Chudai Story लौड़ा साला गरम गच्क्का - SexBaba
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Chudai Story लौड़ा साला गरम गच्क्का

hotaks444

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Nov 15, 2016
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रात के तकरीबन 12 बज रहे थे !

एक मारुती आइकोन सुनसान हाइवे पर तेजी से भागी जा रही थी !

कार के भीतर दो प्राणी मौजूद थे !

एक नर , दूसरी मादा !

"मन , इस बार ना जाने क्यूँ मुझे बड़ी घबराहट हो रही हे .....!"मादा की आवाज़ !

"क्या , हम ये सब पहली बार करने जा रहे हे ...?हर बार की तरह इस बार भी ज्यादा मजे आयेंगे ......

ज्यादा मत सोचो !" नर की आवाज़ !

"हम लोग शहर से कितना दूर आ गए हे ...अब और कितना आगे हे ?'

"बस पहुँचने ही वाले हे ... !"

"उम्र कितनी होगी ....उनकी ...?"

" अधेड़ ...अकेला और तन्हा ...!"

"तुमने उसे क्या बताया हे ?..."

" वहीँ जो हर बार बताता हु .....बच्चा नहीं ठहरता .....में ठीक से कर नहीं पता हु ......

डाक्टर को बताया कोई फायदा नहीं हुआ ....वगेरह वगेरह ...!"

"उसने क्या कहा ?..."

"यहीं की अपनी पत्नी को लेकर आओ ...तभी इलाज होगा ..!"

"पर इतनी रात में क्यूँ ?..."

"क्यूंकि दिन में कोई भी आता जाता रहता हे "

"तुम्हे केसे पता ?'

" क्यूंकि ऑफिस से लोटते हुए अक्सर कोई ना कोई दिख जाता हे ...!"

"क्या तुम्हे वो पहचानता हे ?...."

" अगर पहचानता तो में ये रिस्क कभी नहीं लेता !..."

"पता नहीं क्यूँ ....मेरा दिल तेजी से धड़क रहा हे ...!"

" इसी रोमांच के लिए ही तो हम ये सब करते हे ना !...."
 
एकाएक ,

एक कच्चा रास्ता दायीं तरफ जाता दिखाई पड़ा -

"क्या ..यहीं हे ?....." मादा ने पूछा !

" हाँ .....!"

और कर उस कच्चे रास्ते पर हिचकोले खाती आगे बढ़ गई !

ये आंवले का एक सघन बाग़ था !

हर तरफ चांदनी मिश्रित अंधकार और सन्नाटा पांव पसारे खर्राटे ले रहा था !

लगभग पांच मिनिट बाद -

"यहीं वाला घर हे ...!" नर की आवाज़ !

सामने दायीं तरफ आंवले के बाग़ में झोंपड़ी नुमा एक मकान बना हुआ था !

इकलोता लकड़ी का दरवाज़ा बाद था पर खिड़की से लालटेन की श्रीर्ण रौशनी बाहर तक 

लहरा रही थी !

प्रकाश की किरने कांप रही थी !

स्पष्ट था , हवा धीरे धीरे सरसरा रही थी !

कार को कच्चे रास्ते पर छोड़ कर वे दोनों प्राणी बाहर निकले !

नर के हाथ में टार्च थी , और मादा के कंधे पर लेडिज बेग झूल रहा था !
 
क्या वो जाग रहा होगा ...?' मादा की हलकी सी आवाज़ !

"पता नहीं .....मध्य रात्रि हे ...शायद सो चूका होगा ....!" नर की आवाज़ !

दोनों झोंपड़ी तक पहुंचे !

" खों ssssss खों ssss "

अन्दर से किसी प्राणी के खांसने की आवाज़ गूंजी !

" शायद जाग रहा हे ...!" नर की फुसफुसाती सी आवाज़ !

"ठक -ठक "

नर ने हाथ बढ़ा कर सांकल खटखटाई !

प्रतिउत्तर में -

एक गहरा मौन !

पहले से भी अधिक गहरा !

मानो भीतर मौजूद प्राणी ने सांस तक रोक ली हो !

