hotaks444
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दोस्त का परिवार पार्ट--4
गतान्क से आगे.............
कुछ देर बाद मा बोली, “ बता कैसी लगी हमारी चूत की चुदाई?” मैं बोला, “हाई मेरा मन करता है कि जिंदगी भर इसी तरह से तुम्हारी चूत मे लंड डाले पड़ा रहूं.” मा बोली“जब तक तुम यहा हो, यह चूत तुम्हारी है, जैसे मर्ज़ी हो मज़े लो, अब थोरे देर आराम करतें है.” “नही मा, कम से कम एक बार और हो जाए.
देखो मेरा लंड अभी भी बेकरार है.” मा ने मेरे लंड को पकड़ कर कहा, “यह तो ऐसे रहेगा ही, चूत की खुसबु जो मिल गयी है. पर देखो रात के तीन बज गये है, अगर सुबह टाइम से नही उठें तो तुम्हारी भुवा को शक गाएगा. अभी तो सारा दिन सामने है और आगे के इतने दिन हमारे है. जी भर कर मस्ती लेना.
मेरा कहा मनोगे तो रोज नया स्वाद चखाउन्गि.” मा का कहना मान कर मैने भी जीद छोड़ दी और मा भी करवट ले कर लेट गयी और मुझे अपने से सटा लिया. मैने भी उनकी गंद की दरार मे लंड फँसा कर चूंचीओ को दोनो हाथों मे पकड़ लिया और मा के कंधे को चूमता हुआ लेट गया.
नींद कब आई इसका पता ही नही चला.
सुबह जब अलार्म बजा तो मैने समय देखा, सुबह के सात बज रहे थी. मा ने मुस्कुरा कर देखा और एक गरमा-गरम चुंबन मेरे होटो पर जड़ दिया. मैने भी मा को जाकड़ कर उनके चुंबन का जोरदार का जवाब दिया. फिर मा उठ कर अपने रोज के काम काज मे लग गयी. वो बहुत खुश थी.
मैं उठ कर नहा धोकर फ्रेश होकर आँगन मैं बैठ कर नास्टा करने लगा. तभीभुवा आगयी. और बोली बेटा खेत चलोगे ? मैने कहा क्यों नहीं और रात वाला उनका ककड़ी से चोदने का सीन मेरी आँखों के सामने नाचने लगा. इतने मे सुमन (दोस्त की बहन) बोली मैं भी तुम्हारे साथ खेत मैं चलूंगी. और हम तीनो खेत की ओर चल पड़े. रास्ते मैं जब हम एक खेत के पास से गुजर रहे थे तो देखा कि उस खेत मैं ककाडियाँ उगी हुई थी.
मैने ककड़ियों को देखते हुवे भुवा से कहा “भुवा देखो इस खेत वाले ने तो ककाडियाँ उगाई हैं. और ककाड़ियों मैं काफ़ी गून होते हैं” भुवा लंबी सांस भरती हुई बोली “हां बेटा ककाड़ियों से काफ़ी फ़ायदा होता हैं और कई कामो में इसका उपयोग किया जाता हैं, जैसे सलाद में, सुबजियों में, कच्ची ककड़ी खाने के लिए भी इसका उपलोग किया जाता हैं” मैं बोला “हां भुवा, इसे कई तरह से उपयोग में लाया जाता है” इसतरह की बातें करते करते हम लोंग अपने खेत में पहुँच गये. वहाँ जाकर मैं मकान मैं गया और लूंघी और बनियान पहन कर वापस भुवा के पास आगेया.
भुआ खेत मैं काम कर रही थी और सुमन (दोस्त की बहन) उनके काम मैं मदद कर रही थी. मैने देखा भुवा की सारी घुटनो के उपर थी और सुमन स्कर्ट और ब्लाउस पहने हुवे थी. मैं भी लूंघी उँची करके (मद्रासी स्टाइल में) उनके साथ काम में मदद करने लगा.
जब सुमन झुकर काम करती तो मुझे उसकी चड्डी देखाई देती थी. हम लोग करीब 1 या 1:30 घंटे काम करते रहे फिर मैने भुवा से कहा भुवा मैं थोडा आराम करना चाहता हूँ तो भुवा बोली ठीक हैं और मैं खेत के मकान में आकर आराम करने लगा.
