hotaks444
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गर्ल्स स्कूल पार्ट --42
"उफ़.. कहाँ फंस गया? वीरू ने ठीक ही बोला था .. मत पड़ इन चक्करों में.. मारा जाएगा.. हे भगवन! वो मेरी चिंता कर रहा होगा.. क्या करूँ? फ़ोन ही उठा lata ..." जब बाथरूम का दरवाजा नही खुला तोह राज के mathe पर बल पड़ गए...," क्या वो ऊपर नही आ सकती.. एक बार.. कुछ भी बहाना करके.. फंसवा दिया गुसलखाने में.." चिद्चिदेपन में राज ने दीवार पर लात दे मरी.... बाहर निकलने का कोई रास्ता उसको सूझ नही रहा था ...उधर करीब घंटा भर बाद भी जब राज वापस नही आया तोह वीरेंदर को चिंता होने लगी... कुछ देर पहले ही उसने फ़ोन करके देखा था.. पर बेल राज के तकिये के नीचे बजी...वीरू ने और इन्तजार करना ठीक न समझा... अपनी शर्ट पहनी और बाहर निकल गया.. घर के सामने खड़े होकर उसने प्रिया के घर पर निगाह डाली.. कुछ देर पहले तक वहां light जली हुयी थी .. पर अब ऊपर और नीचे सब खामोश था ...," सो गए होंगे.. ये तोह.." वीरू को रत्ती भर भी विस्वास नही था की राज ऐसा कुछ सोचने का दुस्साहस कर सकता है.. कुछ पल खड़ा होने के बाद वह राज की तलाश में मार्केट की और निकल गया..'दुकाने तोह अब तक बंद हो गई होंगी.. कहाँ रह गया कमबख्त?"
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प्रिया और रिया का बुरा हाल था .. दोनों एक दूसरी की और मुंह करके आंखों ही आंखों में राज की हालत पर अफ़सोस प्रकट कर रही थी .. मम्मी पास ही बैठी टी.व्. पर न्यूज़ देख रही थी .. टी.व्. चैनल रह रह कर मुरारी के दोहरे कारनामे की धज्जियाँ उदा रहे थे .."मम्मी.. मेरी एक किताब नही मिल रही.. ऊपर देख आऊँ.. एक बार.." प्रिया ने अचानक बैठते हुए मम्मी से पूछा " तू सोयी नही अभी तक.. फ़िर सुबह उठते हुए वही drama करोगी... सुबह देख लेना.. मैं रूम लाक कर आई हूँ... आजकल चोरों का कुछ भरोसा नही.. जाने कहाँ कहाँ से घुस जाते हैं घर में.." प्रिया के दिल का चोर तोह पहले ही घर में घुसा बैठा था .. उसी को तोह nikaal कर आना था ... सिर्फ़ उस रात के लिए...," पर मम्मी बहुत जरुरी बुक है.. मुझे कल स्कूल लेकर जानी है.. अगर सुबह नही मिली तोह...चाबी दे दो.. मैं अभी देख आती हूँ..""प्रिया.. बेटी... तू इतनी बहादुर कब से हो गई.. तुझे तोह अंधेरे में बाहर आँगन में भी निकलते हुए डर लगता है... ला मुझे बता.. कौनसी किताब है.. मैं देखकर आती हूँ.." उसकी मम्मी ने खड़ी होकर टेबल की drawer से चाबी nikaali ..."नही मम्मी... ममेरा मतलब है.. आपको नही मिलेगी... हम दोनों चली जायेंगी.." प्रिया घबराकर खड़ी हो गई..."अच्छा! तोह मुझे तू anpadh समझती है .. तुझे नही मिली न.. चल नाम बता... २ मिनट में ढूंढ कर laati हूँ.." मम्मी ने हँसते हुए कहा.. प्रिया की बात को वो आत्मसम्मान का प्रशन बना बैठी...
इस बार रिया ने उसकी जान बचा ली," कौनसी किताब ढूंढ रही है तू? जेनेटिक्स वाली..??? वो तोह मेरे बैग में रखी है..."
"हाँ हाँ.. वही ढूंढ रही थी .. तेरे पास कैसे गई.. मेरी किताबों को हाथ मत लगना आज के बाद..!" प्रिया की जान में जान आई.. वरना तोह मुसीबत आने ही वाली थी ..
"अच्छा.. एक तोह बता दी.. वरना क्या होता.. पता है न...?" रिया आँखें matkaati हुयी बोली...
उनकी मम्मी ने चाबी वापस वहीँ रख दी..," अब सो जाओ चुपचाप... बहुत रात हो गई है.." कहकर उसने टीवी और लाइट दोनों बंद कर दी.. और उनके bister के साथ डाली चारपाई पर लेट गई...
"शुक्र है.. चाबी का तोह पता चला.." प्रिया ने मन ही मन कहा और मम्मी के सो जाने का इन्तजार करने लगी... उसका ध्यान अब भी बाथरूम में फंसे राज पर ही था .. 'बेचारा'
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वीरू ने पूरी मार्केट छान दी ... पर राज का कुछ पता न चला.. मार्केट तोह बंद हो चुकी थी ... उसको घोर चिंता सताने लगी... 'गया तोह गया कहाँ?' इसी सोच में डूबा हुआ वीरू जैसे ही रोड पार करने लगा... बिल्कुल नजदीक आ चुकी एक गाड़ी से उसकी आँखें चुन्ध्हिया गई... वह हिल तक नही सका... ड्राईवर के लाख कोशिश करने पर भी गाड़ी सड़क पर रपट-टी हुयी उस-से जा टकराई और divider पर लगी रेलिंग से टकरा कर रोड पर वापस आ गिरा.. गाड़ी के सामने!
