bahan sex kahani ऋतू दीदी - Page 7 - SexBaba
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bahan sex kahani ऋतू दीदी

जीजाजी उठ बैठे मगर निरु ने फिर सीने पर धक्का मार उनको लेटा दिया और जल्दी से जीजाजी की अंडरवियर को नीचे खींच का उनका नरम पड़ा लण्ड पकड़ लिया और रगडने लगी। मेरे पसीने छुटने लगे थे की मैं निरु का कौनसा रूप देख रहा था। जीजाजी निरु के सर पर हाथ लगा कर उसको दूर करने की कोशिश की। निरु ने लण्ड छोड़ा और मेरी तरफ नजरे कर बुरी तरह रोते हुए देखा।

नीरु: "यही देखना था तुम्हे, अभी ख़ुशी मिली?"

जीजाजी अब उठ गए और निरु से अपना लण्ड छुडाया। और निरु को डाटते हुए कपडे पहनने को बोले और इस तरह की नादनी नहीं करने को बोले। नीरु ने अपना लोअर निकला और नीचे से पैंटी में आ गयी। जीजाजी ने अपनी नजरे दूसरी तरफ कर ली और उसको कपडे पहनने को बोले।

सिर्फ ब्रा और पैंटी में निरु का खूबसूरत सेक्सी बदन मैं देख पा रहा था। बिस्तर पर बैठे बैठे ही निरु ने दूसरी तरफ देख रहे जीजाजी का टीशर्ट पकड़ अपनी तरफ घुमा कर खींच लिया। निरु अब बिस्तर पर नीचे लेटी थी और जीजाजी बैलेंस खो कर निरु पर जा गिरे। जीजाजी फिर सम्भाले और उठने लगे।

थोडा उठे ही थे की उनका टीशर्ट पकडे निरु उन पर झुल गयी और उनको अपनी तरफ रोते हुए जोर लगा कर खिंचा। जीजाजी ने एक जोर का थप्पड़ निरु को लगा दिया। निरु के हाथ से जीजाजी के टीशर्ट की पकड़ छूट गयी और निरु धडाम से बिस्तर पर औंधे मुँह जा गिरि और बिस्तर में मुँह घुसाये सुबकते हुए रोने लगी।

जीजाजी ने आज तक निरु से ऊँची आवाज में बात तक नहीं की थी और आज उसको जोर का थप्पड़ मार दिया था। और उसकी इस हालत का जिम्मेदार सिर्फ मैं था। इतना हंगामा सुनकर ऋतू दीदी आ गए। ऋतू दीदी ने निरु की हालत देखि। ऊपर से आधा खुला ब्रा, नीचे से सिर्फ पैंटी में निरु आधि नंगी होकर बिस्तर पर उलटा लेटी थी। ऋतू दीदी ने एक चादर लेकर निरु पर ढक दिया।

जीजाजी अभी भी दूसरी तरफ देख कर हाफ़ रहे थे। फिर तेजी से कमरे से बाहर चले गए। थोड़ी देर निरु की पीठ पर हाथ फेरने के बाद जब निरु थोड़ा शांत हुयी तो ऋतू दीदी कमरे से बाहर चली गयी। मैं वहाँ इतनी देर से मूर्ति बन कर ही खड़ा था। निरु का आज ऐसा रूप देखा था जिस पर मुझे विश्वास नहीं हुआ।

जीजाजी और ऋतू दीदी बच्चे सहित मेरे घर से चले गए। निरु काफी देर तक ऐसे ही बिस्तर पर पड़ी रोती रही। मेरी उसके पास जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। वो खड़ी होकर उठी और अपने कपडे पहन कर बैग पैक करने लगी। नीरु मुझे छोड़ कर अपने मायके चली गयी। निरु तो वापिस नहीं आई पर थोड़े दिन बाद तलाक का नोटिस जरूर आ गया। घर में मेरे मम्मी पाप ने मुझे बहुत डाटा। उन्होंने निरु को मनाने की कोशिश भी की थी पर निरु मेरे साथ अब और नहीं रहना चाहती थी।

फिर मुझे पता चला की निरु मेरे शहर में लौट आई हैं क्यों की उसकी जॉब तो यहीं पर थी। वो रेंट पर कहीं अलग रह रही थी। वो मेरा फ़ोन भी नहीं उठा रही थी। दूसरे फ़ोन से करता तो मेरी आवाज सुनकर फ़ोन रख देती। एक दिन हार कर मैं उसके ऑफिस के बाहर शाम को पहुच गया। मुझे देख उसने अपना रास्ता बदला पर मैंने उसको रोक ही दिया। वह कुछ लोग हमें देखने लगे। वहाँ तमाशा बनता इसलिए निरु मेरे साथ चलने लगी। हम लोग अब चलते हुए बात करने लगे।

प्रशांत: "आई ऍम सोर्री, सब मेरी ही गलती है। अब मैं तुम पर कभी शक़ नहीं करुँगा, तुम मेरी ज़िन्दगी में फिर लौट आओ"

नीरु: "वो तो अब कभी नहीं हो सकता। तुम्हारी वजह से उस दिन के बाद से जीजाजी ने मुझसे बात करना तक बंद कर दिया हैं"

प्रशांत: "मैं जीजाजी को सब सच बता दूंगा और उनसे माफ़ी मांग लुँगा और उनको मना लुँगा की वो तुमसे फिर बात करने लगे"
 
नीरु: "और अपनी आदत का क्या करोगे? वो तो कभी सुधरने वाली नहीं है। इतना समझाया फिर भी शक़ करते रह। अब क्या लगता हैं तुम्हे? मेरे और जीजाजी के बीच कुछ हैं?"

