Hindi Sex Story ठाकुर की हवेली - Page 4 - SexBaba
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Hindi Sex Story ठाकुर की हवेली

दो दिन बाद ही मधुलिका ने घुड़ सवारी सीखने के इक्षा जाहिर की. हवेली के सबसे पुराने और मशहूर घुड़सवार को बुलाया गया पर मधुलिका उस 50 वर्ष एक अधेड़ को और उसकी एक बित्ते की मूँछ देख कर ही बिदक गयी और उसने कह दिया की नही सीखनी उसे घुड़सवारी यहाँ से तो पटना ही अछा था. ठाकुर को ये बात चुभ गयी.

उसी रात ठाकुर ने ठकुराइन रजनी से भी उसकी चुचि मसालते हुए इस बात का ज़िकरा किया तो रजनी ने कहा की बेबी सहर मे रह कर पढ़ी लीखी है. उसे यहाँ खुलापन महसूस होना चाहिए. बातों ही बातों मे रजनी ने कहा की ठाकुर का वह ख़ास हवेली का पहरेदार इसके लिए ठीक रहेगा. ठाकुर को भी बात जाँच गयी.

दूसरे दिन ही ठाकुर ने रणबीर को बुलाया और समझाते हुए कहा की वह हमारे पोलो वाले मैदान मे मधुलिका को घुड़सवारी सिखाए. रणबीर खुशी खुशी तय्यार हो गया और ठाकुर को विश्वास दिलाया की बेबी का बॉल भी बांका नही होने देगा और उसे महीने भर मे और उसे महीने भर मे पक्की घुड़सवार बना देगा. ठाकुर भी निसचिंत हो गया.

घुड़सवारी सीखने के लिए शाम का वक्त तय किया गया. पोलो का मैदान हवेली के पीछे ही थोड़ी दूर पर दूर दूर तक फैला हुआ था. जगह जगह पर हरी घास भी मैदान मे थे और चारों तरफ से उँचे दरखतों से वह मैदान घिरा हुआ था.

जब बड़े ठाकुर यानी की ठाकुर का बाप जिंदा था तब देश को आज़ादी नही मिली थी और यहाँ अँग्रेज़ पोलो खेलने आए करते थे. खुद बड़ा ठाकुर भी पोलो का अक्चा खिलाड़ी था. तभी से ये मैदान पोलो मैदान के नाम से प्रसिद्ध हो गया था. हालाँकि इस ठाकुर को पोलो मे कोई दिलचस्पी नही थी.

मैदान मे एक तरफ डाक बुंगलोव भी बना हुआ था. जब अँग्रेज़ यहाँ आते थे तब डाक बुंगलोव किपुरी देख भाल होती थी और अँग्रेज़ों को इसी मे ठहराया जाता था. अब वह वीरान पड़ा था और कुछ कबाड़ के अलावा उसमे कुछ नही था. यहाँ तक की उसकी देखभाल की लिए किसी आदमी को भी रखने की ज़रूरत नही थी.

आज शाम से ही रणबीर को घुड़सवारी सिखानी थी. रणबीर सुबह से ही तय्यारियों मे जुट गया था. तभी 10.00 बजे के करीब ठाकुर ने रणबीर को बुला भेजा. रणबीर हवेली मे पहुँचा तो देखा की ठाकुर ठकुराइन और मधुलिका कुरईसियों पर बैठे थे.

सामने मेज पर झूँटे बरतन पड़े थे जो बता रहे थे की नाश्ता अभी अभी ख़तम हुआ है. रणबीर ने तीनो के सामने झुक कर आभिवादन किया.
 
ठाकुर ने कहा, "यह नौजवान है जो तुम्हे घुड़सवारी सिखाएगा. इतना हौसलेमंद है की चाकू लेकर शेर से भीड़ जाए. "

मधुलिका ने रणबीर को गौर से देखा और पूछा, "कब से हो यहाँ?"

"जी हवेली मे तो अभी सिर्फ़ एक महीने से ही हूँ पर ठाकुर साहेब की सेवा मे दो साल से हूँ." रणबीर ने नज़रें नीची किए जवाब दिया.

"हूँ तो तुम बाबा के साथ शिकार पर भी जाते हो?"

"जी हां "

"तब तो निशाने बाज़ भी हो." फिर मधुलिका ठाकुर की तरफ घूम के बोली, बाबा! मैं यहाँ बंदूक, पिस्टल चलाना भी सीखूँगी.

"ये भी तुम्हे यही सीखा देगा."

मधुलिका खुश हो गयी. तब ठाकुर ने रणबीर से कहा.

"अस्तबल से दो चुने हुए घोड़े ले जाना, सारे साजो समान की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है.. देखो बेबी भी इस मे नयी है, इसके अकेले घोड़े पर मत छोड़ना. राइफल कारतूस भी ले लेना और निशानेबाज़ी जंगल की तरफ रुख़ कर के सीखाना. तुम डाक बंग्लॉ के पास सब तय्यारी करके इंतेज़ार करना बेबी शाम को 4.00 बजे तक वहाँ पहुँच

जाएगी."

