hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
सुनीता पारुल के आगे हाथ जोड़ती हुइ -- डॉक्टर साहिबा पता नही ये अहसान मैं आपका कैसे चुका पाऊंगी । आपने अपना खून दे के मेरे बेटे की जान बचाई ।
पारुल-- अरे सुनीता जी ये तो मेरा फर्ज था ।(और मन में सोचती की अगर मैने ब्लड नही दीया होता तो मेरी बेटी मुझे जान से मा .र देती.)
ये कहते हुए पारुल वापा अपने केबिन में चली जाती है।
अस्पताल में आज , सुनीता के साथ साथ अनीता और राजू बैठे थे।
तभी वहां फातीमा भी आ जाती है
फातिमा---- अरे सुनीता क्या हुआ सोनू को,।
फातिमा काफी घबराई हुई दिख रही थी ,
सुनीता फातिमा को देखते ही रोने लगती है।
फातिमा-- अ रे क्या हुआ कुछ बताएगी भी।
पारुल-- उन्हें थोड़ा आराम करने दीजिए, उनको थोड़ा सदमा लगा है। और सोनू अब बिल्कुल खतरे से बाहर हैं।
ये सुनते ही फातिमा को भी तसल्ली मिली.........।
तभी पारुल के फोन की घंटी बजी ट्रिंग ट्रिंग........... पारुल ने फोन उठाया ये फोन किसी और ने नहीं बल्कि वैभवी का था।
पारुल-- हा मेरा बेटा कहा तक पहुंची।
वैभवी-- अरे कहां तक पहुंची मा, मेरा तो मन कर रहा है वापस लौट आऊं।
पारुल-- अरे ३ महीने की तो बात हैं, जैसे ही एक्साम्स खत्म होंगे चली आना।
वैभवी-- मा कुछ अच्छा नहीं लग रहा है......। सोनू दिखा था आपको?
ये सुनते ही पारुल थोड़ा घबराई वो नहीं चाहती थी की सोनू के इस हादसे के बारे में वैभवी को बताए नहीं तो ठीक से अपना एक्सामस भी नहीं दे पाएगी।
पारुल-- हा...... हा दिखा था, थोड़ा उदास था, लेकिन जब तू आएगी तो वो उदासी भी उसकी गायब हो जाएगी।
वैभवी (ठंडी आहे भरते हुए)-- हा.... ठीक कहा मा, लेकिन ये तीन महीना मुझे तीन सौ साल के बराबर लग रहा है।
पारुल-- ओ हो, बड़ी बसब्र हो रही है मेरी गुड़िया........
वैभवी--- क्या...... मा , तुम भी ना, चलो अब मै फोन रखती हूं।
पारुल-- ठीक हैं बेटा पहुंच कर कॉल कर देना।
वैभवी-- ओक , मा और फोन डिस्कनेक्ट कर देती हैं।
इधर पारुल जैसे ही अपने कान से फोन हटती है,।
नर्स--- मैडम , उनको होश आ गया।
पारुल ये सुन कर की खुश हो जाती हैं और अपने केबिन से बाहर निकलते हुए सीधा सुनीता के पास जाती हैं।
पारुल-- सुनीता जी अब रोना बंद कीजिए , सोनू को होश आ गया है।
रो रों कर लाल पड़ चुका सुनीता का खूबसूरत चेहरा, अपने बेटे के होश में आने की बात सुनकर उसने जान आ जाती है..... जैसे एक मुरझाए हुए पेड़ में पानी पड़ने से उसमे जान आने लग जाती हैं.... उसी तरह सुनीता भी अपने आंख के आंसू पोच्छते हुए पारुल से बोली।
सुनीता-- के..क्या मै देख सकती हूं अपने बेटे को ?
पारुल--- हा..... हा सुनीता जी, जाकर मील लो,
। सुनीता ये सुन कर सीधा भागते हुए, सोनू के वार्ड में पहुंची..... सोनू अपनी आंखे खोल छत की तरफ उपर देख रहा था।
पारुल-- अरे सुनीता जी ये तो मेरा फर्ज था ।(और मन में सोचती की अगर मैने ब्लड नही दीया होता तो मेरी बेटी मुझे जान से मा .र देती.)
ये कहते हुए पारुल वापा अपने केबिन में चली जाती है।
अस्पताल में आज , सुनीता के साथ साथ अनीता और राजू बैठे थे।
तभी वहां फातीमा भी आ जाती है
फातिमा---- अरे सुनीता क्या हुआ सोनू को,।
फातिमा काफी घबराई हुई दिख रही थी ,
सुनीता फातिमा को देखते ही रोने लगती है।
फातिमा-- अ रे क्या हुआ कुछ बताएगी भी।
पारुल-- उन्हें थोड़ा आराम करने दीजिए, उनको थोड़ा सदमा लगा है। और सोनू अब बिल्कुल खतरे से बाहर हैं।
ये सुनते ही फातिमा को भी तसल्ली मिली.........।
तभी पारुल के फोन की घंटी बजी ट्रिंग ट्रिंग........... पारुल ने फोन उठाया ये फोन किसी और ने नहीं बल्कि वैभवी का था।
पारुल-- हा मेरा बेटा कहा तक पहुंची।
वैभवी-- अरे कहां तक पहुंची मा, मेरा तो मन कर रहा है वापस लौट आऊं।
पारुल-- अरे ३ महीने की तो बात हैं, जैसे ही एक्साम्स खत्म होंगे चली आना।
वैभवी-- मा कुछ अच्छा नहीं लग रहा है......। सोनू दिखा था आपको?
ये सुनते ही पारुल थोड़ा घबराई वो नहीं चाहती थी की सोनू के इस हादसे के बारे में वैभवी को बताए नहीं तो ठीक से अपना एक्सामस भी नहीं दे पाएगी।
पारुल-- हा...... हा दिखा था, थोड़ा उदास था, लेकिन जब तू आएगी तो वो उदासी भी उसकी गायब हो जाएगी।
वैभवी (ठंडी आहे भरते हुए)-- हा.... ठीक कहा मा, लेकिन ये तीन महीना मुझे तीन सौ साल के बराबर लग रहा है।
पारुल-- ओ हो, बड़ी बसब्र हो रही है मेरी गुड़िया........
वैभवी--- क्या...... मा , तुम भी ना, चलो अब मै फोन रखती हूं।
पारुल-- ठीक हैं बेटा पहुंच कर कॉल कर देना।
वैभवी-- ओक , मा और फोन डिस्कनेक्ट कर देती हैं।
इधर पारुल जैसे ही अपने कान से फोन हटती है,।
नर्स--- मैडम , उनको होश आ गया।
पारुल ये सुन कर की खुश हो जाती हैं और अपने केबिन से बाहर निकलते हुए सीधा सुनीता के पास जाती हैं।
पारुल-- सुनीता जी अब रोना बंद कीजिए , सोनू को होश आ गया है।
रो रों कर लाल पड़ चुका सुनीता का खूबसूरत चेहरा, अपने बेटे के होश में आने की बात सुनकर उसने जान आ जाती है..... जैसे एक मुरझाए हुए पेड़ में पानी पड़ने से उसमे जान आने लग जाती हैं.... उसी तरह सुनीता भी अपने आंख के आंसू पोच्छते हुए पारुल से बोली।
सुनीता-- के..क्या मै देख सकती हूं अपने बेटे को ?
पारुल--- हा..... हा सुनीता जी, जाकर मील लो,
। सुनीता ये सुन कर सीधा भागते हुए, सोनू के वार्ड में पहुंची..... सोनू अपनी आंखे खोल छत की तरफ उपर देख रहा था।