प्रशांत: "अब और शर्मिंदा मत करो। मैं पाँव पकड़कर माफ़ी माँगने को तैयार हूँ। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता। तुम्हारे बिना घर काटने को दौड़ता हैं यार। वापिस लौट आओ"

नीरु आगे बढ़ गयी और चली गयी। मैं लगातार कुछ दिन तक एक फूल लेकर उसका उसके ऑफिस के बाहर इन्तेजार करता और उसको फूल देकर मनाने की कोशिश करता। आखिर इतने दिनों की मेरी म्हणत रंग लायी।

नीरु: "तुम अगर सब कुछ पहले के जैसा कर दो तो मैं मान जाउँगी। तुम पहले जीजाजी को मन लो"

मै ख़ुशी के मारे निरु को गले लगाना चाहता था पर उसने रोक दिया। मुझे पहले जीजाजी को मनाना था।

प्रशांत: "मैं जीजाजी को मना लुँगा, सब पहले जैसा हो जायेगा"

नीरु: "उसके पहले तुम एक सच जान लो। उसके बाद भी तुम्हे लगता हैं की तुम्हे मेरे साथ रहना हैं तो ठीक हैं।"

प्रशांत: "कैसा सच?"

अब निरु ने अपने पिछली कहानी बतानी शुरू की।

जब निरु १४ साल की थी तब ऋतू दीदी और नीरज जीजाजी की शादी हुयी थी। उस टीनएज (कुमार अवस्था) में निरु भी जीजाजी की तरफ आकृस्ट हुयी थी। उसको जीजाजी में हीरो नजर आता था। निरु की कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी पर वो जीजाजी के प्यार में पड़ चुकी थी। मगर जीजाजी बात बात में निरु को "बच्ची हैं", "छोटी हैं" बोलते रहते थे। यह सुनकर निरु को बहुत बुरा लगता था। वो बेसब्री से इन्तेजार करने लगी की कब वो बड़ी होगी और जीजाजी से अपने प्यार का इजहार करेगी।

जिस दिन निरु १८ इयर्स की हुयी वो सुबह तैयार होकर ऋतू दीदी के घर पहुच गयी। दरवजा खुला ही था वो सीधा अन्दर गयी। ड्राइंग रूम खाली था और वो बेडरूम में चली गयी। जीजाजी बिस्तर पर बैठे थे। निरु को वह देखते ही खुश होकर उसको बर्थ डे विश किया। मगर निरु के इरादे कुछ और थे। नीरु ने जीजाजी के सामने ही अपना कुरता निकाल दिया और ब्रा में खड़ी हो गयी। फिर निरु ने जीजाजी को बोला की

"देखो मैं बड़ी हो गयी हूँ"

निरु फिर जीजाजी की तरफ बढ़ी जो सकते में आकर अब तक खड़े हो चुके थे। नीरु जीजाजी के सामने बाहें फैला कर खड़ी हो गयी। तभी जीजाजी ने पहली बार निरु को थप्पड़ मार कर कपडे पहनने को बोला था और कमरे के बाहर चले गए। निरु वही जमीं पर गिर पड़ी और रोने लगी थी। नीरु ने कपडे पहन लिए और बाद में ऋतू दीदी ने निरु को समझाया। निरु को थोड़ा टाइम लगा पर उसको अकल आ गयी की क्या ठीक हैं और क्या गलत है।

जीजाजी तब भी कुछ दिन तक निरु से नाराज रहे थे और बाद में ऋतू दीदी की मदद से रिलेशनशिप नार्मल हुआ। नीरु ने जीजाजी से सॉरी बोला था और आगे से यह गलती न करने की कसम खा ली थी। फिर उनके रिश्ते सामान्य हुये। निरु को भी पता चला की यह उसकी नादनी थी और बचपने की ज़िद थी। फिर निरु समजदार बन गयी। फिर उसकी मेरे साथ शादी हुयी तो उसको पता चला की उसका असली पार्टनर में ही हूँ।

नीरु की यह कहानी सुनकर मेरे भी होश उड़ गए थे। निरु की ज़िन्दगी का जो कभी न भुलने वाला हादसा था वो मेरी वजह से फिर रिपीट हुआ था। मगर सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी की जीजाजी का करैक्टर अच्छा साबित हुआ था। निरु की गलती को मैंने इग्नोर करना ही ठीक सम। क्यों की अब वो समझदार हो चुकी थी और रिश्तो की मर्यादा पता थी।

नीरु: "मैं किसी समय जीजाजी की तरफ अट्रक्टेड थी। वो मेरा बचपना था। पर अब वैसा कुछ नहीं है। मैंने अपने आप को सिर्फ तुम्हे सौंप दिया। तुम जीजाजी पर इस तरह के आरोप लगा रहे थे जब की ऐसा कुछ हैं ही नहीं उनके दिल मे। तुम मेरी अभी भी हेल्प करोगे?"

प्रशांत: "वो तुम्हारा पास्ट था और कम उम्र की छोटी सी भूल थी। मैं तुम्हारी और जीजाजी की दोस्ती फिर से करवा दूंगा"

अगली छुट्टी पर मैं ऋतू दीदी और जीजाजी के घर पहुंच। ऋतू दीदी ने मेरा वेलकम किया। मैने जीजाजी और ऋतू दीदी से माफ़ी मांग ली और कहा की निरु मेरे पास वापिस आने को तैयार हैं पर उसके लिए जीजाजी को निरु को माफ़ करना होगा और फिर से पहले वाले रिलेशन बरकरार रखने होंगे। ऋतू दीदी ने भी जीजाजी से रिक्वेस्ट की टाकी वो मान जाए। जीजाजी ने ऋतू दीदी को कहा की वो मुझसे अकेले में बात करना चाहते है। ऋतू दीदी अन्दर चले गए।

जीजाजी: "तुम्हे मुझ पर शक़ था न की मैं निरु पर बुरी नीयत रखता हूँ और उसका फायदा उठाने की कोशिश करता हूँ?"

प्रशांत: "मैं उसके लिए माफ़ी मांग चुका हूँ, एक बार फिर सॉरी बोलते हूँ। मैं गलत था, मगर अब शक़ नहीं करूँगा"

जीजाजी: "नहीं, तुम सही थे और तुम्हारा शक़ ठीक ही था"

प्रशांत: "आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं, आप अभी भी मुझसे नाराज हो?"
 
जीजाजी: "नहीं मैं सीरियस हूँ। निरु जब मुझसे गले लगती हैं तो सच में मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं भी चाहता हूँ की वो मुझसे बार बार चिपके। वो मुझे सीधा समझती हैं पर मैं हूँ टेढा। मैं उसका सच में फायदा उठाना चाहता हूँ, पर कभी उठा नहीं पाया"

प्रशांत: "यह आप क्या कह रहे हैं?"

