desiaks
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आशा---’ रणधीर बाबू के धीर स्थिर आवाज़ ने सन्नाटे को भंग किया |
‘ज.. जी सर...’ आशा ने रणधीर बाबू की ओर देख कर जवाब दिया--- आवाज़ में उत्सुकता का पुट है |
‘नर्वस हो?’ रणधीर बाबू ने पूछा |
‘न-- नो सर..’ आशा की उत्सुकता थोड़ी और बढ़ी |
‘यू आर अ यंग लेडी--- कम्पेयर्ड टू मी--- राईट?’
‘य... यस सर---’ थोड़ा सहम कर जवाब दी इस बार आशा |
‘ह्म्म्म--- फ़िर भी मुझे कुछ फ़ील क्यूँ नहीं हो रहा?’ धीरे ही सही, पर अब पॉइंट में आना शुरू किया रणधीर बाबू ने---
‘प-- प --- पता --- न-- नहीं स--- सर’ घबराने लगी वह बेचारी --- देती भी तो क्या जवाब देती इस बात का |
‘मुझे पता है क्यों--- और ये भी कि क्या करने से कुछ ---- कुछ अच्छा फ़ील हो सकता है ----| ’ होंठों पे एक घिनौनी मुस्कान लिए बोला वो शैतान |
‘क --- कहिए सर--- क्या करने से अच्छा फ़ील होगा--- आई विल ट्राई टू डू दैट--- |’
‘ट्राई नहीं आशा--- सिर्फ़ तुम्हीं कर सकती हो और तुम्हें करना ही होगा--- |’ अपने पासे एक एक कर फ़ेंक रहा था वह हवसी |
‘ओ--- ओके सर--- |’ घबराई आशा ने तुरंत हामी भरी ----
‘अगर देखा जाए तो मैं ऑलरेडी तुम्हारा बॉस हूँ--- राईट?? ’
‘यस सर---- ’
‘एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट----- राईट??’
‘यस सर--- ’
‘और हर एम्प्लोईज़ को बॉस की बात बिना रोक टोक और न नुकुर के सुनना चाहिए---- राईट ?!’
‘बिल्कुल सर---’
‘तुम भी मेरी हर बात को बिना रोक टोक और ना नुकुर के सुनोगी और मानोगी--- इसलिए नहीं की तुम मेरी एम्प्लोई हो--- वरन इसलिए की तुमने एक सादे कागज़ में लिख कर दिया है जोकि एक तरह का बांड है--- |’
‘यस सर---- बिल्कुल---| ’
‘ह्म्म्म’
शैतानी मुस्कुराहट मुस्कराया वह ठरकी बुड्ढा ---- साफ़ था--- अब कुछ ‘आउट ऑफ़ लीग’ बोलने वाला है----
और हुआ भी वही---
‘तो आशा ---- मुझे ‘फ़्री’ टाइप रहने वाली लेडीज बहुत पसंद है ---- और फ़िलहाल तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है मानो तुम बहुत ‘ओवर- बर्डन’ हो अभी--- बोझ बहुत ज़्यादा है--- डू वन थिंग--- रिमूव योर पल्लू----!!’ वासनायुक्त अपना पहला ही आदेश खतरनाक ढंग से दिया रणधीर बाबू ने |
आशा चौंक उठी---
अविश्वास से आँखें बड़ी बड़ी हो उठी---
मानो उसने भी पहला आदेश या यूँ समझें की ‘इंटरव्यू’ का पहला ही निर्देश कुछ ऐसा होने की आशा नहीं की थी---
प्रतिरोध स्वरुप कुछ कहने हेतु होंठ खोला आशा ने--- पर कुछ याद आते ही तुरंत होंठों को बंद भी कर लिया |
रणधीर मुस्कराया--- सुनहरे चश्में से झाँकते उसके आँखें किसी वहशी दरिंदे के माफ़िक चमकने लगी---
गंभीर स्वर में बोला,
‘आई एम सीरियसली सीरियस आशा--- अपना पल्लू हटाओ--- |’
अत्यंत स्पष्ट स्वर में स्पष्ट निर्देश आया रणधीर की तरफ़ से---
आशा हिचकी--- आँसू रोकी---- थूक का एक बड़ा गोला गटकी--- और धीरे से हाथ उठा कर बाएँ कंधे पर पिन के पास ले गई --- पिन खोलती कि तभी दूसरा निर्देश / आदेश आया ---
‘मेरी तरफ़ देखते हुए आशा--- आँखों में आँखें डाल कर---’
