Hindi Sex Story राधा का राज - Page 2 - SexBaba
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Hindi Sex Story राधा का राज

" तुम खुश तो हो ना?" मैने उससे पूछा.

" तुमसा साथी पा कर कौन नही खुश होगा." राज शर्मा ने कहा, "हर बच्चा परी के सपने देखता है मगर मुझ को तो सक्छात परी मिल गयी" .

फिर हम दोनो उठ कर साथ साथ नहाए. तैयार होकर मैं खाना बनाकर उसे अपने हाथों से खिलाई. और उसने मुझे खिलाया. फिर वापस हम बेडरूम मे आ गये. रात भर राउंड पर राउंड चलते रहे. सुबह तक मेरा तो उसने बुरा हाल कर दिया था ऐसा लग रहा था मानो मुझे मथ्नि मे डाल कर मठ दिया हो. चूत का हाल तो बहुत ही बुरा था. पहले ही मिलन मे इतनी घिसाई तो उसके हिम्मत तोड़ने के लिए काफ़ी थी. लाल होकर फूल गयी थी. फोड़े की तरह दुख रहा था. सुबह तक तो मुझमे उठकर खड़े होने की ताक़त भी नहीं बची थी. सुबह 6.0 ओ'क्लॉक को वो उठा और तैयार होकर मेरे मकान से निकल गया जिससे किसी को पता नही चले. जाने से पहले मुझे होंठों पर एक चुंबन देकर उठाया.

"मत जाओ अब मुझे छोड़कर" मैने उस से विनती की.

"अजीब पागल लड़की है" उसने कहा, "पहले शादी हो जाने दो फिर बाँध लेना मुझे."

" सहारा देकर उठा तो सकते हो."

उसने मुझे सहारा देकर उठाया. उसके जाने के बाद मैं सोफे पर ढेर हो गयी. सुबह मुझ से मिलने मेरी एक मात्र सहेली रचना आई.

"क्या हुआ मेरी बन्नो?" मैने अपना हाल सुनाया तो वो भी खुश हुई. लेकिन जब राज शर्मा के काम काज के बारे मे सुना तो कुछ मायूस हो गयी. लेकिन मैने उससे कहा कि मैं उससे प्यार करती हूँ और हम दोनो मिलकर ग्रहस्थी की गाड़ी खींच लेंगे. तब जाकर वो कुछ अस्वस्थ हुई.

मुझे काफ़ी टाइम लगा अपने परिवार वालो को मनाने मे लेकिन आख़िर मे जीत मेरी ही हुई. मेरे घरवालों ने समझाने की कोशिश की मगर मेरा निश्चय देख कर शांत हो गये.

महीने भर बाद हम दोनो ने एक सादे स्मरोह मे मंदिर मे जाकर शादी करली. मैने ट्रान्स्फर के लिए अप्लाइ किया जो की जल्दी ही आगेया. नये जगह जाय्न करने के बाद मैने शादी का अननौंसेमेट किया. तबतक मैं ऑलरेडी 3 मंत्स प्रेग्नेंट थी. रचना ने भी मेरे साथ ही सेम जगह ट्रान्स्फर के लिए अप्लाइ किया जो कि मंजूर होगया. राज शर्मा ने एक छोटी मोटी सी नर्सरी खोल ली.

मेरे साथ मेरी प्यारी सहेली रचना का भी ट्रान्स्फर उसी जगह हो गया था जो कि हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात थी. राज ने नयी जगह पर एक नर्सरी खोल ली. जो कि उसकी महनत से अच्छा चल बैठा. मेरी पहली प्रेग्नेन्सी जो कि शादी से पहले ही हो गयी थी मिसकॅरियेज हो गया. हम दोनो बच्चों के मामले मे कोई भी जल्दी बाजी नहीं करना चाहते थे. इसलिए हम ने शादी के बाद काफ़ी सुरक्षा के साथ ही संभोग किया. रचना और राज शर्मा मे काफ़ी चुहल बाजी चलती रहती थी. जिसमे मुझे मज़ा आता था.
 
कुछ दिनो बाद रचना की शादी वहीं पास के एक फॉरेस्ट ऑफीसर अरुण से हो गयी. रचना यू.पी. से बिलॉंग करती थी. अरुण बहुत ही हँसमुख और रंगीन मिज़ाज आदमी था. उसकी पोस्टिंग हमारे हॉस्पिटल से 80 किमी दूर एक जंगल मे थी. शुरू शुरू मे तो हर दूसरे दिन भाग आता था. कुछ दिनों बाद हफ्ते मे दो दिन के लिए आने लगा. हम चारों आपस मे काफ़ी खुले हुए थे. अक्सर आपस मे रंगीले जोक्स और द्वियार्थी संवाद करते रहते थे. उसकी नज़र शुरू से ही मुझ पर थी. मगर ना तो मैने उसे कभी लिफ्ट दिया ना ही उसे ज़्यादा आगे बढ़ने का मौका मिला. होली के समय ज़रूर मौका देख कर रंग लगाने के बहाने मुझसे लिपट गया था और मेरे कुर्ते मे हाथ डाल कर मेरी चुचियों को कस कर मसल दिया था. इससे पहले कि वो और आगे बढ़ता मैं उसके चंगुल से निकल कर भाग गयी थी. उसकी इस हरकत पर किसी की नज़र नहीं पड़ी थी इसलिए मैने भी चुप रहना बेहतर समझा. वरना बेवजह हम सहेलियों मे दरार पड़ जाती. मैं उससे ज़रूर अब कुछ कतराने लगी थी. मगर वो मेरे निकट ता के लिए मौका खोजता रहता था.

क्रमशः........................
 
राधा का राज --4

गतान्क से आगे....................

रचना को शादी के साल भर बाद ही मयके जाना पड़ गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी. अब अरुण कम ही आता था. आकर भी उसी दिन ही वापस लौट जाता था. अचानक एक दिन दोपहर को पहुँच गया. उसके पास एक सूमो थी जो इस तरह के जंगल और उबड़खाबाड़ सड़को के लिए एक वरदान है.उसके साथ मे एक और उसका साथी था जिसका नाम उसने मुकुल बताया. उनका कोई आदमी पेड से गिर पड़ा था. बक्कबोन मे इंजुरी थी. उस जॉगल से हॉस्पिटल का रास्ता खराब था इसलिए उसे लेकर नहीं आपाये.

उन्हों ने मुझसे हेल्प माँगी. मेरे पास उनके साथ जाने के अलावा कोई चारा भी नही था. हालत काफ़ी नाज़ुक थी इसलिए वो मुझे साथ ले जाने के लिए ही आए थे. मैने झटपट हॉस्पिटल मे इनफॉर्म किया और राज को बता कर अपना समान ले कर निकल गयी. निकलते निकलते दो बज गये थे. 80 किमी का फासला कवर करते करते हमे ढाई घंटे लग गये. रास्ता काफ़ी खराब था. बरसात के दिनो मे वैसे ही असम जैसी जगह बरसात की अधिकता से रास्तों की हालत बुरी हो जाती है.

