DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन - Page 8 - SexBaba
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DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन

खैर सुनीलजी बर्थ से निचे उतरे और अपनी चप्पल ढूंढने लगे।

सुनील जी को जल्दी ही अपने चप्पल मिल गए और वह तेज चलती हुई, और हिलती हुई गाडी में अपना संतुलन बनाये रखने के लिए कम्पार्टमेंट के हैंडल बगैरह का सहारा लेते हुए डिब्बे के एक तरफ वाले टॉयलेट की और बढ़ गए। उनके जाते ही सुनीता और जस्सूजी दोनों की जान में जान आयी। सुनीता को तो ऐसा लगा की जैसे मौतसे भेंट तो हुई पर जान बच गयी।

जैसे ही सुनीलजी आँखों से ओझल हुए की जस्सूजी फ़ौरन उठकर फुर्ती से बड़ी चालाकी से कम्पार्टमेंट की दूसरी तरफ जिस तरफ सुनीलजी नहीं गए थे उस तरफ टॉयलेट की और चल पड़े।

सुनीता ने फ़ौरन अपने कपडे ठीक किये और अपना सर ठोकती हुई सोने का नाटक करती लेट गयी। आज माँ ने ही उसकी लाज बचाई ऐसा उसे लगा। थोड़ी ही देर में पहले सुनील जी टॉयलेट से वापस आये। उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता को हिलाया और उसे जगाने की कोशिश की। सुनीता तो जगी हुई ही थी। फिर भी सुनीता ने नाटक करते हुए आँखें मलते हुए धीरे से पूछा, "क्या है?"

सुनीलजी ने एकदम सुनीता के कानों में अपना मुंह रख कर धीमी आवाज में कहा, "अपना वादा भूल गयी? आज हमने ट्रैन में रात में प्यार करने का प्रोग्राम जो बनाया था?"

सुनीता ने कहा, "चुपचाप अपनी बर्थ पर लेट जाओ। कहीं जस्सूजी जग ना जाएँ।"

सुनीलजी ने कहा, "जस्सूजी तो टॉयलेट गए हैं। अब तुमने वादा किया था ना? पूरा नहीं करोगी क्या?"

सुनीता ने कहा, "ठीक है। जब जस्सूजी वापस आजायें और सो जाएँ तब आ जाना।"

सुनीलजी ने खुश हो कर कहा, "तुम सो मत जाना। मैं आ जाऊंगा।"

सुनीता ने कहा, "ठीक है बाबा। अब थोड़ी देर सो भी जाओ। फिर जब सब सो जाएँ तब आना और चुपचाप मेरे बिस्तर में घुस जाना, ताकि किसी को ख़ास कर ज्योतिजी और जस्सूजी को पता ना चले।"

सुनील ने खुश होते हुए कहा, "ठीक है। बस थोड़ी ही देर में।" ऐसा कहते हुए सुनीलजी अपनी बर्थ पर जाकर जस्सूजी के लौटने का इंतजार करने लगे। सुनीता मन ही मन यह सब क्या हो रहा था इसके बारे में सोचने लगी।

यहां देखिये, क्या हो रहा है? यहां तो एक कामिनी कामुक स्त्री नीतू चाहती थी की कप्तान कुमार उसे ललचाये और उससे सम्भोग करे। कप्तान कुमार के नीतू की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान करने तक के जाँबाज़ करतब से वह इतनी पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी की वह खुद सामने चलकर अपना कामाग्नि कप्तान कुमार से कुछ हद तक शांत करवाना चाहती थी। वह अपना शील और अपनी इज्जत कप्तान कुमार को सौंपना चाहती थी।

पर कप्तान कुमार तो गहरी नींद में सोये हुए लग रहे थे। ऊपर की बर्थ में लेटी हुई कामाग्नि लिप्त कामिनी नीतू, कुमार से अभिसार करने के लिए उन की पहल का इंतजार कर रही थी, या यूँ कहिये की तड़प रही थी। पहले जो बड़ी मानिनी बन कर कुमार की पहल को नकार रही थी वह खुद अब अपनी बदन में भड़क रही काम की ज्वाला को कुमार के बदन से मिला कर संतृप्त करना चाह रही थी।

पर आखिर कामिनी भी मानिनी तो है ही ना? मानिनी कितनी ही कामातुर क्यों ना हो, वह अपना मानिनी रूप नहीं छोड़ सकती। वह चाहती है की पुरुष ही पहल करे। जब कुमार से कोई पर्याप्त पहल नहीं हुई तो व्याकुल कामिनी ने अपनी चद्दर का एक छोर जानबूझ कर निचे की और सरका दिया। उसने कुमार को एक मौक़ा दिया की कुमार उसे खिंच कर इशारा दे और उसे निचे अपनी बर्थ पर बुलाले। तब फिर कामिनी का मानिनीपन भी पूरा हो जाएगा और वह कुमार पर जैसे मेहरबानी कर उसे अपना बदन सौंप देगी।

पर काफी समय व्यतीत होने पर भी कुमार की और से कोई इशारा नहीं हुआ। समय बीतता जाता था। नीतू को बड़ा गुस्सा आ रहा था। यह क्या बात हुई की उसे रात को आने का न्योता दे कर खुद सो गए? नीतू ने अपनी निचे खिसकाई हुई चद्दर ऊपर की और खिंच ली और करवट बदल कर चद्दर ओढ़ कर सो गयी।

पर नीतू की आँखों में नींद कहाँ? वह तो जागते हुए कुमार के साथ अभिसार (चुदाई)के सपने देख रही थी। नीतू का मन यह सोच रहा था की जिसका शरीर इतना कसा हुआ और जो इतने अच्छे खासे कद का था ऐसे जाबाँझ सिपाही का लण्ड कैसा होगा? जब कुमार के हाथ नीतू की चूँचियों को छुएंगे और उन्हें दबाने और मसलने लगेंगे तो नीतू का क्या हाल होगा? जब ऐसे जवान का हाथ नीतू की चूत पर उसकी हलकी झाँट पर फिरने लगेगा तो क्या नीतू अपनी कराहट रोक पाएगी?

नीतू की चूत यह सोच कर इतनी गीली हो रही थी की उसके लिए अब और इंतजार करना नामुमकिन सा लग रहा था।

नीतू का मन जब ऐसे विचारों में डूबा हुआ ही था की उसे अचानक कुछ हलचल महसूस हुई। नीतू ने थोड़ा सा पर्दा हटा कर देखा तो पाया की सुनीलजी अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे। नीतू को मन में कहीं ना कहीं ऐसा अंदेशा हुआ की कुछ ना कुछ तो होने वाला था। उसने परदे का एक कोना सिर्फ इतना ही हटाया की उसमें से वह देख सके।

नीतू ने देखा की सुनीलजी शायद अपनी चप्पल ढूंढ रहे थे। थोड़ी ही देर में नीतू ने देखा की सुनीलजी वाशरूम की और चल दिए। नीतू को यह देख कुछ निराशा हुई। वह सोच रही थी की सुनील जी शायद निचे की बर्थ पर लेटी हुई दो में से एक स्त्री के साथ सोने जा रहे थे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। नीतू के मन में पहले ही कुछ शक था की वह दोनों जोड़ियाँ एक दूसरे के प्रति कुछ ज्यादा ही रूमानी लग रही थीं।

खैर, नीतू दुखी मन से पर्दा धीरे से खिंच कर बंद करने वाली ही थी की उसके मुंह से आश्चर्य की सिसकारी निकलते निकलते रुक गयी। नीतू ने ऊपर की बर्थ पर लेटे हुए कर्नल साहब की परछाईं सी आकृति को निचे की बर्थ पर लेटी हुई सुनीताजी के बिस्तर में से अफरातफरी में बाहर निकलते हुए देखा। नीतू की तो जैसे साँसे ही रुक गयी। अरे? सुनीताजी जो नीतू को दोपहर कुमार के बारे में पाठ पढ़ा रही थीं, उनके बिस्तर में कर्नल अंकल? कर्नल साहब कब सुनीता जी के बिस्तर में घुस गए? कितनी देर तक कर्नल साहब सुनीताजी के बिस्तर में थे? यह सवाल नीतू के दिमाग में घूमने लगे।