"जी ठाकुर साहेब, अब इजाज़त दें, सारी तय्यारी में खुद करूँगा."

ये कह कर रणबीर ने सिर झुकाया और वाहा से चला गया.

फिर रजनी और मधुलिका को वहीं छोड़ ठाकुर भी हवेली मे चला गया.

"तुम्हारे बाबा का ये ख़ास है, ये तुम्हेसब कुछ सिखा देगा." रजनी ने हंसते हुए मधुलिका से कहा.

"ठकुराइन मा आप कैसे जानती है की ये क्या क्या सीखा सकता है?"

"अरे ठाकुर साहेब इसकी तारीफों के पूल बाँधते थकते नही. बाप का तो मन ये मोह चुका अब देखिएं की बेटी का ये कितना मन मोहता है?" रजनी होटन्ठ काटते हुए मुस्कुराने लगी.

"तब तो मज़ा आ जाएगा मेरी ठकुराइन मा... " मधुलिका ने भी हंसते हुए कहा और मा शब्द पर अधिक ही ज़ोर दिया.

"मेने तुम्हे कितनी बार कहा है की मुझे मा मत कहा करो. अपना अपना भाग्या होता है"

"भाग्या ही तो होता है की आप आज इस हवेली की ठकुराइन है. और ठकुराइन है इसलिए मा भी है."

रजनी ने पास पड़ी एक मॅगज़ीन उठा ली और पढ़ने लगी. उसने जब से मधुलिका यहाँ आई थी तब से कोशिश करनी शुरू कर दी थी की मधुलिका उससे एक सहेली जैसा व्यवहार करे.. उसने काफ़ी खुलने की भी कोशिश की. वह मधुलिका को ठीक उसी साँचे मे ढालना चाहती थी जिस साँचे मे उसने अधेड़ मालती को ढाल रखा था.

पर मधुलिका शांत स्वाभाव की और कम बोलने वाली लड़की थी. उसे अभी तक रजनी ठीक से समझ ही नही पाई थी.

शाम 4 बजे जीन कसे दो घोड़ों के साथ रणबीर डाक बंग्लॉ के पास मुस्तैद था. दो राइफल और कारतूस भरी दो पट्टियाँ भी मौजूद थी. तभी एक जीप वहाँ आके रुकी और टाइट जीन्स और चमड़े की जकेट मे मधुलिका जीप से नीचे उतरी. उसने ड्रेइवेर को यह कहते हुए जीप के साथ भेज दिया की दो घंटे बाद वे यहाँ वापस आ जाए.

उस लिबास मे आज मधुलिका शिकार पर जाती एक राजकुमारी लग रही थी. सर पर हॅट नुमा कॅप थी. कमर मे जीन्स की बेल्ट मे एक पिस्टल खोंसि हुई थी. रणबीर के पास आ मधुलिका ने उसे मुस्कुराते हुए देखा और पूछा,

"तो तुम और तुम्हारे घोड़े तय्यार है? चलो अब कैसे शुरू करना है करो."

"जी मधु.. उ.. जी. आज आप घोड़े पर सवार हों और में घोड़े की रास पकड़ पैदल च्लते हुए इस पोलो मैदान के दो चक्कर लग वाउन्गा. इससे आपको घोड़े की चाल का एहसास होगा और उस चाल के अनुसार आपको अपने शरीर को कैसे काबू मे रखना है पता चलेगा." ये कह कर एक सज़ा हुआ घोड़ा रणबीर ने मधुलिका के आगे कर दिया.
 
मधुलिका ने रकाबी मे पैर डाला तो रणबीर ने नीचे झुक कर मधुलिका का पैर रकाबी मे ठीक से फँसा दिया. वह मधुलिका के फूले फूले चूतड़ को सहारा दे उसकी घोड़े पर चढ़ने मे मदद करना चाह ही रहा था की मधुलिका उछल कर घोड़े की पीठ पर सवार हो गयी.

रणबीर ने घोड़े की रास थाम ली और पैदल चलने लगा. मधुलिका कुछ देर तो घोड़े की चल के साथ ताल मेल बैठाती रही वह घोड़े की पीठ पर अकड़ कर बैठ गयी और रणबीर से कहा.

"अब रास मुझे थमा दो. नहीं तो लग ही नही रहा है की में घुड़सवारी कर रही हूँ. रणबीर ने मधुलिका को रास थमाते हुए कहा, "देखिएगा रास ज़ोर से मत खींचयएगा, नही तो घोड़ा दौड़ने लगेगा."

रणबीर भी घोड़े की पीठ पर हाथ रख साथ साथ चलने लगा.

"रणबीर पढ़ाई लीखाई भी की है या और कुछ?" मधुलिका ने पूछा.

"जी गाँव के स्कूल मे आठवीं तक पढ़ा हूँ."

"तो तुमने तो बहोत जल्दी घुड़सवारी और निशानेबाज़ी सिख ली और बाबा ने मुझे सिखाने के लिए तुमको चुना है?"

"जी इसमे ऐसी कोई बात नही है, देखिएगा आप भी बहोत जल्दी सब कुछ सीख जाएँगी."