गाड़ी में बैठी स्नेहा की चीख निकल गई... उसने आँखें बंद करके कसकर विक्की को पकड़ लिया.."ओह माय गोड !" विक्की ने लाख कोशिश की पर हादसा टाल न सका," तुम गाड़ी से मत निकलना.. मैं देखता हूँ.." कहकर विक्की नीचे उतर गया...वीरू सड़क पर पड़ा कराह रहा था .. उसने उठने की कोशिश की पर उठा न गया.."ठीक तोह हो..?" विक्की ने उसकी टांगें सहलाई और हाथ पकड़ कर पूछा..."आह.. मुझसे खड़ा नही हुआ जा रहा.. ओह्ह्ह्छ.. दर्द हो रहा है.. बहुत ज्यादा.." वीरू ने एक बार फ़िर खड़ा होने की कोशिश की.. पर पैरों ने साथ न दिया...विक्की ने उसके कन्धों के नीचे बांह फंसाई और अपना सहारा देकर खड़ा कर दिया.. बायीं टांग में दर्द बहुत ज्यादा था .."आओ.. गाड़ी में आ जाओ..!" विक्की उसकी बायीं तरफ़ चला गया और उसको धीरे धीरे पिछली सीट की और ले जाने लगा...वीरेंदर ने गाड़ी में बैठते ही पीछे मुड कर देख रही स्नेहा को देखा..," आः.. सॉरी भाई साहब गलती मेरी ही थी ... मेरा ध्यान कहीं और था ..." वीरू अब भी राज के बारे में चिंतित था ...
विक्की कुछ नही बोला॥ जल्दी से आगे बैठकर गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़ा..."कहाँ.. ले जा रहे हो भाई साहब? मुझे....." वीरू ने अपनी टांग को हाथ की मदद से सीधा किया..."हॉस्पिटल में... और कहाँ..?" विक्की ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही जवाब दिया..."नही.. मुझे घर तक छोड़ आओ pls.. सुबह अपने आप चला जाऊँगा.. अगर जरुरत पड़ी तोह..""घर कहीं भगा जा रहा है क्या भाई..! तुम्हारा हॉस्पिटल चलना जरुरी है..." विक्की ने हालाँकि गाड़ी की रफ़्तार धीमी कर दी..."नही.. इसको हॉस्पिटल ही ले चलो.. Fracture होगा तोह..?" बार बार पीछे मुड कर देख रही स्नेहा को वीरू के चेहरे पर दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था ...
"ओह्ह्ह.. नही मैडम! मेरा दोस्त बाहर आया था .. मार्केट तक.. वापस ही नही पहुँचा.. आः.. उसी को देखने आया था .. अब अगर वो आ गया होगा तोह वो मेरी चिंता करेगा... वापस ले चलो.. यहीं पास में ही है..."
विक्की ने गाड़ी रोक दी..," घर पर किसी को बोल आते...!"
"दरअसल हम यहाँ रूम लेकर रहते हैं... घर हमारा यहाँ नही है..."
"पड़ोसी तोह होंगे यार...?" विक्की ने गाड़ी वापस घुमा दी...
"हुंह .. पड़ोसी..." वीरू की आंखों के सामने दोनों जुड़वां बहनों का चेहरा आया तोह वो मनन ही मनन बडबड़ा उठा," हो न हो.. पड़ोस में ही कुछ गड़बड़ हुयी है.. कागज भी नही दिखाया साले ने!"
"यहीं.. इसी गली से अन्दर ले लो.. हाँ... अब सीधा... आगे से बायें..."
ये गलियां विक्की की जानी पहचानी tही ... यहाँ वह कई बार thhanedar के घर आ चुका ठा... वो घर पास आते ही विक्की ने गाड़ी की स्पीड तेज कर दी....
"बस.. भाई साहब.. बस.. आगे आ गए.. वो पीछे वाला घर है..." वीरेंदर ने अपने घर की और इशारा किया...
"अब्बे मरवाएगा क्या..?" विक्की मन ही मन बोला और फ़िर प्रत्यक्ष में कहा," क्या खूब जगह घर लिया है... यार..!" और गाड़ी पीछे करके घर के सामने...लगा दी...
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घर के बाहर गाड़ी के रुकने की आवाज सुनते ही प्रिया और रिया का दिल धड़कने लगा... उनको लगा उनके पापा आ गए... जब भी उनके पापा के साथ कोई होता था तोह वो ऊपर जाकर सोते थे ..," हे भगवन.. पापा के साथ कोई नही होना चाहिय्र.." प्रिया ने हाथ जोड़ कर मन्नत मांगी... अब वह उठकर जाने की तैयारी कर ही रही थी की गाड़ी की आवाज ने उसको फ़िर से दुबक जाने पर vivas कर दिया...
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"लगता है तुम्हारा दोस्त आया नही है अभी तक... लाइट बंद है...!" विक्की ने रूम का दरवाजा खोलते हुए कहा...
"स्विच यहाँ हैं.. इस तरफ़...!"
विक्की ने लाइट ओं कर दी.. स्नेहा उसके पीछे पीछे आ गई थी ...
"तुम क्यूँ आ गई... बस चल ही रहे हैं...!" विक्की ने वीरेंदर को बिस्टर पर लिटा दिया...
"पर इसका दोस्त भी नही आया है.. उसके आने तक..." स्नेहा ने विक्की की आंखों में झांकते हुए कहा...
"आ .. हाँ.. वो मुझे तोह कोई प्रॉब्लम नही है.. अगर इसको न हो तोह.. " विक्की ने वीरेंदर को टेढा किया और हाथ लगाकर चोट का मुआयना करने लगा....
"मुझे क्या दिक्कत होगी.. भाई साहब.. पर आपको अगर janaa है तोह भी मुझे कोई इतराज नही है.. मैं रह लूँगा.. अब क्या दिक्कत होनी है...." वीरेंदर ने विक्की से कहा...
विक्की के बोलने से पहले ही स्नेहा ने अपना आदेश सुना दिया.. ," नही.. हम यहीं रुक जाते हैं.. इसके दोस्त के आने तक... ठीक है न..! हमें किस बात की जल्दी है...?"
"ठीक है.. मैं गाड़ी साइड में लगा कर आता हूँ..." और विक्की बाहर निकल गया...
"थंक्स मैडम! पर आपको चाय पानी के लिए नही पूछ सकता.. सॉरी" स्नेहा का व्यव्हार वीरू को पसंद आया था .. बाकि सब लड़कियों से अलग था ....
