Free Sex Kahani काला इश्क़! - Page 6 - SexBaba
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Free Sex Kahani काला इश्क़!

update 24

कुछ दिन और बीते, हम इसी तरह रोज मिलते पर जॉब के लिए ऋतू ने मुझसे आगे कोई बात नहीं की| संडे आया तो ऋतू ने जिद्द कर के मेरे घर आ गई, और आज तो वो बहुत जयदा ही खुश लग रही थी| आज वो पहली बार स्कर्ट पहन के आई थी और अपनी कुर्ती ऊपर उठा कर ऋतू ने मुझे अपनी नैवेल दिखाई| मेरी नजर उसकी नैवेल पर पड़ी तो मैं टकटकी बांधें उसी को देखता रहा| "क्या बात है आज तो मेरी जान मेरी जान लेने के इरादे से आई है!!!" ये कहते हुए मैंने ऋतू को अपनी छाती से चिपका लिया|
"वो प्रेगनेंसी वाले दिन के बाद मुझे तो लगा था की आप मुझे अब शादी तक छुओगे ही नहीं! आपको सडके करने को ही इतना सज-धज कर आई हूँ! सससस.....आ...आ...ह...नं... सच्ची कितने दिनों से आपके लिए प्यार के लिए तड़प रही थी|" ऋतू ने कसमसाते हुए कहा| 


"पागल! तुझे प्यार किये बिना तो मैं भी नहीं रह सकता! उस दिन जब तूने मुझे प्रेगनेंसी की बात बताई तो मैं मन ही मन सोच कर बैठा था की अब जल्दी ही तुझे भगा कर ले जाऊँ|" मैंने ऋतू को बाएं गाल को चूमते हुए कहा|

"सच्ची?" ऋतू ने खिलखिलाते हुए कहा|

"हाँ जी! बहुत प्यार करता हूँ मैं अपनी ऋतू से|" ये कहते हुए मैंने ऋतू के होंठों को चूम लिया|


अब आगे ......

मेरे होठों के सम्पर्क में आते ही ऋतू मचलने लगी और उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जाके लॉक कर दिया| ऋतू उचक कर मेरे होठों को चूस रही थी और मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत प्यार आ रहा था| मैंने उसे गोद में उठा लिया और किचन कॉउंटर पर ला कर बिठा दिया| ऋतू अब बिलकुल मेरे बराबर थी, और उसका मेरे होठों को चूमना जारी था| ऋतू के होंठ तो आज मुझ पर कुछ ज्यादा ही कहर डाल रहे थे, वो अपने होठों से मेरे होठों को बारी-बारी निचोड़ रही थी| इधर मेरे दिलों-दिमाग में उसकी नाभि ही छाई हुई थी| हाथ अपने आप ही उसकी नाभि के ऊपर थिरकने लगे थे| एक अजीब सी खुमारी थी, उस पर ऋतू की जिस्म की महक मुझे बहका रही थी| मैंने फिर से ऋतू को गोद में उठाया और पलंग पर ला कर लिटा दिया और खुद भी उसके ऊपर छा गया| अब मैंने अपने निचले होंठ और जीभ के साथ उसके    निचले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| ऋतू की उँगलियाँ मेरे बालों में रास्ते बनाने लगी थी| निचले होंठ कर रस निचोड़ कर मैंने उसके ऊपर वाले होंठ को भी ऐसे ही निचोड़ा| मेरे हाथ अब नीचे आ कर उसके कुर्ते के ऊपर से स्तनों को दबाने लगे और उन्हें धीरे-धीरे मसलने लगे| मैं रुका और अपने घुटनों पर बैठ गया और ऋतू का हाथ पकड़ के उसे बिठाया| मुझे आगे उसे कुछ कहना नहीं पड़ा और उसने खुद ही अपना कुरता निकाल के फेंक दिया| मैं ने भी ताव में आकर अपनी टी-शर्ट निकाल फेंकी और फिर से ऋतू के ऊपर चढ़ गया और उसके होठों को अपने होठों में भींच कर चूसने लगा| ऋतू ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और उसने भी अपनी जीभ से हमला कर दिया| मेरे मुँह में दाखिल हुई उसकी जीभ मेरी जीभ से लड़ने लगी| मैं ने अपने दाँतों से उसकी जीभ पकड़ ली और ऋतू थोड़ा छटपटाने लगी! इधर मेरी उँगलियों ने ऋतू की ब्रा के स्ट्राप को नीचे खिसका दिया| मैंने Kiss तोडा और ऋतू के कंधे को चूम लिया, जवाब में ऋतू ने अपनी उँगलियों को मेरे बालों में फँसा दिया| मैंने अपनी उँगलियों से अब उसकी ब्रा को उसके कंधे से होते हुए नीचे लाना शुरू कर दिया, ऋतू ने अपनी पकड़ मेरे बालों पर ढीली की और अगले ही पल उसकी ब्रा उसके सीने से अलग हो कर जमीन पर पड़ी थी| ऋतू मेरी आँखों में प्यास देख रही थी और मैं भी उसकी आँखों में वही प्यास देख रहा था| मैंने झुक कर ऋतू के बाएँ स्तन को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| और ऋतू ने फिर से अपनी उँगलियाँ मेरे बालों में फँसा दीं| "काश...ससस..ससस...आ.आ..ननहहह....मैं आपको अपना दूध पिला सकती|" ये कहते हुए ऋतू सिसकारियां लेने लगी! उसकी टांगें भी हरकत करने लगीं और मेरी टांगों से लिपटने लगीं| ऋतू की बात आज मुझे बहुत उत्तेजक लग रही थी और मुझे ऐसा लगने लगा की वो मुझे जान-बुझ कर उत्तेजित कर रही है| "ससस...आ..आ..ह...ह....न...न... जानू! एक बार काट लो ना!" उसका कहना था और मैंने उसके बाएँ स्तन को काट लिया; "आआह्ह्ह्ह.....हहह...स..ससससस...ननन... न!!!!!" उसकी दर्द भरी कराह सुन मुझे और उत्तेजना हुई और मैंने ऋतू का दायाँ स्तन मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| "ससस....आ...न.....ह... इसे भी...काटो....ना...प्लीज!" ये सुनते ही मैंने उसके दाएँ चूची को डाँट से काट लिया; "ईईई....माँ....आह....ससस...आ..न..हह...!!!" उसकी कराह निकली और मैं उत्तेजना से भर गया और वापस बाएँ स्तन की चूची को भी काट लिया| "ईईई...माँ......ाआनंनं.....ससस!!!! जानऊउउउउउउउ!!!!" ऋतू ने अपना दबाव मेरे सर पर और बढ़ा दिया|