जीजाजी: "तुमने सच ही सुना था। निरु के साथ कभी कुछ करने का मौका नहीं मिला वार्ना अब तक उसको चोद चुका होता"

मैन अब सदमे में था। निरु ने जो स्टोरी बतायी उसके हिसाब से जीजाजी अच्छे चरित्र के है। ग़लती सिर्फ निरु ने की थी।

प्रशांत: "निरु ने मुझे बताया था की जब वो १८ बरस की हुयी तो वो खुद आपके सामने तैयार थी, फिर आपने फायदा क्यों नहीं उठाया?"

जीजाजी: "उस दिन पहली बार निरु को अन्दर के कपड़ो में देखकर मैं पागल हो गया था। उसी दिन सोच लिया था की एक बार निरु को चोदना है। मैं तो तैयार था, पर बेडरूम के खुले दरवाजे के बाहर दूर से मुझे ऋतू किचन के दरवाजे पर खड़ी दिख गयी थी। वो हमें ही देख रही थी। अगर उस दिन घर में ऋतू नहीं होती तो मेरे दिल के अरमान उसी दिन पुरे हो जाते"

इसका मतलब यह था की निरु अभी तक जीजाजी को यु ही अच्छा इंसान समझती थी। अन्दर से तो वो जीजाजी भी भेडिया ही था जो निरु को मौका मिलते ही दबोचाना चाहता था।

जीजाजी: "उस वक़्त तो मैंने ऋतू के सामने अच्छा बनते हुए निरु को थपप्पड़ मार दिया। सोचा था की बाद में निरु को अकेले में पकड़ कर चोद दूंगा। मगर ऋतू ने निरु को ऐसी पट्टी पढ़ाई की निरु को अकल आ गयी। फिर मेरी कभी हिम्मत नहीं हुयी आगे बढ़कर निरु को पुछु की मैं उसको चोदना चाहता हूँ"

प्रशांत: "और मैंने जो आपको निरु का नाम लेते हुए ऋतू दीदी को चोदते हुए सुना था वो!"

जीजाजी: "सही सुना तुमने। निरु का नाम लेकर ऋतू को चोदता हूँ और अपने मन को थोड़ी तसल्ली देता हूँ"

प्रशांत: "ऋतू दीदी को यह सब पता हैं? आप निरु का नाम लेकर ऋतू दीदी को चोदते हॉ, ऋतू दीदी इसके लिए कैसे मानी?"

जीजाजी: "बड़ी मुश्किल से मानी ऋतू इसके लिये। मैंने उसको कहा की यह खेल ही तो हैं, फिर जब मैं उसको निरु का नाम लेकर चोदता था तो उसको भी ज्यादा मजा आता था इसलिए हम करते रहते है। ऋतू को भी शायद लगा की मैं निरु की जवानी देखकर बहक सकता हूँ, इसलिए रोले प्ले के लिए मान गयी"

प्रशांत: "तो आपने निरु के साथ भी कुछ किया"

जीजाजी: "अभी तक तो नहीं किया पर करना है। जिस दिन मुझे पता चला की तुमने मेरी बीवी ऋतू को चोदा था उस दिन मैं तुमसे डील करने वाला था। पर मुझे पता था की निरु कभी नहीं मानेगी"

प्रशांत: "तो फिर मेरे घर पर उस दिन जब निरु आपके साथ कुछ करना चाहती थी तो उसको क्यों रोका!"

जीजाजी: "वो तो सिर्फ तुम्हे दिखाने के लिए कर रही थी। उसके मन में मेरे लिए अब कुछ नहीं हैं, यह मुझे पता था"

प्रशांत: "मतलब मेरा आप पर शक़ सही था। मैं फ़ालतू ही निरु पर भी शक़ करता रह। अब मैं आपको एक्सपोज करके रहूँगा"

जीजाजी: "कैसे करोगे? तुम्हारी बात का विश्वास कौन करेगा? मैं निरु को दो बार थप्पड़ मार कर दूर कर चुका हूँ। निरु ने तो तुम्हे यहाँ इसलिए भेजा हैं की तुम मुझे मना पाओ। वो तुम्हारी बात का विश्वास क्यों करेगी?"
 
जीजाजी की बात सही थी। जीजाजी पर शक़ करने की वजह से निरु ने मुझे तक छोड़ दिया था तो वो अब मेरी बात का यक़ीन कभी नहीं करेगी की जीजाजी करेक्टरलेस आदमी है। मैं अब फ़स चुका था। पहले पता होता तो फ़ोन में रिकॉर्डिंग चालू कर देता।

जीजाजी: "अब तुम सोच रहे होगे की मैंने तुम्हे यह सच क्यों बताया? उस दिन गुस्से गुस्से में निरु ने मेरे कपडे खोल कर मेरा लंड पकड़ा था। तुम्हे बता नहीं सकता मुझे कितना मजा आया था। मैं तो आगे बढ़कर निरु को जबरदस्ती चोद नहीं पाऊंगा क्यों की मैं उसका विश्वास हमेशा के लिए खो दूंगा। मगर अब तुम मेरी इसमें मदद करोगे"

प्रशांत: "मैं तुमको एक्सपोज करुँगा, न की मदद करूँगा"

जीजाजी: "जब तक तुम मुझे नहीं मनाओगे तब तक निरु तुम्हारी ज़िन्दगी में वापिस नहीं आएगी। अगर तुम्हे निरु वापिस चाहिए तो एक बार मेरी मदद कर दो ताकी मैं निरु को चोद पाऊं"

प्रशांत: "कमीने इंसान!! मैं तेरे गंदे इरादे कभी पुरे नहीं होने दूंगा"

जीजाजी: "ठीक हैं फिर तुम निरु को भूल जाओ। आज नहीं तो कल मैं किसी तरह निरु को चोद ही लुंगा। अकेलि लड़की हैं, मुझ पर अँधा भरोसा भी करती है। मौका मिलते ही मैं वैसे ही उसको चोद दूंगा। "

प्रशांत: "निरु न सही पर ऋतू दीदी मेरी बात का विश्वास करेगी। मैं उनको तुम्हारी सारी सच्चाई बताऊँगा"

जीजाजी: "कोसिश करके देख लो। तुम्हारी इमेज बिगड चुकी है। तुम्हारा कोई विश्वास नहीं करेगा"

मैने ऋतू दीदी को आवाज लगायी। वो कमरे में वापिस आयी।

प्रशांत: "आपको पता हैं यह कितना कमीना इंसान है। निरु के बारे में क्या सोचता हैं यह जानकार ..."