नीतू का माथा ही ठनक गया। क्या सुनीताजी चलती ट्रैन में ज्योतिजी के पति कर्नल साहब से चुदवा रही थीं? एक पुरुष का एक स्त्री के साथ एक ही बिस्तर में से इस तरह अफरातफरी में बाहर निकलना एक ही बात की और इशारा करता था की कर्नल साहब सुनीताजी की चुदाई कर रहे थे। और वह भी तब जब सुनीताजी के पति सामने की ही ऊपर की बर्थ में सो रहे थे? और फिर वह सुनीता जी के बिस्तर में से बाहर निकल कर दूसरी और भाग खड़े हुए तब जब सुनीताजी के पति अपनी बर्थ से निचे उतर वाशरूम की और चल दिए थे।
 
नीतू को कुछ समझ नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। वह चुपचाप अपने बिस्तर में पड़ी आगे क्या होगा यह सोचती हुई कर्नल साहब और सुनीलजी के वापस आने का इंतजार करने लगी।

कुछ ही देर में पहले सुनीलजी वापस आये। नीतू ने देखा की वह सुनीताजी की बर्थ पर जाकर, झुक कर अपनी बीबी को जगा कर कुछ बात करने की कोशिश कर रहे थे। कुछ देर तक उन दोनों के बिच में कुछ बातचीत हुई, पर नीतू को कुछ भी नहीं सुनाई दिया। फिर नीतू ने देखा की सुनीलजी एक अच्छे बच्चे की तरह वापस चुपचाप अपनी ऊपर वाली बर्थ में जाकर लेट गए।

नीतू को लगा की कुछ न कुछ तो खिचड़ी पक रही थी। थोड़ी देर तक इंतजार करने पर फिर कर्नल साहब भी वाशरूम से वापस आ गए। वह थोड़ी देर निचे सुनीताजी की बर्थ के पास खड़े रहे। नीतू को ठीक से तो नहीं दिखा पर उस ने महसूस किया की सुनीताजी के बिस्तर में से शायद सुनीताजी का हाथ निकला। आगे क्या हुआ वह अँधेरे के कारण नीतू देख नहीं पायी, पर उसके बाद कर्नल साहब अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चले गए।

डिब्बे में फिर से सन्नाटा छा गया। नीतू देखने लगी पर काफी देर तक कोई हलचल नहीं हुई। ऐसे ही शायद एक घंटे के करीब हो चुका होगा। नीतू आधी नींद में और आधे इंतजार में ना तो सो पा रही थी ना जग पा रही थी। निराश होकर नीतू की आँख बंद होने वाली ही थी की नीतू को फिर कुछ हलचल का अंदेशा हुआ। फिर नीतू ने पर्दा हटाया तो पाया की सुनीलजी फिर अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे।

इस बार नीतू को लगा की जरूर कुछ ना कुछ नयी कहानी बनने वाली थी। नीतू ने सुनीलजी की परछाईं को जब अपनी बीबी सुनीताजी की बर्थ की और जाते हुए देखा तो नीतू समझ गयी की सुनीलजी का मूड़ कुछ रोमांटिक हो रहा था और चलती ट्रैन में वह अपनी बीबी की चुदाई का आनंद लेने के मूड़ में लग रहे थे। नीतू बड़ी सतर्कता और ध्यान से देखने लगी। देखते ही देखते सुनीलजी चुपचाप अपनी बीबी की बर्थ में सुनीताजी का कम्बल और चद्दर ऊपर उठा कर उसमें घुस गए।

बापरे! उस वक्त नीतू के चेहरे के भाव देखने लायक थे। एक ही रात में दो दो आशिकाना हरकत? नीतू सोच रही थी की सुनीताजी की चुदाई अभी कर्नल साहब कर ही चुके थे की अब सुनीताजी अपने पति से चुदवायेंगीं? बापरे! यह पुरानी पीढ़ी तो नयी पीढ़ी से भी कहीं आगे थी! सुनीताजी के स्टैमिना के लिए भी नीतू के मन में काफी सम्मान हुआ। नीतू जानती थी की कर्नल साहब और सुनीलजी अच्छे खासे जवान और तंदुरस्त थे। उनका लण्ड और स्टैमिना भी काफी होगा। ऐसे दो दो मर्दों से एक ही रात में चुदवाना भी मायने रखता था।

नीतू देखती ही रही की सुनीलजी कैसे अपनी पत्नी सुनीताजी की चुदाई करते हैं। पर अँधेरे और ढके हुए होने के कारण काफी देर तक मशक्कत करने पर भी वह कुछ देख नहीं पायी।

रात के दो बज रहे थे। नीतू को नींद आ ही गयी। नीतू आधा घंटा गहरी नींद सो गयी होगी तब उसने अचानक कुमार की साँसे अपने नाक पर महसूस की। आँखें खुली तो नीतू ने पाया की वह निचे की बर्थ पर कुमार की बाहों में थी। कुमार उसे टकटकी लगा कर देख रहा था। सारे पर्दे बंद किये हुए थे। नीतू के पतले बदन को कुमार ने अपनी दो टांगों में जकड रखा था और कुमार की विशाल बाँहें नीतू की पीठ पर उसे जकड़े हुए लिपटी हुई थीं। कुमार ने नीतू को अपने ऊपर सुला दिया था। दोनों के बदन चद्दर और कम्बल से पूरी तरह ढके हुए थे।

नीतू जैसे कुमार में ही समा गयी थी। छोटी से बर्थ पर दो बदन ऐसे लिपट कर लेटे हुए थे जैसे एक ही बदन हो। नीतू की चूत पर कुमार का खड़ा कड़क लौड़ा दबाव डाल रहा था। नीतू का घाघरा काफी ऊपर की और उठा हुआ था। नीतू तब भी आंधी नींद में ही थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था की वह कैसे ऊपर से निचे की बर्थ पर आगयी।

नीतू ने कुमार की और देखा और कुछ खिसियानी आवाज में पूछा, "कुमार, मैं ऊपर की बर्थ से निचे कैसे आ गयी?"

कुमार मुस्कुराये और बोले, "जानेमन तुम गहरी नींद सो रही थी। मैंने तुम्हें जगाया नहीं। मैं तुम्हें अपनों बाहों में लेना चाहता था। तो मैंने तुम्हें हलके से अपनी बाहों में उठाया और उठाकर यहां ले आया।"

"अरे बाबा, तुम्हें काही घाव हैं और अभी तो वह ताजा हैं।" नीतू ने कहा।

"ऐसी छोटी मोटी चोटें तो हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं। फिर तुम भी तो कोई ख़ास भारी नहीं हो। तुम्हें उठाना बड़ा आसान था। बस यह ध्यान रखना था की कोई देख ना ले।" कुमार ने अपनी मूछों पर ताव देते हुए कहा।

कुमार ने फिर नीतू का सर अपने दोनों हाथोँ में पकड़ा और नीतू के होँठों पर अपने होँठ चिपका दिए। नीतू कुछ पल के किये हक्कीबक्की सी कुमार को देखती ही रही। फिर वह भी कुमार से चुम्बन की क्रिया में ऐसे जुड़ गयी जैसे उन दोनों के होंठ सील गए हों। कुमार और नीतू दोनों एक दूसरे के होँठों और मुंह में से सलीवा याने लार को चूस रहे थे। नीतू ने अपनी जीभ कुमार के मुंह में डाल दो थी। कुमार उससे सारे रस जैसे निकाल कर निगल रहा था।
 
कुमार के चेहरे पर बंधीं पट्टियां होने के कारण नीतू कुछ असमंजस में थी की कहीं कुमार को कोई दर्द ना हो। पर कुमार थे की दर्द की परवाह किये बिना नीतू को अपने बदन पर ऐसे दबाये हुए थे की जैसे वह कहीं भाग ना जाये। नीतू बिलकुल कुमार के बदन से ऐसी चिपकी हुई थी की उसकी सांस भी रुक गयी थी।

नीतू को कभी किसी ने इतनी उत्कटता से चुम्बन नहीं किया था। उसके लिए यह पहला मौक़ा था जब किसी हट्टेकट्टे हृष्टपुष्ट लम्बे चौड़े जवान ने उसे इतना गाढ़ आलिंगन किया हो और इस तरह उसे चुम रहा हो। कुमार नीतू का सारा रस चूस चूस कर निगल रहा था यह नीतू को अच्छा लगा। कुछ देर बाद कुमारअपनी जीभ नीतू के मुंह में डाल और नीतू के मुंह के अंदर बाहर कर नीतू के मुंह को अपनी जीभ से चोदने लगा।

नीतू बोल पड़ी, "कुमार यह क्या कर रहे हो?"