अगले दस मिनट तक मैं यूँ ही कभी उसके एक स्तन को चूसता तो कभी दूसरे स्तन को! ऋतू ने धीरे-धीरे अपनी पकड़ मेरे सर पर से कम की तो मैं नीचे खिसका और उसकी नैवेल पर रूक गया| अपने होठों से मैंने उसकी नैवेल को चूमा, अगले ही पल मैंने अपनी जीभ उसमें डाल दी" इसके परिणाम स्वरुप ऋतू का पूरा जिस्म ऊपर की तरफ उठ गया| मैंने अपने निचले होंठ को उसकी नैवेल पर ऊपर से नीचे रगड़ना शुरू कर दिया| जीभ से मैं उसकी नैवेल को कुरेदने लगा, ऋतू से अब ये दोहरा हमला बर्दाश्त नहीं हो रहा था और वो छटपटाने लगी थी| पाँच मिनट तक उसकी नैवेल की चुसाई कर मैं और नीचे खिसका तो वहां तो अभी स्कर्ट का कब्ज़ा था| ऋतू ने तुरंत ही नाडा खोला और स्कर्ट अपनी गांड से नीचे खिसका दी और बाकी का काम मैंने किया| अब तो सिर्फ ऋतू की पैंटी बची थी| पैंटी देख कर मैं उस पर झुका और ऋतू की बुर को चूमना चाहा| पर ऋतू ने मुझे रोक दिया और अपनी पैंटी निकाल कर अपनी दोनों टांगें खोल दी| उसकी ये हरकत देख मेरे मुख पर मुस्कराहट छ गई और मुझे देख ऋतू ने अपने दोनों हाथों से अपने मुँह को ढक लिया| मैं झुक कर ऋतू की बुर को चूमने लगा तो उसने फिर मुझे रोक दिया, वो उठ के बैठी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया| "आज मेरे जानू को और इंतजार नहीं करवाऊँगी|" इतना कह कर उसने मुझे अपने ऊपर से धकेल दिया और मुझे नीचे लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ गई| अपनी चारों उँगलियों को ऋतू ने अपने थूक से चुपड़ा और अपनी बुर की फांकों को गीला करने लगी, अपनी दो उँगलियों से उसने अपनी ही थूक से अपनी बुर को अंदर से गीला कर दिया|    


उसने अपने थूक से सने हाथों से मेरा पाजामा बुरी तरह खींचना शुरू कर दिया, वासना उस पर इस कदर हावी थी की वो तो मेरा पाजामा फाड़ने को भी तैयार थी| आखिर पाजाम निकालते ही उसने उसे दोर्र फेंक दिया और मेरे कच्छे को देख कर बोली; "सच्ची आज के बाद मेरे होते हुए आप कभी कच्चा मत पहनना! नहीं तो मैं आपके सारे कच्छे फाड़ दूँगी!" ऋतू का उतावलापन आज साफ़ दिख रहा था| मेरा कच्छा तो उसने नोच कर निकाला और गुस्से से कमरे के दूसरे कोने में फेंक दिया, फिर से उसने अपना गाढ़ा थूक अपनी चारों उँगलियों पर निकाला और पहले मेरे लंड पर चुपड़ने लगी और फिर बाकी का अपनी बुर में घुसेड़ दिया! ऋतू का ये रूप देख कर मैं हैरान था!

ऋतू अब धीरे-धीरे अपनी बुर को मेरे लंड के ठीक ऊपर ले आई और धीरे-धीरे बुर को नीचे मेरे लंड पर दबाने लगी| मेरा सुपाड़ा पूरा अंदर जा चूका था और ऋतू के बुर की गर्मी मुझे अपने लंड पर महसूस होने लगी थी| मैं जानता था की अगर मैंने नीचे से जरा भी झटका मारा तो ऋतू की हालत दर्द के मारे खराब हो जायेगी, इसलिए में बिना हिले-डुले पड़ा रहा|

ऋतू ने बहुत हिम्मत दिखाई और धीरे-धीरे और नीचे आने लगी और मेरा लंड और अंदर जाने लगा| जब आधा लंड अंदर चला गया तो ऋतू रुक गई और मुझे लगा जैसे इसके आगे वो नहीं बढ़ेगी| ऋतू की चेहरे पर दर्द की लकीरें थीं और मुँह से दर्द भरी आह निकल रही थी| "स..आह...हम्म....मम...हह...आअह्ह्ह...अंह..!!!" ऋतू की बुर में उठ रहा दर्द उसकी जुबान से बाहर आ रहा था| जितना लंड अंदर गया था उतना ही अंदर लिए उसने ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया और मैं मन मार कर रह गया की वो मेरा पूरा लंड अंदर न ले सकी| अगले पांच मिनट तक ऋतू मेरे पेट पर अपना हाथ रख कर अपनी गांड ऊपर नीचे करती रही और मेरा बेचारा आधा लंड ही उसकी बुर की गर्मी की सिकाई पा रहा था| ऋतू को मेरे चेहरे से मेरी प्यास दिख रही थी और वो जानती थी की मेरा पूरा लंड उसकी बुर की गर्माहट चाहता है तो उसने ऊपर-नीचे होना रोक दिया और मेरे ऊपर लेट गई| "मुझे लगा की वो स्खलित हो गई है इसलिए आराम कर रही है पर उसने मुझे चौंकाते हुए पुछा; "जानू! आप ऐसे क्यों हो? अपना दर्द मुझसे क्यों छुपाते हो? मैं जानती हूँ की मैं आपको सेक्स में वो सुख नहीं दे पाती जो आप चाहते हो पर आपने कभी मुझसे क्यों कुछ नहीं कहा? आपके छूटने से पहले मैं स्खलित हो जाती हूँ पर आप हैं की.....क्या पराया समझते हो मुझे?"

ये सुन कर मुझे एहसास हुआ की मैं ऋतू से सेक्स में उसका पूरा साथ ना देने से थोड़ा दुखी था पर कभी उससे कहने की हिमायत नहीं जुटा पाया| "जान! ऐसा नहीं है! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, मेरे लिए तुम्हारे दिल का प्यार जर्रूरी है! सेक्स मेरे लिए मायने नहीं रखता! तुम्हें उससे ख़ुशी मिलती है और तुम्हें खुश देख मैं भी खुश हो लेता हूँ| बचपन से ले कर जब तक मैं घर पर था तब तक हम साथ खेले-खाये, बड़े हुए पर मेरे कॉलेज के वजह से मुझे शहर आना पड़ा और तब शायद तुमने खुद का ख़याल रखना बंद कर दिया| या शायद घर पर सब के तानों के दुःख के कारन तुम अच्छे से खाना नहीं खाती थी, इसीलिए तुम्हारा शरीर अंदर से कमजोर है और शायद इसीलिए तुम सेक्स में ज्यादा देर तक नहीं साथ दे पाती! पर उससे मेरा प्यार तुम्हारे लिए कभी कम नहीं हुआ! हाँ कुछ दिन पहले तुम ने मेरे दिल को बहुत ठेस पहुँचाई थी, पर उस किस्से के बाद तो हम और नजदीक ही आये हैं ना? मेरी बात सुन कर ऋतू मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "मैं जानती हूँ आप मुझसे कितना प्यार करते हो और मेरे दिल को चोट न पहुंचे इसलिए आप ने मुझे कभी ये नहीं बताया| पर उस दिन जब में उस डॉक्टर के साथ अंदर गई चेक-अप के लिए तब मैंने उन्हें साड़ी बात बताई और उन्होंने मुझे कुछ बातें बताई! मैं वादा करती हूँ की आज के बाद मैं आपका पूरा साथ दूँगी!"


