hotaks444
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मनोज:"क्यूँ साली कुतिया मज़ा आ रहा है ना तुझे? ऐसे ही चुदवाती है ना तो बाहर जा के? बोल बोल भाडवी?" वो गंदी गंदी गलियाँ निकालते हुए किरण को चोदता रहा. शोर से कहीं उसकी बीमार मा जाग ना जाए इस लिए किरण ने अपने मुँह मे बिस्तर की चादर घुसा ली थी. आँसू थे के रुक ही नही रहे थे और उसका मुँह लाल हो गया था. दर्द से उसे लग रहा था के वो मर ही जाएगी. मनोज हेवानो की तरहा उसे ज़ोर ज़ोर से आधा घंटा चोदता रहा और किरण का वो हाल हो गया था के दर्द से बस बेहोश होने ही वाली थी. आख़िर ज़ोर से झटके मारते हुए वो किरण के बीच ही झाड़ गया. मनोज का लंड जब नरम पढ़ा तो निकाल के बिस्तर पे ही वो लेट गया और हांपने लगा. किरण उसी हालत मे वहाँ पड़ी थी. रो रो के अब तो आँसू भी सूख गये थे. आँखे सूज के लाल हो गयी थी और जिस्म दर्द से टूट रहा था. थोड़ी देर बाद बड़ी मुस्किल से उठ कर उसने अपनी शलवार पहनी और बड़ी मुस्किल से चलते हुए कमरे के दरवाज़े की तरफ चलने लगी.
मनोज:"रुक जाओ. ऐसे भला केसे जाने दूँगा तुझे? किरण मेरी एक बात अपने पल्ले बाँध ले. ये जो कॉलेज के लौंदे हैं ना इनकी दोस्ती कॉलेज मे ही ख़तम कर के आया कर. अगर मैने तुझे कभी किसी भी हराम जादे के साथ आइन्दा देख लिया तो ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा. टू बस मेरी कुतिया है और मेरे साथ ही वफ़ादार रहना पड़ेगा. समझ गयी ना?" वो बेचारी बस हल्का सा सर ही हिला पाई.
मनोज:"चल अब ये पकड़." ये कह कर मनोज ने नोटो की एक गद्दी तकिये के नीचे से निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी. कुछ लम्हे वो अपनी जगह पर बुत बन गयी. वो उन नोटो को देख रही थी जिन की वजह से आज उसकी ये हालत हो गयी थी. क्या ये ही मेरी सच्चाई है अब? एक दरिंदे की रखैल? 2 आँसू उसकी आँखो से फिर निकल गये और उसने काँपते हाथो से नोटो की गद्दी को पकड़ लिया और कमरे से बाहर निकल गयी. कोई पहली बार अपनी इज़्ज़त लुटवा कर तो वो मनोज के कमरे से बाहर नही आ रही थी पर आज पहली बार अपनी इज़्ज़त के साथ साथ वो खुद भी अपनी नज़रौं मे गिर गयी थी. सीडीयाँ नीचे उतरते समय एक एक सीडी पे कदम रखते हुए उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो हज़ार बार मर रही हो.