हम तीनो सूमो मे आगे की सीट पर बैठे थे. दोनो के बीच मे मैं फँसी हुई थी. रास्ता बहुत उबर खाबड़ था. हिचकोले लग रहे थे. हम एक दूसरे से भिड़ रहे थे. मैं बीच मे बैठी थी इसलिए कभी अरुण के उपर गिरती तो कभी मुकुल के ऊपर. मौका देख कर अरुण बीच बीच मे मेरे एक स्तन को कोहनी से दाब देता. कभी जांघों पर हाथ रख देता था. मुझे तब लगा कि मैने सामने बैठ कर ग़लती की थी. एक बार तो मेरी दोनो जांघों के बीच भींच अपना हाथ रख कर मसल दिया. मैने शर्म से उनके हाथ को वहाँ से हटाने के अलावा कोई हरकत नही की. मुकुल हम दोनो के बीच इस तरह के खेल को गोर से देख रहा था. मैने महसूस किया कि वो भी मुझ से सॅट गया है और दोनो ने मुझे सॅंडविच की तरह अपने बीच जाकड़ रखा है.

हम शाम तक वहाँ पहुँच गये. मरीज को चेक अप करने मे शाम के सिक्स ओ'क्लॉक हो गये. वहाँ मौजूद लकड़ी और खपच्चियों से उसके ट्रॅक्षन का इंतज़ाम किया था. कुछ सेडेटिव्स और पेन किलर्स देकर उनको बताया कि उसे बिल्कुल भी हिलने ना दें. जख्म गहरा नही है. बस लिगमेट मे कुछ टूटफूट थी जो कुछ दिन के रेस्ट से ठीक हो जाएगा.

यहाँ शाम कुछ जल्दी हो जाती है. नवेंबर का महीना था मौसम बहुत रोमॅंटिक था. मगर धीरे धीरे बदल घिरने लगे थे मैं जल्दी अपना काम निपटा कर रात तक घर लौट जाना चाहती थी. "इतनी जल्दी क्या है? आज रात यहीं रुक जाओ मेरे झोपडे मे." अरुण ने कहा,"घबराओ मत राज की याद नही आने दूँगा." मगर मेरे गुस्से मे भर कर देखने पर वो चुप हो गया.

"जीजू अपने गंदे विचारों को समहालो. रचना ने तुम्हे इस तरह बातें करते सुना तो सिर पर एक भी बाल नही छोड़ेगी. चलो मुझे घर छोड़ आओ."मैने कहा

"चल रे मुकुल, मेडम को घर छोड़ आएँ. मेडम इस जंगल मे रहने को तैयार नहीं हैं."

हम वापस सूमो मे वैसे ही बैठ गये जिस तरह पहले बैठे थे. मैं दोनो के बीच फँसी हुई थी. मैं पीछे बैठने लगी थी कि अरुण ने रोक दिया.

"कहाँ पीछे बैठ रही हो. सामने आ जाओ. बातें करते हुए रास्ता गुजर जाएगा. और कोई हसीन साथी हो तो सफ़र का पता ही नही चलता है"

"लेकिन तुम अपनी हरकतों पर काबू रखोगे वरना मैं रचना से बोल दूँगी." मैने उसे चेताया.

"अरे उस हिट्लर को कुछ उल्टा सीधा मत बताना नहीं तो वो मेरी अच्छी ख़ासी रॅगिंग ले लेगी."

मैं उसकी बात सुन कर हँसने लगी. और सूमो मे चढ़ कर उनके बगल मे बैठ गयी. वो जान बूझ कर मेरी तरफ खिसक कर बैठा था जिससे मुझे बैठने के लिए जगह कम मिले और मजबूरन उनसे सॅट कर बैठना पड़े. उसने अपना हाथ उठा कर मेरे कंधे पर रख दिया. मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों से फँस गयी. हमारी रिटर्न जर्नी शुरू हो गयी.

अचानक मूसलाधार बेरिश शुरू हो गयी. जंगल के अंधेरे रस्तो मे ऐसी बरसात मे गाड़ी चलाना भी एक मुश्किल काम था. चारों ओर सुनसान था सिर्फ़ हवा की साआ साअ और जानवरों की आवाज़ों के अलावा

कही कोई आवाज़ नही थी.

अचानक गाड़ी जंगल के बीच मे झटके खाकर रुक गयी. अरुण टॉर्च लेकर नीचे उतरा. उसने बुनट उठा कर कुछ देर गाड़ी चेक किया मगर कोई खराबी पकड़ मे नहीं आई. कुछ देर बाद वापस आ गया.वो पूरी तरह भीग चुका था. उसने अपने गीले शर्ट को उतार कर पीछे फेंक दिया और हतासा मे हाथ हिलाए.

"कुछ नहीं हो सकता." उसने कहा"चलो नीचे उतर कर धक्का लगाओ. हो सकता है कि गाड़ी चल जाए."

"मगर….बरसात… "मैं बाहर देख कर कुछ हिचकिचाई.

"नहीं तो जब तक बरसात ना रुके तब तक इंतेज़ार करो"उसने कहा"अब इस बरसात का भी क्या भरोसा. हो सकता है सारी रात बरसता रहे. इसीलिए ही तो तुम्हें रात को वहाँ रुकने को कहा था."
 
मैं नीचे उतर गयी. बरसात की परवाह ना कर मैं और मुकुल दोनो काफ़ी देर तक धक्के मारते रहे मगर गाड़ी नहीं चली. हम थक कर वापस आ गये. रात के आठ बज रहे थे. मैं पूरी तरह गीली हो गयी थी. मैं वापस आकर पीछे की सीट पर बैठ गयी. अरुण ने अंदर की लाइट ऑन की. फिर पीछे की सीट के नीचे से एक एमर्जेन्सी लाइट निकाल कर जलाया. गाड़ी के अंदर काफ़ी रोशनी हो गयी.

"अब?..."मैने रुआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा.

अरुण बॅक मिरर से मेरे बदन का अवलोकन कर रहा था. चुचियों से सारी सरक गयी थी. सफेद ब्लाउस और ब्रा बरसात मे भीग कर पारदर्शी हो गये थे. ब्लाउस के उपर से मेरे निपल्स दो काले धब्बों के रूप मे नज़र आ रहे थे. उपर से सारी का आँचल हट जाने से निपल्स सॉफ सॉफ नज़र आरहे थे. मैने उसकी नज़रों का पीछा किया और अपनी अर्धनग्न छाती को घूरता पकड़ जल्दी से अपनी चुचियों को सारी से छिपा लिया. उसने भी लाइट बंद कर दी. अंदर का महॉल कुछ गर्म होने लगा था. अरुण बार बार अपनी सीट पर कसमसा रहा था. उसकी हालत देख कर पता चल रहा था कि इस वीरान जगह और इतने सेक्सी मौसम मे उसकी नीयत डोलने लगी थी.