"ठक -ठक "

मानो नर ने फिर से अपनी क्रिया की पुनरावृति की हो !

दो क्षण के मौन के पश्चात -

"कौन ...?"- किसी नर की भारी आवाज़ !

" में ..हूँ ..." नर की थोड़ी ऊँची आवाज़ !

भीतर मौजूद प्राणी ने शायद आवाज़ पहचान ली थी !

"इतनी रात को ...?"- भीतर से आवाज़ आई !

" दरअसल ...रास्ते में थोड़ी गाडी ख़राब हो गई थी ...!"

भीतर से सरसराहट की आवाज़ गूंजी !

कुछ ही क्षण के पश्चात दरवाज़ा हलकी चिडचिडाहट की आवाज़ के साथ खुल गया !

एक हस्ट पुष्ट पहलवान जेसा अधेड़ नर दरवाज़े पर प्रकट हुआ !

जिसके एक हाथ में लालटेन और दुसरे हाथ में लाठी थी !
 
लालटेन की रौशनी में उसने उन दोनों को बड़ी गौर से देखा !

मादा पर उसकी निगाहें कुछ ज्यादा देर भटकती रही !

कारण ?

उसकी वेशभूषा !

गहरे नीले रंग की उसकी गदराई टांगों से चिपकी हुई जींस ,उसके ऊपर काले लाल रंग का टॉप ,

जिसका गला कुछ ज्यादा ही खुला हुआ था , साथ ही दो पतली पतली डोरियों से , जो उसके सुकुमार 

कन्धों से लिपटी हुई थी , उससे अटका हुआ था !

पूरा पेट लगभग खुला हुआ था , गोरा , चिकना ,मखमली और समतल !

थी तो चांदनी रात पर आंवले के सघन पेड़ों से चांदनी छनकर धरातल पर पहुँच रही थी !

" भीतर आ जाइये ......."-अधेड़ नर ने दोनों से कहा !!

दोनों भीतर दाखिल हुए !

अन्दर एक बड़ी सी चारपाई पर . एक गद्दा बिछा हुआ था !जिस पर बिछी चादर काफी 

अस्तव्यस्त थी !
 
अधेड़ नर ने चादर को व्यवस्थित किया !

लालटेन को एक खूंटी पर टांग दिया !

" आप लोग बेठिये ...में जरा पानी लेकर आता हूँ ...!"

"आप परेशान ना हो ...!" कार वाले नर की आवाज़ आई !

पर वो अधेड़ नर नहीं माना और टार्च लेकर झोंपड़े से बाहर निकल गया !

" मन ....ये तो बहुत हट्टा कट्टा हे !" मादा की मिमियाती सी आवाज़ आई !

" तो क्या हुआ .... कौनसा ये हमें जानता हे ....मजे लेकर निकल चलेंगे ...-" नर की आवाज़ !

" ड ..डर लग रहा हे !" मादा की सहमी सी आवाज़ !

"कुछ नहीं होगा ...में हु ना !" नर की दिलासा भरी आवाज़ !

" अगर उसने जबरदस्ती डाल दिया तो ... ?"मादा की डर और आशंका से भरी हुई सहमी सी आवाज़ !

" उससे पहले ही में आजाऊंगा ...लेकिन उसे ललचाने और खुद को उत्तेजित करने का कोई भी अवसर मत छोड़ना ....

उसके बाद हम लोग घर चल कर जम कर सेक्स करेंगे !"

ठीक तभी कदमो की आहट पा कर दोनों खामोश हो गए !
 
एक बाल्टी में पानी लेकर वो अधेड़ नर प्रकट हुआ !

दो साफ़ सुथरे गिलासों में पानी निकाल कर उन दोनों के सामने उसने 

पेश किया !

पानी की कुछ चुस्कियां दोनों ने ली फिर -

" ये मेरी पत्नी हे ...तनु .."- नर ने अपने बगल में बेठी अपनी पत्नी का परिचय दिया 

जिसका नाम तनु हो सकता था ...शायद !

" आप लोगों को थोडा पहले आना था ....अमूमन में इस वक़्त किसी को नही देखता पर .....

पर चूँकि आपकी कार ख़राब हो गई थी इसलिए ..."

