desiaks
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- Aug 28, 2015
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तालाब में पहुँचते ही रूपा ने बिना किसी झिझक के अपना टॉप उतार दिया..नीचे उसने ब्रा तो नहीं पर कपडे की बनियान सी पहनी हुई थी..जिसमे उसके दोनों खरबूजे समा पाने में असमर्थ से थे. वो अपने टॉप को पानी में धोने बैठ गयी, घाघरे को उसने ऊपर तक उठा कर लपेट लिया और नीचे बैठ कर उसे धोने लगी, उसकी कसी हुई पिंडलिया , जिनपर एक भी बाल नहीं था, पानी में भीग कर चमकने लगी.
रूपा ने अपने टॉप को सुखाने के लिए पेड़ के ऊपर टांग दिया.
उसकी हरकतों से पता चल रहा था की वो शरीर से तो जवान हो चुकी है पर दिमाग से वो अभी तक अल्हड सी, नासमझ है..इसलिए मेरे सामने ही उसने बिना किसी झिझक के अपना टॉप उतार दिया,
उसके गले से झांकते हुए मोटे-ताजे फलो को देखकर मैं उनकी नरमी का अंदाजा लगाने में व्यस्त था..मैंने सोच लिया की आज इसके साथ मजे ले ही लिए जाए, जितना लेट करूँगा, नुक्सान मेरा ही होगा..मैंने कुछ सोचकर अपने कपडे उतारने शुरू कर दिए..
रूपा : "लगता है आपको पुराने दिन याद आ गए, जब हम सभी यहीं नहाया करते थे...है न साब..."
मैं : "हाँ..और आज इतने सालो के बाद मैं फिर से नहा कर अपनी यादो को ताजा करना चाहता हु.."
मैंने एक-एक करके सारे कपडे उतार दिए..और अंत में अपना अंडरवीयर भी...
मैंने तिरछी नजरो से रूपा की तरफ देखा..वो पहले तो मुझे नंगा होते देखकर मुस्कुराती रही...पर जब मैंने अपना अंडरवीयर उतारा तो उसकी साँसे रुक सी गयी...उसे शायद उम्मीद नहीं थी की मैं पूरा नंगा होकर नहाऊंगा, जैसे मैं पहले नहाता था.. पानी के अन्दर जाकर मैंने तेरना शुरू कर दिया...और फिर वापिस आकर मैंने अन्दर से ही रूपा से कहा..
"अरे रूपा, तू नहीं आ रही क्या...चल न..आ जा.."
अब वो बेचारी धरम संकट में थी, उसने पहले तो बड़े चाव से बोल दिया था नहाने के लिए, पर मुझे नंगा नहाते देखकर, वो दुविधा में थी की वो ऐसे ही आये या नंगी होकर..
रूपा : "नहीं..आप नहा लो साब...मैं अभी नहीं..."
मैं : "अरे शर्माती क्यों है तू...यहाँ मेरे अलावा कौन है...चल जल्दी से आ जा..बड़ा मजा आ रहा है यहाँ..." कोई और चारा न देख उसने झिझकते हुए अपने कपडे उतारने शुरू किये..घाघरा उतारकर उसने एक कोने में रख दिया..और फिर अपनी बनियान भी उतार डाली..और आखिर में अपनी चड्डी भी..
भगवान् कसम...ऐसी लड़की मैंने आज तक नहीं देखी थी...इतनी सुन्दर, जवानी कूट-2 कर भरी हुई थी उसमे... वो पानी के अन्दर आई...और मेरे पास आकर खड़ी हो गयी.
रूपा : "साब...देखो अम्मा को मत बताना...उन्होंने पहले भी मुझे कई बार बिना कपडे के..और दुसरो के साथ नहाने को मना किया है..."
मैं : "तो फिर मेरे साथ क्यों नहा रही है अब.."
रूपा : "आपकी बात और है..मुझे तो ये सब अच्छा लगता है..और जब आपने शर्म नहीं की तो फिर मैं क्यों शरमाऊँ.."
