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एक अनोखा बंधन--6
गतान्क से आगे.....................
आदित्य को एक बार भी ये ख्याल नही आया की ज़रीना शायद होटेल गयी हो. क्योंकि वो पूरा दिन और पूरी रात वेट करता रहा था ज़रीना का इश्लीए शायद उसे ये ख्याल ही नही आया.
अब वो किसी का दरवाजा खड़का कर पूछे भी तो क्या पूछे. क्या ये पूछे कि ज़रीना की मौसी का घर कहा है. ज़रीना की मौसी का नाम पता होता तो शायद बात बन जाती. और ये भी पता नही था कि उसके साथ बर्ताव क्या होगा अगर ज़रीना की मौसी का घर मिल भी गया तो.
“बस समझ ले अदित्य उसे तेरी कोई कदर नही है. ये प्यार ख़तम हो चुका है. कुछ नही बचा अब.” आदित्य ने सोचा.
आदित्य भारी मन से गली से बाहर की ओर चल दिया.
दुर्भाग्य की बात ये थी कि इधर अदित्य गली से निकल रहा था और उधर गली के दूसरी तरफ से ज़रीना आ रही थी ऑटो में बैठ कर. दोनो एक दूसरे को ढूंड रहे थे लेकिन ना जाने क्यों मुलाकात नही हो पाई.
आदित्य ने गली से बाहर आकर ऑटो पकड़ा. इधर अदित्य ऑटो में बैठा, उधर ज़रीना ऑटो से उतर कर मौसी के घर में वापिस आ गयी.
“मैं ही बेवकूफ़ थी जो निकल पड़ी सुबह सुबह उसके लिए जो मुझे छोड़ कर जा चुका है. इतना बेदर्दी निकलेगा ये अदित्य मैने सोचा नही था. ये प्यार मेरी जींदगी की सबसे बड़ी ग़लती है.” ज़रीना सोचते हुवे चल रही थी.
“ज़रीना बेटा कहा गयी थी तू इतनी सुबह सवेरे हमें तो चिंता हो रही थी.” ज़रीना की मौसी ने कहा.
“कही नही मौसी यही पास में ही गयी थी.”
“बेटा कुछ तो बात ज़रूर है जो तू छिपा रही है.”
“कुछ नही है मौसी आपको वेहम हो रहा है.”
“जब तेरा मन हो बता देना बेटा, मुझे तो तेरी बहुत चिंता हो रही है. चल कुछ खा ले.”
खाने का मन तो अब भी नही था ज़रीना का लेकिन फिर भी मौसी का दिल रखने के लिए उसने कुछ खा लिया.
आदित्य सीधा रेलवे स्टेशन पहुँचा और किसी तरह से गुजरात की ट्रेन की टिकेट का इंटेज़ाम किया. उसे रात की ट्रेन की टिकेट मिली किसी तरह से जुगाड़ करके. बहुत बेचैन हो रहा था देल्ही छोड़ने के ख्याल से. वाहा उसकी ज़रीना जो थी. पर उसे लग रहा था कि प्यार व्यार ख़तम हो चुका है और अब वापिस चलने में ही भलाई है. जब ट्रेन प्लॅटफॉर्म पर पहुँची तो वो बड़े भारी मन से ट्रेन में चढ़ा.
उस वक्त ज़रीना अपने हाथ की लकीरो को देख रही थी. “शायद किश्मत में तुम्हारा साथ नही लिखा था अदित्य. या फिर शायद साथ लिखा था पर हम निभा नही पाए. जो भी हो तुम मुझे यू छोड़ कर चले जाओगे मैने सोचा नही था. आइ हेट यू.” और ज़रीना की आँखे फिर से बहने लगी.
आदित्य पहुँच तो गया घर वापिस गुजरात. लेकिन घर की तरफ जाते वक्त उसके पाँव ही नही बढ़ रहे थे आगे. वो जानता था कि ज़रीना के बिना उस घर में रहना कितना मुश्किल होगा उसके लिए. जब वो घर में घुसा तो वो मंज़र उसकी आँखो में घूम गया जब वो ज़रीना को साथ लेकर घर से निकल रहा था रेलवे स्टेशन के लिए.