"अब यहीं रुकना पड़ेगा रात भर. या अगर कोई और वाहन इस रास्ते से जाता हुआ मिल जाए वैसे उम्मीद कम है. क्योंकि इस रास्ते पर दिन मे ही कभी इक्का दुक्का गाड़ी गुजरती है."

मैं चुपचाप बैठी रही. रात अंधेरे मे दो गैर मर्दों का साथ…… दिल को डूबने के लिए काफ़ी था.

कुछ देर बाद बरसात बंद हो गयी मगर ठंडी हवा चलने लगी. बाहर कभी कभी जानवरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी. बरसात रुकने के बाद अरुण और मुकुल जीप की हेडलाइट्स ओन करके गाड़ी से निकल गये. उन्हों ने अपने अपने वस्त्र उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए. दोनो सिर्फ़ अंडरवेर मे थे. हेड लाइट्स की रोशनी मे दोनो की मोटे मोटे लंड गीले अंडरवेर के अंदर से ही सॉफ नज़र आ रहे थे. अरुण का लंड तो खड़ा हो गया था. उसका मुँह आसमान की ओर थॉ ऑर उसका अंडरवेर फाड़ कर बाहर निकलने के लिए च्चटपटा रहा था. मुझे उन दोनो के विशाल अस्त्र देख कर झुरजुरी सी लगने लगी.

मैं ठंड से काँप रही थी. शरम की वजह से गीले कपड़े भी उतार नहीं पा रही थी.अरुण मेरे पास आया "देखो राधा घुप अंधेरा है. तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो." अरुण ने कहा."वरना ठंड लग जाएगी. हम बाहर बैठे रहेंगे तुम्हे घबराने की कोई ज़रूरत नही है."

मैं कुछ देर तो असमंजस मे चुप रही फिर दिल को सख़्त करके मैने उसकी बात को मानना ही उचित समझा.

"कुछ है पहन ने को?" मैने पूछा, "कुछ तो पहनने को दो..". मैं उससे कहते हुए शरम से दोहरी हो गयी.

"नहीं!" अरुण ने कहा "हमारे पहने कपड़े भी तो भीग चुके हैं. पहले से थोड़े ही मालूम था कि इस तरह हमे रात जंगल मे गुजारनी पड़ेगी. और उपर से कपड़े भी गीले हो जाएँगे. वैसे यहाँ काफ़ी रीच्छ और भालू मिलते हैं. रीच्छ बहुत सेक्सी जानवर होते हैं. सनडर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं और जम कर उनके साथ संभोग करते है."

"मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है. यहाँ खड़े खड़े मुझे सताना छोड़ कर कुछ इंतज़ाम तो करो."मैने पूछा, "कुछ तो देखो नही तो मैं ठंड से मर जाउन्गि" मेरे दाँत बज रहे थे.

"पिक्निक पे गये थे क्या. जो कपड़े बिस्तर सब लेकर चलते." अरुण मज़ाक कर रहा था और बार बार गाड़ी के अंदर जल रही हल्की रोशनी मे मेरे मादक बदन को निहार रहा था. गीले वस्त्रों मे अपने कामुक बदन की नुमाइश करने से बचने की मैं भरसक कोशिश कर रही थी. लेकिन एक अंग च्चिपाती तो दूसरा अंग बेपर्दा हो जाता.

"सर, एक पुरानी फटी हुई चदडार है पीछे. अगर उस से काम चल जाए.." मुकुल ने कहा."दिखा डॉक्टरणी को." अरुण ने कहा. मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी. चादर से धूल की महक आ र्है थी लेकिन मुझे इस वक़्त तो वो डूबते को तिनके का सहारा लग रहा था.
 
"चलो तुम अपने कपड़े उतार कर इसे ओढ़ लो. हम बाहर जाते हैं." कह कर अरुण और मुकुल गाड़ी से बाहर निकल गये. गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते ही लाइट बंद हो गयी. दो मर्दों के सामने वस्त्र उतरने के ख़याल से ही शर्म अराही थी. मगर करने को कुछ नहीं था ठंड के मारे दाँत बज रहे तेओर बदन के सारे रोएँ ठंड के मारे एक दम काँटों की तरह तन गये थे.

ऐसा लग रहा था मैं बर्फ की सिल्लिओ से घिरी हुई बैठी हूँ. मैने झिझकते हुए सबसे पहले अपनी सारी को बदन से उतार दी. मगर उस से भी कोई राहत नहीं मिली तो मैंन ईक बार चारों ओर देखा. अंधेरा घना था कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. मैने अपने बाकी वस्त्र भी उतार देने का मन बनाया.

मैने एक एक कर के ब्लाउस के सारे बटन खोल दिए. ब्लाउस को बदन से अलग करने से पहले मैने वापस चारों ओर नज़र दौड़ाई. कुछ भी नहीं दिख रहा था फिर मैने ब्लाउस को बदन से उतार दिया. उसके बाद मैने अपने पेटिकोट को भी उतार दिया. मैं अब सिर्फ़ ब्रा और पॅंटी मे थी. मैने उस अवस्था मे ही चादर को अपने बदन पर लपेट लिया. लेकिन कुछ ही देर मे गीली ब्रा और पॅंटी मेरे बदन को ठंडा करने लगे तो मैने उन्हे भी उतार देने का इरादा किया. मैने अपने हाथ पीछे ले जाकर अपने ब्रा को भी बदन से अलग कर दिया. और उस चादर से वापस बदन पर लपेट लिया. पॅंटी को बदन पर ही रहने दिया. गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर मैने उन्हे निचोड़ कर सुखाने का सोचा मगर दरवाज़ा खोलते ही बत्ती जल गयी. मेरे बदन पर केवल एक जगह जगह से फटी हुई चादर के अलावा एक तीन अंगुल की छोटी सी पॅंटी थी. उन फटे हिस्सों से आधा बदन सॉफ नज़र अरहा था. मेरा राइट स्तन पर से चादर हटा हुआ था. मैने देखा अरुण भोचक्का सा एकटक मेरी नग्न छाती को घूर रहा है. मैने झट चादर को ठीक किया.

चादर कई जगह से फटी हुई थी इसलिए एक अंग धकति तो दोसरा बाहर निकल आता. इस कोशिश मे कई बार मैं टॉपलेस भी हो गयी. दोनो मेरे निवस्त्र योवन को निहार रहे थे. आख़िर मैने हारकर दरवाजा वापस बंद कर लिया. गाड़ी के अंदर की बत्ती बंद हो गयी तो कुछ राहत आई.