इतना बोल कर अधेड़ ने झोले से कोई पटरी निकाली -

"जन्मकुंडली तो आप लाये ही होंगे !"

" जी ...."- तनु ने जल्दी से लेडिज पर्स से एक कागज निकाल कर अधेड़ की तरफ बढाया !

फिर वो अधेड़ नर अपने कार्य में सलंग्न हो गया !

तभी -

"बहुत भूख लगी हे ....बाहर कार में नाश्ता रखा हे ...में कर के आता हु ...." इतना बोल कर वो नर 

झोंपड़े से बाहर निकल गया !

कमरे में बस अब दो ही प्राणी थे !
 
एक अधेड़ हट्टा कट्टा मर्द और एक सुकुमार बदन की तनु नाम की मादा !

लालटेन की पीली रौशनी अभी भी धीरे धीरे कांप रही थी !

हवा के कुछ नन्हे झोंके खिड़की के रास्ते दीवार के पास आ कर उस लालटेन की रौशनी से 

छेड़छाड़ कर रहे थे !

कमरे में एक अजीब सा मौन था !

एक ऐसा मौन जिसके इर्दगिर्द काफी था !

और वो तनाव मादा के चेहरे पर स्पष्ट था !

घबराहट , व्याकुलता .डर . हिचकिचाहट .संकोच कुछ तूफानी होने का डर ...जिसमे रोमांच भरा था !

उसकी दिल की धडकने धाड धाड़ कर धड़क रही थी !

मानो हर धड़कन ये पूछ रही थी की " अब आगे क्या होगा ?"

" में आपको क्या बुलाऊ ...?" तनु ने बड़ी हिम्मत करके झोंपड़े में छाई मौनता को भंग कीया !

नर ने पत्री से अपनी नजरें हटाये बिना कहा ;-"पंडित ओमकार शास्त्री मेरा नाम हे ...आप पंडित जी कह सकती हे ....!"

तनु ने फिर संकोच में पूछा -

" में आपको ओ ...ओम जी कह सकती हु ?...."

जो भी आपकी इच्छा ...किसी पुरुष के नाम चयन का अधिकार ....हमेशा एक स्त्री के पास सरंक्षित रहता हे !"

इतना बोल कर उसने एक नजर तनु पर डाली पर फिर पत्रांग पर !

"और कितना समय लगेगा ..?"

" देखिये ...अभी तो शुभारम्भ हे ...!"

तनु बात तो कर रही थी पर बात का सूत्र उसके पकड़ में नहीं आ रहा था !

हर बार उसे नए प्रश्नों का सहारा लेना पड़ रहा था बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए !

तकरीबन दो मिनिट कमरे में मौन ही सरसराता रहा !

फिर -

"कुंडली के मुताबिक तो संतान योग हे ...पर मध्य में राहू बेठा हे ....जिसकी वजह से विलम्ब हो रहा हे .....

अब राहू का क्या हल निकलेगा ...ये आपकी हाथ की रेखाएं देखने पर पता चलेगा ..."

इतना बोल कर वो अधेड़ नर उठा और मादा की बगल में चारपाई पर आकर बेठ गया !

तनु का दिल धाड़ धाड़ कर धडकने लगा !

उसे जिस पल का इन्तजार था , वो धीरे धीरे पास आ रहा था , शरीर में रोमांच की लहरे दौड़ रही थी !

तनु की दोनों हथेलिया मेहंदी के लाल सुर्ख रंग से सजी हुई थी !
 
हथेली की गोराई पर लाल रंग बहुत ही फब रहा था !

जेसे ही पंडित जी ने तनु की हथेली पकड़ी -

"तुम्हारा शरीर तो बहुत गरम हे ...शायद ठंडी हवा से ज्वर चढ़ गया होगा ...!"

तनु खुद को बोलने से नहीं रोक पाई और उसकी नशीली आवाज़ गूंजी -

"मुझे काफी ठण्ड लग रही हे ...आप ये दरवाज़ा बंद कर दीजिये !"

" यहीं उचित रहेगा ....आप शहर वालो को इतनी ठंडी हवा की आदत नहीं होगी !"

