hotaks444
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"नहीं जीजाजी, कोई बात नहीं, चूसने में बहुत मजा आ रहा था मेरे को. वैसे टेस्ट बुरा नहीं है, खारा खारा सा है" ललित ने जीभ मुंह में घुमाते हुए कहा. "कितना चिपचिपा है, लेई जैसा, तालू पर चिपक सा गया है.
"तू ऐसा कर, जा कुल्ला कर आ, तेरी पहली बार है"
ललित जाकर कुल्ला कर आया. जब मेरे पास बैठा तो मैंने उसे फ़िर से बांहों में ले लिया. बांहों में भरके उसे कस के भींचा और पटापट उसके चुंबन लेने लगा. बेचारा फ़िर थोड़ा शरमा सा गया. वैसे चूमा चाटी जनाब को अच्छी लग रही थी और जब मैं थोड़ा रुकता. तो ललित मेरे चुम्मे लेने लगता.
"अगर तू सोच रही है ललिता कि इतना लाड़ क्यों आ रहा है मुझे, तो मुझे लीना पर भी आता है जब वह मुझे ऐसा सुख देती है. अब ललिता ... नहीं थोड़ी देर को अब ललित कहूंगा तेरे को, यार न जाने क्या हो गया है मुझे ... मालूम है कि तू लड़का है फ़िर भी तेरे पर मरने सा लगा हूं. शायद तुझमें दोनों की, मर्दों और औरतों की, सबसे मीठी, सबसे मतवाली खूबियां हैं. अब ये बता कि मेरे साथ सोयेगा या अकेले? मेरे बेडरूम में मेरे बेड पर सोने में अटपटा लगेगा तेरे को तो रहने दे. वैसे इतने दिनों में पहली बार लीना नहीं है और अकेले सोने की मेरी आदत ही खतम हो गयी है."
ललित ने तुरंत हां कह दिया. उसे बांहों में भींचते वक्त अब मुझे उसके सख्त लंड का आभास हो रहा था जो पैंटी के अंदर ही खड़ा होकर मेरे पेट पर चुभ रहा था. मुझे ललित पर थोड़ा तरस भी आया, वो बेचारा कितनी देर से मस्ताया हुआ था पर मैंने उसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया था.
"ऐसा करो ललित कि अब ये ब्रा और पैंटी निकाल दो. सोते समय कोई शर्त नहीं, अपने नेचरल अंदाज में आराम से सो." वह मेरे बेडरूम में गया और मैंने घर में एक बार सब चेक करके लाइट ऑफ़ किये, दरवाजा ठीक से लगाया और अपना ब्रीफ़ निकालकर वहीं सोफ़े पर डाल दिया. जब पूरा नंगा होकर मैं अपने बेडरूम में आया, तो ऊपर की लाइट ऑफ़ थी. टेबल लैंप की धीमी रोशनी ललित के नंगे बदन पर पड़ रही थी. वह थोड़ा दुबक कर बेड पर एक तरफ़ लेटा हुआ था, लंड एकदम तन कर खड़ा था. मुझे देख कर थोड़ा और सरक गया. सरकते वक्त मुझे उसकी गोरी सपाट पीठ और थोड़े छोटे पर भरे हुए कसे कसे गोरे चिकने नितंब दिखे.
अब यह बताने की जरूरत नहीं कि मैं गांड का कितना दीवाना हूं. लीना की गांड पर तो मरता हूं, इतने गुदाज मांसल और फूले हुए एकदम गोल नितंब हैं उसके कि मेरा बस चले तो चौबीस घंटे उनसे चिपका रहूं. लीना को यह मालूम है इसलिये रेशन कर रखा है. मुझे महने में दो तीन बार से ज्यादा गांड नहीं मारने देती. अब गांड की इतनी प्यास होने पर जब मैंने अपनी ससुराल में सासू मां और मीनल के भरे भरे चूतड़ देखे थे तो दिल बाग बाग हो गया था, कि कुछ तो मौका मिलेगा. वहां मेरी सच में के.एल.डी हुई जब लीना ने वीटो लगा दिया. तब सामूहिक चुदाई के दौरान ललित के गोरे कसे चूतड़ देख कर भी मेरे मन में आया था कि यार यही मिल जायें मारने को. अब जब ललित मेरे सामने असहाय अकेला था, तो इससे अच्छा मौका नहीं था. पर मैंने सोचा कि जल्दबाजी करूंगा तो कहीं सब किये कराये पर पानी ना फिर जाये. आखिर मुझे अपने इस चिकने खूबसूरत साले को फांसना था तो वो लंबे समय के लिये, एक रात के लिये नहीं. इसलिये आज की रात इस चिड़िया को और फंसाने में ज्यादा फायदा था.