ऋतू दीदी: "चुप हो जाओ प्रशांत। इतना होने के बाद भी मैंने तुम्हारा कितना सपोर्ट किया और फिर भी तुम वहीं राग अलाप रहे हो!"

ऋतू दीदी फिर से निराश होकर अन्दर कमरे में चले गए।

जीजाजी: "प्रशांत तुम्हे निरु चाहिए या नहीं? चलो एक डील करते है। तुम बस एक बार निरु को चोदने में मेरी मदद करो, निरु फिर हमेशा के लिए तुम्हे मिल जाएगी। वैसे भी तुमने एक बार मेरी बीवी ऋतू को चोदा था याद हैं! अब उसकी भरपायी करने का टाइम आ गया हैं"

मै अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रहा था। मुझे सब सच पता था पर फिर भी मैं कुछ कर नहीं सकता था। मेरी बात का कोई विश्वास करने को तैयार नहीं होगा यह मुझे अहसास हो चुका था। अगर मैं जीजाजी की बात नहीं मानुगा तो निरु मेरे पास नहीं आएगी। जीजाजी जैसा कमीना इंसान कैसे न कैसे करके निरु का फायदा तो उठा ही लेगा। मुझे ही अब निरु को बचाने था, और उसका एक ही तरीका था की निरु पहले मेरे पास आ जाए।

प्रशांत: "मुझे यह डील मंजूर हैं"

जीजाजी अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए और मेरे से हाथ मिलाया। मैं उस इंसान को छुना भी नहीं चाहता था पर मज़बूरी में उस से हाथ मिलाना पड़ा।

जीजाजी: "अगले वीकेंड मैं तुम्हारे घर आ रहा हूँ। निरु को तुमसे मिलवा दूंगा। पर अपना वादा मत भूलना। याद रखना निरु का भरोसा मुझ पर ज्यादा और तुम पर कम है। अगर मुझसे चीटिंग की तो मैं निरु को तुमसे फिर छीन लूंगा"

मै अब वहाँ से चला आया। मुझे उस कमीने जीजाजी को एक्सपोज करना था। मुझे किसी भी तरह सबूत इकठ्ठा करना था और निरु को दिखाना था। वार्ना मेरी बात वो नहीं मानेगी।मैने निरु को इन्फोर्म कर दिया की जीजाजी नेक्स्ट वीकेंड आ रहे है।

इस बीच पूरे वीक मैं परेशान रहा की यह कमीना जीजा अब क्या करने वाला हैं? वो मेरी मदद से कैसे निरु का फायदा उठायेगा यह मेरी समझ से बाहर था। यह बात तो पक्की हो गयी थी की जीजा कमीना हैं और निरु एक दम साफ़ है। अब बस इंतज़ार था वीकेंड का जब जीजा मेरे घर आने वाला था। वो दिन भी आ ही गया।
 
सैटरडे को डोरबेल बजी। दरवजा खोला तो देखा निरु थी। उसके चेहरे पर एक टेंशन थी। निरु ने आज साड़ी पहन रखी थी। वो हलकी नीली साड़ी जो उसके जीजाजी की फेवरेट थी। मैंने उसको बैठाया। उसके ब्लाउज के पीछे की खिड़की से उसकी नंगी गोरी पीठ दिख रही थी। उसके होंठों पर लाल लिपस्टिक लगी थी। काफी समय बाद उसको साड़ी में देख रहा था। बच्चा होने के बाद भी उसने अपना फिगर मेन्टेन कर रखा था और साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी।

एक ही फ़र्क़ था छाती मे। माँ बनने के बाद वैसे ही उसके बोओब्स काफी बड़े हो गए थे, जिससे उसका वो पुराना ब्लाउज उसके बूब्स को पूरी तरह छुपा नहीं पा रहा था। ब्लाउज छाती से काफी फुल हुआ था। हम दोनों इन्तेजार करने लगे। कुछ समय बाद फिर डोरबेल बजी। निरु डर के मारे या फिर नर्वस होकर एकदम से हील गयी।

प्रशांत: "मैं देखता हूँ, शायद जीजाजी आये होंगे"

मैने दरवाजा खोला, सामने जीजाजी खड़े थे। उन्होंने आँखों के ईशारे से पूछा और मैंने सर हिलाकर उनको संकेत दिया की निरु अन्दर ही है। जीजा के चेहरे पर एक बड़ी कुटिल मुस्कान आ गयी। वो अन्दर आये और हमेशा की तरह जोर से "निरु" की आवाज लगायी। निरु जो अब तक चुपचाप टेंशन में बैठ थी वो एक झटके में अचानक सोफ़े से उठ गयी और उसके चेहरे पर एक चौड़ी स्माइल आ गयी। नीरु लगभग दौड़ते हुए जीजाजी की तरफ लपकि और जीजाजी ने भी अपनी बाहें फैला दि। निरु जीजाजी के पास आकर लगभग उनकी बाँहों में कूद गयी थी। वो दोनों गले लग कर आपस में चिपक गए थे।

निरु अपनी बाहें जीजाजी के गले में डाल लटक गयी थी। जीजाजी ने निरु को गले लगाए हुए चारो तरफ घुमा दिया। निरु के बड़े से बूब्स जीजाजी की छाती से चिपक कर दब चुके थे। मुझे बहुत बुरा लग रहा था। वो दोनों घुमना रुके तो अब निरु की पीठ मेरी तरफ थी। जीजाजी ने दोनों हाथों से निरु के पतले बदन को जकड़ रखा था। एक हाथ की उंगलिया जीजाजी ने निरु के पीठ पर ब्लाउज की खिड़की में डाल दी थी और निरु का नंगी पीठ को छु लिया। फिर जीजाजी ने मेरी तरफ देखा और आँखों से इशारा किया की कैसे वो निरु को छु रहे हैं और मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। मेरे तन बदन में आग लग रही थी।

कुछ सेकण्ड्स के बाद निरु खुद जीजाजी से गले लग कर अलग हुयी। पर जीजाजी के दोनों हाथ अब निरु की पतली नंगी कमर को पकडे हुए थे।

नीरु: "जीजाजी, आई ऍम सोर्री, आप आ गए और मुझे माफ़ कर दिया, मेरे लिए यही काफी हैं"

जीजाजी: "कैसे नहीं आता? मैं अपनी निरु से ज्यादा दिन दूर थोड़े ही रह सकता हूँ। मेरी याद आई तुम्हे?"