वह दरवाज़ा बंद करके वापिस चारपाई पर आ बेठा !

" अपनी दोनों हथेलिया कर मेरे सामने फेलाइए ..!"

तनु ने वेसा ही किया !

दोनों हथेलियों के मिलने से एक दिल का आकर उभरा जो मेहंदी 

से रचा गया था !

:सुन्दर आकृति हे ...!" अधेड़ नर ने दोनों हथेलियों को थामते हुए कहा !

" ये मेने खुद बनाया हे ...!- तनु हलके से सकुचा गई !

" अति सुन्दर ...भाग्य की रेखा तो काफी प्रबल हे .....संतान का योग तो शीघ्र दिख रहा हे ......

पर एक बात हे .....!" शास्त्री की आवाज़ विचारपूर्ण थी !

"क्या ...?"

"पहले आप को कुछ प्रश्नों के उत्तर देने पड़ेंगे .....!" वो बिना सकुचाये बोला !

"जी पूछिए ...." तनु का दिल अब जोर जोर से धडकने लगा था !

" माहवारी का काल चक्र क्या हे ?"....अधेड़ ने तनु की तरफ बहुत गहरी नज़रों से देखते हुए पूछा !

" बताना जरुरी हे ...?" तनु को पता नहीं क्यूँ नहीं चाहते हुए भी संकोच लग रहा था
 
 निवारण करने में आपका उत्तर सहायक सिद्ध होगा ...!" शास्त्री की बातों में गंभीरता थी !

"10 तारिख से 15 तारिख तक .." लजाते हुए तनु ने कह ही दिया !

"यानि 5 दिन ...चक्र तो ठीक हे ....चक्र के कितने दिन पश्चात .... आपका मन सम्भोग के लिए 

व्याकुल होने लगता हे ....?"

" एक हफ्ते बाद ...!"

" यानि जो समय इस वक़्त चल रहा हे ...ठीक वाही "

" जी ..." तनु की लाज और भी बढ़ गई !

आखिर क्या बात थी उस शास्त्री की जो वो उससे इतना शर्मा रही थी वर्ना वो बहुत मोर्डेन थी !

" वीर्य पतन के कितनी देर बाद आप बिस्तर से उठती हे ..?"

शास्त्री तनु की गुदाज हथेलियों को धीरे धीरे सहला रहा था !

" मतलब ...?" ये प्रश्न तनु की समझ में आ गया था पर .....

" सम्भोग के पश्चात जब आपके पति का वीर्य आपकी योनि में भर जाता हे ...तो उस क्षण के कितनी देर बाद आप 

बिस्तर से उठ कर मूत्र त्याग के लिए जाती हे ....?"

शास्त्री ने धीरे से अपनी धोती को थोडा ऊपर उठा लिया !

लाल रंग की लंगोट पर तनु की नजरें ना चाहते हुए भी ठिठकी !

शास्त्री की नजरों ने तनु की आँखों का केंद्र भांप लिया था !

" इस प्रश्न का क्या मतलब हुआ ..?" तनु के गलों पर लालिमा छ गई थी !
 
शिशु का निर्माण से होता हे ..जिसे वंश -अंश भी कहते हे .."

शास्त्री जी की बात पूरी ही नहीं हुई की तनु बोल पड़ी-

" मुझे इतनी शुद्ध हिंदी समझ में नहीं आती ' ...

तनु जान बूझकर शास्त्री जी अश्लील भाषा का प्रयोग करने के लिए उकसा रही थी !

पुरुष कोई भी हो किसी स्त्री के कामुक संकेतों को अनदेखा नहीं कर सकता !

एक पल के लिए शास्त्री जी ने तनु की कजरारी आँखों में झाँका और फिर थोडा 

तनु के पास आ कर बोले -

" आपके पति आपकी बूर को ठीक से चोदते हे या नहीं ....?"

" इस्सस ....प्लीज ऐसा मत बोलिए ..."

तनु ने अपनी पलकें बंद करली उसका एक एक पोर झनझना कर रह गया !

उसकी इस अदा पर शास्त्री की आँखों में वासना के साये लहराने लगे !
 
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