''आपको वादा करने की कोई जर्रूरत नहीं है!" ये सुन कर ऋतू मुस्कुराई और मेरे होठों को चूम लिया| मेरे लंड अभी भी आधा ऋतू की बुर में था और ऋतू ने धीरे-धीरे अपनी कमर को मेरे लंड पर दबाना शुरू किया| धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे और आखिर में पूरा लंड ऋतू की बुर में समां गया| दर्द के मारे ऋतू की आँखें बंद हो चुकी थी और आँसूँ की धरा बह निकली थी|  "ससससस.....आअह्ह्ह्ह......मा....म...म.म.म.म....मममम.....ंन्न......ह्ह्ह्हह्ण....!!!" ऋतू का दर्द देख कर मन दुखी होने लगा था और लंड मियाँ अंदर बुर की गर्मी पा कर मचलने लगे थे| "जान! दर्द हो रहा है तो मत करो!" मैंने ऋतू से कहा पर उसने अपनी ऊँगली मेरे होठों पर रख दी| "ससस...आज...मेरे जानू.....को....सब....ससस...आअह्ह्ह..हहह्णणम्म्म....ममम...!!" ऋतू की दर्द भरी सिसकारियाँ अचानक ही मादक सिसकारियाँ बन चुकी थी| दो मिनट तक वो बिना हिले-डुले मेरे लंड को पानी बुर में भरे, आँखें मूंदे हुए बैठी रही| फिर उसने अपने दोनों हाथों को मेरी छाती पर रखा और अपनी कमर धीरे-धीरे ऊपर लाई, लंड का सुपाड़ा भर अंदर रहा गया था और फिर ऋतू धीरे-धीरे अपनी कमर को वापस नीचे लाई! दो मिनट में ही उसकी बुर ने रस छोड़ दिया, और वो गर्म-गर्म रस मेरे लंड को और भी गर्म करने लगा| ऋतू जैसे ही ऊपर उठी उसका रस बहता हुआ बाहर आया पर इस बार ऋतू रुकी नहीं और उसने लय-बद्ध तरीके से अपनी कमर ऊपर-नीचे करनी शुरू कर दी| 5 मिनट और फिर ऋतू उकड़ूँ हो कर बैठ गई और तेजी से उसने अपनी गांड ऊपर नीचे करने शुरू कर दी| अब तो मेरा लंड बड़ी आसानी से फिसलता हुआ उसकी बुर में अंदर-बाहर हो रहा था और ऋतू को भी बहुत जोश चढ़ आया था| अगले दस मिनट तक वो बिना रुके ऐसे ही ऊपर-नीचे करती रही और मेरी और मेरे लंड की हालत खराब कर दी| मेरे जिस्म में एक ऐठन आई और वही ऐठन ऋतू के जिस्म में भी आई और दोनों एक साथ अपना रस बहाने लगे, वो रस ऋतू के बुर में पहले भरा और काफी-कुछ रिस्ता हुआ बहार आने लगा|


ऋतू थक कर पस्त हो गई और मेरे ऊपर ही लुढ़क गई| हम दोनों की सांसें बहुत तेज थी, और लंड मियाँ अब भी ऋतू की बुर के अंदर फँसे पड़े थे| पाँच मिनट के बाद जब दोनों की सांसें सामान हुई तो आज मेरे चेहरे की संतुष्टि देख ऋतू को खुद पर गर्व होने लगा| मैंने करवट ले कर उसे अपने ऊपर से उतारा और अपनी बगल में लिटा दिया, इसी बीच मेरा लंड भी बहार आया| ऋतू की बुर से चम्मच भर गाढ़ा तरल बहंता हुआ बाहर आया जिसे देख कर मुझे बहुत आनंद आया| मैं वापस ऋतू की बगल में लेट गया, ऋतू ने मेरी तरफ करवट की और अपनी बायीँ टांग उठा कर मेरे लंड पर रख दी| वो अब भी उस गाढ़े तरल से अनजान थी!
 
update 25 

हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे और दस मिनट बाद मैंने ऋतू से बात शुरू की;

मैं: मेरी जान ने बड़े मन से डॉक्टर की साड़ी टिप्स फॉलो की, ऐसी क्या टिप्स दी थी उन्होंने?

ऋतू: (शर्माते हुए) उन्होंने कहा था की अपने पति को एक्साइट करो! कुछ मर्दों को बातों से एक्साइटमेन्ट होती है तो, किसी को नोचने-काटने से, किसी को चूमने-चूसने से होती है!

मैं: अच्छा?

ऋतू: हाँ जी! मुझे ये भी बताया की जल्दी स्खलित नहीं होना चाहिए बल्कि जितना रोक सको उतना बेहतर है! जब लगे की क्लाइमेक्स होने वाला है, तभी रुक जाओ और अपने पार्टनर को Kiss करते रहे| थोड़ा सब्र से काम लो और जल्दीबाजी मत दिखाओ! और तो और मुझे उन्होंने प्राणायाम भी करने को कहा और हस्तमैथुन नहीं करने को कहा|

मैं: तुम हस्थमैथुन करती थी?

ऋतू: जब आप नहीं होते थे तब करती थी! पर उस दिन के बाद मैंने बंद कर दिया, आपको पता है कितना मुश्किल होता है? आप को तो पता नहीं क्या सिद्धि प्राप्त है की आप खुद को इतना काबू में रखते हो! मुझे तो आपके पास आते ही आपके जिस्म की महक बहकाने लगती है| मन करता है आपके सीने से चिपक जाऊँ!!!!

मैं: जानू! सब तुम्हारे प्यार का असर है, वही मुझे कहीं भटकने नहीं देता|

अब तक ऋतू को बिस्तर पर गीलापन महसूस हो गया था, इसलिए वो उठ बैठी और हम दोनों का गाढ़ा-गाढ़ा रस देख कर बुरी तरह शर्मा गई| वो उठी और थोड़ा बहुत रस उसकी बुर से बहता हुआ उसकी जाँघों तक पहुँच गया था| खेर ऋतू बाथरूम से मुँह-हाथ और बुर धो कर आई और फिर मैंने भी मुँह-हाथ और लंड धोया! जब में बहार आया तो ऋतू चाय बना रही थी और जैसे ही मैंने कच्छा उठाया पहनने को तो ऋतू आँखें बड़ी कर के देखने लगी, मैंने मुस्कुरा कर कच्छा वपस जमीन पर पड़ा रहने दिया| "क्यों कपडे पहन रहे हो? मेरे सामने शर्म आती है?" ऋतू ये कह कर हँसने लगी| मैं उसके पीछे आया और उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड लिया| मेरा सोया हुआ लंड ऋतू की गांड से चिपका और मैं उसके कान में खुसफुसाते हुए बोला; "सॉरी जान!"   