साम के साथ सब कुछ बदल जाता है बस फराक ये होता है कुछ चीज़े रात गये ही बदल जाती हैं तो कुछ धीरे धीरे. जैसे वक़्त एक जगह रुक नही जाता वैसे ज़िंदगी की गाड़ी भी आगे को चलती रहती है. मोना भी धीरे धीरे बदल रही थी. चाहे कभी मिनी स्कर्ट ना पहने पर अब कम से कम ऐसे तो थी के शहर की लड़की तो दिखने ही लगी थी. मेक अप भी भले ही दोसरि लड़कियो के मुक़ाबले मे कम था पर हल्का फूलका करना तो शुरू कर ही दिया था. कॉलेज के लड़को ने भी उस मे ज़्यादा इंटेरेस्ट लेना शुरू कर दिया था पर ये बात अलग थी के अभी भी वो किसी को ज़्यादा घास नही डालती थी. पर कुछ हद तक बदला तो ये भी था. अब किरण की तरहा अली भी उसका दोस्त बन चुका था. वो लड़का है, अमीर खानदान से है ऐसी बतो के बारे मे उसने सौचना छोड़ दिया था. अभी कल ही की तो बात लगती थी के केसे वो अकेली उसके साथ आइस क्रीम खाते भी शर्मा रही थी और अब तो कॉलेज के बाद वो ही उसे अपनी गाड़ी पे घर छोड़ने लग गया था. उनकी उस मुलाक़ात को अब कोई 2 महीने हो चुके थे. इस दोरान मोना की ज़िंदगी मे छोटी मोटी बहुत सी चीज़े बदल गयी थी. जैसे के उसने कॉल सेंटर पर पार्ट टाइम जॉब शुरू कर दी थी. शहर मे रहते हुए पेसौं की ज़रूरत तो पड़ती ही है और वो अपने पिता पर बोझ नही बनना चाहती थी. रही बात ममता आंटी की तो उसका बस नाम ही ममता था वरना ममता नाम की उस मे तो कोई चीज़ थी ही नही. उसको बंसी के साथ अपना मुँह काला करवाने से थोड़ी फ़ुर्सत मिलती तो दूसरो के बारे मे सोचती ना?
उसको कॉल सेंटर पे नौकरी किरण ने ही दिलवाई थी. किरण भी तो पछले 2 महीने से बहुत बदल गयी थी और उस मे ये बदलाव सब से ज़्यादा मोना ने ही महसूस किया था. कुछ घाव इंसान को पूरी तरहा तोड़ कर रख देते हैं तो कुछ उसको पहले से भी ज़्यादा मज़बूत बना देते हैं. किरण के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जो किरण अपने इर्द गिर्द लड़को को भंवरौं की तरहा घूमने पे मजबूर कर देती थी वो अब उनसे ज़्यादा बात नही करती थी और ना ही किसी का तोफा कबूल करती थी. खुद किरण ने ही कॉल सेंटर मे नौकरी मिलने के 2 हफ्ते बाद ही मोना को भी वहाँ नौकरी दिलवा दी थी. पहले तो मोना को अजीब सा लगा जब किरण ने उससे कहा के वो उसे भी नौकरी दिलवा सकती है पर फिर किरण ने ही उसे मना भी लिया.
किरण:"मोना अपने आप को कभी किसी के सहारे का मौहताज ना होने देना. खुद को इतना मज़बूत बना लो के अगर कल को कोई तूफान भी आए तो तुम तन्हा ही उसका मुक़ाबला कर सको." ये बात जाने क्यूँ सीधी मोना के दिल पे लगी और उसने हां कर दी. "सच मे मोना बहुत बदल गयी है" ऐसा मोना सौचने लगी थी. अब तो वो दूसरो को छोड़ो अली और मोना के साथ भी कहीं बाहर नही जाती थी. हमेशा कोई ना कोई बहाना बना दिया करती थी और फिर कुछ दीनो बाद इन दोनो ने भी उससे पूछना छोड़ दिया. पर जो भी था मोना को किरण पहले से भी अच्छी लगने लगी थी. वो उसको दोस्त से ज़्यादा अपनी बेहन मानती थी. और अली के बारे मे वो क्या सौचती थी? ये तो बताना बहुत ही कठिन है. अली उसके साथ मज़ाक करता था, उसे अक्सर बाहर घुमाने के लिए भी ले जाता था मघर कभी उसने ऐसी कोई बात नही की जिस से ऐसा सॉफ ज़ाहिर हो के वो मोना को प्यार करता है. "क्या ये प्यार है या दोस्ती?" ऐसा वो तन्हाई मे सौचा करती थी.