कुमार ने कहा, "प्रैक्टिस कर रहा हूँ।"

नीतू, "किस चीज़ की प्रैक्टिस?"

कुमार: "जो मुझे आखिर में करना है उसकी प्रैक्टिस."

कुमार की बात सुनकर नीतू की जाँघों के बिच से रस चुने लगा। नीतू की टाँगें ढीली पड़ गयीं। नीतू ने कुमार की और शरारत भरी आँखें नचाते हुए पूछा, "अच्छा? जनाब ने यहाँ तक सोच लिया है?"

कुमार ने कहा, "मैंने तो उससे आगे भी सोच रखा है।"

वह कुमार की बात का जवाब नहीं दे पायी। नीतू समझ गयी थी की कुमार का इशारा किस और है। शायद कुमार उसके साथ जिंदगी बिताने की बात कर रहे थे।

नीतू के चेहरे पर उदासी छा गयी। वह जानती थी की वह कुमार की इच्छा पूरी करने में असमर्थ थी। कुमार को पता नहीं था की वह शादी शुदा थी। पर अँधेरे में भी कुमार समझ गए की नीतू कुछ मायूस सी लग रही थी।

कुमार नीतू की आँखों में झाँक कर उसे देखने लगा। नीतू ने पूछा, "क्या देख रहे हो?"

कुमार: "तुम्हारी खूबसूरत आँखें देख रहा हूँ। मैं देख रहा हूँ की मेरी माशूका कुछ मायूस है।"

नीतू: "क्या तुम इतने अँधेरे में भी मेरी आँखें देख सकते हो? मेरे चेहरे के भाव पढ़ सकते हो? मेरी आँखों में तुम्हें क्या दिख रहा है?"

कुमार: "तुम्हारी आँखों में मैं मेरी सूरत देख रहा हूँ।"

नीतू शर्माती हुई बोली, "यह बात सच है। मेरी आँखों में, मेरे मन में अभी तुम्हारे सिवा कोई और नहीं है।"

कुमार ने कहा, "कोई और होना भी नहीं चाहिए, क्यूंकि मैं तुमसे बेतहाशा प्यार करने लगा हूँ। मैं नहीं चाहूँगा की मेरी प्यारी जानू और किसी की और मुड़ कर भी देखे।"

नीतू: "माशा अल्लाह! अभी तो हमें मिले हुए इन मीन चंद घंटे ही हुए हैं और मियाँ मुझे प्यार करने और अपना हक़ जमाने भी लग गए?"

कुमार: "प्यार घंटों का मोहताज नहीं होता, जानेमन! प्यार दिल से दिल के मिलने से होता है।"

नीतू, "देखो कुमार! आप मेरे बारेमें कुछ भी नहीं जानते। प्यार में कई बार इंसान धोका खा सकता है। तुम्हें मेरे बीते हुए कल के बारे में कुछ भी तो पता नहीं है।"

कुमार, "मैं तुम्हारे बीते हुए कल के बारे में कुछ नहीं जानना चाहता। मैं प्यार में धोका खाने के लिए भी तैयार हूँ।"

कुमार की बात सुनकर नीतू की आँखों में पानी भर आया। पहली बार किसी छैलछबीले नवयुवक ने नीतू से ऐसी प्यार भरी बात कही थी। उस दिन तक अगर किसी भी युवक ने नीतू की और देखा था तो सिर्फ हवस की नजर से ही देखा था। पर कुमार तो उसे अपनी जिंदगी की रानी बनाना चाहते थे। नीतू ने अपने होँठ कुमार के होँठ से चिपका कर कहा, "आगे की बात बादमें करेंगे। अभी तो मैं तुम्हारी ही हूँ । तुम मुझे प्यार करना चाहते हो ना? तो करो।"
 
फिर नीतू ने कुमार के कानों के पास अपना मुंह ले जा कर कहा, "क्या तुम्हें पता है की अभी इस वक्त हम अकेले ही नहीं है जो इस ट्रैन में एक दूसरे से इतने घने प्यार में मशगूल हैं?"

कुमार ने नीतू की और आश्चर्य से देखा और बोले, "क्या मतलब?"

नीतू ने कहा, "मैं क्या कहूं? मुझे कहते हुए भी बड़ी शर्म आ रही है। यह जो सुनीताजी हैं ना? जिन्होंने तुम्हें बचाने की भरसक कोशिश की थी? वह भी काफी तेज निकली! मैंने अभी अभी देखा की पहले उनके बिस्तर में ज्योतिजी के पति कर्नल साहब घुसे हुए थे। पता नहीं कबसे घुसे हुए होंगे और उन्होंने सुनीता जी के साथ क्या क्या किया होगा? फिर वह बाहर निकल आये तो कुछ देर बाद अभी अभी सुनीताजी के पति सुनीलजी अपनी पत्नी सुनीताजी की बर्थ में उनके कम्बल में घुसे हुए हैं। शायद इस वक्त जब हम बात कर रहे हैं तो वह कुछ और कर रहे होंगे।"

कुमार को यह सुनकर नीतू की बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह बोल पड़े, "नीतू तुम क्या कह रही हो? एक ही रात में दो दो मर्दों से लीला? भाई कमाल है! यह पुरानी पीढ़ी तो हम से भी आगे है!" फिर कुछ सोच कर बोले, "उनको जो करना है, करने दो। हम अपनी बात करते हैं। हम बात क्यों कर रहे हैं? भाई हम भी तो कुछ करें ना?"

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हमें अबतक की कहानी से दो सिख मिलती है। पहली यह की हम ने देखा की कामवासना की ज्वाला मैं कैसे कैसे नामी और अच्छे ओहदे पर बैठे साहबान भी झुलस सकते हैं। कई बार उन्हें सही या गलत का ख्याल नहीं रहता। ट्रैन में जस्सूजी को उकसाने में कुछ हद तक सुनीता का हाथ जरूर था, पर अगर किसी ने यह देख लिया होता और सबके सामने जाहिर कर दिया होता की जस्सूजी जैसे बड़े ही सम्मानित और जाने माने देश भक्त आर्मी के अफसर किसी और की बीबी के बिस्तर में जा कर उसके साथ भद्दी हालात में पाए गए, तो उनकी क्या इज्जत रह जाती?