घोड़ा मंद गति से चल रहा था. रणबीर घुड़ सवारी के बीच बीच मे गुण भी बताता जा रहा था जिसे मधुलिका ध्यान से सुन रही थी. घोड़ा दौड़ने लगे तो उसकी पीठ पर हल्के ठप देकर उसे रोकना है, कैसे चढ़ना है, कैसे उतरना है वैगैरह वैगैरह.

लगभग एक घंटे मे पोलो मैदान के दो चक्कर पूरे हो गये. इस बीच मधुलिका घोड़े को हल्के हल्के दौड़ाया भी और रणबीर के बताए तरीके से उसे थप़ थपा के रोका भी. मधुलिका बहोत खुश थी.

घोड़े से उत्तरते समय रणबीर ने उसके चूतड़ को हल्का सा सहारा देकर उसकी उत्तरने मैं मदद की. फिर मधुलिका ने कुछ निशाने बाज़ी की इक्षा प्रगट की.

शाम के 5.00 बज चुके थे. सूरज कुछ नीचे चला गया था, जिससे पेडो की छाया लंबी हो गयी थी. रणबीर ने एक बड़े पेड़ की छाँव मे एक चादर बीछा दी. टारगेट एक तख़्ती जिस पर काई गोल लाइन्स बनी हुई थी, जंगल की तरफ था जो की अभी धूप मे नहा रहा था.

"अब आप पेट के बल लेट जाएँ और राइफल का बट छाती से दबा के राइफल को मजबौती से पकड़ें. मधुलिका फ़ौरन लेट गयी.

और समय होता तो रणबीर उसके चूतडो का उभार देख कहीं खो जाता पर इस समय उसका पूरा ध्यान राइफ़ल चलाना सिखाने मे था. रणबीर ने हिदायत दे दी थी की ट्रिजर को भी बिल्कुल भी ना छुवें. फिर रणबीर राइफल को कैसे सीधा रखा जाए, निशाना कैसे लगाना है तथा और भी बहुत सी बातें समझाता रहा. मधुलिका ट्रिजर दबाने को उतावली थी पर रणबीर उसे धीरे से समझाता रहा.

"अब समझाते ही रहोगे या दो चार गोली मारने के लिए भी कहोगे?"

"देखिएगा बट छाती से कस के दबा ले. गोली छूटते ही एक झटका लगेगा. रणबीर भी उसकी बगल मे लेट गया और जब सब तरफ से संतुष्ट हो गया तो उसने फिरे कहा. ध्यान से गोली छूटी पर वह उस तख़्ती के भी आस पास नही थी.

मधुलिका उठ कर बैठ गयी. उसकी छाती ज़ोर ज़ोर से धड़क रही थी, जिससे उसकी बड़ी बड़ी चुचियों उपर नीचे हो रही थी. रणबीर ने थर्मस मैं से एक ग्लास पानी निकाल कर उसे दिया.

फिर रणबीर राइफल लेकर लेट गया. बट कैसे रखना है उसने अपनी छाती से लगाकर समझाया. फिर उसने टारगेट पर कयी फाइयर किए और सारी निशाने बीच मे बने गोल पर ही लगे. इससे मधुलिका बहोत प्रभावित हुई. उस दिन रणबीर ने मधुलिका को और राइफल नही दी बल्कि काई बातें समझाता रहा.

ड्राइवर जीप लेकर साढ़े पाँच बजे आ चुका था, उसे इंतेज़ार करते हुए लगभग 10 मिनिट हो चुके थे. तभी रणबीर ने सारा समान समेटना शुरू किया और सारा समान एक घोड़े की पीठ रख दोनों जीप की तरफ चल पड़े. एक घोड़े की रास रणबीर ने थाम रखी थी और दूरे घोड़े की रास मधुलिका ने. मधुलिका दूसरे दिन चार बजे आने को कह जीप मे सवार हो निकल गयी.
 
यह सिलसिला 10 दिन तक यूँ ही चलता रहा. अब मधुलिका अकेले घोड़े पर सवार हो मैदान का चक्कर लगाने लगी थी. पर अभी तक वह घोड़े को दौड़ाती नही थी. नीशानेबाज़ी भी कुछ कुछ सीख गयी थी. राइफल के अलावा वह पिस्टल चलाना भी सीख रही थी. जब वह दोनो टाँगे चौड़ी कर और कुछ झुककर पिस्टल चलाती तो रणबीर का लंड उसकी गांद का उभार देख मचल उठता. पर वह बिना कुछ प्रगट किए उसे बड़ी तन्मयता से सब सीखाता रहता. उसे पता था की ये शहज़ादी एक दिन खुद उससे लिपट जाएगी.

अब घोड़े पर चढ़ते और उतरते समय प्राय्यः रणबीर उसके चूतडो को सहारा दे देता. राइफल चलाते वक़्त रणबीर भी उसकी बगल मे लेट जाता और राइफल के पोज़िशन ठीक करने के बहाने उसकी कोहनी उसकी चुचियों से रगड़ खा जाती. मधुलिका इन सब बातों की तरफ कोई ध्यान नही देती. अब वह ड्रेस भी ऐसी पहन के आती, की किसी की भी नियत डोल जाए. रणबीर भी मधुलिका से खुलने लग गया था.