"ये मैडम क्यूँ बोल रहे हो? मेरा नाम स्नेहा है.. तुम्हारी उम्र की ही तोह हूँ... मुझे आती है चाय बनानी... कहते हुए वो kitchen में घुस गई......
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गाड़ी के चलने की आवाज सुन'ते ही प्रिया और रिया ने चैन की साँस ली... करीब ५ मिनट के बाद प्रिया उठी और धीरे से उसके कान में कहा..," मैं ऊपर जाकर आती हूँ.. हे भगवन.. बचाना..!"
"मैं भी चलूँ क्या?" रिया उसका हाथ पकड़ कर फुसफुसाई...
"न.. यहाँ मम्मी उठ जायें तोह संभाल लेना.. मैं जल्दी ही आती हूँ... " drawer से चाबी उसने पहले ही निकल ली थी ....
"ठीक है.. मेरी तरफ़ से भी सॉरी बोल देना...."
"मैं जाऊं क्या?" काफी देर के बाद जब प्रिया को मम्मी के खर्राटों की आवाज सुनाई देने लगी तोह उसने रिया के कान में धीरे से कहा.. चाबी उसने पहले ही निकल कर अपने पास रख ली थी ..
"मैं भी चलूँ..?" रिया भी जाग रही थी .. दोनों परेशां थी .. राज के मारे..
"उम्म्म्म.. तू रहने दे.. मैं अकेली ही चली जाती हूँ.. मम्मी उठ जाए तोह संभल लेना.." प्रिया दरी हुयी थी ..
"मेरी तरफ़ से भी सॉरी बोल देना.. बेचारा कितना परेशां हो रहा होगा.." रिया फ़िर से खुस्फुसयी..
प्रिया ने कोई जवाब नही दिया और बैठ गई.. करीब एक मिनट तक मम्मी की और देखती रही और जब उसको विस्वास हो गया की मम्मी नही जागेंगी... तोह धीरे से अपना एक पैर फर्श पर रखा और चप्पल ढूँढ़ने लगी...
"चप्पल रहने दे.. मारेगी क्या.? मम्मी की नींद का पता है न.. जरा सी आहात से उठ जायेंगी.. ऐसे ही चली जा.." रिया ने बैठ कर उसके कान में कहा..
प्रिया ने सहमती में सर हिलाया और खड़ी हो गई.. एक एक कदम बाहर की और रखते हुए उसके पाँव काँप रहे थऐ... जैसे ही वह रूम से निकली उसने अपनी चाल तेज कर दी और तेजी से सीध्हियाँ चढ़ने लगी....राज thhak हार कर सीट पर बैठ गया था ... जैसे ही उसने दरवाजे के बहार हलचल सुनी.. वह एकदम चौकन्ना हो गया और बाथरूम के दरवाजे के पीछे इस तरह खड़ा हो गया की अगर कोई बाथरूम के अन्दर आता है तोह वो दरवाजे के पीछे छिपा रहे और निकल भागने का कोई चांस अगर उसके पास हो तोह वो उसका फायदा उठा सके... उसका दिल जोरों से धड़क'ने लगा..प्रिया ने बिना एक पल भी गँवाए जल्दी से कमरे में आते ही बाथरूम का दरवाजा खोल दिया.." निकलो जल्दी.." प्रिया बहुत दरी हुयी थी .. आंखों में डर फैला हुआ था ...
मम्मी या पापा को वहां न पाकर राज ने चैन की साँस ली.. वह दरवाजे के सामने आया और बोला," प्रिया क्यूँ नही आई..?"
"कमाल है.. तुम्हे... मैं ही.. मतलब मैं आ गई न.. अब भागो जल्दी..!" प्रिया के बाल बिखरे हुए थे .. और जागने की वजह से उसकी आँखें लाल हो गई थी ..
राज अब काफी relax महूस कर रहा था .. उसने तोह 'हद से हद क्या हो सकता है '.. ये तक सोच लिया था .. फ़िर मुफ्त में पीछा छूट'ने पर वह मस्त सा गया था ," प्रिया को भेजो.. उसी की वजह से मेरी दुर्गति हुयी है.. मैं उसको सुनाये बिना नही जाऊँगा.. अब चाहे कुछ भी हो जाए.. क्या कर रही है वो..?"
"सो रही है॥ तुम्.. तुम् अपने साथ मुझे भी मरवाओगे.. please जो कुछ कहना सुन'ना है.. कल कह लेना.. स्कूल में... तुम मेरे घर वालों को नही जान'ते.. जाओ please .." प्रिया का चेहरा देखने लायक हो गया था .. उसके गुलाबी होंटों का रंग फीका पड़ गया
"अच्छा.. मुझे यहाँ बाथरूम में रुकवा कर वो मजे से सो रही है.. मैं नही जाता.. सुबह मेरे साथ तुम दोनों को भी मजा आ जाएगा.." राज को जब पता चला की प्रिया सो रही है तोह उसका गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुँच गया..
"तुम इतने जिद्दी क्यूँ हो राज... व्वो मैं ही प्रिया हूँ.. और रिया भी जाग रही है.. तुम्हारे कारण.. पता है इतनी देर से मम्मी सोयी ही नही.. हम इंतज़ार कर रहे थे उनके सोने का... अब जाओ please.." प्रिया ने हाथ जोड़कर कहा..
राज उसको कुछ पल गौर से देखता रहा..," क्या कहा? तुम... प्रिया हो.. झूठ क्यूँ बोल रही हो... मुझे भागने के लिए..."
"सच्ची राज तुम्हारी कसम.. उस वक्त मैंने यूँ ही झूठ बोल दिया था .. मैं ही प्रिया हूँ..." प्रिया रह रह कर दरवाजे की और देख रही था .. उसको लग रहा था मम्मी बस आने ही वाली हैं...
"क्यूँ? उस वक्त तुमने झूठ क्यूँ बोला..? मैं नही मानता.. झूठ तुम अब बोल रही हो.." राज बाथरूम से बाहर निकलने को तैयार ही नही था ..
"व..वो मुझे उस वक्त डर लग रहा था .. तुम मेरे पास आ रहे थे .. इसीलिए", कहते हुए प्रिया की नजरें शर्म के मारे जमीन में गड़ गई .. उसके बाद वह कुछ न बोली.. बस अपने हाथ बांधे खड़ी रही..
