hotaks444
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कुमुद होटेल के सीनियर स्टाफ में थी. होटेल में करीब 10 साल से काम कर रही थी. उसने भी हाउस कीपिंग स्टाफ जाय्न किया था और आज हाउस कीपिंग आंड कस्टमर लियासों डिपार्टमेंट की मॅनेजर थी. होटेल की हाउस कीपिंग और कस्टमर सॅटिस्फॅक्षन का ध्यान रखना उसका काम था. कस्टमर “सॅटिस्फॅक्षन”.
एक दिन अचानक ऋतु को घर से फोन आया. फोन ऋतु की मा का था. उसके पापा का आक्सिडेंट हुआ था और वो हॉस्पिटल में भरती थे. ऋतु के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. उसने कुमुद से बात की और फॉरन छुट्टी लेकर पठानकोट के लिए रवाना हो गयी. ऋतु के पापा को एक कार ने टक्कर मारी थी. टक्कर किसी सुनसान इलाक़े में हुई थी और टक्कर मारने वाला गाड़ी भगा ले गया. राह चलते कुछ लोगों ने उसके घर पे सूचित किया. अगले दिन जब ऋतु पठानकोट पहुचि तो सीधा हॉस्पिटल गयी. उसकी मया का रो रो के बुरा हाल था. ऋतु भी रोती हुई मा के गले लग कर रोने लगी. डॉक्टर्स से बात की तो पता चला की उसके पापा अब ख़तरे से बाहर हैं लेकिन आक्सिडेंट की वजह से उनके टॅंगो में सेन्सेशन ख़तम हो गयी हैं. इलाज के लिए ऑल इंडिया इन्स्टिट्यूट ऑफ मेडिकल ससईएनए (आयिम्स) ले जाना पड़ेगा. एक हफ्ते के बाद ऋतु अपने माता पिता को लेके दिल्ली आ गयी.
उसने अपने पापा को आयिम्स में दिखाया तो डॉक्टर ने काई तरह के टेस्ट्स वगेरह किए. उन टेस्ट्स के आधार पे डॉक्टर की राई थी की उनका इलाज लंबा होगा लेकिन वो दोबारा पहले जैसे चल फिर सकेंगे. ऋतु को इस बात से बहुत खुशी हुई. लेकिन मान ही मान यह दर सताने लगा की इलाज के लिए पैसो का इंतेज़ां कैसे होगा. उसकी छोटी सी तनख़्वा से वैसे ही हाथ तंग था.
एक दिन ऋतु मायूस होकर अपने काम पे लगी हुई थी की तभी कुमुद ने आकर उससे पूछा
“ऋतु .. अब तुम्हारे पापा की तबीयत कैसी हैं”
“हेलो मेम… जी इलाज चल रहा हैं आयिम्स में”
“ओक.. वहाँ के डॉक्टर्स बहुत काबिल हैं.. डॉन’ट वरी सब ठीक होगा.”
“ऋतु अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो हिचकिचाना नही. आइ आम हियर फॉर यू.”
“मेम मैं यह सोच रही थी की अगर कुछ लोन मिल जाता तो बहुत अच्छा रहता. आइ नो मैने आपके पहले के भी पैसे चुकाने हैं लेकिन यह लोन मेरे परिवार के लिए बहुत ज़रूरी हैं”
“देखो ऋतु.. होटेल की कोई पॉलिसी नही हैं एंप्लायी लोन्स की सो मैं तुम्हे झूठी उमीदें नही दे सकती. मेरे पास जो थोड़ा बहुत था वो मैं पहले ही तुम्हे दे चुकी हूँ”
“आइ नो मेम… आप ना होती तो ना जाने मेरा क्या होता.”
“ऋतु एक तरीका हैं जिससे की तुम्हारी परेशानी सॉल्व हो सकती हैं”
“वो कैसे मेम”
“इस होटेल में बहुत बड़े बड़े लोग आते हैं. बिज़्नेस्मेन, डिप्लोमॅट्स, आक्टर्स, पॉलिटिशियन्स वगेरह… एज दा कस्टमर लियासों मॅनेजर यह मेरी ड्यूटी हैं की मैं कस्टमर सॅटिस्फॅक्षंका ध्यान रखूं. हुमारे क्लाइंट्स दिन भर अपना काम करके शाम को जब वापस होटेल में आते हैं तो दे नीड टू रिलॅक्स.. उन्हे कोई चाहिए जो उनसे दो बातें कर सके आंड उनके साथ वक़्त स्पेंड करे. उनका दिल बहला सके. तुम समझ रही हो ना मैं क्या कह रही हूँ.”
“जी मेम” ऋतु अच्छिी तरह समझ रही थी की कुमुद क्या कह रही हैं.
“तुम स्मार्ट हो इंटेलिजेंट हो ब्यूटिफुल हो. तुम इस काम को बखूबी कर सकती हो.”
“जी मैं?”