आदित्य ने बेग एक तरफ पटका और सोफे पर गिर गया. वक्त जैसे थम सा गया था और जीवन की खुशियाँ जैसे साथ छोड़ गयी थी. दुनिया ही उजड़ गयी थी अदित्य की.
यही हाल कुछ ज़रीना का था. ज़रीना भी उस वक्त अपने रूम में बिस्तर पर पड़ी थी. उसका भी ऐसा ही हाल था जैसे कि सब कुछ उजड़ गया हो उसका.
जब मौसी कमरे में घुसी तो वो फ़ौरन उठ कर बैठ गयी. “मौसी आप…सलाम आलेकम.”
“सलाम आलेकम बेटा, कुछ तो बता सब खैरीयत तो है. तुम तो हमसे कुछ बोल ही नही रही हो. जब से आई हो कमरे में पड़ी रहती हो बस.”
अब ज़रीना बताए भी तो कैसे. उसकी तकलीफ़ का कारण अदित्य का प्यार था और उस प्यार को कोई नही समझ सकता था. मौसी को टालने के लिए उसने कहा, “कारण तो आप जानती ही हैं मौसी. सब कुछ खो दिया है मैने.”
“अल्लाह रहम करे मेरी बच्ची पर. बहुत कुछ सहा है तुमने ज़रीना. तुम्हे ज़ींदा देख कर जो ख़ुसी हमें मिली थी वो हम लफ़ज़ो में बयान नही कर सकते. अब यही दुवा है कि अल्लाह का फ़ज़ल हो तुम पर.”
“अल्लाह शायद हम से रूठ गये हैं मौसी. सब कुछ बीखर गया है.” ज़रीना ने कहा.
मौसी ज़रीना को गले लगा लेती है. “वक्त करवट लेगा बेटी. वक्त हमेसा एक सा नही रहता…आओ थोड़ा बाहर घूम फिर लो. बंद कमरे में घुटन हो जाती है बैठे बैठे.”
“ठीक है मौसी आप चलिए मैं आती हूँ.” ज़रीना ने कहा.
बहुत कोशिस की ज़रीना ने अदित्य को भुलाने की और उसे अपनी यादों से हटाने की. लेकिन जब कोई दिल में बस जाता है उसे इतनी आसानी से निकाला नही जा सकता.
कोशिस आदित्य भी कर रहा था ज़रीना को भुलाने की. लेकिन घर के हर कोने में ज़रीना की यादें बसी थी. वो घर में जहा भी देखता उसे ज़रीना का ही अहसास रहता. हर कोने में बस ज़रीना ही बसी थी जैसे. और ना चाहते हुवे भी उसकी आँखे नम हो जाती थी.
भुलाने की कोशिस में एक हफ़्ता बीत गया लेकिन कुछ फ़ायडा हुवा नही. प्यार की तड़प, कसक और मीठी सी बेचैनी हर वक्त बरकरार थी. धीरे धीरे वो दोनो ही ये बात समझने लगे थे कि वो दोनो प्यार के अनोखे बंधन में बँध चुके हैं जिसे वो चाह कर भी नही तौड सकते. उनकी हर कोशिस बेकार जो हो रही थी.
और फिर एक ऐसी तड़प उठी प्यार की जिसने उनके प्यार को और ज़्यादा महका दिया. एक रात ऐसी आई जिसमे दोनो काग़ज़ और कलाम लेकर बैठ गये और कुछ लिखने की ठान ली. ज़रीना को तो अदित्य का अड्रेस पता ही था. अदित्य ने भी घूम फिर कर किसी तरह ज़रीना की मौसी का अड्रेस ढूंड ही लिया. दो चिट्ठियाँ लीखी जा रही थी रात के वक्त एक साथ. देल्ही में ज़रीना लिख रही थी और गुजरात में आदित्य लिख रहा था. हां थोड़ा वक्त का अंतर था. ज़रीना रात के 12 बजे लिखने बैठी थी और अदित्य रात के 2 बजे लिखने बैठा था.
अगले दिन चुपके से दोनो ने अपनी अपनी चत्तियाँ पोस्ट कर दी. पहुँचने में 4 दिन लग गये. दोनो बेचैन थे अपनी चिट्ठी का जवाब पाने की लिए. लेकिन उन्हे नही पता था कि दोनो ने एक साथ चिट्ठी लिखी है और दोनो जल्द ही एक दूसरे की चिट्ठी पढ़ने वाले हैं.