"पर तुम्हे ऐसा क्यूँ लगा की ख़ुद को रिया कह देने पर मैं तुम्हारी और नही आऊंगा.. ?"
प्रिया कुछ न बोली.. जवाब उसको मालूम था .. उसको मालूम था की राज उस'से प्यार करता है.. वह ऐसे ही नजरें झुकाए खड़ी रही..."अच्छा.. बस एक बात बता दो.. अगर तुम्हे मेरे आगे बढ़ने से इतना ही डर लगता है तो फ़िर मुझे बुलाया क्यूँ..?" राज ने प्रिया को ऊपर से नीचे तक देखा.. वो रात के खुले कपडों में कामुकता का भण्डार लग रही थी ....
" मैंने बोला तोह था .. मैंने तोह अपनी फाइल मंगवाई थी .. तुम समझ क्यूँ नही रहे.. मुसीबत आ जायेगी.. please निकलो यहाँ से..!" प्रिया ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए..
"ठीक है.. चला जाऊँगा... एक बात बता दो.." राज बाथरूम से बाहर आ गया..
"क्या?.. जल्दी बोलो!" प्रिया ने खिन्न होते हुए कहा..
"तुम्हे मैं अच्छा नही लगता क्या?" राज ने उसकी एक तरफ़ देखती हुयी आंखों में झाँका..सुनते ही प्रिया की आँखें उसकी और घूम गई.. कितना अच्छा लगा था .. उसके मुंह से ये सब सुन'ना .. अगले ही पल उसने नजरें हटा कर कुछ बोलने की कोशिश की.. पर जैसे उसकी जुबान पर ताला लग गया.. राज के बारे में वो जितना सोचती थी .. जो सोचती थी .. वो निकल ही नही पाया...
"बोलो न.. मैं तुम्हे अच्छा लगता हूँ या नही... फ़िर मैं चला जाऊँगा.. तुम्हारी कसम.." कहते हुए राज ने आगे बढ़ कर प्रिया का हाथ पकड़ लिया...
"मुझे नही पता.. मैं जा रही हूँ.. तुम्हे जब जाना हो.. चले जाना ..!" प्रिया ने ताला टेबल पर रखा और बाहर की और जाने लगी.. पर राज ने उसका हाथ पकड़ रखा था .. मजबूती से.. प्रिया ने अपना हाथ छुडाने की कोशिश की तोह राज ने उसको अपनी और खींच लिया.. प्रिया को लगा जैसे उसमें जान ही नही बची.. उसने राज के आगोश में आने से बचने की कोशिश तक नही की और अगले ही पल वो उसकी बाहों में थी .."ये क्या बदतमीजी है.. छोडो मुझे.." पता नही प्रिया के मुंह से ये बात निकली कैसे.. और कहाँ से.. न तोह उसका मन ही.. न उसका खूबसूरत और मुलायम बदन उसकी बात के samarthan में था .. प्रिया का कुंवारा बदन.. एक दम खिल सा गया था .. राज की बाँहों में आते ही.. ढीले कपड़े भी छातियों पर टाइट हो गए थे .. जो राज के सीने से छू गई थी ...
"बदतमीजी का क्या मतलब है.. मैं तोह पूछ रहा हूँ.. बता दो.. मैं तुम्हे छोड़ दूंगा... और चला जाऊँगा.." प्रिया के बदन की महक इतनी करीब से महसूस करके राज का रोम रोम बाग़ बाग़ हो गया.. प्रिया को छोड़ने की बजे उसने अपना हाथ उसकी पतली कमर में दाल लिया.. प्रिया की तेज़ हो चुकी गरम साँसों से वह उत्तेजित भी हो गया था .. उसकी आंखों के सामने गाँव वाला दृश्य जीवंत हो उठा.. वह प्रिया को भी उसी तरह देखने को लालायित हो उठा.. जैसे उसने खेतों में कामिनी को देखा था ... बिना कोई कपड़ा तन पर डाले... उसकी उंगलियाँ प्रिया की कमर पर सख्त हो चली थी .. और उसको अपनी और खींच रही थी ...
कमाल की बात तोह ये थी ki प्रिया के शरीर से इन् सबका हल्का सा भी विरोध न होने पर भी प्रिया की जुबान हार मान'ने का नाम तक नही ले रही थी .. अपनी जाँघों से थोड़ा सा ऊपर प्रिया को 'कुछ' चुभ रहा ठा.. प्रिया जानती थी की 'ये' क्या है..? उसको ऐसा लगा जैसे वो आसमान से गिर रही है.. इतना हल्का.. इतना रोमांचक.. और इतना आनंददायी.. दिल चाह रहा था की वह अपना हाथ भी राज की कमर से चिपका ले और उस'से और jyada चिपक जाए.. इस अभ्हूत्पूर्व आनंद को दोगुना करने के लिए.. पर उसकी जुबान कुछ और ही बोल रही थी ..," ये ग़लत है राज.. छोडो मुझे.. मुझे जाने दो.. मुझे डर लग रहा है.. जाने दो मुझे.. छोडो."
कहते हुए उसने प्रतिरोध करने की कोशिश की.. पर उसके बदन ने उसका साथ ही नही दिया.. वह यूँही चिपका रहा.. प्रिया अब राज की आंखों में झांक रही थी .. उसकी आंखों में सहमती भी थी .. और विरोध के भावः भी.. प्यार था और नाराजगी भी.. फंसने का डर भी था और और पास आने की तमन्ना भी... पर राज ने सिर्फ़ वही देखा जो वो देखना चाह रहा था ... इतनी देर से उसके होंटों के पास ही खिले गुलाब की पंखुडियों जैसे प्रिया के गुलाबी होंटों को नजरअंदाज करना वैसे भी असंभव था ... राज ने अपना चेहरा झुकाया और प्रिया की नामुराद जुबान को बंद कर दिया.. प्रिया रोमांच की दुनिया के इस सर्वप्रथम अहसास को sah नही पाई.. कुछ देर तक तोह उसकी समझ में कुछ आया ही नही..
