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- Dec 5, 2013
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एक अनोखा बंधन--21
गतान्क से आगे.....................
आदित्य ने घर के बाहर सीढ़ियाँ डलवा दी और आस-पड़ोस में ये क्लियर भी कर दिया कि ज़रीना उसके यहा टेनेंट बन कर रह रही है.
“सोच रहा हूँ कि तुम्हारे घर की भी मरम्मत करवा दूं.” आदित्य ने कहा.
“रहने दो सबको शक हो जाएगा. ये काम शादी के बाद करेंगे. बल्कि दोनो घरो को जोड़ कर एक बना देंगे हम.” ज़रीना ने कहा.
“ज़रीना चाचा जी का टेलीग्राम आया था आज फॅक्टरी में. तुरंत बुलाया है उन्होने मुझे मुंबई सिमरन से मिलने के लिए. तुम बताओ क्या करूँ.”
ज़रीना ने गहरी साँस ली और बोली, “जाना तो पड़ेगा ही तुम्हे. इस समस्या का हल तो करना ही है ताकि हम सुख शांति से रह सकें.”
“हां बहुत ज़रूरी है इस उलझन को दूर करना तभी हम अपने प्यार में आगे बढ़ पाएँगे.”
ज़रीना रह तो रही थी टेनेंट के रूप में मगर आस-पड़ोस के लोग फिर भी उसे घूर-घूर कर देखते थे. जिसके कारण वो गुमशुम और परेशान रहती थी. आदित्य के मुंबई जाने के ख्याल से वो और ज़्यादा परेशान हो गयी थी
“आदित्य मुझे भी ले चलो साथ मुंबई. मैं यहा अकेली नही रह पाउन्गि. तुम देख ही रहे हो कैसा माहॉल है यहा. घूर-घूर कर देखते हैं लोग मुझे. लगता है लोगो को शक हो गया है हमारे बारे में.”
“ज़रीना चिंता मत करो..मैं मुंबई जा रहा हूँ ना. सब ठीक करके आउन्गा और आते ही हम शादी कर लेंगे. ज़्यादा दिन नही सहना होगा तुम्हे ये सब. फिर देखता हूँ कि कौन घूर कर देखता है तुम्हे. आक्च्युयली मैं प्राब्लम ये है कि किसी को बर्दास्त नही हो रहा होगा कि एक मुस्लिम लड़की हिंदू के घर रह रही है.”
“हां यही मैं प्राब्लम है. पता नही जब हम शादी करके रहेंगे फिर किस तरह रिक्ट करेंगे ये लोग.”
“तब की तब देखेंगे. हमें जो करना है करना है.”
“आदित्य मुझे भी अपने साथ मुंबई ले चलो प्लीज़. मैं यहा अकेली क्या करूँगी.”
“चलना चाहती हो तुम?”
“हां…ले चलोगे ना?”
“तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा जान. चलो समान पॅक करलो, तुम्हे मुंबई घुमा कर लाता हूँ.” आदित्य ने कहा.
“बहुत खर्चा करवा रही हूँ तुम्हारा.”
“पागल हो क्या. सब तुम्हारा है. और फॅक्टरी ठीक चल रही है. और ध्यान दूँगा तो और ज़्यादा तरक्की करेंगे.”
“आदित्य तुम बहुत अच्छे हो” ज़रीना ने कहा और कह कर किचन की तरफ चल दी.
“रूको कहा जा रही हो?”
“खाना बनाना है…” ज़रीना हंसते हुवे बोली और किचन में आ गयी.
आदित्य भी उसके पीछे पीछे आ गया.
“आदित्य पता नही क्यों पर डर सा लग रहा है मुझे. पता नही ये समस्या कैसे और कब दूर होगी और कब मुझे तुम्हारी पत्नी कहलाने का हक़ मिलेगा.”
“वो हक़ तो तुम्हे कब से है. फिर भी एक काम और किए देता हूँ अगर कोई डाउट है तुम्हे तो” आदित्य ने चाकू उठाया और इस से पहले कि ज़रीना कुछ समझ पाती झट से अपने दायें हाथ का अंगूठा चीर दिया.
“ये क्या किया आदित्य…पागल हो गये हो क्या.”
आदित्य ने कुछ कहे बिना ज़रीना की माँग भर दी और बोला, “अब मत कहना कि तुम मेरी पत्नी नही हो. जब दिल से मान चुके हैं हम एक दूसरे को पति-पत्नी तो और क्या रह गया है.”
ज़रीना आदित्य के कदमो में बैठ गयी, “आदित्य मेरा वो मतलब नही था. हम दोनो तो ये जानते ही हैं. बात समाज की हो रही है.”