मैंने उसके मुंह पर पानी फेंकना शुरू कर दिया. वो भी किलकारी मारकर मेरे साथ पानी में खेलने लगी..
मैंने उसे इधर उधर से छुना शुरू कर दिया..जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया...और मैंने हिम्मत करके उसके पीछे से जाकर, उसे पकड़ लिया, मेरा तना हुआ लंड उसकी जांघो के बीच से होता हुआ आगे की तरफ निकल आया.. उसके मुंह से एक सिसकारी सी निकल गयी..
मैं : "अब बोल....अब कहाँ जायेगी..."
वो मेरे हाथो से छुटने का असफल प्रयास कर रही थी...पर हर झटके से मेरे हाथ फिसल कर कभी उसकी चूत के ऊपर तो कभी उसके उभारों से टकरा जाते...जिसकी वजह से उसकी लड़ने की शक्ति कमजोर सी पड़ जाती..
मैंने हिम्मत करके उसके एक चुचे को अपने हाथो में पकड़ा और मसल दिया. रूपा की चीख निकल गयी..वो मुड़ी और मैंने उसके होंठो पर एक जोरदार किस्स करते हुए उसकी चूत के अन्दर हाथ डालने की कोशिश करने लगा...
रूपा ने मुझे धक्का दिया और मैं तालाब के किनारे की दलदल वाली मिटटी के ऊपर पीठ के बल गिर गया..
रूपा मेरे सामने पूरी नंगी खड़ी थी, उसकी छाती तेज सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रही थी.
रूपा : "साब...बड़े बदमाश हो गए हो तुम तो...मुझे सब मालुम है की तुम क्या कर रहे थे...इतनी भी नासमझ नहीं है ये रूपा.."
मैं : "क्यों, तुझे अच्छा नहीं लगा क्या..."
रूपा : "मुझे अच्छा नहीं लगा...!! ये सब के लिए तो मैं ना जाने कब से तड़प रही थी...मेरी सहेली है एक, कम्मो, वो सब बताती है मुझे, और करने को भी उकसाती है... वो तो अम्मा ने मेरे ऊपर ना जाने कितने पहरे लगा रखे हैं...वर्ना गाँव का हर इंसान, बुड्डे से लेकर जवान तक, मेरे पीछे घूमते हैं...मेरी भी इतनी इच्छा होती है, मजे करने की, पर गाँव छोटा है साब, अम्मा का मैं ही सहारा हु, बदनाम होकर हम दोनों कहाँ जायेंगे..बस इसलिए अपने आप पर काबू रखा हुआ है...पर आज नहीं रुक सकती मैं..आज नहीं... और ये कहते हुए उसने मेरे ऊपर छलांग लगा दी. मेरा सर सिर्फ तालाब के पानी के किनारे पर होने की वजह से बाहर था, बाकी का हिस्सा दलदल वाले पानी के अन्दर था..वो मेरे ऊपर आई और मेरे होंठो के ऊपर झुककर उन्हें चूसने लगी... उसके मुंह से अभी भी आम की खुशबू आ रही थी...मैंने उसके दोनों आम को पकड़ा और उन्हें मसलते हुए, मुंह के जरिये उनकी खुशबू लेता हुआ, उसके नर्म और मुलायम होंठो को चूसने लगा.
"ओह्ह्ह ह्ह्ह् साब्ब ..........अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ......पहली बार आज मेरी छाती को किसी ने छुआ है....चूस डालो इन्हें आज...आम की तरह चुसो मेरी छातियों को...खा जाओ....ना.....अह्ह्हह्ह्ह्ह......"