"अरुण प्लीज़ मेरे कपड़ों को सूखने देदो." मैने खिड़की खोल कर अपने गीले कपड़े बाहर निकाले और कहा. अरुण ने मेरे हाथों से कपड़े ले लिए और उन्हे निचोड़ कर एक पत्थर के उपर सूखने को डालने लगा. वो कपड़ों से धीरे धीरे इस तरह खेल रहा था मानो वो कपड़ों को नही मेरे बदन को ही मसल रहा हो. सारी, पेटिकोट और ब्लाउस फैला देने के बाद हाथ मे अब सिर्फ़ मेरी ब्रा बची थी. उसे हाथ मे लेकर एक बार गाड़ी की तरफ देखा. चारों ओर अंधेरा देख कर उसने सोचा की उसकी हरकतें मुझे नही दिख रही होंगी लेकिन हल्की हल्की रोशनी उसके हरकतों को समझने के लिए काफ़ी थी. मैने देखा की उसने ब्रा को अपनी नाक पर लगा कर कुछ देर तक लंबी लंबी साँसें लेकर मेरे बदन की खुश्बू को अपने दिल मे समा लेने की कोशिश की. फिर उसने मेरे ब्रा के दोनो कप्स को अपने होंठों से लगा कर पहले तो चूमा फिर अपनी जीभ निकाल कर उन पर फिराई. शर्म से मेरा चेहरा लाल हो गया होगा क्यों कि मुझे इतनी बेशर्मी कभी नही झेलनी पड़ी थी. फिर उसने उस ब्रा को भी सूखने डाल दिया.

मेरे बदन पर अब केवल गीली पॅंटी थी जिसको की मैं अलग नहीं करना चाहती थी. ठंड अब भी लग रही थी मगर क्या किया जा सकता था.
 
कुछ देर बाद दोनो भी ठंड से बचने के लिए गाड़ी मे आ गये. जैसा की मैने पहले ही कहा कि दोनो के बदन पर भी बस एक एक पॅंटी थी. उनके निवस्त्र बदन को मैने भी गहरी नज़रों से देखने लगी.

"यार, मुकुल ठंड से तो रात भर मे बर्फ की तरह जम जाएँगे. कॅबिनेट मे रम की एक बॉटल रखी है उसको निकाल." अरुण ने कहा.मुकुल ने कॅबिनेट से एक बॉटल निकाली. लाइट जला कर मुकुल डॅश बोर्ड के अंदर कुछ ढूँढने लगा.

"सर, ग्लास नहीं है." उसने कहा.

"कोई बात नही." अरुण ने रोशनी मे बॉटल को उँचा किया आधी बॉटल भरी हुई थी. उसने अपने पैरों के पास से एक पानी की बॉटल निकाल कर रम की बॉटल को पूरा भर लिया. अरुण ने बॉटल लेकर मुँह से लगाया और दो घूँट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया.

"एम्म अब मज़ा आया.."

मुकुल ने भी एक घूँट लिया. और वापस बॉटल अरुण को देदी.

" राधा तू भी दो घूँट लेले सारी सर्दी निकल जाएगी." अरुण ने कहा.

" अरूण पागल तो नही हो गये. तुमको मालूम है मैं दारू नहीं पीती" मैने मना कर दिया. मगर कुछ ही देर में मुझे अपने फ़ैसले पर गुस्सा आने लगा. लेकिन उस वक़्त दो आदमख़ोरों के बीच मे मैं इस तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. कहीं ऐसा ना हो कि मेरा

अपने उपर से कंट्रोल हट जाए. मगर ठंडक ने मेरी मति मार दी. मैं दोनो को पीते हुए देख रही थी. और ठंड से सिकुड़ी हुई बैठी काँप रही थी.

उन्होंने फिर मुझ से पूछा. इस बार मेरे ना मे दम नहीं था. अरुण ने बॉटल मुझे पकड़ा दी.

"अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा. एक डॉक्टर के मुँह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगती." अरुण ने कहा.

क्रमशः........................
 
राधा की कहानी--5

गतान्क से आगे....................

मैने काँपते हाथों से बॉटल लिया. और मुँह से लगाकर एक घूँट लिया. ऐसा लगा मानो तेज़ाब मेरे मुँह और गले को जलाता हुआ पेट मे जा रहा है. मुझे फॉरन ज़ोर की उबकाई आ गई. मैने बड़ी मुश्किल से मुँह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका. पुर मुँह का स्वाद कसैला हो गया था. काफ़ी देर तक मेरा चेहरा विकृत सा रहा कुछ देर बाद जब कुछ नॉर्मल हुई तो अरुण ने वापस बॉटल मेरी ओर किया.

"लो एक और घूँट लो." अरुण ने कहा.

"नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो." मैने कहा.मगर कुछ देर बाद मैने हाथ बढ़ा कर बॉटल ले ली और एक और घूँट लिया. इस बार उतनी बुरी नहीं लगी.

"बस और नहीं." मैने बॉटल वापस कर दिया. बॉटल को वापस अरुण को लोटा ते वक़्त चादर मेरी एक चूची से हट गया था. मुझे इसका पता ही नही चल पाया. मेरा सर घूम रहा था. सीने मे अजीब सी हुलचल हो रही थी. बदन गरम होने लगा था. ऐसा लग रहा था कि बदन पर ओढ़े उस चादर को उतार फेंकू. अपने आप को बहुत हल्का फूलका महसूस कर रही थी. अपने ऊपर से कंट्रोल ख़तम होने लगा. शरीर काफ़ी गरम हो चला था. नीचे दोनो टाँगों के बीच हल्की सी सुरसुरी महसूस हो रही थी. दिमाग़ चेतावनी दे रहा था मगर शरीर पर से उसका कंट्रोल ख़त्म होता जा रहा था. बाहर हवा की साय साय महॉल को और ज़्यादा मादक बना रही थी.

अरुण ने अंदर की छोटी सी लाइट ओन कर दी थी. वो अपने हाथ मे बॉटल लेकर सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आ गया.

"तुम्हे तो पसीना आ रहा है. गर्मी कुछ ज़्यादा है." कहते हुए उसने मेरे गले को अपने हाथों से च्छुआ. मैं सिमट ते हुए दूसरी ओर सरक गयी मगर वो मेरी ओर सरक कर वापस मेरे बदन से सॅट गये.

"देखो अरुण ये सब ठीक नहीं है. तुम सामने की सीट पर जाओ." मैने कहा.

