Chudai Story लौड़ा साला गरम गच्क्का - Page 2 - SexBaba
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Chudai Story लौड़ा साला गरम गच्क्का

तभी तनु को अपनी हथेली के मध्य किसी गर्म वास्तु का अहसास हुआ !

उसने पलकों को खोल कर देखा और बस -

"उई मम्मी ...ये क्या हे ?..."

उसकी हथेलियों के मध्य शास्त्री का नो इंच का काला और विकराल मोटा मुसल जेसा लंड था जिसे उसने अपनी 

लंगोट के बाहर निकाल कर तनु के हाथ में थमा दिया था !

" स्त्री की योनि को छेदने वाला ओजार .....और देहात में इसे कहते हे लोंडिया की बूर को फाड़ कर 

उसकी चूत का भोसड़ा बनाकर ....उस भोसड़ी में बीज उगलने वाली मशीन ...यानि लौड़ा ....!"

शास्त्री कितना कामी पुरुष था ये उसकी भाषा से स्पष्ट था !

इस तरह की भाषा शेली कभी तनु ने नहीं सुनी थी इसलिए उत्तेजने और डर की वजह से उसके दिल 

की धडकने काफी तेज हो गई थी !

" बच्चा पैदा करना चाहती हे ?...'

शास्त्री की भाषा अब सत्कार वाली नहीं दुत्कार वाली थी !
 
जिसे सुनकर तनु की योनि धुकधुकाने लगी थी मानो बच्चा पैदा करने के नाम पर उसकी भी फट रही हो !

पर उत्तेजना की वजह से उसने वो शास्त्री का काला मोटा लंड कस कर भींच लिया था !

लजाते हुए उसने अपने सर को हाँ में हिलाया !

" चल नंगी हो भेन की लौड़ी ...!"

शास्त्री चारपाई से उतरा अपनी बनियान और धोती उतारी और लंगोट को खोल कर झोंपड़े के एक कोने में फेंक दिया 

और पूरा नंगा हो गया ! उसे उसके पति का कोई डर नहीं था वो समझ गया की ये बड़े लोगों के चोंचले हे जो 

ये अनजान लोगों से चुदवाने जाते हे ! और वो आज इसे खुल कर जंगली तरीके से चोदना चाहता था !

सभ्य तरीके से तो पति से चुदती थी पर संतुष्ट नहीं होती थी ! लगता हे इसे ऐसा ही मजा चाहिए की कोई 

उसे रोंद डाले !

शास्त्री की दुत्कार से डर कर तनु की चूत पनियाने लगी थी !

वो भी सकुचाते हुए अपनी जींस और टॉप उतार कर गुलाबी ब्रा और गुलाबी कच्छी में अर्ध नंगी हो गई !

दोनों अधो वस्त्र छोटे थे इसलिए अपने हाथों और टांगों को चिपका कर अपनी नग्नता ढकने का असफल प्रयास 

कर रही थी !
 
उसकी ये मुद्रा देख कर शास्त्री के भीतर का व्यभिचारी जंगली पुरुष जाग उठा और उसके मुह से ये फूटा -

" सुवरण को खोजत फिरे ,कवी व्यभिचारी ,चोर .....!"

किसी भूखे भेडीए की तरह जो कई दिनों से भूखा हो और उसे कोई मुलायम मांस का के खरगोश का 

बच्चा मिल जाये और वो झपट पड़े !

अब तनु का नाजुक बदन उस हट्टे कट्टे विलासी व्यभिचारी मर्द की बाँहों में था 

और तनु उसमे किसी मोरनी की तरह मचल रही थी !

डर और उत्तेजना के मिले झूले उन्माद से !

और शास्त्री तो जेसे उस नाजुक शहरी कलि को पा कर जेसे पागल ही हो गया था -

" पुरे पंद्रह साल हो गए मेरी बीवी को गुजरे ....और आज तू मिली हे इतने सालों के बाद .....

में इस हवस के हथोड़े से तेरी चुत की धज्जियाँ उड़ा दूंगा ....तेरी पूरी इज्जत ख़राब करके भेजूंगा .......

हरामजादी ...रंडी ...मेरे वीर्य में सो पुरुषों की सिद्धि हे .....जो बच्चा पैदा होगा वो हरामी का होगा .....

बोल चाहिए तुझे हरामी का पिल्ला .....बोल भेन की लौड़ी बोल ....!"
 
फिर तो शास्त्री ने तनु के लिपस्टिक से सजे मुलायम होंटो को अपने खुरदरे होंटों और दांतों से कुचलना शुरू कर दिया !