यही सब सोच कर मैं उसपर झपटने के बजाय धीरे से पलंग पर बैठ गया "ललित राजा, ये अच्छा हुआ कि तू यहां सो रहा है नहीं तो सच में अकेले सोने में मुझे बड़ा अजीब सा लगता. वैसे वहां घर में किस के साथ सोता है तू" मैंने उसके बाजू में लेटते हुए पूछा.
’अक्सर तो हम सब एक साथ ही सोते हैं जीजाजी, मां के बेडरूम में उस बड़े वाले पलंग पर. कभी कभी जब हेमन्त भैया मीनल भाभी के साथ उनके बेडरूम में सोते हैं तो मैं मां के साथ सोता हूं. कभी कभी मां हेमन्त भैया को बुला लेती है अपने कमरे में सोने को, तब मैं भाभी के कमरे में सो जाता हूं. और जब भैया बाहर होते हैं टूर पर तो मैं, मां और भाभी साथ सोते हैं"
"वो राधाबाई नहीं सोतीं वहां?" उसे पास खींचकर चिपटाते हुए मैंने पूछा.
"नहीं जीजाजी, वे बस दिन में आती हैं. वो तो अच्छा है, अगर रात को रहें तो हम सब से अपने मन का करा लेंगी, हम लोगों को कोई मौका ही नहीं मिलेगा अपने मन की करने का"
उसका चेहरा अब बिलकुल मेरे सामने था. उसने विग निकाल दिया था फ़िर भी उसके चेहरे पर एक गजब की मिठास थी जैसी लीना के चेहरे में है. मैंने उसके होंठ अपने होंठों में दबाये और चुंबन लेने लगा. जल्द ही ये चुंबन प्रखर हो गये. दांतों में दबा दबा कर मैंने उसके वे कोमल होंठ चूसे. उसकी जीभ चूसी और खुद अपनी जीभ उसके मुंह में घुसेड़ी. अब ललित मेरी जीभ चूसते चूसते धक्के मार रहा था, उसका लंड मेरे पेट को कस के दबा रहा था. मैंने सोचा कि यह ठीक नहीं है, उस बेचारे ने मुझे इतने सुखद स्खलन का आनंद दिया है तो उसको भी सुख देना मेरी ड्यूटी है.
मैंने चुंबन तोड़ा तो तो जोर से सांसें लेता हुआ वह बोला "आप सॉलिड किसिंग करते हैं जीजाजी"
"क्यों, और कोई नहीं किस करता तेरे को ऐसे? इतना क्यूट लड़का है तू"
"भाभी करती है ऐसे कई बार. कभी कभी मां करती है"
मैंने उसे पलट कर दूसरी करवट पर लेटने को कहा. "अब जरा ऐसे चिपक मेरे को, मुझे सहूलियत होगी" मैंने उसे पीछे से आगोश में ले लिया. मेरा लंड अब फ़िर से खड़ा होकर उसके नितंबों के बीच की लकीर में आड़ा धंसा हुआ था. उसका छरहरा बदन बांहों में लेकर ऐसे ही लग रहा था जैसे किसी कमसिन कन्या को भींचे हुए हूं. एक हाथ से मैंने उसका लंड पकड़ा और सहलाने लगा. जरा छोटा था पर एकदम रसीले गन्ने जैसा था. मैंने उसका सुपाड़ा मुठ्ठी में भरकर दबाया और फ़िर अपने खास तरीके से उसकी मुठ्ठ मारने लगा, जैसा मुझे खुद पसंद है.
"आह ... ओह ... क्या मस्त करते हैं आप जीजाजी!" ललित ने सिहरकर कहा. जवाब में मैंने उसकी गर्दन पीछे से चूमना शुरू कर दी. लीना के बाल उठाकर मैं जब उसकी गर्दन ऐसे चूमता हूं तो कितनी भी थकी हो या मूड में न हो, फ़िर भी पांच मिनिट में गरमा जाती है. ललित का लंड भी अब मेरी मुठ्ठी में उछल कूद कर रहा था. दिख भी एकदम रसीला रहा था. गोरा डंडा और लाल लाल चेरी. मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं ये करूंगा पर एक तो ललित का रूप और दूसरे उसने मुझे जो सुख दिया था उसके उत्तर में उसे सुख देने की चाह!