बड़ा ही सख्त कमीना जान पड़ा ये आदमी आशा को--- घोर अपमानित सा बोध करती हुई वह धीरे से आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी--- सीधे उसकी आँखों में --- बिना पलकें झपकाए--- फ़िर आहिस्ते से पिन खोल कर सामने टेबल पर रखी---- कंधे पर ही पल्लू को ज़रा सा सरकाई--- और दोनों हाथ चेयर के आर्मरेस्ट पर रख दी--- दो ही सेकंड में पल्लू सरसराता हुआ पूरा ही सरक कर आशा की गोद में आ गिरा--- रणधीर बाबू के आँखों में लगातार देखे जा रही आशा रणधीर बाबू के आँखों की चुभन अपने जिस्म की ऊपरी हिस्से पर साफ़ महसूस करने लगी और परिणामस्वरुप एक तेज़ सिहरन सी दौड़ गई पूरे शरीर में--- |
आशा भले ही रणधीर बाबू के आँखों में बिन पलकें झपकाए देख रही थी पर ठरकी बुड्ढे की नज़र आशा के पिन खोलते ही उसके सुपुष्ट सुडौल उभरी छाती पर जा चिपके थे |
नीले ब्लाउज में गहरे गले से झाँकती पुष्टकर चूचियों की ऊपरी गोलाईयाँ और दोनों के आपस में अच्छे से सटे होने से बनने वाली बीच की दरार; अर्थात क्लीवेज ---- बरबस ही रणधीर बाबू की आँखों की दिशा को अपने ओर बदलने पर मजबूर कर रही थीं ---- आशा की चूचियाँ और विशेषतः उसकी चार इंच की क्लीवेज--- उसके लिए ऐसा नारीत्व वाला वरदान था जोकि उसे एक सम्पूर्ण नारी बना रहे थे --- और इस वक़्त एक हवसी ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू का शिकार |
रणधीर बाबू अधीर होते हुए अपने होंठों पर जीभ फिराई--- और ख़ुद को चेयर पर एडजस्ट करते हुए अपनी दृष्टि को और अधिक केन्द्रित किया आशा के वक्षों पर ---
और जो दिखा उसे ---- उससे और भी अधिक मनचला और उत्तेजित हो उठा वह----!!
आशा के ब्लाउज के ऊपर से ब्रा की पतली रेखा दोनों कन्धों पर से होते हुए नीचे उसके छाती --- और छाती से दोनों चूचियों को दृढ़ता से ऊपर की ओर उठाकर पकड़े; ब्रा कप में बदलते हुए नज़र आ रहे हैं ---- ऐसा दृश्य तो शायद किसी अस्सी बरस के बूढ़े के बंद होती दिल और मुरझाये लंड में जान फूँक दे ---- फ़िर रणधीर जैसे पैंसठ वर्षीय हवसी ठरकी की बिसात ही क्या है ??
रणधीर बाबू ने गौर किया ---- नीले ब्लाउज में गोरी चूचियों की गोलाईयाँ जितनी फ़ब रही हैं ---- उन दोनों गोलाईयों के बीच की दरार --- ऊपर में थोड़ी कत्थे रंग की और फ़िर जैसे जैसे नीचे, ब्लाउज के पहले हुक के पीछे छिपने से पहले, वह शानदार क्लीवेज की लाइन – वह दरार; काली होती चली गई --- ज़रा ख़ुद ही कल्पना कर सकते हैं पाठकगण – एक चालीस वर्षीया सुंदर गोरी महिला --- उनके सामने अपनी नीली साड़ी की पल्लू को गोद में गिराए; गहरे गले का ब्लाउज पहने बैठी है ---- ब्लाउज के ऊपर से ब्रा स्ट्रेप की दो पतली धारियाँ कंधे पर से होते हुए --- सीने के पास चूचियों को सख्ती से पकड़ कर इस तरह से उठाए हुए हैं कि क्लीवेज नार्मल से भी दो इंच और बन जाए तो??!! ---- रणधीर बाबू की भी हालत कुछ कुछ ऐसी ही बनी हुई थी --- लाख चाहते हुए भी अपनी नज़रें आशा की दो गोल गोरी चूची और उनके मध्य के लंबी काली दरार पर से हटा ही नहीं पा रहे हैं --- आकर्षण ही कुछ ऐसा है ---- करे तो क्या करे --- बेचारा बुड्ढा !
