hotaks444
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तभी अंकल ने कहा - बेटा , पहले थोडा ठंडा लो फिर काम करना |
मैंने कहा - मेरा काम ख़त्म हो गया है -बाकी लिखना है वो वरुण कर लेगा , अभी मै जाता हूँ -मेरा क्लास शुरू होने वाला है |
जैसे ही मै घर से बाहर निकला मैंने एक लम्बी सांस ली ......आनंद और डर...फिर आनंद...फिर डर ...का दौड़ ख़त्म हुआ | क्लास जाने का मन हो ही नहीं रहा था इसलिए थोडा रेस्ट करने लौज की तरफ चल पडा |लौज से पहले ही चाय की दूकान पर वरुण दिखाई पडा | उसे देखते ही मै गालियाँ निकलता हुआ उसकी तरफ लपका ..साले बहनचोद ...तू थोडा रुक नहीं सकता था ...साले मरवा दिया न ....बहन के लौड़े ....मादरचोद ....गांड में दम नहीं था तो क्यूँ करता है ..भडवे .....पता है न तेरी माँ ने कितना पकाया है मुझे .....रुक ही नहीं रही थी साली .....मन कर रहा था वहीँ पटककर पेल दूँ साली को .....( वो तो सपने में भी नहीं सोंच सकता था कि उसकी धर्मपरायण , रुढ़िवादी और सख्त विचारों वाली माँ की चूत की गहराई को अपने लम्बे और मोटे लंड से नाप के आ रहा हूँ )
चूँकि वरुण पहले से ही डरा हुआ था , इसलिए गालियाँ सुनकर भी मेरे पास आकर बोला- सॉरी यार ...
मै गुस्से में आता हुए बोला - मादरचोद ...अगर आगे से ऐसा हुआ तो मै तेरी माँ का लेक्चर नहीं सुनूंगा ....सीधा पटककर तुम्हारे बदले तुम्हारी माँ की गांड मारुंगा..वो भी सूखा...फिर मत बोलना |
वो धीरे से बोला - अब ऐसा नहीं होगा , मैं अपने घर की चाभी की डुप्लीकेट चाभी अभी अभी बनबा के लाया हूँ ..एक तुम रखो , मुझे चाभी देते हुए बोला | हालाकि मै उसके घर की चाभी रखना नहीं चाहता था ..फिर ना जाने क्या सोंचकर ...शायद वरुण की अनुपस्थिति में उसकी माँ को चोदने ये मददगार होगी ...इसलिए अपने पास रख लि
अगले दिन मै कॉलेज न जाकर सीधे वरुण के घर १०:३० बजे पहुंचा | जैसे ही आंटी ने दरवाजा खोला तो वो चौंकी - फिर मै अन्दर घुस गया और दरवाजा बंद करते हुए बोला- अंकल को मै बैंक में देख के आया हूँ और वरुण भी कालेज पहुँच गया है , मैंने मोबाइल से पूछ लिया है ..अपने मोबाइल पर आंटी को वरुण का नंबर दिखाने के बहाने आंटी के पीछे पहुचकर अपना मोबाइल आगे ले जाकर दिखाया और पीछे से आंटी के चुतरों से चिपक गया |
मेरे दोनों हाथ आंटी के बगलों से निकलकर मोबाइल को पकडे था और मेरे बाजुओं का शिकंजा माउन्ट एवरेस्ट के शिखरों पर कसने का असंभव प्रयास कर रहा था , जो प्रद्वंदिता में और तनकर उठ खड़े हो रहै थे | और जैसे ही आंटी ने नंबर देखने के लिए मोबइल पकड़ा मेरे आजाद हाथ किला फतह करने शिखरों पर फिसलने लगा | जहां एक तरफ पर्वत शिखर की चुभन मेरे उँगलियों पर एकुप्रेस्सर देकर मेरे छोटे नबाब को जगाकर उसे नीचे के गोल गुम्बदों के बीच घुसने के किये उकसा रही थी ,वहीँ दूसरी तरफ आंटी की साँसों को भारी कर उन्हें लेटने पर मजबूर कर रही थी |
