Incest Kahani एक अनोखा बंधन - Page 7 - SexBaba
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Incest Kahani एक अनोखा बंधन

“मुझ पर इतना विश्वास रखने के लिए शुक्रिया आपका. अब अगर आपका वीदाई वाला रोना धोना बंद हो गया हो तो मैं अपना कार्यकरम शुरू करूँ.”

“कॉन सा कार्यकरम?” ज़रीना ने अपने आँसू पोंछते हुवे कहा.

“मज़ाक कर रहा हूँ. मैं ये चाहता हूँ कि बीती बातें भूल जाओ अब. बड़ी मुश्किल से ये ख़ुसी पाई है हमने. इसे जी भर कर जीना चाहिए हमें आज. ये दिन दुबारा नही आएगा.”

“सॉरी आदित्य…खुद को रोक रही थी बहुत… पर रोकते-रोकते बिखर गयी. प्लीज़ बुरा मत मान-ना.”

आदित्य उठ कर सोफे पर बैठ गया और ज़रीना को अपने सीने से लगा कर बोला, “कोई बात नही जान. हमारे बीच सॉरी की कोई ज़रूरत नही है. समझ रहा हूँ मैं सब कुछ. अछा ये बताओ अभी घर चलें या फिर कल.”

“क्या अभी टिकेट मिल जाएगी”

“मिलनी तो चाहिए. अछा होगा अगर अपनी शादी के दिन हम अपने घर में रहें. वहीं तो हमें प्यार हुवा था.”

“चलो फिर जल्दी चलो…आज के दिन का ज़्यादा से ज़्यादा वक्त मैं अपने घर में बिताना चाहती हूँ.”

“हां चलो”

“क्या मैं शादी के जोड़े में ही चलूं?”

“और नही तो क्या? जैसे हैं वैसे ही चलेंगे. कोई दिक्कत की बात नही है”

आदित्य और ज़रीना ने अपना समान समेटा होटेल से और एरपोर्ट के लिए चल दिए. 5 बजे की फ्लाइट थी. 6:30 पर वो वडोदरा एरपोर्ट पर उतर गये. 7:15 पर टॅक्सी ने उन्हे उनके घर के बाहर उतार दिया. जैसे ही वो दोनो टॅक्सी से उतरे घनश्याम मोदी ने उन्हे देख लिया.

“जिसका शक था वही बात निकली. तो तुम दोनो शरम हया त्याग कर साथ रह रहे थे यहा. और अब शादी करके आ गये. आदित्य तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी. शादी की भी तो किस से. तुम्हारे पेरेंट्स बिकुल पसंद नही करते थे इन लोगो को. वो क्या हम भी पसंद नही करते थे. जो लोग देश में आग लगाते हैं उनसे तुमने रिश्ता जोड़ लिया. लगता है ट्रेन हादसे को भूल गये तुम.”

“अंकल क्या आपने किसी अपने को खोया था उस ट्रेन हादसे में.” आदित्य ने पूछा.

“नही”

“तो क्या आपने उसके बाद फैले दंगो में खोया किसी को.”

“नही." घनश्याम ने जवाब दिया

“मैने अपने पेरेंट्स खोए गोधरा ट्रेन हादसे में. उसके बाद बढ़के दंगो के कारण ज़रीना के पेरेंट्स और बहन को जान से हाथ धोना पड़ा. सबसे ज़्यादा कड़वाहट तो हम दोनो में होनी चाहिए थी एक दूसरे के प्रति. जबकि ऐसा नही है. हमने कड़वाहट को प्यार में बदल लिया है अंकल और आप बेवजह दिल में कड़वाहट बनाए हुवे हैं. क्या ये शोभा देता है आपको. छोटा हूँ मैं बहुत आपसे. आप ज़्यादा समझदार हैं. अपने जीवन को शांति और अमन फैलाने में लगायें ना की कड़वाहट फैलाने में. कुछ ग़लत कह दिया हो तो माफ़ कीजिएगा.”

ज़रीना जो अब तक चुपचाप सब सुन रही थी अचानक बोली, “अंकल कभी आपसे बात नही हुई. क्योंकि घर पास पास हैं इश्लीए रोज कभी ना कभी दिख जाते थे आप. आपने भी मुझे अक्सर देखा होगा. क्या ट्रेन में आग मैने लगाई थी? या फिर मेरे अम्मी-अब्बा गये थे ट्रेन फूँकने के लिए. हमे तो कुछ पता भी नही था कि कॉन सी ट्रेन… कैसी ट्रेन फूँक दी गयी. प्लीज़ बहुत सज़ा मिल चुकी है मुझे. और सज़ा मत दीजिए. आपकी अपनी बेटी समझ कर मुझे माफ़ कर दीजिए.”

घनश्याम मोदी के पास कहने को कुछ नही था. वो बिल्कुल चुप हो गया. कुछ भी कहने की हिम्मत नही जुटा पाया. चुपचाप अपने घर में घुस गया.