"अच्छा आप खिड़की के नीचे बैठो, में चाय ले कर आती हूँ||" मैं वापस खिड़की के नीचे बिना कपडे पहने ही बैठ गया| ऋतू ने मुझे चाय दी और पलंग से चादर उठा कर धोने डाल दी और फिर मेरी गोद में नंगी ही बैठ गई| ऋतू की गांड ठीक मेरे लंड के ऊपर थी; 

ऋतू: अच्छा ...मुझे आपसे ...एक बात कहनी थी| (ऋतू ने बहुत सोचते-सोचते हुए कहा|)

मैं: हाँ जी कहिये| (मैंने ऋतू के बालों में ऊँगली फिराते हुए कहा|)

ऋतू: मुझसे अब आपसे दूर रहा नहीं जाता| आपका कहाँ की नई जिंदगी शुरू करने के लिए पैसों की जर्रूरत है वो सच है पर ये तो कहीं नहीं लिखा होता की ये सारा बोझ आप ही उठाएंगे? मैं भी आपका ये बोझ बाँटना चाहती हूँ, मैं भी जॉब करुँगी! ताकि जल्दी पैसे इक्कट्ठा हों और मैं और आप जल्दी से यहाँ से भाग जाएँ|


ऋतू की बात सुन कर मैं हैरान था क्यों की वो बेसब्र हो रही थी और इस समय मेरा उसपर चिल्लाना ठीक नहीं था, तो मैंने उसे समझते हुए कहा;

मैं: जान! मैं बिलकुल मना नहीं करता की आप जॉब मत करो! मैंने तो आपको अपना प्लान बताया था ना? अगले साल से आप भी पार्ट टाइम जॉब शुरू करना! फिलहाल मैं कल ही सर से अपनी सैलरी बढ़ाने की बात करूँगा नहीं तो मैं जॉब स्विच कर लूँगा|

ऋतू: प्लीज जानू!

मैं: जान! समझा करो! आप पढ़ाई और जॉब एक साथ नहीं संभाल पाओगे! कॉलेज की अटेंडेंस भी जर्रूरी है ना? फिर हॉस्टल के टाइमिंग भी तो इशू है|

ऋतू: मैं सब संभाल लूँगी, सैटरडे और संडे करुँगी तो कॉलेज की अटेंडेंस में भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा| हॉस्टल की टाइमिंग के लिए मैं आंटी जी से बात कर लूँगी और उन्हें मना भी लूँगी| प्लीज मुझसे अब ये दूरी बर्दाश्त नहीं होती!

मैं: जॉब करोगी तो सैटरडे-संडे हम दोनों कैसे मिलेंगे? तब कैसे रहोगी मुझसे बिना मिले? और ये मत भूलो की हमें कभी-कभी सैटरडे-संडे घर भी जाना होता है, उसका क्या? रास्ते में अकेले आना-जाना कैसे मैनेज करोगी?

ऋतू: मैं आप ही की कंपनी में जॉब करुँगी तो हम एक साथ और भी टाइम बिता पाएंगे और रही घर जाने की बात तो आपके बस इतना बोलने से की आप ऑफिस के काम में बिजी हो तो कोई कुछ नहीं कहेगा| आप बोल देना की मेरे एग्जाम है...कुछ भी झूठ बोल देना...ज्यादा हुआ तो कभी-कभी चले जायेंगे| एटलीस्ट मुझे एक बार कोशिश तो करने दीजिये, एक बार अनु मैडम से बात तो करने दीजिये!

मैं: अच्छा जी तो सब सोच कर आये हो?! मेरे ऑफिस में जॉब करोगे तो मेरे साथ-आना जाना तो छोडो वहां मुझसे बात भी नहीं कर सकती तुम!

ऋतू: क्यों भला?

मैं: वहाँ किसी ने पूछा तो क्या कहूँ? ये मेरी भतीजी है! या फिर तुम मुझे सब के सामने 'चाचा' कह पाओगी?

ऋतू: तो हम वहाँ बिलकुल अजनबी होंगे?

मैं जी हाँ!

ऋतू: हाय! ये तो बेस्ट हो गया फिर! दुनिया की नजर से छुप-छुप कर मिलना, बातें करना बिलकुल फिल्मों की तरह|

मैं: फिल्मों का कुछ ज्यादा ही भूत नहीं चढ़ गया?

ऋतू: नहीं ...आपके प्यार का भूत है...जो सर से उतरता ही नहीं|

मैं: ऋतू ...देख कल को ये बात खुल गई तो ...सब कुछ खत्म हो जायेगा, प्लीज बात को समझ! (मैंने गंभीर होते हुए ऋतू के सर को चूमा|)

ऋतू: मैंने आज तक आपसे जो माँगा है आपने दिया है, एक आखरी बार मेरी ये जिद्द पूरी कर दो और मैं वादा करती हूँ की आगे से कभी कोई जिद्द नहीं करुँगी|

मैं: ठीक है, पर आपको मुझसे एक और वादा करना होगा|

ऋतू: बोलिये

मैं: कॉलेज खत्म होने से पहले हम शादी नहीं करेंगे| तुम अपनी पढ़ाई को हरगिज़ डाव पर नहीं लगाओगी|

ऋतू: ओफ्फो!!! जानू आप ना सच में बहुत सोचते हो! किस ने कहा की मैं अपनी ग्रेजुएशन कम्पलीट नहीं करुँगी?! मैं शादी के बाद भी तो कॉरेस्पोंडेंस से पढ़ सकती हूँ ना? फिर तो आप कहोगे तो मैं पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर लूँगी| एक्चुअली करना ही पड़ेगा वरना आगे जॉब कहाँ मिलेगी! 


ऋतू ने बड़ी सरलता से ये बात कही पर ये बात मेरे गले नहीं उत्तर रही थी|


मैं: तुमने वादा किया था ना की कॉलेज की नेक्स्ट टोपर तुम बनोगी! मेरी तस्वीर के साथ तुम्हारी तस्वीर लगेगी... भूल गई? (ये कह कर मैं उठ खड़ा हुआ और हाथ बाँधे खिड़की से बहार देखने लगा|)

ऋतू: (मुझे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ते हुए|) ठीक है जान! जब तक मेरी ग्रेजुएशन पूरी नहीं होती तब तक हम शादी नहीं करेंगे| पर उससे एक दिन भी जयदा नहीं रुकूंगी मैं!

ये कहते हुए ऋतू ने मेरी नंगी पीठ को चूमा| उसके स्तन मेरी पीठ में गड रहे थे, मैं ऋतू की तरफ घूमा और उसके होठों को चूम लिया| उसका निचला होंठ मैंने अपने होठों और जीभ से चूसना शुरू कर दिया था| 


अगले दिन मैंने सर से अपनी सैलरी को ले कर बात की;

मैं: गुड-मॉर्निंग सर!