मेरे मुंह पर उसकी ठोस चूचीयाँ किसी गेंद की भाँती दबाव डाल रही थी...उसके दोनों निप्पल बड़े ही टेस्टी थे...मुझे अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था की पहले ही दिन मुझे रूपा के रूप का खजाना लुटने को मिल गया...मैं भी अपना मुंह खोलकर पुरे मजे लेकर, उसे चूसने और चाटने में लगा हुआ था. मैंने पलटकर उसे नीचे कर दिया...दलदली मिटटी के ऊपर आते ही उसने मेरी कमर के चारो तरफ अपनी नंगी टाँगे लपेट दी... मैंने उसके दोनों हाथ नीचे दबाकर उसकी गर्दन को चुसना शुरू कर दिया..वो मेरे नीचे पानी के अन्दर मछली की तरह तड़प रही थी...
मेरा लंड उसकी चूत के ऊपर ठोकरे मार रहा था...और वो भी अपनी चूत ऊपर करके मेरे लंड को निगलने के लिए उत्साहित सी हो रही थी... मैंने उसकी चूत के ऊपर अपना लंड टिकाया ..वो थोड़ी देर के लिए मचलना भूल गयी...पर जैसे ही मैंने उसके अन्दर थोडा लंड का दबाव डाला..वो फिर से मचलने लगी...
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ...बाबु .....आराम से....जरा....कोरी है अभी मेरी चूत.....अह्ह्ह्ह"
पर मैं नहीं रुका..मैंने अपना लंड निकाला और एक तेज शोट मारा, अब मेरा लंड उसकी झिल्ली को फाड़ता हुआ अन्दर तक चला गया... मेरे लंड पर गर्म खून का एहसास होते ही मुझे पता चल गया की उसकी चूत फट चुकी है..मैं मन ही मन गिनती करने लगा की मैंने आज तक कितनी कुंवारी छुते फाड़ी है...पर ये वक़्त इन सब हिसाब किताब का नहीं था...
मैंने नीचे की और देखा, मेरे लंड के आस पास का पानी लाल रंग का हो चूका था, उसकी चूत से निकलता खून बाहर आने लगा था... वो अपनी आँखे बंद किये मेरे अगले धक्के का इन्तजार कर रही थी..और जब मैंने अगला धक्का मारा तो मेरा पूरा लंड उसकी चूत के अन्दर तक जाकर गड़ सा गया...और फिर मैंने उसे बाहर खींचा और फिर अन्दर...इसी तरह से लगभग 10 -15 धक्को के बाद मेरा लंड पानी की वजह से, बड़े आराम से उसकी चूत के अन्दर बाहर निकलने लगा...
अब वो भी मजे ले लेकर मुझसे चुदवा रही थी..
"अह्ह्ह्हह्ह ओह्ह्ह्हह्ह आशु साब.....मजा आ गया.....मम्म.....कम्मो ठीक कहती थी....इतना मजा आता है चुदाई में......अब तो रोज मजे लुंगी....अह्ह्हह्ह .....अह्ह्हह्ह.......और जोर से मारो....मेरी कुंवारी चूत को....अह्ह्ह्ह......ओह्ह्ह्ह साब........" और पहली बार चुदने की वजह से वो ज्यादा उत्तेजित होकर जल्दी ही झड़ने लगी...
मैंने अपना लंड आखिरी वक़्त में बाहर निकाल लिया... मैं उसकी चूत में झड़कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था... और मैंने अपने लंड को पकड़कर उसके चेहरे को भिगोना शुरू कर दिया...जिसे उसने मंद मंद मुस्कुराकर, अपने पर गिरते हुए महसूस किया...
पानी में थोड़ी देर तक पड़े रहने के बाद मैं साफ़ होकर बाहर आया और वहीँ एक चट्टान पर बैठ गया..वो भी मेरे पीछे आई, उसकी चाल में एक अजीब सी मादकता आ चुकी थी..वो भी मेरी गोद में आकर बैठ गयी.
मैं : "तुम्हे बुरा तो नहीं लगा न...हम इतने सालो के बाद आज मिले हैं , और पहले ही दिन मैंने..."
रूपा ने मेरे होंठो पर ऊँगली रख दी..