" मैं तुम्हारे साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती तो कर नही रहा हूँ. मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ." उसने वापस अपनी उंगलियों से मेरे होंठ के उपर च्छुआ और आगे कहा," देखो रूम पीने से तुमहरा बदन राहत महसूस कर रहा है. नही तो सुबह तक तो तुम ठंड से अकड़ जाती. लो एक घूँट और ले लो इस बॉटल से. रात अच्छी गुजर जाएगी."

"नहीं मुझे नहीं चाहिए." मैने इसके हाथ को सामने से हटा दिया.

उसने बॉटल से एक घूँट भरा और बॉटल सामने बैठे मुकुल को थमा दी. फिर मेरी ओर घूम कर उन्हों ने अपने बाँह फैला कर मुझे आग्पाश मे लेना चाहा. मैं उनको धक्का देती रह गयी मगर उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे समा लिया. मेरे स्तन गर्मी से तन गये थे वो उसकी छाती मे दब गये. मैं उसको अपने हाथों से धक्का दे कर दूर करने की कोशिश करती रह गयी. लेकिन कुछ तो मेरे कोशिश मे इच्च्छा का अभाव और कुछ उसके बदन मे तीवरा जोश का संचार कि मैं उनको अपने बदन से एक इंच भी नही हिला पाई. उल्टे उनका सीना और सख्ती से मेरे स्तनो को पीसने लगा.

उसके गरम होंठ मेरे होंठों से चिपक गये. मैने अपने सिर को हिलाकर उसके होंठो से दूर होने की कोशिश की.

"म्‍म्म्मम…नहियीई… ..नहियीई… .आआरूओं नही……ये सब न..नाही…" मैने उसके चेहरे को दूर करने की कोशिश की मगर नाकाम होने पर मैने उसके बालो को अपनी मुट्ठी मे भर कर अपने से दूर धकेला. उसके सिर के कुछ बाल टूट कर मेरी मुट्ठी मे रह गये मगर उसका सिर नही हिला. उसने मेरे गले पर अपने तपते होंठ रख दिए. सामने मुकुल रम की बॉटल बार बार अपने होंठों से छुआता हुआ. पीछे की सीट पर

चल रही ज़ोर आज़मैंश को देखते हुए मुस्कुरा रहा था.

मैने उसे धकेलने की कोशिश की मगर वो मेरे बदन से और ज़ोर से चिपक गया. उसने मेरे बदन से लिपटे चादर के अंदर अपने हाथों को डालने की कोशिश की मगर उसके हाथ चादर का छोर ढूँढ नही पा

रहे थे. उसने झुंझला कर चादर के बाहर से ही मेरे स्तनो को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया. किसी पदाए मर्द की नज़द्दीकियाँ, शराब का सुरूर, रात का अंधेरा और वातावरण की मदहोशी सब मिल कर मेरे

दिमाग़ को शिथिल करते जा रहे थे. धीरे धीरे मैं कमजोर पड़ती जा रही थी. उसने एक झटके मे मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया.

"मुकुल ले इसे सम्हाल." अरुण ने चादर आगे की सीट पर उच्छाल दिया जिसे मुकुल ने समहाल लिया. मेरे बदन पर अब सिर्फ़ एक पॅंटी की अलावा कुछ भी नहीं था. मैं अपने हाथो से अपने नग्न बदन को च्चिपाने की कोशिश कर रही थी. मगर बूब्स के साइज़ बड़े होने की वजह से उन्हे सम्हालने मे असमर्थ थी. अरुण ने मेरे नग्न बदन को अपने सीने पर खींच लिया. दोनो के नग्न बदन आपस मे कस कर लिपट गये. मुझे लगा मानो मेरे सीने की सारी हवा निकल गयी हो. मैं कस मसा रही थी. लेकिन अपने खड़े निपल्स को और अपने कड़े बूब्स को उसके चौड़े सीने पर रगड़ने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी. उसे तो मेरे इस तरह च्चटपटाने मे और भी मज़ा आ रहा था.

मैने अरुण को धकेलते हुए कहा"प्लीज़… . छोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउन्गि"

मगर मैं उसकी पकड़ से छ्छूट नही पा रही थी," अरुउउऊँ क्या कर रहे हूओ. प्लीईस….प्लीईएसस… ..रचना को पता चल गया तो गजब हो जाएगा…..छोड़… .छोड़ो मुझे…" मैने उँची आवाज़ मे कहना शुरू किया.

"मचाओ शोर. जितना चाहे चीखो यहाँ मीलों तक सिर्फ़ पेड, पत्थर और जानवरों के सिवा तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है."मुकुल पीछे घूम कर हमारी रासलीला देखने लगा. अरुण के हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे. उसके नग्न बदन से मेरा बदन चिपका हुआ था. मैने काफ़ी बचने की कोशिश की अपनी सहेली की दुहाई भी दी मगर अरुण तो मानो पूरा राक्षश बन चुका था.उस पर मेरा गिड़गिडना, रोना और च्चटपटाना कोई असर नही डाल रहा था.
 
मेरा विरोध भी धीरे धीरे मंद पड़ता जा रहा था. उसने मेरे उरोज थाम लिए और निपल्स अपने मुँह मे ले कर चूसने लगा. उसने एक हाथ से अपने बदन से आखरी वस्त्र भी उतार दिया और मेरे हाथ को पकड़ कर अपने तपते लंड पर रख दिया. मैने हटाने की कोशिश की मगर उसके हाथ मजबूती से मेरे हाथ को लंड पर थाम रखे थे. मुझे राज शर्मा के अलावा किसी और के लंड को अपने हाथों मे लेकर सहलाना अजीब लग रहा था मगर मेरे शरीर मे अब उसका विरोध करने की ना तो ताक़त और ना ही इच्च्छा बची थी. शराब अपना असर दिखाने लगी. मेरा बदन भी गरम होने लगा. कुछ देर बाद मैने अपने को ढीला छोड़ दिया. मैं समझ गयी कि आज इस वीराने मे दोनो मुझ से संभोग किए बिना मुझे छोड़ेंगे नही. मैं जितना विरोध करती संभोग उतना ही दर्दीला होता और पता नही इस वीरने मे दोनो अपनी हवस मिटाने के बाद अपने पाप च्चिपाने के लिए मुझ पर हमला भी कर सकते थे. मैने अपना विरोध पूरी तरह समाप्त कर दिया.

उसके हाथ मेरे स्तनो को मसल्ने लगे. उसके होंठ मेरे होंठों से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुँह के अंदर घूम रही थी.मुकुल से अब नहीं रहा गया और वो दूसरी साइड का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया. उसने पहले सीट के लीवर को खोल कर बॅक रेस्ट को गिरा कर दिया. पीछे की सीट खुल कर एक आरामदेह बिस्तर का रूप ले ली थी. गड़ी के अंदर जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफ़ी था.दोनो एक साथ मेरे बदन पर टूट परे. मैं उनके बीच फँसी हुई थी. दोनो ने मेरे एक एक उरोज थाम लिए. उनके साथ दोनो बुरी तरह पेश आरहे थे. मसल मसल कर मेरे दोनो स्तनो को लाल कर दिए थे. कभी चूस रहे थे कभी काट रहे थे तो कभी चाट रहे थे. मेरे दोनो स्तन उनकी हरकतों से दुखने लगे थे.