"उफ़.. कहाँ फंस गया? वीरू ने ठीक ही बोला था .. मत पड़ इन चक्करों में.. मारा जाएगा.. हे भगवन! वो मेरी चिंता कर रहा होगा.. क्या करूँ? फ़ोन ही उठा lata ..." जब बाथरूम का दरवाजा नही खुला तोह राज के mathe पर बल पड़ गए...," क्या वो ऊपर नही आ सकती.. एक बार.. कुछ भी बहाना करके.. फंसवा दिया गुसलखाने में.." चिद्चिदेपन में राज ने दीवार पर लात दे मरी.... बाहर निकलने का कोई रास्ता उसको सूझ नही रहा था ...उधर करीब घंटा भर बाद भी जब राज वापस नही आया तोह वीरेंदर को चिंता होने लगी... कुछ देर पहले ही उसने फ़ोन करके देखा था.. पर बेल राज के तकिये के नीचे बजी...वीरू ने और इन्तजार करना ठीक न समझा... अपनी शर्ट पहनी और बाहर निकल गया.. घर के सामने खड़े होकर उसने प्रिया के घर पर निगाह डाली.. कुछ देर पहले तक वहां light जली हुयी थी .. पर अब ऊपर और नीचे सब खामोश था ...," सो गए होंगे.. ये तोह.." वीरू को रत्ती भर भी विस्वास नही था की राज ऐसा कुछ सोचने का दुस्साहस कर सकता है.. कुछ पल खड़ा होने के बाद वह राज की तलाश में मार्केट की और निकल गया..'दुकाने तोह अब तक बंद हो गई होंगी.. कहाँ रह गया कमबख्त?"
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प्रिया और रिया का बुरा हाल था .. दोनों एक दूसरी की और मुंह करके आंखों ही आंखों में राज की हालत पर अफ़सोस प्रकट कर रही थी .. मम्मी पास ही बैठी टी.व्. पर न्यूज़ देख रही थी .. टी.व्. चैनल रह रह कर मुरारी के दोहरे कारनामे की धज्जियाँ उदा रहे थे .."मम्मी.. मेरी एक किताब नही मिल रही.. ऊपर देख आऊँ.. एक बार.." प्रिया ने अचानक बैठते हुए मम्मी से पूछा " तू सोयी नही अभी तक.. फ़िर सुबह उठते हुए वही drama करोगी... सुबह देख लेना.. मैं रूम लाक कर आई हूँ... आजकल चोरों का कुछ भरोसा नही.. जाने कहाँ कहाँ से घुस जाते हैं घर में.." प्रिया के दिल का चोर तोह पहले ही घर में घुसा बैठा था .. उसी को तोह nikaal कर आना था ... सिर्फ़ उस रात के लिए...," पर मम्मी बहुत जरुरी बुक है.. मुझे कल स्कूल लेकर जानी है.. अगर सुबह नही मिली तोह...चाबी दे दो.. मैं अभी देख आती हूँ..""प्रिया.. बेटी... तू इतनी बहादुर कब से हो गई.. तुझे तोह अंधेरे में बाहर आँगन में भी निकलते हुए डर लगता है... ला मुझे बता.. कौनसी किताब है.. मैं देखकर आती हूँ.." उसकी मम्मी ने खड़ी होकर टेबल की drawer से चाबी nikaali ..."नही मम्मी... ममेरा मतलब है.. आपको नही मिलेगी... हम दोनों चली जायेंगी.." प्रिया घबराकर खड़ी हो गई..."अच्छा! तोह मुझे तू anpadh समझती है .. तुझे नही मिली न.. चल नाम बता... २ मिनट में ढूंढ कर laati हूँ.." मम्मी ने हँसते हुए कहा.. प्रिया की बात को वो आत्मसम्मान का प्रशन बना बैठी...
इस बार रिया ने उसकी जान बचा ली," कौनसी किताब ढूंढ रही है तू? जेनेटिक्स वाली..??? वो तोह मेरे बैग में रखी है..."
"हाँ हाँ.. वही ढूंढ रही थी .. तेरे पास कैसे गई.. मेरी किताबों को हाथ मत लगना आज के बाद..!" प्रिया की जान में जान आई.. वरना तोह मुसीबत आने ही वाली थी ..
"अच्छा.. एक तोह बता दी.. वरना क्या होता.. पता है न...?" रिया आँखें matkaati हुयी बोली...
उनकी मम्मी ने चाबी वापस वहीँ रख दी..," अब सो जाओ चुपचाप... बहुत रात हो गई है.." कहकर उसने टीवी और लाइट दोनों बंद कर दी.. और उनके bister के साथ डाली चारपाई पर लेट गई...
"शुक्र है.. चाबी का तोह पता चला.." प्रिया ने मन ही मन कहा और मम्मी के सो जाने का इन्तजार करने लगी... उसका ध्यान अब भी बाथरूम में फंसे राज पर ही था .. 'बेचारा'
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वीरू ने पूरी मार्केट छान दी ... पर राज का कुछ पता न चला.. मार्केट तोह बंद हो चुकी थी ... उसको घोर चिंता सताने लगी... 'गया तोह गया कहाँ?' इसी सोच में डूबा हुआ वीरू जैसे ही रोड पार करने लगा... बिल्कुल नजदीक आ चुकी एक गाड़ी से उसकी आँखें चुन्ध्हिया गई... वह हिल तक नही सका... ड्राईवर के लाख कोशिश करने पर भी गाड़ी सड़क पर रपट-टी हुयी उस-से जा टकराई और divider पर लगी रेलिंग से टकरा कर रोड पर वापस आ गिरा.. गाड़ी के सामने!