"ललित राजा, अब मेरी सुनो. इसके बाद का रूल यह है कि मैं कुछ भी करूं, तुम बस पड़े रहोगे ऐसे ही सीधे. न हाथ लगाओगे, न धक्के मारोगे. ठीक है?" उसके लंड को सहलाते हुए मैंने कहा. उसने हां कहा, अब तो वो ऐसी हालत में था कि मैं कुछ भी कहता तो मान लेता.
उसे सीधा लिटा कर मैं उसके लंड पर टूट पड़ा. उसको चूमा, सुपाड़ा थोड़ी देर चूसा, फ़िर जीभ से चारों और से चाटा. ललित गर्दन दायें बायें करने लगा, साले को सहन नहीं हो रहा था. "जीजाजी प्लीज़ ... कैसा तो भी होता है"
"अब कैसा भी तो होता है इसका मतलब मैं क्या समझूं यार? तू तो ऐसे तड़प रहा है जैसे आज तक किसीने तेरा लंड नहीं चूसा हो. घर में तो सब जुटे रहते हैं ना इसपर, तेरी दीदी, भाभी, मां, राधाबाई ... फ़िर?"
"पर आप करते हैं तो सच में रहा नहीं जाता जीजाजी ... ओह .. आह ... जीजाजी प्लीज़"
पर मैं तंग करता रहा. अब मेरा भी मूड बन गया था, एक तो पहली बार लंड चूस रहा था, और किस्मत से वह भी ऐसा रसीला खूबसूरत लंड. मन आया वैसे किया, कुछ एक्सपेरिमेंट भी किये. हां ललित को बहुत देर झड़ने नहीं दिया. ललित आखिर कराहने लगा "जीजाजी ... प्लीज़ ... दिस इज़ नॉट फ़ेयर ... इतना क्यों तंग कर रहे हैं?"
"तेरी दीदी मुझे सताती है उसका बदला ले रहा हूं, ऐसा ही समझ ले. मालूम है कि कभी जब तेरी दीदी दुष्ट मूड में होती है तो मेरा क्या हालत करती है? मेरे हाथ पैर बांध कर मुझे कैसे कैसे सताती है? अब उससे तो मैं झगड़ नहीं सकता, पर उसका बदला तुझपर निकालने का मौका मिला है तो क्यों न निकालूं? बहन का बदला भाई से! यही गनीमत समझ ले कि मैंने तेरी मुश्क नहीं बांधी"
"तू ऐसा कर, जा कुल्ला कर आ, तेरी पहली बार है"
ललित जाकर कुल्ला कर आया. जब मेरे पास बैठा तो मैंने उसे फ़िर से बांहों में ले लिया. बांहों में भरके उसे कस के भींचा और पटापट उसके चुंबन लेने लगा. बेचारा फ़िर थोड़ा शरमा सा गया. वैसे चूमा चाटी जनाब को अच्छी लग रही थी और जब मैं थोड़ा रुकता. तो ललित मेरे चुम्मे लेने लगता.
"अगर तू सोच रही है ललिता कि इतना लाड़ क्यों आ रहा है मुझे, तो मुझे लीना पर भी आता है जब वह मुझे ऐसा सुख देती है. अब ललिता ... नहीं थोड़ी देर को अब ललित कहूंगा तेरे को, यार न जाने क्या हो गया है मुझे ... मालूम है कि तू लड़का है फ़िर भी तेरे पर मरने सा लगा हूं. शायद तुझमें दोनों की, मर्दों और औरतों की, सबसे मीठी, सबसे मतवाली खूबियां हैं. अब ये बता कि मेरे साथ सोयेगा या अकेले? मेरे बेडरूम में मेरे बेड पर सोने में अटपटा लगेगा तेरे को तो रहने दे. वैसे इतने दिनों में पहली बार लीना नहीं है और अकेले सोने की मेरी आदत ही खतम हो गयी है."
ललित ने तुरंत हां कह दिया. उसे बांहों में भींचते वक्त अब मुझे उसके सख्त लंड का आभास हो रहा था जो पैंटी के अंदर ही खड़ा होकर मेरे पेट पर चुभ रहा था. मुझे ललित पर थोड़ा तरस भी आया, वो बेचारा कितनी देर से मस्ताया हुआ था पर मैंने उसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया था.
