाथ छुड़ाया और शीना के चेहरे पे बड़े प्यार से हल्के से घुमाया और फिर कुछ कह ही रहा था कि बीच में शीना बोल पड़ी



"भाई, मैं कुछ कहना चाहती हूँ आप से.."



"उससे पहले मैं कुछ कहूँ.. इजाज़त है मेरी स्वीटहार्ट की..." रिकी ने बड़ी शालीनता से पूछा



"पूछिए ना भाई.." शीना ने बड़ी कमज़ोर आवाज़ में कहा



"मैं लंडन नहीं जा रहा.. आइ विल स्टे हियर.."



रिकी के मूह से यह अल्फ़ाज़ सुन के जैसे शीना कहीं खो सी गयी थी, वो एक दम खामोश रही और सोच रही थी कि कहीं उसने कुछ ग़लत तो नहीं सुन लिया..



"हेलो...." रिकी ने चुटकी बजाते हुआ कहा



"हां... हां भाई, अच्छा है..आइ एम वेरी हॅपी... थॅंक यू.. यायययययी.." शीना बच्चों की तरह खुश होके रिकी से गले लगी और बहुत खुश हो रही थी..उसके ज़बान से शब्द नहीं निकल रहे थे , उसे समझ नहीं आ रहा था के वो क्या कहे




"थॅंक यू थॅंक यू वेरी वेरी मच भाई..." कहके आगे बिना कुछ सुने शीना रिकी के कमरे से बाहर निकली




उधर विक्रम पुणे पहुँच गया और सीधा पार्टी से मिलके उसे अपनी प्रॉपर्टी दिखाने ले गया.. राइचंद'स का फार्म हाउस पुणे लोनवाला हाइवे के पास उनकी प्राइम प्रॉपर्टीस में से एक थी.. विक्रम की ज़रा भी दिल नहीं था इस प्रॉपर्टी को बेचने का, लेकिन उसे अमर के दबाव के आगे झुकना ही पड़ा.. प्रॉपर्टी का मुआएना करते करते विक्रम का दिल जल रहा था, लेकिन वो मजबूर था.. विक्रम अमर के खिलाफ कभी नहीं जा सकता....




"वैसे अमर साब यह शानदार प्रॉपर्टी क्यूँ बेच रहे हैं.." पार्टी ने विक्रम से पूछा... और पूछता भी क्यूँ नहीं, 5 एकर में फैला हुआ फार्म हाउस हाइवे के ठीक पास की शोभा था, वहाँ हर अमेनिटी का बंदोबस्त किया गया था. लेकिन राइचंद फॅमिली में से वहाँ कोई कभी नहीं आता, बस अमर वो जगह कभी अपने दोस्तों को दे देता ताकि वो लोग वहाँ मौज काट सकें..



"पता नहीं साक्शेणा जी.. मुझे ज़रा भी दिल नहीं है बेचने का, लेकिन अब क्या कहूँ.. खैर सब छोड़िए, आप बताइए आपको फार्म हाउस कैसा लगा... आइए एक दो जाम हो जायें.." कहके विक्रम ने स्टडी के अंदर प्रवेश किया और साक्शेणा के साथ डील की बातें करने लगा.. साक्शेणा को प्रॉपर्टी अच्छी भी लगी थी, आख़िर ऐसी प्रॉपर्टी कोई कैसे छोड़ सकता है, लेकिन दोनो की बातें पैसों पे आके अटक गयी थी...



"ठीक है साक्शेणा साब, मैं पापा से डिसकस करके बताता हूँ.. अगर वो मान गये, तो हम पेपर्स जल्द ही साइन कर लेंगे..." कहके विक्रम और साक्शेणा दोनो बाहर आ गये..



"ठीक है विक्रम, मैं खुद अमर से बात करने आता हूँ, साथ बातें करेंगे उनसे मिले काफ़ी वक़्त भी हुआ है.." कहके साक्शेणा अपनी गाड़ी में बैठ निकल गया.. साक्शेणा के जाते ही विक्रम जैसे ही अपनी गाड़ी के पास बढ़ा तभी उसका ध्यान मोबाइल पे गया जो उसकी जेब में नहीं था.. विक्रम फिर अंदर की तरफ बढ़ा और स्टडी में घुसा जहाँ उसका मोबाइल पड़ा था.. क्यूँ कि यहाँ कोई नहीं रहता, विक्रम सब बत्तियाँ बुझा के बाहर निकला था, अब जब वो स्टडी में वापस खड़ा था, तो एक अंधेरा सा पसरा हुआ था कमरे में.. दोपहर के 2 बजे भी ऐसे अंधेरे में किसी को भी डर लग सकता है, ख़ास कर तब जब कोई अकेला हो... स्टडी सब से आख़िर के कोने में बनी हुई थी, वहाँ से नीचे जाने की स्टेर्स के लिए एक पतली पर लाबी सी लॉबी क्रॉस करनी पड़ती थी.. विक्रम ने बत्ती ओन करके मोबाइल लिया और फिर बत्ती बंद करके जाने लगा.. जैसे ही उसने अपना एक कदम बढ़ाया, उसे महसूस हुआ जैसे की कोई और भी है वहाँ. पीछे मूड के देखा तो सब वैसा ही था, उसे लगा शायद कोई बहम होगा और वो आगे बढ़ा, लेकिन जैसे ही दरवाज़े के पास पहुँचा उसे फिर ऐसा लगा जैसे कोई है वहाँ.. कभी कभी ऐसा होता है जब कुछ अनदेखा या अजीब ना हो, फिर भी एक बहुत ही अजीब चीस महसूस होती है, जैसे की किसी और का हमारे साथ होना या कुछ ऐसी घटना जिसे देख के लगे के हम यह पहले ही देख चुके हैं.. विक्रम के साथ ठीक वैसा हो रहा था, कुछ हरकत नहीं, कुछ अजीब नहीं, लेकिन उसे फिर भी ऐसा लग रहा था के वो वहाँ अकेला नहीं है.. दरवाज़ा बंद करने के पहले उसने फिर कमरे में नज़र डाली, सब कुछ शांत... उसने अपने ख़यालो को झटका और दरवाज़ा बंद करके बाहर आने लगा.. इधर जैसे ही विक्रम गाड़ी लेके निकला, स्टडी में एक बार फिर फिर बत्ती जली और एक किताब का पन्ना खुल गया




"रिकी, यह मैं क्या सुन रहा हूँ, तुम लंडन नहीं जा रहे" अमर ने रिकी के कमरे में अंदर आते हुए कहा



"जी पापा, आपने ठीक सुना.." रिकी ने खड़े होके जवाब दिया



"पर बेटा, पढ़ाई तो ख़तम करो, यूँ आधे में छोड़ना सही बात नहीं.." अमर ने उसे समझाते हुए कहा



"पढ़ाई ख़तम होगी पापा, मैने अपनी यूनिवर्सिटी मैल कर दिया है, और आगे का कोर्स मैं डिस्टेन्स से कर लूँगा... मैं जल्द से जल्द महाबालेश्वर वाला प्रॉजेक्ट स्टार्ट करना चाहता हूँ.." रिकी ने अपनी नॉर्मल टोन में कहा..



"ठीक है रिकी, जैसा तुम ठीक समझो, पर मैं तब तक तुम्हे प्रॉजेक्ट स्टार्ट करने नहीं दूँगा, जब तक मैं डिग्री नहीं देखता.. और हां ऐसा नही समझना डिग्री से तुम अकल्मंद होगे, मैं ऐसे जड्ज नहीं करता हूँ लोगों को.. हम में से कोई अगर आगे बढ़ने के लायक है तो वो तुम हो, इसलिए डिग्री ज़रूरी है तुम्हारे लिए... और हां, प्रॉजेक्ट रिपोर्ट पे तुम काम स्टार्ट कर दो, मैं तुम्हे काबिलियत के दम पे आगे बढ़ाउंगा, फाइनान्स का बंदोबस्त करो.. मैं पैसा नहीं देने वाला तुम्हे.." अमर ने थोड़ा सा हँसी के साथ यह बात कही



"कोई बात नहीं पापा, मैने वैसे भी सोच रखा था कि लोन ही लूँगा, आपका सपोर्ट चाहिए था बस.." रिकी ने अमर से कहा और दोनो में कुछ और बातें होने लगी..