गतान्क से आगे.....................
आदित्य को एक बार भी ये ख्याल नही आया की ज़रीना शायद होटेल गयी हो. क्योंकि वो पूरा दिन और पूरी रात वेट करता रहा था ज़रीना का इश्लीए शायद उसे ये ख्याल ही नही आया.
अब वो किसी का दरवाजा खड़का कर पूछे भी तो क्या पूछे. क्या ये पूछे कि ज़रीना की मौसी का घर कहा है. ज़रीना की मौसी का नाम पता होता तो शायद बात बन जाती. और ये भी पता नही था कि उसके साथ बर्ताव क्या होगा अगर ज़रीना की मौसी का घर मिल भी गया तो.
“बस समझ ले अदित्य उसे तेरी कोई कदर नही है. ये प्यार ख़तम हो चुका है. कुछ नही बचा अब.” आदित्य ने सोचा.
आदित्य भारी मन से गली से बाहर की ओर चल दिया.
दुर्भाग्य की बात ये थी कि इधर अदित्य गली से निकल रहा था और उधर गली के दूसरी तरफ से ज़रीना आ रही थी ऑटो में बैठ कर. दोनो एक दूसरे को ढूंड रहे थे लेकिन ना जाने क्यों मुलाकात नही हो पाई.
आदित्य ने गली से बाहर आकर ऑटो पकड़ा. इधर अदित्य ऑटो में बैठा, उधर ज़रीना ऑटो से उतर कर मौसी के घर में वापिस आ गयी.
“मैं ही बेवकूफ़ थी जो निकल पड़ी सुबह सुबह उसके लिए जो मुझे छोड़ कर जा चुका है. इतना बेदर्दी निकलेगा ये अदित्य मैने सोचा नही था. ये प्यार मेरी जींदगी की सबसे बड़ी ग़लती है.” ज़रीना सोचते हुवे चल रही थी.
“ज़रीना बेटा कहा गयी थी तू इतनी सुबह सवेरे हमें तो चिंता हो रही थी.” ज़रीना की मौसी ने कहा.
“कही नही मौसी यही पास में ही गयी थी.”
“बेटा कुछ तो बात ज़रूर है जो तू छिपा रही है.”
“कुछ नही है मौसी आपको वेहम हो रहा है.”
“जब तेरा मन हो बता देना बेटा, मुझे तो तेरी बहुत चिंता हो रही है. चल कुछ खा ले.”
खाने का मन तो अब भी नही था ज़रीना का लेकिन फिर भी मौसी का दिल रखने के लिए उसने कुछ खा लिया.
आदित्य सीधा रेलवे स्टेशन पहुँचा और किसी तरह से गुजरात की ट्रेन की टिकेट का इंटेज़ाम किया. उसे रात की ट्रेन की टिकेट मिली किसी तरह से जुगाड़ करके. बहुत बेचैन हो रहा था देल्ही छोड़ने के ख्याल से. वाहा उसकी ज़रीना जो थी. पर उसे लग रहा था कि प्यार व्यार ख़तम हो चुका है और अब वापिस चलने में ही भलाई है. जब ट्रेन प्लॅटफॉर्म पर पहुँची तो वो बड़े भारी मन से ट्रेन में चढ़ा.
उस वक्त ज़रीना अपने हाथ की लकीरो को देख रही थी. “शायद किश्मत में तुम्हारा साथ नही लिखा था अदित्य. या फिर शायद साथ लिखा था पर हम निभा नही पाए. जो भी हो तुम मुझे यू छोड़ कर चले जाओगे मैने सोचा नही था. आइ हेट यू.” और ज़रीना की आँखे फिर से बहने लगी.
आदित्य पहुँच तो गया घर वापिस गुजरात. लेकिन घर की तरफ जाते वक्त उसके पाँव ही नही बढ़ रहे थे आगे. वो जानता था कि ज़रीना के बिना उस घर में रहना कितना मुश्किल होगा उसके लिए. जब वो घर में घुसा तो वो मंज़र उसकी आँखो में घूम गया जब वो ज़रीना को साथ लेकर घर से निकल रहा था रेलवे स्टेशन के लिए.
आदित्य ने बेग एक तरफ पटका और सोफे पर गिर गया. वक्त जैसे थम सा गया था और जीवन की खुशियाँ जैसे साथ छोड़ गयी थी. दुनिया ही उजड़ गयी थी अदित्य की.
