hotaks444
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रॉनी.. वैसे पूरा नाम तो रोनक है, लेकिन यहाँ आके स्टड बन गया है इसलिए रोनक का रॉनी.. रॉनी हमारे कॉलेज फुटबॉल टीम का कॅप्टन है, अब कॅप्टन है तो लड़कियों के नज़दीक आना तो बनता ही है, पर इसकी ख़ास बात यह है कि किसी भी लड़की को आस पास नहीं भटकने देता, लड़कियों के मामले में इसका अपना टेस्ट है, अपना क्लास है
"अबे हां बेन्चोद, कंधे शरीर से अलग कर देगा क्या.." मैने रॉनी को दूर करते हुए कहा
"भाई, मज़ाक नहीं कर, अगर कल नहीं जीते तो इज़्ज़त की माँ तो चुदेगि ही, लेकिन साथ ही स्वीटी भी दूर होगी" रॉनी ने टेन्षन में आके कहा
"स्वीटी , उसकी वजह से खेलनी है क्या गेम.." मैने उसके हाथ से बॉल छीन के कहा और सब लोग अपनी अपनी किट लेके तैयार होने लगे..
"लेट'स स्टार्ट.." रॉनी ने चिल्ला के कहा और हम ने अपना फुटबॉल का गेम खेलना शुरू किया.. करीब 90 मिनट की गेम में तीन गोल मिस हुए, लेकिन उसमे भी कोई प्राब्लम नहीं हुई मुझे
"कोई बात नहीं भाई, गोल कीपर ने रोके ना, किक बढ़िया लग रही है हम सब की.. कल सेम खेलना है ओके.." रॉनी ने प्रॅक्टीस ख़तम होते हुए सब को जूस देते हुए कहा
"सन्नी, कल सुबह 7 बजे.. और 7 बजे मीन्स 7 बजे ही.. " रॉनी ने वॉर्निंग देते हुए कहा
"7 बजे उठ जाउन्गा मैं.." मैने जवाब दिया
"अबे भोसड़ी के, 7 बजे पहुँचना है.. तो तू 6 बजे उठना, तेरे घर के पास ही है ग्राउंड, मैं पिक करने आउन्गा तुझे.." रॉनी ने कहा और मैने सिर्फ़ थंब्स अप करके हां में जवाब दिया
फ्राइडे.. जुम्मा, वॉरली के पास आज काफ़ी भीड़ थी, अभी शाम के 5 ही बजे थे, लेकिन यह रोज़ का नज़ारा था इधर.. भीड़ होती थी हाजी अली की दरगाह में जाने वाले लोगों की, कभी कभी उस भीढ़ में मैं भी शामिल हो जाता था.. प्लीज़ नहीं, इससे मेरी रिलिजन के बारे में बिल्कुल नहीं सोचना.. मैं चर्च भी जाता हूँ, मैं गुरुद्वारा भी जाता हूँ, मैं मंदिर भी जाता हूँ और मैं मस्जिद भी जाता हूँ.. हां यह बात अलग है कि इसे मेरे सभी दोस्त, या जितने भी दोस्त हैं, पब्लिसिटी स्टंट समझते थे, पता नहीं कैसे लॉजिक से, लेकिन मुझे कभी इस बात में उनकी परवाह नहीं थी.. इसलिए मुझे हमेशा ही यहाँ भी अकेले आना पड़ता था.. हाजी अली की दरगाह समंदर के बीचों बीच बनी हुई है, वहाँ जाने के लिए बाहर अपनी गाड़ी रोक के वहाँ से पैदल एक थोड़ा सा छोटा, लेकिन बेहद मज़बूत रोड बना हुआ है, वहाँ से गुज़रना पड़ता है अंदर जाने के लिए.. मैं गाड़ी लॉक करके अंदर जाने लगा और चलते चलते ही अपने सर पे रुमाल बाँधने लगा.. मैं जब भी किसी भी धर्म स्थल पे जाता, कुछ समझ नहीं आता कि क्या प्रार्थना करूँ, क्यूँ कि वैसे देखा जाए तो मेरे पास सब कुछ था और देखा जाए तो कुछ भी नहीं.. इसलिए बस हमेशा ऐसी जगह पे जाके मैं मन ही मन बस एक लाइन कहता
"प्लीज़.. हम सब को खुश रखें.."