बॉस: गुड- मॉर्निंग! अमिस ट्रेडर्स के नए इनवॉइस आये हैं, उन्हें चढ़ा देना|

मैं: जी...आपसे कुछ बात करनी थी|

बॉस: हाँ बोलो|

मैं: सर मुझे सैलरी में रेज (raise) चाहिए| 

बॉस: क्यों?

मैं: सर मुझे आपके पास काम करते हुए तकरीबन 3 साल हो गए हैं और इन सालों में मेरी सैलरी में एक भी बार रेज नहीं हुआ|

बॉस: पहले तुम रेगुलर तो बनो| आये-दिन छुट्टी मारते हो, शाम को ऑफिस खत्म होने से पहले ही चले जाते हो| ऐसे थोड़े ही चलेगा!

मैं: सर मेरी छुट्टियाँ पहले से कम हो गई हैं, आखरी बार छुट्टी तब ली थी जब मुझे डेंगू हो गया था| वो छुट्टियाँ भी विथाउट पे थी! शाम को जल्दी जाता हूँ तो बाद में वापस आ कर काम भी तो खत्म कर देता हूँ| आज तक आपको किसी भी काम के लिए मुझे दो बार नहीं कहना पड़ा है, इसलिए सर प्लीज सैलरी रेज कर दीजिये|

बॉस: देखते हैं...अभी जा कर अमिस ट्रेडर्स का डाटा चढ़ाओ| 

मैं: सॉरी सर, पर अगर आप सैलरी रेज नहीं करना चाहते तो मैं रिजाइन कर देता हूँ|

मैंने सर को अपना रेसिग्नेशन लेटर दे दिया|

में: सर इसमें 1 महीने का नोटिस पीरियड है, अगले महीने से मैं जॉब छोड़ देता हूँ|

इतना कह कर मैं चला गया| बॉस बहुत हैरान था क्योंकि उसे ऐसी जरा भी उम्मीद नहीं थी| तकरीबन 3 साल का एक्सपीरियंस था मेरे पास और कहीं भी जॉब कर सकता था, इसलिए मुझे जरा भी परवाह नहीं थी| इधर बॉस की फटी जर्रूर होगी क्योंकि ऐसा मेहनती 'मजदूर' उसे कहाँ मिलता जो एक आवाज में उसका सारा काम कर देता था| मैंने दोपहर को लंच भी नहीं किया और बिल एंटर करता रहा| लंच के बाद मैडम आईं और जब उन्हें सर से ये पता चला की मैं रिजाइन कर रहा हूँ तो पता नहीं उन्होंने सर को क्या समझाया की सर खुद मुझे बुलाने के लिए आये| मैं उनके केबिन में हाथ बंधे खड़ा हो गया, मैडम और सर मेरे सामने ही बैठे थे;

बॉस: अच्छा ये बताओ की रेज क्यों चाहिए तुम्हें? पार्ट टाइम टूशन तो तुम पढ़ा ही रहे हो और अभी सिंगल हो तो तुम्हारा खर्चा ही क्या है?     

मैं: सर 20,000/- की सैलरी में 8,000/- तो रेंट है, घर का खर्चा जिसमें खाना-पीना, बिजली-पानी सब जोड़-जाड कर 6-7 हजार हो जाता है| बाइक का तेल-पानी और मेंटेनेंस 1500/-,तो बचे 3,500/-! तीन साल में मेरी सेविंग कुछ 60-65 हजार ही हुई है| घर तो मैं ने पैसे भेजना बंद कर दिए! अब आप ही बताइये की आगे शादी करूँगा तो घर कैसे चलेगा मेरा?


मेरा जवाब सुन कर मैडम के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई पर सर के पास कोई जवाब नहीं बचा था|


बॉस: ठीक है मैं 2,000/- बढ़ा देता हूँ!

मैं: सॉरी सर! एटलीस्ट मुझे 5,000/- का रेज चाहिए| (अब मैं बार्गेन करने पर उत्तर आया तो मैडम के चेहरे पर और मुस्कराहट चा गई|)

बॉस: क्या? मैं इतना रेज नहीं कर सकता|

मैं: सरमार्किट में 30,000/- का ऑफर मिल रहा है मुझे, मैं तो फिर भी आपसे 25,000/- मांग रहा हूँ, वो भी 3 साल बाद! हर साल अगर 2,000/- भी बढ़ाते तो भी अभी आपको 6,000/- बढ़ाने पड़ते!

बॉस: नहीं! 3,000/- बढ़ा दूँगा इससे ज्यादा नहीं!

मैं: सर आप शुक्ल जी को 35,000/- देते हैं, ना तो वो ऑफिस से बहार का काम करते हैं ना ही ऑफिस के अंदर रह कर कोई काम करते हैं| जब तक आप उन्हें चार बार न कह दें वो फाइल खत्म करते ही नहीं|

बॉस: उनकी फॅमिली है, बच्चे हैं!

मैं: तो सर काबिलियत का कोई मोल नहीं? अगर फॅमिली का ही मोल है तो मैं अपने सारे परिवार को यहीं बुला लेता हूँ! फिर तो मुझे ज्यादा पैसे मिलेंगे ना?

बॉस: क्या करोगे 5,000/- बढ़वा के? तुम्हारे परिवार के पास इतनी जमीन है!

मैं: सर मैं उनके टुकड़ों पर नहीं पलना चाहता, अपना अलग स्टैंड है मेरा| अगर जमीन ही देखनी होती तो मैं यहाँ 20,000/-की नौकरी करता?

बॉस: चलो अगर मैं सैलरी बढ़ा दूँ तो तुम्हें ये शाम को जल्दी जाना बंद करना होगा! 

मैं: सर मैं अगर जल्दी जाता हूँ तो वापस आ कर सारा काम खत्म कर देता हूँ और अगले दिन आपको फाइल टेबल पर मिलती है| बाकी ऑफिस में सोमवार से शुक्रवार काम होता है मैं तो फिर भी 6 दिन आता हूँ|

बॉस ने ना में सर हिलाया और मैंने भी आगे कुछ नहीं कहा और वापस अपने डेस्क पर बैठ गया और काम करने लगा| शाम को मैंने इनवॉइस की फाइल सर को कम्पलीट कर के दी और ऋतू से मिलने निकल पड़ा| ऋतू को जब ये सब बताया तो वो ये सुन कर मायूस हो गई| उसने अभी तक अनु मैडम से अपनी जॉब की बात नहीं की थी वरना बॉस मेरी सैलरी कतई रेज नहीं करता, क्योंकि उसे ऋतू का स्टिपेन्ड (stipend) भी देना पड़ता और मेरी सैलरी रेज भी करनी पड़ती| "लगता है आपके साथ ऑफिस में काम करना सपना रह जायेगा|" उसने मायूस होते हुए कहा| मैंने ऋतू की ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई और उसकी आँखों में ऑंखें डाले कहा; "ये अकेला ऑफिस तो नहीं है ना जहाँ हम दोनों साथ काम कर सकते हैं, ये नहीं तो कोई दूसरा ऑफिस सही|"     


पर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था, करीबन एक हफ्ते बाद एक और एम्प्लोयी ने बॉस के काइयाँपन से तंग आ कर रिजाइन कर दिया| उसी दिन सर ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और कहा;

बॉस: मानु मैं तुम्हारी सैलरी रेज कर रहा हूँ, लेकिन अगले महीने से!