गाड़ी में बैठी स्नेहा की चीख निकल गई... उसने आँखें बंद करके कसकर विक्की को पकड़ लिया.."ओह माय गोड !" विक्की ने लाख कोशिश की पर हादसा टाल न सका," तुम गाड़ी से मत निकलना.. मैं देखता हूँ.." कहकर विक्की नीचे उतर गया...वीरू सड़क पर पड़ा कराह रहा था .. उसने उठने की कोशिश की पर उठा न गया.."ठीक तोह हो..?" विक्की ने उसकी टांगें सहलाई और हाथ पकड़ कर पूछा..."आह.. मुझसे खड़ा नही हुआ जा रहा.. ओह्ह्ह्छ.. दर्द हो रहा है.. बहुत ज्यादा.." वीरू ने एक बार फ़िर खड़ा होने की कोशिश की.. पर पैरों ने साथ न दिया...विक्की ने उसके कन्धों के नीचे बांह फंसाई और अपना सहारा देकर खड़ा कर दिया.. बायीं टांग में दर्द बहुत ज्यादा था .."आओ.. गाड़ी में आ जाओ..!" विक्की उसकी बायीं तरफ़ चला गया और उसको धीरे धीरे पिछली सीट की और ले जाने लगा...वीरेंदर ने गाड़ी में बैठते ही पीछे मुड कर देख रही स्नेहा को देखा..," आः.. सॉरी भाई साहब गलती मेरी ही थी ... मेरा ध्यान कहीं और था ..." वीरू अब भी राज के बारे में चिंतित था ...
विक्की कुछ नही बोला॥ जल्दी से आगे बैठकर गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़ा..."कहाँ.. ले जा रहे हो भाई साहब? मुझे....." वीरू ने अपनी टांग को हाथ की मदद से सीधा किया..."हॉस्पिटल में... और कहाँ..?" विक्की ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही जवाब दिया..."नही.. मुझे घर तक छोड़ आओ pls.. सुबह अपने आप चला जाऊँगा.. अगर जरुरत पड़ी तोह..""घर कहीं भगा जा रहा है क्या भाई..! तुम्हारा हॉस्पिटल चलना जरुरी है..." विक्की ने हालाँकि गाड़ी की रफ़्तार धीमी कर दी..."नही.. इसको हॉस्पिटल ही ले चलो.. Fracture होगा तोह..?" बार बार पीछे मुड कर देख रही स्नेहा को वीरू के चेहरे पर दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था ...
"ओह्ह्ह.. नही मैडम! मेरा दोस्त बाहर आया था .. मार्केट तक.. वापस ही नही पहुँचा.. आः.. उसी को देखने आया था .. अब अगर वो आ गया होगा तोह वो मेरी चिंता करेगा... वापस ले चलो.. यहीं पास में ही है..."
विक्की ने गाड़ी रोक दी..," घर पर किसी को बोल आते...!"
"दरअसल हम यहाँ रूम लेकर रहते हैं... घर हमारा यहाँ नही है..."
"पड़ोसी तोह होंगे यार...?" विक्की ने गाड़ी वापस घुमा दी...
"हुंह .. पड़ोसी..." वीरू की आंखों के सामने दोनों जुड़वां बहनों का चेहरा आया तोह वो मनन ही मनन बडबड़ा उठा," हो न हो.. पड़ोस में ही कुछ गड़बड़ हुयी है.. कागज भी नही दिखाया साले ने!"
"यहीं.. इसी गली से अन्दर ले लो.. हाँ... अब सीधा... आगे से बायें..."
ये गलियां विक्की की जानी पहचानी tही ... यहाँ वह कई बार thhanedar के घर आ चुका ठा... वो घर पास आते ही विक्की ने गाड़ी की स्पीड तेज कर दी....
"बस.. भाई साहब.. बस.. आगे आ गए.. वो पीछे वाला घर है..." वीरेंदर ने अपने घर की और इशारा किया...
"अब्बे मरवाएगा क्या..?" विक्की मन ही मन बोला और फ़िर प्रत्यक्ष में कहा," क्या खूब जगह घर लिया है... यार..!" और गाड़ी पीछे करके घर के सामने...लगा दी...
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घर के बाहर गाड़ी के रुकने की आवाज सुनते ही प्रिया और रिया का दिल धड़कने लगा... उनको लगा उनके पापा आ गए... जब भी उनके पापा के साथ कोई होता था तोह वो ऊपर जाकर सोते थे ..," हे भगवन.. पापा के साथ कोई नही होना चाहिय्र.." प्रिया ने हाथ जोड़ कर मन्नत मांगी... अब वह उठकर जाने की तैयारी कर ही रही थी की गाड़ी की आवाज ने उसको फ़िर से दुबक जाने पर vivas कर दिया...
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"लगता है तुम्हारा दोस्त आया नही है अभी तक... लाइट बंद है...!" विक्की ने रूम का दरवाजा खोलते हुए कहा...
"स्विच यहाँ हैं.. इस तरफ़...!"
विक्की ने लाइट ओं कर दी.. स्नेहा उसके पीछे पीछे आ गई थी ...
"तुम क्यूँ आ गई... बस चल ही रहे हैं...!" विक्की ने वीरेंदर को बिस्टर पर लिटा दिया...
"पर इसका दोस्त भी नही आया है.. उसके आने तक..." स्नेहा ने विक्की की आंखों में झांकते हुए कहा...
"आ .. हाँ.. वो मुझे तोह कोई प्रॉब्लम नही है.. अगर इसको न हो तोह.. " विक्की ने वीरेंदर को टेढा किया और हाथ लगाकर चोट का मुआयना करने लगा....
"मुझे क्या दिक्कत होगी.. भाई साहब.. पर आपको अगर janaa है तोह भी मुझे कोई इतराज नही है.. मैं रह लूँगा.. अब क्या दिक्कत होनी है...." वीरेंदर ने विक्की से कहा...
विक्की के बोलने से पहले ही स्नेहा ने अपना आदेश सुना दिया.. ," नही.. हम यहीं रुक जाते हैं.. इसके दोस्त के आने तक... ठीक है न..! हमें किस बात की जल्दी है...?"
"ठीक है.. मैं गाड़ी साइड में लगा कर आता हूँ..." और विक्की बाहर निकल गया...
"थंक्स मैडम! पर आपको चाय पानी के लिए नही पूछ सकता.. सॉरी" स्नेहा का व्यव्हार वीरू को पसंद आया था .. बाकि सब लड़कियों से अलग था ....