उस दिन भी यही हुआ, मैने अंदर जाके चादर चढ़ाई और थोड़ी देर पीछे किनारे पे जाके बैठ के डूबते सूरज को देखने लगा
"बच्चा, यहाँ नहीं बैठो..." पीछे से एक चाचा ने आवाज़ दी जिसे सुन मैं अपने ध्यान से बाहर आया और उनसे मुस्कुरा के बाहर जाने लगा
काफ़ी लोग गाड़ियों में भी आए हुए थे आज, वैसे गाड़ियाँ थोड़ी कम रहती हैं जिससे पार्किंग में दिक्कत नहीं होती, लेकिन आज गाड़ियों की भीड़ काफ़ी थी.. आज कुछ अछा नहीं लग रहा था, दिल में एक अशांति सी थी, पता नहीं क्यूँ बस मूड ठीक नहीं था, कुछ दिन कहीं अकेले रहने चला जाउ, बार बार दिल यह कह रहा था, लेकिन फिर दूसरे कोने से तुरंत आवाज़ आती, भाई , अभी तो अकेला ही है..
"क्या करूँ.. कहाँ जाउ, गोआ.. ना, सेप्टेंबर में भीड़ होगी... केरला, ना, बहुत ज़्यादा अकेला होगा.. तो फिर.." मैं खुद से बातें करते करते गाड़ी में बैठ गया और स्टार्ट का सेल मारा ही था कि अचानक "खाटततटतत्त...." की आवाज़ आई
"अबे बेन्चोद..होश में आ, " मैने खुद से कहा और देखा तो गाड़ी गियर में होने की वजह से आगे खड़ी नयी चमचमाती बीएमडब्ल्यू 7 सीरीस को ठुक गयी थी..
"बीएमडब्ल्यू 7 सीरीस.. कितना नुकसान होगा, भर दूँगा.. लेकिन फिर भी नहीं माना तो.." मैं अभी अपने ख़यालों में था ही के उसमे से एक 7 फुट लंबा आदमी, एक दम गोरा चिट्टा, चेहरा इतना लाल था मानो ऐसा लग रहा था कि डाइरेक्ट किसी का खून पीके आया था
"टक टक..." मेरी गाड़ी के शीशे पे दस्तक देके मुझे बाहर निकलने को कहा
"फेववव... चलो.." मैने खुद से धीरे से कहा और बाहर आ गया
"यस सर.." मैने शांति से उसे देखते हुए कहा.. वैसे कद और शरीर की बनावट से लग वो ख़ूँख़ार रहा था, लेकिन चेहरे पे मुस्कान थी, इतनी बड़ी नहीं, हल्की सी
"यार बीएमडब्ल्यू 7 सीरीस चला रहा है, इतना टुच्छा थोड़ी होगा कि नुकसान की वजह से लड़ेगा..चिल" मैने अंदर खुद से कहा और फिर उसके जवाब का वेट करने लगा
"तुम्हारा नाम क्या है.." उसने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा
"जी.." मैने थोड़ी अजीब शकल बना के कहा
"नाम नाम.. इंग्लीश में, व्हाट युवर नेम ईज़.."
"सन्नी.." मैने हाथ आगे बढ़ा के कहा
"सन्नी..... आगे.."
"बस सर, आखरी नाम से फरक नहीं पड़ेगा, सन्नी ख़ान हूँ या सन्नी डसूज़ा या सन्नी गुप्ता.. नुकसान तो मैं ही भर के दूँगा आपको.." मैं अभी भी सोच रहा था कि क्या कहूँ इसके अलावा
"रूको.." उसने मुझे कहा और अपनी जेब से डाइयरी निकाली और कुछ लिखने लगा
"सर, नाम लिखने की नो नीड, मैं आपका नुकसान भर दूँगा.." मैने उसकी डाइयरी की तरफ इशारा करके कहा
"बहुत पैसे वाले हो जो बार बार नुकसान भरने की बात कर रहे हो.." उसने कुछ लिख के डाइयरी फिर अपनी पठानी की राइट पॉकेट में डाल दी
"पैसा ही तो है मेरे पास.." मैने निराशा भरी आवाज़ में कहा और नीचे देखने लगा
"बंदे को बाबा कहते हैं.. बाबा ख़ान.." उसने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा
"ओके.." मैने सिर्फ़ इतना कहा और उससे हाथ मिला लिया
"कहाँ रहते हो.." उसने फिर पूछा
"सांताक्रूज़ ईस्ट.."