मानो किसी भिखारी को छप्पन भोग की थाली मिल गई हो !

सोचिये - वो क्या खायेगा क्या गिराएगा !

और शास्त्री तो सोच रहा था आज जो मजे लेना हे लेलो क्या पता फिर कब ऐसा मौका आये आज उसके भाग्य 

पंद्रह साल बाद जागे हे !

कुछ देर होंट चुसे ,गाल चूमे फिर दोनों को कच कचा कर काट खाए !

भयानक चूमा चाटी के बाद जब शास्त्री ने उसे गोद में उठा कर चारपाई पर पटका 

तब तक श्रृंगार से सजा उसका चेहरा , होटों की फेली लिपस्टिक ....जगह शास्त्री के दांतों के निशान और 

उसके मुह के थूक से बुरी तरह सन चूका था !

पुरुष का किसी पागल कुत्ते की तरह ऐसा आक्रमण तनु के लिए एक नया रोमांच था !

स्त्री को भोगने के लिए ऐसा जानवर पन आज तक नहीं देखा था !

तनु डर के मारे सहम गई !

वो कुछ कुछ पछताने भी लगी थी रोमांच को पाने के लिए उसकी हालत ख़राब हो रही थी पर 

बिलकुल नया हो रहा था जो आज तक उसके जीवन में नहीं हुआ था !

उसे इन्तजार था अपने पति "मन " का जो किसी भी वक़्त यहाँ आकर उसे शास्त्री के 

हाथों से तितर -बितर होने से बचा लेगा !

पर उसका पति मन था कहाँ ...?

वो झोंपड़े की खिड़की के पास खड़ा होकर भीतर का भयानक नज़ारा देख कर .......

खुद उत्तेजित हो कर हस्तमैथुन कर रहा था .....!
 
मन का चेहरा वासना से लाल भभूका हो रहा था और उसका और उसका हाथ अपने पतले और छोटे पर पूरी तरह से उत्थित लिंग 

पर तेजी से चल रहा था !

वो चाहता तो ये सब रोक सकता था पर वो खुद अपनी काम वासना से ग्रसित था !

उसे इन्तजार था अपने स्खलन का !

इधर कमरे के भीतर -

" बोल रंडी ..तू मेरी रखेल हे ..." शास्त्री अपने काले लोड़े के सुपाडे पर थूक चुपड़ता बोला !

" हाँ ...में आपकी रखेल हूँ ..." तनु उत्तेजना से कांपने लगी थी !

"चोद - चोद के तुझे हिरोइन से छिनाल रांड बना दूंगा ...चल भेन की लौड़ी मुह खोल ...!"

तनु के बालों को शास्त्री ने मुटठी में पकड़ के खींचा की दर्द से तनु का मुह खुल गया !

शास्त्री गरजा " साली अपनी जीभ को पूरा बाहर निकाल "

डर के मारे तनु ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर अपना मुह खोल दिया ! और उसी वक़्त -

"गप्प ...."

शास्त्री ने अपना लोडा उसके खुले मुह में आधा ठूंस दिया !

" बहुत दिनों से इसमें से पेशाब की बदबू आ रही हे ...चाट कर साफ़ कर साली रांड ......

छिनाल कहीं की .....बच्चा चाहिए तुझे ....में दूंगा तुझे बच्चा ...साली के पांव भारी कर दूंगा ...

तेरे पेट को ढोल बना दूंगा ...पर पहले साली छिनाल इसे चूस ...कुत्ती ...पूरा चूस ..!"

और तनु डर के मारे चपड चपड कर चाटने लगी ! उसे डर था की कहीं ये उसके मुह और हलक में ही इस मूसल को 

धकेल कर कहीं फाड़ ही नहीं डाले !

इस डर से कभी पति के लंड को मुह नहीं लगाने वाली इस अजनबी के लंड को चाट रही थी !

खिड़की पर देख रहे मन के चेहरे पर उसे लंड चूसते देख कर हेरत बरस रही थी !

उसकी कामनाये अब तनु के लिए कटु हो रही थी और वो इस खेल को और देखना चाहता था !
 
" साली शादी शुदा हो कर भी लोंडिया के जेसे जींस पहनती हे ....चुतड मटका के चलती हे ....

गांड के छेद में ये खूंटा गाड कर गांड का होद बना दूंगा मादरचोद के ....साली लंड की चट्टी ....

हलक तक अन्दर ले इसे पूरा झड तक मुह में जाना चाहिए ..वर्ना रंडी तेरा मुह फाड़ दूंगा ....साली 

कुत्ते की मूत मादरचोद .....तेरी माँ का भोस्ड़ा में ये बम्बू फंसा दूंगा ...!"