रूपा : " देखो साब...बचपन में हमने बच्चो वाले खेल खेले..और आज जवानी में हमने जवानों वाले खेले..तो इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है...मुझे तो आपका शुक्रिया करना चाहिए..इतने मजे आते है इस खेल में, मुझे आज एहसास हुआ..अब आप देखना, जब तक यहाँ हो, मैं कैसे मजे देती हु आपको..."
मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया..
उसके बाद हमने कपडे पहने और वापिस घर की तरफ चल दिए...
*****
रूपा ने अपने टॉप को सुखाने के लिए पेड़ के ऊपर टांग दिया.
उसकी हरकतों से पता चल रहा था की वो शरीर से तो जवान हो चुकी है पर दिमाग से वो अभी तक अल्हड सी, नासमझ है..इसलिए मेरे सामने ही उसने बिना किसी झिझक के अपना टॉप उतार दिया,
उसके गले से झांकते हुए मोटे-ताजे फलो को देखकर मैं उनकी नरमी का अंदाजा लगाने में व्यस्त था..मैंने सोच लिया की आज इसके साथ मजे ले ही लिए जाए, जितना लेट करूँगा, नुक्सान मेरा ही होगा..मैंने कुछ सोचकर अपने कपडे उतारने शुरू कर दिए..
रूपा : "लगता है आपको पुराने दिन याद आ गए, जब हम सभी यहीं नहाया करते थे...है न साब..."
मैं : "हाँ..और आज इतने सालो के बाद मैं फिर से नहा कर अपनी यादो को ताजा करना चाहता हु.."
मैंने एक-एक करके सारे कपडे उतार दिए..और अंत में अपना अंडरवीयर भी...
मैंने तिरछी नजरो से रूपा की तरफ देखा..वो पहले तो मुझे नंगा होते देखकर मुस्कुराती रही...पर जब मैंने अपना अंडरवीयर उतारा तो उसकी साँसे रुक सी गयी...उसे शायद उम्मीद नहीं थी की मैं पूरा नंगा होकर नहाऊंगा, जैसे मैं पहले नहाता था.. पानी के अन्दर जाकर मैंने तेरना शुरू कर दिया...और फिर वापिस आकर मैंने अन्दर से ही रूपा से कहा..
"अरे रूपा, तू नहीं आ रही क्या...चल न..आ जा.."
अब वो बेचारी धरम संकट में थी, उसने पहले तो बड़े चाव से बोल दिया था नहाने के लिए, पर मुझे नंगा नहाते देखकर, वो दुविधा में थी की वो ऐसे ही आये या नंगी होकर..
रूपा : "नहीं..आप नहा लो साब...मैं अभी नहीं..."
मैं : "अरे शर्माती क्यों है तू...यहाँ मेरे अलावा कौन है...चल जल्दी से आ जा..बड़ा मजा आ रहा है यहाँ..." कोई और चारा न देख उसने झिझकते हुए अपने कपडे उतारने शुरू किये..घाघरा उतारकर उसने एक कोने में रख दिया..और फिर अपनी बनियान भी उतार डाली..और आखिर में अपनी चड्डी भी..
भगवान् कसम...ऐसी लड़की मैंने आज तक नहीं देखी थी...इतनी सुन्दर, जवानी कूट-2 कर भरी हुई थी उसमे... वो पानी के अन्दर आई...और मेरे पास आकर खड़ी हो गयी.
रूपा : "साब...देखो अम्मा को मत बताना...उन्होंने पहले भी मुझे कई बार बिना कपडे के..और दुसरो के साथ नहाने को मना किया है..."
मैं : "तो फिर मेरे साथ क्यों नहा रही है अब.."
रूपा : "आपकी बात और है..मुझे तो ये सब अच्छा लगता है..और जब आपने शर्म नहीं की तो फिर मैं क्यों शरमाऊँ.."
मैंने उसके मुंह पर पानी फेंकना शुरू कर दिया. वो भी किलकारी मारकर मेरे साथ पानी में खेलने लगी..