"ऐसा करो ललित कि अब ये ब्रा और पैंटी निकाल दो. सोते समय कोई शर्त नहीं, अपने नेचरल अंदाज में आराम से सो." वह मेरे बेडरूम में गया और मैंने घर में एक बार सब चेक करके लाइट ऑफ़ किये, दरवाजा ठीक से लगाया और अपना ब्रीफ़ निकालकर वहीं सोफ़े पर डाल दिया. जब पूरा नंगा होकर मैं अपने बेडरूम में आया, तो ऊपर की लाइट ऑफ़ थी. टेबल लैंप की धीमी रोशनी ललित के नंगे बदन पर पड़ रही थी. वह थोड़ा दुबक कर बेड पर एक तरफ़ लेटा हुआ था, लंड एकदम तन कर खड़ा था. मुझे देख कर थोड़ा और सरक गया. सरकते वक्त मुझे उसकी गोरी सपाट पीठ और थोड़े छोटे पर भरे हुए कसे कसे गोरे चिकने नितंब दिखे.
अब यह बताने की जरूरत नहीं कि मैं गांड का कितना दीवाना हूं. लीना की गांड पर तो मरता हूं, इतने गुदाज मांसल और फूले हुए एकदम गोल नितंब हैं उसके कि मेरा बस चले तो चौबीस घंटे उनसे चिपका रहूं. लीना को यह मालूम है इसलिये रेशन कर रखा है. मुझे महने में दो तीन बार से ज्यादा गांड नहीं मारने देती. अब गांड की इतनी प्यास होने पर जब मैंने अपनी ससुराल में सासू मां और मीनल के भरे भरे चूतड़ देखे थे तो दिल बाग बाग हो गया था, कि कुछ तो मौका मिलेगा. वहां मेरी सच में के.एल.डी हुई जब लीना ने वीटो लगा दिया. तब सामूहिक चुदाई के दौरान ललित के गोरे कसे चूतड़ देख कर भी मेरे मन में आया था कि यार यही मिल जायें मारने को. अब जब ललित मेरे सामने असहाय अकेला था, तो इससे अच्छा मौका नहीं था. पर मैंने सोचा कि जल्दबाजी करूंगा तो कहीं सब किये कराये पर पानी ना फिर जाये. आखिर मुझे अपने इस चिकने खूबसूरत साले को फांसना था तो वो लंबे समय के लिये, एक रात के लिये नहीं. इसलिये आज की रात इस चिड़िया को और फंसाने में ज्यादा फायदा था.
यही सब सोच कर मैं उसपर झपटने के बजाय धीरे से पलंग पर बैठ गया "ललित राजा, ये अच्छा हुआ कि तू यहां सो रहा है नहीं तो सच में अकेले सोने में मुझे बड़ा अजीब सा लगता. वैसे वहां घर में किस के साथ सोता है तू" मैंने उसके बाजू में लेटते हुए पूछा.
’अक्सर तो हम सब एक साथ ही सोते हैं जीजाजी, मां के बेडरूम में उस बड़े वाले पलंग पर. कभी कभी जब हेमन्त भैया मीनल भाभी के साथ उनके बेडरूम में सोते हैं तो मैं मां के साथ सोता हूं. कभी कभी मां हेमन्त भैया को बुला लेती है अपने कमरे में सोने को, तब मैं भाभी के कमरे में सो जाता हूं. और जब भैया बाहर होते हैं टूर पर तो मैं, मां और भाभी साथ सोते हैं"
"वो राधाबाई नहीं सोतीं वहां?" उसे पास खींचकर चिपटाते हुए मैंने पूछा.
"नहीं जीजाजी, वे बस दिन में आती हैं. वो तो अच्छा है, अगर रात को रहें तो हम सब से अपने मन का करा लेंगी, हम लोगों को कोई मौका ही नहीं मिलेगा अपने मन की करने का"
उसका चेहरा अब बिलकुल मेरे सामने था. उसने विग निकाल दिया था फ़िर भी उसके चेहरे पर एक गजब की मिठास थी जैसी लीना के चेहरे में है. मैंने उसके होंठ अपने होंठों में दबाये और चुंबन लेने लगा. जल्द ही ये चुंबन प्रखर हो गये. दांतों में दबा दबा कर मैंने उसके वे कोमल होंठ चूसे. उसकी जीभ चूसी और खुद अपनी जीभ उसके मुंह में घुसेड़ी. अब ललित मेरी जीभ चूसते चूसते धक्के मार रहा था, उसका लंड मेरे पेट को कस के दबा रहा था. मैंने सोचा कि यह ठीक नहीं है, उस बेचारे ने मुझे इतने सुखद स्खलन का आनंद दिया है तो उसको भी सुख देना मेरी ड्यूटी है.