विक्रम, जैसे ही नोवोटेल पहुँचा, रूम में सीधा घुस के स्नेहा से चिपक गया.. दोनो के अंदर बराबर की आग थी , भले ही स्नेहा कुछ देर पहले चुद चुकी थी लेकिन विक्रम से चुदाई का सोच के ही उसे गर्मी चढ़ती... दोनो अंदर की गर्मी में काफ़ी जल रहे थे, चूमते चूमते जल्दी कपड़े निकाल के बिस्तर पे आ गये और फिर एक बार इनकी चुदाई का घमासान चालू हुआ... स्नेहा विक्रम के साथ भी इतनी ही डॉमिनेंट जितनी प्रेम के साथ थी, शायद उसे झुकना पसंद नहीं था.. ना सेक्स में , ना लाइफ में... अच्छी ख़ासी चुदाई के बाद जब दोनो पति पत्नी हाँफने लगे तब स्नेहा बोली



"क्या हुआ प्रॉपर्टी का.. कुछ बात बनी.."



"हां शायद बन जाए.." विक्रम ने जवाब दिया और दोनो तक के नींद में जाने लगे





उधर फार्म हाउस पे... खुली किताब के एक खाली पन्ने पे कलम से लिखा जा रहा था..




"रिज़ॉर्ट नहीं बनेगा महाबालेश्वर में... बिल्कुल नहीं..."
 
पुणे से विक्रम और स्नेहा लौटे तो राइचंद हाउस एक बार फिर घर वालों से भर गया.... विक्रम को जब पता चला कि रिकी वापस लंडन नहीं जा रहा तब उसके दिल पे जैसे किसी ने चाकू से वार कर दिया हो.. जब अमर ने विक्रम को यह खबर दी तब वहाँ स्नेहा भी मौजूद थी, जहाँ यह बात सुनके विक्रम को एक लकवा सा मार गया था वहीं स्नेहा के अंदर खुशी की हज़ारों फुलझड़ियाँ जल गयी.. यह जो भी प्लान कर रही थी उसके लिए रिकी का वहाँ रहना ज़रूरी था और इसी वजह से उसके चेहरे पे एक मुस्कान की लहर सी आ गयी..




"खैर विक्रम यह छोड़ो, बताओ पुणे और चेन्नई में क्या हुआ.." अमर ने काम की बात पे आके कहा और स्नेहा भी उधर से अपने काम में लग गयी



विक्रम ने अमर को सब बताया लेकिन बीसीसीआइ के साथ हुई डील के बारे में झूठ कहा. तय यह हुआ था कि बीसीसीआइ के बाप को पिछली बार से आधा हिस्सा मिलेगा, लेकिन विक्रम ने अमर को कहा कि बीसीसीआइ का बाप उनसे सेम पैसा माँग रहा है इसलिए विक्रम ने उसे अब तक कुछ जवाब नहीं दिया है



"हां बोल दो विक्रम, क्या फरक पड़ेगा , वैसे भी इसके अलावा और क्या कर सकते हैं.. पर हां, सामने तुम कोई दूसरा रास्ता निकालो पैसे निकालने का... और हां साक्शेणा साब कब आ रहे हैं.." अमर ने यह पूछा ही था कि सामने से आवाज़ आई



"आपने याद किया और बंदा हाज़िर है" साक्शेणा ने अंदर आते हुए कहा.. साक्शेणा और अमर काफ़ी अच्छे दोस्त थे, लेकिन वक़्त की कमी के रहते दोनो मिल नहीं पाते.. साक्शेणा के आते ही अमर ने उसे गले लगाया और दोनो बातें करने बैठ गये वो देख विक्रम वहाँ से जाके अपने रूम में बैठा और सोचने लगा कि अचानक रिकी को क्या हुआ जो अचानक उसने जाने का प्लान कॅन्सल किया ... उसने सोचा क्यूँ ना रिकी से खुद बात की जाए, वो जल्दी से रिकी के रूम की तरफ बढ़ा..



"रिकी, अंदर आ सकता हूँ.." विक्रम ने दरवाज़ा नॉक करके पूछा



"भैया, आइए ना आप इतने फ़ॉर्मक क्यूँ हो रहे हो.." रिकी आगे बढ़ के विक्रम से गले लगा



"और छोटे, कैसी रही ट्रिप... एंजाय किया या नही.." विक्रम ने आराम से उसके बेड पे बैठते हुए पूछा



"सब ठीक था भैया, सुकून मिल गया... आइ लव्ड इट.."



"इतना सुकून कि तूने अपनी पढ़ाई आधे में छोड़ने का फ़ैसला किया हाँ.. एक बार भी अपने भाई से पूछना सही नहीं समझा..." विक्रम की ठंडी कड़क आवाज़ ने रिकी को थोड़ा सा घबराहट में डाल दिया



"नहीं भाई, ऐसा नहीं है, और पढ़ाई मैं आधी नहीं छोड़ रहा लेकिन यहीं से डिस्टेन्स कर लूँगा.. पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी"



"रिकी, बड़ा भाई होने के नाते मेरा यह फ़र्ज़ बनता है के मैं तुझे सही रास्ता दिखाए.. अगर डिस्टेन्स ही करवाना था तो हम तुझे लंडन भेजते ही क्यूँ.. मैं ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूँ तेरी तरह, लेकिन जानता हूँ डिस्टेन्स क्या होता है "




विक्रम की यह बात सुन जहाँ रिकी थोड़ा सा हैरान हुआ, वहीं उसे इस बात की खुशी हुई के विक्रम को उसकी चिंता है.. ऐसा कभी नहीं था कि विक्रम और रिकी में बनती नहीं थी, लेकिन दोनो में बात चीत काफ़ी कम होती थी, ना के बराबर ही... आज विक्रम की बात सुनकर उसे अच्छा लगा के बड़े भाई उसके सिर्फ़ नाम के ही नहीं है, लेकिन अगर विक्रम
ज़्यादा कुरेदने लगा तो उसे सब सच उसको बताना पड़ेगा.. रिकी को सोच में डूबा देख विक्रम ने फिर कहा




"रिकी, क्या परेशान कर रहा है तुझे, मैं जानना चाहता हूँ... " विक्रम ने फिर उसकी आँखों में देखा और भाँपने लगा के अचानक ऐसा क्या हुआ है...




स्नेहा ने रिकी की बात सुनके सब से पहले प्रेम को फोन किया और उसे बताने लगी के उनके प्लान में कोई दिक्कत नहीं होने वाली अब , क्यूँ कि रिकी उनके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी था.. स्नेहा को अगर अपने प्लान में कामयाब होने के लिए प्रेम या रिकी में से चुनना पड़ता तो वो बिना सोचे रिकी को चुनती..




"वो सब तो ठीक है दीदी, लेकिन शीना को..." प्रेम ने इतना ही कहा के स्नेहा ने फिर टोक दिया



"वो सब मेरे हाथ में है, तुम अपना काम करो, ठीक चल रहा है कि नहीं.."




"हां दीदी, सब ठीक हो रहा है.. आप उसकी चिंता ना करें.. बस आपकी याद आ रही है.."



