desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
नीतू से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था। नीतू की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे कुमार को नीतू की हालत का पता लग जाए। साथ साथ नीतू को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी।
हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी नीतू एक मानिनी शादीशुदा औरत थी। अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा कुमार को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना?
नीतू ने तय किया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते हुए भी नीतू उठ खड़ी हुई। उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए कुमार को कहा, "बस कुमार। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह नहीं कहा गया की कुमार का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया।
नीतू अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की नीतू कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा हुआ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा। सुनीता से रहा नहीं गया। सुनीता ने हलके से जस्सूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जस्सूजी गहरी नींद सो रहे थे। सुनीता ने जस्सूजी के बदन पर पूरी तरह से कम्बल और चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और कुमार और नीतू की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।
नीतू आगे भागकर कम्पार्टमेंट के शीशे के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था। सुनीता ने देखा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई कुमार से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी।
फिर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, "इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।"
और क्या था? कुमार को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर कम्पार्टमेंट का शीशे का दरवाजा खोलकर वहाँ पहुंची जो हिस्सा ऐयर-कण्डीशण्ड नहीं होता। जहां टॉयलेट बगैरह होते हैं। पीछे पीछे कुमार भी भाग कर पहुंचा और नीतू को लपक कर पकड़ना चाहा। नीतू दरवाजे की और भागी। दुर्भाग्य से दरवाजा खुला था। वहाँ फर्श पर कुछ दही या अचार जैसा फिसलन वाला पदार्थ बिखरा हुआ था। नीतू का पाँव फिसल गया। वह लड़खड़ायी और गिर पड़ी। उस के दोनों पाँव खुले दरवाजे से फिसल कर तेज चल रही ट्रैन के बाहर लटक गए।
कुमार ने फुर्ती से लपक कर ट्रैन के बाहर फिसलकर गिरती हुई नीतू के हाथ पकड़ लिए। नीतू के पाँव दरवाजे के बाहर निचे खुली हवा में पायदानों पर लटक रहे थे। वह जोर जोर से चिल्ला रही थी, "बचाओ बचाओ। कुमार प्लीज मुझे मत छोड़ना।"
कुमार कह रहे थे, "नहीं छोडूंगा, पर तुम मेरा हाथ कस के थामे रखना। कुछ नहीं होगा। बस हाथ कस के पकड़ रखना।"
नीतू कुमार के हाथोँ के सहारे टिकी हुई थी। कुमार के पाँव भी उसी चिकनाहट पर थे। वह अपने को सम्हाल नहीं पाए और चिकनाहट पर पाँव फिसलने के कारण गिर पड़े। कुमार के कमर और पाँव कोच के अंदर थे और उनका सर समेत शरीर का ऊपरी हिस्सा दरवाजे के बाहर था। चूँकि उन्होंने नीतू के हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ रखे थे, इस लिए वह किसी भी चीज़ का सहारा नहीं ले सकते थे और अपने बदन को फिसल ने से रोक नहीं सकते थे।
कुमार ने अपने पाँव फैला कर अपने बदन को बाहर की और फिसलने से रोकना चाहा। पर सहारा ना होने और फर्श पर फैली हुई चिकनाहट के कारण उसका बदन भी धीरे धीरे दरवाजे के बाहर की और खिसकता जा रहा था। पीछे ही सुनीता आ रही थी। उसने यह दृश्य देखा तो उसकी जान हथेली में आ गयी। कुछ ही क्षण की बात थी की नीतू और कुमार दोनों ही तेज गति से दौड़ रही ट्रैन के बाहर तेज हवा के कारण उड़कर फेंक दिए जाएंगे।
सुनीता ने भाग कर फिसल रहे कुमार के पाँव कस के पकडे और अपने दो पाँव फैला कर कोच के कोनों पर अपने पाँव टिका कर कुमार के शरीर को बाहर की और फिसलने से रोकने की कोशिश करने लगी। कुमार नीतू के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर अपनी जान की बाजी लगा कर उसे बाहर फेंके जाने से रोकने की भरसक कोशिश में लगा हुआ था।
हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी नीतू एक मानिनी शादीशुदा औरत थी। अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा कुमार को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना?