फिर एक दिन बरसात का सा मौसम था पर मधुलिका अपने समय ठीक 4 बजे पोलो मैदान पहुँच गयी. रणबीर भी रोज की तरह तैयार था.

"मेने तो सोचा था की आज मेमसाहेब हवेली मे ही आराम करेंगी, लेकिन आप तो वक़्त पर हाजिर हैं."

"तुम भी तो यहाँ पर हो और सुनो में वक़्त की बहोत पाबंद हूँ. चाहे आँधी आए या तूफान में यहाँ ज़रूर पहुँचती हूँ. "

तभी हल्की बूँदा बंदी शुरू हो गयी और देखते देखते बारिस नेज़ोर पकड़ लिया. वहाँ और ओ कुछ था नही और दोनो राइफल संभाले जल्दी से डाक बंग्लॉ की तरफ भागे. डाक बंग्लॉ के पीछे आकर मधुलिका बुरी तरह से हाँफने लगी.

वह काफ़ी भीग चुकी ती और हाँफते हाँफते उसकी छाती उपर नीचे हो रही थी. रणबीर उसकी चुचियों पर आँख गड़ाए देख रहा था.

"रणबीर इस डाक बंग्लॉ मे क्या है? मेरी देखने की इक्चा है."

"भीतर से तो इसे मेने भी नही देखा है, पर सुना है कुछ पुराना समान भरा पड़ा है. चलिए देखते है."

और दोनों डाक बुंगलोव के लकड़ी की बनी सीढ़ियों से होते हुए डाक बंग्लॉ पर आ गये. बंग्लॉ के अंदर जाने के मैन गेट पर एक लोहे की बड़ी सी कुण्डी जड़ी थी जिसे रणबीर ने खोल दिया.'

दरवाज़ा चरमरा कर खुल गया और दोनो अंदर दाखिल हो गये. फर्श पर धूल की परत जमी हुई थी लगता था की बहूत दिनों से कोई भी अंदर नही आया था. डाक बंग्लॉ अंदर से काफ़ी बड़ा था. बीचों बीच बड़ा सा चौक था और उसके चारों तरफ काई कमरों के बंद दरवाजे दीख रहे थे. कई बरामदे भी थे जिनमे कुर्सियाँ, मेजें और टेंट का समान पड़ा था.

बाहर बरसात और तेज हो गयी थी जिसकी टीन की छत पर पड़ने की आवाज़ तेज हो गयी थी. एक कमरे का दरवाज़ा और कमरो से बड़ा था और उस पर सजावट भी थी. रणबीर और मधुलिका ने अंदाज़ लगा लिया की ये डाक बंग्लॉ का मेन हॉल है क्यों की इसके बाहर बड़ी बाल्कनी थी जिसपर कुर्सियाँ लगा के बैठ के पूरा पोलो मैदान का नज़ारा सॉफ तौर पर देखा जा सकता था.

कमरे मे कोई ताला नही था, और उसकी कोई ज़रूरत भी नही समझी गयी क्यों की ठाकुर का रुआब ही ऐसा था की उधर झाँकने की भी कोई हिम्मत नही कर सकता था.

रणबीर ने जैसे ही वो कमरा खोला एक सीलन भरा भभूका अंदर से बाहर आया. कमरे मे अंधेरा था और मधुलिका रणबीर से बिल्कुल सॅट गयी. तभी कोई एक चूहा मधुलिका के पैरों पर से होता हुआ तेज़ी से गुजरा और मधुलिका रणबीर से कस के चिपक गयी. उसका शरीर कांप रहा था. कमरे के खुले दरवाज़े से हल्की रोशनी आ रही थी और रणबीर ने कहा.

"मेमसाहब ये तो चूहा था." फिर दोनो हँसने लगे.
 
रणबीर ने मधुलिका की पीठ पर हाथ रख रखा था और रणबीर उसे उसी तरह चिपकाए हुए आगे बढ़ा और कमरे की बाल्कनी की तरफ खुलने वाला दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़ा खुलते ही कमरे मे रोशनी भी हो गयी और बाहर बारिश का बड़ा ही मनोरम दृश्या था.

दोनो घोड़े भी डाक बुंगलोव के नीचे आ गये थे. कमरे मे कार्पेट बीछा हुआ था. दीवारों पर बड़ी बड़ी तस्वीरें तंगी हुई थी, कई अलमारियाँ बनी हुई थी, दो बड़े बेड थे जिनके सर के तरफ गोल गोल करके रखे हुए बिस्तर थे. एक तरफ सोफा सेट और कुछ मेजें पड़ी हुई थी.

"वाह कितने ठाट बाट से भरा हुआ कमरा है ये. मेरा बस चले तो हवेली छोड़ इससे मे आ जाउ. जहाँ तुम हो, घुड़सवारी सीखना, निशाने बाज़ी सीखना और अकेले रहना." मधुलिका ने कहा.

"अभी तक जीप नही आई." रणबीर ने बाहर देखते हुए कहा.