चाहे बड़ा ही गणमान्य हो या हमारे जैसा आम व्यक्ति हो, अगर उस की जाँघों के बिच का लण्ड या चूत सक्रीय है तो वह कोई भी खूबसूरत सेक्सी स्त्री या पुरुष की और आकर्षित होना स्वाभाविक है। यह कुदरत का नियम है। उसमें भी यदि उन्हें कोई ऐसी स्त्री या पुरुष मिल जाए जो उनकी काम क्रीड़ा में साथ देने में इंटरेस्टेड हो तो कुछ ना कुछ कहानी बन ही जाती है।

पर यहां यह ख़ास तौर से गणमान्य व्यक्तियों को चाहिए की ऐसी कोई पारस्परिक सहमति से स्त्रीपुरुष की काम क्रीड़ा हो तो भी लोगों की नजरों से दूर बंद दरवाजे में हो वही बेहतर है। टिका टिपण्णी अथवा बदनामी करने वालों की कोई कमी नहीं है।

दूसरी बात यह की सबसे पहले तो यह समझ लें की कभी भी कोई भी महिला से उनकी शत प्रतिशत मर्जी के बिना जबरदस्ती करना गलत एवं गैर कानूनी दंडनीय अपराध होने के उपरांत बड़ा ही खतरनाक और महंगा साबित हो सकता है।

अगर सहमति से भी मैथुन होता है तो यह ध्यान रखना चाहिए की कहीं आप पर यह दाव उलटा ना पड़ जाए। इस लिए जिस किसी भी महिला से आप शारीरिक सम्बन्ध जोड़ते हों तो उसकी सम्पूर्ण सहमति होनी जरुरी है। धन, नौकरी, प्रमोशन इत्यादि लालच देकर किसी महिला को फांसने की कोशिश करना भी जुर्म है।
 
हालांकि इस कहानी मैं कोई जबरदस्ती की बात नहीं है, पर अगर किसी महिला को कोई आला अफसर, नेता, बिज़नेस मेन या फिर कोई धार्मिक ओहदे पर बैठे हुए व्यक्ति अपने ओहदे या आर्थिक ताकत का गलत इस्तमाल कर यौन क्रिया के लिए उसके मना करने पर भी परेशान करे तो उस महिला को चुप नहीं रहना चाहिए और ऐसे लोगों का भंडाफोड़ करना चाहिए। आजकल हमारी न्यायिक और सरकारी महकमे इस मामले में काफी सजग है और बड़े बड़े रसूखदार व्यक्तियों को भी जेल जाना पड़ रहा है।

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चलिए, हम वापस अपनी कहानी पर आते हैं।

नीतू ने जब इशारा किया की कर्नल साहब सुनीलजी की बीबी सुनीताजी की चुदाई कर चुके थे और उसके कुछ देर बाद उसी वक्त सुनीताजी अपने पति से चुद रही थी तो उन्हें आश्चर्य तो हुआ, पर फिर उन्होंने सोचा की दूसरों के निजी मामलों में उन्हें कोई दखल अंदाजी या टिपण्णी नहीं करनी चाहिए तो वह कुछ सोच कर बोले, "उनको जो करना है, करने दो। हम अपनी बात करते हैं। हम बात क्यों कर रहे हैं? भाई हम भी तो कुछ करें ना?"

नीतू ने कुमार के गालों को चूमते हुए कहा, "तो फिर करो ना, किसने रोका है?"

नीतू के मन में कुमार के लिए इतना प्यार उमड़ पड़ा की वह कुमार के होँठों के अलावा उसके कपाल, उस के चेहरे पर बंधी पट्टियां, उसके नाक, कान और बालों को भी चूमने लगी। नीतू की चूत में से पानी की धार बहने लगी थी। कुमार का लण्ड एकदम अटेंशन में खड़ा हुआ था और नीतू की चूत को कपड़ों के माध्यम से कुरेद रहा था।

कुमार का एक हाथ नीतू की गाँड़ की और बढ़ रहा था। नीतू की सुआकार गाँड़ पर हाथ पहुंचते ही नीतू के पुरे बदन में एक तेज सिहरन सी फ़ैल गयी। नीतू के मुंह से बरबस ही सिसकारी निकल गयी। कुमार नीतू की गाँड़ के गालों को बड़े प्यार से दबाया और उन्हें उँगलियाँ से चूँटी भर कर दबाने और मसलने लगा।

नीतू पर अजीब सी मदहोशी छा गयी थी। कुमार ने उसकी जान बचाई थी तो उसकी जान, उसका बदन और उसकी रूह पर भी कुमार का पूरा हक़ था। कुमार को वह अपना सबकुछ अर्पण कर देना चाहती थी। आगे चाहे कुछ भी हो, नीतू कुमार को अपनी जात सौंपने के लिए बेबस हो रही थी।

नीतू ने फिर कुमार की आँखों में आँखें डाल कर पूछा, 'तुम इस रात मुझसे क्या चाहते हो?"

कुमार ने कहा, "मैं तुम्हें पूरी तरह से मेरी बनाना चाहता हूँ।"

नीतू ने कहा, "तो बनाओ ना? मैंने कहाँ रोका है? पर एक बात ध्यान रहे। मैं तुम्हारे आगे के सपने पुरे ना कर सकुंगी! मैं चाहती हूँ की मैं पूरी जिंदगी तुम्हारी बन कर रहूं। पर शायद यह मेरी ख्वाहिश ही बन कर रह जायेगी। शायद भाग्य को यह मंजूर नहीं।"

कुमार को लगा की नीतू कुछ गंभीर बात करना चाहती थी। उसने पूछा, "जानेमन बोलो ना ऐसी क्या बात है?"

नीतू ने कुमार के गालों पर चुम्मी भरते हुए कहा, "आज की रात हम दोनों की रात है। आज और कोई बात माने नहीं रखती। मैं एक बात और कहना चाहती हूँ। यह सात दिन हमारे रहेंगे, यह मेरा तुमसे वादा है। मैं पूरी जिंदगी का वादा तो नहीं कर सकती पर यह सात दिन मौक़ा मिलते ही मैं दिन में या रात में तुम्हारे पास कुछ ना कुछ जुगाड़ करके पहुँच ही जाउंगी और फिर उस वक्त मैं सिर्फ तुम्हारी ही रहूंगी। तुम मुझसे जी भर कर प्यार करना। हाँ मैं तुम्हें सबके सामने नहीं मिल सकती। मेरे बारे में किसी से भी कोई बात या पूछताछ ना करना। यह बात ध्यान रहे।"

कुमार नीतू की बात सुनकर बड़े ही अचम्भे में पड़ गए। आखिर ऐसी कौनसी रहस्य वाली बात थी, जो नीतू उन्हें नहीं कहना चाहती थी? पर कुमार जानते थे की जिससे प्यार करते हैं उस पर विश्वास रखना और उनकी बात का सम्मान करना जरुरी है। कुमार ने और कुछ सोचना बंद किया और वह नीतू के चारों और फैले हुए बालों में खो गए।

ट्रैन तेजी से दिशा को चीरती हुई भाग रही थी। उसकी हलचल से कुमार और नीतू के बदन ऐसे हिल रहे थे वह दोनों चुदाई में लगे हों। नीतू का हाथ बरबस ही उन दोनों के शरीर के बिच में घुस कर कुमार की जाँघों के बिच में कुमार के खड़े हुए लण्ड के पास जा पहुंचा। वह कुमार के लण्ड को अपनी उँगलियों में महसूस करना चाहती थी। कुमार का लण्ड नीतू की उठी हुई जाँघों के बिच था और इतना लम्बा था की बिच में थोड़ा अंतर होते हुए भी वह नीतू की चूत में ठोकर मार रहा था।

नीतू के हाथ लण्ड के ऊपर महसूस करते ही कुमार की बोलती बंद हो गयी। नीतू ने कुमार के लण्ड के इर्दगिर्द अपनी उँगलियों की गोलाई बनाकर उसमें उसको मुठी में पकड़ना चाहा। कपडे के दूसरी और भी कुमार का लण्ड नीतू की मुठी में तो ना समा सका पर फिर भी नीतू ने कुमार के लण्ड को कुमार के पयजामे के ऊपर से ही सहलाना शुरू किया। कुमार ने मारे उत्तेजना के नीतू के सर को फिर से अपने हाथों में पकड़ कर उसे अपने मुंह से चिपका कर नीतू को गाढ़ चुम्बन करने लगा। कुमार का लण्ड अपने पूर्व रस का स्राव कर रहा था। पहले से ही उसका लण्ड उसके पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ था।
 
नीतू के पकड़ने से जैसे उसके लण्ड में बिजली का कर्रेंट दौड़ ने लगा। कुमार के लण्ड की सारी नसें उसके वीर्य के दबाव से फूल गयी। कुमार ने अपने दोनों हाथ नीतू के सर से हटाए और नीतू की चोली पर रख कर चोली के ऊपर से ही उसके स्तनोँ को कुमार दबाने लगे। कुमार और नीतू अपने प्यार की उच्चतम ऊंचाइयों को छूना चाहते थे।

नीतू कुमार के लण्ड को हल्के हल्के से सहलाने लगी। कुमार के लण्ड से निकली चिकनाहट कुमार के पयजामे को भी गिला और चिकना कर नीतू की उँगलियों में चिपक रही थी। नीतू इसे महसूस कर मन ही मन मुस्कुरायी। कुमार की उत्तेजना वह समझ रही थी। वह जानती थी कुमर उन्हें चोदना चाहते थे और वह खुद भी उनसे चुदना चाहती थी। पर चुदाई के पहले थोड़ी छेड़छाड़ का खेल तो खेलना बनता है ना?