“चलो ज़रीना अंदर चलते हैं.” आदित्य ने कहा.

“देखा आदित्य कैसे भाग गये अंकल बिना कुछ कहे.” ज़रीना ने कहा.

“देखो सही और ग़लत हम सभी जानते हैं बस स्वीकार करने की हिम्मत नही जुटा पाते. छोड़ो इन बातों को…. चलो प्यार से अपने घर में प्रवेश करते हैं.”

ज़रीना ने ताला खोला और वो कदम अंदर रखने ही वाली थी कि आदित्य ने टोक दिया, “रूको एक बात मैं भूल ही गया. एक मिनिट यही रूको.”

“समझ गयी मैं. मैं भी भूल गयी थी. हहेहहे”

आदित्य अंदर गया और भाग कर एक लोटे में चावल डाल कर लाया और ज़रीना के कदमो में रख कर बोला, “हां अब इसे गिरा कर अंदर आओ.”

क्रमशः...............................
 
एक अनोखा बंधन--31

गतान्क से आगे.....................

ज़रीना ने प्यार से ठोकर मारी उस लोटे को और अंदर आ गयी. आदित्य ने फॉरन दरवाजा बंद किया और ज़रीना को बाहों में भर लिया.

“अरे छ्चोड़ो ये क्या कर रहे हो.”

“कब से तड़प रहा हूँ मैं अब और नही रुका जाता.”

“लंबे सफ़र से आए हैं हम. थोड़ा आराम तो कर लें.” ज़रीना ने कहा.

“मुझे अपनी जान से प्यार करना है. ढेर सारा प्यार. आराम करने का मन नही है अभी.”

“देखो वाहा वो क्या है दीवार पर” ज़रीना ने कहा.

जैसे ही आदित्य ने दीवार पर देखा ज़रीना आदित्य को धक्का दे कर एक कमरे में घुस्स गयी.

आदित्य भागा उसकी तरफ मगर अंदर से कुण्डी लग चुकी थी.

“जान प्लीज़…बाहर आओ तुरंत. ऐसे मत तड़पाव मुझे." आदित्य ने दरवाजा पीट-ते हुवे कहा.

ज़रीना ने अंदर घुसते ही अपने दिल पर हाथ रखा. दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था. “तुम्हे क्या हो गया अचानक ये. मुझे डर लग रहा है तुमसे.” ज़रीना ने कहा.

“जान ये सब क्या है. शादी से पहले भी दूर भागती थी और शादी के बाद भी दूर भाग रही हो. क्यों तडपा रही हो मुझे. मैं तड़प तड़प कर मर जाउन्गा. प्लीज़ दरवाजा खोलो.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना ने अंदर से आवाज़ दी, “पहली बार बहुत डर लग रहा है तुमसे.”

“अरे डरने की क्या बात है. अच्छा दरवाजा तो खोलो मैं कुछ नही करूँगा.”

“पक्का.” ज़रीना ने कहा.

“हां पक्का.”

ज़रीना ने दरवाजा खोला डरते-डरते.

“ये हुई ना बात. अब तुम्हारी खैर नही” आदित्य ने ज़रीना का हाथ पकड़ लिया.

“नही आदित्य प्लीज़…तुमने वादा किया था कि कुछ नही करोगे.” ज़रीना गिड़गिडाई और छटपटाने लगी.

ज़रीना पूरी कोशिस कर रही थी अपना हाथ छुड़ाने की मगर आदित्य ने बहुत कस कर पकड़ रखा था उसका हाथ. छटपटाहट में ज़रीना की सारी का पल्लू सरक गया नीचे. आदित्य की नज़र ज़रीना के ब्लाउस पर पड़ी तो उसने फॉरन हाथ छ्चोड़ दिया ज़रीना का, “सॉरी पता नही मुझे क्या हो गया है.”

आदित्य ज़रीना को वही छ्चोड़ कर ड्रॉयिंग रूम में आकर सोफे पर बैठ गया. उसे ये फील हुवा कि वो ज़रीना के साथ ज़बरदस्ती कर रहा है.

ज़रीना एक पल को वही खड़ी रही फिर अपना पल्लू सही करके आदित्य के पास आकर उसके कदमो में बैठ गयी. अपना सर उसने आदित्य के घुटनो पर रख दिया.

“नाराज़ हो गये मुझसे?" ज़रीना ने प्यार से पूछा

“मैं बहुत तड़प रहा हूँ तुम्हारे लिए जान. तुम मुझसे दूर रहो अभी... नही तो कुछ कर बैठूँगा मैं.”

“ठंडे पानी से नहा लो सब ठीक हो जाएगा हहेहहे.” ज़रीना ने हंसते हुवे कहा.

“अछा मतलब कि तुम मेरे लिए कुछ नही करने वाली.”

“मुझे कुछ समझ में नही आ रहा कि क्या करूँ.”

“मुझे भी कहा कुछ समझ आ रहा है. बस पागल पन सा सवार है. शायद सेक्स ऐसा ही जादू करता है.”

