desiaks
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जीजाजी उठ बैठे मगर निरु ने फिर सीने पर धक्का मार उनको लेटा दिया और जल्दी से जीजाजी की अंडरवियर को नीचे खींच का उनका नरम पड़ा लण्ड पकड़ लिया और रगडने लगी। मेरे पसीने छुटने लगे थे की मैं निरु का कौनसा रूप देख रहा था। जीजाजी निरु के सर पर हाथ लगा कर उसको दूर करने की कोशिश की। निरु ने लण्ड छोड़ा और मेरी तरफ नजरे कर बुरी तरह रोते हुए देखा।
नीरु: "यही देखना था तुम्हे, अभी ख़ुशी मिली?"
जीजाजी अब उठ गए और निरु से अपना लण्ड छुडाया। और निरु को डाटते हुए कपडे पहनने को बोले और इस तरह की नादनी नहीं करने को बोले। नीरु ने अपना लोअर निकला और नीचे से पैंटी में आ गयी। जीजाजी ने अपनी नजरे दूसरी तरफ कर ली और उसको कपडे पहनने को बोले।
सिर्फ ब्रा और पैंटी में निरु का खूबसूरत सेक्सी बदन मैं देख पा रहा था। बिस्तर पर बैठे बैठे ही निरु ने दूसरी तरफ देख रहे जीजाजी का टीशर्ट पकड़ अपनी तरफ घुमा कर खींच लिया। निरु अब बिस्तर पर नीचे लेटी थी और जीजाजी बैलेंस खो कर निरु पर जा गिरे। जीजाजी फिर सम्भाले और उठने लगे।
थोडा उठे ही थे की उनका टीशर्ट पकडे निरु उन पर झुल गयी और उनको अपनी तरफ रोते हुए जोर लगा कर खिंचा। जीजाजी ने एक जोर का थप्पड़ निरु को लगा दिया। निरु के हाथ से जीजाजी के टीशर्ट की पकड़ छूट गयी और निरु धडाम से बिस्तर पर औंधे मुँह जा गिरि और बिस्तर में मुँह घुसाये सुबकते हुए रोने लगी।
जीजाजी ने आज तक निरु से ऊँची आवाज में बात तक नहीं की थी और आज उसको जोर का थप्पड़ मार दिया था। और उसकी इस हालत का जिम्मेदार सिर्फ मैं था। इतना हंगामा सुनकर ऋतू दीदी आ गए। ऋतू दीदी ने निरु की हालत देखि। ऊपर से आधा खुला ब्रा, नीचे से सिर्फ पैंटी में निरु आधि नंगी होकर बिस्तर पर उलटा लेटी थी। ऋतू दीदी ने एक चादर लेकर निरु पर ढक दिया।
जीजाजी अभी भी दूसरी तरफ देख कर हाफ़ रहे थे। फिर तेजी से कमरे से बाहर चले गए। थोड़ी देर निरु की पीठ पर हाथ फेरने के बाद जब निरु थोड़ा शांत हुयी तो ऋतू दीदी कमरे से बाहर चली गयी। मैं वहाँ इतनी देर से मूर्ति बन कर ही खड़ा था। निरु का आज ऐसा रूप देखा था जिस पर मुझे विश्वास नहीं हुआ।
जीजाजी और ऋतू दीदी बच्चे सहित मेरे घर से चले गए। निरु काफी देर तक ऐसे ही बिस्तर पर पड़ी रोती रही। मेरी उसके पास जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। वो खड़ी होकर उठी और अपने कपडे पहन कर बैग पैक करने लगी। नीरु मुझे छोड़ कर अपने मायके चली गयी। निरु तो वापिस नहीं आई पर थोड़े दिन बाद तलाक का नोटिस जरूर आ गया। घर में मेरे मम्मी पाप ने मुझे बहुत डाटा। उन्होंने निरु को मनाने की कोशिश भी की थी पर निरु मेरे साथ अब और नहीं रहना चाहती थी।
फिर मुझे पता चला की निरु मेरे शहर में लौट आई हैं क्यों की उसकी जॉब तो यहीं पर थी। वो रेंट पर कहीं अलग रह रही थी। वो मेरा फ़ोन भी नहीं उठा रही थी। दूसरे फ़ोन से करता तो मेरी आवाज सुनकर फ़ोन रख देती। एक दिन हार कर मैं उसके ऑफिस के बाहर शाम को पहुच गया। मुझे देख उसने अपना रास्ता बदला पर मैंने उसको रोक ही दिया। वह कुछ लोग हमें देखने लगे। वहाँ तमाशा बनता इसलिए निरु मेरे साथ चलने लगी। हम लोग अब चलते हुए बात करने लगे।
प्रशांत: "आई ऍम सोर्री, सब मेरी ही गलती है। अब मैं तुम पर कभी शक़ नहीं करुँगा, तुम मेरी ज़िन्दगी में फिर लौट आओ"
नीरु: "वो तो अब कभी नहीं हो सकता। तुम्हारी वजह से उस दिन के बाद से जीजाजी ने मुझसे बात करना तक बंद कर दिया हैं"
प्रशांत: "मैं जीजाजी को सब सच बता दूंगा और उनसे माफ़ी मांग लुँगा और उनको मना लुँगा की वो तुमसे फिर बात करने लगे"
नीरु: "यही देखना था तुम्हे, अभी ख़ुशी मिली?"