और वो उसके बालों को पकड़ कर उसके मुह को अपने लौड़े की तरफ दबाये जा रहा था साथ ही उसके कुल्हे भी 

तेजी से आगे पीछे हो रहे थे ! लार बहकर उसके मुह को चिकना कर रही थी और उस चिकने मुलायम मुह को 

शास्त्री बूर समझ कर खूब तेजी से चोद रहा था !

ऐसी बुरी तरह से की गई उसके मुह की चुदाई को महसूस कर तनु की आत्मा तक कांप गई थी !

लेकिन अपनी सुन्दरता से पंडित जी जेसे किसी सभ्य पुरुष को बौराते देख कर खुद भी मस्ता गई थी !

आखिर वो थी भी इतनी सुन्दर और कामुक की जब तक कोई उसे जानवर बन कर नहीं चोदे वो भी 

तृप्त नहीं होती थी !

इसी लिए इन पति पत्नी का येही काम था किसी पुरुष को चुटिया बना कर उत्तेजित करे जिसे देख कर 

दोनों मियां बीबी उत्तेजित हो जाते फिर अचानक आ कर मन उस पुरुष को ऐसे ही रख देता और घर जाकर तनु की 

जानवरों की तरह चुदाई करता !

पर आज वो लेट हो रहा था शास्त्री जितना आगे कोई नहीं बढ़ा था आज तक !

आज क्या पता वो क्या करना चाहता था उसके मन को भी शास्त्री के लौड़े की मोटाई लम्बाई मंत्र मुग्ध कर रही थी !
 
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]तनु को अपनी सुन्दरता पर कुछ अभिमान हो रहा था !

थोड़ी देर पहले जो पुरुष सभ्य इंसान था उसके योवन के ताप से जल कर वहशी हो चूका था !

यही तो वो चीज हे जो ओरत को कामुक बनाती हे !

तनु को आज पता चला की उसके योवन में किसी नर के व्यक्तित्व को किस सीमा 

तक बदलने की क्षमता हे !

ये सोच कर उसके चुचक कड़े हो गए मांसल चूचियां पूरी तरह से तन गई और चूत में बह रहे पानी 

का गाढ़ा पन और बढ़ गया !

कामुकता की ज्वाला उसकी योनि के भीतर दहकने लगी !

वह इस बौराये हुए पुरुष के मोटे काले विशाल लंड का आक्रमण अपनी चिपकी योनि के छोटे से छेद 

पर झेलने के लिए उत्तेजित थी !
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kamlabhatiPro MemberPosts: 183Joined: 29 Apr 2018 21:03
Re: लौड़ा साला गरम गच्क्का .......................!

[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]Post by kamlabhati » 19 May 2018 15:32[/font]
मुह चुदाई के बाद अब बारी थी उसके कबूतरों पर व्यभिचार की !

शास्त्री इतनी जल्दी झड़ने वालों में नहीं था सुबह शाम घोट कर दो बड़े बड़े भांग के लड्डू निगलता था 

भांग का सीधा असर स्तम्भन शक्ति पर पड़ता हे !

और फिर पुरे पंद्रह साल बाद उसे ये स्त्री देह मिली थी जिसे वो पुरे मन से भोगना चाहता था !

तनु को भी उसकी बातों से पता चल गया था की पंद्रह साल बाद इसका ब्रम्चर्य खंडित उसका सुन्दर 

और सुडोल शरीर कर रहा था इस बात पर वो मन ही मन आनादित भी हो रही थी !

शास्त्री अब पूरा बौरा गया था !

हवस की आंच पर भून कर ना खाया जाय तो क्या सुख !

उसकी बड़ी बड़ी कठोर चुचियों को नोचते हुए सा बोला :-"ये तो रंडीयों वाली चूचियां हे साली .....कितने हरामियों 

को दूध पिलाई हे ...अपने इन थनों से .....कुतिया ....?"

"चट्ट ...."

इसी के साथ शास्त्री ने हवस के प्रवाह में उसके स्तनों पर एक झापड़ दे मारा !


तनु ने अपने पति के अलावा अभी किसी से नहीं चुदाई और न ही स्तन पान करवाया पर मार के डर से और रंडी कहलाने के रोमांच 

झूठ मुठ की हाँ भर रही थी !

"सी sssssss ...बहुतों को पिलाया ...कभी गिना नहीं
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शास्त्री के कठोर हाथों ने जब उसकी चूचियां मसलना नोचना शुरू किया तो उसे पता चला की प्यार से 

मसली गई चूचियां और हवस में नोची गई चुचियों में कितना बड़ा अंतर होता हे !