मैंने उसे इधर उधर से छुना शुरू कर दिया..जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया...और मैंने हिम्मत करके उसके पीछे से जाकर, उसे पकड़ लिया, मेरा तना हुआ लंड उसकी जांघो के बीच से होता हुआ आगे की तरफ निकल आया.. उसके मुंह से एक सिसकारी सी निकल गयी..
मैं : "अब बोल....अब कहाँ जायेगी..."
वो मेरे हाथो से छुटने का असफल प्रयास कर रही थी...पर हर झटके से मेरे हाथ फिसल कर कभी उसकी चूत के ऊपर तो कभी उसके उभारों से टकरा जाते...जिसकी वजह से उसकी लड़ने की शक्ति कमजोर सी पड़ जाती..
मैंने हिम्मत करके उसके एक चुचे को अपने हाथो में पकड़ा और मसल दिया. रूपा की चीख निकल गयी..वो मुड़ी और मैंने उसके होंठो पर एक जोरदार किस्स करते हुए उसकी चूत के अन्दर हाथ डालने की कोशिश करने लगा...
रूपा ने मुझे धक्का दिया और मैं तालाब के किनारे की दलदल वाली मिटटी के ऊपर पीठ के बल गिर गया..
रूपा मेरे सामने पूरी नंगी खड़ी थी, उसकी छाती तेज सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रही थी.
रूपा : "साब...बड़े बदमाश हो गए हो तुम तो...मुझे सब मालुम है की तुम क्या कर रहे थे...इतनी भी नासमझ नहीं है ये रूपा.."
मैं : "क्यों, तुझे अच्छा नहीं लगा क्या..."
रूपा : "मुझे अच्छा नहीं लगा...!! ये सब के लिए तो मैं ना जाने कब से तड़प रही थी...मेरी सहेली है एक, कम्मो, वो सब बताती है मुझे, और करने को भी उकसाती है... वो तो अम्मा ने मेरे ऊपर ना जाने कितने पहरे लगा रखे हैं...वर्ना गाँव का हर इंसान, बुड्डे से लेकर जवान तक, मेरे पीछे घूमते हैं...मेरी भी इतनी इच्छा होती है, मजे करने की, पर गाँव छोटा है साब, अम्मा का मैं ही सहारा हु, बदनाम होकर हम दोनों कहाँ जायेंगे..बस इसलिए अपने आप पर काबू रखा हुआ है...पर आज नहीं रुक सकती मैं..आज नहीं... और ये कहते हुए उसने मेरे ऊपर छलांग लगा दी. मेरा सर सिर्फ तालाब के पानी के किनारे पर होने की वजह से बाहर था, बाकी का हिस्सा दलदल वाले पानी के अन्दर था..वो मेरे ऊपर आई और मेरे होंठो के ऊपर झुककर उन्हें चूसने लगी... उसके मुंह से अभी भी आम की खुशबू आ रही थी...मैंने उसके दोनों आम को पकड़ा और उन्हें मसलते हुए, मुंह के जरिये उनकी खुशबू लेता हुआ, उसके नर्म और मुलायम होंठो को चूसने लगा.
"ओह्ह्ह ह्ह्ह् साब्ब ..........अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ......पहली बार आज मेरी छाती को किसी ने छुआ है....चूस डालो इन्हें आज...आम की तरह चुसो मेरी छातियों को...खा जाओ....ना.....अह्ह्हह्ह्ह्ह......"
मेरे मुंह पर उसकी ठोस चूचीयाँ किसी गेंद की भाँती दबाव डाल रही थी...उसके दोनों निप्पल बड़े ही टेस्टी थे...मुझे अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था की पहले ही दिन मुझे रूपा के रूप का खजाना लुटने को मिल गया...मैं भी अपना मुंह खोलकर पुरे मजे लेकर, उसे चूसने और चाटने में लगा हुआ था. मैंने पलटकर उसे नीचे कर दिया...दलदली मिटटी के ऊपर आते ही उसने मेरी कमर के चारो तरफ अपनी नंगी टाँगे लपेट दी... मैंने उसके दोनों हाथ नीचे दबाकर उसकी गर्दन को चुसना शुरू कर दिया..वो मेरे नीचे पानी के अन्दर मछली की तरह तड़प रही थी...