मैं: ठीक है सर...थैंक यू!

मैं ख़ुशी-ख़ुशी बहार आया और अपना काम करने लगा की तभी मैडम आ गईं; "अरे पार्टी कब दे रहे हो?"

"अगले महीने mam ... सैलरी अगले महीने से बढ़ेगी!"

"ये ना!! सच्ची बहुत कंजूस हैं! चलो कोई बात नहीं अगले महीने पार्टी पक्की! अच्छा सुनो...वो प्रोजेक्ट के डिटेल आ गई हैं मेरे पास तो उस पर डिस्कशन करना है, लंच के बाद| ठीक है?

"जी mam"

मैडम के जाते ही मैंने ऋतू को कॉल किया और उसे खुशखबरी दी और उसे नए प्रोजेक्ट के बारे में भी बताया| "अभी के अभी मैडम को कॉल कर और कॉफ़ी पीने के बहाने कॉलेज के आस-पास बुला और उनसे जॉब की बात छेड़ और जैसे समझाया था वैसे ही बात करना|" ये सुन कर ऋतू बहुत खुश हुई और उसने तुरंत ही मैडम को फ़ोन मिलाया और उसके कुछ देर बाद मैडम भी निकल गईं| आगे जो कुछ हुआ उसके बारे में ऋतू ने मुझे खुद बताया;

ऋतू: Hi mam!

अनु मैडम: Hi!!!

दोनों एक टेबल पर बैठ गए और mam ने दो कॉफ़ी आर्डर की|

ऋतू: I’m sorry to bother you mam!

अनु मैडम: Oh no no no… that’s okay! I always look for reason to escape from office! So what do you do? Where do you stay?

ऋतू: I’m a B Com student and I live in the hostel nearby. I actually neede your help. Umm…I’m actually looking for some work. Actually…umm…. I don’t want to be a burden on my family…I thought I can … you know earn something…. And learn from the experience… can you help me find a part time job? Like Saturdays and Sundays… Maybe in your company? Here’s my 10th and 12th marksheet! (ऋतू ने बहुत सोच-सोच कर और घबराते हुए बोला|)

ये सुन कर मैडम कुछ सोच में पड़ गईं और फिर बोलीं;

अनु मैडम: Ok join me from Saturday! I’ve a project and I was thinking of someone of your caliber to work with. But, stipend will be 1,000/- only, since you’re not joining us for 6 days a week!

ऋतू:  No problem mam, that’s not an issue. Thank you mam! Thank you!!!!

लंच के बाद जब मैडम आईं तो वो बहुत खुश लग रहीं थीं, उन्होंने मुझे और रेखा को अपने केबिन में बुलाया|

अनु मैडम: एक लड़की और हमें ज्वाइन कर रही है, पर वो सिर्फ सैटरडे और संडे ही आ पायेगी|

रेखा: क्यों mam?

अनु मैडम: यार! काम जयदा है और यहाँ कोई भी नहीं है जो PPTs और EXCEL पर फटाफट काम करता हो| ये लड़की अभी स्टूडेंट है और कुछ काम सीखना चाहती है| मानु जी आप संडे आ पाओगे? क्योंकि मंडे to सैटरडे तो ऑफिस का काम ही चलेगा पार्ट टाइम में आप दोनों काम करो तो मैं आपको कम्पेन्सेट भी करवा दूँगी|

मैं: ठीक है mam ... no problem.

राखी: ठीक है mam ... कोई दिक्कत नहीं|

शाम को जब मैं और ऋतू मिले तो आज मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया| ऋतू को समझते देर ना लगी की उसकी नौकरी पक्की हो गई है| मैंने उसे कुछ बात बातें की सब के सामने उसे मुझसे मेरा नाम ले कर बात करनी है और किसी को जरा भी शक नहीं होना चाहिए की हम दोनों एक दूसरे को जानते हैं, ये सुन कर ऋतू बहुत एक्साइट हो गई! कुछ दिन और बीते और आखिर सैटरडे आ ही गया, ऋतू ने अपने हॉस्टल में आंटी जी से बात कर ली और उन्हें वही तर्क दिया जो उसने अनु मैडम को दिया था| आंटी जी ने बात कन्फर्म करने के लिए मुझे कॉल भी किया और मैंने उन्हें विश्वास दिला दिया की ऋतू कोई गलत काम नहीं कर रही है, पर उन्हें ये नहीं बताया की वो मेरी ही कंपनी में काम करेगी| सैटरडे सुबह मैं जल्दी से ऑफिस पहुँच गया, ठीक 10 बजे ऋतू की एंट्री हुई| नारंगी रंग के सूट में आज ऋतू क़यामत लग रही थी|
 
update 26



ऋतू को देखते ही ये बोल अपने आप मेरे मुँह से निकलने लगे;

"एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे

          खिलता गुलाब, जैसे

          शायर का ख्वाब, जैसे

         उजली किरन, जैसे

            बन में हिरन, जैसे

            चाँदनी रात, जैसे

            नरमी बात, जैसे

  मन्दिर में हो एक जलता दिया, हो!"

मेरी बगल में ही राखी खड़ी थी और ये गाना सुनते ही मुझे कोहनी मारते हुए बोली; "क्या बात है मानु जी?!!" अब मुझे कैसे भी बात को संभालना था तो मैंने बात बनाते हुए कहा; "सच में यार ये हूर-परी कौन है?"
 "पता नहीं! चलो न चल के इंट्रो लेते हैं इसका|" राखी ने खुश होते हुए कहा|


"ना यार! कहीं बॉस की कोई रिश्तेदार निकली तो सर क्लास लगा देंगे दोनों की|" अभी हम दोनों  ये बात कर ही रहे थे की ऋतू के ठीक पीछे से अनु मैडम और सर आ गए| और उन्हें देख कर हम दोनों अपने-अपने डेस्क पर चले गए| मैडम ने बॉस से ऋतू का इंट्रो कराया और बताय की प्रोजेक्ट के लिए ऋतू ने 'as a trainee' ज्वाइन किया है| फिर मैडम ने मुझे और राखी को बुलाया और ऋतू से इंट्रो कराया; "ऋतू ये दोनों आपके टीम मेट्स हैं, राखी और मानु|" ऋतू ने राखी से हाथ मिलाया और मुझे हाथ जोड़ कर नमस्ते कहा| ये देख कर राखी के चेहरे से हँसी छुप नहीं पाई और उसे हँसता देख मैडम ने उससे पूछा भी की वो क्यों हँस रही है पर वो बात को टाल गई| "और मानु ये हैं रितिका, फर्स्ट ईयर कॉलेज स्टूडेंट हैं|" अब मैंने भी अपनी हँसी किसी तरह छुपाई और बस "नमस्ते" कहा| ये देख कर ऋतू के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई| "अरे हाँ..आपकी डायरी इन्हीं ने लौटाई थी|" मैडम ने मुझे डायरी वाली बात याद दिलाई| "ओह्ह! Really!!! Thank You रितिका जी!!" मैंने मुस्कुरा कर ऋतू को थैंक यू कहा| 