मैंने चुंबन तोड़ा तो तो जोर से सांसें लेता हुआ वह बोला "आप सॉलिड किसिंग करते हैं जीजाजी"
"क्यों, और कोई नहीं किस करता तेरे को ऐसे? इतना क्यूट लड़का है तू"
"भाभी करती है ऐसे कई बार. कभी कभी मां करती है"
मैंने उसे पलट कर दूसरी करवट पर लेटने को कहा. "अब जरा ऐसे चिपक मेरे को, मुझे सहूलियत होगी" मैंने उसे पीछे से आगोश में ले लिया. मेरा लंड अब फ़िर से खड़ा होकर उसके नितंबों के बीच की लकीर में आड़ा धंसा हुआ था. उसका छरहरा बदन बांहों में लेकर ऐसे ही लग रहा था जैसे किसी कमसिन कन्या को भींचे हुए हूं. एक हाथ से मैंने उसका लंड पकड़ा और सहलाने लगा. जरा छोटा था पर एकदम रसीले गन्ने जैसा था. मैंने उसका सुपाड़ा मुठ्ठी में भरकर दबाया और फ़िर अपने खास तरीके से उसकी मुठ्ठ मारने लगा, जैसा मुझे खुद पसंद है.
"आह ... ओह ... क्या मस्त करते हैं आप जीजाजी!" ललित ने सिहरकर कहा. जवाब में मैंने उसकी गर्दन पीछे से चूमना शुरू कर दी. लीना के बाल उठाकर मैं जब उसकी गर्दन ऐसे चूमता हूं तो कितनी भी थकी हो या मूड में न हो, फ़िर भी पांच मिनिट में गरमा जाती है. ललित का लंड भी अब मेरी मुठ्ठी में उछल कूद कर रहा था. दिख भी एकदम रसीला रहा था. गोरा डंडा और लाल लाल चेरी. मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं ये करूंगा पर एक तो ललित का रूप और दूसरे उसने मुझे जो सुख दिया था उसके उत्तर में उसे सुख देने की चाह!
"ललित राजा, अब मेरी सुनो. इसके बाद का रूल यह है कि मैं कुछ भी करूं, तुम बस पड़े रहोगे ऐसे ही सीधे. न हाथ लगाओगे, न धक्के मारोगे. ठीक है?" उसके लंड को सहलाते हुए मैंने कहा. उसने हां कहा, अब तो वो ऐसी हालत में था कि मैं कुछ भी कहता तो मान लेता.
उसे सीधा लिटा कर मैं उसके लंड पर टूट पड़ा. उसको चूमा, सुपाड़ा थोड़ी देर चूसा, फ़िर जीभ से चारों और से चाटा. ललित गर्दन दायें बायें करने लगा, साले को सहन नहीं हो रहा था. "जीजाजी प्लीज़ ... कैसा तो भी होता है"
"अब कैसा भी तो होता है इसका मतलब मैं क्या समझूं यार? तू तो ऐसे तड़प रहा है जैसे आज तक किसीने तेरा लंड नहीं चूसा हो. घर में तो सब जुटे रहते हैं ना इसपर, तेरी दीदी, भाभी, मां, राधाबाई ... फ़िर?"
"पर आप करते हैं तो सच में रहा नहीं जाता जीजाजी ... ओह .. आह ... जीजाजी प्लीज़"
पर मैं तंग करता रहा. अब मेरा भी मूड बन गया था, एक तो पहली बार लंड चूस रहा था, और किस्मत से वह भी ऐसा रसीला खूबसूरत लंड. मन आया वैसे किया, कुछ एक्सपेरिमेंट भी किये. हां ललित को बहुत देर झड़ने नहीं दिया. ललित आखिर कराहने लगा "जीजाजी ... प्लीज़ ... दिस इज़ नॉट फ़ेयर ... इतना क्यों तंग कर रहे हैं?"
"तेरी दीदी मुझे सताती है उसका बदला ले रहा हूं, ऐसा ही समझ ले. मालूम है कि कभी जब तेरी दीदी दुष्ट मूड में होती है तो मेरा क्या हालत करती है? मेरे हाथ पैर बांध कर मुझे कैसे कैसे सताती है? अब उससे तो मैं झगड़ नहीं सकता, पर उसका बदला तुझपर निकालने का मौका मिला है तो क्यों न निकालूं? बहन का बदला भाई से! यही गनीमत समझ ले कि मैंने तेरी मुश्क नहीं बांधी"