"कुछ वक़्त रूको, मैं कुछ करूँगी, अपने छोटे भाई का ख़याल मुझे ही तो रखना है.." स्नेहा ने एक हरामी हँसी के साथ कहा और फोन कट कर दिया.. कुछ देर वहीं रुकी और फिर शीना के कमरे की तरफ बढ़ गयी.. स्नेहा जैसे ही शीना के कमरे के पास पहुँची तो उसके रूम का दरवाज़ा खुला था और शीना बैठे बैठे अपने खिड़की के बाहर देख रही
थी और रिकी के ख़यालों में खोई हुई थी








"आहेंम आहेमम्म्मम..." स्नेहा ने खांस के उसे अपने आने का आभास दिया




"ओह्ह.. भाभी, आइए ना.." शीना ने रिकी के ख़यालों से बाहर आते हुए कहा



"क्या बात है शीना , लगता है किसी के ख़यालों में खोई हुई हो हाँ, कोई लड़का तो पसंद नही आ गया तुम्हे.." स्नेहा ने जान बुझ के यह बात कही क्यूँ कि वो जानती थी शीना किसके बारे में सोच रही है



"क्या भाभी आप भी ना, ऐसा कुछ नहीं है.. बस घर आके बोर हो गये हैं, कुछ करने को है ही नहीं" शीना ने जवाब दिया



"शीना, भाभी हूँ मैं तुम्हारी.. मुझसे झूठ बोलोगि क्या, वैसे देखा जाए तो तुम सही ही हो, आख़िर इस घर में मुझे सब ग़लत ही समझते हैं. मम्मी हो या तुम, आज तक किसी ने मुझे अपना नही समझा, मैं भी अकेले ही अपना वक़्त गुज़ारती हूँ.. पति है तो क्या हुआ, एक बहू और भाभी का दर्जा तो नहीं मिला मुझे... खैर ठीक है, मैं भी कहाँ अपने दिल की बात कहने लगी, भूल गयी थी कि मैं इस घर की बस एक ट्रोफी बहू हूँ.. समाज को दिखता है, लेकिन घर के अंदर क्या चल रहा है वो मेरा दिल ही जानता है.." कहते कहते स्नेहा ने अपनी आँख में मगरमच्छ के आँसू ला दिए.. स्नेहा को शीना ने पहली बार ऐसे देखा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि हमेशा चालाक लोमड़ी जैसी दिखने वाली स्नेहा आज ऐसी क्यूँ हो गयी थी, क्या मोम ने कुछ कहा उसको या विकी भैया के साथ झगड़ा हुआ उनका.. शीना कुछ बोलने ही जा रही थी के फिर स्नेहा सुबक्ते सुबक्ते बोल पड़ी




"जब एक बहू घर में आती है, तो पति से ज़्यादा वो अपनी ननद के करीब रहती है, उसके साथ सब सुख दुख बाँटने का सोचती है, लेकिन मेरे नसीब में वो भी नहीं है.."
 
कहके स्नेहा वहाँ से उठी और अपने रूम जाने के लिए निकल गयी. शीना ने उसे रोका भी नहीं, क्यूँ कि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि स्नेहा आज क्यूँ ऐसी बातें कर रही थी.. शीना ने थोड़ा ज़्यादा सोचा तो उसे स्नेहा की कहीं कोई भी ग़लती नहीं दिखती, जब से स्नेहा इस घर में आई थी तब से सुहासनी उसके साथ ठीक से बर्ताव नहीं करती,
और यह देख शीना ने भी उससे दूरी बढ़ाई, लेकिन आज शीना को लग रहा था कि उसकी माँ ने ग़लती की है स्नेहा के साथ ऐसा व्यवहार करके.. शीना को अपनी ग़लती दिखी इसमे,

और उसकी सोच कुछ हद तक ग़लत नहीं थी.. एक साइड यह था के स्नेहा ने कभी शीना या किसी और घर वालों के साथ कभी ग़लत बात भी नहीं की, बस उसकी बातें कुछ शीना को थोड़ी अजीब लगती.. लेकिन अभी शीना यह सोच रही थी कि भाभी ननद में शायद यह सब बातें नॉर्मल ही होती होगी, आख़िर दोनो घर पे ही रहती तो खाली समय में यह सब नॉर्मल ही लगता...




उधर स्नेहा अपने रूम में गयी और जाके सब से पहले अपनी आँखें सॉफ की जो ग्लिसरिन की वजह से थोड़ी सी जल रही थी...



"उफ्फ.... यह ड्रामा ना, बहुत बोर करता है कभी कभी..." स्नेहा ने अपना चेहरा सॉफ करते हुए कहा... स्नेहा यह सोच ही रही थी के उसका फेंका हुआ पासा काम करेगा या नहीं के इतने में शीना ने दरवाज़ा नॉक किया



"भाभी, दो मिनिट दरवाज़ा ओपन करो प्लीज़.."




शीना की आवाज़ सुन स्नेहा को यकीन नहीं हुआ कि इतना जल्दी उसका प्लान असर करेगा, इसलिए उसने जल्दी से खुद के बाल बिखेर दिया थोड़े और उसके चेहरे पे पानी की बूंदे तो थी ही, उसने जल्दी से दरवाज़ा खोला और जैसे ही शीना अंदर आई



"शीना बैठो तुम, मैं अभी आई...." कहके स्नेहा फिर वॉशरूम गयी ताकि शीना को लगे कि वो रो रही थी और अपना चेहरा छुपा रही है उससे.. स्नेहा ने अपना टाइम लगाया अंदर और फिर बाहर आई



"हां शीना , बताओ क्या काम था.." स्नेहा ने थोड़ी खुश्क आवाज़ में कहा



"भाभी काम के बिना नहीं आ सकती क्या... आंड भाभी, ऐसा कुछ नहीं है जो आप सोच रही हैं, यूआर माइ बेस्ट फ्रेंड भाभी, आप से नहीं तो किससे शेर करूँगी अपनी बातें..

चलिए आपसे प्रॉमिस, आगे से कभी भी आपको अकेला फील नहीं होने दूँगी मैं.. किसी को बुरा लगे तो लगे" शीना ने अपनी माँ की तरफ इशारा करके कहा और स्नेहा भी समझ गई उसे



"शीना ऐसा नहीं कहते, मम्मी हैं वो हमारी, और उनको कुछ हो तो..." स्नेहा ने यह कहा ही कि शीना ने फिर टोक दिया



"भाभी, प्लीज़ अब डिसिशन लिया है मैने डोंट कन्फ्यूज़ मी.. अब जल्दी चलिए, आज शॉपिंग पे चलते हैं और फिर लंच भी साथ करेंगे.." शीने ने जैसे ऑर्डर दिया




"पर शीना " स्नेहा फिर नहीं बोल पाई



"पर वार नही भाभी, गेट रेडी, मैं लॅंड्स एंड में टेबल बुक करवा रही हूँ.. आज हमारी दोस्ती की शुरुआत है इसलिए बिल मैं भरँगी, " कहके शीना खुशी खुशी वहाँ से निकली रेडी होने के लिए. स्नेहा अब तक नही विश्वास कर पा रही थी कि इतना जल्दी शीना बेवकूफ़ बन जाएगी.. सब छोड़ के स्नेहा जल्दी से रेडी होने लगी, और इस बात का ध्यान रखा के ड्रेस नॉर्मल हो वो ताकि शीना को शक ना हो के आगे क्या होनेवाला है.. इसलिए उसने नॉर्मल जीन्स ओर टॉप पहना और शीना के साथ शॉपिंग के लिए निकल गयी.. वैसे शीना ने भी नॉर्मल ड्रेसिंग ही की थी, लेकिन स्नेहा जान बुझ के उसकी तारीफ़ करती रही ताकि शीना से आगे बात करने में आसानी हो...




"देखा, आज सब लड़के तुम को ही देख रहे हैं, बला की खूबसूरत लगती हो" स्नेहा ने शीना से कहा जब उनके पास से कुछ लड़के निकले



"अरे भाभिईीईई... अब बस भी, इतनी खूबसूरत नहीं हूँ.. आइए लंच लेते हैं पहले फिर शॉपिंग" कहके शीना ने लॅंड्स एंड की लिफ्ट का 18थ फ्लोर का बटन दबा दिया..

शीना या राइचंद परिवार में से जब भी कोई लॅंड्स एंड जाता तो वो प्राइवेट डाइनिंग बुक करता जिसका मतलब वहाँ खाना खाने वाले लोगों के अलावा कोई और नही होता.. शीना और स्नेहा को देख वहाँ खड़े स्टाफ मेंबर ने उन्हे उनके गार्डेन व्यू टेबल की तरफ गाइड कर दिया..



"अरे सच कह रही हूँ , तुमने कभी खुद को देखा है ठीक से.. उपर से लेके नीचे तक शीशे सा बदन है तुम्हारा... लड़के तो रोज़ रात को तुम्हारे नाम जप्ते होंगे" स्नेहा ने आँख मीच के कहा



"अरे भाभी, अब बस भी, आप क्या कम खूबसूरत हो..आइ एम शुवर काफ़ी लोग तो गेस ही नहीं कर पाते होंगे के आप मॅरीड हो या नहीं.." शीना भी अब उसकी बात को कॅष्यूयली लेने लगी थी



"चल झूठी.. ऐसा होता तो तुम्हारे भैया सब से पहले उन लोगों का खून कर देते..."