उत्तेजना की अधिकता में रणधीर बाबू के मुख से बरबस ही निकल गया ,
‘पहला हुक खोलो आशा --’
‘ऊंह --!’
आशा चिहुंकी --- निर्देश का आशय समझने के लिए रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू की आँखें तो अभी भी गहरी घाटी में विचरण कर रही थीं --- उनकी नज़रों को फॉलो करते हुए आशा अपने पल्लू विहीन ब्लाउज की ओर नज़र डाली --- और ऐसा करते वह अपने नए नवेले बॉस के निर्देश का आशय समझ गई --- थोड़ी ठिठकी --- पल भर को सही-गलत, पाप-पुण्य का विचार उसके दिल – ओ – दिमाग में आया --- और आ कर चला भी गया --- आख़िर निर्देश का पालन तो करना ही है --- रणधीर बाबू इज़ हर बॉस एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट !
नज़रें नीची किए आहिस्ते से ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को पकड़ते हुए पहला हुक खोल दी ----
अभी खोली ही थी कि दूसरा निर्देश तुरंत आया ---
‘थोड़ा फैलाओ --- ’
रणधीर बाबू की ओर देखे बिना ही आशा अब थोड़ा मुक्त हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब अपने बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और क्लीवेज का दर्शनीय हिस्सा थोड़ा और बढ़ गया बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए |
‘थोड़ा आगे की ओर करो’ अगला निर्देश !
आशा समझी नहीं --- सवालिया दृष्टि से रणधीर की ओर देखी ---
रणधीर ने हथेलियों के इशारे से थोड़ा आगे होने को बोला ---
इसबार चुक नहीं हुई आशा से ---
बहुत हल्का सा झुक कर अपने सुपुष्ट को उभारों को तान कर सामने की ओर बढ़ा दी !! --- आहह: !! ---- स्वर्ग !!---- यही एक शब्द कौंधा रणधीर बाबू के दिमाग में --- सचमुच --- अप्रतिम सुडौलता लिए हुए परम आकर्षणमय लग रहे हैं --- दोनों --- आशा और उसके दो उभर ! ---- |
‘ज.. जी सर...’ आशा ने रणधीर बाबू की ओर देख कर जवाब दिया--- आवाज़ में उत्सुकता का पुट है |
‘नर्वस हो?’ रणधीर बाबू ने पूछा |
‘न-- नो सर..’ आशा की उत्सुकता थोड़ी और बढ़ी |
‘यू आर अ यंग लेडी--- कम्पेयर्ड टू मी--- राईट?’
‘य... यस सर---’ थोड़ा सहम कर जवाब दी इस बार आशा |
‘ह्म्म्म--- फ़िर भी मुझे कुछ फ़ील क्यूँ नहीं हो रहा?’ धीरे ही सही, पर अब पॉइंट में आना शुरू किया रणधीर बाबू ने---
‘प-- प --- पता --- न-- नहीं स--- सर’ घबराने लगी वह बेचारी --- देती भी तो क्या जवाब देती इस बात का |
‘मुझे पता है क्यों--- और ये भी कि क्या करने से कुछ ---- कुछ अच्छा फ़ील हो सकता है ----| ’ होंठों पे एक घिनौनी मुस्कान लिए बोला वो शैतान |
‘क --- कहिए सर--- क्या करने से अच्छा फ़ील होगा--- आई विल ट्राई टू डू दैट--- |’
‘ट्राई नहीं आशा--- सिर्फ़ तुम्हीं कर सकती हो और तुम्हें करना ही होगा--- |’ अपने पासे एक एक कर फ़ेंक रहा था वह हवसी |
‘ओ--- ओके सर--- |’ घबराई आशा ने तुरंत हामी भरी ----
‘अगर देखा जाए तो मैं ऑलरेडी तुम्हारा बॉस हूँ--- राईट?? ’
‘यस सर---- ’
‘एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट----- राईट??’
‘यस सर--- ’
‘और हर एम्प्लोईज़ को बॉस की बात बिना रोक टोक और न नुकुर के सुनना चाहिए---- राईट ?!’
