desiaks
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यह सुनकर कर्नल साहब की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने कभी सोचा नहीं था की वास्तव में कोई उनसे इतना प्रेम कर सकता है। उन्होंने सुनीता को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और बोले, "सुनीता, मैं तुम्हें कोई भी रूप में कैसे भी अपनी ही मानता हूँ।"
सुनीता ने अपनी दोनों बाँहें जस्सूजी के गले में डालीं और थोड़ा ऊपर की और खिसक कर सुनीता ने अपने होँठ जस्सूजी के होँठ पर चिपका दिए। जस्सूजी भी पागल की तरह सुनीता के होठों को चूसने और चूमने लगे। उन्होंने सुनीता की जीभ को अपने मुंह में चूस लिया और जीभ को वह प्यार से चूसने लगे और सुनीता के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह में लेकर उसे गले के निचे उतारकर उसका रसास्वादन करने लगे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ की सुनीता ने उनसे नहीं चुदवाया फिर भी जैसे उन्हें सुनीता का सब कुछ मिल गया हो।
जस्सूजी गदगद हो कर बोले, "मेरी प्यारी सुनीता, चाहे हमारे मिले हुए कुछ ही दिन हुए हैं, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई जीवन की संगिनीं हो।"
सुनीता ने जस्सूजी की नाक अपनी उँगलियों में पकड़ी और हँसती हुई बोली, "मैं कहीं ज्योतिजी का हक़ तो नहीं छीन रही?"
जस्सूजी ने भी हंस कर कहा, "तुम बीबी नहीं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? ज्योति का हक़ छीनने का सवाल ही कहाँ है?"
सुनीता ने जस्सूजी की टाँगों के बिच हाथ डालते हुए कहा, "जस्सूजी, आप मुझे एक इजाजत दीजिये। एक तरीके से ना सही तो दूसरे तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गर्मी कम करने की इजाजत तो दीजिये। भले मैं इसमें खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो मैं लेना चाहती हूँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।"
जस्सूजी कुछ समझे इसके पहले सुनीता ने जस्सूजी की दो जॉंघों के बिच में से उनका लण्ड पयजामे के ऊपर से पकड़ा। सुनीता ने अपने हाथ से पयजामा के बटन खोल दिए और उसके हाथ में जस्सूजी इतना मोटा और लम्बा लण्ड आ गया की जिसको देख कर और महसूस कर कर सुनीता की साँसे ही रुक गयीं। उसने फिल्मों में और सुनील जी का भी लंड देखा था। पर जस्सूजी का लण्ड वाकई उनके मुकाबले कहीं मोटा और लंबा था। उसके लण्ड के चारों और इर्दगिर्द उनके पूर्वश्राव पूरी चिकनाहट फैली हुई थी।
सुनीता की हथेली में भी वह पूरी तरहसे समा नहीं पाता था। सुनीता ने उसके इर्दगिर्द अपनी छोटी छोटी उंगलियां घुमाईं और उसकी चिकनाहट फैलाई। अगर उसकी चूतमें ऐसा लण्ड घुस गया तो उसका क्या हाल होगा यह सोच कर ही वह भय और रोमांच से कांपने लगी। उसे एक राहत थी की उसे उस समय वह लण्ड अपनी चूत में नहीं लेना था।
सुनीता सोचने लगी की ज्योतिजी जब जस्सूजी से चुदवाती होंगी तो उनका क्या हाल होता होगा? शायद उनकी चूत रोज इस लण्ड से चुद कर इतनी चौड़ी तो हो ही गयी होगी की उन्हें अब जस्सूजी के लण्ड को घुसाने में उतना कष्ट नहीं होता होगा जितना पहले होता होगा।
सुनीता ने जस्सूजी से कहा, "जस्सूजी, हमारे बिच की यह बात हमारे बिच ही रहनी चाहिए। हालांकि मैं किसीसे और ख़ास कर मेरे पति और आपकी पत्नी से यह बात छुपाना नहीं चाहती। पर मैं चाहती हूँ की यह बात मैं उनको सही वक्त आने पर कह सकूँ। इस वक्त मैं उनको इतना ही इशारा कर दूंगी की सुनीलजी ज्योतिजी के साथ अपना टाँका भिड़ा सकते हैं। डार्लिंग, आपको तो कोई एतराज नहीं ना?"