"ये मैडम क्यूँ बोल रहे हो? मेरा नाम स्नेहा है.. तुम्हारी उम्र की ही तोह हूँ... मुझे आती है चाय बनानी... कहते हुए वो kitchen में घुस गई......
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गाड़ी के चलने की आवाज सुन'ते ही प्रिया और रिया ने चैन की साँस ली... करीब ५ मिनट के बाद प्रिया उठी और धीरे से उसके कान में कहा..," मैं ऊपर जाकर आती हूँ.. हे भगवन.. बचाना..!"
"मैं भी चलूँ क्या?" रिया उसका हाथ पकड़ कर फुसफुसाई...
"न.. यहाँ मम्मी उठ जायें तोह संभाल लेना.. मैं जल्दी ही आती हूँ... " drawer से चाबी उसने पहले ही निकल ली थी ....
"ठीक है.. मेरी तरफ़ से भी सॉरी बोल देना...."
"मैं जाऊं क्या?" काफी देर के बाद जब प्रिया को मम्मी के खर्राटों की आवाज सुनाई देने लगी तोह उसने रिया के कान में धीरे से कहा.. चाबी उसने पहले ही निकल कर अपने पास रख ली थी ..
"मैं भी चलूँ..?" रिया भी जाग रही थी .. दोनों परेशां थी .. राज के मारे..
"उम्म्म्म.. तू रहने दे.. मैं अकेली ही चली जाती हूँ.. मम्मी उठ जाए तोह संभल लेना.." प्रिया दरी हुयी थी ..
"मेरी तरफ़ से भी सॉरी बोल देना.. बेचारा कितना परेशां हो रहा होगा.." रिया फ़िर से खुस्फुसयी..
प्रिया ने कोई जवाब नही दिया और बैठ गई.. करीब एक मिनट तक मम्मी की और देखती रही और जब उसको विस्वास हो गया की मम्मी नही जागेंगी... तोह धीरे से अपना एक पैर फर्श पर रखा और चप्पल ढूँढ़ने लगी...
"चप्पल रहने दे.. मारेगी क्या.? मम्मी की नींद का पता है न.. जरा सी आहात से उठ जायेंगी.. ऐसे ही चली जा.." रिया ने बैठ कर उसके कान में कहा..
प्रिया ने सहमती में सर हिलाया और खड़ी हो गई.. एक एक कदम बाहर की और रखते हुए उसके पाँव काँप रहे थऐ... जैसे ही वह रूम से निकली उसने अपनी चाल तेज कर दी और तेजी से सीध्हियाँ चढ़ने लगी....राज thhak हार कर सीट पर बैठ गया था ... जैसे ही उसने दरवाजे के बहार हलचल सुनी.. वह एकदम चौकन्ना हो गया और बाथरूम के दरवाजे के पीछे इस तरह खड़ा हो गया की अगर कोई बाथरूम के अन्दर आता है तोह वो दरवाजे के पीछे छिपा रहे और निकल भागने का कोई चांस अगर उसके पास हो तोह वो उसका फायदा उठा सके... उसका दिल जोरों से धड़क'ने लगा..प्रिया ने बिना एक पल भी गँवाए जल्दी से कमरे में आते ही बाथरूम का दरवाजा खोल दिया.." निकलो जल्दी.." प्रिया बहुत दरी हुयी थी .. आंखों में डर फैला हुआ था ...
मम्मी या पापा को वहां न पाकर राज ने चैन की साँस ली.. वह दरवाजे के सामने आया और बोला," प्रिया क्यूँ नही आई..?"
"कमाल है.. तुम्हे... मैं ही.. मतलब मैं आ गई न.. अब भागो जल्दी..!" प्रिया के बाल बिखरे हुए थे .. और जागने की वजह से उसकी आँखें लाल हो गई थी ..
राज अब काफी relax महूस कर रहा था .. उसने तोह 'हद से हद क्या हो सकता है '.. ये तक सोच लिया था .. फ़िर मुफ्त में पीछा छूट'ने पर वह मस्त सा गया था ," प्रिया को भेजो.. उसी की वजह से मेरी दुर्गति हुयी है.. मैं उसको सुनाये बिना नही जाऊँगा.. अब चाहे कुछ भी हो जाए.. क्या कर रही है वो..?"
"सो रही है॥ तुम्.. तुम् अपने साथ मुझे भी मरवाओगे.. please जो कुछ कहना सुन'ना है.. कल कह लेना.. स्कूल में... तुम मेरे घर वालों को नही जान'ते.. जाओ please .." प्रिया का चेहरा देखने लायक हो गया था .. उसके गुलाबी होंटों का रंग फीका पड़ गया
"अच्छा.. मुझे यहाँ बाथरूम में रुकवा कर वो मजे से सो रही है.. मैं नही जाता.. सुबह मेरे साथ तुम दोनों को भी मजा आ जाएगा.." राज को जब पता चला की प्रिया सो रही है तोह उसका गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुँच गया..
"तुम इतने जिद्दी क्यूँ हो राज... व्वो मैं ही प्रिया हूँ.. और रिया भी जाग रही है.. तुम्हारे कारण.. पता है इतनी देर से मम्मी सोयी ही नही.. हम इंतज़ार कर रहे थे उनके सोने का... अब जाओ please.." प्रिया ने हाथ जोड़कर कहा..
राज उसको कुछ पल गौर से देखता रहा..," क्या कहा? तुम... प्रिया हो.. झूठ क्यूँ बोल रही हो... मुझे भागने के लिए..."
"सच्ची राज तुम्हारी कसम.. उस वक्त मैंने यूँ ही झूठ बोल दिया था .. मैं ही प्रिया हूँ..." प्रिया रह रह कर दरवाजे की और देख रही था .. उसको लग रहा था मम्मी बस आने ही वाली हैं...
"क्यूँ? उस वक्त तुमने झूठ क्यूँ बोला..? मैं नही मानता.. झूठ तुम अब बोल रही हो.." राज बाथरूम से बाहर निकलने को तैयार ही नही था ..
"व..वो मुझे उस वक्त डर लग रहा था .. तुम मेरे पास आ रहे थे .. इसीलिए", कहते हुए प्रिया की नजरें शर्म के मारे जमीन में गड़ गई .. उसके बाद वह कुछ न बोली.. बस अपने हाथ बांधे खड़ी रही..