"अबे हां बेन्चोद, कंधे शरीर से अलग कर देगा क्या.." मैने रॉनी को दूर करते हुए कहा
"भाई, मज़ाक नहीं कर, अगर कल नहीं जीते तो इज़्ज़त की माँ तो चुदेगि ही, लेकिन साथ ही स्वीटी भी दूर होगी" रॉनी ने टेन्षन में आके कहा
"स्वीटी , उसकी वजह से खेलनी है क्या गेम.." मैने उसके हाथ से बॉल छीन के कहा और सब लोग अपनी अपनी किट लेके तैयार होने लगे..
"लेट'स स्टार्ट.." रॉनी ने चिल्ला के कहा और हम ने अपना फुटबॉल का गेम खेलना शुरू किया.. करीब 90 मिनट की गेम में तीन गोल मिस हुए, लेकिन उसमे भी कोई प्राब्लम नहीं हुई मुझे
"कोई बात नहीं भाई, गोल कीपर ने रोके ना, किक बढ़िया लग रही है हम सब की.. कल सेम खेलना है ओके.." रॉनी ने प्रॅक्टीस ख़तम होते हुए सब को जूस देते हुए कहा
"सन्नी, कल सुबह 7 बजे.. और 7 बजे मीन्स 7 बजे ही.. " रॉनी ने वॉर्निंग देते हुए कहा
"7 बजे उठ जाउन्गा मैं.." मैने जवाब दिया
"अबे भोसड़ी के, 7 बजे पहुँचना है.. तो तू 6 बजे उठना, तेरे घर के पास ही है ग्राउंड, मैं पिक करने आउन्गा तुझे.." रॉनी ने कहा और मैने सिर्फ़ थंब्स अप करके हां में जवाब दिया
फ्राइडे.. जुम्मा, वॉरली के पास आज काफ़ी भीड़ थी, अभी शाम के 5 ही बजे थे, लेकिन यह रोज़ का नज़ारा था इधर.. भीड़ होती थी हाजी अली की दरगाह में जाने वाले लोगों की, कभी कभी उस भीढ़ में मैं भी शामिल हो जाता था.. प्लीज़ नहीं, इससे मेरी रिलिजन के बारे में बिल्कुल नहीं सोचना.. मैं चर्च भी जाता हूँ, मैं गुरुद्वारा भी जाता हूँ, मैं मंदिर भी जाता हूँ और मैं मस्जिद भी जाता हूँ.. हां यह बात अलग है कि इसे मेरे सभी दोस्त, या जितने भी दोस्त हैं, पब्लिसिटी स्टंट समझते थे, पता नहीं कैसे लॉजिक से, लेकिन मुझे कभी इस बात में उनकी परवाह नहीं थी.. इसलिए मुझे हमेशा ही यहाँ भी अकेले आना पड़ता था.. हाजी अली की दरगाह समंदर के बीचों बीच बनी हुई है, वहाँ जाने के लिए बाहर अपनी गाड़ी रोक के वहाँ से पैदल एक थोड़ा सा छोटा, लेकिन बेहद मज़बूत रोड बना हुआ है, वहाँ से गुज़रना पड़ता है अंदर जाने के लिए.. मैं गाड़ी लॉक करके अंदर जाने लगा और चलते चलते ही अपने सर पे रुमाल बाँधने लगा.. मैं जब भी किसी भी धर्म स्थल पे जाता, कुछ समझ नहीं आता कि क्या प्रार्थना करूँ, क्यूँ कि वैसे देखा जाए तो मेरे पास सब कुछ था और देखा जाए तो कुछ भी नहीं.. इसलिए बस हमेशा ऐसी जगह पे जाके मैं मन ही मन बस एक लाइन कहता
"प्लीज़.. हम सब को खुश रखें.."