"हहहहहा, क्या भाभी, सही बोलती हूँ.. आप ने आज जीन्स ही पहनी है, नहीं तो स्कर्ट में तो लोग मुझे छोड़ के आपको ही देखेंगे, और बोलेंगे, क्या माल है..."



यूही बातें करते करते दोनो ने एक दूसरे को अच्छी तरह जाना, और स्नेहा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था.. काफ़ी हँस हँस के एक दूसरे से बातें, मस्ती मज़ाक, शीना को कॉलेज के दिन याद आ गये जब वो अपने दोस्तों के साथ घंटों कॅंपस में बैठी रहती और इधर उधर की चर्चा करती रहती.. आज काफ़ी टाइम बाद शीना को रिकी के अलावा किसी से बात करके अच्छा लगा था.. इसलिए उसने सोचा अब ठीक है, अगर भाभी को ऐसी बातें ही पसंद हैं तो इसमे हर्ज ही क्या है आख़िर, कोई भी घर बैठे बैठे बोर हो उससे अच्छा बातें कर लो, नुकसान नहीं था इसमे कोई.. इसलिए लंच से लेके शॉपिंग तक शीना और स्नेहा ही बातें जारी रही.. जब भी कोई लड़का आस पास से गुज़रता तो दोनो में से कोई मौका नहीं छोड़ता एक दूसरे को चिढ़ाने का..




"देखा भाभी, आपके पीछे जो लड़का खड़ा है, बस आप पे ही नज़रें जमाए हुए है.." शीना ने बिलिंग लाइन में खड़े हुए धीरे से स्नेहा के कानो में कहा.. स्नेहा ने इस बात का जवाब नहीं दिया, पर वो यह सोचने लगी कि अब शीना को अपने काम के लिए मजबूर करना कोई बड़ी बात नहीं होगी, बहुत आसानी से उसे कामयाबी हासिल होगी..




उधर रिकी ने जब विक्रम को महाबालेश्वर वाली घटना बताई, तो विक्रम को भी कुछ अजीब सा दिखा, वो रिकी से ज़्यादा तेज़ सोचता था, इसलिए उसने जब यह सुना तब रिकी से कहा



"रिकी, कोई आदमी ही यह हरकत करेगा, अगर तुम्हे लगता है के कोई अचानक गायब हो गया तो उसमे कोई बड़ी बात नहीं है.. लेकिन तुम उस वजह से नहीं जा रहे हो क्या ?"




"नहीं भाई, बट अब वहाँ दिल नहीं लगता, अकेला सा लगता है.. और इधर रहूँगा तो आप लोगों के पास रहूँगा, इसलिए नहीं जाना मुझे"




रिकी की यह बात सुन विक्रम समझ गया कि रिकी झूठ बोल रहा है वजह कुछ और थी, जो लड़का पिछले 3 साल से अकेला रह रहा है उस अचानक ऐसी फीलिंग कैसे आ सकती है,

इसलिए उसने रिकी से बात नहीं की और उसे बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गया... विक्रम के जाते ही रिकी ने भी चैन की साँस ली के अछा हुआ उसकी ज़बान पे शीना वाली बात नहीं आई.. रिकी को उस महाबालेश्वर वाली घटना से ज़्यादा शीना की बात प्यारी थी.. इसलिए जब शीना ने कहा उसे लंडन नहीं जाने को तब से उसने यह दिल में बिठा लिया कि वो बस नहीं जाना चाहता... रिकी, बस इधर शीना की वजह से रुका था... उपर से वो खुद को यह दिखाता कि वो कन्फ्यूज़ है कि क्यूँ नहीं जा रहा लंडन, लेकिन दिल में वो जानता था के शीना की वजह से वो नहीं गया.. यहाँ रह कर वो शीना के साथ वक़्त गुज़ारना चाहता था.. यह कैसी फीलिंग थी वो नहीं जानता था, बट अब उसके दिल में यह फीलिंग आई तो क्या कर सकता है कोई..




"स्नेहा, मैं बाहर जा रहा हूँ आज रात को , कुछ काम है.. खाने पे मेरा वेट नहीं करना, और पापा से भी बोल देना.... " विक्रम ने स्नेहा को फोन करके कहा और गाड़ी लेकेहाइवे की तरफ बढ़ गया.. उधर स्नेहा और शीना जब शॉपिंग करके वापस आए तो शीना सीधा रिकी के पास चली गयी और उसके पास बैठ के अपनी शॉपिंग के ही कपड़े दिखाने लगी और साथ ही रिकी के लिए भी वो कपड़े लाई थी, वो भी दिखाने लगी.. शीना को याद था कि स्नेहा के साथ रिकी कंफर्टबल फील नही करता तभी वो वहाँ अकेली गयी थी और दोनो भाई बहेन साथ में बैठ के बातें करने लगे.. कुछ ही देर हुई थी, कि शीना के मोबाइल पे एसएमएस आया




"तुम्हारे भैया आज रात को नहीं है, क्या तुम सोना पसंद करोगी मेरे साथ आज की रात.." स्नेहा ने शीना से कहा

बिना कुछ सोचे, या बिना कुछ समझे शीना ने तुरंत जवाब दिया




"ओके.. डन,"
 
इतना जल्दी जवाब देख के स्नेहा के दिल को एक अजीब सा सुकून मिला... शायद आज की रात कुछ चीज़ें बदल जाने वाली थी इसलिए

शाम के 6 बज रहे थे, राइचंदस के कुछ रूम ऐसे थे जहाँ से समंदर की लहरों के नज़ारे के साथ साथ डूबते हुए सूरज को भी देखा जा सकता था... स्नेहा के साथ शॉपिंग करके शीना सब से पहले रिकी से मिलने गयी,... रिकी के लिए भी उसने शॉपिंग की थी और वो उसे वो सब दिखाने लगी.. शॉपिंग के सारे वक़्त शीना बेताब थी रिकी से मिलने के लिए इसलिए अभी उसके साथ वहाँ थी तो बहुत खुश थी वो, वहीं दूसरी तरफ रिकी के दिल में भी बेताबी सी बढ़ने लगी थी शीना से बातें करने की, उसे देखने की, उसके करीब रहने की.. जहाँ शीना का प्यार दिल और जिस्म वाला था, वहीं रिकी अभी तक समझ नहीं पाया था कि इतने कम वक़्त में उसे क्या हो गया है... जिस्मानी ज़रूरत से दूर, रिकी बस दिल से शीना के बारे में सोचता रहता जब से वो महाबालेश्वर से आया था. शायद यह उन साथ बिताए पलों का जादू था जिसकी वजह से आज रिकी जैसा सुलझा हुआ आदमी भी एक तरह से उलझ सा गया था.. शॉपिंग की हुई चीज़े दूर, रिकी बस शीना को ही देखे जा रहा था, डूबते सूरज की हल्की किरणें जैसे शीना के चेहरे पे पड़ती , उसकी चमक बढ़ती जाती.. हल्की समुद्रि हवा से शीना की ज़ूलफें उड़ती उसका एक अलग ही नशा था रिकी को.. शॉपिंग की हुई चीज़े देख के रिकी और शीना
बाल्कनी में ज़मीन पे बैठ के बातें कर रहे थे... स्नेहा जब अपने काम से फ़ुर्सत निकल के शीना के पास गयी तब उसे वहाँ ना पाकर वो समझ गयी कि शीना इस वक़्त कहाँ होगी. इसलिए उसने सोचा उन्हे डिस्टर्ब नहीं करते, आख़िर यही तो था जो स्नेहा चाह रही थी.. इसलिए दबे पावं ही शीना के कमरे से उल्टी लौट गयी...




"शीना.... एक बात कहूँ, बुरा नहीं मानोगी.." रिकी ने शीना के हाथ हल्के से पकड़ के उसकी आँखों में देख कि कहा... रिकी के हाथों को महसूस करते ही शीना गद गद हो गयी, उसकी दिल की धड़कन तेज़ हो गयी और वो बस रिकी को चेहरे को देख के ही कहीं खो सी गयी.. कुछ देर तक जब दोनो भाई बहेन एक दूसरे की आँखों में खोते से चले गये, उस वक़्त शीना ने हल्की सी आवाज़ में कहा



"बोलिए ना भाई..."



"शीना... थॅंक यू वेरी मच.." रिकी ने शीना के हाथों को अब तक नहीं छोड़ा था..