कुमार ने नीतू के ब्लाउज के ऊपर से अपनी उँगलियाँ घुसा कर नीतू के उन्मत्त दो फलों को अपन उंगलयों में पकड़ना चाहा। पर नीतू के स्तनोँ का भराव इतना था की नीतू की चोली और ब्रा इतनी टाइट थी की उसमें में हाथ डाल कर उनको छूना उस हाल में कठिन था।

कुमार ने जल्दी में ही नीतू की पीठ पर से नीतू के ब्लाउज के बटन खोल दिए। बटन खुल जाने पर कुमार ने ब्रा के हुक भी खोल दिए। नीतू के स्तन अब पूर्णतयाः आजाद थे। कुमार ने नीतू को अपने ऊपर ही बैठ जाने के लिए बाध्य किया और नीतू के अल्लड़ स्तन जो पूरी आजादी मिलते हुए भी और इतने मोटे होने के बावजूद भी अकड़े हुए बिना झूले खड़े थे उनको दोनों हाथों में पकड़ कर उन्हें दबाने और मसलने लगे।

नीतू के स्तनोँ के बिच छोटी छोटी फुँसियों का जाल फैलाये हलकी गुलाबी चॉकलेट रंग की एरोला जिसके ठीक बिच में उसकी फूली हुई निप्पलोँ को कुमार अपनी उँगलियों में पिचकाने लगे।

अचानक नीतू को अपनी कोहनी में कुछ चिकनाहट महसूस हुई। नीतू को अजीब लगा की उसकी कोहनी में कैसे चिकनाहट लगी। यह कुमार के लण्ड से निकला स्राव तो नहीं हो सकता। नीतू ने अपने फ़ोन की टोर्च जलाई तो देखा की उसकी कोहनी में कुमार का लाल खून लगा था। तलाश करने पर नीतू ने पाया की उन दोनों के बदन को रगड़ने से एक जगह लगा घाव जो रुझ रहा था उस में से खून रिस ने लगा था। पर कुमार थे की कुछ आवाज भी नहीं की। वह अपनी माशूका को यह महसूस नहीं करवाना चाहते थे की वह दर्द में है।

नीतू को महसूस हुआ की कुमार का दर्द अभी भी था। क्यूंकि जब भी नीतू ट्रैन के हिलने के कारण अथवा किसी और वजह से कुमार के ऊपर थोड़ी हिलती थी तो कुमार के मुंह से कभी कभी एकदम धीमी सिसकारी निकल जाती थी। नीतू समझ गयी की कुमार अपना दर्द छिपाने की भरसक कोशिश कर रहे थे। वह नीतू को प्यार करने के लिए इतने उतावले हो रहे थे की अपना दर्द नजर अंदाज कर रहे थे।

नीतू को कुमार का हाल देख बड़ा आश्चर्य हुआ। क्या कोई मर्द किसी स्त्री को कभी इतना प्यार भी कर सकता है? ना सिर्फ कुमार ने अपनी जान पर खेल कर नीतू को बचाया पर उसे प्यार करने के लिए अपना दर्द भी छुपाने लगा। नीतू ने उस से पहले कभी किसी से इतना प्यार नहीं पाया था। नीतू ने सोचा ऐसे प्यारे बांके बहादुर जांबाज और विरले नवजवान इंसान पर अपना तन और शील तो क्या जान भी देदे तो कम था। उस वक्त तो उसके लिए कुमार के घावोँ को ठीक करना ही एक मात्र लक्ष्य था।

अपने स्तनोँ पर से कुमार का हाथ ना हटाते हुए नीतू धीरे से कुमार से अलग हुई और अपने शरीर का वजन कुमार के ऊपर से हटाया और कुमार के बगल में बैठ गयी। जब कुमार उसकी यह प्रक्रिया को आश्चर्य से देखने लगा तो नीतू ने कहा, "जनाब, अभी आप के घाव पूरी तरह नहीं भरे हैं। आप परेशान मत होइए। मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ। आप पहले ज़रा ठीक हो जाइये। अगले सात दिनों तक मैं आपकी ही हूँ, यह मेरा आपसे वचन है।"

नीतू ने धीरे से अपना हाथ कुमार की जाँघों के बिच में रख दिया और वह कुमार के लण्ड को पयजामे के ऊपर से ही सहलाने लगी। कुमार ने फुर्ती से अपने पयजामे का नाडा खोल दिया। पयजामे का नाडा खुलते ही कुमार का फनफनाता मोटा और काफी लंबा लण्ड नीतू की छोटी सी हथेली में आ गया। उस दिन तक नीतू ने अपने पति के अलावा किसी बड़े आदमी का लण्ड नहीं देखा था। उसके पति का लण्ड अक्सर तो खड़ा होने में भी दिक्कत करता था और अगर खड़ा हो भी गया तो वह चार इंच से ज्यादा लंबा नहीं होता था। कुमार का लंड उससे दुगुना तो था ही, ऊपर से उससे कई गुना मोटा भी था।

कुमार का लण्ड हाथ की हथेली में महसूस होते ही नीतू के मुंह से नकल ही पड़ा, "हाय दैय्या, तुम्हारा यह कितना लंबा और मोटा है? इतना लम्बा और मोटा भी कभी किसीका होता है क्या?"

कुमार ने मुस्कराते हुए बोला, "क्यों? इतना बड़ा लण्ड इससे पहले नहीं देखा क्या?"

नीतू ने, "धत्त तेरी! क्या बातें करते हैं आप? शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए? तुम क्या समझते हो? मुझे इसके अलावा कोई और काम नहीं है क्या?" यह कह कर शर्म से अपना मुंह चद्दर में छिपा लिया। कुमार नीतू के शर्माने से मसुकुरा उठे और नीतू की ठुड्डी अपनी उँगलियों में दबा कर बोले, " जानेमन बात की शुरुआत तो तुमने ही की थी। बड़ा है छोटा है, आजसे यह सिर्फ तुम्हारा है।"
 
एक हाथ से नीतू कुमार के नंगे लण्ड को सेहला रही थी और दोनों हाथों से कुमार नीतू के दो गुम्बजों पर अपनी उँगलियाँ और हथेली घुमा रहा था और बार बार नीतू की निप्पलों को पिचका रहा था। नीतू ने सोचा की वह समय और जगह चुदाई करने लायक नहीं थी। कोई भी उन्हें पर्दा हटा कर देख सकता था। दूसरी बात यह भी थी की नीतू जब मूड़ में होती थी तब चुदाई करवाते समय उसे जोर से कराहने की आदत थी। उस रात एकदम सन्नाटे सी ट्रैन में शोर करना खतरनाक हो सकता था।