‘बिल्कुल सर---’
‘तुम भी मेरी हर बात को बिना रोक टोक और ना नुकुर के सुनोगी और मानोगी--- इसलिए नहीं की तुम मेरी एम्प्लोई हो--- वरन इसलिए की तुमने एक सादे कागज़ में लिख कर दिया है जोकि एक तरह का बांड है--- |’
‘यस सर---- बिल्कुल---| ’
‘ह्म्म्म’
शैतानी मुस्कुराहट मुस्कराया वह ठरकी बुड्ढा ---- साफ़ था--- अब कुछ ‘आउट ऑफ़ लीग’ बोलने वाला है----
और हुआ भी वही---
‘तो आशा ---- मुझे ‘फ़्री’ टाइप रहने वाली लेडीज बहुत पसंद है ---- और फ़िलहाल तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है मानो तुम बहुत ‘ओवर- बर्डन’ हो अभी--- बोझ बहुत ज़्यादा है--- डू वन थिंग--- रिमूव योर पल्लू----!!’ वासनायुक्त अपना पहला ही आदेश खतरनाक ढंग से दिया रणधीर बाबू ने |
आशा चौंक उठी---
अविश्वास से आँखें बड़ी बड़ी हो उठी---
मानो उसने भी पहला आदेश या यूँ समझें की ‘इंटरव्यू’ का पहला ही निर्देश कुछ ऐसा होने की आशा नहीं की थी---
प्रतिरोध स्वरुप कुछ कहने हेतु होंठ खोला आशा ने--- पर कुछ याद आते ही तुरंत होंठों को बंद भी कर लिया |
रणधीर मुस्कराया--- सुनहरे चश्में से झाँकते उसके आँखें किसी वहशी दरिंदे के माफ़िक चमकने लगी---
गंभीर स्वर में बोला,
‘आई एम सीरियसली सीरियस आशा--- अपना पल्लू हटाओ--- |’
अत्यंत स्पष्ट स्वर में स्पष्ट निर्देश आया रणधीर की तरफ़ से---
आशा हिचकी--- आँसू रोकी---- थूक का एक बड़ा गोला गटकी--- और धीरे से हाथ उठा कर बाएँ कंधे पर पिन के पास ले गई --- पिन खोलती कि तभी दूसरा निर्देश / आदेश आया ---
‘मेरी तरफ़ देखते हुए आशा--- आँखों में आँखें डाल कर---’
बड़ा ही सख्त कमीना जान पड़ा ये आदमी आशा को--- घोर अपमानित सा बोध करती हुई वह धीरे से आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी--- सीधे उसकी आँखों में --- बिना पलकें झपकाए--- फ़िर आहिस्ते से पिन खोल कर सामने टेबल पर रखी---- कंधे पर ही पल्लू को ज़रा सा सरकाई--- और दोनों हाथ चेयर के आर्मरेस्ट पर रख दी--- दो ही सेकंड में पल्लू सरसराता हुआ पूरा ही सरक कर आशा की गोद में आ गिरा--- रणधीर बाबू के आँखों में लगातार देखे जा रही आशा रणधीर बाबू के आँखों की चुभन अपने जिस्म की ऊपरी हिस्से पर साफ़ महसूस करने लगी और परिणामस्वरुप एक तेज़ सिहरन सी दौड़ गई पूरे शरीर में--- |
आशा भले ही रणधीर बाबू के आँखों में बिन पलकें झपकाए देख रही थी पर ठरकी बुड्ढे की नज़र आशा के पिन खोलते ही उसके सुपुष्ट सुडौल उभरी छाती पर जा चिपके थे |
नीले ब्लाउज में गहरे गले से झाँकती पुष्टकर चूचियों की ऊपरी गोलाईयाँ और दोनों के आपस में अच्छे से सटे होने से बनने वाली बीच की दरार; अर्थात क्लीवेज ---- बरबस ही रणधीर बाबू की आँखों की दिशा को अपने ओर बदलने पर मजबूर कर रही थीं ---- आशा की चूचियाँ और विशेषतः उसकी चार इंच की क्लीवेज--- उसके लिए ऐसा नारीत्व वाला वरदान था जोकि उसे एक सम्पूर्ण नारी बना रहे थे --- और इस वक़्त एक हवसी ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू का शिकार |
रणधीर बाबू अधीर होते हुए अपने होंठों पर जीभ फिराई--- और ख़ुद को चेयर पर एडजस्ट करते हुए अपनी दृष्टि को और अधिक केन्द्रित किया आशा के वक्षों पर ---
और जो दिखा उसे ---- उससे और भी अधिक मनचला और उत्तेजित हो उठा वह----!!