"थॅंक्स क्यूँ भाई..." शीना भी रिकी के हाथों को उतने ही प्यार से थामे हुए थी



"पता नही शीना.. बस ऐसे ही, आइ मीन तुम ने मुझे वहाँ जाने से रोका शायद इसलिए मैं अपने जीवन के कुछ कीमती लम्हे तुम्हारे साथ बिता रहा हूँ, अगर तुम मुझे नहीं रोकती तो मैं फिर से अकेला हो जाता और शायद इस बार उस अकेलेपन में इतना दूर निकल जाता के कभी लौट के नहीं आता.. तुम्हारे साथ बिताया हुआ हर पल मुझे एक सुकून सा
देने लगा है, तुम्हारे साथ होता हूँ तो मुझे कोई डर, कोई फ़िक्र नहीं सताती.. तुम्हारे साथ ज़िंदगी मिलती है मुझे...तुम्हारे साथ यूँ लगता है जैसे...जैसे....."




"जैसे यह वक़्त बस यूँ ही थम जाए, जैसे यह सूरज कभी डूबे नहीं , जैसे यह हवा यूँ ही बहती रहे, जैसे हम हमेशा ऐसे ही बैठे रहें, जैसे हमे कोई भी तंग करने वाला ना हो.. जैसे आप हमेशा मेरा हाथ यूँ ही थामे रहें, जैसे आप हमेशा बोलते रहें और मैं सुनती रहूं.." शीना ने रिकी के खोए हुए शब्दों को ढूँढ के उसकी बात पूरी की... शीना की बात सुन के रिकी बस यूँ ही उसका हाथ थामे बैठा रहा और दोनो एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे.. दोनो के बीच अगर कोई आवाज़ें थी तो
वो उनकी धड़कन की और पत्थरों से टकराती हुई समादर की लहरों की.. सूरज भी कुछ वक़्त में बस उन्हे अलविदा कहके जाने ही वाला था, ऐसे माहॉल में भला कोई कैसे बहेक नही सकता, शीना ने रिकी के हाथों को और ज़्यादा मज़बूती से पकड़ लिया था जैसे कि प्रेमिका अपने प्रेमी से कहना चाहती हो "अभी ना जाओ छोड़ कर... कि दिल अभी भरा नहीं.."

रिकी ने शीना को अपने करीब ले लिया और शीना भी जैसे हवा में कटी हुई पतंग की तरह उसके पास लहराती हुई चली गयी... शीना ने मौका पाकर अपना सर रिकी के कंधों पे रखा और दोनो भाई बहेन सामने के नज़ारे को देखने लगे, बिना किसी शब्द के, इस वक़्त दोनो की दिल की धड़कने एक दूसरे से बातें कर रही थी..











दूसरी तरफ, विक्रम अपने फार्म हाउस पहुँचा और सेक्यूरिटी गार्ड से कहके जितने भी कमरे थे उन सब को खुलवाया, और फार्म हाउस की एक एक बत्ती को जलाने के लिए कहा.. फार्म हाउस के बाहर खड़े रहके विक्रम धीरे धीरे जल रही बत्तियों को देखने लगा और कुछ ही देर में पूरा फार्म हाउस ऐसे जल उठा जैसे की कोई दीवाली माना रहा हो.. इतने में

विक्रम ने फोन करके अपने कुछ दोस्तों को भी बुला लिया यह कहके के आज की रात पार्टी करते हैं.. विक्रम ने सेक्यूरिटी गार्ड को इसके बंदोबस्त पे लगाया और खुद अंदर जाके हर एक रूम में जाके एक एक कोने का मुआईना करने लगा.. धीरे धीरे कर के विक्रम ने सब रूम देखे और आख़िर में लॉबी के एंड में बनी स्टडी की तरफ रुख़ करने लगा..

पिछली बार जो विक्रम को महसूस हुआ था, वही भाव अभी भी उसके दिल में थे, लेकिन डर बिल्कुल नहीं था.. तेज़ कदमो के साथ विक्रम स्टडी की तरफ बढ़ा.. दरवाज़ा तो खुला हुआ था, इसलिए अंदर जाते ही उसने स्टडी के हर एक कोने को छान मारा और सब कुछ अपने दिमाग़ में नक्शे की तरह फिट करने लगा.. स्टडी की एक खिड़की बाहर की तरफ खुलती
थी, जहाँ से लोनवाला के पहाड़ों के दर्शन होते थे.. अभी अंधेरा हो चुका था पर विक्रम ने फिर भी खिड़की खोली और कुछ देर आस पास झाँकता रहा.. जैसे ही विक्रम ने खिड़की बंद की, उसका ध्यान खिड़की के काँच पे पड़ा... तभी उसका फोन बजा और अपने दोस्त का नंबर देख के उसने जल्दी से खिड़की बंद की और उनसे मिलने चला गया..

दोस्तों से मिल के विक्रम ने स्टडी के बगल वाले कमरे में प्रोग्राम जमाया और अपने साथ सेक्यूरिटी गार्ड को भी बोल दिया के वो भी उन्हे जाय्न करे... विक्रम और उसके दोस्त पीने में लगे हुए थे और खूब मस्ती और शोर कर रहे थे.. विक्रम धीरे धीरे अपने स्टाइल में दारू पीता, ऐसा नहीं था कि वो दारू पीक बहेक जाता, बल्कि उसकी केपॅसिटी बहुत अच्छी थी,

पर वो दूध हो या दारू, सब का लुत्फ़ लेना जानता था... धीरे धीरे रात बढ़ती गयी, अंधेरा बढ़ता गया और अंधेरे के साथ हल्का कोहरा भी छाने लगा.. विक्रम के सभी दोस्त पीते पीते होश खोने लगे और एक एक कर सब वहीं लूड़क गये.. लूड़कने से पहले सब ने यह सही किया कि जगह ढूँढ के फिर वहाँ गिरने लगे, सेक्यूरिटी गार्ड को भी होश
नहीं था पर लूड़कने से पहले वो अपने कमरे में पहुँचा और सब बतियां बुझा के सो गया.. सब को चेक कर विक्रम को जब आश्वासन हुआ के कोई भी होश में नहीं है तब विक्रम वॉशरूम गया और फ्रेश होके बाहर आया.. करीब आधे घंटे तक रुकने के बाद विक्रम ने घड़ी देखी तो रात के 3 बज चुके थे.. विक्रम ने जल्दी से स्टडी की लाइट्स बंद की और धीरे से कमरे से बाहर निकला.




राइचंदस में रिकी और शीना का होश तब टूटा जब शीना के मोबाइल पे उसकी दोस्त का कॉल आया था.. मोबाइल रिंग सुनते ही जैसे शीना एक लंबी नींद से जागी हो ऐसा महसूस हुआ उसे.. बिना वक़्त गँवाए उसने कॉल कट किया और फिर रिकी के कंधों पे सर रख के आँखें बंद कर ली... रिकी और शीना भाई बहेन हैं, लेकिन इस बात से उन्हे कोई फरक
नही पड़ रहा था या यूँ कहा जाए कम से कम उस वक़्त उनके हाव भाव देख के तो बिल्कुल ऐसा नही लग रहा था कि यह लोग ग़लत हैं.. प्रेम रस में डूबे हुए दोनो एक दूसरे की भावनाओ से अंजान बस उस तन्हाई का मज़ा ले रहे थे..




"शीना, मेरी वजह से दोस्त नहीं खो दो तुम.." रिकी ने शीना के बाल सहला के कहा और उसे हल्के से चूम लिया..