मेरा ऋतू को रितिका कहने से उसे थोड़ा अटपटा सा लगा जो उसके चेहरे से साफ़ झलक रहा था|       

                                                खेर मैडम ने ऋतू को ब्रीफ करने के लिए हम दोनों तीनों को अपने केबिन में बुलाया और ऋतू को राखी के साथ प्लानिंग और एनालिसिस में लगा दिया और मेरा काम इनकी प्लानिंग और एनालिसिस के हिसाब से PPTs और Excel Sheet तैयार करना था| अभी चूँकि मुझे पहले बॉस का काम करना था तो मैं उसी काम में लगा था| पर मेरी नजरें काम में कम और ऋतू पर ज्यादा थी| ऋतू को वादा करने से पहले मैं कभी-कभी चाय-सुट्टा पीता था, उसी वक़्त राखी भी आ जाया करती थी पर वो सिर्फ चाय ही पीती थी| आज भी वही हुआ, राखी खुद भी आईं और साथ में ऋतू को भी ले आई|

राखी: अरे मुझे क्यों नहीं बोला की आप चाय पीने जा रहे हो?  

मैं: आप लोग बिजी थे! (मैंने ऋतू की तरफ देखते हुए कहा और मुझे अपनी तरफ देखता हुआ पा कर ऋतू का सर शर्म से झुक गया|) 

राखी: अच्छा?? (मेरे ऋतू को देखते हुए राखी ने जान कर अच्छा शब्द बहुत खींच कर बोला| जिसे सुन ऋतू की हँसी छूट गई|)

मैं: और बाताओ क्या-क्या सीखा रहे हो आप रितिका जी को? (मैंने इस बार राखी की तरफ देखते हुए कहा|)

राखी: घंटा! मैडम तो बोल गई की प्लानिंग करो एनालिसिस करो पर साला करना कैसे है ये कौन बताएगा? (राखी के मुँह से 'घंटा' शब्द सुन ऋतू हैरान हो गई|)

मैं: तो 2 घंटे से दोनों कर क्या रहे थे?

राखी: कुछ नहीं.... कुछ इधर-उधर की बातें| आपकी बातें!!! (राखी ने मुझे छेड़ते हुए कहा|)

मैं: मेरी बातें? 

राखी: और क्या? जब मैं पहलीबार ज्वाइन हुई तब मुझसे तो आपने कभी बात नहीं की? और रितिका को देखते ही गाना निकल गया मुँह से?

ये सुन कर मैं जानबूझ कर शर्मा गया और ऋतू हैरानी से आँखें बड़ी करके मुझे देखने लगी|

ऋतू: कौन सा गाना गए रहे थे सर?

राखी: एक लड़की को देखा तो....


मैं कुछ नहीं बोला और एक घूँट में सारी चाय पी कर वापस ऊपर आ गया, और मुझे जाता हुआ देख राखी ठहाके मार के हँसने लगी| आज ऋतू के मुझे 'सर' कहने पर मुझे एक अजीब सी ख़ुशी हुई और वो भी शायद समझ गई थी| लंच के बाद मैं दोनों के साथ रिसर्च, प्लानिंग और एनालिसिस में उनके साथ लग गया| मैंने दोनों को पुराना डाटा दिखाया और उसकी मदद से रेश्यो निकालना बता कर मैं अपने डेस्क पर वापस आ गया| कुछ देर बाद अनु मैडम भी आईं और वो भी मेरे इस बदले हुए बर्ताव से थोड़ा हैरान थीं| उन्होंने मुझे दोनों की मदद करते हुए देख लिया था इसलिए मेरी सराहना करने से वो नहीं चूँकि; "अरे भैया तुम दोनों से ज्यादा होशियार है मानु! कुछ सीखो इनसे, अपना काम तो करते ही हैं साथ-साथ दूसरों की मदद भी करते हैं|" ये बात मैडम ने शुक्ल जी को सुनाते हुए कही|

शाम को जब जाने का नंबर आया तो मैं सोचने लगा की कैसे ऋतू को घर छोड़ूँ? अब मैं सामने से जा कर तो पूछ नहीं सकता था इसलिए मुझे कुछ न कुछ तो सोचना ही था! तभी मैडम ने उसे खुद ही लिफ्ट ऑफर कर दी और मैं बस ऋतू और मैडम को जाता हुआ देखता रहा| राखी पीछे से आई और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; "आज लिफ्ट मिलेगी?" मैंने बस मुस्कुरा कर हाँ कहा और फिर ऋतू की जगह राखी को अपने पीछे बिठा कर उसके घर छोड़ा| मेरे घर पहुँचने के घंटे भर बाद ऋतू का वीडियो कॉल आया, वो बाथरूम में बैठे हुए खुसफुसाई;

ऋतू: I Love You जानू! uuuuuuuuuuuuuummmmmmmmmmmmmmmmmmaaaaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh !!!!!

मैं: क्या बात है बहुत खुश है आज?

ऋतू: जानू! बर्थडे के बाद आज का दिन मेरे लिए सबसे जबरदस्त था! कल के दिन के लिए सब्र नहीं कर सकती मैं|

मैं: अच्छा जी? जब मुझसे नाराज हुई थी और हमने पहली बार 'प्यार' किया था वो दिन जबरदस्त नहीं था? (मैंने ऋतू को छेड़ते हुए कहा|)

ऋतू: वो दिन तो मेरे जीवन का वो स्वर्णिम दिन था जिसका ब्यान मैं कभी कर ही नहीं सकती| उस दिन तो हमने एक दूसरे को समर्पित कर दिया था| हमारा अटूट रिश्ता उसी दिन तो पूरा हुआ था|

मैं: वैसे आज मुझे तुम्हारे 'सर' कहने पर बड़ी अजीब सी फीलिंग हुई! पेट में तितलियाँ उड़ने लगी थी!

ऋतू: आपका नाम ले कर आपको पुकारने का मन नहीं हुआ, इसलिए मैंने आपको 'सर' कहा| एक बात तो बताइये, आपने सच में मुझे देख कर गाना गाय था?