मेरे दोनो हाथों मे एक एक लंड था. दोनो लुंडों को मैं अपनी मुट्ठी मे भर कर सहला रही थी. मेरी पॅंटी पहले से ही गीली थी वरना मेरे काम रस से गीली हो जाती. मेरी योनि से बुरी तरह काम रस चू रहा था. मेरी योनि मर्द के लंड के लिए तड़प रही थी. मैं उनकी हरकतों से खूब गरम हो चुकी थी.

दोनो अपने एक-एक हाथ से मेरी योनि को पॅंटी के उपर से सहला रहे थे. कभी कभी दोनो के हाथ मेरे नितंबों को मसल्ने लगते. मैं अपनी जांघों को एक दूसरे पर सख्ती से जाकड़ कर उनके काम मे बाधा डालने की कोशिश कर रही थी. मगर दोनो के आगे मेरी एक नही चल रही थी. उल्टे मैं इस तरह से और उत्तेजित हो गयी और एक झटके से मैने अपनी योनि को सीट पर से उठा कर उनके हाथों को और अंदर जाने का मूक आग्रह किया. इसी के साथ मेरे बदन से मेरा सारा विरोध तरल रूप ले कर बह निकला. मेरा स्खलन हो गया था. मैं अपने इस हरकत को उनकी नज़रों से नही छिपा पाई और शर्म से पानी पानी हो गयी थी.

"देख…..देख मुकुल कैसे ना..ना…कर रही थी. अब देख कैसे हमारे लंड लेने के लिए तड़प रही है." मुकुल उसकी बात पर ज़ोर से हंस पड़ा मैं शर्म से सिकुड गयी.दोनो ने मेरी पॅंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया. उसी के साथ दो जोड़ी उंगलियाँ मेरी योनि मे प्रवेश कर गयी.

"आआहहूऊओह……क्य्ाआअ…..काार रहीए हूऊओ" मेरे मुँह से वासना भारी सिसकारियाँ निकल रही थी.अरुण ने मुझे किसी गुड़िया की तारह उठा कर अपनी गोद मे बिठा लिया. उसने मेरे दोनो पैरों को फैला कर अपने कमर के दोनो ओर रखा. फिर उसने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. मेरे बड़े-बड़े उरोज उसके सीने मे पिसे जा रहे थे. वो मेरे होंठों को चूम रहा था. उस वक़्त मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फिसल रहे थे. अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसे फिरा रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो. पूरे बदन मे झूर झूरी सी दौड़ रही थी.मैं दोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी. अरुण का लंड मेरी योनि को उपर से सहला रहा था. मैं खुद उसकी गोद मे आगे पीछे होकर उसके लंड को अपनी योनि से रगड़ रही थी. अब मेरी रही सही झिझक भी ख़त्म हो गयी थी. मैं अपने हाथ से अरुण के लंड के टोपे कोआपनी योनि के द्वार पर सटा कर अंदर डालने की कोशिश करने लगी. लेकिन आंगल कुछ ऐसा था कि वो अंदर नही जा पा रहा था. अरुण और मुकुल मेरी हरकतों पर हंस रहे थे. मुझे ऐसी हालत मे मुझे कोई देखता तो एक वेश्या ही समझता. मेरी डिग्निटी, मेरा रेप्युटेशन,मेरी सिक्षा सब इस आदिम भूख के सामने छोटी पड़ गयी थी. मेरी आँखो मे मेरा प्यार, मेरा हम दम, मेरे पति के चेहरे पर इन दोनो के चेहरे नज़र आ रहे थे. शराब ने मुझे अपने वश मे ले लिया था. सब कुछ घूमता हुआ लग रहा था. मेरा सिर इतनी बुरी तरह घूम रहा था कि मैं इनकी पकड़ मे आराम महसूस कर रही थी. दिमाग़ कह रहा था कि जो हो रहा है वो अच्छा नहीं है मगर मैं किसिको मना करने की स्तिथि मे नहीं थी. मेरा बदन चाह रहा था की दोनो मुझे खूब मसले खूब रब करें खूब रगड़ें. पता नही दोनो ने उस ड्रिंक मे भी कुछ मिला दिया था या नही लेकिन मेरी कामोत्तेजना नॉर्मल से दस गुना बढ़ गयी थी. मैं सेक्स की भूख से तड़प रही थी.

अरुण ने मेरे होंठों को चूस चूस कर सूजा दिया था. फिर उन्हें छोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़ा. अपने दोनो हाथों से मेरे एक-एक उरोज को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुँह मे डाल कर चूस रहा था. ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बॉटल आ गयी हो. दाँतों के निशान पूरे उरोज पर नज़र आ रहे थे. मैं ने अपने हाथों से अरुण का सिर पकड़ रखा था और उसे अपने उरोज पर दबाने लगी.
 
मुकुल उस वक़्त मेरी गर्दन पर और मेरी नितंबों पर अपने दाँत गढ़ा रहा था. मैं मस्त हुई जा रही थी. फिर मुकुल ने मेरे सिर को पकड़ा और अपने लंड पर झुकने लगा. मैं उसका इरादा समझ कर कुछ देर तक मुँह को इधर उधर घुमाती रही. मगर उसके आगे मेरी एक नही चल पा रही थी. वो मेरे खूबसूरत होंठों पर अपना काला लंड फेरने लगा. मुझे उसके लंड से पेशाब की बदबू आ रही थी जिससे मेरा जी मचलने लगा. लंड के आगे के टोपे की मोटाई देख कर मैं काँप गयी. लंड से चिपचिपा प्रदार्थ निकल कर मेरे होंठों पर लग रहा था. लेकिन मैने अपना मुँह नही खोला. मुकुल ने काफ़ी कोशिश की मेरे मुँह को खोलने की मगर मैने उसकी एक ना चलने दी.

कुछ देर बाद अरुण ने मुझे गोद से उठा कर कोहनी और घुटनों के बल पर चौपाया बनाकर पीछे से मेरी योनि को च्छेदने लगा. योनि की फाँकें अलग कर अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर करने लगा. उसने मेरी योनि से अपनी उंगलियाँ निकाल कर एक उंगली को खुद चाता और दूसरी उंगली मुकुल को चाटने दिया.

" ले देख चाट कर अगर इससे अमृत का स्वाद ना आए तो कहना." अरुण ने कहा.