"कोई बात नहीं भाई, अगर सब दोस्त खोके आप के साथ यूँ ही वक़्त गुज़ारने को मिलेगा तो मुझे इस बात का कोई गम नहीं है के मेरे दोस्त मेरे साथ हैं या नहीं.." शीना ने अपनी आँखें रिकी से मिलाई और धीरे धीरे आगे बढ़ के रिकी के माथे को चूम लिया.. शीना को खुद नहीं पता था कि वो ऐसा करने की हिम्मत कहाँ से लाई पर उसे बिल्कुल
भी डर नहीं था कि रिकी क्या सोचेगा या क्या नहीं.... कोई हरकत ना देख, शीना ने फिर रिकी के गालों को हल्के से चूमा और कहा



"थॅंक्स फॉर स्टेयिंग बॅक भाई.." कहके जैसे ही शीना जाने के लिए उठी रिकी ने उसका हाथ खींच फिर उसे अपने पास बिठाया और उसने भी अपने होंठ शीना के गालों पे रख दिए और फिर धीरे धीरे उसे हग करने लगा, हग करके रिकी ने फिर अपने होंठ शीना की नेक पे रखे और अपनी गरम साँसें शीना को महसूस करवाने लगा.. आलम यह था कि
इन दोनो की साँसें इतनी तेज़ चल रही थी कि कोई भी उन्हे सुन सकता था, उनकी भावनाओं पर उनका खुद का काबू नहीं रहा था.. दोनो के पास अगर बरफ भी होती तो उनकी साँसों की गर्मी से वो भी पिघल जाती.. करीब 2 मिनिट तक दोनो एक दूसरे की बाहों में रहे और फिर एक दूसरे से अलग हुए



"चलिए भाई.. काफ़ी देर हो गयी है, और आप कल से अपने डिस्टेन्स कोर्स का बंदोबस्त कीजिए, नहीं तो मुझे हमेशा यह गिल्ट रहेगा के मेरी वजह से आपकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई.." शीना ने खड़े होके कहा और रिकी ने सिर्फ़ हां में अपनी गर्दन हिलाई... शीना वहाँ से जाने लगी और रिकी अभी भी समंदर की लहरों की आवाज़ सुन रहा था..
 
शीना के साथ बिताए हुए यह तीन घंटे दो ज़िंदगियों को बदलने वाले थे.. रिकी के दिल में शीना के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार था, यह प्यार जिस्मानी ज़रूरत से कहीं दूर था, वो बस यह सोचता के कब दिन ख़तम हो और नये सूरज की नयी किरण के साथ शीना उसके पास फिर बातें करने आए.. दूसरी तरफ शीना को इस बात की खुशी तो थी ही कि
रिकी भी उसे पसंद करता है लेकिन इस खुशी से ज़्यादा उसे एक सुकून था कि रिकी उसके साथ खुल के बात करता है, शीना का साथ उसे सबसे अच्छा लगता है और आज हुए वाकये के बाद शीना का दिल और मज़बूत हो गया था.. जहाँ कुछ वक़्त पहले उसके दिल में हमेशा एक ग्लानि रहती कि वो अपने भाई को प्यार करती है, आज वो भी दूर हो गयी थी रिकी की बातें सुनके.. दो दिल, दो बदन लेकिन एहसास दोनो में एक ही पनप रहा था.. प्यार... जहाँ शीना का प्यार सिर्फ़ मॅन के रिश्ते को नहीं, बल्कि जिस्मानी चाहत भी चाहता था,

वहीं रिकी जिस्मानी ज़रूरत को छोड़ के बस शीना के दिल से जुड़ा रहना चाहता था.. प्यार दोनो का ग़लत नहीं है, लेकिन इंसान की नज़रों से देखा जाए तो मैं शीना का समर्थन करता हूँ.. सही कहते हैं के "लव विदाउट सेक्स आंड सेक्स विदाउट लव" ईज़ मीनिंगलेस




रात के खाने में भी शीना और रिकी ने काफ़ी बातें की जिसे देख अमर और सुहासनी को भी एक झटका सा लगा कि हमेशा खामोश रहने वाला रिकी इस तरह बातें कर सकता है.. खैर अमर और सुहासनी दोनो खुश थे इस बदलाव से, और अमर को अभी जाके रिकी का लंडन ना जाने वाला फ़ैसला सही लगा.. स्नेहा यह सब देख अचंभित बिल्कुल नहीं थी, अपने मकसद की ओर एक और कामयाबी दिखाई दी उसे.. मन ही मन खुश होती हुई स्नेहा ने राहत की साँस ली , क्यूँ कि यह सबसे मुश्किल चीज़ थी उसकी प्लॅनिंग में और उम्मीद से भी ज़्यादा आसान था यह हासिल करना.. रात होने लगी और घर के लोग अपने अपने कमरे में जाके सोने लगे.. जहाँ रिकी और शीना की आँखों से नींद गायब थी, वहीं स्नेहा जल्दी
से जल्दी अपने कमरे में गयी और फ्रेश होके चेंज कर दी और शीना का वेट करने लगी.. शीना जैसे ही स्नेहा के कमरे में दाखिल हुई, उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी

स्नेहा को देख के.. स्नेहा की नाइटी मुश्किल से उसकी चूत को ढके हुई थी और उसकी जांघें कहर ढा रही थी.. उपर से उसके छाती भी पहले के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा ही चौड़ी लग रही थी..



"प्लीज़ डोंट माइंड हाँ.. मैं ऐसे ही सोती हूँ..." स्नेहा ने अपनी सिड्यूसिंग आवाज़ में शीना से कहा






"दटस ओके भाभी, चिल... रुकिये मैं भी फ्रेश होके आती हूँ, आइ वॉंट टू यूज़ युवर वॉशरूम.." कहके शीना भी फ्रेश होने चली गयी और कुछ देर में जब वो बाहर निकली इस

बार झटका खाने की बारी स्नेहा की थी. क्यूँ की दोनो की नाइटी सेम थी, सिर्फ़ रंग अलग थे... जहाँ स्नेहा की जांघें एक दम मूसल थी, वहीं शीना उसकी तुलना में स्लिम थी और शीना की छाती भी स्नेहा के मुक़ाबले चौड़ाई में थोड़ी कम थी..




शीना को देख स्नेहा सिर्फ़ मुस्कुराइ और अपने बिस्तर पे पसर के लंबी हो गयी और शीना को भी उसने सोने के लिए कहा...




उधर फार्म हाउस में विक्रम जैसे ही स्टडी से निकला आधे घंटे तक कुछ छान बीन की और फिर दौड़ के स्टडी में आया और बिना कुछ सोचे जल्दी से बाहर वाली खिड़की खोल के नीचे छलाँग लगाई... कुछ ही सेकेंड्स हुए थे, कि एक ज़ोर की चीखने की आवाज़ आई और पहाड़ी हवा में कहीं खो सी गयी

रात को स्नेहा और शीना सेम नाइटी पहने एक दूसरे के बगल में लेटे हुए थे और बातें करे जा रहे थे, लेकिन बार बार स्नेहा की नज़र शीना के शरीर पर पड़ती और ऐसे देखती जैसे कोई एक्स्रे मशीन स्कॅन करती हो.. उपर से लेके नीचे तक, जांघों से लेके शीना के चुचे. स्नेहा सब देख रही थी और शीना भी उसकी नज़रों का पीछा कर रही थी..



"भाभी, लड़के की तरह बिहेव नहीं करो आप, क्या इतनी देर से मुझे ही घूर रही हो.." शीना ने स्नेहा की तरफ मूह पलट कर कहा



"हाए लड़का कहाँ, अगर लड़का होती तो सिर्फ़ घूर थोड़ी ही रही होती.. अब तक तो चबा चुकी होती तुम्हारी तंदूरी लेग्स को.." स्नेहा ने शीना की जाँघ पे उंगली फेर के कहा, और उसने ध्यान रखा कि उंगली जैसे ही उपर आई उसी वक़्त वहाँ से हटे... स्नेहा ने बस इतना ही कहा और बस उसकी जांघों पे उंगली फेरती रही... शीना ने कुछ नहीं कहा वो बस स्नेहा को ही देख रही थी के शायद अब रुक जाए अब रुक जाए, लेकिन स्नेहा थी के रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.. चिकनी जांघों पे एक दूसरी औरत का स्पर्श पाकर शीना को अजीब सा महसूस हो रहा था, ना वो रोक सकती थी स्नेहा को और ना ही वो दिल से चाहती थी के स्नेहा रुके, उस हरकत से शीना को अलग आनंद प्राप्त हो रहा था



"अच्छा एक बात बताओगी, बुरा नहीं मानो तो.." स्नेहा ने अपनी उंगली हटा के कहा और शीना से आँखें मिला ली




"हां भाभी.. पूछिए"




"तुम वर्जिन हो या जवानी के मज़े भी ले रही हो..." स्नेहा ने अपनी सिड्यूसिंग सी आवाज़ में कहा




"व्हाट भाभी, फिर वोही..."