ऐसा नही था के अली उस से अपने प्यार का इज़हार करने के लिए बेचैन नही था. पर पहला प्यार वो आहेसास है जो महसूस तो हर इंसान कभी ना कभी करता ही है पर उसका इज़हार करना आसान बात नही होती. ये डर के कहीं इनकार हो गया तो क्या होगा? इंसान को अंदर ही अंदर खाए जाता है. फिर अली अभी जल्दी मे ये दोस्ती भी हाथ से गँवाना नही चाहता था जो उनके दरमियाँ हो गयी थी. उसने देखा था के केसे मोना किसी लड़के को भी अपने पास भटकने नही देती थी. ऐसे मे कही उसे वो दोसरे लड़को की तरहा लोफर ना समझ ले ये डर भी तो था. रोज़ाना जो समय वो दोनो एक साथ गुज़ारते वो उसके दिन के सब से हसीन लम्हे होते थे. मोना के ख़ौबसूरत चेहरे पे उसकी मासूम हँसी तो कभी उसकी एक आध ज़ुलाफ जब हवा मे बेक़ाबू हो कर उसके चेहरे पे आ जाती थी तो वो उसे बहुत ही अच्छी लगती थी. थोड़े ही दीनो मे उसने मोना के बारे मे सब कुछ जान लिया था. सॉफ दिल के लोग वैसे भी दिल मे बात छुपा के नही रखते और मोना का दिल तो अभी भी शीशे के जैसे बिल्कुल सॉफ था. शायद इशी लिए अली को कभी कभार महसूस हो ही जाता था के मोना भी उससे एक दोस्त से बढ़ कर पसंद करती है. जैसे जैसे दिन गुज़रे उसकी मोहब्बत मोना के लिए पहले से भी मज़बूत होती चली गयी और अब उसको बस इंतेज़ार था उस मौके का जब वो अपने दिल की बात मोना को कह सके. और ऐसा मौका उससे जल्द ही मिल भी गया.......
जहाँ किरण की मोहबत का दम भरने वाले लड़के एक एक कर के उससे उसका रवैया बदलने की वजा से दूर होते जा रहे थे वहाँ ही एक इंसान ऐसा भी था जो उसे बरसो से देख रहा था और अब उस मे इस तब्दीली के आने की वजा से बहुत खुश था. वो दूसरे लड़को की तरहा शोख ना सही पर दिल का भला इंसान था जो पागलौं की तरहा किरण को चाहता था. ये चाहत कोई 2-4 दिन पुरानी भी नही थी. वो स्कूल के ज़माने से ही किरण को पसंद करता था पर कभी दिल की बात ज़ुबान पर ला नही पाया था. "क्या अब साम आ गया है के उसे बता दू के मैं उसे पागलौं की तरहा चाहता हूँ?" शरद ने अपने से कुछ दूर बैठी किरण को कॉल सेंटर मे काम करते देख कर सोचा...
क्रमशः....................
मनोज:"रुक जाओ. ऐसे भला केसे जाने दूँगा तुझे? किरण मेरी एक बात अपने पल्ले बाँध ले. ये जो कॉलेज के लौंदे हैं ना इनकी दोस्ती कॉलेज मे ही ख़तम कर के आया कर. अगर मैने तुझे कभी किसी भी हराम जादे के साथ आइन्दा देख लिया तो ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा. टू बस मेरी कुतिया है और मेरे साथ ही वफ़ादार रहना पड़ेगा. समझ गयी ना?" वो बेचारी बस हल्का सा सर ही हिला पाई.
मनोज:"चल अब ये पकड़." ये कह कर मनोज ने नोटो की एक गद्दी तकिये के नीचे से निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी. कुछ लम्हे वो अपनी जगह पर बुत बन गयी. वो उन नोटो को देख रही थी जिन की वजह से आज उसकी ये हालत हो गयी थी. क्या ये ही मेरी सच्चाई है अब? एक दरिंदे की रखैल? 2 आँसू उसकी आँखो से फिर निकल गये और उसने काँपते हाथो से नोटो की गद्दी को पकड़ लिया और कमरे से बाहर निकल गयी. कोई पहली बार अपनी इज़्ज़त लुटवा कर तो वो मनोज के कमरे से बाहर नही आ रही थी पर आज पहली बार अपनी इज़्ज़त के साथ साथ वो खुद भी अपनी नज़रौं मे गिर गयी थी. सीडीयाँ नीचे उतरते समय एक एक सीडी पे कदम रखते हुए उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो हज़ार बार मर रही हो.