जस्सूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारा यानी मेरी पारो का देवदास ही सही पर मैं मेरी चंद्र मुखी को सुनीलजी की बाँहों में जाने से रोकूंगा नहीं। मेरी तो वह है ही।"
सुनीता को बुरा लगा की जस्सूजी ने बात ही बात में अपने आपकी तुलना देवदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की वह जस्सूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नहीं कर पायी और उसके मन की जस्सूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नहीं कर पायी पर उसने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की की "हे प्रभु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब ऐसा कुछ हो की जस्सूजी सुनीता को चोद भी सके और माँ का वचन भंग भी ना हो।"
पर सुनीता यह जानती थी की यह सब तो मन का तरंग ही था। अगर माँ ज़िंदा होती तो शायद सुनीता उनसे यह वचन से उसे मुक्त करने के लिए कहती पर माँ का स्वर्ग वास हो चुका था। इस कारण अब इस जनम में तो ऐसा कुछ संभव नहीं था। रेल की दो पटरियों की तरह सुनीता को इस जनम में तो जस्सूजी का लण्ड देखते हुए और महसूस करते हुए भी अपनी चूत में डलवाने का मौक़ा नहीं मिल पायेगा। यह हकीकत थी।
सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपनी छोटी छोटी हथेलियों में लिया और उसे सहलाने और हिलाने लगी। वह चाहती थी की जस्सूजी का वीर्य स्खलन उसकी उँगलियों में हो और वह भले ही उस वीर्य को अपनी चूत में ना डाल सके पर जस्सूजी की ख़ुशी के लिए वह उस वीर्य काआस्वादन जरूर करेगी।
सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड को पहले धीरे से और बाद में जैसे जैसे जस्सूजी का उन्माद बढ़ता गया, वैसे वैसे जोर से हिलाने लगी। साथ साथ में सुनीता और जस्सूजी मुस्काते हुए एक प्यार भरे प्रगाढ़ चुम्बन में खो गए। कुछ मिनटों की ही बात थी प्यार भरी बातें और साथ साथ में सुनीता की कोमल मुठी में मुश्किल से पकड़ा हुआ लम्बे घने सख्त छड़ जैसा जस्सूजी का लण्ड जोरसे हिलाते हिलाते सुनीता की बाहें भी थक रही थीं तब जस्सूजी का बदन एकदम अकड़ गया।
सुनीता ने अपनी दोनों बाँहें जस्सूजी के गले में डालीं और थोड़ा ऊपर की और खिसक कर सुनीता ने अपने होँठ जस्सूजी के होँठ पर चिपका दिए। जस्सूजी भी पागल की तरह सुनीता के होठों को चूसने और चूमने लगे। उन्होंने सुनीता की जीभ को अपने मुंह में चूस लिया और जीभ को वह प्यार से चूसने लगे और सुनीता के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह में लेकर उसे गले के निचे उतारकर उसका रसास्वादन करने लगे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ की सुनीता ने उनसे नहीं चुदवाया फिर भी जैसे उन्हें सुनीता का सब कुछ मिल गया हो।
जस्सूजी गदगद हो कर बोले, "मेरी प्यारी सुनीता, चाहे हमारे मिले हुए कुछ ही दिन हुए हैं, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई जीवन की संगिनीं हो।"
सुनीता ने जस्सूजी की नाक अपनी उँगलियों में पकड़ी और हँसती हुई बोली, "मैं कहीं ज्योतिजी का हक़ तो नहीं छीन रही?"
जस्सूजी ने भी हंस कर कहा, "तुम बीबी नहीं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? ज्योति का हक़ छीनने का सवाल ही कहाँ है?"
