hotaks444
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कुछ देर बाद ही मेरे जानदार धक्कों का जवाब, दीदी भी अपनी गाण्ड उछाल-उछालकर देने लगी थी। शायद अब उसे भी मजा आने लगा था। उसकी चूत एकदम गीली हो चुकी थी और मेरा लण्ड सटासट अंदर-बाहर हो रहा था। उसकी गोल, कठोर चूचियां मेरे हाथों में आसानी से फिट हो रही थी और उनको दबाते और सहलाते हुए मैं, अपने लौड़े को बहन की चूत में पेल रहा था। मैंने उसके होंठों को चूस रहा था और चोद रहा था।
बहना अपनी सिसकारियों और किलकारियों के द्वारा मेरा उत्साह बढ़ाते हुए, अपनी गाण्ड उछाल-उछालकर चुदवा रही थी। हम दोनों की सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी। तभी दीदी ने मुझे कसकर अपने से चिपटा लिया, और अपनी बुर से मेरे लौड़े को कस लिया। मेरे लण्ड से भी वीर्य का एक तेज फौव्वारा, बहन की चूत के अंदर निकल पड़ा। हम दोनों कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहे, फिर थोड़ी देर बाद हम एक-दूसरे से अलग हुए और बाथरूम में जाकर अपने अंगों को साफ किया। फिर हम दोनों बेड पर बैठ गये।
दीदी ने मेरे होंठों का एक चुंबन लिया। मुझे उसकी चुदाई करने के लिये धन्यवाद दिया और कहा कि वो बहुत दिनों से किसी के साथ चुदाई करवाना चाहती थी, मगर मौका नहीं मिलने के कारण अपनी दोस्तों के साथ बैगन का इश्तेमाल करती रहती थी।
मैंने दीदी से कहा- “आज के बाद उसे बैगन के इश्तेमाल की जरूरत नहीं महसूस होगी...” ये हमारी पहली चुदाई थी, इसके बाद हम लगभग रोज चुदाई करते थे और कई-कई बार करते थे।
इतना कहकर मैं चुप हो गया।
मम्मी बड़े गौर से मेरी कहानी सुन रही थी। कहानी सुनते-सुनते उसके चेहरे का रंग भी लाल हो गया था। मुझे ऐसा लग रहा था कि मम्मी को ये कहानी सुनने में बहुत मजा आया था। वो अपने एक हाथ को अपनी जांघों । के बीच रखे हुए थी और वहां बार-बार दबा रही थी। फिर वो अपनी जांघों को भींचते हुए बोली- “ओह... लड़के, सच कह रहे हो तुम। मुझे लगता है, मैं ही इन सबका कारण हूँ। तुम्हारी कहानी सुनकर, मैं बहुत गरम और उत्तेजित हो गई हूँ..”
इतना कहते हुए, वो बेड की पुश्त पर पीठ टिकाकर अधलेटी-सी हो गई। उसने मेरा हाथ पकड़कर अपने हाथों में ले लिया और अपनी छाती पर रख दिया। मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई।
ओहह... बेटे, तुमने मुझे बहुत गरमा दिया है। तुम और तुम्हारी बहन दोपहर में बहुत जबरदस्त तरिके से चुदाई कर रहे थे। जैसा की मैं समझती हूँ, सामाजिक परंपराओं के अनुसार ये पाप है। मगर मेरा दिल जो कि मेरे दिमाग से अलग सोच रहा है और कह रहा है कि ये बहुत ही प्यारा पाप है। ओहह... पापी लड़के, क्या तुम एक और पाप करना चाहोगे? क्या तुम अपनी मम्मी के साथ भी ये पाप करना चाहोगे?”
ओहह... मम्मी, ये तुम क्या कह रही हो? क्या तुम सच में ऐसा कुछ सोचती हो?”
बहना अपनी सिसकारियों और किलकारियों के द्वारा मेरा उत्साह बढ़ाते हुए, अपनी गाण्ड उछाल-उछालकर चुदवा रही थी। हम दोनों की सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी। तभी दीदी ने मुझे कसकर अपने से चिपटा लिया, और अपनी बुर से मेरे लौड़े को कस लिया। मेरे लण्ड से भी वीर्य का एक तेज फौव्वारा, बहन की चूत के अंदर निकल पड़ा। हम दोनों कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहे, फिर थोड़ी देर बाद हम एक-दूसरे से अलग हुए और बाथरूम में जाकर अपने अंगों को साफ किया। फिर हम दोनों बेड पर बैठ गये।
दीदी ने मेरे होंठों का एक चुंबन लिया। मुझे उसकी चुदाई करने के लिये धन्यवाद दिया और कहा कि वो बहुत दिनों से किसी के साथ चुदाई करवाना चाहती थी, मगर मौका नहीं मिलने के कारण अपनी दोस्तों के साथ बैगन का इश्तेमाल करती रहती थी।
मैंने दीदी से कहा- “आज के बाद उसे बैगन के इश्तेमाल की जरूरत नहीं महसूस होगी...” ये हमारी पहली चुदाई थी, इसके बाद हम लगभग रोज चुदाई करते थे और कई-कई बार करते थे।
इतना कहकर मैं चुप हो गया।
मम्मी बड़े गौर से मेरी कहानी सुन रही थी। कहानी सुनते-सुनते उसके चेहरे का रंग भी लाल हो गया था। मुझे ऐसा लग रहा था कि मम्मी को ये कहानी सुनने में बहुत मजा आया था। वो अपने एक हाथ को अपनी जांघों । के बीच रखे हुए थी और वहां बार-बार दबा रही थी। फिर वो अपनी जांघों को भींचते हुए बोली- “ओह... लड़के, सच कह रहे हो तुम। मुझे लगता है, मैं ही इन सबका कारण हूँ। तुम्हारी कहानी सुनकर, मैं बहुत गरम और उत्तेजित हो गई हूँ..”
इतना कहते हुए, वो बेड की पुश्त पर पीठ टिकाकर अधलेटी-सी हो गई। उसने मेरा हाथ पकड़कर अपने हाथों में ले लिया और अपनी छाती पर रख दिया। मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई।
ओहह... बेटे, तुमने मुझे बहुत गरमा दिया है। तुम और तुम्हारी बहन दोपहर में बहुत जबरदस्त तरिके से चुदाई कर रहे थे। जैसा की मैं समझती हूँ, सामाजिक परंपराओं के अनुसार ये पाप है। मगर मेरा दिल जो कि मेरे दिमाग से अलग सोच रहा है और कह रहा है कि ये बहुत ही प्यारा पाप है। ओहह... पापी लड़के, क्या तुम एक और पाप करना चाहोगे? क्या तुम अपनी मम्मी के साथ भी ये पाप करना चाहोगे?”
ओहह... मम्मी, ये तुम क्या कह रही हो? क्या तुम सच में ऐसा कुछ सोचती हो?”