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एक अनोखा बंधन--16
गतान्क से आगे.....................
खाने खाने के बाद ज़रीना ने कहा, “क्या तुम भी चाहते हो कि मैं जीन्स और टॉप पहन कर चलूं.”
“हां बिल्कुल, कॉलेज में तो तुम्हे देखता ही नही था नज़र उठा कर. हां ये अब्ज़र्व ज़रूर किया था कि तुम अक्सर जीन्स पहन कर आती थी कॉलेज. आज तुम्हे जीन्स में देखने का मन है.”
“ठीक है मैं पहन कर आती हूँ.” ज़रीना उठ कर चल दी
“जल्दी आना, ज़्यादा देर मत लगाना..”
“ओके”
ज़रीना वॉश रूम गयी और कोई 20 मिनिट बाद बाहर निकली. मगर वो जीन्स और टॉप पहन कर नही आई थी. उसी चुरिदार में वापिस आ गयी जिसमे वो अंदर गयी थी.
ज़रीना वापिस आकर कुर्सी पर बैठ गयी आदित्य के सामने.
“क्या हुवा कुछ मायूस सी लग रही हो. जीन्स और टॉप फिट नही आई क्या?”
“नही ऐसी बात नही है”
“फिर…”
“चलो घर जाकर ही पहनूँगी.”
“क्यों….. नही तुम पहन कर चलो ना अछा लगेगा मुझे.”
“अछा तो मुझे भी लगेगा पर…”
“पर क्या?”
ज़रीना ने अपने पर्स से एक पेन निकाला और पेपर नॅपकिन पर कुछ लिख दिया. मगर लिखने के बाद वो उसे आदित्य को देने से झीजक रही थी.
“क्या बात है बताओ ना.”
ज़रीना ने काँपते हाथो से वो नॅपकिन आदित्य की तरफ बढ़ाया. मगर इस से पहले की आदित्य वो नॅपकिन पकड़ पाता ज़रीना ने अपना हाथ वापिस खींच लिया.
“अरे…क्या बात है ज़रीना…कुछ कहो तो सही. क्या लिखा था तुमने नॅपकिन पर वो तो पढ़ने दो.” आदित्य ने कहा और ज़रीना के हाथ को पकड़ लिया.
ज़रीना ने तुरंत वो नॅपकिन हाथ में दबोच लिया. बड़ी मुश्किल से निकाला आदित्य ने वो नॅपकिन ज़रीना के हाथ से.
“छ्चोड़ो ना आदित्य. प्लीज़ मत पढ़ो…मैं बाद में पहन लूँगी जीन्स.” ज़रीना गिड़गिडाई
मगर आदित्य नही माना. उसने धीरे से उस नॅपकिन को फैलाया. उस पर लिखा था.
“मेरी ब्रा की स्ट्रॅप टूट गयी है. टॉप नही पहन सकती. अजीब लगेगा. सॉरी.”
ज़रीना तो नज़रे झुकाए बैठी थी. शर्मा रही थी वो आदित्य से. उसने अपनी चुनरी से अपनी छाती को अच्छे से ढक रखा था.
आदित्य ने भी एक नॅपकिन उठाया और बोला, “पेन देना अपना.”
ज़रीना ने बिना आदित्य की तरफ देखे उसे पेन पकड़ा दिया.
आदित्य ने नॅपकिन पर कुछ लिख कर ज़रीना की तरफ बढ़ाया. ज़रीना ने चुपचाप नॅपकिन पकड़ लिया.
उस पर लिखा था, “नयी खरीद लेंगे. चिंता क्यों करती हो.”
ज़रीना ने एक और नॅपकिन उठाया और उस पर लिख कर आदित्य को थमा दिया चुपचाप.
उस पर लिखा था, “यहा हाइवे पर कहा से ख़रीदेंगे. तुम चिंता मत करो मैं देल्ही जा कर खरीद लूँगी.”
आदित्य ने पढ़ कर कहा, “चलो चलते हैं ज़रीना लेट हो रहे हैं.”
“हां चलो”
इस तरह खाने की टेबल पर पेपर नॅपकिन के ज़रिए दोनो में कुछ प्राइवेट बातें हुई. जो की उनके प्यार की तरह ही सुंदर थी.
आदित्य ने ज़रीना के लिखे नॅपकिन अपनी जेब में डाल लिए और ज़रीना ने आदित्य के लिखे नॅपकिन अपने पर्स में.
आदित्य ने ढाबे के काउंटर पर बिल पे किया और ज़रीना के साथ वापिस कार में आकर बैठ गया.
“मसूरी में कितना अछा मौसम था और यहा बहुत गर्मी हो रही है.” आदित्य ने कहा.
“हां देल्ही में तो आग बरस रही होगी इस वक्त.” ज़रीना ने कहा.
“ज़रीना अपने स्कूल के बारे में बताओ. बच्चे तो बहुत खुश होंगे मसूरी आकर. बहुत ही सुंदर हिल स्टेशन है मसूरी”
“हां बहुत खुश हैं वो. वो तो यहा से वापिस ही नही जाना चाहते. खूब मस्ती की बच्चो ने मसूरी में.” ज़रीना हंसते हुवे बोली.
“आएँगे हम वापिस दुबारा घूमने. अभी बस तुम्हे तुम्हारे घर ले जाने की जल्दी थी.”
बातों में डूब गये दोनो प्रेमी और बातों-बातों में देल्ही पहुँच गये वो दोनो.