कुच्छ देर बाद कमरे मैं सुमन आई और कहने लगी दीनू भैया आप वहाँ बैठ जाइए क्यों कि कमरे मैं झारू मारनी हैं. और मैं कमरे के एक कोने मैं बैठ गया. और वो कमरे मैं झारू मारने लगी. झारू मारते समय जब सुमन झुकी तो फिर मुझे उसकी चड्डी दिखाई देने लगी. और उसकी चुदाई के ख़यालों मैं खो गया. थोड़ी देर बाद फिर वो बोली “भैया ज़रा पैर हटा लो झारू देनी है.”
मैं चौंक कर हक़ीकत की दुनिया मे वापस आया. देखा सुमन कमर पर हाथ रखे मेरे पास खरी है. मैं खरा हो गया और वो फिर झुक कर झारू लगाने लगी. मुझे फिर उसकी चड्डी दिखाई देने लगी. आज से पहले मैने उस पर धान नही दिया था.. पर आज की बात ही कुछ और ही थी. रात मा से चुदाई की ट्रैनिंग पाकर एक ही रात मे मेरा नज़रिया बदल गया था. अब मैं हर औरत को चुदाई की नज़र से देखना चाहता था. जब वो झारू लगा रही थी तो मैं उसके सामने आकर खड़ा होगया अब मुझे उसके ब्लाउस से उसकी चूंची साफ दिखाई दे रही थी. मेरा लंड फॅन-फ़ना गया. रात वाली मा जैसी चूंची मेरे दिमाग़ के सामने घूमने लगी.
तभी सुमन की नज़र मुझ पर पड़ी. मुझे एकटक घूरता पाकर उसने एक दबी सी मुस्कान दी और अपना ब्लाउस ठीक कर चुन्चिओ को ब्लाउस के अंदर छुपा लिया. अब वो मेरी तरफ पीठ कर के झारू लगा रही थी. उसके चूतर तो और भी मस्त थे. मैं मन ही मन सोचने लगा कि इसकी गंद मे लंड घुसा कर चूंची को मसल्ते हुए चोदने मे कितना मज़ा आएगा. बेखायाली मे मेरा हाथ मेरे तननाए हुए लंड पर पहुँच गया और मैं लूंघी के उपर से ही सुपारे को मसल्ने लगा. तभी सुमन अपना काम पूरा कर के पलटी और मेरे हरकत देख कर मुँह पर हाथ रख कर हँसती हुई बाहर चली गयी.
गतान्क से आगे.............
कुछ देर बाद मा बोली, “ बता कैसी लगी हमारी चूत की चुदाई?” मैं बोला, “हाई मेरा मन करता है कि जिंदगी भर इसी तरह से तुम्हारी चूत मे लंड डाले पड़ा रहूं.” मा बोली“जब तक तुम यहा हो, यह चूत तुम्हारी है, जैसे मर्ज़ी हो मज़े लो, अब थोरे देर आराम करतें है.” “नही मा, कम से कम एक बार और हो जाए.
देखो मेरा लंड अभी भी बेकरार है.” मा ने मेरे लंड को पकड़ कर कहा, “यह तो ऐसे रहेगा ही, चूत की खुसबु जो मिल गयी है. पर देखो रात के तीन बज गये है, अगर सुबह टाइम से नही उठें तो तुम्हारी भुवा को शक गाएगा. अभी तो सारा दिन सामने है और आगे के इतने दिन हमारे है. जी भर कर मस्ती लेना.
मेरा कहा मनोगे तो रोज नया स्वाद चखाउन्गि.” मा का कहना मान कर मैने भी जीद छोड़ दी और मा भी करवट ले कर लेट गयी और मुझे अपने से सटा लिया. मैने भी उनकी गंद की दरार मे लंड फँसा कर चूंचीओ को दोनो हाथों मे पकड़ लिया और मा के कंधे को चूमता हुआ लेट गया.
नींद कब आई इसका पता ही नही चला.
सुबह जब अलार्म बजा तो मैने समय देखा, सुबह के सात बज रहे थी. मा ने मुस्कुरा कर देखा और एक गरमा-गरम चुंबन मेरे होटो पर जड़ दिया. मैने भी मा को जाकड़ कर उनके चुंबन का जोरदार का जवाब दिया. फिर मा उठ कर अपने रोज के काम काज मे लग गयी. वो बहुत खुश थी.