"एम्म्म बॉस मज़ा आ गया… बड़ी नसीली चीज़ है. आज तक इतना मज़ा कभी नही आया."

मुकुल मेरे सिर को वापस अपने लंड पर दबा रहा था. मुझे मुँह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल्ने लगा. मेरे निपल्स इतनी बुरी तरह मसल रहा था और खींच रहा था मानो उसे आज मेरे बदन से ही उखाड़ फेंकने का मन हो. मैं जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोली उसका मोटा लंड जीभ को रास्ते से हटाता हुआ गले तक जाकर फँस गया.

मेरा दम घुटने लगा था. मैने सिर को बाहर खींचने के लिए ज़ोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुछ ढीला कर दिया. लंड आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सिर को दाब दिया. और इस तरह वो मेरे मुँह को किसी योनि की तरह चोदने लगा.

उधर अरुण मेरी योनि मे अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था. मैं कामोत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले मे मुकुल का लंड फँसा होने के कारण मेरे मुँह से सिर्फ़ "उूउउन्न्ञणनह उम्म्म फफफफफफफम्‍म्म" जैसी आवाज़ें निकल रही थी. मैं उसी अवस्था मे वापस झार गयी.

काफ़ी देर तक चूसने चाटने के बाद अरुण उठा. उसके मुँह, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था. उसने अपने लंड को मेरी योनि के द्वार पर सटा दिया. फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा. खंबे के जैसे अपने मोटे ताजे लंड को पूरी तरह मेरी योनि मे समा दिया. योनि पहले से ही गीली हो रही थी इसलिए कोई ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई. लेकिन उसका लंड काफ़ी मोटा होने से मुझे हल्की से तकलीफ़ हो रही थी. वो अपने लंड को वापस पूरा बाहर निकाला और फिर एक जोरदार धक्के से पूरा समा दिया. फिर तो उसके धक्के लगातार हो चले.

मुकुल मेरा मुख मैंतुन कर रहा था. दोनो के लंड दोनो तरफ से मेरे बदन मे अंदर बाहर हो रहे थे और मैं जीप मे झूला झूल रही थी. मेरे दोनो उरोज़ पके हुए अनार की तरह झूल रही थे. दोनो ने मसल कर काट कर दोनो स्तनो का रंग भी अनारो की तरह लाल कर दिया था.

कुछ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिसचार्ज होने वाला है. ये देख कर मैने लंड को अपने मुँह से निकाल ने का सोचा. मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली. उसने मेरे सिर को प्युरे ताक़त से अपने लंड पर दबा दिया. मूसल जैसा लंड गले के अंदर तक घुस गया. उसका लंड अब झटके मारने लगा. फिर ढेर सारा गरम गरम वीर्य उसके लंड से निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे समाने लगा. मेरी आँखें दर्द से उबली पड़ी थी. दम घुट रहा था. काफ़ी सारा वीर्य पिलाने के बाद लंड को मेरे मुँह से निकाला. उसका लंड अब भी झटके खा रहा था. और बूँद बूँद वीर्य अब भी टपक रहा था. मेरे होंठों से उसके लंड तक वीर्य एक रेशम की डोर की तरह चिपका हुआ था. मैं ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही थी. उसके वीर्य के कुछ थक्के मेरी नाक पर और मेरे बालों पर भी गिरे.

अरुण पीछे से ज़ोर ज़ोर से धक्के दे रहा था. और मैं हर धक्के के साथ मुकुल के ढीले पड़े लंड से भिड़ रही थी. इससे मुकुल का ढीला लंड फिर कुछ हरकत मे आने लगा. मैं सिर को उत्तेजना से झटकने लगी "ऊउीई माआ ऊऊहह हूंंम्प्प" जैसी उत्तेजित आवाज़ें निकालने लगी. मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया. मगर उसके रफ़्तार मे कोई कमी नहीं आई थी. मेरी बाहें मेरे बदन को और थामे ना रख सकी. और मेरा सिर मुकुल की गोद मे धँस गया. उसके काम रस से लिसडे ढीले पड़े लंड से मेरा गाल रगड़ खा रहा था. काफ़ी देर तक धक्के मारने के बाद उसके लंड ने अपनी धार से मेरी योनि को लबालब भर दिया. जब तक पूरा वीर्य मेरी योनि मे निकल नही गया तब तक अपने लंड को अंदर ही डाले रखा. धीरे धीरे उसका लंड सिकुड कर मेरी योनि से बाहर निकल आया.

हम तीनो गहरी गहरी साँसें ले रहे थे. खेल तो अभी शुरू ही हुआ था. दोनो ने कुछ देर सुसताने के बाद अपनी जगह बदल ली. अरुण ने अपना लंड मेरे मुख मे डाल दिया तो मुकुल मेरी योनि पे चोट करने लगा. दोनो ने करीब दो घंटे तक मेरी इसी तरह से जगह बदल कर चुदाई की. मैं तो दोनो का स्टॅमिना देख कर हैरान थी. दोनो ने कई बार मेरे मुँह मे , मेरी योनि मे और मेरे बदन पर वीर्य की बरसात की. मैं उनके सीने से चिपके साँसे ले रही थी.

"अब तो छोड़ दो. अब तो तुम दोनो ने अपने मन की मुदाद पूरी कर ली. मुझे अब आराम करने दो. मैं बुरी तरह थक गयी हूँ." मैने कहा.

मगर दोनो मे से कोई भी मेरी मिन्नतें सुनने के मूड मे नहीं लगा. घंटे भर मेरे बदन से खेलने के बाद और अपने लंड को आराम देने के बाद दोनो के लंड मे फिर दम आने लगा. अरुण सीट पर अब लेट गया और मुझे उपर आने का इशारा किया. मैं कुछ कहती उस से पहले मुकुल ने मुझे उठाकर उसके लंड पर बैठा दिया. मैं अपने योनि द्वार को अरुण के खड़े लंड पर टिकाई. अरुण ने अपने लंड को दरवाजे पर लगाया. मैं धीरे धीरे उसके लंड पर बैठ गयी. पूरा लंड अंदर लेने के बाद मैं उसके लंड पर उठने बैठने लगी. तभी दोनो के बीच आँखों ही आँखों मे कोई इशारा हुआ. अरुण ने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. अरुण मेरे नितंबों को फैला कर मेरे पिच्छले द्वार पर उंगली से सहलाने लगा. फिर उंगली को कुछ अंदर तक घुसा दिया. मैं चिहुनक उठी. मैं उसका इरादा समझ कर सिर को इनकार मे हिलाने लगी तो अरुण ने मेरे होंठ अपने होंठों मे दबा लिए. मुकुल ने अपनी उंगली निकाल कर मेरे योनि से बहते हुए रस को अपने लंड और मेरी योनि पर लगा दिया. मैं इन दोनो बलिष्ठ आदमियों के बीच बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी. दोनो मेरे बदन को जैसी मर्ज़ी वैसे मसल रहे थे.