उस दिन भी यही हुआ, मैने अंदर जाके चादर चढ़ाई और थोड़ी देर पीछे किनारे पे जाके बैठ के डूबते सूरज को देखने लगा
"बच्चा, यहाँ नहीं बैठो..." पीछे से एक चाचा ने आवाज़ दी जिसे सुन मैं अपने ध्यान से बाहर आया और उनसे मुस्कुरा के बाहर जाने लगा
काफ़ी लोग गाड़ियों में भी आए हुए थे आज, वैसे गाड़ियाँ थोड़ी कम रहती हैं जिससे पार्किंग में दिक्कत नहीं होती, लेकिन आज गाड़ियों की भीड़ काफ़ी थी.. आज कुछ अछा नहीं लग रहा था, दिल में एक अशांति सी थी, पता नहीं क्यूँ बस मूड ठीक नहीं था, कुछ दिन कहीं अकेले रहने चला जाउ, बार बार दिल यह कह रहा था, लेकिन फिर दूसरे कोने से तुरंत आवाज़ आती, भाई , अभी तो अकेला ही है..
"क्या करूँ.. कहाँ जाउ, गोआ.. ना, सेप्टेंबर में भीड़ होगी... केरला, ना, बहुत ज़्यादा अकेला होगा.. तो फिर.." मैं खुद से बातें करते करते गाड़ी में बैठ गया और स्टार्ट का सेल मारा ही था कि अचानक "खाटततटतत्त...." की आवाज़ आई
"अबे बेन्चोद..होश में आ, " मैने खुद से कहा और देखा तो गाड़ी गियर में होने की वजह से आगे खड़ी नयी चमचमाती बीएमडब्ल्यू 7 सीरीस को ठुक गयी थी..
"बीएमडब्ल्यू 7 सीरीस.. कितना नुकसान होगा, भर दूँगा.. लेकिन फिर भी नहीं माना तो.." मैं अभी अपने ख़यालों में था ही के उसमे से एक 7 फुट लंबा आदमी, एक दम गोरा चिट्टा, चेहरा इतना लाल था मानो ऐसा लग रहा था कि डाइरेक्ट किसी का खून पीके आया था
"टक टक..." मेरी गाड़ी के शीशे पे दस्तक देके मुझे बाहर निकलने को कहा
"फेववव... चलो.." मैने खुद से धीरे से कहा और बाहर आ गया
"यस सर.." मैने शांति से उसे देखते हुए कहा.. वैसे कद और शरीर की बनावट से लग वो ख़ूँख़ार रहा था, लेकिन चेहरे पे मुस्कान थी, इतनी बड़ी नहीं, हल्की सी
"यार बीएमडब्ल्यू 7 सीरीस चला रहा है, इतना टुच्छा थोड़ी होगा कि नुकसान की वजह से लड़ेगा..चिल" मैने अंदर खुद से कहा और फिर उसके जवाब का वेट करने लगा
"तुम्हारा नाम क्या है.." उसने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा
"जी.." मैने थोड़ी अजीब शकल बना के कहा
"नाम नाम.. इंग्लीश में, व्हाट युवर नेम ईज़.."
"सन्नी.." मैने हाथ आगे बढ़ा के कहा
"सन्नी..... आगे.."
"बस सर, आखरी नाम से फरक नहीं पड़ेगा, सन्नी ख़ान हूँ या सन्नी डसूज़ा या सन्नी गुप्ता.. नुकसान तो मैं ही भर के दूँगा आपको.." मैं अभी भी सोच रहा था कि क्या कहूँ इसके अलावा
"रूको.." उसने मुझे कहा और अपनी जेब से डाइयरी निकाली और कुछ लिखने लगा
"सर, नाम लिखने की नो नीड, मैं आपका नुकसान भर दूँगा.." मैने उसकी डाइयरी की तरफ इशारा करके कहा
"बहुत पैसे वाले हो जो बार बार नुकसान भरने की बात कर रहे हो.." उसने कुछ लिख के डाइयरी फिर अपनी पठानी की राइट पॉकेट में डाल दी
"पैसा ही तो है मेरे पास.." मैने निराशा भरी आवाज़ में कहा और नीचे देखने लगा
"बंदे को बाबा कहते हैं.. बाबा ख़ान.." उसने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा
"ओके.." मैने सिर्फ़ इतना कहा और उससे हाथ मिला लिया
"कहाँ रहते हो.." उसने फिर पूछा
"सांताक्रूज़ ईस्ट.."