hotaks444
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मैं तो उपर वाले से दुवा कर रही थी कि विशाल जल्दी से फारिग हो जाए.......विशाल की धक्कों की स्पीड अब बढ़ती जा रही थी.......करीब 5 मिनिट तक विशाल मेरी चूत मारता रहा तभी मम्मी की आवाज़ मुझे सुनाई दी और अगले ही पल मेरे जिस्म में डर की एक तेज़ लहर दौड़ पड़ी.......मैं विशाल को पीछे की ओर धकेल्ति तभी उसका कम छूट पड़ा और उसने मुझे और ज़ोरों से भीच लिया और मेरी गान्ड को कसकर अपने दोनो हाथों से पकड़े रहा और ऐसे ही अपना लंड का सारा कम मेरी चूत की गहराई में उतारता रहा..........
मैं ही जानती थी कि उस वक़्त मेरी का हालत हो रही थी.....मम्मी कभी भी किचन में आ स्काती थी....तभी मैं विशाल को पीछे की ओर धकेलने लगी और उसके कानो में धीरे से कहा कि मम्मी आ रही है फिर मैं बिना देर किए अपनी पैंटी और लॅयागी उपर की ओर सरकाने लगी तभी कमरे में मम्मी एंटर हुई और मेरे पीछे खड़े विशाल को देखकर वो उसे घूर घूर कर देखने लगी........
इस वक़्त मेरी हालत बहुत खराब थी......जैसे तैसे मैने अपना कपड़ा सही किया मगर क्या पता विशाल ने अपना लंड पेंट के अंदर किया था या नहीं.......ये सोचकर मेरी हालत डर से और खराब हो चुकी थी वही दूसरी तरफ विशाल का कम मेरी चूत से बाहर की ओर बह रहा था जिससे मेरा वहाँ खड़ा होना भी मुश्किल होता जा रहा था.........मम्मी फिर मेरे बगल में आई तो विशाल ने मुझसे थोड़ी दूर बना रखी थी......इस वक़्त हम दोनो के चेहरे पर पसीने सॉफ दिखाई दे रहे थे........मम्मी कभी मेरे चेहरे की तरफ देख रही थी तो कभी विशाल के चेहरे की तरफ.....
स्वेता- विशाल...... तू यहाँ क्या कर रहा है.......
विशाल- ओह...मम्मी.....बस भूक लगी थी तो सोचा कि खुद ही आकर नाश्ता कर लूँ.......
मम्मी विशाल को बड़े गौर से देख रही थी....उनका इस तरह से देखना मेरे दिल में डर भी बढ़ता जा रहा था.........कहीं मम्मी ने हमे देख तो नहीं लिया..........अगर ऐसा हुआ होगा तो आज हमारी खैर नहीं.......मैं अपने दिल को बार बार समझा रही थी कि कुछ नहीं होगा......मगर मेरे दिल से डर निकालने का नाम ही नहीं ले रहा था......वही दूसरी तरफ मेरी पैंटी पूरी तरह से भीग चुकी थी विशाल के कम से......मेरा अब वहाँ खड़ा होना भी मुश्किल होता जा रहा था.......
स्वेता- तुम जाओ अपने कमरे में विशाल........मैं तुम्हारे लिए नाश्ता ले आती हूँ......विशाल एक नज़र मेरी तरफ देखने लगा मैं बार बार उससे अपनी नज़रें चुरा रही थी........फिर वो मम्मी की तरफ देखकर अपने कमरे में चुप चाप चला गया........विशाल के जाते ही मम्मी मुझे सिर से लेकर पाँव तक घूर्ने लगी......ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे बॉडी को अपनी नज़रो से स्कॅन कर रही हो......एक बार फिर से मेरी डर से धड़कनें बढ़ चुकी थी.......
श्वेता- अदिति तुम्हें कितनी बार कहा है कि तुम अपना दुपट्टा अपने सीने पर लगाए रखा करो.......तुम्हें ज़रा भी समझ नहीं है कि अब तुम जवान हो चुकी हो.......मर्दों की नज़र और उनके नियत का कोई भरोसा नहीं......मैं ये नहीं कहती कि विशाल की नज़र भी ऐसी है........मगर वो है तो एक मर्द ही........तुम समझ रही हो ना मैं क्या कहना चाहती हूँ.......
