hotaks444
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मैं अब बहुत मस्त हो गया था. सर से चिपट कर बैठने में अब अटपटा नहीं लग रहा था. मेरा ध्यान बार बार उनके तंबू की ओर जा रहा था. अनजाने में मैं धीरे धीरे अपने चूतड़ ऊपर नीचे करके सर की हथेली में मेरे लंड को पेलने लगा था. अपने लंड को ऊपर करते हुए मैं बोला "आप बहुत हैंडसम हैं सर, सच में, हमें बहुत अच्छे लगते हैं. रचना अभी शरमा रही है पर मुझसे कितनी बार बोली है कि भैया ,पाल सर कितने हैंडसम हैं..
"तेरी रचना भी बड़ी प्यारी है." सर ने दो तीन मिनिट और रचना की पैंटी में हाथ डालकर उंगली की और फ़िर हाथ निकालकर देखा. उंगली गीली हो गयी थी. सर ने उसे चाट लिया. "अच्छा स्वाद है रचना , शहद जैसा" रचना आंखें बड़ी करके देख रही थी, शर्म से उसने सिर झुका लिया. "अरे शरमा क्यों रही है, सच कह रहा हूं. एकदम मीठी छुरी है तू रचना , रस से भरी गुड़िया है"
पाल सर उठ कर खड़े हो गये. और कहने लगे की तुम्हारी कॉपी में देखू .... पर उसके पहले ... रचना ... तुम अपनी पैंटी उतारो और सोफ़े पर टिक कर बैठो"
रचना घबराकर शर्माती हुई बोली "पर सर ... आप क्या करेंगे?"
"डरो नहीं, जरा ठीक से चाटूंगा तुम्हारी बुर. और फ़िर तेरी चूत का स्वाद इतना रसीला है कि चाटे बिना मन नहीं मानेगा मेरा. अब गलती की है तुमने तो भुगतना तो पड़ेगा ही. चलो, जल्दी करो नहीं तो कहीं फ़िर मेरा इरादा बदल गया तो भारी पड़ेगा तुम लोगों को ...." टेबल पर पड़े बेंत को हाथ लगाकर वे थोड़े कड़ाई से बोले.
"नहीं सर, अभी निकालती हूं. भैया आप उधर देख ना! मुझे शर्म आती है" मेरी ओर देखकर रचना बोली, उसके गाल गुलाबी हो गये थे.
"अरे उससे अब क्या शरमाती हो. इतना नाटक सब रोज करती हो उसके साथ, .... और अब शरमा रही हो! चलो जल्दी करो"
रचना ने धीरे से अपनी पैंटी उतार दी. उसकी गोरी चिकनी बुर एकदम लाजवाब लग रही थी. बस थोड़े से जरा जरा से रेशमी बाल थे. मेरी भी सांस चलने लगी.
"अब टांगें फ़ैलाओ और ऊपर सोफ़े पर रखो. ऐसे ... शाब्बास" पाल सर उसके सामने बैठते हुए बोले. रचना टांगें उठाकर ऐसे सोफ़े पर बैठी हुई बड़ी चुदैल सी लग रही थी, उसकी बुर अब पूरी खुली हुई थी और लकीर में से अंदर का गुलाबी हिस्सा दिख रहा था. पाल सर ने उसकी गोरी दुबली पतली जांघों को पहले चूमा और फ़िर जीभ से रचना की बुर चाटने लगे.
"ओह ... ओह ... ओह ... सर ... प्लीज़" रचना शरमा कर चिल्लाई. "ये क्या कर रहै हैं?"
"क्या हुआ? दर्द होता है?" सर ने पूछा?
"नहीं सर ... अजीब सा ... कैसा तो भी होता है" हिलडुलकर अपनी बुर को सर की जीभ से दूर करने की कोशिश करते हुए रचना बोली "ऐसे कोई ... वहां ... याने जीभ ... मुंह लगाने से ... ओह ... ओह"
"रचना , बस एक बार कहूंगा, बार बार नहीं कहूंगा. मुझे अपने तरीके से ये करने दो" सर ने कड़े लहजे में कहा और एक दो बार और चाटा. फ़िर दो उंगलियों से बुर के पपोटे अलग कर के वहां चूमा और जीभ की नोक लगाकर रगड़ने लगे. रचना ’अं’ ’अं’ अं’ करने लगी.
"अब भी कैसा तो भी हो रहा है? या मजा आ रहा है रचना ?" सर ने मुस्कराकर पूछा.