मैं: हाँ, तू लग ही इतनी प्यारी रही थी की गाना अपने आप मेरे मुँह से निकल गया|

ये सुन कर ऋतू मुस्कुराने लगी| फिर इसी तरह हँसी-मजाक करते-करते खाने का समय हो गया और खाना मुझे ही बनाना था पर बुरा ऋतू को लग रहा था| "हमारी शादी जल्दी हुई होती तो मैं आपके लिए खाना बनाती|" ऋतू ने नाराज होते हुए कहा| "जान! शादी के बाद जितना चाहे खाना बना लेना पर तब तक थोड़ा-बहुत एडजस्ट तो करना पड़ता है|" मैंने ऋतू को मनाते हुए कहा|

"वैसे कितना रोमांटिक होगा जब आप और मैं एक साथ एक ही ऑफिस जायेंगे?! स्टाफ के सारे लोग हमें देख कर जल-भून जायेंगे!" ऋतू की बात सुन कर मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई|

"लोगों को जलाने में बहुत मजा आता हैं तुम्हें?" मैंने पूछा|

"अब आपके जैसा प्यार करने वाला हो तो जलाने में मजा तो आएगा ही|" ऋतू ये कहते हुए हँसने लगी| तभी बहार से मोहिनी की आवाज आई; "अरे अब क्या बाथरूम में बैठ कर एकाउंट्स के सवाल हल कर रही है?! जल्दी बहार आ, खाना लग गया है|" ऋतू ने हड़बड़ा कर कॉल काटा और मुझे बहुत जोर से हँसी आ गई| बाद में उसका मैसेज आया; "बहुत मजा आता है ना आपको मेरे इस तरह छुप-छुप कर आपसे बात करने में?!" मैंने भी जवाब में हाँ लिखा और फ़ोन रख कर खाना बनाने लगा| खाना खा कर बड़ी मीठी नींद सोया और सुबह जल्दी से तैयार हो गया, सोचा की आज ऋतू को मैं ही ऑफिस ड्राप कर दूँ पर फिर याद आया की किसी ने देख लिया तो? तभी दिमाग में प्लान आया की मैं ऋतू को बस स्टैंड पर छोड़ दूँगा वहाँ से वो पैदल आ जाएगी| पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, ऋतू को मैडम ही लेने आ रही थी| मैं अपना मन मार के ऑफिस पहुँचा, पर वहां कोई नहीं था तो मैं नीचे चाय पीने लगा, तभी वहां राखी आ गई और वो भी मेरे साथ चाय पीने लगी| 

अनु मैडम और ऋतू एक साथ गाडी से निकले और हमारे पास ही आ कर खड़े हो गए और चाय पीने लगे| चाय पी कर हम सब एक साथ ऊपर आये और सीधा मैडम के केबिन में बैठ गए| कल के काम पर डिस्कशन के बाद मैडम ने तीनों को अलग-अलग बिठा दिया और राखी को प्लानिंग और ऋतू को एनालिसिस का काम दे दिया| मैं बैठा कुछ PPTs स्टडी कर रहा था, मैडम भी मेरे पास आ गईं और कल जो कुछ थोड़ा बहुत काम हुआ था उसके ग्राफ्स बनाने में मदद करने लगी| मैडम को पमरे साथ बैठा देख ऋतू को अंदर से जलन होने लगी थी, वो बहाने से बार-बार आ रही थी और मैडम से कुछ न कुछ पूछ रही थी| हालाँकि ऋतू बहुत कोशिश कर रही थी की उसकी जलन मुझ पर जाहिर ना हो पर मैं उसकी जलन महसूस कर पा रहा था| आखरी बार जब ऋतू मैडम से कुछ पूछने आई तो मैडम उठ खड़ी हुई; "मानु आप ये PPTs का आर्डर ठीक करो मैं जरा रितिका को एक बार सारा काम समझा दूँ वरना बेचारी सारा टाइम इधर-उधर भटकती रहेगी|”  

ऋतू को आधा घंटा समझाने के बाद मैडम ने मुझे उसकी हेल्प करने को कहा और खुद बाहर चली गईं| अब मैंने ऋतू के साथ बैठ कर उसे कुछ फाइल्स वगैरह के बारे में बताया, क्योंकि उसे कंप्यूटर उसे थोड़ा-बहुत ही आता था जो भी उसने अभी तक कॉलेज में सीखा था| आज मैंने उसे माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के बारे में बताय और टाइप करने के लिए कुछ शॉर्टकट बताये| ये सब ऋतू ने अब्दी ध्यान से सुना और अपने राइटिंग पैड में लिख लिया| जब मैं उठ के जाने लगा तो ऋतू ने मेरा हाथ चुपके से पकड़ लिया और मुझे खींच कर बिठा दिया| वो खुसफुसाती हुई बोली; "कहाँ जा रहे हो आप? बैठो ना थोड़ी देर और!" मैं भी बैठ गया पर हम दोनों में कोई बात नहीं हो रही थी, बस एक दूसरे को देख रहे थे| ऋतू ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया था और उसके हाथों की तपिश मुझे मेरे ठन्डे हाथों पर होने लगी थी| उसके होंठ थर-थरा रहे थे और मेरा मन भी उन्हें चूमने को व्याकुल था! आज अगर ऑफिस नहीं होता तो हम दोनों मेरे घर पर एक दूसरे के पहलु में होते!

"यहाँ कोई एकांत जगह नहीं है जहाँ आप और मैं थोड़ा टाइम....." ऋतू इतना कहते हुए रुक गई| मुझे उसका उतावलापन देख कर हँसी आ रही थी; "जान! ये ऑफिस है मेरा! यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता, किसी ने देख लिया ना तो ???"     

         ये सुन कर ऋतू का दिल टूट गया, "अच्छा चाय पियोगी?" ये सुन कर ऋतू की आँखों में चमक आ गई| हम दोनों उठ के नीचे आये और मैंने ऋतू को मेरी वाली स्पेशल चाय पिलाई| हम अभी चाय पी ही रहे थे की राखी आ गई; "अच्छा जी! मेरे से चोरी-छुपे चाय पी जा रही है?" उसने हम दोनों को छेड़ते हुए कहा|

"मैंने सोचा की आज रितिका जो को मानु वाली स्पेशल चाय पिलाई जाए|" मैंने बात बनाते हुए कहा|

"वो तो बिना सिगेरट के पूरी नहीं होती!" ये कहते हुए राखी ने चाय के साथ एक सिगरेट ली और काश ले कर मेरी तरफ बढ़ा दी| ये देख कर ऋतू हैरान हो गई, उसे लगा शायद मैंने उससे किया वादा तोड़ दिया है| 

"सॉरी! मैंने छोड़ दी|" मेरा जवाब सुन कर राखी हैरान हो गई?

"हैं??? आप ही ने तो इलाइची वाली चाय के साथ ये कॉम्बो बनाया था और अब खुद ही नहीं पी रहे?" राखी की बात सुन कर ऋतू दुबारा हैरान हो गई|

"पर अब छोड़ दी| अब जीने की आदत हो गई है|" ये मैंने ऋतू को देखते हुए कहा| इस बार तो राख ने मेरी चोरी पकड़ ही ली; "अच्छा जी!!! रितिका जी को खुश करने को कह रहे हो!" ये सुन कर हम तीनों ठहाका लगा कर हँसने लगे| बस इसी तरह हँसी-मजाक में वो दिन निकला और मैडम ने ही राखी और ऋतू को घर छोड़ा और मैं अकेला घर वापस आ गया| 
 
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