"मैने पहले ही कहा था बुरा नहीं लगाना, पूछा तो भी तकलीफ़ है तुम्हे.. चलो बस, रहने दो... गुड नाइट.." स्नेहा ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए यह कहा और अपने साइड में रखा हुआ लॅंप बुझा दिया... शीना भी बिना कुछ कहे स्नेहा के बाजू में लेट गयी लेकिन नींद उसकी आँखों से बहुत दूर थी.. वो बस रिकी के बारे में सोच रही थी, उसका दिल था के वो जाके एक बार रिकी का चेहरा देख ले, लेकिन उसे डर था कि अगर स्नेहा जाग गयी तो उसे क्या कहेगी, वैसे भी स्नेहा हमेशा मौका ढूँढती रहती है शीना को घेरने का.. इसलिए उसने रहने दिया और छत की तरफ देखने लगी और रिकी के बारे में सोचते हुए उसकी हल्की हल्की नींद आने लगी.. उधर स्नेहा अपने हाथ से यह मौका नहीं जाने देना चाहती थी लेकिन शीना ने जिस तरह उसकी बातें इग्नोर कर दी, इससे स्नेहा की मुश्किल बढ़ सकती थी.. लेकिन वो करे क्या, सोच सोच के जब उसका दिमाग़ थकने का नाम लेने लगा तभी उसे एक तरकीब सूझी.. स्नेहा ने शीना की तरफ अपना चेहरा घुमाया तो देखा शीना सो रही थी. इसलिए उसने अपना फोन उठाया और प्रेम को एक मेसेज कर दिया कि उसे उसके साथ अभी के अभी फोन सेक्स करना है... वक़्त रात के 11 हुए थे अभी इसलिए प्रेम जाग ही रहा था, स्नेहा का मेसेज पाके उसने तुरंत स्नेहा को कॉल्लबॅक किया..




स्नेहा ने कुछ देर तक फोन की रिंग बजने दी ताकि शीना सुन सके, और जैसे ही स्नेहा को आभास हुआ के शीना ने रिंगटोन सुन लिया है, उसने तुरंत फोन उठाया और प्रेम से बातें करने लगी, लेकिन उसने यह ध्यान भी रखा कि शीना को उसकी बातें आराम से सुनाई देनी चाहिए




"उम्म्म, भाई क्या कर रहे हो..." स्नेहा ने मादक सी आवाज़ में कहा




"बस आपके नाम से ही लंड खड़ा हुआ है मेरी दीदी.. इतनी रात को मुझे कैसे याद किया" प्रेम ने भी उसी टोन में जवाब दिया




"जब चूत जागती है तब क्या वक़्त देखने का भैया, पति नहीं है वो इस निगोडी चूत को क्या पता, इसे तो बस रास्पान करना ही है..." स्नेहा ने अपनी चूत को उपर से सहलाना शुरू किया और प्रेम से बातें करने लगी... इधर शीना ने जब ध्यान से सुना तब उसे यकीन नहीं हुआ कि उसने स्नेहा के मूह से भैया शब्द ही सुना, इसलिए उसने एक बार फिर अपना मूह स्नेहा की तरफ घुमाया और आँखें बंद करके सोने की आक्टिंग करने लगी
 
"हाए भैया, काश यह मेरी नल्लि ननद ना होती मेरे पास, अभी आपको बुला के आपके लंड का सेवन करती मेरी इस निगोडी को..." स्नेहा ने जान बुझ के यह शीना की तरफ देखते हुए कहा..




"नल्लि ही है ना भैया, जवानी के मज़े ले नहीं रही, बस अपने ऐसे बदन को धकति फिरती है...इसे क्या पता, जब मैं इसकी उमर की थी, तब आपका लंड ही मेरी जवानी का खिलोना था.. हाए क्या दिन थे वो भी, भाई आपके लंड पे पूरा दिन सवारी करती, और रात में आप मेरे उपर अपने उस साँप को नचाते रहते.." स्नेहा ने अपने सब कपड़े उतार कर शीना के साइड फेंक दिए, वो फुल मूड में थी शीना को अपना नंगा नाच दिखाने के लिए.. शीना को यकीन नहीं हो रहा था कि स्नेहा अपने भाई से ऐसी बातें तो कर रही है लेकिन वो उसके साथ ही बिस्तर पे...शीना को समझ नहीं आ रहा था, कि वो सुनती रहे या नींद तोड़ के वहाँ से कैसे भी करके निकल जाए.. असमंजस में वो जब फ़ैसला नहीं कर पा रही थी, तब स्नेहा की हिम्मत और बढ़ गयी




"उम्म्म हां भाई.. अहहाहा, आपके लंड को ही महसूस कर रही हूँ अंदर मेरे... उफ़फ्फ़ अहहाहा... मेरे मूह में भी कुछ चाहिए भाई.. अहहहहा....हां चोदिये ने अपनी रंडी बहेन को भाई... अहहहहा.. यस भाई अहहहहा..." कहके स्नेहा सिसकारियाँ भरने लगी और शीना के एक दम करीब आ गयी... शीना को इस एसी में भी पसीना आने लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे, उपर से उसकी चूत में भी जैसे चीटियाँ रेंगने लगी थी, जिसका उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था.. स्नेहा और उसके भाई की ऐसी बातें ग़लत थी वो जानती थी, लेकिन खुद भी अपने भाई से प्यार करती थी उस बात से वो गरम हो रही थी...




स्नेहा ने धीरे धीरे अपनी चूत मसलना शुरू किया और फिर तेज़ी से अपनी उंगलियाँ डाल के ज़ोर ज़ोर से मज़े लेने लगी



"अहहाहा आहान भाई अहँन्न हां फक मी अहहाहहा.. यस भाई अहहहाहा... चोदो ना अपनी रंडी बहेन को अहहाहा.. यह लंड मुझे दो भाई अहाहाहाहा... मूह में दो ना अहहहा, स्लूरप्प्प अहहहाहा.. उम्म्म्म अहहहहहाआ..." स्नेहा की चीखें शीना को अंदर से और तपाने लगी थी... शीना बुत बनके लेटी रही और अपने बदन पे आ रहे पसीने को महसूस करने लगी जिसकी हर एक बूँद के साथ उसकी चूत की खुजली बढ़ती रहती.. आलम यह था अब स्नेहा से ज़्यादा शीना गरम हो रही थी लेकिन वो उठ नहीं सकती थी, शायद उसकी जिग्यासा उसे रोके हुई थी..






"अहाहहाः भाई, हां मैं आ रही हूँ अहहहः, आपका पानी पिलाओ मुझे भी अहहहहा... उम्म्म अहहः यस अहहहहह.. उफफफ्फ़ ओह्ह्ह्ह अहहाहा..." कहते कहते स्नेहा अपनी चूत को ज़ोर ज़ोर से रगड़ने लगी और अपने चरण पे पहुँच गयी... शीना को जब लगा के स्नेहा ख़तम हुई है और उसने धीरे से एक आँख खोली तो देखा स्नेहा अपनी उंगलियों को खूब चूस रही है और फोन अभी भी जारी है




"उम्म अहहा भाई, मज़ा आ गया अहाहहा... आपका नमकीन पानी ही मेरी ज़िंदगी में मिठास लाता है भाई अहहाहा.... अभी भी आपकी जीभ महसूस हो रही है देखिए ना इस चूत को.... चलो कुछ करती हूँ कल, कल जमके सवारी करनी है आपके लंड की..." कहके स्नेहा ने फोने कट किया और सोने की आक्टिंग करने लगी.. स्नेहा की इस हरकत से शीना अंदर तक सहम उठी थी, वो नहीं समझ पा रही थी कि स्नेहा क्या कर रही है और क्यूँ कर रही है.. वजह जो भी हो, उसकी इस हरकत से शीना को एक अजीब सी गर्मी महसूस हो रही थी, पर वो कुछ कर भी नहीं पा रही थी.. सोच सोच में 15 मिनट बीत चुके और शीना की चूत ठंडी होने का नाम नहीं ले रही थी.. जब उसे आश्वासन हुआ कि स्नेहा सो गयी है , शीना धीरे से उठके बाथरूम की तरफ बढ़ी और तेज़ी से दरवाज़े को पटक दिया. बाथरूम में घुसते ही शीना ने अपने कपड़े उतार फेंके और जाके शवर के नीचे खड़ी हो गयी इस उम्मीद से शायद पानी उसकी चूत को ठंडा कर सके.. लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ, शवर बंद करके शीना कोने में बने एक स्लॅब पे बैठ गयी और अपनी चूत में उंगली करने लगी




"अहहहहाहा.. भाई फक मी अहहहः..... उम्म्म अहहाहा यस रिकी भाई उफफफ्फ़ अहहहाहा, लव मी भाई लव मी अहहहहा उम्म्म्मम.... फास्टर रिकी भाई, फास्टर अहहहहा" शीना होश खोते खोते चिल्लाने लगी और अपनी उंगली तेज़ी से चूत में अंदर बाहर करने लगी





स्नेहा ने जब देखा के शीना अंदर गयी है, तब वो भी अपने बिस्तर से उठी और बाथरूम के बाहर पहुँची, दरवाज़ा खुला देख उसे खुशी हुई और वो अंदर झाँकने लगी.. अंदर का नज़ारा देख उसे उसकी कामयाबी दिखाई दी.. शीना रिकी के नाम से अपनी चूत मसल रही थी और उसकी आँखें आनंद में बंद थी.. स्नेहा वहीं खड़ी रही और अपनी चूत को हल्के से मसल्ने लगी...