"वह अपने टाइम पर आज्एगी और अभी तो डेढ़ घंटे से ज़्यादा पड़ा है. मेने ड्राइवर से कह दिया था की चाहे बरसात आए या कुछ और आए.. रणबीर में थक गयी हूँ , यह बिस्तर खोल कर बिछा दो."रणबीर ने झट बिस्तर खोल कर बिछा दिया और मधुलिका पट लेट कर पसर गयी.

"मधुलीकाजी आप इस समय बहोत ही सुन्दर लग रही है.,"

"वो तो है तभी तो तुम मुझे घूर घूर कर देख रहे हो." तभी मधुलिका ने एक झटके से रणबीर को खेंच लिया और उसके होठों पर अपने होंठ रख एक तगड़ा चुंबन ले लिया.

मधुलिका हाँप रही थी और उसने रणबीर को जाकड़ लिया. उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ रणबीर की छाती से रगड़ खा रही थी.

"रणबीर मुझे प्यार करो ना. तुम मुझे अच्छे लगते हो. में तुम्हे चाहने लगी हूँ."

"पर बेबी,...... मधुलीकाजी .... यहाँ यदि किसी को मालूम पड़ गया तो ठाकुर साब मेरी खाल उतरवा लेंगे."

"उस खुल दरवाजे से किसी के भी आने का हमे मालूम पड़ जाएगा पर इस अंधेरे मे हमें कोई नही देख पाएगा." ये कहकर मधुलिका ने रणबीर को और जाकड़ लिया और उसके गालों का, होठों का चुंबन लेने लगी.

इधर रणबीर का भी बुरा हाल था, कयि दिन का प्यासा लंड पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था. उसने मधुलिका के होंठ अपने होठों मे ले लिए और उन्हे चूसने लगा. उसके हाथ कठोर चुचियों पर कस गये. उसने उसके खुले गले के जॅकेट को खोलना शुरू किया और अब ब्रा मे क़ैद मधुलिका के मस्त माममे उसके सामने तने हुए थे.

उधर मधुलिका भी कहाँ पीछे रहने वाली थी. उसने रणबीर को पॅंट और शर्ट से आज़ाद कर दिया. रणबीर ने मधुलिका के ब्रा के हुक भी खोल दिए और उसकी एक मस्त चूची को मुँह मे ले चूसने लगा.

"ओह मेरे बाबा....मेरे प्यारे बच्चे ... चूसो... ओह्ह्ह्ह्ह हाआँ चूसूऊऊऊऊओ." मधुलिका सिसकियाँ भरने लगी और रणबीर के मुँह मे एक हाथ से अपनी चुचि पकड़ उसके मुँहमे ठेलते हुए चूसाने लगी.

रणबीर मधुलिका की पॅंट के बटन खोल चुका था और एक हाथ पॅंटी के उपर से अंदर डाल दिया. उसका हाथ मधुलिका के झाटों से भरी चूत से टकराया. वह गीली हो चुकी थी. रणबीर उसे मुट्ठी मे कस दबाने लगा. बीच बीच मे वह झाँटो पर हाथ भी घिस रहा था.

उधर मधुलिका ने भी रणबीर का लंड जंघीए से निकाल लिया था और उसे धीरे धीरे मुठियाने लगी.

"वाह मेरे बेबी का ये बेबा तो बड़ा लगता है. इतना बड़ा लटकाए फिरते हो और 10 दीनो से खाली घोड़ा चलाना सीखा रहे हो. अब में इसे भी चलौंगी." ये कह कर मधुलिका ने रणबीर का लंड मुँह मे लेना शुरू कर दिया.

पहले वह सूपाडे पर जीब फिराती रही फिर मुँह को गोल कर लंड को अंदर बाहर करते हुए उसे धीरे धीरे मुँह मे अंदर तक लेने लग गयी.

"क्या करता ठाकुर साहब का हुकुम ही ऐसा था. सोचा तो कयि बार पर हिम्मत नही हुई. अब इस बेबी से में भी जी भर के खेलूँगा." रणबीर ने मधुलिका की चूत मे एक अंगुल पेलते हुए कहा.
 
उधर मधुलिका अब उसके पूरे लंड को बड़ी मस्ती से चूस रही थी. वह उसकी बड़ी बड़ी गोटियों को हाथों से धीरे धीरे भीच रही थी.

"तो बेबी को बाहर कर लो ना, देखो रस से भीग गई है." मधुलिका ने अपने चूतड़ उचे उठा दिए जिससे रणबीर को पॅंट नीचे खिसकाने मे आसानी हो जाए.

रणबीर ने पॅंट और पॅंटी एक साथ ही उसकी टाँगो से निकाल दी.

वह उसकी टाँगे चौड़ी कर उसकी चूत पर झुक गया और जीभ के अग्र भाग से चूत को छेड़ने लगा. मधुलिका ने रणबीर के सर पकड़ के चूत पर दबा दिया.

"खा जाओ इसे... ऑश.. बहोट सताती है ये... ऑश चूवसू.... रणबीर इसे....."