"पर तुम्हे ऐसा क्यूँ लगा की ख़ुद को रिया कह देने पर मैं तुम्हारी और नही आऊंगा.. ?"
प्रिया कुछ न बोली.. जवाब उसको मालूम था .. उसको मालूम था की राज उस'से प्यार करता है.. वह ऐसे ही नजरें झुकाए खड़ी रही..."अच्छा.. बस एक बात बता दो.. अगर तुम्हे मेरे आगे बढ़ने से इतना ही डर लगता है तो फ़िर मुझे बुलाया क्यूँ..?" राज ने प्रिया को ऊपर से नीचे तक देखा.. वो रात के खुले कपडों में कामुकता का भण्डार लग रही थी ....
" मैंने बोला तोह था .. मैंने तोह अपनी फाइल मंगवाई थी .. तुम समझ क्यूँ नही रहे.. मुसीबत आ जायेगी.. please निकलो यहाँ से..!" प्रिया ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए..
"ठीक है.. चला जाऊँगा... एक बात बता दो.." राज बाथरूम से बाहर आ गया..
"क्या?.. जल्दी बोलो!" प्रिया ने खिन्न होते हुए कहा..
"तुम्हे मैं अच्छा नही लगता क्या?" राज ने उसकी एक तरफ़ देखती हुयी आंखों में झाँका..सुनते ही प्रिया की आँखें उसकी और घूम गई.. कितना अच्छा लगा था .. उसके मुंह से ये सब सुन'ना .. अगले ही पल उसने नजरें हटा कर कुछ बोलने की कोशिश की.. पर जैसे उसकी जुबान पर ताला लग गया.. राज के बारे में वो जितना सोचती थी .. जो सोचती थी .. वो निकल ही नही पाया...
"बोलो न.. मैं तुम्हे अच्छा लगता हूँ या नही... फ़िर मैं चला जाऊँगा.. तुम्हारी कसम.." कहते हुए राज ने आगे बढ़ कर प्रिया का हाथ पकड़ लिया...
"मुझे नही पता.. मैं जा रही हूँ.. तुम्हे जब जाना हो.. चले जाना ..!" प्रिया ने ताला टेबल पर रखा और बाहर की और जाने लगी.. पर राज ने उसका हाथ पकड़ रखा था .. मजबूती से.. प्रिया ने अपना हाथ छुडाने की कोशिश की तोह राज ने उसको अपनी और खींच लिया.. प्रिया को लगा जैसे उसमें जान ही नही बची.. उसने राज के आगोश में आने से बचने की कोशिश तक नही की और अगले ही पल वो उसकी बाहों में थी .."ये क्या बदतमीजी है.. छोडो मुझे.." पता नही प्रिया के मुंह से ये बात निकली कैसे.. और कहाँ से.. न तोह उसका मन ही.. न उसका खूबसूरत और मुलायम बदन उसकी बात के samarthan में था .. प्रिया का कुंवारा बदन.. एक दम खिल सा गया था .. राज की बाँहों में आते ही.. ढीले कपड़े भी छातियों पर टाइट हो गए थे .. जो राज के सीने से छू गई थी ...
"बदतमीजी का क्या मतलब है.. मैं तोह पूछ रहा हूँ.. बता दो.. मैं तुम्हे छोड़ दूंगा... और चला जाऊँगा.." प्रिया के बदन की महक इतनी करीब से महसूस करके राज का रोम रोम बाग़ बाग़ हो गया.. प्रिया को छोड़ने की बजे उसने अपना हाथ उसकी पतली कमर में दाल लिया.. प्रिया की तेज़ हो चुकी गरम साँसों से वह उत्तेजित भी हो गया था .. उसकी आंखों के सामने गाँव वाला दृश्य जीवंत हो उठा.. वह प्रिया को भी उसी तरह देखने को लालायित हो उठा.. जैसे उसने खेतों में कामिनी को देखा था ... बिना कोई कपड़ा तन पर डाले... उसकी उंगलियाँ प्रिया की कमर पर सख्त हो चली थी .. और उसको अपनी और खींच रही थी ...
कमाल की बात तोह ये थी ki प्रिया के शरीर से इन् सबका हल्का सा भी विरोध न होने पर भी प्रिया की जुबान हार मान'ने का नाम तक नही ले रही थी .. अपनी जाँघों से थोड़ा सा ऊपर प्रिया को 'कुछ' चुभ रहा ठा.. प्रिया जानती थी की 'ये' क्या है..? उसको ऐसा लगा जैसे वो आसमान से गिर रही है.. इतना हल्का.. इतना रोमांचक.. और इतना आनंददायी.. दिल चाह रहा था की वह अपना हाथ भी राज की कमर से चिपका ले और उस'से और jyada चिपक जाए.. इस अभ्हूत्पूर्व आनंद को दोगुना करने के लिए.. पर उसकी जुबान कुछ और ही बोल रही थी ..," ये ग़लत है राज.. छोडो मुझे.. मुझे जाने दो.. मुझे डर लग रहा है.. जाने दो मुझे.. छोडो."
कहते हुए उसने प्रतिरोध करने की कोशिश की.. पर उसके बदन ने उसका साथ ही नही दिया.. वह यूँही चिपका रहा.. प्रिया अब राज की आंखों में झांक रही थी .. उसकी आंखों में सहमती भी थी .. और विरोध के भावः भी.. प्यार था और नाराजगी भी.. फंसने का डर भी था और और पास आने की तमन्ना भी... पर राज ने सिर्फ़ वही देखा जो वो देखना चाह रहा था ... इतनी देर से उसके होंटों के पास ही खिले गुलाब की पंखुडियों जैसे प्रिया के गुलाबी होंटों को नजरअंदाज करना वैसे भी असंभव था ... राज ने अपना चेहरा झुकाया और प्रिया की नामुराद जुबान को बंद कर दिया.. प्रिया रोमांच की दुनिया के इस सर्वप्रथम अहसास को sah नही पाई.. कुछ देर तक तोह उसकी समझ में कुछ आया ही नही..