अदिति- हां मा......आगे से ख्याल रखूँगी.......और फिर मैने फ्रीज़ पर रखा अपना दुपट्टा तुरंत अपने सीने पर लगा लिया......वो तो शुक्र था की मम्मी ने कुछ नहीं देखा था नहीं तो पता नहीं क्या होता.......वैसे मैं मम्मी की बातों से मुस्कुरा पड़ी थी उन्हें क्या पता था कि उनकी बेटी तो अपनी इज़्ज़त अपने भाई के हवाले कर चुकी है.....फिर दुपट्टा लगाकर फ़ॉर्मलीिटीज़ पूरी करने का सवाल ही कहाँ उठता था......फिर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम में गयी और तुरंत अपनी लॅयागी और पैंटी झट से नीचे की तरफ सरका दी........मेरी पैंटी विशाल के कम से पूरी तरह भीग चुकी थी.......
विशाल ने तो अपनी प्यास बुझा ली थी मगर मेरे अंदर की आग को उसने और भड़का दिया था........मेरे अंदर भी आग लगी हुई थी जी तो कर रहा था कि अभी जाकर अपना ये जिस्म विशाल के हवाले कर दूं और उसका लंड अपने चूत में ले लूँ.......मगर ये ना ही मेरे लिए इतना आसान था और ना ही विशाल के लिए........
मैं फिर अपनी उंगली से अपनी चूत की आग को ठंडा करने लगी......इतने दिनों से लंड का स्वाद लग चुका था तो भला उंगली से क्या मज़ा मिलती.....मैं काफ़ी देर तक अपनी चूत को अपनी उंगलिओ से रगड़ती रही मगर मेरे अंदर की प्यास बुझने के बजाए और भड़क रही थी.....थोड़े देर बाद मैं नाहकार बाथरूम से बाहर आई फिर सबके साथ नाश्ता किया....आज पापा भी ऑफीस से छुट्टी ले चुके थे क्यों कि आज घर पर कथा होने वाली थी........
मेरे अंदर की तपीश अब और बढ़ती जा रही थी......उधेर विशाल फिर मेरे कमरे में आया और आकर मेरे पास बैठ गया......
विशाल- दीदी.......एक बात बोलूं........
अदिति- क्या विशाल.....
विशाल- मेरा बहुत मन हो रहा है........एक बार फिर से आपकी चुदाई करने को दिल कर रहा है.......पता नहीं मेरी प्यास भी दिन बा दिन बढ़ती जा रही है......आप हो ही ऐसी मेरा आपसे कभी मन नहीं भरता......
मैं विशाल के चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगी.......मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर विशाल मुझसे कहना क्या चाहता है.......
अदिति- अब नहीं विशाल.....आज बाल बाल बचे है हम दोनो.......अगर ज़रा सी भी देर हो जाती तो मम्मी हमे देख लेती......फिर तुम जानते हो की हमारा क्या हाल होता......
विशाल- मैं आपको यहाँ थोड़ी ही कुछ करने को कह रहा हूँ....चलो आज कहीं बाहर चलते है......किसी गार्डन में या फिर पार्क में........या फिर किसी होटेल में...............
मैं ही जानती थी कि उस वक़्त मेरी का हालत हो रही थी.....मम्मी कभी भी किचन में आ स्काती थी....तभी मैं विशाल को पीछे की ओर धकेलने लगी और उसके कानो में धीरे से कहा कि मम्मी आ रही है फिर मैं बिना देर किए अपनी पैंटी और लॅयागी उपर की ओर सरकाने लगी तभी कमरे में मम्मी एंटर हुई और मेरे पीछे खड़े विशाल को देखकर वो उसे घूर घूर कर देखने लगी........
इस वक़्त मेरी हालत बहुत खराब थी......जैसे तैसे मैने अपना कपड़ा सही किया मगर क्या पता विशाल ने अपना लंड पेंट के अंदर किया था या नहीं.......ये सोचकर मेरी हालत डर से और खराब हो चुकी थी वही दूसरी तरफ विशाल का कम मेरी चूत से बाहर की ओर बह रहा था जिससे मेरा वहाँ खड़ा होना भी मुश्किल होता जा रहा था.........मम्मी फिर मेरे बगल में आई तो विशाल ने मुझसे थोड़ी दूर बना रखी थी......इस वक़्त हम दोनो के चेहरे पर पसीने सॉफ दिखाई दे रहे थे........मम्मी कभी मेरे चेहरे की तरफ देख रही थी तो कभी विशाल के चेहरे की तरफ.....
स्वेता- विशाल...... तू यहाँ क्या कर रहा है.......
विशाल- ओह...मम्मी.....बस भूक लगी थी तो सोचा कि खुद ही आकर नाश्ता कर लूँ.......