रणबीर भूके शेर की तरह चूत पर पिल पड़ा. उसने पूरी चूत मुँह मे भर ली और माल पूवे की तरह उसे खाते हुए चूसने लगा. वा चूत के दाने पर हल्के दाँत भी लगा रहा था. मधुलिका पागल हो कहने लगी.

"तुम तो पक्के खिलाड़ी हो. ओह.. यह तरीका कहाँ से सीखा है तुमने.. कितनो को अपनी टाँग के नीचे से गुज़ारा है... ओह बेबी चूसो इसे और ज़ोर से.. पूरी मुँह मे ले लो... श" मधुलिका छट पटाने लगी.

अब वह रणबीर का लंड को हाथ मे पकड़ हिला रही थी. चुचियाँ उसकी छाती से रगड़ रही थी और जहाँ तहाँ चूमने लगी थी.

रणबीर चूत को पूरी तन्मयता से चूस रहा था, बीच बीच मे वह मधुलिका की गांद मे उंगल भी पेल देता था और वह चिहुनक पड़ती थी.

"रणबीर अब और कितना तड़पावगे.... इसको अंदर क्यों नही डालते..."

मधुलिका ने रणबीर का लंड पकड़ कर कहा.

"में तो इसी का इंतेज़ार कर रहा था की कब आपका हुकुम हो देखिए ना यह मेरा कितना बैचाईन हो रहा है." रणबीर मधुलिका की दोनो टाँगे फैला उनके बीच मे जगह बनाते हुए बोला.

"देखो धीरे धीरे डालना, आज से पहले मेने इसे कभी भी अपनी चूत मे लिया नही है. तुम्हारा वैसे भी जो मेने पढ़ा है उससे बड़ा है."

"आप बिल्कुल फ़िकरा ना करें मालकिन वाह ये तो मेरा नसीब है की मुझे एकदम कुँवारी चूत मिल रही है." रणबीर मधुलिका की रस से भरी चूत पर अपना लंड का सुपाड़ा टीका चुका था. वह कुछ देर चूत पर अपने एक दम खड़े हो गये लंड को रगड़ता रहा.

मधुलिका नीचे छट पटा रही थी और इंतेज़ार कर रही थी की कब लंड भीतर घुसेगा. वह मेडिकल की स्टूडेंट थी और सब बातों का पता था हालाँकि वह अब तक चुदी नही थी.

"हां मेरे बेबी ये अभी तक कोरी है.. यह तेरी गुरु दक्षिणा है.. देख आज तक में इसमे केवल मेरी उंगल ही घुसाती आई हूँ... तुम अपने मोटे भाले से कहीं इसे फाड़ ना देना... अब डालो इसे अंदर..."

रणबीर ने धीरे से लंड का सूपड़ा अंदर ठेला. मधुलिका की चूत कसी हुई थी. वह भली भाँति जानता था की यह मालती या सूमी जैसियों की चूत नही है जिसमे एक ही बार मे पेल दिया फिर चाहे सामने वाली कितना ही रोती चिल्लाति रहे इसलिए रणबीर पूरी सावधानी बरत रहा था.

वह काफ़ी देर लंड का सूपड़ा उसकी चूत के उपर या थोड़ा सा भीतर रगड़ते रहा. जब उसने देखा की मधुलिका की चूत रस छोड़ने लग गयी है और छट छट की आवाज़ आने लग गयी है तो उसने धीरे धीरे लंड अंदर ठेलना शुरू किया.

रणबीर कुछ लंड को भीतर घुसाता और फिर रुक जाता और लंड को भीतर ही हिलाके कुछ जगह बनाता और तब अंदर करता. मधुलिका रणबीर के होंठ चूस रही थी और आनंद के मस्ती मे सिसकारियाँ भर रही थी.

"ओह रणबीर तुम तो इसके भी गुरु हो. इतनी छोटी उमर मे ही तुमने तो सब कुछ सीख लिया. घुड़सवारी, बंदूक और अब चदाई. मुझे तुमसे इसकी कला भी सीखनी है. बोलो सिख़ाओगे ना."

"हां बेबी ये कला तो काम करके ही सीखाई जाती है. बोलो तुम तय्यार हो." ये कह कर रणबीर ने चूत के भीतर तीन चार हल्के धक्के मारे और लंड मधुलिका की चूत मे पूरा समा गया.

"ऑश रणबीर लगता है तुमने पूरा भीतर घुसा दिया है. तुमने तो अपना इतना बड़ा बड़े ही तरीके से अंदर डाला. मेरी कई सहेलियों ने मुझे बताया था की पहले बहोट दर्द होता है. में पीछले एक साप्ताह से तुमसे चुदवाने के लिए बेकरार थी और रातों को में दो दो उंगलियाँ इसके भीतर पेल पेल के इसको तुम्हारा लंड लेने के लिए बड़ा कर लिया है. हां रणबीर मुझे सीखाना और मेरी चूत मे कर कर के सीखाना मस्टेरज़ी तुम जब भी सिख़ाओगे में तुम्हारे आगे मेरी चूत खोल दूँगी. अब तो खुश हो ना."