सुनीता ने जस्सूजी की टाँगों के बिच हाथ डालते हुए कहा, "जस्सूजी, आप मुझे एक इजाजत दीजिये। एक तरीके से ना सही तो दूसरे तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गर्मी कम करने की इजाजत तो दीजिये। भले मैं इसमें खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो मैं लेना चाहती हूँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।"
जस्सूजी कुछ समझे इसके पहले सुनीता ने जस्सूजी की दो जॉंघों के बिच में से उनका लण्ड पयजामे के ऊपर से पकड़ा। सुनीता ने अपने हाथ से पयजामा के बटन खोल दिए और उसके हाथ में जस्सूजी इतना मोटा और लम्बा लण्ड आ गया की जिसको देख कर और महसूस कर कर सुनीता की साँसे ही रुक गयीं। उसने फिल्मों में और सुनील जी का भी लंड देखा था। पर जस्सूजी का लण्ड वाकई उनके मुकाबले कहीं मोटा और लंबा था। उसके लण्ड के चारों और इर्दगिर्द उनके पूर्वश्राव पूरी चिकनाहट फैली हुई थी।
सुनीता की हथेली में भी वह पूरी तरहसे समा नहीं पाता था। सुनीता ने उसके इर्दगिर्द अपनी छोटी छोटी उंगलियां घुमाईं और उसकी चिकनाहट फैलाई। अगर उसकी चूतमें ऐसा लण्ड घुस गया तो उसका क्या हाल होगा यह सोच कर ही वह भय और रोमांच से कांपने लगी। उसे एक राहत थी की उसे उस समय वह लण्ड अपनी चूत में नहीं लेना था।
सुनीता सोचने लगी की ज्योतिजी जब जस्सूजी से चुदवाती होंगी तो उनका क्या हाल होता होगा? शायद उनकी चूत रोज इस लण्ड से चुद कर इतनी चौड़ी तो हो ही गयी होगी की उन्हें अब जस्सूजी के लण्ड को घुसाने में उतना कष्ट नहीं होता होगा जितना पहले होता होगा।
सुनीता ने जस्सूजी से कहा, "जस्सूजी, हमारे बिच की यह बात हमारे बिच ही रहनी चाहिए। हालांकि मैं किसीसे और ख़ास कर मेरे पति और आपकी पत्नी से यह बात छुपाना नहीं चाहती। पर मैं चाहती हूँ की यह बात मैं उनको सही वक्त आने पर कह सकूँ। इस वक्त मैं उनको इतना ही इशारा कर दूंगी की सुनीलजी ज्योतिजी के साथ अपना टाँका भिड़ा सकते हैं। डार्लिंग, आपको तो कोई एतराज नहीं ना?"
जस्सूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारा यानी मेरी पारो का देवदास ही सही पर मैं मेरी चंद्र मुखी को सुनीलजी की बाँहों में जाने से रोकूंगा नहीं। मेरी तो वह है ही।"
सुनीता को बुरा लगा की जस्सूजी ने बात ही बात में अपने आपकी तुलना देवदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की वह जस्सूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नहीं कर पायी और उसके मन की जस्सूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नहीं कर पायी पर उसने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की की "हे प्रभु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब ऐसा कुछ हो की जस्सूजी सुनीता को चोद भी सके और माँ का वचन भंग भी ना हो।"
पर सुनीता यह जानती थी की यह सब तो मन का तरंग ही था। अगर माँ ज़िंदा होती तो शायद सुनीता उनसे यह वचन से उसे मुक्त करने के लिए कहती पर माँ का स्वर्ग वास हो चुका था। इस कारण अब इस जनम में तो ऐसा कुछ संभव नहीं था। रेल की दो पटरियों की तरह सुनीता को इस जनम में तो जस्सूजी का लण्ड देखते हुए और महसूस करते हुए भी अपनी चूत में डलवाने का मौक़ा नहीं मिल पायेगा। यह हकीकत थी।
सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपनी छोटी छोटी हथेलियों में लिया और उसे सहलाने और हिलाने लगी। वह चाहती थी की जस्सूजी का वीर्य स्खलन उसकी उँगलियों में हो और वह भले ही उस वीर्य को अपनी चूत में ना डाल सके पर जस्सूजी की ख़ुशी के लिए वह उस वीर्य काआस्वादन जरूर करेगी।
सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड को पहले धीरे से और बाद में जैसे जैसे जस्सूजी का उन्माद बढ़ता गया, वैसे वैसे जोर से हिलाने लगी। साथ साथ में सुनीता और जस्सूजी मुस्काते हुए एक प्यार भरे प्रगाढ़ चुम्बन में खो गए। कुछ मिनटों की ही बात थी प्यार भरी बातें और साथ साथ में सुनीता की कोमल मुठी में मुश्किल से पकड़ा हुआ लम्बे घने सख्त छड़ जैसा जस्सूजी का लण्ड जोरसे हिलाते हिलाते सुनीता की बाहें भी थक रही थीं तब जस्सूजी का बदन एकदम अकड़ गया।