"अहहहाहा भाई यस अहहहाआइ एम कुमिंग अहाहहाअ उफफफफ्फ़......" कहके शीना झड़ने लगी और उसका आनंद उसके चेहरे पे सॉफ दिख रहा था, पसीने और पानी से उसका भीगा हुआ बदन स्नेहा को उत्तेजित कर रहा था.. स्नेहा शीना के बदन पे आँखें गढ़ाए अपनी चूत को धीरे धीरे सहला ही रही थी के शीना ने जैसे ही आँखें खोली सामने स्नेहा को देख उसका दिमाग़ काम करना बंद हो गया.. भाभी और ननद एक दूसरे के सामने एक दम नंगी, दोनो अपने अपने भाइयों के नाम से चूत मसल्ति हुई.. शीना को यकीन था कि स्नेहा ने ज़रूर उसकी हरकत देख ली है, स्नेहा ने जब देखा के शीना की आँखें खुल गयी है तब स्नेहा ने हल्की सी एक हरामी वाली स्माइल शीना को पास की, जैसे के उसे कहना चाहती हो, मैने सब देख लिया है मेरी ननद रानी... खैर, स्नेहा वहाँ से मूड के वापस अपनी जगह पे सोने चली गयी






शीना को अंदर ही अंदर काफ़ी डर लग रहा था, अगर स्नेहा ने उसको छूट रगड़ते हुए देखा होता तो बात अलग थी, लेकिन रिकी के नाम से.. "ऊफ्फ, यह मैने क्या कर लिया यार.." शीना ने खुद से कहा और काफ़ी देर तक अंदर बैठी रही और सोचती रही के वो बाहर कैसे जाए... करीब आधा घंटा हुआ था शीना को अंदर लेकिन वो अब तक बाहर आने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.. धीरे से उसने कपड़े पहने और एक एक कदम लेके वो बाहर आ रही थी, हर एक कदम के साथ उसके दिल की धड़कन तेज़ होती जाती.. आख़िर कर जब वो बाथरूम के दरवाज़े पे पहुँची, तो सामने स्नेहा को ऐसे देख उसके दिमाग़ की धज्जियाँ सी उड़ गयी





जब स्नेहा को महसूस हुआ के सामने कोई खड़ा है, स्नेहा ने अपनी आँखें खोली और अपनी चूत रगड़ते हुए ही बोली




"आओ ना ननद जी अहहहहा.... आ जाओ मेरे पास..."
 
"यह विक्रम कहाँ चला गया है, कल रात को भी नहीं दिखा, अभी भी कहीं नहीं दिख रहा.." सुहासनी ने अमर से पूछा जब वो दोनो घर के बॅकयार्ड में बैठे सुबह कीठंडी धूप का आनंद ले रहे थे.. अभी अमर कुछ कहता उससे पहले विक्रम का कॉल ही आ गया उसको




"अरे बेटे कहाँ हो, इधर माँ पूछ रही है और बिन बताए यूँ अचानक" अमर ने फोन उठाते कहा




"बीसीसीआइ के बाप का फोन आया था पापा, इसलिए अचानक जाना पड़ा मुझे पापा.. एलेक्षन्स के चलते इस साल के कुछ मॅच अबू धाबी में होंगे, अब अगर यहाँ से ऑपरेट करना है तो

यहाँ के बुक्कीस से भी सेट्टिंग करना पड़ेगा.. इसलिए कुछ ज़्यादा वक़्त लगेगा इधर, मेरे साथ हमारे नेटवर्क के कुछ आदमी आए हैं ताकि बात चीत करने में आसानी हो, और बीसीसीआइ के सेक्रेटरी भी हैं.." विक्रम ने जवाब में कहा




"ठीक है बेटे, कुछ दिक्कत हो तो कॉल करके बताना... चलो बाइ.." कहके अमर ने कॉल रखा और जैसे ही सुहासनी को कुछ बताता, तभी पीछे से किसी की मधुर आवाज़ उसके कानो में पड़ी




"गुड मॉर्निंग ताऊ जी....."




आवाज़ सुनते ही जैसे अमर के रग रग में एक लहर से दौड़ गयी.... पीछे मूड के उसने कहा





"ज्योति बेटे...कैसी है मेरी गुड़िया".. कहके उसने अपने बाहें फेलाइ और ज्योति आके उसके गले लग गयी..





"व्हाट आ प्लेज़ेंट सर्प्राइज़.. कैसी हो बेटी.." अमर ने उसका माथा चूम के कहा और उसे अपने साथ वाली चेअर पे बिठा दिया





"मैं ठीक हूँ ताऊ जी, लेकिन आप सुबह सुबह ताई जी के साथ चाइ के मज़े.. हाउ रोमॅंटिक हाँ" ज्योति ने सुहासनी को चिढ़ाने के लिए कहा





"उफ्फ यह लड़की, छोड़ो यह सब, बताओ कैसी हो.. और पढ़ाई कैसी चल रही है.." सुहासनी को ज्योति और शीना एक समान थी, लेकिन अमर के दिल में ज्योति और शीना की तुलना होती थी, ज्योति थोड़ी ज़्यादा प्यारी थी उसे, शायद वो उससे दूर रहती थी तभी...






ज्योति राइचंद... अमर के छोटे भाई की एक लौति बेटी, ज्योति अभी मास्टर्स कर रही थी, दिमाग़ से बिल्कुल रिकी जैसी, लेकिन स्वाभाव बिल्कुल रिकी से अलग.. जहाँ रिकी एक ठहरे हुए पानी जैसा था, ज्योति एक बहते झरने सी थी.. पूरा दिन दोस्तों के साथ घूमना फिरना, बातें करते रहना, मोबाइल इंटरनेट और ना जाने क्या क्या... कोई भी टॉपिक, कोई भी डिबेट या आर्ग्युमेंट, ज्योति हमेशा डिसकस करने में लग जाती, अपने कॉलेज ग्रूप की लीडर जो थी.. शायद दिमाग़ और पैसा, दोनो का इस्तेमाल करना जानती थी, तभी तो अपने शहेर के एसीपी के लौन्डे को अपनी उंगलियों पे नचाती थी.. दिखने में शीना से कहीं ज़्यादा सुंदर, तीखे नें नक्श, हल्की भूरी आँखें, लंबे काले बाल.. ज्योति ने अपना ध्यान काफ़ी रखा हुआ था, शहेर में रहके जहाँ शीना को शहेर की हवा लगी हुई थी, वहीं ज्योति छोटे से शहेर में रहके बिल्कुल एक नॅचुरल ब्यूटी थी.. ज्योति की बस एक कमज़ोरी थी, जो हमें आगे देखने को मिल जाएगी













"पढ़ाई ठीक चल रही है ताई जी, नेक्स्ट मंत प्रॉजेक्ट सबमिशन और फिर फाइनल एग्ज़ॅम्स..." ज्योति ने जवाब में कहा





"तुम्हारा बाप कहाँ है, बाहर से तो नहीं चला गया डर के..हाहहः" अमर ने ठहाका लगा के कहा





"हम यहाँ है भैया.... ज़रा इधर भी देखिए.." अमर के भाई राजवीर ने पीछे से जवाब दिया
 
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