नीतू ने कुमार का लण्ड अपनी हथेली में लेकर उसे जोर से हिलाना शुरू किया। नीतू ने कुमार से कहा, "अब तुम कुछ बोलना मत। चुपचाप पड़े रहो। तुम्हें आज रात कोई परिश्रम करने की जरुरत नहीं है। प्लीज मेरी बात मानो। आज रात को हम कुछ नहीं करेंगे। कुमार मैं तुम्हारी हूँ। अब तुम चुपचाप लेटे रहो। मैं तुम्हारी गर्मी निकाल देती हूँ। ओके? मैंने तुम्हें वचन दिया है की मौक़ा मिलते ही मैं तुम्हारे पास आ जाउंगी और हम वह सब कुछ करेंगे जो तुम चाहते हो। पर इस वक्त और कोई बात नहीं बस लेटे रहो।"

नीतू ने कुमार के लण्ड को जोर से हिलाना शुरू किया। कुछ ही देर में कुमार का बदन अकड़ने लगा। कुमार अपनी आँखे भींच कर नीतू के हाथ का जादू अपने लण्ड पर महसूस कर रहा था। कुमार से ज्यादा देर रहा नहीं गया। कुछ ही देर में कुमार के लण्ड से उसके वीर्य की पिचकारी फुट पड़ी और नीतू का हाथ कुमार के वीर्य से लथपथ हो गया।

सुनीलजी की आँखों में नींद ओझल थी। वह बड़ी उलझन में थे। उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता को तो कह दिया था की वह रात में उसके साथ सोने के लिए (मतलब बीबी को चोदने के लिए) आएंगे, पर जब वास्तविकता से सामना हुआ तो उनकी हवाही निकल गयी। निचे के बर्थ पर ज्योतिजी सोई थीं। पत्नी के पास चले गए और अगर ज्योतिजी ने देख लिया तो फिर तो उनकी नौबत ही आ जायेगी।

हालांकि सुनीताजी तो सुनीलजी की बीबी थीं, पर आखिर माशूका भी तो बीबियों से जलती है ना? वह तो उन्हें खरी खोटी सुनाएंगे ही। कहेंगी, "अरे भाई अगर बीबी के साथ ही सोना था तो घर में ही सो लेते! रोज तो घर में बीबी के साथ सोते हुए पेट नहीं भरा क्या? चलती ट्रैन में उसके साथ सोने की जरुरत क्या थी? हाँ अगर माशूका के साथ सोने की बात होती तो समझ में आता है। जल्द बाजी में कभी कबार ऐसा करना पड़ता है। पर बीबी के साथ?" बगैरा बगैरा।

जस्सूजी ने देख लिया तो वह भी टिका टिपण्णी कर सकते थे। वह तो कुछ ख़ास नहीं कहेंगे पर यह जरूर कहेंगे की "यार किसी और की बीबी के साथ सोते तब तो समझते। तुमतो अपनी बीबी को ट्रैन में भी नहीं छोड़ते। भाई शादी के इतने सालों के बाद इतनी आशिकी ठीक नहीं।"

खैर, सुनीलजी डरते कांपते अपनी बर्थ से निचे उतर कर अपनी पत्नी की बर्थ के पास पहुंचे। उन्हें यह सावधानी रखनी थी की उन्हें कोई देख ना ले। यह देख कर उन्हें अच्छा लगा की कहीं कोई हलचल नहीं थी। ज्योतिजी और जस्सूजी गहरी नींद में लग रहे थे। उनकी साँसों की नियत आवाज उन्हें सुनाई दे रही थी।

सुनीलजी को यह शांति जरूर थीकि यदि कभी किसी ने उन्हें देख भी लिया तो आखिर वह क्या कह सकते थे? आखिर वह सो तो अपनी बीबी के साथे ही रहे थे न?

जब सुनीलजी अपनी बीबी सुनीता के कम्बल में घुसे तब सुनीता गहरी नींद में सो रही थी। सुनीलजी उम्मीद कर रहे थे की सुनीता जाग रही होगी। पर वह तो खर्रांटे मार रही थी। लगता था वह काफी थकी हुई थी। थकना तो था ही! सुनीता ने जस्सूजी के साथ करीब एक घंटे तक प्रेम क्रीड़ा जो की थी! सुनीलजी को कहाँ पता था की उनकी बीबी जस्सूजी से कुछ एक घंटे पहले चुदवाना छोड़ कर बाकी सब कुछ कर चुकी थी?

सुनीलजी उम्मीद कर रहे थे की उनकी पत्नी सुनीता उनके आने का इंतजार कर रही होगी। उन्होंने कम्बल में घुसते ही सुनीता को अपनी बाहों में लिया और उसे चुम्बन करने लगे। सुनीता गहरी नींद में ही बड़बड़ायी, "छोडो ना जस्सूजी, आप फिर आ गए? अब काफी हो गया। इतना प्यार करने पर भी पेट नहीं भरा क्या?"
 
यह सुनकर सुनीलजी को बड़ा झटका लगा। अरे! वह यहां अपनी बीबी से प्यार करने आये थे और उनकी बीबी थी की जस्सूजी के सपने देख रही थी? सुनीलजी के पॉंव से जमीन जैसे खिसक गयी। हालांकि वह खुद अपनी बीबी सुनीता को जस्सूजी के पास जाने के लिए प्रोत्साहित कर तो रहे थे पर जब उन्होंने अपनी बीबी सुनीता के मुंह से जस्सूजी का नाम सूना तो उनकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। उनके अहंकार पर जैसे कुठाराघात हुआ।

पुरुष भले ही अपनी बीबी को दूसरे कोई मर्द के से सेक्स करने के लिए उकसाये, पर जब वास्तव में दुसरा मर्द उसकी बीबी को उसके सामने या पीछे चोदता है और उसे उसका पता चलता है तो उसे कुछ इर्षा, जलन या फिर उसके अहम को थोड़ी ही सही पर हलकी सी चोट तो जरूर पहुँचती है। यह बात सुनीलजी ने पहली बार महसूस की। तब तक तो वह यह मानते थे की वह ऐसे पति थे की जो अपनी पत्नी से इतना प्यार करते थे की यदि वह किसी और मर्द से चुदवाये तो उनको रत्ती भर भी आपत्ति नहीं होगी। पर उस रात उनको कुछ तो महसूस जरूर हुआ।

सुनीलजी ने अपनी बीबी को झकझोरते हुए कहा, "जानेमन, मैं तुम्हारा पति सुनील हूँ। जस्सूजी तो ऊपर सो रहे हैं। कहीं तुम जस्सूजी से चुदवाने के सपने तो नहीं देख रही थी?"

अपने पति के यह शब्द सुनकर सुनीता की सारी नींद एक ही झटके में गायब हो गयी। वह सोचने लगी, "हो ना हो, मेरे मुंह से जस्सूजी का नाम निकल ही गया होगा और वह सुनील ने सुन लिया। हाय दैय्या! कहीं मेरे मुंहसे जस्सूजी से चुदवाने की बात तो नींद में नहीं निकल गयी? सुनील को कैसे पूछूं? अब क्या होगा?"

सुनीता का सोया हुआ दिमाग अब डबल तेजी से काम करने लगा। सुनीता ने कहा, "मैं जस्सूजी ना नाम ले रही थी? आप का दिमाग तो खराब नहीं हो गया?" फिर थोड़ी देर रुक कर सुनीता बोली, "अच्छा, अब मैं समझी। मैंने आपसे कहा था, 'अब खस्सो जी, फिर मेरी बर्थ पर क्यों आ गये? क्या आप का मन पिछली रात इतना प्यार करने के बाद भी नहीं भरा?' आप भी कमाल हैं! आपके ही मन में चोर है। आप मेरे सामने बार बार जस्सूजी का नाम क्यों ले रहे हो? मैं जानती हूँ की आप यही चाहते हो ना की मैं जस्सूजी से चुदवाऊं? पर श्रीमान ध्यान रहे ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। अगर आपने ज्यादा जिद की तो मैं उनको अपने करीब भी नहीं आने दूंगी। फिर मुझे दोष मत दीजियेगा!"