“तभी तो डर लग रहा है मुझे तुमसे.”

“चलो छ्चोड़ो ये सब. हम आराम करते हैं. तुम नहा लो थक गयी होगी.”

“हां थक तो बहुत गयी हूँ. पर पहले तुम नहा लो. तब तक मैं खाने को कुछ बना देती हूँ. किचॅन का काम करके ही नहाना ठीक रहेगा.” ज़रीना ने कहा.

“अरे मेरी नयी नवेली दुल्हन काम करेगी. मैं बाहर से ले आता हूँ कुछ.”

“नही तुम कही नही जाओगे. मैं अपने आदित्य के लिए कुछ ख़ास बनाउन्गि आज.”

“चिकन कढ़ाई बना रही हो क्या.”

“दुबारा मत बोलना ऐसी बात. नोन-वेग के नाम से भी नफ़रत है मुझे.”

“उफ्फ गुस्से में कितनी प्यारी लग रही हो तुम. यार अब एक किस तो दे दो कम से कम. शादी के दिन कितना तडपा रही हो तुम मुझे.”

“मैं तो तुम्हारे भले की सोच रही थी कि कही जल कर राख न हो जाओ. हहेहहे.”

“राख ही कर दो. कुछ तो करो मेरी बेचैनी को दूर करने के लिए.”

“नहा लो चुपचाप जा कर. मुझे किचन में बहुत काम है.” ज़रीना उठ कर चल दी.

“उफ्फ लगता है आज मेरी जान ले लोगि तुम.”
 
ज़रीना किचन में आ गयी और अपने काम में लग गयी. आदित्य कुछ देर चुपचाप सोफे पर बैठा रहा. फिर अचानक उठा और किचन में आकर ज़रीना को पीछे से जाकड़ लिया.

“मैं यहा तड़प रहा हूँ आपके लिए और आप खाना बना रही हैं.”

“आप नहा लीजिए ना जाकर. आपकी तड़प थोड़ी शांत हो जाएगी.”

“इस तड़प का इलाज सिर्फ़ आपके पास है. चलिए छ्चोड़िए ये सब.” आदित्य ने ज़रीना को गोदी में उठा लिया.

“आज अचानक इतनी दीवानगी कहा से आ गयी.”

“ये दीवानगी तो हमेशा से थी. बस थामे हुवे था खुद को. शादी से पहले मैं बहकना नही चाहता था.”

“किस मे आदित्य.”

“क्या कहा तुमने?”

“किस मे.”

“ऑम्ग ये कैसे हो गया.”

“अपने दीवाने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ मैं.”

“वैसे मुझे पता है तुम मुझे किस दे कर टरकाने के चक्कर में हो. पर ऐसा नही होगा.”

“ओह गॉड तुम तो पीछे पड़ गये मेरे.”

“जी हां शादी की है आपसे कोई मज़ाक नही. पीछे नही पड़ूँगा आपके तो कुछ मिलने वाला नही है मुझे... ये मैं जान गया हूँ.” आदित्य ज़रीना को बेडरूम में ले गया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

हम सब की सीमा यही समाप्त होती है. बेडरूम में झाँक कर वाहा के सीन का वर्णन करने से दोनो डिस्टर्ब हो जाएँगे. हमें दोनो को अकेला छ्चोड़ देना चाहिए अब. पर ये क्या कुछ आवाज़े आ रही हैं अंदर से. शायद प्रेम-रस में डूब गये हैं दोनो. भगवान से यही दुआ है कि ये दोनो दुनिया की बुरी नज़र से बचे रहें और ये ख़ुसनूमा प्यार दोनो के बीच हमेशा बना रहे.

प्यार एक ऐसी ताक़त है जो कि इंसान को भगवान बना देता है. ये हमारे चरित्र को निखारता है. जीवन की बहुत सारी बुराईयाँ प्यार की आग में जल कर खाक हो जाती हैं. यही देखा हमने इस अनोखे बंधन में. नफ़रत करते थे आदित्य और ज़रीना एक दूसरे से. धरम एक बहुत बड़ा कारण था इस नफ़रत के पीछे. प्यार ने धरम की दीवार भी गिरा दी और दोनो के दिलों में मौजूद नफ़रत को भी ख़तम कर दिया. ये कोई चमत्कार नही है. ऐसा रोज हो रहा है इस देश में. हां पर हर कोई ज़रीना और आदित्य की तरह प्यार की मंज़िल तक नही पहुँच पाता. तभी इसे एक अनोखा बंधन नाम दिया मैने. ये बंधन कुछ ऐसा है कि अगर आदित्य और ज़रीना चाहें तो भी नही तौड सकते इसे. प्यार ही कुछ ऐसा हो गया है दोनो को एक दूसरे से. दुआ यही है कि ऐसा प्यार भगवान हर किसी को दे. अल्लाह से भी यही फरियाद है. भगवान से भी यही प्रार्थना है. दोस्तो कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ तब तक के लिए विदा आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त

दा एंड
 
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