“और नही तो क्या. तुम इस बारे में सोचना ज़रूर. इस काम के आछे ख़ासे पैसे भी मिलेंगे. तुम्हारी ज़िंदगी के सारे गीले शिखवे दूर हो जाएँगे. तुम्हारे पापा का आछे से अछा इलाज हो सकेगा. तुम्हे कभी पैसो की तंगी का सामना नही करना पड़ेगा. कोई जल्दी नही हैं आराम से सोच लो और फिर जवाब दो.”
एक दिन अचानक ऋतु को घर से फोन आया. फोन ऋतु की मा का था. उसके पापा का आक्सिडेंट हुआ था और वो हॉस्पिटल में भरती थे. ऋतु के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. उसने कुमुद से बात की और फॉरन छुट्टी लेकर पठानकोट के लिए रवाना हो गयी. ऋतु के पापा को एक कार ने टक्कर मारी थी. टक्कर किसी सुनसान इलाक़े में हुई थी और टक्कर मारने वाला गाड़ी भगा ले गया. राह चलते कुछ लोगों ने उसके घर पे सूचित किया. अगले दिन जब ऋतु पठानकोट पहुचि तो सीधा हॉस्पिटल गयी. उसकी मया का रो रो के बुरा हाल था. ऋतु भी रोती हुई मा के गले लग कर रोने लगी. डॉक्टर्स से बात की तो पता चला की उसके पापा अब ख़तरे से बाहर हैं लेकिन आक्सिडेंट की वजह से उनके टॅंगो में सेन्सेशन ख़तम हो गयी हैं. इलाज के लिए ऑल इंडिया इन्स्टिट्यूट ऑफ मेडिकल ससईएनए (आयिम्स) ले जाना पड़ेगा. एक हफ्ते के बाद ऋतु अपने माता पिता को लेके दिल्ली आ गयी.
उसने अपने पापा को आयिम्स में दिखाया तो डॉक्टर ने काई तरह के टेस्ट्स वगेरह किए. उन टेस्ट्स के आधार पे डॉक्टर की राई थी की उनका इलाज लंबा होगा लेकिन वो दोबारा पहले जैसे चल फिर सकेंगे. ऋतु को इस बात से बहुत खुशी हुई. लेकिन मान ही मान यह दर सताने लगा की इलाज के लिए पैसो का इंतेज़ां कैसे होगा. उसकी छोटी सी तनख़्वा से वैसे ही हाथ तंग था.
एक दिन ऋतु मायूस होकर अपने काम पे लगी हुई थी की तभी कुमुद ने आकर उससे पूछा
“ऋतु .. अब तुम्हारे पापा की तबीयत कैसी हैं”
“हेलो मेम… जी इलाज चल रहा हैं आयिम्स में”
“ओक.. वहाँ के डॉक्टर्स बहुत काबिल हैं.. डॉन’ट वरी सब ठीक होगा.”
“ऋतु अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो हिचकिचाना नही. आइ आम हियर फॉर यू.”
“मेम मैं यह सोच रही थी की अगर कुछ लोन मिल जाता तो बहुत अच्छा रहता. आइ नो मैने आपके पहले के भी पैसे चुकाने हैं लेकिन यह लोन मेरे परिवार के लिए बहुत ज़रूरी हैं”
“देखो ऋतु.. होटेल की कोई पॉलिसी नही हैं एंप्लायी लोन्स की सो मैं तुम्हे झूठी उमीदें नही दे सकती. मेरे पास जो थोड़ा बहुत था वो मैं पहले ही तुम्हे दे चुकी हूँ”
“आइ नो मेम… आप ना होती तो ना जाने मेरा क्या होता.”
“ऋतु एक तरीका हैं जिससे की तुम्हारी परेशानी सॉल्व हो सकती हैं”
“वो कैसे मेम”
“इस होटेल में बहुत बड़े बड़े लोग आते हैं. बिज़्नेस्मेन, डिप्लोमॅट्स, आक्टर्स, पॉलिटिशियन्स वगेरह… एज दा कस्टमर लियासों मॅनेजर यह मेरी ड्यूटी हैं की मैं कस्टमर सॅटिस्फॅक्षंका ध्यान रखूं. हुमारे क्लाइंट्स दिन भर अपना काम करके शाम को जब वापस होटेल में आते हैं तो दे नीड टू रिलॅक्स.. उन्हे कोई चाहिए जो उनसे दो बातें कर सके आंड उनके साथ वक़्त स्पेंड करे. उनका दिल बहला सके. तुम समझ रही हो ना मैं क्या कह रही हूँ.”
“जी मेम” ऋतु अच्छिी तरह समझ रही थी की कुमुद क्या कह रही हैं.
“तुम स्मार्ट हो इंटेलिजेंट हो ब्यूटिफुल हो. तुम इस काम को बखूबी कर सकती हो.”
“जी मैं?”
“और नही तो क्या. तुम इस बारे में सोचना ज़रूर. इस काम के आछे ख़ासे पैसे भी मिलेंगे. तुम्हारी ज़िंदगी के सारे गीले शिखवे दूर हो जाएँगे. तुम्हारे पापा का आछे से अछा इलाज हो सकेगा. तुम्हे कभी पैसो की तंगी का सामना नही करना पड़ेगा. कोई जल्दी नही हैं आराम से सोच लो और फिर जवाब दो.”