नीरु: "बहुत याद आयी"

जीजाजी: "क्यों प्रशांत, अब तो तुम्हे कोई शक़ नहीं हैं न?"

जीजाजी कुटिल मुस्कान से मुझे पुछ रहे थे। निरु भी मेरी तरफ पलट कर देखने लगी। उसके चेहरे पर स्माइल अभी भी चिपकी हुयी थी और मोतियो से दांत झिलमिला रहे थे और लिपस्टिक से रंगे होंठ फ़ैल कर स्माइल से चौड़े थे।

प्रशांत: "नहीं, मुझे अब कोई भी शक़ नहीं हैं"

(जीजाजी और निरु अब थोड़ा सा हंस पड़े।)

जीजाजी: "प्रशांत का एक छोटा सा टेस्ट लेकर देखते हैं निरु, की इसको शक़ हैं या नहीं?"

नीरु: "कैसा टेस्ट?"

जीजाजी: "एक काम करो, तुम मेरे गालो पर एक किश करो। देखते हैं प्रशांत को कैसा लगता हैं"

(नीरु फिर हंस पड़ी और मेरा चेहरा देखने लगी। मैंने चेहरे पर नकली स्माइल लाने की कोशिश की। मन में गुस्सा था और अपने दांत पीस रहा था उस कमीने जीजाजी की चालाकी पर।)

जीजाजी: "चलो कम ओन निरु, किश करो"

(नीरु ने मेरी तरफ देख, जैसे परमिशन ले रही थी।)

जीजाजी: "क्यों प्रशांत, तुम्हे कोई दिक्कत तो नहीं हैं न?"

(मन मार कर मुझे उस वक़्त ना बोलना पड़ा।)

प्रशांत: "नहीं, मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं"
 
जीजाजी ने निरु का चेहरा अपनी तरफ घुमाया और निरु ने एक किश जीजाजी के गाल पर कर दिया। जीजाजी के गोरे गाल पर निरु के होंठों के निशान लिपस्टिक से बन गए।

जीजाजी: "निरु, देखो जरा, प्रशांत को बुरा तो नहीं लगा न?"

(दोनो मेरी तरफ देखने लगे और मैं अपना गुस्सा छीपाने लगा और स्माइल करता रहा।)

नीरु: "जीजाजी, आपके गाल पर लिपस्टिक लग गायी, मैं हटा देती हूँ"

जीजाजी: "रहने दो, यह प्यार की निशानी है। अभी मेरे दूसरे गाल पर भी ऐसी ही निशानी दो जल्दी से"

(नीरु ने फिर जीजाजी के दूसरे गाल पर भी ऐसे ही किश किया, मगर मैंने मुँह फेर लिया। मैं यह देख नहीं पाया। मगर जीजाजी की कमीनपन यहीं ख़त्म नहीं हुआ।)

जीजाजी: "मुझे तो निशानी मिल गयी, मगर अब मैं तुम्हे एक निशानी दूंगा। चलो अपना गाल आगे करो"

(नीरु फिर स्माइल करने लगी और मेरी तरफ देखते हुए उसका गाल जीजाजी की तरफ था। जीजाजी ने निरु के गोरे गाल को अपने होंठ में भर कर थोड़ा खींचते हुए जोर का किश कर लिया। मेरा दिल तेजी से धडकने लगा था। मैं बेबस था। जीजाजी ने निरु के दूसरे गाल पर भी किश कर दिया और निरु के गाल को गीला कर दिया। निरु ने जल्दी से अपने हाथ से अपने गाल पोंछ कर साफ़ किया।)

नीरु: "क्या जीजाजी, गाल गीले कर दिए। याद हैं जब मैं छोटी थी तब भी आप यही करते थे!"

जीजाजी: "हॉ, मगर तब हम पर कोई बेवजह शक़ नहीं करता था। अब शक़ करने वाला आ गया हैं"

(वो दोनों फिर मेरी तरफ देखने लगे और स्माइल करने लगे।)

जीजाजी: "मुझे लग रहा हैं की प्रशांत को मन ही मन शक़ हो रहा हैं और जलन हो रही हैं"

(वो दोनों मेरा चेहरा ध्यान से पढने लगे और हंस रहे थे। सच पूछो तो काफी समय बाद निरु को इतना खुश चहकता देखकर मुझे अच्छा लग रहा था। परन्तु निरु की यह ख़ुशी जिस इंसान से मिलने की वजह से थी वो सोच कर गुस्सा ज्यादा आ रहा था।)

नीरु: "नहीं, मुझे लगता हैं प्रशांत अब शक़ नहीं करेगा"

जीजाजी: "हाथ कंगन को अरसी क्या? अभी इसका एक छोटा सा टेस्ट ले लेते हैं"

(यह कहते हुए जीजाजी ने तुरन्त निरु को घुमा कर अपने आगे खड़ा किया और उसकी पीठ के पीछे आ गए। फिर अपने दोनों हाथ आगे लाकर निरु के नंगे पतले पेट से पकड़ लिया। निरु पीछे से जीजाजी से चिपकी हुयी थी। नीरु तो हंस रही थी पर जीजाजी की कुटील मुस्कान जारी थी। जीजाजी के लण्ड का हिस्सा अभी निरु की गांड से चिपका हुआ था। मगर मैंने कोशिश करते हुए अपने चेहरे पर शिकन नहीं आने दि। कुछ सेकण्ड्स निरु को इस तरह पकडे रहने के बाद निरु ने खुद अपने आप को जीजाजी से छुड़ाया और कहा की प्रशांत अब खुश है। पर जीजाजी कहा मानने वाले थे।)

जीजाजी : "लगे हाथों एक और टेस्ट ले लेते हैं"

अगले एपिसोड में पढ़िए कैसे जीजाजी ने अपनी अगली चाल को अन्जाम दिया।

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अब तक आपने पढ़ा की प्रशांत के घर आकर उसका टेस्ट लेने के बहाने जीजाजी ने निरु को बहुत ही गलत तरीके से छुआ और मजे लेने की कोशिश की और निरु को आभास नहीं हुआ। जीजाजी ने कहा की अभी वो एक और टेस्ट लेने वाले हैं।

अब आगे की कहानी प्रशांत की ज़ुबानी जारी हैं...