साम के साथ सब कुछ बदल जाता है बस फराक ये होता है कुछ चीज़े रात गये ही बदल जाती हैं तो कुछ धीरे धीरे. जैसे वक़्त एक जगह रुक नही जाता वैसे ज़िंदगी की गाड़ी भी आगे को चलती रहती है. मोना भी धीरे धीरे बदल रही थी. चाहे कभी मिनी स्कर्ट ना पहने पर अब कम से कम ऐसे तो थी के शहर की लड़की तो दिखने ही लगी थी. मेक अप भी भले ही दोसरि लड़कियो के मुक़ाबले मे कम था पर हल्का फूलका करना तो शुरू कर ही दिया था. कॉलेज के लड़को ने भी उस मे ज़्यादा इंटेरेस्ट लेना शुरू कर दिया था पर ये बात अलग थी के अभी भी वो किसी को ज़्यादा घास नही डालती थी. पर कुछ हद तक बदला तो ये भी था. अब किरण की तरहा अली भी उसका दोस्त बन चुका था. वो लड़का है, अमीर खानदान से है ऐसी बतो के बारे मे उसने सौचना छोड़ दिया था. अभी कल ही की तो बात लगती थी के केसे वो अकेली उसके साथ आइस क्रीम खाते भी शर्मा रही थी और अब तो कॉलेज के बाद वो ही उसे अपनी गाड़ी पे घर छोड़ने लग गया था. उनकी उस मुलाक़ात को अब कोई 2 महीने हो चुके थे. इस दोरान मोना की ज़िंदगी मे छोटी मोटी बहुत सी चीज़े बदल गयी थी. जैसे के उसने कॉल सेंटर पर पार्ट टाइम जॉब शुरू कर दी थी. शहर मे रहते हुए पेसौं की ज़रूरत तो पड़ती ही है और वो अपने पिता पर बोझ नही बनना चाहती थी. रही बात ममता आंटी की तो उसका बस नाम ही ममता था वरना ममता नाम की उस मे तो कोई चीज़ थी ही नही. उसको बंसी के साथ अपना मुँह काला करवाने से थोड़ी फ़ुर्सत मिलती तो दूसरो के बारे मे सोचती ना?
उसको कॉल सेंटर पे नौकरी किरण ने ही दिलवाई थी. किरण भी तो पछले 2 महीने से बहुत बदल गयी थी और उस मे ये बदलाव सब से ज़्यादा मोना ने ही महसूस किया था. कुछ घाव इंसान को पूरी तरहा तोड़ कर रख देते हैं तो कुछ उसको पहले से भी ज़्यादा मज़बूत बना देते हैं. किरण के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जो किरण अपने इर्द गिर्द लड़को को भंवरौं की तरहा घूमने पे मजबूर कर देती थी वो अब उनसे ज़्यादा बात नही करती थी और ना ही किसी का तोफा कबूल करती थी. खुद किरण ने ही कॉल सेंटर मे नौकरी मिलने के 2 हफ्ते बाद ही मोना को भी वहाँ नौकरी दिलवा दी थी. पहले तो मोना को अजीब सा लगा जब किरण ने उससे कहा के वो उसे भी नौकरी दिलवा सकती है पर फिर किरण ने ही उसे मना भी लिया.