“छोड़ो ज़रीना हटो अब. हद होती है किसी बात की. बेकार के झंझट पाल रखें हैं तुमने अपने मन में. कितना सम्झाउ तुम्हे.” आदित्य ज़रीना को किचन में छ्चोड़ कर बाहर आ गया. ज़रीना वही बैठी हुई सुबक्ती रही.
ज़रीना खाना बना कर आदित्य के पास आई.
“खाना खा लो आदित्य.”
“नही मुझे भूक नही है. तुम खा लो.”
“अच्छा सॉरी बाबा…आगे से ऐसा नही कहूँगी…खाना खा लो प्लीज़…वरना मैं भी नही खाउन्गि. वैसे बहुत सुंदर लग रही है मेरी माँग भरी हुई.”
“मैने अपने खून से माँग भर दी तुम्हारी फिर भी पता नही कौन सी दुविधा में हो. कोई मज़ाक नही किया था मैने. बहुत मान्यता है इस बात की हमारे लिए.”
“मैं जानती हूँ आदित्य. इसी देश में पली-बढ़ी हूँ मैं. अच्छा आगे से ऐसा कुछ नही कहूँगी जिस से तुम्हे दुख पहुँचे.”
आदित्य ज़रीना के करीब आया और ज़रीना के चेहरे पर हाथ रख कर बोला, “जान मैं तुम्हारी हर क्न्सर्न समझता हूँ. पर तुम्हे परेशान नही देख सकता.”
“सॉरी आगे से ऐसा नही होगा…चलो खाना खाते हैं.” ज़रीना मुश्कुरा कर बोली.
आदित्य और ज़रीना के लिए फिर से ये इम्तिहान का दौर था. पहले इम्तिहान में वो दोनो फैल हो गये थे मगर उसके बाद दोनो ने कुछ ऐसा सीखा था जो कि उन्हे जीवन भर काम आएगा. फेल्यूर कभी बेकार नही जाता. कुछ तो वो भी दे ही जाता है. ये अच्छी बात थी कि ऐसे मुश्किल दौर में दोनो एक साथ खड़े थे. यही प्यार की सबसे बड़ी डिमॅंड रहती है अगर आप प्यार के सफ़र पर चल रहे हैं तो.
गतान्क से आगे.....................
आदित्य ने घर के बाहर सीढ़ियाँ डलवा दी और आस-पड़ोस में ये क्लियर भी कर दिया कि ज़रीना उसके यहा टेनेंट बन कर रह रही है.
“सोच रहा हूँ कि तुम्हारे घर की भी मरम्मत करवा दूं.” आदित्य ने कहा.
“रहने दो सबको शक हो जाएगा. ये काम शादी के बाद करेंगे. बल्कि दोनो घरो को जोड़ कर एक बना देंगे हम.” ज़रीना ने कहा.
“ज़रीना चाचा जी का टेलीग्राम आया था आज फॅक्टरी में. तुरंत बुलाया है उन्होने मुझे मुंबई सिमरन से मिलने के लिए. तुम बताओ क्या करूँ.”
ज़रीना ने गहरी साँस ली और बोली, “जाना तो पड़ेगा ही तुम्हे. इस समस्या का हल तो करना ही है ताकि हम सुख शांति से रह सकें.”
“हां बहुत ज़रूरी है इस उलझन को दूर करना तभी हम अपने प्यार में आगे बढ़ पाएँगे.”
ज़रीना रह तो रही थी टेनेंट के रूप में मगर आस-पड़ोस के लोग फिर भी उसे घूर-घूर कर देखते थे. जिसके कारण वो गुमशुम और परेशान रहती थी. आदित्य के मुंबई जाने के ख्याल से वो और ज़्यादा परेशान हो गयी थी
“आदित्य मुझे भी ले चलो साथ मुंबई. मैं यहा अकेली नही रह पाउन्गि. तुम देख ही रहे हो कैसा माहॉल है यहा. घूर-घूर कर देखते हैं लोग मुझे. लगता है लोगो को शक हो गया है हमारे बारे में.”
“ज़रीना चिंता मत करो..मैं मुंबई जा रहा हूँ ना. सब ठीक करके आउन्गा और आते ही हम शादी कर लेंगे. ज़्यादा दिन नही सहना होगा तुम्हे ये सब. फिर देखता हूँ कि कौन घूर कर देखता है तुम्हे. आक्च्युयली मैं प्राब्लम ये है कि किसी को बर्दास्त नही हो रहा होगा कि एक मुस्लिम लड़की हिंदू के घर रह रही है.”