एक और टेस्ट लेने का कहते ही जीजाजी ने अपनी दोनों बाँहों में निरु को उठा लिया। निरु अब जीजाजी की बाँहों में लेटी हुयी थी। साड़ी का पल्लु थोड़ा सीने से हट गया था। जीजाजी का एक हाथ निरु की दोनों जाँघो के नीचे से पकडे उसको उठाये हुए था और दूसरा हाथ निरु की पीठ के नीचे था।

नीरु की पीठ के नीचे वाले जीजाजी के हाथ की हथेली की उंगलिया निरु की बगल के नीचे से होते हुए निरु के साइड बूब्स के उभार को छु रही थी। जीजाजी जान बूझकर अपनी उंगलिया निरु के बूब्स से दूर करते और फिर वापिस लगा कर थोड़ा दबा देते।

मेरा खून अन्दर से खौलने लगा। एक मुक्का जीजाजी को मारने की इच्छा हुयी पर सारा बना बनाया मामला बिगड सकता था इसलिए धीरज से काम लिया और शांत रहा।

प्रशांत: "अभी और कोई टेस्ट बचा हैं क्या? कब तक खड़े रहेंगे, आइए बैठिए"

जीजाजी की इच्छा लग तो नहीं रही थी पर उन्होंने निरु को अपनी गोद से नीचे उतरा और हम सब लोग सोफ़े पर बैठ गए। मैं अब सोचने लगा की यहाँ तक तो ठीक हैं पर जीजाजी अब कौन सी तकनीक लगाएँगे की वो निरु को चोद पाए।

निरु तो उसके लिए कभी नहीं मानेगी। बाकि बचे टाइम हमने टाइम पास किया। रात का खाना खाने के बाद हम सोने की तयारी कर रहे थे। निरु जब किचन में थी तब जीजाजी ने मुझसे धीरे से कहा की वो आज रात ही निरु को चोदने का प्लान कर रहे है।

यह सुनकर मेरी तो धड़कने बंद सी हो गयी थी। आज ही मुझे मेरी निरु वापिस मिली थी और आज ही वो उसकी इज़्ज़त तार तार करने वाले थे। जीजाजी के दिमाग में कौनसी खिचड़ी पाक रही थी मुझे नहीं पता था पर निरु पर पूरा भरोसा भी था।

नीरु ने मेरी बात का कभी यक़ीन नहीं किया था की जीजाजी की नीयत उसके लिए खराब हैं पर अगर आज रात जीजाजी ने निरु के साथ कुछ करने की कोशिश की तो उनकी पोल खुल ही जाएगी। कम से कम निरु की आँखें तो खुलेगी। नीरु भी थोड़ी देर में काम ख़त्म कर आ गयी थी और हमारे साथ बैठ गयी।

जीजाजी: "प्रशांत यह बताओ की जब कभी मैं और निरु कमरे में अकेले होते थे तो तुम बाहर बैठ शक़ करते थे न?"

(उनके अचानक आये इस क्वेश्चन से मैं सहम गया। इसके पीछे जरूर उनका कोई प्लान छुपा था और मुझे सोच समझ कर जवाब देना था।)

प्रशांत: "मैंने कभी शक़ नहीं किया"

जीजाजी: "तुम्हे क्या लगता हैं निरु? प्रशांत ने शक़ किया होगा?"

नीरु को तो पता ही था की मैं कैसे शक़ करता था। इसलिए उसने डरते हुए हां बोल दिया।

जीजाजी: "तो ठीक है, आज मैं और निरु एक ही कमरे में सोयेंगे। अन्दर से दरवाजे की कुण्डी नहीं लगाएँगे। अगर प्रशांत को शक़ हुआ तो वो अन्दर आकर देख सकता है। अगर शक़ नहीं हैं तो सुबह तक कमरे में नहीं आएगा। कैसा लगा मेरा आईडिया?"
 
नीरु और मैं अब एक दूसरे की शकल देखने लगे। जीजाजी ने कैसा भयंकर प्लान बनाया था की टेस्ट की आड़ में निरु के साथ सोने का भी मौका मिलेगा और निरु को भनक भी न लगे की जीजाजी क्या करना चाह रहे है।

नीरु: "इसकी क्या जरुरत हैं! मुझे लगता हैं प्रशांत अन्दर नहीं आएगा"

जीजाजी: "तो एक्सपेरिमेंट करके देख लेते है। क्यों प्रशांत, तुम्हे कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं हैं?"

(मेरी बोलति बंद हो चुकी थी। हां कहुंगा तो भी फसूंगा और ना बोला तो भी फसूंगा। मगर मुझे निरु पर पूरा भरोसा था।)

प्रशांत: "मैं यह डिसिजन निरु पर छोड़ता हूँ। उसको जो अच्छा लगे वो ठीक है। अगर उसको यह एक्सपेरिमेंट करना हैं तो मैं टेस्ट के लिए रेडी हूँ"

नीरु: "नहीं, मुझे एक्सपेरिमेंट की जरुरत नहीं लग रही हैं"

(मैने मन ही मन "एस" बोला की मेरी चाल सही पडी। निरु इसके लिए नहीं मानगी)

जीजाजी: "मुझे लगता हैं तुम्हे एक्सपेरिमेंट करना चहिये। अपने जीजाजी की बात नहीं मानोगी तुम निरु?"