मैंने कहा - मेरा काम ख़त्म हो गया है -बाकी लिखना है वो वरुण कर लेगा , अभी मै जाता हूँ -मेरा क्लास शुरू होने वाला है |
जैसे ही मै घर से बाहर निकला मैंने एक लम्बी सांस ली ......आनंद और डर...फिर आनंद...फिर डर ...का दौड़ ख़त्म हुआ | क्लास जाने का मन हो ही नहीं रहा था इसलिए थोडा रेस्ट करने लौज की तरफ चल पडा |लौज से पहले ही चाय की दूकान पर वरुण दिखाई पडा | उसे देखते ही मै गालियाँ निकलता हुआ उसकी तरफ लपका ..साले बहनचोद ...तू थोडा रुक नहीं सकता था ...साले मरवा दिया न ....बहन के लौड़े ....मादरचोद ....गांड में दम नहीं था तो क्यूँ करता है ..भडवे .....पता है न तेरी माँ ने कितना पकाया है मुझे .....रुक ही नहीं रही थी साली .....मन कर रहा था वहीँ पटककर पेल दूँ साली को .....( वो तो सपने में भी नहीं सोंच सकता था कि उसकी धर्मपरायण , रुढ़िवादी और सख्त विचारों वाली माँ की चूत की गहराई को अपने लम्बे और मोटे लंड से नाप के आ रहा हूँ )
चूँकि वरुण पहले से ही डरा हुआ था , इसलिए गालियाँ सुनकर भी मेरे पास आकर बोला- सॉरी यार ...
मै गुस्से में आता हुए बोला - मादरचोद ...अगर आगे से ऐसा हुआ तो मै तेरी माँ का लेक्चर नहीं सुनूंगा ....सीधा पटककर तुम्हारे बदले तुम्हारी माँ की गांड मारुंगा..वो भी सूखा...फिर मत बोलना |
वो धीरे से बोला - अब ऐसा नहीं होगा , मैं अपने घर की चाभी की डुप्लीकेट चाभी अभी अभी बनबा के लाया हूँ ..एक तुम रखो , मुझे चाभी देते हुए बोला | हालाकि मै उसके घर की चाभी रखना नहीं चाहता था ..फिर ना जाने क्या सोंचकर ...शायद वरुण की अनुपस्थिति में उसकी माँ को चोदने ये मददगार होगी ...इसलिए अपने पास रख लि
अगले दिन मै कॉलेज न जाकर सीधे वरुण के घर १०:३० बजे पहुंचा | जैसे ही आंटी ने दरवाजा खोला तो वो चौंकी - फिर मै अन्दर घुस गया और दरवाजा बंद करते हुए बोला- अंकल को मै बैंक में देख के आया हूँ और वरुण भी कालेज पहुँच गया है , मैंने मोबाइल से पूछ लिया है ..अपने मोबाइल पर आंटी को वरुण का नंबर दिखाने के बहाने आंटी के पीछे पहुचकर अपना मोबाइल आगे ले जाकर दिखाया और पीछे से आंटी के चुतरों से चिपक गया |
मेरे दोनों हाथ आंटी के बगलों से निकलकर मोबाइल को पकडे था और मेरे बाजुओं का शिकंजा माउन्ट एवरेस्ट के शिखरों पर कसने का असंभव प्रयास कर रहा था , जो प्रद्वंदिता में और तनकर उठ खड़े हो रहै थे | और जैसे ही आंटी ने नंबर देखने के लिए मोबइल पकड़ा मेरे आजाद हाथ किला फतह करने शिखरों पर फिसलने लगा | जहां एक तरफ पर्वत शिखर की चुभन मेरे उँगलियों पर एकुप्रेस्सर देकर मेरे छोटे नबाब को जगाकर उसे नीचे के गोल गुम्बदों के बीच घुसने के किये उकसा रही थी ,वहीँ दूसरी तरफ आंटी की साँसों को भारी कर उन्हें लेटने पर मजबूर कर रही थी |