“हां यही मैं प्राब्लम है. पता नही जब हम शादी करके रहेंगे फिर किस तरह रिक्ट करेंगे ये लोग.”
“तब की तब देखेंगे. हमें जो करना है करना है.”
“आदित्य मुझे भी अपने साथ मुंबई ले चलो प्लीज़. मैं यहा अकेली क्या करूँगी.”
“चलना चाहती हो तुम?”
“हां…ले चलोगे ना?”
“तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा जान. चलो समान पॅक करलो, तुम्हे मुंबई घुमा कर लाता हूँ.” आदित्य ने कहा.
“बहुत खर्चा करवा रही हूँ तुम्हारा.”
“पागल हो क्या. सब तुम्हारा है. और फॅक्टरी ठीक चल रही है. और ध्यान दूँगा तो और ज़्यादा तरक्की करेंगे.”
“आदित्य तुम बहुत अच्छे हो” ज़रीना ने कहा और कह कर किचन की तरफ चल दी.
“रूको कहा जा रही हो?”
“खाना बनाना है…” ज़रीना हंसते हुवे बोली और किचन में आ गयी.
आदित्य भी उसके पीछे पीछे आ गया.
“आदित्य पता नही क्यों पर डर सा लग रहा है मुझे. पता नही ये समस्या कैसे और कब दूर होगी और कब मुझे तुम्हारी पत्नी कहलाने का हक़ मिलेगा.”
“वो हक़ तो तुम्हे कब से है. फिर भी एक काम और किए देता हूँ अगर कोई डाउट है तुम्हे तो” आदित्य ने चाकू उठाया और इस से पहले कि ज़रीना कुछ समझ पाती झट से अपने दायें हाथ का अंगूठा चीर दिया.
“ये क्या किया आदित्य…पागल हो गये हो क्या.”
आदित्य ने कुछ कहे बिना ज़रीना की माँग भर दी और बोला, “अब मत कहना कि तुम मेरी पत्नी नही हो. जब दिल से मान चुके हैं हम एक दूसरे को पति-पत्नी तो और क्या रह गया है.”
ज़रीना आदित्य के कदमो में बैठ गयी, “आदित्य मेरा वो मतलब नही था. हम दोनो तो ये जानते ही हैं. बात समाज की हो रही है.”
“छोड़ो ज़रीना हटो अब. हद होती है किसी बात की. बेकार के झंझट पाल रखें हैं तुमने अपने मन में. कितना सम्झाउ तुम्हे.” आदित्य ज़रीना को किचन में छ्चोड़ कर बाहर आ गया. ज़रीना वही बैठी हुई सुबक्ती रही.
ज़रीना खाना बना कर आदित्य के पास आई.
“खाना खा लो आदित्य.”
“नही मुझे भूक नही है. तुम खा लो.”
“अच्छा सॉरी बाबा…आगे से ऐसा नही कहूँगी…खाना खा लो प्लीज़…वरना मैं भी नही खाउन्गि. वैसे बहुत सुंदर लग रही है मेरी माँग भरी हुई.”
“मैने अपने खून से माँग भर दी तुम्हारी फिर भी पता नही कौन सी दुविधा में हो. कोई मज़ाक नही किया था मैने. बहुत मान्यता है इस बात की हमारे लिए.”
“मैं जानती हूँ आदित्य. इसी देश में पली-बढ़ी हूँ मैं. अच्छा आगे से ऐसा कुछ नही कहूँगी जिस से तुम्हे दुख पहुँचे.”
आदित्य ज़रीना के करीब आया और ज़रीना के चेहरे पर हाथ रख कर बोला, “जान मैं तुम्हारी हर क्न्सर्न समझता हूँ. पर तुम्हे परेशान नही देख सकता.”
“सॉरी आगे से ऐसा नही होगा…चलो खाना खाते हैं.” ज़रीना मुश्कुरा कर बोली.
आदित्य और ज़रीना के लिए फिर से ये इम्तिहान का दौर था. पहले इम्तिहान में वो दोनो फैल हो गये थे मगर उसके बाद दोनो ने कुछ ऐसा सीखा था जो कि उन्हे जीवन भर काम आएगा. फेल्यूर कभी बेकार नही जाता. कुछ तो वो भी दे ही जाता है. ये अच्छी बात थी कि ऐसे मुश्किल दौर में दोनो एक साथ खड़े थे. यही प्यार की सबसे बड़ी डिमॅंड रहती है अगर आप प्यार के सफ़र पर चल रहे हैं तो.