नीरु ने हल्का सा स्माइल किया और कहा "जैसी आपकी इच्छा जीजाजी। आप बोलते हो तो एक्सपेरिमेंट कर लेते हैं"

मेरा दिल फिर से धक् से रह गया। निरु को जीजाजी के चँगुल से बचाने की मैंने अपनी आखिरी कोशिश की।

प्रशांत: "निरु अभी तुमने ना बोला और अभी हां बोल दिया। तुम प्रेशर में मत आओ। तुम्हारी जो दिल की इच्छा हैं वो बोलो न!"

जीजाजी: "देखा तुमने निरु, कैसे तुमको बहका रहा है। मुझे दाल में काला लग रहा है। इसकी नीयत में अभी भी शक़ हैं"

(नीरु फिर हसने लगी।)

नीरु: "क्या जीजाजी आप फिर से प्रशांत को छेड़ रहे हो। प्रशांत सही हैं, मेरी वैसे भी इच्छा नहीं हैं और कोई एक्सपेरिमेंट करने की"

मेरे दिल को यह सुनकर बड़ा सुकूंन मिला की निरु ने ना बोला। मगर कमीना जीजा कहा पीछे रहने वाला था।

जीजाजी: "ठीक हैं, तुम दोनों को एक दूसरे पर पूरा विशवास हो ही गया हैं तो मेरा यहाँ क्या काम हैं? मैं जाता हूँ अपने घर"

नीरु: "आप तो नाराज हो गए! अच्छा ठीक हैं एक आखिरी टेस्ट लेकर देखते है। इस बहाने आप कम से कम यहाँ रुकेंगे तो सहि। कितने दिन बाद तो बात हुयी हैं आपसे"

मैने मन ही मन अपना माथा पीट लिया। जीजाजी की चाल कामयाब रही और वो अब निरु के साथ सोने वाले थे।

नीरु: "जीजाजी आप ऊपर बेड पर सो जाना और मैं नीचे बिस्तर लगा लुंगी"

जीजाजी: "यह बात बोलनि थोड़े ही थी! अब प्रशांत को शक़ होता होगा तो भी नहीं होगा। हमें तो कोशिश करनी हैं की उसको शक़ हो। अलग बिस्तर का प्लान कैंसिल करते है। अब हम एक ही बेड पर सोयेंगे। फिर देखते हैं की प्रशांत को शक़ होता हैं की नहीं!"

नीरु मेरी शकल देखने लगी। मेरी तो हालत ख़राब थी। जीजाजी ने निरु का हाथ पकड़ा और गेस्ट रूम में ले गए। मैं वहाँ खड़ा का खड़ा ही रह गया। मैं धडाम से सोफ़े पर बैठ गया और अपना माथा पकड़ लिया। जीजाजी ने दरवाजा बंद कर लिया।

बाहर मेरी हालत ख़राब थी की अब जीजाजी अन्दर निरु के साथ क्या करने वाले थे। कुछ मिनट्स गुजरे और मैं वहीं बैठा रहा की कोई आवाज आये तो मैं निरु की हेल्प करुँगा। मन में बुरे बुरे विचार आ रहे थे और काफी समय बीत गया। मुझे निरु की चिलाने की आवाज सुनायी देने लगी जहाँ वो मेरा नाम लेकर "बचाओ बचाओ" चिल्ला रही थी।

मैं तुरन्त गेस्ट रूम के बाहर पहुंच। सोचा दरवाजा खोलू या नहीं, खोला तो मुझे शक्की बता दिया जाएग, नहीं खोला तो निरु की हेल्प नहीं कर पाउंगा। फिर सोचा निरु खुद मुझे आवाज लगा रही हैं तो मुझे अन्दर जाना चहिये।
 
मैंने जोर से दरवाजे को धक्का देकर खोला। अन्दर का नजारा देखकर मेरे होश उड़ गये। मैने देखा की बिस्तर पर निरु पूरी नंगी घोड़ी बन कर बैठि हैं और उसके पिछवाड़े पर जीजाजी भी नंगे चिपके हुए थे। जीजाजी धक्के पर धक्के मार कर निरु को डॉगी स्टाइल में चोद रहे थे।

नीरु मेरी तरफ देखकर लगभग रोती हुयी हालत में मुझसे हेल्प मांग रही थी की मैं उसको बचा लु। निरु के बड़े से मम्मे छाती से लटके हुए थे और जीजाजी के हर धक्के के साथ आगे पीछे तेजी से हील, झुल रहे थे। वो दृश्य देखकर मैं वहीं मूर्ति बनकर खड़ा रह गया।

मैं आगे बढ़कर निरु की हेल्प करना चाह रहा था पर कदम आगे बढ़ नहीं पा रहे थे और पैर जम चुके थे। जीजाजी कहकहा लगा कर निरु को चोद जा रहे थे।

फिर जीजाजी ने निरु को बोला "देखा, मैंने कहा था न की प्रशांत को शक़ होगा और दरवाजा खोल कर अन्दर आएग। तुम शर्त हर गयी निरु, अब पूरा चुदवा लो"

यह सुनकर निरु ने मुझको आवाज लगाना बंद कर दिया और सिसकिया भरते हुए जीजाजी को चोदने के लिए बोलने लगी

"आह . . जीजाजी . . चोद दो ... जोर से . . जोर से चोदो मुझे ... अपनी निरु को जोर से चोदो ... आईए . . जीजाजी"

मेरा तो दिल ही टूट गया। जैसे मैंने अन्दर आकर कोई गुनाह कर दिया था। इसके बाद जीजाजी ने निरु की चूत में एक जोर का झटका मारा। इस झटके से निरु पूरा हील गयी और जोर से उसके मुँह से चीख निकली

"आईईए जीजाजी ... मजा आ गया ... और मारो . . "

उसके बाद जीजाजी नहीं रुके और एक के बाद एक जोर जोर के झटके निरु की चूत में मारते गए। हर झटके के बाद निरु मजे लेते हुए जीजाजी को उत्साहीत कर रही थी।

जीजाजी: "निरु तेरी चूत में अपना पानी छोड़ दु बोल, तू मेरे बच्चे की माँ बनेगी?"