यही हाल कुछ ज़रीना का था. ज़रीना भी उस वक्त अपने रूम में बिस्तर पर पड़ी थी. उसका भी ऐसा ही हाल था जैसे कि सब कुछ उजड़ गया हो उसका.
जब मौसी कमरे में घुसी तो वो फ़ौरन उठ कर बैठ गयी. “मौसी आप…सलाम आलेकम.”
“सलाम आलेकम बेटा, कुछ तो बता सब खैरीयत तो है. तुम तो हमसे कुछ बोल ही नही रही हो. जब से आई हो कमरे में पड़ी रहती हो बस.”
अब ज़रीना बताए भी तो कैसे. उसकी तकलीफ़ का कारण अदित्य का प्यार था और उस प्यार को कोई नही समझ सकता था. मौसी को टालने के लिए उसने कहा, “कारण तो आप जानती ही हैं मौसी. सब कुछ खो दिया है मैने.”
“अल्लाह रहम करे मेरी बच्ची पर. बहुत कुछ सहा है तुमने ज़रीना. तुम्हे ज़ींदा देख कर जो ख़ुसी हमें मिली थी वो हम लफ़ज़ो में बयान नही कर सकते. अब यही दुवा है कि अल्लाह का फ़ज़ल हो तुम पर.”
“अल्लाह शायद हम से रूठ गये हैं मौसी. सब कुछ बीखर गया है.” ज़रीना ने कहा.
मौसी ज़रीना को गले लगा लेती है. “वक्त करवट लेगा बेटी. वक्त हमेसा एक सा नही रहता…आओ थोड़ा बाहर घूम फिर लो. बंद कमरे में घुटन हो जाती है बैठे बैठे.”
“ठीक है मौसी आप चलिए मैं आती हूँ.” ज़रीना ने कहा.
बहुत कोशिस की ज़रीना ने अदित्य को भुलाने की और उसे अपनी यादों से हटाने की. लेकिन जब कोई दिल में बस जाता है उसे इतनी आसानी से निकाला नही जा सकता.
कोशिस आदित्य भी कर रहा था ज़रीना को भुलाने की. लेकिन घर के हर कोने में ज़रीना की यादें बसी थी. वो घर में जहा भी देखता उसे ज़रीना का ही अहसास रहता. हर कोने में बस ज़रीना ही बसी थी जैसे. और ना चाहते हुवे भी उसकी आँखे नम हो जाती थी.
भुलाने की कोशिस में एक हफ़्ता बीत गया लेकिन कुछ फ़ायडा हुवा नही. प्यार की तड़प, कसक और मीठी सी बेचैनी हर वक्त बरकरार थी. धीरे धीरे वो दोनो ही ये बात समझने लगे थे कि वो दोनो प्यार के अनोखे बंधन में बँध चुके हैं जिसे वो चाह कर भी नही तौड सकते. उनकी हर कोशिस बेकार जो हो रही थी.
और फिर एक ऐसी तड़प उठी प्यार की जिसने उनके प्यार को और ज़्यादा महका दिया. एक रात ऐसी आई जिसमे दोनो काग़ज़ और कलाम लेकर बैठ गये और कुछ लिखने की ठान ली. ज़रीना को तो अदित्य का अड्रेस पता ही था. अदित्य ने भी घूम फिर कर किसी तरह ज़रीना की मौसी का अड्रेस ढूंड ही लिया. दो चिट्ठियाँ लीखी जा रही थी रात के वक्त एक साथ. देल्ही में ज़रीना लिख रही थी और गुजरात में आदित्य लिख रहा था. हां थोड़ा वक्त का अंतर था. ज़रीना रात के 12 बजे लिखने बैठी थी और अदित्य रात के 2 बजे लिखने बैठा था.
अगले दिन चुपके से दोनो ने अपनी अपनी चत्तियाँ पोस्ट कर दी. पहुँचने में 4 दिन लग गये. दोनो बेचैन थे अपनी चिट्ठी का जवाब पाने की लिए. लेकिन उन्हे नही पता था कि दोनो ने एक साथ चिट्ठी लिखी है और दोनो जल्द ही एक दूसरे की चिट्ठी पढ़ने वाले हैं.