आशा के ब्लाउज के ऊपर से ब्रा की पतली रेखा दोनों कन्धों पर से होते हुए नीचे उसके छाती --- और छाती से दोनों चूचियों को दृढ़ता से ऊपर की ओर उठाकर पकड़े; ब्रा कप में बदलते हुए नज़र आ रहे हैं ---- ऐसा दृश्य तो शायद किसी अस्सी बरस के बूढ़े के बंद होती दिल और मुरझाये लंड में जान फूँक दे ---- फ़िर रणधीर जैसे पैंसठ वर्षीय हवसी ठरकी की बिसात ही क्या है ??
रणधीर बाबू ने गौर किया ---- नीले ब्लाउज में गोरी चूचियों की गोलाईयाँ जितनी फ़ब रही हैं ---- उन दोनों गोलाईयों के बीच की दरार --- ऊपर में थोड़ी कत्थे रंग की और फ़िर जैसे जैसे नीचे, ब्लाउज के पहले हुक के पीछे छिपने से पहले, वह शानदार क्लीवेज की लाइन – वह दरार; काली होती चली गई --- ज़रा ख़ुद ही कल्पना कर सकते हैं पाठकगण – एक चालीस वर्षीया सुंदर गोरी महिला --- उनके सामने अपनी नीली साड़ी की पल्लू को गोद में गिराए; गहरे गले का ब्लाउज पहने बैठी है ---- ब्लाउज के ऊपर से ब्रा स्ट्रेप की दो पतली धारियाँ कंधे पर से होते हुए --- सीने के पास चूचियों को सख्ती से पकड़ कर इस तरह से उठाए हुए हैं कि क्लीवेज नार्मल से भी दो इंच और बन जाए तो??!! ---- रणधीर बाबू की भी हालत कुछ कुछ ऐसी ही बनी हुई थी --- लाख चाहते हुए भी अपनी नज़रें आशा की दो गोल गोरी चूची और उनके मध्य के लंबी काली दरार पर से हटा ही नहीं पा रहे हैं --- आकर्षण ही कुछ ऐसा है ---- करे तो क्या करे --- बेचारा बुड्ढा !
उत्तेजना की अधिकता में रणधीर बाबू के मुख से बरबस ही निकल गया ,
‘पहला हुक खोलो आशा --’
‘ऊंह --!’
आशा चिहुंकी --- निर्देश का आशय समझने के लिए रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू की आँखें तो अभी भी गहरी घाटी में विचरण कर रही थीं --- उनकी नज़रों को फॉलो करते हुए आशा अपने पल्लू विहीन ब्लाउज की ओर नज़र डाली --- और ऐसा करते वह अपने नए नवेले बॉस के निर्देश का आशय समझ गई --- थोड़ी ठिठकी --- पल भर को सही-गलत, पाप-पुण्य का विचार उसके दिल – ओ – दिमाग में आया --- और आ कर चला भी गया --- आख़िर निर्देश का पालन तो करना ही है --- रणधीर बाबू इज़ हर बॉस एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट !
नज़रें नीची किए आहिस्ते से ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को पकड़ते हुए पहला हुक खोल दी ----
अभी खोली ही थी कि दूसरा निर्देश तुरंत आया ---
‘थोड़ा फैलाओ --- ’
रणधीर बाबू की ओर देखे बिना ही आशा अब थोड़ा मुक्त हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब अपने बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और क्लीवेज का दर्शनीय हिस्सा थोड़ा और बढ़ गया बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए |
‘थोड़ा आगे की ओर करो’ अगला निर्देश !
आशा समझी नहीं --- सवालिया दृष्टि से रणधीर की ओर देखी ---
रणधीर ने हथेलियों के इशारे से थोड़ा आगे होने को बोला ---
इसबार चुक नहीं हुई आशा से ---
बहुत हल्का सा झुक कर अपने सुपुष्ट को उभारों को तान कर सामने की ओर बढ़ा दी !! --- आहह: !! ---- स्वर्ग !!---- यही एक शब्द कौंधा रणधीर बाबू के दिमाग में --- सचमुच --- अप्रतिम सुडौलता लिए हुए परम आकर्षणमय लग रहे हैं --- दोनों --- आशा और उसके दो उभर ! ---- |