मैं उठ कर नहा धोकर फ्रेश होकर आँगन मैं बैठ कर नास्टा करने लगा. तभीभुवा आगयी. और बोली बेटा खेत चलोगे ? मैने कहा क्यों नहीं और रात वाला उनका ककड़ी से चोदने का सीन मेरी आँखों के सामने नाचने लगा. इतने मे सुमन (दोस्त की बहन) बोली मैं भी तुम्हारे साथ खेत मैं चलूंगी. और हम तीनो खेत की ओर चल पड़े. रास्ते मैं जब हम एक खेत के पास से गुजर रहे थे तो देखा कि उस खेत मैं ककाडियाँ उगी हुई थी.
मैने ककड़ियों को देखते हुवे भुवा से कहा “भुवा देखो इस खेत वाले ने तो ककाडियाँ उगाई हैं. और ककाड़ियों मैं काफ़ी गून होते हैं” भुवा लंबी सांस भरती हुई बोली “हां बेटा ककाड़ियों से काफ़ी फ़ायदा होता हैं और कई कामो में इसका उपयोग किया जाता हैं, जैसे सलाद में, सुबजियों में, कच्ची ककड़ी खाने के लिए भी इसका उपलोग किया जाता हैं” मैं बोला “हां भुवा, इसे कई तरह से उपयोग में लाया जाता है” इसतरह की बातें करते करते हम लोंग अपने खेत में पहुँच गये. वहाँ जाकर मैं मकान मैं गया और लूंघी और बनियान पहन कर वापस भुवा के पास आगेया.
भुआ खेत मैं काम कर रही थी और सुमन (दोस्त की बहन) उनके काम मैं मदद कर रही थी. मैने देखा भुवा की सारी घुटनो के उपर थी और सुमन स्कर्ट और ब्लाउस पहने हुवे थी. मैं भी लूंघी उँची करके (मद्रासी स्टाइल में) उनके साथ काम में मदद करने लगा.
जब सुमन झुकर काम करती तो मुझे उसकी चड्डी देखाई देती थी. हम लोग करीब 1 या 1:30 घंटे काम करते रहे फिर मैने भुवा से कहा भुवा मैं थोडा आराम करना चाहता हूँ तो भुवा बोली ठीक हैं और मैं खेत के मकान में आकर आराम करने लगा.
कुच्छ देर बाद कमरे मैं सुमन आई और कहने लगी दीनू भैया आप वहाँ बैठ जाइए क्यों कि कमरे मैं झारू मारनी हैं. और मैं कमरे के एक कोने मैं बैठ गया. और वो कमरे मैं झारू मारने लगी. झारू मारते समय जब सुमन झुकी तो फिर मुझे उसकी चड्डी दिखाई देने लगी. और उसकी चुदाई के ख़यालों मैं खो गया. थोड़ी देर बाद फिर वो बोली “भैया ज़रा पैर हटा लो झारू देनी है.”
मैं चौंक कर हक़ीकत की दुनिया मे वापस आया. देखा सुमन कमर पर हाथ रखे मेरे पास खरी है. मैं खरा हो गया और वो फिर झुक कर झारू लगाने लगी. मुझे फिर उसकी चड्डी दिखाई देने लगी. आज से पहले मैने उस पर धान नही दिया था.. पर आज की बात ही कुछ और ही थी. रात मा से चुदाई की ट्रैनिंग पाकर एक ही रात मे मेरा नज़रिया बदल गया था. अब मैं हर औरत को चुदाई की नज़र से देखना चाहता था. जब वो झारू लगा रही थी तो मैं उसके सामने आकर खड़ा होगया अब मुझे उसके ब्लाउस से उसकी चूंची साफ दिखाई दे रही थी. मेरा लंड फॅन-फ़ना गया. रात वाली मा जैसी चूंची मेरे दिमाग़ के सामने घूमने लगी.
तभी सुमन की नज़र मुझ पर पड़ी. मुझे एकटक घूरता पाकर उसने एक दबी सी मुस्कान दी और अपना ब्लाउस ठीक कर चुन्चिओ को ब्लाउस के अंदर छुपा लिया. अब वो मेरी तरफ पीठ कर के झारू लगा रही थी. उसके चूतर तो और भी मस्त थे. मैं मन ही मन सोचने लगा कि इसकी गंद मे लंड घुसा कर चूंची को मसल्ते हुए चोदने मे कितना मज़ा आएगा. बेखायाली मे मेरा हाथ मेरे तननाए हुए लंड पर पहुँच गया और मैं लूंघी के उपर से ही सुपारे को मसल्ने लगा. तभी सुमन अपना काम पूरा कर के पलटी और मेरे हरकत देख कर मुँह पर हाथ रख कर हँसती हुई बाहर चली गयी.