नीरु: "हां जीजाजी . . माँ बना दो मुझे चोद कर जल्दी से ..."

जीजाजी: "तो यह ले निरु, ... आह ... अह्ह्ह . . यह ले ... यह ले . . और ले . . "

नीरु: " आह आह . . ओह्ह्ह्ह जीजाजी ... मजा आ गया ... चोदो मुझे . . ोोोीईए . . उम्म्म्म ... आ मायआ . . चोद दो ... जोर से चोद दो ... जीजाजी . . "

जीजाजी की स्पीड और तेज हो गयी और थोड़ी देर बाद उनका झटका निरु की चूत के अन्दर ही रह गया और जीजाजी का सर पीछे की तरफ किये थोड़ा झुक गए और उनका शरीर पूरा कड़ा हो गया।

जीजाजी ने अपने लण्ड का सारा माल निरु की चूत में खाली कर दिया था। मेरे हाथ पैर बुरी तरह से काँप रहे थे और मैं रोने लगा था। चिल्लाना चाह रहा था पर आवाज नहीं निकल रही थी। जीजाजी फिर थोड़ा नार्मल हुये। उन्होंने अपने लण्ड को निरु की चूत से बाहर की तरफ खिंचा।
 
तभी एक चमत्कार हुआ और जीजाजी के लण्ड के निकलते ही काफी सारा चिकना पानी चूत से बाहर आया और तभी एक छोटा सा बच्छा निरु की चूत से निकल कर बिस्तर पर गिर गया, जीजाजी ने निरु को बोला की

"यह ले, हो गया अपना बच्चा"

निरु ने खुश होते हुए उस बच्चे को अपने सीने से लगा लिया। मेरे होश उड़ गए, और मैं नीचे गिर गया। देखा तो मैं ड्राइंग रूम में सोफ़े के पास पड़ा था। वो एक बुरा सपना था। गेस्ट रूम का दरवाजा अभी भी बंद ही था।

मैने भगवन का थैंक यू बोला की यह सब सपना था। पता ही नहीं चला कब मेरी आँख लग गयी थी और इतना भयंकर सपना देख लिया। मैं गेस्ट रूम के दरवाजे के पास गया ताकी अन्दर से आती कोई आवाज सुन पाउ पर सब शान्ति थी।

घडी में रात के २ बज रहे थे, अब तक तो जीजाजी और निरु सो चुके होंगे। दरवजा खोलने का सोचा पर फिर डर के मारे रुक गया। दरवजा खोला तो मुझ पर शक्की होने का ठप्पा लग जाएगा। मैं सीधा अपने बेडरूम में गया और सोने की कोशिश करने लगा।

सूबह ८:३० पर मेरी नींद खुली। निरु का ख़याल आया और मैं दौड़ते हुए बाहर गया। गेस्ट रूम का दरवाजा अभी भी बंद था। शर्त के मुताबिक़ सुबह तक दरवाजा नहीं खोल सकता था पर अब तो सुबह हो चुकी थी।

मैने डरते कांपते हाथों से दरवाजा खोला। अन्दर बिस्तर पर जीजाजी अकेले सोये हुए थे। कमर तक चादर ढाका हुआ था। ऊपर से टॉपलेस थे। दोनों तकिये एकदम चिपके हुए थे। खली तकिये और जीजाजी के पास वाली जगह पर चादर पर सिलवटे थी जैसे वह पहले कोई सोया हुआ था।

कहीं निरु और जीजाजी एकदम पास चिपक कर सोये तो नहीं थे? ऊपर से जीजाजी आधे नंगे थे। क्या पता चादर के अन्दर वो पूरे नंगे हो? निरु वह नहीं थी। मैंने दरवाजा बंद किया और निरु को ढूंढा।

वो किचन में नहीं थी पर वॉशरूम में नहाने की आवाज आ रही थी। छुट्टी के दिन इतना जल्दी तो निरु नहाती नहीं है। जरुर रात को जीजाजी ने निरु को गन्दा कर दिया होगा इसलिए उसको नहाना पड़ रहा हैं। मै निराश होकर अपने कमरे में जाकर लेट गया।

थोड़ी देर बाद निरु आई और ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठकर तैयार होने लगी। फिर वो चली गयी, शायद किचन में, क्यों की किचन से आवजे आने लगी थी। थोड़ी देर बाद नहा धो कर मैं और जीजाजी दोनों नाशते की टेबल पर बैठे थे। निरु अभी किचन में ही थी।

जीजाजी: "रात को तुमने दरवाजा खोलकर देखा तो नहीं न?"

प्रशांत: "नहीं"

जीजाजी: "अच्छा किया नहीं देख। मैं और निरु जिस हालत में थे, यह तुम देखते तो निरु बड़ी शर्मिंदा होती और तुमको भी अच्छा नहीं लगता"

प्रशांत: "मतलब . . आपने . ."

जीजाजी: "मैंने बोला था न की बस एक मौका चहिये। मैंने फायदा उठा कर निरु को चोद दिया कल रात। अभी तुमने मेरा साथ दिया हैं तो मैं भी वादा निभांगा। निरु को तुम अब रख सकते हो"

मैन उस वक़्त जीजाजी का गाला दबाना चाहता था पर तभी निरु नाशता लेकर आ गयी तो मैं कुछ कर नहीं पाया।

जीजाजी: "कल रात प्रशांत उसके टेस्ट में पास हो गया। उसने हमारा दरवाजा नहीं खोला।"

नीरु: "मुझे पता था, वो नहीं खोलेगा"

जीजाजी: "प्रशांत ज़िद कर रहा हैं की मैं आज यहीं रुक जाऊ। कह रहा था की मैं आज भी उसका टेस्ट ले सकता हूँ। वो आज रात भी शक़ नहीं करेगा और दरवाजा नहीं खोलेगा"

नीरु: "अगर आप एक दिन और रुकोगे तो मैं तो रेडी हूँ"

मै एक सदमे में निरु की शकल देखने लगा। कल रात जीजाजी से चुदवाने के बाद भी उसका मन नहीं भरा और ना ही उसको कोई पश्चाताप था। वो एक बार फिर अपने जीजाजी के साथ सोने को तैयार थी!
 
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