अपनी बीबी की बात सुन कर सुनीलजी लज्जित हो कर माफ़ी मांगने लगे, "अरे बीबीजी, मुझसे गलती हो गयी। मैंने गलत सुन लिया। मैं भी बड़ा बेवकूफ हूँ। तुम मेरी बात का बुरा मत मानना। तुम मेरे कारण जस्सूजी पर अपना गुस्सा मत निकालना। उनका बेचारे का कोई दोष नहीं है। मैं भी तुम पर कोई शक नहीं कर रहा हूँ।"

बेचारे सुनीलजी! उन्होंने सोचा की अगर सुनीता कहीं नाराज हो गयी तो जस्सूजी के साथ झगड़ा कर लेगी और बनी बनायी बात बिगड़ जायेगी। इससे तो बेहतर है की उसे खुश रखा जाए।"

सुनीलजी ने सुनीता के होँठों पर अपने होँठ रखते हुए कहा, "जानूं, मैं जानता हूँ की तुमने क्या प्रण लिया है। पर प्लीज जस्सूजी से इतनी नाराजगी अच्छी नहीं। भले ही जस्सूजी से चुदवाने की बात छोड़ दो। पर प्लीज उनका साथ देने का तुमने वादा किया है उसे मत भुलाना। आज दोपहर तुमने जस्सूजी की टाँगे अपनी गोद में ले रक्खी थी और उनको हलके से मसाज कर रही थी तो मुझे बहुत अच्छा लगा था। सच में! मैं इर्षा से नहीं कह रहा हूँ।"

सुनीता ने नखरे दिखाते हुए कहा, "हाँ भाई, आपको क्यों अच्छा नहीं लगेगा? अपनी बीबी से अपने दोस्त की सेवा करवाने की बड़ी इच्छा है जो है तुम्हारी? तुम तो बड़े खुश होते अगर मैंने तुम्हारे दोस्त का लण्ड पकड़ कर उसे भी सहलाया होता तो, क्यों, ठीक कहा ना मैंने?"

सुनीलजी को समझ नहीं आ रहा था की उनकी बीबी उनकी फिल्म उतार रही थी या फिर वह मजाक के मूड में थी। सुनीलजी को अच्छा भी लगा की उनकी बीबी जस्सूजी के बारेमें अब काफी खुलकर बात कर रही थी।

सुनीलजी ने कहा, "जानूं, क्या वाकई में तुम ऐसा कर सकती हो? मजाक तो नहीं कर रही?"

सुनीता ने कहा, "कमाल है! तुम कैसे पति हो जो अपनी बीबी के बारे में ऐसी बाते करते हो? एक तो जस्सूजी वैसेही बड़े आशिकी मिजाज के हैं। ऊपर से तुम आग में घी डालने का काम कर रहे हो! अगर तुमने जस्सूजी से ऐसी बात की ना तो ऐसा ना हो की मौक़ा मिलते ही कहीं वह मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर ही ना रख दें! उनको ऐसा करने में एक मिनट भी नहीं लगेगा। फिर यातो मुझे उनसे लड़ाई करनी पड़ेगी, या फिर उनका लण्ड हिलाकर उनका माल निकाल देना पडेगा। हे पति देव! अब तुम ही बताओ ऐसा कुछ हुआ तो मुझे क्या करना चाहिए?"

अपनी बीबी के मुंह से यह शब्द सुनकर सुनीलजी का लण्ड खड़ा हो गया। यह शायद पहेली बार था जब सुनीता ने खुल्लमखुल्ला जस्सूजी के लण्ड के बारेमें सामने चल कर ऐसी बात छेड़ी थी। सुनील ने अपना लण्ड अपनी बीबी के हाथ में पकड़ाया और बोले, "जाने मन ऐसी स्थिति में तो मैं यही कहूंगा की जस्सूजी सिर्फ मेरे दोस्त ही नहीं, तुम्हारे गुरु भी हैं। उन्होंने भले ही तुम्हारे लिए अपनी जान कुर्बान नहीं की हो, पर उन्होंने तुम्हारे लिए अपनी रातों की नींद हराम कर तुम्हें शिक्षा दी जिसकी वजह से आज तुम्हें एक शोहरत और इज्जत वाली जॉब के ऑफर्स आ रहे हैं। तो अगर तुमने उनकी थोड़ी गर्मी निकाल भी दी तो कौनसा आसमान टूट पड़ने वाला है?"
 
अपने पति की ऐसी उत्तेजनात्मक बात सुनकर सुनीता की जाँघों के बिच में से पानी चुना शुरू हो गया। उसकी चूत में हलचल शुरू हो गयी। पहले ही उसकी पेंटी भीगी हुई तो थी ही। वह और गीली हो गयी। अपने आपको सम्हालते हुए सुनीता ने कहा, "अच्छा जनाब! क्या ज़माना आ गया है? अब बात यहां तक आ गयी है की एक पति अपनी बीबी को गैर मर्द का लण्ड हिला कर उसका माल निकालने के लिए प्रेरित कर रहा है?" फिर अपना सर पर हाथ मारते हुए नाटक वाले अंदाज में सुनीता बोली, " पता नहीं आगे चलकर इस कलियुग में क्या क्या होगा?"

सुनील ने अपनी बीबी सुनीता का हाथ पकड़ कर कहा, "जानेमन, जो होगा अच्छा ही होगा।"

सुनीता की चूत में उंगली डाल कर सुनीलजी न कहा, "देखो, मैं महसूस कर रहा हूँ की तुम्हारी चूत तो तुम्हारे पानी से पूरी लथपथ भरी हुई है। जस्सूजी की बात सुनकर तुम भी तो बड़ी उत्तेजित हो रही हो! भाई, कहीं तुम्हारी चूत में तो मचलन नहीं हो रही?"

सुनीता ने हँस कर कहा, "डार्लिंग! तुम मेरी चूत में उंगलियां डाल कर मुझे उकसा रहे हो और नाम ले रहे हो बेचारे जस्सूजी का! चलो अब देर मत करो। मेरी चूत में वाकई में बड़ी मचलन हो रही है। अपना लण्ड डालो और जल्दी करो। कहीं कोई जाग गया तो और नयी मुसीबत खड़ी हो जायेगी।"

मौक़ा पाकर सुनीलजी ने सोचा फायदा उठाया जाये। वह बोले, "पर जानेमन यह तो बताओ, की अगर मौक़ा मिला तो जस्सूजी का लण्ड तो सेहला ही दोगी ना?"

सुनीता ने हँसते हुए कहा, "अरे छोडो ना जस्सूजी को। अपनी बात सोचो!"

सुनील को लगा की उसकी बात बनने वाली है, तो उसने और जोर देते हुए कहा, "नहीं डार्लिंग! आज तो तुम्हें बताना ही पडेगा की क्या तुम मौक़ा मिलने पर जस्सूजी का लण्ड तो हिला दोगी न?"

सुनीता ने गुस्से का नाटक करते हुए कहा, "मेरा पति भी कमाल का है! यहां उसकी बीबी नंगी हो कर अपने पति को उसका लण्ड अपनी चूत में डालने को कह रही है, और पति है की अपने दोस्त के लण्ड के बारे में कहे जा रहा है! पहले ऐसा कोई मौक़ा तो आनेदो? फिर सोचूंगी। अभी तो मारे उत्तेजना के मैं पागल हो रही हूँ। अपना लण्ड जल्दी डालो ना?"

सुनील ने जिद करते हुए कहा, "नहीं अभी बताओ। फिर मैं फ़ौरन डाल दूंगा।"

सुनीता ने नकली नाराजगी और असहायता दिखाते हुए कहा, "मैं क्या करूँ? मेरा पति हाथ धोकर मुझे मनवाने के लिए मेरे पीछे जो पड़ा है? यहां मैं मेरे पति के लण्ड से चुदवाने के लिए पागल हो रही हूँ और मेरा पति है की अपने दोस्त की पैरवी कर रहा है! ठीक है भाई। मौक़ा मिलने पर मैं जस्सूजी का लण्ड मसाज कर दूंगी, हिला दूंगी और उनका माल भी निकाल दूंगी, बस? पर मेरी भी एक शर्त है।"

सुनिजि यह सुन कर ख़ुशी से उछल पड़े और बोले, "बोलो, क्या शर्त है तुम्हारी?"