"बहुत अच्छा लग रहा है सर .... ऐसा कभी नहीं .... उई ऽ ... मां ....नहीं रहा जाता सर .... ऐसा मत कीजिये ना ...अं ...अं.." कहकर रचना फ़िर पीछे सरकने की कोशिश करने लगी, फ़िर अचानक पाल सर के बाल पकड़ लिये और उनके चेहरे को अपनी बुर पर दबा कर सीत्कारने लगी. सर अब कस के चाट रहै थे, बीच में बुर का लाल लाल छेद चूम लेते या उसके पपोटों को होंठों जैसे अपने मुंह में लेकर चूसने लगते.
"तेरी रचना भी बड़ी प्यारी है." सर ने दो तीन मिनिट और रचना की पैंटी में हाथ डालकर उंगली की और फ़िर हाथ निकालकर देखा. उंगली गीली हो गयी थी. सर ने उसे चाट लिया. "अच्छा स्वाद है रचना , शहद जैसा" रचना आंखें बड़ी करके देख रही थी, शर्म से उसने सिर झुका लिया. "अरे शरमा क्यों रही है, सच कह रहा हूं. एकदम मीठी छुरी है तू रचना , रस से भरी गुड़िया है"
पाल सर उठ कर खड़े हो गये. और कहने लगे की तुम्हारी कॉपी में देखू .... पर उसके पहले ... रचना ... तुम अपनी पैंटी उतारो और सोफ़े पर टिक कर बैठो"
रचना घबराकर शर्माती हुई बोली "पर सर ... आप क्या करेंगे?"
"डरो नहीं, जरा ठीक से चाटूंगा तुम्हारी बुर. और फ़िर तेरी चूत का स्वाद इतना रसीला है कि चाटे बिना मन नहीं मानेगा मेरा. अब गलती की है तुमने तो भुगतना तो पड़ेगा ही. चलो, जल्दी करो नहीं तो कहीं फ़िर मेरा इरादा बदल गया तो भारी पड़ेगा तुम लोगों को ...." टेबल पर पड़े बेंत को हाथ लगाकर वे थोड़े कड़ाई से बोले.
"नहीं सर, अभी निकालती हूं. भैया आप उधर देख ना! मुझे शर्म आती है" मेरी ओर देखकर रचना बोली, उसके गाल गुलाबी हो गये थे.
"अरे उससे अब क्या शरमाती हो. इतना नाटक सब रोज करती हो उसके साथ, .... और अब शरमा रही हो! चलो जल्दी करो"
रचना ने धीरे से अपनी पैंटी उतार दी. उसकी गोरी चिकनी बुर एकदम लाजवाब लग रही थी. बस थोड़े से जरा जरा से रेशमी बाल थे. मेरी भी सांस चलने लगी.
"अब टांगें फ़ैलाओ और ऊपर सोफ़े पर रखो. ऐसे ... शाब्बास" पाल सर उसके सामने बैठते हुए बोले. रचना टांगें उठाकर ऐसे सोफ़े पर बैठी हुई बड़ी चुदैल सी लग रही थी, उसकी बुर अब पूरी खुली हुई थी और लकीर में से अंदर का गुलाबी हिस्सा दिख रहा था. पाल सर ने उसकी गोरी दुबली पतली जांघों को पहले चूमा और फ़िर जीभ से रचना की बुर चाटने लगे.
"ओह ... ओह ... ओह ... सर ... प्लीज़" रचना शरमा कर चिल्लाई. "ये क्या कर रहै हैं?"
"क्या हुआ? दर्द होता है?" सर ने पूछा?
"नहीं सर ... अजीब सा ... कैसा तो भी होता है" हिलडुलकर अपनी बुर को सर की जीभ से दूर करने की कोशिश करते हुए रचना बोली "ऐसे कोई ... वहां ... याने जीभ ... मुंह लगाने से ... ओह ... ओह"
"रचना , बस एक बार कहूंगा, बार बार नहीं कहूंगा. मुझे अपने तरीके से ये करने दो" सर ने कड़े लहजे में कहा और एक दो बार और चाटा. फ़िर दो उंगलियों से बुर के पपोटे अलग कर के वहां चूमा और जीभ की नोक लगाकर रगड़ने लगे. रचना ’अं’ ’अं’ अं’ करने लगी.
"अब भी कैसा तो भी हो रहा है? या मजा आ रहा है रचना ?" सर ने मुस्कराकर पूछा.
"बहुत अच्छा लग रहा है सर .... ऐसा कभी नहीं .... उई ऽ ... मां ....नहीं रहा जाता सर .... ऐसा मत कीजिये ना ...अं ...अं.." कहकर रचना फ़िर पीछे सरकने की कोशिश करने लगी, फ़िर अचानक पाल सर के बाल पकड़ लिये और उनके चेहरे को अपनी बुर पर दबा कर सीत्कारने लगी. सर अब कस के चाट रहै थे, बीच में बुर का लाल लाल छेद चूम लेते या उसके पपोटों को होंठों जैसे अपने मुंह में लेकर चूसने लगते.