नीतू ने तय किया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते हुए भी नीतू उठ खड़ी हुई। उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए कुमार को कहा, "बस कुमार। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह नहीं कहा गया की कुमार का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया।
नीतू अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की नीतू कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा हुआ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा। सुनीता से रहा नहीं गया। सुनीता ने हलके से जस्सूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जस्सूजी गहरी नींद सो रहे थे। सुनीता ने जस्सूजी के बदन पर पूरी तरह से कम्बल और चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और कुमार और नीतू की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।
नीतू आगे भागकर कम्पार्टमेंट के शीशे के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था। सुनीता ने देखा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई कुमार से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी।
फिर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, "इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।"
और क्या था? कुमार को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर कम्पार्टमेंट का शीशे का दरवाजा खोलकर वहाँ पहुंची जो हिस्सा ऐयर-कण्डीशण्ड नहीं होता। जहां टॉयलेट बगैरह होते हैं। पीछे पीछे कुमार भी भाग कर पहुंचा और नीतू को लपक कर पकड़ना चाहा। नीतू दरवाजे की और भागी। दुर्भाग्य से दरवाजा खुला था। वहाँ फर्श पर कुछ दही या अचार जैसा फिसलन वाला पदार्थ बिखरा हुआ था। नीतू का पाँव फिसल गया। वह लड़खड़ायी और गिर पड़ी। उस के दोनों पाँव खुले दरवाजे से फिसल कर तेज चल रही ट्रैन के बाहर लटक गए।
कुमार ने फुर्ती से लपक कर ट्रैन के बाहर फिसलकर गिरती हुई नीतू के हाथ पकड़ लिए। नीतू के पाँव दरवाजे के बाहर निचे खुली हवा में पायदानों पर लटक रहे थे। वह जोर जोर से चिल्ला रही थी, "बचाओ बचाओ। कुमार प्लीज मुझे मत छोड़ना।"
कुमार कह रहे थे, "नहीं छोडूंगा, पर तुम मेरा हाथ कस के थामे रखना। कुछ नहीं होगा। बस हाथ कस के पकड़ रखना।"
नीतू कुमार के हाथोँ के सहारे टिकी हुई थी। कुमार के पाँव भी उसी चिकनाहट पर थे। वह अपने को सम्हाल नहीं पाए और चिकनाहट पर पाँव फिसलने के कारण गिर पड़े। कुमार के कमर और पाँव कोच के अंदर थे और उनका सर समेत शरीर का ऊपरी हिस्सा दरवाजे के बाहर था। चूँकि उन्होंने नीतू के हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ रखे थे, इस लिए वह किसी भी चीज़ का सहारा नहीं ले सकते थे और अपने बदन को फिसल ने से रोक नहीं सकते थे।
कुमार ने अपने पाँव फैला कर अपने बदन को बाहर की और फिसलने से रोकना चाहा। पर सहारा ना होने और फर्श पर फैली हुई चिकनाहट के कारण उसका बदन भी धीरे धीरे दरवाजे के बाहर की और खिसकता जा रहा था। पीछे ही सुनीता आ रही थी। उसने यह दृश्य देखा तो उसकी जान हथेली में आ गयी। कुछ ही क्षण की बात थी की नीतू और कुमार दोनों ही तेज गति से दौड़ रही ट्रैन के बाहर तेज हवा के कारण उड़कर फेंक दिए जाएंगे।
सुनीता ने भाग कर फिसल रहे कुमार के पाँव कस के पकडे और अपने दो पाँव फैला कर कोच के कोनों पर अपने पाँव टिका कर कुमार के शरीर को बाहर की और फिसलने से रोकने की कोशिश करने लगी। कुमार नीतू के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर अपनी जान की बाजी लगा कर उसे बाहर फेंके जाने से रोकने की भरसक कोशिश में लगा हुआ था।