"हां बेबी अब में तुम्हे इस तुम्हारे बड़े बाबा के डाक बंग्लॉ मे रोज़ सिखाउँगा." ये कह कर रणबीर मधुलिका को दना दान चोदने लगा.

मधुलिका जैसी कई कुँवारी चूत चोद के रणबीर पूरा मस्त था. उसने अपनी मुठियाँ मधुलिका के फूले चूतड़ पर कस ली थी और वह उन चूतडो को घूथ रहा था. मधुलिका गांद उछाल उछाल कर चुदवा रही थी.

"ओह मेरे बेबी तुम कितने अच्छे हो. में भी अब तुमसे रोज़ चुदवाउन्गि. ओह रणबीर अब मुझे कस कस के चोदो..ओह बहोत मज़ा आ रहा है. आज तो चाहे तुम इसको फाड़ ही दो.. तुमसे फदवाने भी मज़ा है.. ऑश बेबी मेरे मम्मे भी चूसो." मधुलिका ने रणबीर को बाहों मे भर लिया था और वह बड़बड़ाती जा रही थी और गंद उछाल रही थी. लंड पच पच करता हुआ उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था.

बाहर तेज बारसत हो रही थी और बिजली भी चमक रही थी, जिसकी चमक से कमरा रह रह के रोशनी से नहा उठता. इधर मधुलिका की चूत पर रणबीर का लंड की बिजली गिर रही थी.
 
अचानक दोनो की भावनाओं के बादल उमड़ने लगे. आलिंगान कस गये, होंठों से चूँबनो की बरसात शुरू हो गयी, रफ़्तार बढ़ गयी, और मधुलिका की प्यासी धरती आग मे तपती धरती पहली बरसात के पानी के लिए तरस रही थी. अचानक बादल फॅट पड़े और प्यासी धरती की तेज धार से प्यास बुझाने लगा.

"श रणबीर सी ह दो मुझे तुम बिल्कुल चिंता मत करो... में टॅबलेट ले लूँगी... ओह इस प्यासी चूत को भर दो." मधुलिका ने रणबीर को कस कर भींच लिया और दोनो सुस्त पड़ गये.

फिर दोनो उठे अपने कपड़े पहने, कमरे मे वापस सब पहले जैसा ही कर दिया और कमरे के दरवाजे वापस बंद करने लगे. तभी रणबीर ने देखा की दूर से जीप इधर ही पोलो मैदान के तरफ आ रही है दोनो दरवाजे बंद कर के जल्दी से डाक बंग्लॉ के नीचे आ गये जहाँ घोड़े बारिस से बचने के लिए खड़े थे.

तभी जीप उनके सामने आके रुकी और मधुलिका जीप मे सवार हो रणबीर के आँखों से धीरे धीरे ओझल हो गयी. जब एक बार यह चुदाई का खेल शुरू हो गया तो इसके चलने मे आगे कोई बाधा नही थी.

मधुलिका अब कुछ समय पहले ही आने लगी. कुछ देर वह घुड़सवारी और राइफल चलाना सीखती और फिर रणवीर को अपनी सवारी करवाती और रणबीर के लंड को अपनी चूत और गंद मे चल्वाति.

रणबीर मधुलिका जैसीफूली गांद वाली लड़की की गांद मारे बिना कहाँ छोड़ने वाला था. दूसरे ही दिन एक चुदाई के बाद उसने उसकी गंद भी मार दी.

इधर मधुलिका रणबीर की पक्की दीवानी हो चुकी थी. वह उसे अपने सपनो का राजकुमार के रूप मे देखने लगी. ( दोस्तो ये मधुलिका का राज कुमार रणवीर था आपका राज शर्मा नही ) इसी तरह एक महीना बीत गया. अब मधुलका घुड़सवारी और राइफल पिस्टल चलाने मे निपूर्ण हो चुकी थी. साथ ही एक नंबर की चुड़क्कड़ और गंदू भी बन चुकी थी. जब तक रणबीर से कस के चुदवा या गंद नही मरवा लेती थी

वह बात बात मे बिगड़ उठती.

फिर एक दिन ठाकुर ने उससे कहा की दूसरे दिन ही वह ठाकुर और उसका लड़का हवेली मे आने वाले है. लड़का लड़की के मिलने के रस्म हवेली मे ही पूरी कर दी जाएगी और साथ ही मँगनी की रस्म भी.

मधुलिका को एक धक्का सा लगा, तो लड़का लड़की दीखाना महज एक दीखावा ही होना था होना वही था जो उसके बाप ने पहले से सोच रखा है. उसे अपना संसार बसने से पहले ही उजड़ता नज़र आया.

खैर दूसरे दिन ठाकुर और मधुलिका का होने वाला पति हवेली मे पहुँच गये. सारी हवेली उनके आदर सत्कार मे जुट गयी. फिर मधुलिका और उसके होने वाले पति को कुछ समय के लिए एकांत मे छोड़ दिया गया. देखने और एक दूसरे को समझने की रस्म मात्र दस मिनिट मे ही पूरी हो गयी. कहाँ मधुलिका एमबीबीएस की परीक्षा देकर

आई हुई लड़की और कहाँ वह ठाकुरों की झूटी आन बान मे जीने वाला वह ठाकुर का लड़का.