जीजाजी अब उठ गए और निरु से अपना लण्ड छुडाया। और निरु को डाटते हुए कपडे पहनने को बोले और इस तरह की नादनी नहीं करने को बोले। नीरु ने अपना लोअर निकला और नीचे से पैंटी में आ गयी। जीजाजी ने अपनी नजरे दूसरी तरफ कर ली और उसको कपडे पहनने को बोले।
सिर्फ ब्रा और पैंटी में निरु का खूबसूरत सेक्सी बदन मैं देख पा रहा था। बिस्तर पर बैठे बैठे ही निरु ने दूसरी तरफ देख रहे जीजाजी का टीशर्ट पकड़ अपनी तरफ घुमा कर खींच लिया। निरु अब बिस्तर पर नीचे लेटी थी और जीजाजी बैलेंस खो कर निरु पर जा गिरे। जीजाजी फिर सम्भाले और उठने लगे।
थोडा उठे ही थे की उनका टीशर्ट पकडे निरु उन पर झुल गयी और उनको अपनी तरफ रोते हुए जोर लगा कर खिंचा। जीजाजी ने एक जोर का थप्पड़ निरु को लगा दिया। निरु के हाथ से जीजाजी के टीशर्ट की पकड़ छूट गयी और निरु धडाम से बिस्तर पर औंधे मुँह जा गिरि और बिस्तर में मुँह घुसाये सुबकते हुए रोने लगी।
जीजाजी ने आज तक निरु से ऊँची आवाज में बात तक नहीं की थी और आज उसको जोर का थप्पड़ मार दिया था। और उसकी इस हालत का जिम्मेदार सिर्फ मैं था। इतना हंगामा सुनकर ऋतू दीदी आ गए। ऋतू दीदी ने निरु की हालत देखि। ऊपर से आधा खुला ब्रा, नीचे से सिर्फ पैंटी में निरु आधि नंगी होकर बिस्तर पर उलटा लेटी थी। ऋतू दीदी ने एक चादर लेकर निरु पर ढक दिया।
जीजाजी अभी भी दूसरी तरफ देख कर हाफ़ रहे थे। फिर तेजी से कमरे से बाहर चले गए। थोड़ी देर निरु की पीठ पर हाथ फेरने के बाद जब निरु थोड़ा शांत हुयी तो ऋतू दीदी कमरे से बाहर चली गयी। मैं वहाँ इतनी देर से मूर्ति बन कर ही खड़ा था। निरु का आज ऐसा रूप देखा था जिस पर मुझे विश्वास नहीं हुआ।
जीजाजी और ऋतू दीदी बच्चे सहित मेरे घर से चले गए। निरु काफी देर तक ऐसे ही बिस्तर पर पड़ी रोती रही। मेरी उसके पास जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। वो खड़ी होकर उठी और अपने कपडे पहन कर बैग पैक करने लगी। नीरु मुझे छोड़ कर अपने मायके चली गयी। निरु तो वापिस नहीं आई पर थोड़े दिन बाद तलाक का नोटिस जरूर आ गया। घर में मेरे मम्मी पाप ने मुझे बहुत डाटा। उन्होंने निरु को मनाने की कोशिश भी की थी पर निरु मेरे साथ अब और नहीं रहना चाहती थी।
फिर मुझे पता चला की निरु मेरे शहर में लौट आई हैं क्यों की उसकी जॉब तो यहीं पर थी। वो रेंट पर कहीं अलग रह रही थी। वो मेरा फ़ोन भी नहीं उठा रही थी। दूसरे फ़ोन से करता तो मेरी आवाज सुनकर फ़ोन रख देती। एक दिन हार कर मैं उसके ऑफिस के बाहर शाम को पहुच गया। मुझे देख उसने अपना रास्ता बदला पर मैंने उसको रोक ही दिया। वह कुछ लोग हमें देखने लगे। वहाँ तमाशा बनता इसलिए निरु मेरे साथ चलने लगी। हम लोग अब चलते हुए बात करने लगे।
प्रशांत: "आई ऍम सोर्री, सब मेरी ही गलती है। अब मैं तुम पर कभी शक़ नहीं करुँगा, तुम मेरी ज़िन्दगी में फिर लौट आओ"
नीरु: "वो तो अब कभी नहीं हो सकता। तुम्हारी वजह से उस दिन के बाद से जीजाजी ने मुझसे बात करना तक बंद कर दिया हैं"
प्रशांत: "मैं जीजाजी को सब सच बता दूंगा और उनसे माफ़ी मांग लुँगा और उनको मना लुँगा की वो तुमसे फिर बात करने लगे"