प्यार से जब चूची मसली जाती हे तो सिर्फ सनसनाहट होती हे , पर जब हवस में चूची दबोची जाती हे तो 

दुखती हे .कल्लाती , टीस उठती हे और चुचियों में दर्द कई दिनों तक बना रहता हे !

किसी पके फोड़े की तरह चुचिया दुखती और टपकती हे कई दिनों तक !

और जितने दिन तक चूचियां टपकती हे स्त्री अपनी योनि को अपनी अंगुली से कुचल कर शांत करती हे !

ओरत को जितना कस कर चोदा जाता हे उसका प्रति -प्रभाव 

उतनी देर तक बना रहता हे !

इस तरह से चुद जाने पर वो कई दिन बाद ही चुदने के लिए तेयार हो पाती हे !

पर इतनी दुत्कार भरी चुदाई से स्त्री कुंठित हो जाती हे !

आत्मग्लानि की भावना उसमे भर जाती हे !

बाद में ये सोच सोच कर उसे अफ़सोस होता हे की उसे कितनी बुरी तरह से भोगा गया हे ..!

वो प्रण कर लेती हे की दुबारा उससे नहीं चुदेगी पर प्रति - प्रभाव से से बहुत दिनों तक उससे बाख नहीं पाती !

चाहे महीने गुजर जाये पर फिर वो वेसे ही कामी पुरुष की हवस का शिकार बन कर किसी कुतिया की 

तरह दुबारा चुदना चाहेगी !
 
पुरुष एक बार चोदने के बाद सिर्फ कुछ पलों के लिए सम्भोग से विमुख हो जाता हे !

पर स्त्री एक बार प्रेम रहित रति - क्रीडा से गुजर कर कई दिनों के लिए वासना से विमुख 

हो जाती हे ...बशर्ते की वो कोई वेश्या ना हो !

" कभी किसी कमीने ने तुम्हे मूत्र स्नान कराया हे या नहीं ...?" शास्त्री स्तन की गुंडी को अंगुली के बीच ले कर 

कच्ची मूंगफली का छिलका उतारने की तरह मसल रहा था !

तनु दर्द से ऐसे छटपटा रही थी मानो किसी मछली को शीतल जल से निकाल कर किसी गरम धरातल पर छोड़ दिया हो !

" ऐसा मत कीजिये .....आआइ ...में मर जाउंगी .....मम्मी ......अरे दर्द हो रहा हे .....उखड जायेंगे .....मन ...कहाँ हो ...

ऊऊऊऊऊ ....प्लीज धीरे दबाइए ...सीssss ... छोड़ दीजिये !"

" ऐसे केसे छोड़ दू .....शेर पंजा मरने के बाद मांस को भंभोड़ता हे ...छोड़ता नहीं हे .....चल ...खाट पर 

लेट साली ...हिरोइन की तरह सज के आई थी ना ....मूत्र से नहला कर तुझे .....++++.... बना दूंगा .....

रांड की माँ की भोसड़ी .....मादरचोद तू किसी रंडी माँ की ओलाद हे .....और तेरे बेटी होगी वो भी महा रंडी होगी ....!

और फिर तनु को चारपाई पर धक्का देकर शास्त्री उस पर विभत्स अत्याचार पर उतर आया !

सूं .....सर्रर्रर्र sssssssss ,

शास्त्री तनु की कंचन सी चमकती काया को अपने मूत्र से तर करने लगा !
 
शास्त्री अपने हाथ में मुत्ते लौड़े को पकड़ कर घुमा घुमा कर तनु के पुरे बदन को भिगोने लगा खसक कर उसने उसके मुह पर तेज 

धार छोड़ी थी जो तनु ने मुह बंद करते करते उसके नमकीन पानी का स्वाद मह्सुस कर लिया था !

था तो विभत्स , पर तनु उस चांडाल शास्त्री की इस हरकत से थरथराने लगी थी !

इतने वहशी पुरुष की कल्पना तो वो सपने में ही नहीं कर सकती थी !

पर पुरुष दो चीजों के लिए ही जीता हे -

पहला -स्त्री ,

दूसरा - अभिमान 

और पुरुष तभी अभिमानी होता हे जब अपने पोरष से वो किसी सुन्दर, कोमल स्त्री के सोंदर्य मान 

को अपनी हवस से कुचल दे !

खिड़की से अन्दर झांक रहा मन एक बार स्खलित हो चूका था ,पर वो अभी भी अपनी 

जगह पर जडवत खड़ा था !
 
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