मधुलिका एक दम गोरी चिटी विलायेति मेम सी और एक अप्सरा सी सुन्दर और वह ठाकुर का लड़का सांवला सा और कुछ मोटा और भद्दा सा. हूर के बगल मे लंगूर वाली कहावत ऐसी ही जोड़ी को ध्यान मे रख कर मनाई गई थी.

खैर मधुलिका की ज़िद की वजह से माँगनी वाली रस्म पूरी नही हो सकी. उनके चले जाने के बाद मधुलिका ने शादी से साफ इनकार कर दिया. एक बार तो ठाकुर के रजपूती खून ने उबाल खाया पर एक लौटी बेटी के सामने वह ज़्यादा कुछ नही बोल पाया. पर ठाकुर को दाल मे कुछ काला नज़र आया और भानु को रणबीर और मधुलिका पर नज़र

रखने के काम पर लगा दिया.

मधुलिका और रणबीर पहले जैसे ही पोलो मैदान मे फिर से जाने लगे. मधुलिका फिर चुदने लगी. रणबीर उसे कुछ ही दिन की मेहमान बता रहा था, जिसे सुनकर मधुलिका चीढ़ उठती और कह देती की उस ठाकुर के लंड का उसके सामने नाम ना ले.

बातों ही बातों मे मधुलिका ने रणबीर को साफ कह दिया की वो विवाह करेगी तो सिर्फ़ रणबीर से या फिर कुँवारी रहेगी या आत्मा हत्या कर लेगी. रणबीर यह सुनकर ही भाव विहल हो गया और उस उसने मधुलिका को बहोत जम के चोदा.

उसके दूसरे दिन ही भानु के द्वारा ठाकुर के पास रणबीर और उसकी बेटी की कारगुजारियों की दास्तान का काला चिट्ठा पहुँच गया.

ठाकुर ने जब ये सुना तो रह रह कर फदक उठा. उसका बस चलता तो दोनो के सर कलम कर देता. पर किसी तरह उसने अपने आप पर काबू किया. भानु को तगड़ा इनाम दिया और हिदायत दी की किसी के सामने इस बात का ज़िकरा ना कारे.

दूसरे ही दिन ठाकुर ने शाम 4 बजे रणबीर को किसी दूसरे काम मे फँसा दिया और उस दिन मधुलिका मी मसोस के रह गयी.

उधर भानु गाँव से रणबीर के बाप और मा को लेके हवेली मे आ गया. उनका आना बिल्कुल गुप्त रखा गया और किसी को भनक नही लगे दी गयी. ठाकुर ने रणबीर के बाप को 50,000/- दिए और कहा की वह अपने गाँव वाईगरह सब को भूल रणबीर को ले रातों रात कहीं दूर चला जाए. यह जो रकम उसे ठाकुर दे रहा है वह उसकी गाँव की

संपाति से कहीं ज़्यादा है. इस रकम से वो कहीं दूर खेत खरीद सकता है, छोटा मोटा कारोबार कर सकता है.

ठाकुर ने उसके बाप को यह भी समझा दिया की वह जो कुछ कर रहा है केवल इसलिए की उसके बेटे रणबीर ने एक बार उसकी जान बचाई थी. नही तो रणबीर ने जो हवेली की इज़्ज़त पर हाथ डाला था उस अपराध मे उसकी बोटी बोटी काट दी जाती.

ये मौका ठाकुर उन्हे जो दे रहा है जिसका पूरा फयडा वे लोग उठाए और रातों रात कहीं दूर चले जाए और आइन्दा कभी उनका साया भी हवेली पर नही पड़ना चाहिए.

बुड्ढे बाप ने रोते हुए ठाकुर के पावं छुए और वचन दिया की वे कभी भी जिंदगी मे इधर का रुख़ नही करेंगे.

अपने वचन के अनुसार रणबीर, का बाप और उसकी मा रात के अंधेरे मे ना जाने कहाँ चले गए. उनके बारे मे किसी को कुछ पता नही चला.

सुबह उठते ही ठाकुर ने हवेली मे चोरी की खबर उड़ा दी. फ़ौरन पहरेदार रणबीर की तलाश हुई और नुमैइदों ने खबर दी की रणबीर गायब है. फ़ौरन रनबेर के गॅव मे आदमी दौड़ाए गये, वहाँ भी कुछ नही था. सारे रणबीर को कोसते हुए यह सोचते रहे की रणबीर हवेली का माल लेकर कहीं चंपत हो गया है.

मधुलिका को इस पर विस्वास तो नहीं हुवा पर वह अकेली इस प्रत्यक्ष प्रमाण के आगे क्या कर सक'ती थी.बेचारि मन मसोस कर रह गई

दोस्तो इस तरह ये कहानी यहीं ख़तम होती है फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ तब तक के लिए विदा 

दोस्तो कहानी कैसी लगी बताना मत भूलना 
आपका दोस्त
राज शर्मा 

समाप्त
 
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