गतान्क से आगे.....................
खाने खाने के बाद ज़रीना ने कहा, “क्या तुम भी चाहते हो कि मैं जीन्स और टॉप पहन कर चलूं.”
“हां बिल्कुल, कॉलेज में तो तुम्हे देखता ही नही था नज़र उठा कर. हां ये अब्ज़र्व ज़रूर किया था कि तुम अक्सर जीन्स पहन कर आती थी कॉलेज. आज तुम्हे जीन्स में देखने का मन है.”
“ठीक है मैं पहन कर आती हूँ.” ज़रीना उठ कर चल दी
“जल्दी आना, ज़्यादा देर मत लगाना..”
“ओके”
ज़रीना वॉश रूम गयी और कोई 20 मिनिट बाद बाहर निकली. मगर वो जीन्स और टॉप पहन कर नही आई थी. उसी चुरिदार में वापिस आ गयी जिसमे वो अंदर गयी थी.
ज़रीना वापिस आकर कुर्सी पर बैठ गयी आदित्य के सामने.
“क्या हुवा कुछ मायूस सी लग रही हो. जीन्स और टॉप फिट नही आई क्या?”
“नही ऐसी बात नही है”
“फिर…”
“चलो घर जाकर ही पहनूँगी.”
“क्यों….. नही तुम पहन कर चलो ना अछा लगेगा मुझे.”
“अछा तो मुझे भी लगेगा पर…”
“पर क्या?”
ज़रीना ने अपने पर्स से एक पेन निकाला और पेपर नॅपकिन पर कुछ लिख दिया. मगर लिखने के बाद वो उसे आदित्य को देने से झीजक रही थी.
“क्या बात है बताओ ना.”
ज़रीना ने काँपते हाथो से वो नॅपकिन आदित्य की तरफ बढ़ाया. मगर इस से पहले की आदित्य वो नॅपकिन पकड़ पाता ज़रीना ने अपना हाथ वापिस खींच लिया.
“अरे…क्या बात है ज़रीना…कुछ कहो तो सही. क्या लिखा था तुमने नॅपकिन पर वो तो पढ़ने दो.” आदित्य ने कहा और ज़रीना के हाथ को पकड़ लिया.
ज़रीना ने तुरंत वो नॅपकिन हाथ में दबोच लिया. बड़ी मुश्किल से निकाला आदित्य ने वो नॅपकिन ज़रीना के हाथ से.
“छ्चोड़ो ना आदित्य. प्लीज़ मत पढ़ो…मैं बाद में पहन लूँगी जीन्स.” ज़रीना गिड़गिडाई
मगर आदित्य नही माना. उसने धीरे से उस नॅपकिन को फैलाया. उस पर लिखा था.
“मेरी ब्रा की स्ट्रॅप टूट गयी है. टॉप नही पहन सकती. अजीब लगेगा. सॉरी.”
ज़रीना तो नज़रे झुकाए बैठी थी. शर्मा रही थी वो आदित्य से. उसने अपनी चुनरी से अपनी छाती को अच्छे से ढक रखा था.
आदित्य ने भी एक नॅपकिन उठाया और बोला, “पेन देना अपना.”
ज़रीना ने बिना आदित्य की तरफ देखे उसे पेन पकड़ा दिया.
आदित्य ने नॅपकिन पर कुछ लिख कर ज़रीना की तरफ बढ़ाया. ज़रीना ने चुपचाप नॅपकिन पकड़ लिया.
उस पर लिखा था, “नयी खरीद लेंगे. चिंता क्यों करती हो.”
ज़रीना ने एक और नॅपकिन उठाया और उस पर लिख कर आदित्य को थमा दिया चुपचाप.
उस पर लिखा था, “यहा हाइवे पर कहा से ख़रीदेंगे. तुम चिंता मत करो मैं देल्ही जा कर खरीद लूँगी.”
आदित्य ने पढ़ कर कहा, “चलो चलते हैं ज़रीना लेट हो रहे हैं.”
“हां चलो”
इस तरह खाने की टेबल पर पेपर नॅपकिन के ज़रिए दोनो में कुछ प्राइवेट बातें हुई. जो की उनके प्यार की तरह ही सुंदर थी.
आदित्य ने ज़रीना के लिखे नॅपकिन अपनी जेब में डाल लिए और ज़रीना ने आदित्य के लिखे नॅपकिन अपने पर्स में.
आदित्य ने ढाबे के काउंटर पर बिल पे किया और ज़रीना के साथ वापिस कार में आकर बैठ गया.
“मसूरी में कितना अछा मौसम था और यहा बहुत गर्मी हो रही है.” आदित्य ने कहा.
“हां देल्ही में तो आग बरस रही होगी इस वक्त.” ज़रीना ने कहा.
“ज़रीना अपने स्कूल के बारे में बताओ. बच्चे तो बहुत खुश होंगे मसूरी आकर. बहुत ही सुंदर हिल स्टेशन है मसूरी”
“हां बहुत खुश हैं वो. वो तो यहा से वापिस ही नही जाना चाहते. खूब मस्ती की बच्चो ने मसूरी में.” ज़रीना हंसते हुवे बोली.
“आएँगे हम वापिस दुबारा घूमने. अभी बस तुम्हे तुम्हारे घर ले जाने की जल्दी थी.”
बातों में डूब गये दोनो प्रेमी और बातों-बातों में देल्ही पहुँच गये वो दोनो.