किरण:"मोना अपने आप को कभी किसी के सहारे का मौहताज ना होने देना. खुद को इतना मज़बूत बना लो के अगर कल को कोई तूफान भी आए तो तुम तन्हा ही उसका मुक़ाबला कर सको." ये बात जाने क्यूँ सीधी मोना के दिल पे लगी और उसने हां कर दी. "सच मे मोना बहुत बदल गयी है" ऐसा मोना सौचने लगी थी. अब तो वो दूसरो को छोड़ो अली और मोना के साथ भी कहीं बाहर नही जाती थी. हमेशा कोई ना कोई बहाना बना दिया करती थी और फिर कुछ दीनो बाद इन दोनो ने भी उससे पूछना छोड़ दिया. पर जो भी था मोना को किरण पहले से भी अच्छी लगने लगी थी. वो उसको दोस्त से ज़्यादा अपनी बेहन मानती थी. और अली के बारे मे वो क्या सौचती थी? ये तो बताना बहुत ही कठिन है. अली उसके साथ मज़ाक करता था, उसे अक्सर बाहर घुमाने के लिए भी ले जाता था मघर कभी उसने ऐसी कोई बात नही की जिस से ऐसा सॉफ ज़ाहिर हो के वो मोना को प्यार करता है. "क्या ये प्यार है या दोस्ती?" ऐसा वो तन्हाई मे सौचा करती थी.
ऐसा नही था के अली उस से अपने प्यार का इज़हार करने के लिए बेचैन नही था. पर पहला प्यार वो आहेसास है जो महसूस तो हर इंसान कभी ना कभी करता ही है पर उसका इज़हार करना आसान बात नही होती. ये डर के कहीं इनकार हो गया तो क्या होगा? इंसान को अंदर ही अंदर खाए जाता है. फिर अली अभी जल्दी मे ये दोस्ती भी हाथ से गँवाना नही चाहता था जो उनके दरमियाँ हो गयी थी. उसने देखा था के केसे मोना किसी लड़के को भी अपने पास भटकने नही देती थी. ऐसे मे कही उसे वो दोसरे लड़को की तरहा लोफर ना समझ ले ये डर भी तो था. रोज़ाना जो समय वो दोनो एक साथ गुज़ारते वो उसके दिन के सब से हसीन लम्हे होते थे. मोना के ख़ौबसूरत चेहरे पे उसकी मासूम हँसी तो कभी उसकी एक आध ज़ुलाफ जब हवा मे बेक़ाबू हो कर उसके चेहरे पे आ जाती थी तो वो उसे बहुत ही अच्छी लगती थी. थोड़े ही दीनो मे उसने मोना के बारे मे सब कुछ जान लिया था. सॉफ दिल के लोग वैसे भी दिल मे बात छुपा के नही रखते और मोना का दिल तो अभी भी शीशे के जैसे बिल्कुल सॉफ था. शायद इशी लिए अली को कभी कभार महसूस हो ही जाता था के मोना भी उससे एक दोस्त से बढ़ कर पसंद करती है. जैसे जैसे दिन गुज़रे उसकी मोहब्बत मोना के लिए पहले से भी मज़बूत होती चली गयी और अब उसको बस इंतेज़ार था उस मौके का जब वो अपने दिल की बात मोना को कह सके. और ऐसा मौका उससे जल्द ही मिल भी गया.......
जहाँ किरण की मोहबत का दम भरने वाले लड़के एक एक कर के उससे उसका रवैया बदलने की वजा से दूर होते जा रहे थे वहाँ ही एक इंसान ऐसा भी था जो उसे बरसो से देख रहा था और अब उस मे इस तब्दीली के आने की वजा से बहुत खुश था. वो दूसरे लड़को की तरहा शोख ना सही पर दिल का भला इंसान था जो पागलौं की तरहा किरण को चाहता था. ये चाहत कोई 2-4 दिन पुरानी भी नही थी. वो स्कूल के ज़माने से ही किरण को पसंद करता था पर कभी दिल की बात ज़ुबान पर ला नही पाया था. "क्या अब साम आ गया है के उसे बता दू के मैं उसे पागलौं की तरहा चाहता हूँ?" शरद ने अपने से कुछ दूर बैठी किरण को कॉल सेंटर मे काम करते देख कर सोचा...
क्रमशः....................