क्रमशाश...........................
 
राधा की कहानी--6

गतान्क से आगे....................

मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर सटा दिया. "नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं" मैने लगभग रोते हुए कहा. मेरी फट जाएगी. प्लीज़ वहाँ मत घुसाओ. मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूँगी मगर मुझे इस तरह मत करो मैं मर जाउन्गि" मैं गिड गीडा रही थी मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. मुकुल अपने काम मे जुटा रहा. मैं हाथ पैर मार रही थी मगर अरुण ने अपने बलिष्ठ बाहों और पैरों से मुझे बिल्कुल बेबस कर दिया था. मुकुलने मेरे नितंबों को फैला कर एक जोरदार धक्का मारा.

"उूुउउइई माआ मर गाईए" मेरी चीख पूरे जंगल मे गूँज गयी. मगर दोनो हंस रहे थे. "सुउुउराअज… .ससुउउराअज मुझे ब्चाआओ….."

"थोड़ा स्बर करो सब ठीक हो जाएगा. सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा." मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की. मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से रोने लगी. दोनो मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगे. मुकुल ने अपने लंड को कुछ देर तक उसी तरह रखा.

कुछ देर बाद मैं जब शांत हुई तो मुकुल ने धीरे धीरे आधे लंड को अंदर कर दिया. मैने और राज ने शादी के बाद से ही खूब सेक्स का खेल खेला था मगर उसकी नियत कभी मेरे गुदा पर खराब नहीं हुई. मगर इन दोनो ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी दर्द के मारे जान निकली जा रही थी. दोनो के जिस्म के बीच सॅंडविच बनी हुई च्चटपटाने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी.

आधा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे उपर लेट गया. उसके शरीर के बोझ से बाकी बचा आधा लंड मेरे अशोल को चीरता हुआ जड़ तक धँस गया. ऐसा लग रहा था मानो किसीने लोहे की गर्म सलाख मेरे गुदा मे डाल दी हो. मैं दोनो के बीच सॅंडविच की तरह लेटी हुई थी. एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे बदन मे ठुका हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो दोनो लंड मेरे बदन के अंदर एक दूसरे को चूम रहे हों. कुछ देर यूँ ही मेरे उपर लेटे रहने के बाद मुकुल ने अपने बदन को हरकत दे दी. अरुण शांत लेटा हुआ था. जैसे ही मुकुल अपने लंड को बाहर खींचता मेरे नितंब उसके लंड के साथ ही खींचे चले जाते थे. इससे अरुण का लंड मेरी योनि से बाहर की ओर सरक जाता और फिर जब दोबारा मुकुल मेरे गुदा मे अपना लंड ठोकता तो अरुण का लंड अपने आप ही मेरी योनि मे अंदर तक घुस जाता . उस छोटी सी जगह मे तीन जिस्म ग्डमड हो रहे थे. हर धक्के के साथ मेरा सिर गाड़ी के बॉडी से भिड़ रहा था. गनीमत थी कि साइड मे कुशन लगे हुए थे वरना मेरे सिर मे गूमड़ निकल आता. मुकुल के मुँह से "हा…हा…हा" जैसी आवाज़ हर धक्के के साथ निकल रही थी. उसके हर धक्के के साथ ही मेरे फेफड़े की सारी हवा निकल जाती और फिर मैं साँस लेने के लिए उसके लंड के बाहर होने का इंतेज़ार करती.मैं दोनो के बीच पिस रही थी. मैं भी मज़े लेने लगी. बीस पचीस मिनट तक मुझे इस तरह चोदने के बाद एक साथ दोनो डिसचार्ज होगये. मेरे भी फिर से उनके साथ ही डिसचार्ज हो गया. इस ठंड मे भी हम पसीने से बुरी तरह भीग गये थे.मेरा पूरा बदन गीला गीला और चिपचिपा हो रहा था. दोनो छेदो से वीर्य टपक रहा था.

तीनों के "आआआअहह ऊऊऊहह" से पूरा जंगल गूँज रहा था.

अरुण तो चोद्ते वक़्त गंदी गंदी गालियाँ निकालता था. हम तीनो बुरी तरह हाँफ रहे थे. मैं काफ़ी देर तक सीट पर अपने पैरों को फैलाए पड़ी रही.

मुझे दोनो ने सहारा देकर उठाया. मेरे जांघों के जोड़ पर आगे पीछे दोनो तरफ ही जलन मची हुई थी. दोनो के बीच मैं उसी हालत मे बैठ गयी. दोनो के साथ सेक्स होने के बाद अब और शर्म की कोई गुंजाइश नही बची थी. दोनो मेरे नग्न बदन को चूम रहे थे और अश्लील भाषा मे बातें करते जा रहे थे. दोनो के लंड सिकुड कर छोटे छोटे हो चुके थे.

कुछ देर बाद मुकुल ने पीछे से एक बॉक्स से कुछ सॅंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे. हम तीनों ने उसी हालत मे आपस मे मिल बाँट कर खाया. पानी के नाम पर तो बस रम की बॉटल ही आधी बची थी. मुझे मना करने पर भी उस बॉटल से दो घूँट लेने परे. दो घूँट पीते ही कुछ देर मे सिर घूमने लगा और बदन काफ़ी हल्का हो गया. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मैं इस दुनिया से बेख़बर थी. तभी दोनो साइड के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मगर मैने अपनी आँखें खोल कर देखने की ज़रूरत भी महसूस नही की. मैं उसी हालत मे अपनी नग्नता से बेख़बर गाड़ी की सीट पर पसरी हुई थी.

कुछ देर बाद वापस गाड़ी का दरवाजा खुला और मेरी बाँह को पकड़ कर किसीने बाहर खींचा. मैने अपनी आँख खोल कर देखा की सड़क के पास घास फूस इकट्ठा करके एक अलाव जला रखा है.

पास ही उस फटी हुई चादर को फैला कर ज़मीन पर बिच्छा रखा था. उस चादर पर अरुण नग्न हालत मे बैठा हुआ शायद मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था. मुकुल मुझे खींच कर अलाव के पास ले जा रहा था. मैं लड़खड़ाते हुए कदमो से उसके साथ खींचती जा रही थी. दो बार तो गिरने को हुई तो मुकुल ने मेरे बदन को सहारा दिया. उसके नग्न बदन की चुअन अपने नंगे बदन पर पा कर मुझे अब तक की पूरी घटना याद आ गयी. मैं उसके पंजों से अपना हाथ छुड़ाना चाहती थी मगर मुझे लगा मानो बदन मे कोई जान ही नही बची है.
 
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