मेरा लंड उसकी चूत के ऊपर ठोकरे मार रहा था...और वो भी अपनी चूत ऊपर करके मेरे लंड को निगलने के लिए उत्साहित सी हो रही थी... मैंने उसकी चूत के ऊपर अपना लंड टिकाया ..वो थोड़ी देर के लिए मचलना भूल गयी...पर जैसे ही मैंने उसके अन्दर थोडा लंड का दबाव डाला..वो फिर से मचलने लगी...
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ...बाबु .....आराम से....जरा....कोरी है अभी मेरी चूत.....अह्ह्ह्ह"
पर मैं नहीं रुका..मैंने अपना लंड निकाला और एक तेज शोट मारा, अब मेरा लंड उसकी झिल्ली को फाड़ता हुआ अन्दर तक चला गया... मेरे लंड पर गर्म खून का एहसास होते ही मुझे पता चल गया की उसकी चूत फट चुकी है..मैं मन ही मन गिनती करने लगा की मैंने आज तक कितनी कुंवारी छुते फाड़ी है...पर ये वक़्त इन सब हिसाब किताब का नहीं था...
मैंने नीचे की और देखा, मेरे लंड के आस पास का पानी लाल रंग का हो चूका था, उसकी चूत से निकलता खून बाहर आने लगा था... वो अपनी आँखे बंद किये मेरे अगले धक्के का इन्तजार कर रही थी..और जब मैंने अगला धक्का मारा तो मेरा पूरा लंड उसकी चूत के अन्दर तक जाकर गड़ सा गया...और फिर मैंने उसे बाहर खींचा और फिर अन्दर...इसी तरह से लगभग 10 -15 धक्को के बाद मेरा लंड पानी की वजह से, बड़े आराम से उसकी चूत के अन्दर बाहर निकलने लगा...
अब वो भी मजे ले लेकर मुझसे चुदवा रही थी..
"अह्ह्ह्हह्ह ओह्ह्ह्हह्ह आशु साब.....मजा आ गया.....मम्म.....कम्मो ठीक कहती थी....इतना मजा आता है चुदाई में......अब तो रोज मजे लुंगी....अह्ह्हह्ह .....अह्ह्हह्ह.......और जोर से मारो....मेरी कुंवारी चूत को....अह्ह्ह्ह......ओह्ह्ह्ह साब........" और पहली बार चुदने की वजह से वो ज्यादा उत्तेजित होकर जल्दी ही झड़ने लगी...
मैंने अपना लंड आखिरी वक़्त में बाहर निकाल लिया... मैं उसकी चूत में झड़कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था... और मैंने अपने लंड को पकड़कर उसके चेहरे को भिगोना शुरू कर दिया...जिसे उसने मंद मंद मुस्कुराकर, अपने पर गिरते हुए महसूस किया...
पानी में थोड़ी देर तक पड़े रहने के बाद मैं साफ़ होकर बाहर आया और वहीँ एक चट्टान पर बैठ गया..वो भी मेरे पीछे आई, उसकी चाल में एक अजीब सी मादकता आ चुकी थी..वो भी मेरी गोद में आकर बैठ गयी.
मैं : "तुम्हे बुरा तो नहीं लगा न...हम इतने सालो के बाद आज मिले हैं , और पहले ही दिन मैंने..."
रूपा ने मेरे होंठो पर ऊँगली रख दी..
रूपा : " देखो साब...बचपन में हमने बच्चो वाले खेल खेले..और आज जवानी में हमने जवानों वाले खेले..तो इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है...मुझे तो आपका शुक्रिया करना चाहिए..इतने मजे आते है इस खेल में, मुझे आज एहसास हुआ..अब आप देखना, जब तक यहाँ हो, मैं कैसे मजे देती हु आपको..."
मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया..
उसके बाद हमने कपडे पहने और वापिस घर की तरफ चल दिए...
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