सुनीता ने कहा, "मैं यह सब तुम्हारी हाजरी में तुम्हारे सामने नहीं कर सकती। हाँ अगर कुछ होता है तो मैं तुम्हें जरूर बता दूंगी। बस, क्या यह शर्त तुम्हें मंजूर है?"

सुनील ने फ़ौरन अपनी बीबी की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए कहा, "मंजूर है, शत प्रतिशत मंजूर है।"

और फिर दोनों पति पत्नी कामाग्नि में मस्त एक दूसरे की चुदाई में ऐसे लग पड़े की बड़ी मुश्किल से सुनीता ने अपनी कराहटों पर काबू रखा।

सुनीलजी अपनी बीबी की अच्छी खासी चुदाई कर के वापस अपनी बर्थ पर आ रहे थे की बर्थ पर चढ़ते चढ़ते ज्योतिजी ने करवट ली और जाने अनजानेमें उनके पाँव से एक जोरदार किक सुनीलजी के पाँव पर जा लगी। ज्योतिजी शायद गहरी नींद में थीं। सुनीलजी ने घबड़ायी हुई नजर से काफी देर तक वहीं रुक कर देखना चाहा की ज्योतिजी कहीं जाग तो नहीं गयीं? पर ज्योतिजी के बिस्तर पर कोई हलचल नजर नहीं आयी। दुखी मन से सुनील वापस अपनी ऊपर वाली बर्थ पर लौट आये।

सुबह हो रही थी। जम्मू स्टेशन के नजदीक गाडी पहुँचने वाली थी। सब यात्री जाग चुके थे और उतर ने के लिए तैयार हो रहे थे।

जब कुमार जागे और उन्होंने ऊपर की बर्थ पर देखा तो बर्थ खाली थी। नीतू जा चुकी थी। कप्तान कुमार को समझ नहीं आया की नीतू कब बर्थ से उतर कर उन्हें बिना बताये क्यों चली गयी। सुनीता उठकर फ़ौरन कुमार के पास उनका हाल जानने पहुंची और बोली, "कैसे हो आप? उठ कर चल सकते हो की मैं व्हील चेयर मँगवाऊं?"

कप्तान कुमार ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा की वह चल सकते थे और उन्हें कोई मदद की आवश्यकता नहीं थी। जब उन्होंने इधरउधर देखा तो सुनीता समझ गयी की कुमार नीतू को ढूंढ रहे थे। सुनीता ने कुमार के पास आ कर उन्हें हलकी आवाज में बताया की नीतू ब्रिगेडियर साहब के साथ चली गयी थी। उस समय भी यह साफ़ नहीं हुआ की ब्रिगेडियर साहब नीतू के क्या लगते थे। यह रहस्य बना रहा।
 
ट्रैन से निचे उतर ने पर सब ने महसूस किया की ज्योतिजी का मूड़ ख़ास अच्छा नहीं था। वह कुछ उखड़ी उखड़ी सी लग रही थीं। जस्सूजी ने सबको रोक कर बताया की उन्हें वहाँ से करीब चालीस किलोमीटर दूर हिमालय की पहाड़ियों में चम्बल के किनारे एक आर्मी कैंप में जाना है। उन सबको वहाँ से टैक्सी करनी पड़ेगी। जस्सूजी ने यह भी कहा की चूँकि वापसी की सवारी मिलना मुश्किल था इस लिए टैक्सी वाले मुंह माँगा किराया वसूल करते थे।

जस्सूजी, ज्योतिजी, सुनीता और सुनीलजी को बड़ा आनंद भरा आअश्चर्य तब हुआ जब एक व्यक्ति ने आकर सबसे हाथ मिलाये और सबके गले में फुलकी एक एक माला पहना कर कहा, "जम्मू में आपका स्वागत है। मैं आर्मी कैंप के मैनेजमेंट की तरफ से आपका स्वागत करता हूँ।"

फिर उसने आग्रह किया की सबकी माला पहने हुए एक फोटो ली जाए। सब ने खड़े होकर फोटो खिंचवाई। सुनील को कुछ अजीब सा लगा की स्टेशन पर हाल ही में उतरे कैंप में जाने वाले और भी कई आर्मी के अफसर और लोग थे, पर स्वागत सिर्फ उन चारों का ही हुआ था। फोटो खींचने के बाद फोटो खींचने वाला वह व्यक्ति पता नहीं भिडमें कहाँ गायब हो गया। सुनील ने जब जस्सूजी को इसमें बारेमें पूछा तो जस्सूजी भी इस बात को लेकर उलझन में थे। उन्होंने बताया की उनको नहीं पता था की आर्मी कैंप वाले उनका इतना भव्य स्वागत करेंगे।

खैर जब जस्सूजी ने टैक्सी वालों से कैंप जाने के लिए पूछताछ करनी शुरू की तो पाया की चूँकि काफी लोग कैंप की और जा रहे थे तो टैक्सी वालों ने किराया बढ़ा दिया था। पर शायद उन चारों की किस्मत अच्छी थी। एक टैक्सी वाले ने जब उन चारों को देखा तो भागता हुआ उनके पास आया और पूछा, "क्या आपको आर्मी कैंप साइट पर जाना है?"

जब सुनील ने हाँ कहा तो वह फ़ौरन अपनी पुरानी टूटी फूटी सी टैक्सी, के जिस पर कोई नंबर प्लेट नहीं था; ले आया और सबको बैठने को कहा। जब जस्सूजी ने किराये के बारे में पूछा तो उसने कहा, "कुछ भी दे देना साहेब। मेरी गाडी तो कैंप के आगे के गाँव तक जा ही रही है। खाली जा रहा था। सोच क्यों ना आपको ले चलूँ? कुछ किराया मिल जायेगा और आप से बातें भी हो जाएंगी।" ऐसा कह कर हम सब के बैठने के बाद उसने गाडी स्टार्ट कर दी।

जब जस्सूजी ने फिर किराए के बारे में पूछा तब उसने सब टैक्सी वालों से आधे से भी कम किराया कहा। यह सुनकर सुनीता बड़ी खुश हुई। उसने कहा, "यह तो बड़ा ही कम किराया माँग रहा है? लगता है यह भला आदमी है। यह कह कर सुनीता ने फ़ौरन अपनी ज़ेब से किराए की रकम टैक्सी वाले के हाथ में दे दी। सुनीता बड़ी खुश हो रही थी की उनको बड़े ही सस्ते किरायेमें टैक्सी मिल गयी। पर जब सुनीता ने जस्सूजी की और देखा तो जस्सूजी बड़े ही गंभीर विचारों में डूबे हुए थे।

कैंप जम्मू स्टेशन से करीब चालीस किलोमीटर दूर था और रास्ता ख़ास अच्छा नहीं था। दो घंटे लगने वाले थे। टैक्सी का ड्राइवर बड़ा ही हँसमुख था। उसने इधर उधर की बातें करनी शुरू की। ज्योतिजी का मूड़ ठीक नहीं था। कर्नल साहब कुछ बोल नहीं रहे थे। सुनील जी को कुछ भी पता नहीं था तब हार कर टैक्सी ड्राइवर ने सुनीता से बातें करने शुरू की, क्यूंकि सुनीता बातें करने में बड़ी उत्साहित रहती थी। टैक्सी ड्राइवर ने सुनीता से उनके प्रोग्राम के बारे में पूछा। सुनीता को प्रोग्राम के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं था। पर सुनीता को जितना पता था उसने ड्राइवर को सब कुछ बताया।

आखिर में दो घंटे से ज्यादा का थकाने वाला सफर पूरा करने के बाद हिमालय कीखूबसूरत वादियों में वह चारों जा पहुंचे।

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