मम्मी विशाल को बड़े गौर से देख रही थी....उनका इस तरह से देखना मेरे दिल में डर भी बढ़ता जा रहा था.........कहीं मम्मी ने हमे देख तो नहीं लिया..........अगर ऐसा हुआ होगा तो आज हमारी खैर नहीं.......मैं अपने दिल को बार बार समझा रही थी कि कुछ नहीं होगा......मगर मेरे दिल से डर निकालने का नाम ही नहीं ले रहा था......वही दूसरी तरफ मेरी पैंटी पूरी तरह से भीग चुकी थी विशाल के कम से......मेरा अब वहाँ खड़ा होना भी मुश्किल होता जा रहा था.......
स्वेता- तुम जाओ अपने कमरे में विशाल........मैं तुम्हारे लिए नाश्ता ले आती हूँ......विशाल एक नज़र मेरी तरफ देखने लगा मैं बार बार उससे अपनी नज़रें चुरा रही थी........फिर वो मम्मी की तरफ देखकर अपने कमरे में चुप चाप चला गया........विशाल के जाते ही मम्मी मुझे सिर से लेकर पाँव तक घूर्ने लगी......ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे बॉडी को अपनी नज़रो से स्कॅन कर रही हो......एक बार फिर से मेरी डर से धड़कनें बढ़ चुकी थी.......
श्वेता- अदिति तुम्हें कितनी बार कहा है कि तुम अपना दुपट्टा अपने सीने पर लगाए रखा करो.......तुम्हें ज़रा भी समझ नहीं है कि अब तुम जवान हो चुकी हो.......मर्दों की नज़र और उनके नियत का कोई भरोसा नहीं......मैं ये नहीं कहती कि विशाल की नज़र भी ऐसी है........मगर वो है तो एक मर्द ही........तुम समझ रही हो ना मैं क्या कहना चाहती हूँ.......
अदिति- हां मा......आगे से ख्याल रखूँगी.......और फिर मैने फ्रीज़ पर रखा अपना दुपट्टा तुरंत अपने सीने पर लगा लिया......वो तो शुक्र था की मम्मी ने कुछ नहीं देखा था नहीं तो पता नहीं क्या होता.......वैसे मैं मम्मी की बातों से मुस्कुरा पड़ी थी उन्हें क्या पता था कि उनकी बेटी तो अपनी इज़्ज़त अपने भाई के हवाले कर चुकी है.....फिर दुपट्टा लगाकर फ़ॉर्मलीिटीज़ पूरी करने का सवाल ही कहाँ उठता था......फिर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम में गयी और तुरंत अपनी लॅयागी और पैंटी झट से नीचे की तरफ सरका दी........मेरी पैंटी विशाल के कम से पूरी तरह भीग चुकी थी.......
विशाल ने तो अपनी प्यास बुझा ली थी मगर मेरे अंदर की आग को उसने और भड़का दिया था........मेरे अंदर भी आग लगी हुई थी जी तो कर रहा था कि अभी जाकर अपना ये जिस्म विशाल के हवाले कर दूं और उसका लंड अपने चूत में ले लूँ.......मगर ये ना ही मेरे लिए इतना आसान था और ना ही विशाल के लिए........
मैं फिर अपनी उंगली से अपनी चूत की आग को ठंडा करने लगी......इतने दिनों से लंड का स्वाद लग चुका था तो भला उंगली से क्या मज़ा मिलती.....मैं काफ़ी देर तक अपनी चूत को अपनी उंगलिओ से रगड़ती रही मगर मेरे अंदर की प्यास बुझने के बजाए और भड़क रही थी.....थोड़े देर बाद मैं नाहकार बाथरूम से बाहर आई फिर सबके साथ नाश्ता किया....आज पापा भी ऑफीस से छुट्टी ले चुके थे क्यों कि आज घर पर कथा होने वाली थी........
मेरे अंदर की तपीश अब और बढ़ती जा रही थी......उधेर विशाल फिर मेरे कमरे में आया और आकर मेरे पास बैठ गया......
विशाल- दीदी.......एक बात बोलूं........
अदिति- क्या विशाल.....
विशाल- मेरा बहुत मन हो रहा है........एक बार फिर से आपकी चुदाई करने को दिल कर रहा है.......पता नहीं मेरी प्यास भी दिन बा दिन बढ़ती जा रही है......आप हो ही ऐसी मेरा आपसे कभी मन नहीं भरता......
मैं विशाल के चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगी.......मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर विशाल मुझसे कहना क्या चाहता है.......
अदिति- अब नहीं विशाल.....आज बाल बाल बचे है हम दोनो.......अगर ज़रा सी भी देर हो जाती तो मम्मी हमे देख लेती......फिर तुम जानते हो की हमारा क्या हाल होता......
विशाल- मैं आपको यहाँ थोड़ी ही कुछ करने को कह रहा हूँ....चलो आज कहीं बाहर चलते है......किसी गार्डन में या फिर पार्क में........या फिर किसी होटेल में...............